शनिवार, 29 अप्रैल 2017

जुड़वा बच्चे कभी जमाते हैं रंग, कभी करते हैं तंग


जुड़वा बच्चों में मां का प्यार बंट जाता है। वह पूरी तरह एक बच्चे को प्यार नहीं कर पाती यह बहुत परेषान करने वाली बात है जो हमेषा चुभती है।
 जुड़वा बच्चों को देखना बहुत अच्छा लगता है। एक जैसे कपड़े एक जैसा चेहरा अ©र एक जैसी शरारतें मन को मोह लेती हैं। लेकिन अगर उनकी मम्मी पापा से पूछें तो उनकी तकलीफों का पता चलता है। दो बच्चों को एक साथ संभालना आसान नहीं है। पत्रकार रश्मि उपाध्याय कहती हैं कि मैं दो जुड़वा बच्चों की मां हूं। मैंने महसूस किया है कि जुड़वा बच्चों में मां का प्यार बंट जाता है। वह पूरी तरह एक बच्चे को प्यार नहीं कर पाती यह बहुत परेशान करने वाली बात है जो हमेशा चुभती है। क्योंकि दोनों बच्चे जुड़वा है इसलिए उनक¢ साथ एक जैसा व्यवहार कर पाना कठिन होता है। ऐसे बच्चों में शेयर करने की भावना नहीं होती। जिससे प्राब्लम होती है। बच्चों को समझाना बहुत कठिन है। एक जैसा खाना पीना एक जैसे खिलौने..... सब कुछ एक जैसा कर पाना आसान नहीं क्योंकि मां तो एक है ना। बच्चे साथ साथ खेलते हैं साथ साथ बीमार भी पड़ते हैं।
बच्चों क¢ लिहाज से यह अच्छा होता है क्योंकि उनको अपना हम उम्र दोस्त तलाशना नहीं पड़ता। वह साथ साथ खेलते हैं, तो साथ साथ लड़ते हैं इस मौज मस्ती के बीच कुछ ऐसी बातें भी होती हैं जोकि दोनों में काॅमन भी होती हैं और अलग भी। ऐसे में इनको अपनी एकरूपता और अंतर को लेकर एक दूसरे के साथ तालमेल बैठाने में भी मुश्किल होती है। जुड़वा बच्चों में अगर लड़का लड़की की जोड़ी है तो एक उम्र क¢ बाद यह भी खुद को अक¢ला महसूस करते हैं।
जुड़वा साथी, दोस्ती भी तकरार भी
हमेशा दोनों के पास ही अपना एक साथी होता हैै।
हर दम दोनों साथ रहते हैं इससे वह सोशल होना सीख जाते हैं।
छोटी उम्र से ही वह चीजें शेयर करना सीख जाते हैं।
पेरेंट्स को अलग से वर्कआउट करने की जरूरत नहीं होती क्योंकि दो बच्चों को पालना में ही वर्कआउट हो जाता है।
जिन पेरेंट्स के जुडंवा बच्चे नहीं होते वह सोचते हैं कि आप सुपर हीरो है।
आप बच्चों की एक्सपर्ट एडवाइजर भी बन जाती हैं क्योंकि आपने दो दो बच्चे संभाले हैं वह भी एक ही उम्र के जोकि एक साथ पैदा तो हुए लेकिन हैं एक दूसरे से बिल्कुल अलग।
जब आपके जुडंवा बच्चे होते हैं तो आप इस बात को समझ सकते हैं कि व्यक्ति का हर समय परफेक्ट होना बिल्कुल असंभव है।  इससे आप स्ट्रेस को झेलना सीख जाते हैं।
यह हो सकता है कि आपके दोनों बच्चों की रूचियां भी एक जैसी हों तो वह एक दूसरे को मोटीवेट भी करते हैं।
यदि आपको दो बच्चे ही चाहिएं तो एक बार में ही काम हो जाता है। लेकिन यदि आपको इसके बाद एक और होता है तो आपको उसे हैंडिल करना आसान हो जाता है क्योंकि आप पहले ही दो को एक साथ हैंडिल कर चुके होते हैं।
थोड़ा बड़े होने पर बच्चे एक दूसरे के साथ ही खेलने लगते हैं तो वह आपको कम तंग करते हैं और आप अपने घर के काम निबटा सकती हैं।  उन दोनों को एक साथ खेलता और ब़ढ़ता देखने पर आपको बहुत खुशी मिलेगी।  हर दिन आपको एक नई चीज बच्चों के बारे में जानने को मिलेगी।
परेशानियां जुड़वा बच्चों की
अक्सर  जुड़वां बच्चों को पेरेंट्स एक जैसी पोशाक पहनाते हैं।  देखने वाले के लिए तो यह बहुत कूल है लेकिन इससे बहुत ही कन्फयूजन होता है और इनके लिए परेशान कर देने वाला।  ऐसे में इन दोनों को ही आइडेंडिटी क्राइसिस का सामना करना पड़ता है। एक को अधिकतर दूसरे के नाम से पुकारा जाता है।  इससे इन दोनों में एक दूसरे से लड़ाई भी हो सकती हैै।
दोनों बच्चे हमउम्र होते हैं साथ ही स्कूल में पढ़ने जाते हैं तो यदि दोनों में से एक पढ़ने में तेज है और एक कमजोर निकल जाता है तो कमजोर बच्चे का दूसरे जुंडवा से तुलना करने लगते हैं और उस पर दबाव डालते हैं कि वह भी दूसरे जुंडवा की तरह ही परर्फाम करे।
हर बच्चा अलग होता है, उसका अलग व्यक्तित्व होता है, रूचि और अरूचि अलग अलग होती है फिर चाहे बच्चे जुडंवा ही क्यांे न हों।  यदि दोनों में से एक बच्चा भी थोड़ा कमजोर हो तो दूसरे के साथ तुलनात्मक रवैया उसको परेशान कर देता है और समय के साथ साथ यह दूरी बढ़ती जाती है।
हालांकि दोनों जुड़वां एक जैसे दिखते है लेकिन दोनों जिंदगी में अलग अलग चीज ही चुनते हैं, इससे भी दोनों के बीच तुलना शुरू हो जाती है।
काॅम्पीटीशन उम्र के साथ खत्म होता जाता है लेकिन दोनों के बीच में बड़े होने पर ईगो क्लैश होने लगता है यदि एक दूसरे से ज्यादा सफल हो जाता है।  यह दोनों ही अंदरूनी क्लेश से गुजरते हैं जिसे कि सिर्फ वह ही समझ सकते हैं  जिसके कारण दो जुड़ंवा बच्चे जोकि छोटे होते एक अच्छे सिबलिंग का जोड़ा लगते थे वह ही एक दूसरे की तरफ मदद का हाथ भी नहीं  बढ़ाना चाहते।

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

पेंटिंग के नए अंदाज



 प्रकृति की खूबसूरती को दिखाने के लिए रंग और ब्रष के साथ-साथ अब जूट, मनके, पत्थर, सीपी, सूखे पत्तों का इस्तेमाल किया जा रहा है।

कला अपने एक रंग और ढंग मंे नहीं रहती। हर बार उसे व्यक्त करने का अंदाज एकदम अलग होता है। कभी लैंडस्केप बनाने के लिए कलाकार प्रकृति के बीच में जाकर प्रकृति के रंग चुनता था।  अब रंगों के साथ-साथ वह जूट, फाइबर, खुशबू, पत्ती और पत्थर भी चुनता है।
मूलतः न्यूयार्क में रहने वाली आर्टिस्ट उरसूला क्लार्क अपने स्पेशल आर्टवर्क की प्रर्दशनी के लिए भारत आई हुई थीं।  उरसुला का काम लोगों को प्रकृति की खूबसूरती से रूबरू कराता है और साथ ही आश्चर्यचकित भी करता है।
उरसुला क्लार्क ने ‘दी पार्क नेचर इन बैलेंस‘ में प्रकृति की खूबसूरती का चित्रण अपने आसपास की चीजों और दृश्यों को इक्ट्ठा करके किया है।  साईट वर्क एक नवीन आर्टिस्टिक व्यू को दर्शाता है जिसमें किसी तरह का संकोच या दिखावा नहीं है।  यह कहना गलत होगा कि आर्ट सिर्फ म्यूजियम और गैलरी में ही प्रदर्शित किया सकता है। आज हम कला को म्यूजियम और गैलरी से बाहर निकालकर ओपन एरिया में ले आए हैं। इसे साईट आर्ट के नाम से जाना जाता है। साईट आर्ट  में  जिस जगह पर आर्ट को लगाना होता है उसको ध्यान में रखते हुए  आर्टिस्ट आर्टवर्क बनाता है।  इस आर्ट को बनाने में साधारण सी चीजों का जैसे कि जूट, नैचुरल फाइबर, ड्राईड मौसिस  और पत्थर का इस्तेमाल होता है।  यह सभी चीजें आॅरगेनिक भी होती हैं।  इसमें टेक्सचर, रंग और खुशबू का खास ख्याल रखा जाता हैं।  इस आर्ट में इसी बात का ध्यान रखा जाता है कि इसकी प्राकृतिक सुंदरता  बरकरार रहे।
पहली साईट स्पेसिफिक आर्ट एक्अीविटी कैंप में आंध्र यूनिवर्सिटी और विश्वभारती यूनिवर्सिटी के फाईन आर्ट्स के छात्रों ने हिस्सा लिया।
उरसुला क्लार्क का काम न्यूयार्क की कई गैलरीज में प्रदर्शित किया जा चुका है।   इसके अलावा उरसूला का आर्टवर्क ‘दी पार्क होटल‘ के चेसबोर्ड लाॅन एरिया में रखा गया है।  इसके अलावा आर्टिस्टिक डिस्प्ले के लिए होटल में ‘हस्ताकार‘ नाम से एक विशेष जगह बनाई गई है जहां पर कि नए आर्ट वर्क प्रदर्शित किए जाएंगंे।  सौम्या बेलुबी के अनुसार यहां पर कई  आर्टिस्ट का काम देखा जा सकता है जैसे कि रवि कट्टूकूरी, सिहांचलम डौलू, संध्या चैधरी, श्रीनिवास पदाकंदला, शर्माला कारी, तिरूपति राव, मोका सतीशकुमार, नरेश मोहंत।  हाल ही में सईदा अली का काम भी शामिल किया है जोकि रिवर्स पेंटिग करने में माहिर है।  इसके अलावा रश्मि दिवेदी के दो आर्ट वर्क, डी शंकर का ऐग शेल आर्टवर्क, रवि कट्टाकुरी के 10 वर्क लगाए गए हैं।

गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

केले से आएगी बालों में चमक


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 त्वचा और बालों में रूखापन आना आम समस्या है।  रूखेपन की वजह से डैंड्रफ, एग्जीमा आदि होने की संभावना होती है जिसकी वजह से बाल झड़ सकते हैं।  
जब सुंदरता की बात आती है तो निगाह चेहरे के साथ-साथ हमारे बालों की तरफ भी जाती है। हमारे बाल, हमारी त्वचा का भी महत्व है। यदि यह रूखे होते हैं तो हमारे बाल और हमारी त्वचा दोनों ही कांतिहीन हो जाते हैं। बालों की चमक को बनाए रखने के लिए हमें कुछ सावधानियों और कुछ उपाय अपनाने की जरूरत होती है।
बालों के लिए ब्लो ड्रायर  का इस्तेमाल कम से कम करें।
यदि ब्लो ड्रायर का इस्तेमाल करने वाले हों तो कंडीशनर या हीट प्रोटेक्टिंग प्रोडक्ट का पहले इस्तेमाल करें।
जिन चीजों में अल्कोहल का कंटेट ज्यादा हो उन चीजों का इस्तेमाल न करें।
डैंड्रफ से बचाव के लिए स्कैल्प पर शिया, कोकोनट, आॅलिव या जोजोबा आॅयल की कुछ बूंदे अपनी हथेलियों पर लेकर बालों में लगा लें।   इसके अलावा आप सप्ताह में एक बार एंटी डैंड्रफ शैंपू भी लगा सकते हैं।
सर्दियों में  डैंड्रफ से बचाव के लिए डीप कंडीशनिंग हेयर स्पा ट्रीटमेंट लें।
शैंपू से पहले हाॅट आॅयल मसाज  नियमित रूप से करें।
डैमेज हुए बालों को अच्छी स्थिति में लाने के लिए शिया बटर या आॅरगन आॅयल प्रभावशाली है ।  जिस शैंपू और कंडीशनर में शिया बटर और आॅरगन आॅयल हो उनका इस्तेमाल सर्दियांे में जरूर करें।
घरेलू नुस्खों में केेले के अंदर दो चम्मच हनी और कुछ बूंदे आॅरगन आॅयल की मिलाकर पेस्ट बना लें और मास्क  की तरह बालों में लगाकर छोड़ दें और 30-40 मिनट बाद बालों को धो लें इससे बालों में चमक  आ जाएगी।


                                       खूबसूरती के लिए आजमाएं केला

केले में विटामिन सी, ए, पोटैशियम, कैल्शियम, फास्फोरस व कार्बोहाइड्रेट भरपूर मात्रा में होता है जो त्वचा के लिए फायदेमंद होता है।
ल्गातार कलरिंग और केमिकल्स से खराब हुए बालों को केले से ठीक किया जा सकता है।
फटी एडियों की समस्या के लिए भी केला फायदेमंद है। केले और नारियल के तेल को मिलाकर पैक बनाकर लगा दें।
मस्से होने पर केले के छिलके को उस जगह पर रगड़ें और रात भर के लिए छोड़ दें। दुबारा उस जगह पर मस्सा नहीं होगा।
दांत चमकाने के लिए केले के छिलके का प्रयोग करें।  ब्रश करने के बाद केले के छिलके को हर दिन दांत में रगड़ने से चमक आ जाती है।




बुधवार, 26 अप्रैल 2017

इंटरनेशनल डांसर बनना चाहती हूं - अलंकृता


अलंकृता को  बचपन से ही माडलिंग का शौक है।  इन्होंने 13 वर्ष की उम्र से ही माडलिंग की शुरूआत कर दी थी।  यह कत्थक, भरतनाट्यम और कंटम्परेरी डांस फार्म की ट्रेंड डांसर हैं। इन्होंने मिस नार्थईस्ट इंडिया ब्यूटी फेस आॅफ द ईयर का खिताब अपने नाम किया इसके साथ ही यह मिस दीवा यूनीवर्स कंटेस्ट की यह सबसे छोटी कंटेस्टेट बनीं और टाॅप 16 में अपनी जगह बनाई।  यह लखविंदर शाबला की फिल्म राजा एबरोडिया से बाॅलीवुड में कदम रख रही हैं।  आइए करते हैं उनसे बातचीत:-
प्रश्न: माडलिंग के अलावा और क्या शाैक हैं आपके ?
उत्तर -  डांसिंग,
प्रश्न:   आप जीवन में क्या बनना चाहती हैं?
उत्तर: मैं इंटरनेशनल डांसर बनना चाहती हूं।  मैने हाल ही में दुबई में शो किया है।  मुझे डयूट शो करना ज्यादा पसंद है।
प्रश्न: आपके डांस के गुरू कौन हैं?
उत्तर:  मैनें बिरजू महाराज और मोरमो मेथी से कत्थक सीखा है और भरतनाट्यम प्रीति बरूआ और महुआ चैधरी से सीखा है।
प्रश्न: आप फिटनेस के लिए क्या करती हैं?
उत्तर: जिम, योगा
प्रश्न:  जब आप गुवाहाटी से मुंबई आईं तोे आपको कैसा लगा?
उत्तर: मुंबई ड्रीम सिटी है।  मुझे यहां आकर बहुत अच्छा लगा।  मुझे यहां आकर खुद को साबित करने के लिए बहुत से मौके मिले ।  यहां आकर मुझे लैक्मे फैशन वीक में भाग लेने का मौका मिला और वहां जज ने मेरे काम को बहुत सराहा।
प्रश्न:  आपकी फेवरेट बाॅलीवुड मूवी?
उत्तर:  करीना कपूर की कम्बख्त इश्क और आलिया भट्ट की हाईवे।
प्रश्न:  आपके फेवरेट एक्टर
उत्तर: रितिक रोशन और वरूण धवन
प्रश्न:   फेवरेट एक्टर्स?
उत्तर: करीना कपूर और आलिया भट्ट मेरी फेवरेट हिरोईन और मैं इन्हें अपना ऐक्टिंग गुरू भी मानती हूं।  पुरानी हिरोईन में मुझे श्रीदेवी पसंद हैं।
प्रश्न:  आपके अनुसार हर महिला में कौन सी तीन बातें अवश्य हाेनी चाहिए?
उत्तर:  हर महिला को इंडीपेंडेंट, फोक्सड और पाॅवरफुल होना चाहिए।
प्रश्न:  जो लड़कियां माडलिंग में आना चाहती हैं आप उन्हें क्या कुछ एडवाईज देना चाहेंगी?
उत्तर:  मैं नई लड़कियों से यही कहना चाहूंगी कि आप अपना पैशन पहचानें कि आप क्या बनना चाहती हैं और फिर उसी के लिए खुद को पूरी तरह तैयार करें।  ऐसा बिल्कुल नहीं है कि जो लड़कियां माॅडलिंग करती हैं वह फिल्मों में सक्सेसफुल नहीं हो सकती।

सोमवार, 24 अप्रैल 2017

घर में भी चलाएं स्वच्छता अभियान


सफाई करते समय सबसे पहला सवाल होता है कि सफाई आखिर कहां से शुरू करें।  एक्सपर्ट का कहना है कि घर की सफाई की शुरूआत घर की सीलिंग  से की जानी चाहिए।  उसके बाद दीवारें, खिड़कियां, केबिनेट, फर्नीचर और अंत में फ्लोर साफ करें।


आम तौर पर घरों में नियमित साफ-सफाई पर ध्यान ही नहीं दिया जाता।  घरों की छतों, पंखों में जाले लगे होते हैं और धूल-मिट्टी की तह जमा हो जाती है। बाथरूम में भी गंदगी दिखाई देती हैं।  यहां पेश है सीलिंग से लेकर वाॅशरूम तक की साफ-सफाई के आसान तरीके -
मकड़ी के जाले साफ करने के लिए
कमरे की सीलिंग पर बने हुए मकड़ी के जालों को हटाने के लिए मकड़ी के जाले के लिए बने हुए ब्रश का इस्तेमाल करें।  ब्रश से कमरे के हर कोने को साफ करें।  कई बार कुछ जाले ऐसे भी बनते हैं जोकि आसानी से दिखाई भी नहीं देते।
सीलिंग पर जमी हुई गंदगी साफ करने के लिए
लंबे ब्रश से आप सीलिंग पर जमी हुई गंदगी को साफ कर सकती हैं।  इसके लिए मैग्नेटिक वाले डस्टर भी आते हैं आप उन्हें भी इस्तेमाल में ला सकते हैं।
जहां पर लाईट लगी होती हैं या दीवार में छेद हो गए हों उस जगह की भी सफाई करें।  अक्सर मिट्टी वहीं पर इक्ðी होती है।  इसके लिए वैक्यूम क्लीनर का इस्तेमाल करें।  वैक्यूम क्लीनर के साथ लंबी एक्सटेंन्शन लगाकर टिप पर ब्रश लगा दें इससे मिट्टी दूसरी जगहों पर नहीं फैलेगी।
तेल के दाग मिटाने के लिए
किचन की सीलिंग पर से तेल के दाग मिटाने के लिए पहलेे गीले कपड़े से उसे साफ करें।  फिर स्पांज को क्लीनर और पानी के साल्यूशन में डालकर जगह को साफ करें।  फिर पोंछे को साफ करके सीलिंग को पोंछ दे।  सीलिंग को सूखने दें ताकि पानी के स्पाॅट हट जाएं।
वाॅल पेपर सीलिंग के लिए
वाॅलपेपर सीलिंग को साफ करने के लिए डिशवाशिंग डिर्टजंेट और पानी का साॅल्यूशन बनाएं और उसमें स्पांज डिप करके उससे सफाई करें।  फिर पोंछे से उसे सुखा दें।  इसकी सफाई करते हुए न ही ज्यादा स्पांज में पानी रहे और न ही पोंछे में। अंत में जल्द ही उसे सूखे कपड़े से सुखा दें।
टेक्सचर सीलिंग के लिए
टेक्सचर वाली छतों के लिए वैक्यूम क्लीनर का इस्तेमाल करें।  वैक्यूम क्लीनर पर लंबी एक्सटेशन लगाकर टिप पर साफ्ट ब्रश लगाएं।  यदि आप इस तरह की सीलिंग के लिए वाइप डाउन वाली तकनीक का इस्तेमाल करेंगें तो इससे सीलिंग की टेक्सचर को बहुत नुकसान पहंुचेगा।
वाॅषरूम की साफ-सफाई
खिड़की और मिरर के लिए
खिड़की और मिरर को ग्लास क्लीनर और पेपर टाॅवल से साफ करें।  ब्लीच का इस्तेमाल न करें इससे ग्लास सही तरीके से साफ नहीं होगा
सीलिंग के लिए
ब्लीच वाॅटर साॅल्यूशन को स्प्रे बाॅटल में लेकर सीलिंग पर लगे दागों को साफ करें।
फ्लोर के लिए
हाॅट सोप ब्लीच वाॅटर का इस्तेमाल बाथरूम की फ्लोर को साफ करने के लिए करें ताकि बाथरूम की फ्लोर पर साबुन न चिपका रहे।
बाथरूम की दीवार और फ्लोर को साफ करने के लिए ब्रश का इस्तेमाल करें और फिर साफ पानी से धो लें।
सिंक को साफ करने के लिए नाॅन अब्रेसिव क्लीनर का इस्तेमाल करें। क्लीनर लगाने के बाद 30 मिनट का इंतजार करें फिर उसे ठंडे पानी से साफ कर दें।  सारे मुश्किल दाग चले जाएंगे।
बाथटब के लिए
बाथटब और सिंक को साफ करने के लिए गर्म पानी में कुछ बूंदे डिशवाशिंग डिर्टजेंट मिला लें इससे सफाई बिना रगड़े ही हो जाएगी।
डोर के लिए
मेटल शाॅवर डोर को साफ करने के लिए लेमन आॅयल का इस्तेमाल करें।  इससे पानी के दाग जल्दी से हट जाते हैं और नए भी नहीं बनते।
ग्लास शाॅवर डोर के लिए स्पाॅज में विनेगर में डिप करके सप्ताह में एक बार साफ करें।
शाॅवर डोर ट्रैक को साफ करने के लिए टूथब्रश या काॅटन स्वैब का इस्तेमाल करें।
घर पर ही बनाएं डिटर्जेंट
1/4 कप बेकिंग सोडा, 1/4 कप लिक्विड डिर्टजेंट और 1/4 कप गर्म पानी को मिलाकर टाॅयलेट सीट पर लगाएं और उसे टाॅयलेट ब्रश से साफ करें फिर पानी से साफ कर दें।  यदि आप टाॅयलेट सीट रोज साफ करते हैं तो आपको स्क्रब करने की जरूरत नहीं है।
हमेशा याद रखें गंदे कपड़े इधर-उधर न फैलाएं। उनके लिए बाॅसकेट का इस्तेमाल करें।

साफ-सफाई करते समय ध्यान रखने योग्य बातें:-
कमरे के फर्नीचर, फिक्सचर और फ्लोर को पोलीथीन शीट या किसी और चीज से ढक दें।
सीलिंग की सफाई के लिए सीढ़ी या स्टूल का इस्तेमाल न करें। इसके बजाय लंबे हैंडिल वाली चीज का प्रयोग करें।
आंखों को कवर करने के लिए गौगल या कपड़े का इस्तेमाल करें।
यह ध्यान रखें कि पानी या क्लीनिंग डिटर्जेंट दीवारों पर न गिरे।
मकड़ी के जालों को सीलिंग या दीवार पर कपड़े से रगड़कर साफ न करें। नहीं तो उससे दीवार की फिनिश भी खराब हो जाएगी और वह उस जगह पर निशान भी छोड़ देगा।






रविवार, 23 अप्रैल 2017

अकेले अकेले कहां जा रहे हो


 बात सिर्फ घूमने की करें तो सभी उम्र के लोगों को घूमना-फिरना पसंद होता है। लेकिन अपने इस षौक में हम कई ऐसी चीजें भी जोड़ लेते हैं जिससे यह मंहगा हो जाता है। इसे अगर सिर्फ घुमक्कड़ी में ही सीमित रखें तो घूमना आज भी आसान है।
‘एन इवनिंग इन पेरिस‘ फिल्म का गाना दिमाग में कौंध रहा है। अकेले अकेले कहां जा रहे हों, जहां जा रहे हो हमें साथ ले लो। शम्मी कपूर के दिलचस्प अंदाज में गाया ये गाना अपने साथी से साथ ले जाने की गुहार करता हे। 70 के दशक का यह गीत आज भी बहुत लोकप्रिय है। 40 दशक बीत जाने के बाद एक बड़ा बदलाव नजर आ रहा है, वह यह कि आज युवा अकेले घूमने जाना चाहते हैं। युवाओं में सिर्फ लड़के ही नहीं लड़कियां भी अकेले घूमने का मजा लेना चाहती हैं। इसे तकनीक का असर कहें या ग्लोब्लाइजेशन की सौगात कुछ भी हो महिलाओं के लिए यह दिलचस्प है। कामकाज के लिए लड़कियों को अपनी देहरी के पार देखने का मौका मिला है। उनके भीतर के डर कम हुए हैं। पहले वह नौकरी की तलाश में बाहर निकलीं और अब घूमने फिरने के अपने शौक के लिए बाहर जा रही हैं।
यदि आप अकेले घूमने जा रही हैं तो नीचे लिखी कुछ बातों का अवश्य ध्यान रखें।
आप जहां घूमने जा रही हैं वहां के बारे में पहले ही अच्छे से जानकारी इक्ट्ठी कर लें।
इस बात का खास ख्याल रखें कि आप अपनी डेस्टिनेशन पर कितने बजे पहुंचेंगी। प्लानिंग ऐसे करंे कि आप सुबह या दिन के वक्त ही वहां पहुंचें।
कई होटल अपने गेस्ट्स को पिक एंड ड्राप की सुविधा भी देते हैं। इस सुविधा का लाभ उठाएं।  रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डा या बस स्टाॅप पर मिलने वाले आॅटो या टैक्सी का उपयोग न करें।
खूब सवाल पूछें। जिस होटल में ठहर रहे हैं। उसके मैनेजर से घूमने-फिरने की जगहों के बारे में जानकारी लें। टैक्सी के ड्राइवर से और वहां के लोकल लोगों से भी जानकारी लें।
अकेले ट्रैवल करने के लिए सबसे पहले तो आपको अपना मन शांत रखना होगा। अगर आप ब्रेकअप या किसी तरह की परेशानी से भागने के लिए घूमने जा रही हैं तो आप एंज्वाॅय नहीं कर पाएंगी।
खुद के साथ एंज्वाॅय करना सीखना होगा क्योंकि जब अकेले ट्रैवल कर रहे होते हैं तो कई बार वक्त काटना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में अगर आपको अपने साथ वक्त बिताने की आदत नहीं है तो आप परेशान हो जाएंगी।
यदि आपको लगता है कि कोई आपको घूर रहा है तो उसे साफ और कड़े शब्दों में डांट दें और  ऐसे बोलें कि आसपास के लोगों को भी पता लग जाए कि वह क्या कर रहा है।
नए लोगों से मिलें, बात करें लेकिन बहुत ज्यादा घुलने-मिलने से बचें।
नए लोगों के साथ खाना या ड्रिंक शेयर न करें।
अकेले घूमने फिरने के लिए आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों की मदद ले सकती हैं। जिस जगह आप जाने का प्लान कर रही हैं अगर वहां कोई परिचित मिल जाए तो वह आपको ऐसी डेस्टीनेशन के बारे में बता सकता है जो बहुत खूबसूरत हो और हो सकता है आपके ट्रेवल गाइड के पास उसकी जानकारी न हो।
आप दूसरे लोगों द्वारा पोस्ट किए हुए ट्रैवलौग पढ़ें।  इससे आप जगह के बारे में पहले से ही जान पाएंगी और उनके अनुभवों से आपको फायदा ही होगा।
एक डायरी में अपने अनुभव लिखिए और बाद में उसे ट्रैवलौग के जरिए दूसरे लोगों के साथ शेयर करें।



शनिवार, 22 अप्रैल 2017

आपके साथ समय बिताना चाहते हैं बच्चे


 आप किसी भी नाईट क्लब या बार में चले जाएं वहां आपको पार्टी करते स्कूली बच्चे मिल जाएंगें।  सवाल है कि उन्हें यह सब करने के लिए पैसे आखिर कहां से मिलते हैं? पैसे देने वाले उनके पेरेंट्स ही हैं। पेरेंट्स के पास बच्चों को देने के लिए वक्त नहीं हैं जिसकी कमी वह पैसे देकर पूरी करते हैं।

म सब कहते हैं समय बदल रहा है। समय के साथ सभी को बदलना पड़ता है। अगर हम इस बदलाव को स्वीकार नहीं करते तो समय के साथ चल नहीं पाएंगे।  वैसे भी महत्वाकांक्षी होना कोई खराब बात नहीं है क्योंकि बिना महत्वाकांक्षा के हम षिखर पर पहंुच भी नहीं सकते। लेकिन इस महत्वाकांक्षा के लिए हम अपनी जिम्मेदारी से भी मुंह नहीं मोड़ सकते। परिवार के प्रति भी हमारी जिम्मेदारी है। बच्चों के हाथ में एटीएम कार्ड पकड़ाकर या उनको आया के भरोसे छोड़कर  महत्वाकांक्षा की रफ्तार को नहीं पकड़ सकते। अगर आप नियमित अखबार पढ़ते हैं, टीवी देखते हैं तो ऐसी खबरों पर नजर जरूर जाती होगी जिसमें बताया जाता है कि बच्चे अपराध की दुनिया में कितनी तेजी से कदम रख रहे हैं।
नशे की तरफ बढ़ते कदम
बच्चों को पाॅकिट मनी के तौर पर जो पैसे दिए जाते हैं वह उसका इस्तेमाल कैसे कर रहे हैं इस बात पर कोई गौर नहीं करता। टीनएज उम्र का ऐसा पड़ाव होता है जब बच्चा गलत चीज की ओर जल्दी ही आकर्शित हो जाता है। पहले नषा करना बुरी बात मानी जाती थी लेकिन आजकल यह हर खुषी के मौके को सेलीबे्रट करने की षुरूआत माना जाता है।
आक्रामक हो गए हैं बच्चे
आजकल बच्चों के व्यक्तित्व में आक्रामकता भी साफ देखने को मिलती है। यदि पेरेंट्स कहते हैं कि उन्हें बच्चे के इस व्यवहार के बारे में पता नहीं है तो वह सिर्फ बहाना बना रहे हैं।  यह तभी होता है जब पेरेंट्स बच्चों को आजादी दे देते हैं कि वह अब बड़े हो गए है।
बड़े बच्चों पर भी रखिए नजर
यह सोच गलत है कि बच्चा बड़ा हो गया है और उसे अब निगरानी की जरूरत नहीं है बल्कि यही वह समय है जबकि उस कंट्रोल किया जाना जरूरी है।  पेरेंट्स समय की कमी को पैसे से पूरी करते हैं और पैसे से बच्चे नशा करने लगते हैं। जब उनको लत लग जाती है तब पेरेंट्स कंट्रोल करना चाहते हैं तो बच्चे आक्रामक हो जाते हैं। ऐसे में या तो वह दूसरे को नुकसान पहंुचाते हैं या स्वयं को हानि पहुंचाते हैं।
बच्चे चाहते हैं पेरेंट्स का साथ
आज बहुत से बच्चे अपनी इस अवस्था से दुखी भी हैं और इस नशे की लत और आक्रामकता से छुटकारा पाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति होने पर आपको ही उनको संभालना है। फिल्म अभिनेता सुनील दत्त और नर्गिस के बेटे संजय दत्त को आप एक उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं। वह तो एक सेलीब्रिटी का बेटा है पर हम सब तो मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। क्या हम इलाज का खर्च उठा सकेंगें।
ऐसी स्थिति न आए इसके लिए जरूरी है कि आप अपने बच्चे को वक्त दें और उन्हें सही गलत का ज्ञान दें। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए कई स्कूलों ने काउंसलिंग क्लासिस भी शुरू की हैं। हर सोसाइटी के भीतर भी काउंसलर होना चाहिए।  उसकी सलाह माननी चाहिए। बच्चा इंटरनेट पर क्या देख रहा है इस पर भी नजर रखी जानी चाहिए।  इसके साथ ही वह अपनी पाॅकिट मनी का इस्तेमाल कैसे कर रहा है उस बात की भी जानकारी होनी चाहिए।

गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

बनाइए बिजनेस चेन



समय और सुविधा के मुताबिक ट्रेंड्स में हमेशा बदलाव आता है। आज खरीदारी करने का अंदाज बदला है। ई-शापिंग की सफलता के साथ ही साथ घर से कारोबार करने का चलन भी बढ़ रहा है। अपराजिता द्वारा कराए गए सर्वे में यह बात सामने आई है कि आजकल कमोबेश हर घर में कोई न कोई कारोबारी आइडिया हर दिन दिमाग की बत्ती जला रहा है।
इंटरनेट ने आसान की जिंदगी
इंटरनेट के जरिए आर्डर लेने अाैर देने का काम आसान हो गया है। कुरियर सर्विस, स्पीड पोस्ट, पार्सल के माध्यम से सही समय पर सामान भिजवाना  भी आसान है। आप अपनी सुविधा और फंड को ध्यान में रखकर कहीं से भी कुछ भी मंगा सकते हैं। जो काम पहले बड़ी-बड़ी कंपनी करती थी, वह अब स्टार्टअप कंपनी भी करने लगी हैं। सोसायटी में या मोहल्ले में रहने वाले लोग आसपास से ही सामान खरीदना पसंद करते हैं क्योंकि यहां पर अगर सामान में कोई कमी है तो उसे वापस करना आसान है। जूलरी का बिजनेस करने वाली श्रीमती तरविंदर कौर कहती हैं कि मुझे इस व्यवसाय को करने के लिए फेस बुक, वाट्सएप ग्रुप, इंस्टाग्राम, आॅनलाइन शापिंग ग्रुप से बहुत फायदा हुआ। मेलेे में कभी उम्मीद से कई गुना फायदा हुआ तो कई बार हमारी उम्मीदों पर पानी फिर गया।
बड़ी कंपनियां भी दे रही है घर घर में दस्तक
ओरीफ्लेम, एमवे, मोदीकेयर, टपरवेयर कई अनगिनत कंपनियंा महिलाओं को केंद्र में रखकर अपना बिजनेस स्टाइल बना रही है। उनकी नजर ऐसी पढ़ी लिखी स्मार्ट वुमेन पर हैं जो महत्वाकांक्षी हैं और घर के साथ अपना कारोबार करना चाहती हैं। यह कारोबार चेन सिस्टम की तरह काम करता है। दवा, ब्यूटी प्रोडक्ट, डिटरजेंट, किचनवेयर सब घर घर में पहुंचाए जा रहे हैं। इसके लिए कंपनियाँ, वर्कशाॅप, सेमिनार, मीटिंग करती हैं। ओरी फ्लेम से जु़ड़ी रुचि कहती हैं हम लोग नेटवर्किंग पर काम करते हैं। जैसे जैसे काम बढ़ते जाता है आपकी कमीशन भी बढ़ते जाता है। शुरूआत में 3 पर्सेंट से लेकर यह 21 पर्सेंट तक जाता है। मात्र 4000 से आप इस काम को शुरू कर सकते हैं।
कौन महिलाएं हैं आगे
ऐसी पढ़ी लिखी महिलाएं जो घर परिवार की जिम्मेदारी के चलते नौकरी नहीं कर पा रही हैं लेकिन जिनके अंदर कुछ करने की तमन्ना है वह ऐसी कंपनियों से जुड़ रही है और अपनी प्रोफाइल से हटकर काम कर रही है।  प्रोफाइल से अलग हटकर काम करना जहां चुनौतीपूर्ण होता है वहीं यह आपक¢ आत्मविश्वास को भी बढ़ाता है। डाक्टर इंजीनियर या  सिविल सर्वेंट बनने की चाह रखने वाली महिलाएं ट्यूशन पढ़ाकर कई इंजीनियर, डाक्टर अ©र सिविल सर्वेंट समाज को दे चुकी है। आर्ट और म्यूजिक की दुनिया की तरफ भी जनता जागरूक हुई है अ©र पेरेंट्स बच्चों को प्रोत्साहित भी कर रहे हैं। छोटी छोटी चीजों की भी वैल्यू बढ़ी है। मसलन हैंडराइटिंग क¢ लिए भी पेरेंट्स ट्यूशन भेज रहे हैं ताकि वह कैलीग्राफी सीख सकें। खुशी है कि महिलाओं ने अपना कद बड़ा किया है वह उदासीन अ©र अवसाद की शिकार नहीं हुईं। किसी एक करियर क¢ भरोसे भी वह नहीं रही। उन्होंने सही मायने में चुनौतियों को स्वीकार किया।
खुद का बिजनेस भी खड़ा कर रही हैं
महिलाएं कारीगरों के साथ मिलकर अपना फैशन हाउस बना रही हैं जहां वह ग्राहक की रूचि और बजट के आधार पर चीजें तैयार करती हैं। इन चीजों में आपकी ड्रेस, ज्वेलरी, फुटवियर के अलावा आपके घर का इंटीरियर भी शामिल है।
इसके अलावा उनकी नजर स्वाद पर भी है क्योंकि हम सभी जानते हैं कि सबका स्वाद अलग-अलग होता है। कुछ स्वाद में एक्सपेरिमेंट करना पसंद करते हैं कुछ ट्रेडीशनल खाना पसंद करते हैं। फूड एक्सपर्ट के तौर पर महिलाएं खुद की नई जमीन तलाश रही हैं। आज फूड बिजनेस जोरों पर है।
फंड का प्रबंध भी खुद करती है महिलाएं
अपने बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए अपने लिए फंड का प्रबंध भी वह खुद करती हैं इसके लिए स्वयं सहायता समूह भी उनकी मदद करते हैं। वह किटी पार्टी और कमेटी के जरिए भी फंड इक्ट्ठा करती हैं। स्टार्ट ग्रुप का प्रपोजल पसंद आने पर सरकार भी उनकी मदद करती है। स्टार्टअप कंपनी को सरकार कर्ज प्रदान करती है।
मुनाफे का सौदा
महिलाएं अपने सामान को बेचने के लिए मेले में भी हिस्सा लेती हैं। मेले आयोजित करने का काम भी अधिकांश महिलाएं ही करती हैं।  जहां सभी लोग एक साथ एक़ित्रत होते हैं। यह मेले समय-समय पर लगाए जाते हैं। मेले का उद्देश्य सामाजिक जागरूकता के साथ एकजुटता का संदेश देना भी है।
इंवेट मैनेजमेंट में भी महिलाएं
घर पर ही रहकर इवेंट मैनेजमेंट जैसे काम महिलाएं आसानी से कर रही हैं। इसमें बर्थडे, शादी, वर्कशाॅप/सेमिनार, उत्सव मेले, कार्निवाल शामिल है।
निष्कर्ष- कुल मिलाकर कहें तो महिलाओं ने अपने आप को हर सांचे में ढालने की कोशिश की है। यह संस्कार देकर ही बच्चियों को बड़ा किया जाता है। महिलाएं अगर चाहें तो खुद को मोटीवेट कर सकती हैं। जैसे इंजीनियर नहीं बन पाए तो क्या हुआ इंजानियर बनाए तो सही। जिसकी कोई ट्रेनिंग नहीं ली। उसे खुुद से सीखने का साहस तो जुटाया अ©र फिर तेजी से काम किया।  यही है महिलाओं की सफल जिंदगी का राज जिसे उन्होेंने बांटा अपराजिता क¢ साथ। कड़ी दर कड़ी चलते रहो, गले मिलते रहो। आपक¢ कदम खुद बना देंगे रास्ता।

बुधवार, 19 अप्रैल 2017

आंखों की न करें अनदेखी


हमारी आंखें विट्रीयस जेल से 80 प्रतिशत तक भरी होती है और इसी से आंख की शेप भी बनती है। जब यह जेल कम होकर  सिकुड़ने लगता  है तब रेटीना के अंदर शैडो आने लगती है। इसी स्थिति को फ्लोटर्स कहते हैं।  यदि इसकी  ओर ध्यान नहीं दिया जाए तो यह समस्या बढ़ सकती है जिसके कारण रैटीना तक डिटैच हो सकता है, अंधापन भी आ सकता हैं।  इसलिए आंखो की नियमित जांच जरूरी है।
फ्लोटर्स में आंखो में मकड़ी के जाले बनने लग जाते हैं या फिर धंुधले से स्पाॅट या धागे जैसे पतली लाइन तैरने लग जाती है।  यह धागे या स्पाॅट आंखों में तैरते रहते है। जिस तरफ आप देखते हैं यह भी उसी ओर हो जाते हैं।
 शुरूआत में लोग इसे इग्नोर करते हैं और तब तक इस पर ध्यान नहीं देते जब तक कि वह नजर में परेशानी पैदा करना शुरू नहीं कर देते।    इनका एहसास तब ज्यादा होता है जब आप कुछ चमकदार चीज की ओर देखते हैं जैेसे कि वाइट पेपर या ब्लू स्काई ।  इसके होने से और भी कुछ परेशानियां हो सकती हैं जैसेकि इन्फेक्शन, जलन, रेटिनल टियर्स या आंखों में चोट।
यह उम्र बढ़ने के साथ साथ भी होने लगता है और फिर धीरे धीरे आंख के निचले हिस्से में सेटल हो जाता है और कम तकलीफ देता है लेकिन पूरी तौर पर नहीं जाता है।  उन लोगों को भी यह समस्या हो सकती है जिनकी पास की नजर कमजोर हो, डायबिटीज हो या फिर मोतियाबिंद का आपरेशन हुआ हो। फ्लोटर्स यंग ऐज में भी हो सकते हैं यदि आपकी पास की नजर कमजोर है, सिर में चोट लगी हो या आंख का आपरेशन हुआ हो।
 जिन लोगों को फ्लोटर्स की समस्या हैं उन्हें किसी भी तरह के इलाज कराने की सलाह नहीं दी जाती।  बहुत ही कम केसिस में ऐसा होता है कि फ्लोटर्स इतने बढ़ जाते हैं कि दिखाई देने में परेशानी होने लगती है ऐसी स्थिति में सर्जिकल प्रोसेस विट्रोकोमी करके जेल के स्थान पर साल्ट साल्यूशन डाला जाता है। क्योंकि विट्रोयिस में ज्यादा पानी जैसा ही होता है इसलिए साल्ट साल्यूशन डालने से किसी भी तरह से अलग से पता नहीं चलता।  इसका आॅपरेशन करने की डाक्टर सलाह नहीं देते क्योंकि इसके साथ बहुत से रिस्क जुड़े हुए होते हैं।



मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

खुद पढ़लिखकर बदली समाज की किस्मत



एक किताब ने जिंदगी बदल दी
सावित्रीबाई फूले का नाम समाज में लड़कियों को शिक्षा का अधिकार दिलाने, बहिष्कृत और निराश्रित महिलाओं को समानाधिकार दिलाने के लिए लिया जाता है।  भारतीय समाज में उनकी जिंदगी और उनका काम सामाजिक कल्याण और महिला सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। वह देश की पहली महिला शिक्षिका बनीं।
सावित्रीबाई का जन्म महाराष्ट्र राज्य के एक छोटे से गांव नईगांव में हुआ।  बचपन से ही वह  महत्वाकांक्षी और जिज्ञासु प्रवृति की थी। सावित्रीबाई का विवाह सन् 1840 में 9 वर्ष की आयु में श्री ज्योतीराव फुले से हो गया और वह उनके साथ पुणे आ गईं।
 जब ज्योतिराव ने देखा कि सावित्रीबाई ने अपने पास एक किताब जो उन्हें क्रिशचन मिशिनरी ने दी थी वह बहुत संभालकर रखी हुई थी। यह सब देखकर ज्योतिराव को अहसास हुआ कि उनकी पत्नी को शिक्षा के प्रति असीम लगाव है। वह उनके सीखने की प्रबल इच्छा को देखकर बहुत खुश हुए और उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाना शुरू किया। सावित्रीबाई ने अपनी टीचर ट्रेनिंग अहमदनगर और पुणे में की।  सन् 1847 में वह परीक्षा पास करके पूर्णतः शिक्षित शिक्षिका बन गई।
समाज में महिलाओं की दशा सुधारने को प्रतिबद्ध श्री ज्योतिराव फूले के साथ मिलकर सन् 1848 में लड़कियांे के लिए स्कूल खोला।  उनकी यह यात्रा आसान नहीं थी। इस वजह से उन्हें सोसाईटी में रोष और गालियांे का शिकार भी बनना पड़ा। इतना ही नहीं उन पर रास्ते में गोबर भी फेंका जाता। सावित्रीबाई बिना कुछ कहे अपने साथ रास्ते में एक साड़ी साथ रखती जिससे कि वह स्कूल जाकर अपने कपड़़े बदल सकें।  पर उन्होंने अपनी राह नहीं छोड़ी। सन् 1853 में सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने आसपास के गावों में और स्कूल खोले।
देश में विधवा एंव निराश्रित महिलाओं की दुर्दशा देखकर उन्होंने सन् 1854 में उनके लिए एक शेल्टर होम खोला।  दस वर्ष तक लगातार संघर्ष करने के बाद उन्हांेने सन् 1864 में एक बड़ा शेल्टर होम खोला।  विधवा स्त्रियांे और बालिका वधुओं को उन्होंने अपने शेल्टर में आसरा दिया और साथ में उन्हें पढ़ाया।  उन्होंने एक विधवा स्त्री के पुत्र यशवंतराव  को गोद भी लिया।
निचली जाति के लोगों को ऊंची जाति के लोग गांव के कॉमन कुंए से पानी नहीं पीने देते थे।  इसके लिए ज्योतिराव और सावित्रीबाई ने अपने घर के पीछे उनके लिए कुंआ बनवाया जहां से वह लोग पानी ले सकते थे।  उनके इस कदम ने भी ऊंची जाति के समाज में बहुत रोष उत्पन्न हो गया। सत्यशोधक समाज नाम से श्री ज्योतिराव ने एक संस्था का निर्माण किया इसका मुख्य उद्देश्य समाज से भेदभाव को समाप्त करना था और सबके लिए समानाधिकार वाले समाज की स्थापना करना था। इस समानाधिकार की लड़ाई में सावित्रीबाई ने अपने पति का भरपूर सहयोग किया।
सन् 1873 में सावित्रीबाई ने सत्यशोधक विवाह की शुरूआत की जिसके तहत दंपत्ति समान अधिकार और समान शिक्षा की शपथ लेते थे।
उनके यह सभी प्रयास अनदेखे नहीं रहे।  सन् 1852 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें बेस्ट टीचर की उपाधि से सम्मानित किया।  सन् 1853 में शिक्षा के क्षेत्र में किए गए उनके प्रयासों के लिए उन्हें सम्मानित किया गया।
सन् 1890 में ज्योतिराव के निधन के बाद उन्हांेने सभी मान्यताओं को दरकिनार करते हुए उन्हें मुखग्नि थी। उन्होंने उनकी विरासत को आगे बढ़ाते हुए सत्यशोधक समाज की बागडोर संभाली।
सन् 1897 में महाराष्ट्र में एक बार बहुत भयानक प्लेग बीमारी फैली।  वह सिर्फ मूकदर्शक नहीं बनी बल्कि वह प्रभावित क्षेत्रों में लोगों की मदद करने के लिए चली गईं।  उन्होंने हदाप्सर, पुणे में एक क्लिनिक खोला।  जब वह एक 10 वर्षीय प्लेग से पीड़ित बच्चे को क्लीनिक ला रहीं थी तब वह भी इस बीमारी के किटाणु से संक्रमित हो गईं और 10 मार्च 1897 को उनका देहांत हो गया। उनकी पूरी जिंदगी महिलाओं के लिए प्रकाश का óोत थी।  उनका जीवन हमेशा उन महिलाओं को प्रेरणा देता रहेगा जोकि पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए कुछ करना चाहती हैं।


रविवार, 16 अप्रैल 2017

बुर्जुगों के हाथों में नन्हे मुन्हों की डोर- डा. अनुजा भट्ट



बच्चाें के पेरेंट्स काम पर जाते हैं तो बच्चों की देखभाल का जिम्मा ग्रैंड पेरेंट्स पर आ जाता है।  ग्रैंड पेरेंट बच्चों के दोस्त होते हैे, राजदार होते हैं और साथ ही उन्हें इमोषनल सपोर्ट भी देते हैं।  ग्रैंड पेरेंट्स को  घर-परिवार के इतिहास के बारे में, परंपराओं और संस्कारों के बारे में जानकारी होती है जोकि वह अपने ग्रैंड किड्स को विरासत में दे सकते हैं।  सही गाइडलाइन्स और सपोर्ट से वह बच्चों की जिंदगी में एक महत्वपूर्ण छाप छोड़ सकते हैं।
आज के दौर में जब हसबैंड-वाईफ दोनो वर्किंग है तब नन्हे-मुन्नों से लेकर किशोर बच्चों की जिम्मेदारी ग्रैंड पेरेंट्स पर आ जाती है इस जिम्मेदारी के तहत बच्चों के लिए खाना बनाना, उनको खिलाना, उनके कपड़े धोना से लेकर उनकी सेहत का भी ख्याल रखना होता है जबकि यही वह समय होता है जब उनको आराम की जरूरत होती है मिले। उनको अपनी दिनचर्या में, घर में बहुत से एडजेस्टमेंट करने पड़ते हैं।  ग्रैंड पेरेंट्स के अंदर एनर्जी भी नहीं रहती जो कि यंग ऐज में थी लेकिन उनको यह करना ही होता है। जो ग्रैंड पेरेंट्स यह जिम्मेदारी निभाने से मना कर देते हैं या रूचि नहीं दिखाते, सच तो यह है कि वह अपने भीतर इतनी शक्ति, सहनशक्ति और सांमजस्य बिठा पाने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाते और अन्य अपने हमउम्र के साथियों से आजकल के बच्चों के बारे में पता चलता है कि यह इतना भी आसान नहीं है।  इन सब विचारों का मतलब यह कतई नहीं है कि वह अपने ग्रैंड किड्स से प्यार नहीं करते।
उम्र के इस पड़ाव पर ग्रैंड पेरेंट्स होने के नाते आपके पास बच्चों को पालने की जिम्मेदारी है तो यह बहुत जरूरी है कि आप पहले अपनी सेहत का ख्याल रखें और अपने बच्चों से यह कहने में हिचक महसूस न करें कि कि वह सपोर्ट सिस्टम की व्यवस्था करें।  खुद का ख्याल रखना आपकी पहली जरूरत है।  यदि आप खुद ही ठीक नहीं तो बच्चे का ख्याल कैसे रख पाएंगें। अनुभवों से यह बात सामने आई है कि दूसरी जनेरेशन को पालने के बहुत से फायदे भी होते हैं और नुकसान भी।
  • बच्चों के ग्रैंड पेरेंट्स के पास रहने से बच्चों को एक सुरक्षित वातावरण मिलता है। वहीं ग्रैंड पेरेंट्स को बुढ़ापे में साथ और सुरक्षा मिलती है।
  • बच्चों के साथ उनका रिश्ता मजबूत बनता है।  
  • इससे बच्चों को परिवार के साथ मिलजुल के रहने का महत्व पता चलता है।  
  • अक्सर पेरेंट्स अपनेे बच्चों से छोटे-छोटे काम भी नहीं करवाते कि वह कर नहीं पाएंगें लेकिन अपने बुर्जुग माता-पिता से वह हर काम करवाते हैं। जबकि बच्चे बहुत स्मार्ट और एनर्जी से भरपूर होते हैं।  वह छोटे-छोटे काम दौड़दौड़ कर पूरा कर लेतेें हैं और उससे ग्रैंड पेरेंट्स की मदद भी हो जाएगी।
  • यदि आप अन्य छोटे बच्चों के पेरेंट्स से मिलेगें, बात करेंगें तो हो सकता है कुछ समय लगे लेकिन ऐसे पेरेंट्स से दोस्ती फायदेमंद ही रहेगी।  आप आज के बच्चों की समस्याओं के बारे में जान सकेंगें ।
  • ग्रैंड किड्स के साथ सांमजस्य बिठा पाने में जैसी दिक्कत आपको हो रही है वैसे ही ग्रैंड किड्स के लिए भी खुद को नए मौहाल में ढालना आसान नहीं है । जो बच्चे अपने ग्रैंड पेरेंट्स के साथ नहीं रहते हैं उनकी फीलिंग को समझ पाना आसान नहीं है।   बच्चे की फीलिंग बाहर आने के बहुत तरीके होते हैं। आक्रामक रवैया उनमें से एक हैै। आपके सपोर्ट की उनको जरूरत होती है।  आप भी उनके साथ यदि वैसा ही आक्रामक व्यवहार करने लगेंगें तो स्थिति बनने की बजाय बिगड़ने लगती है।
  • कई बार बच्चे जब ग्रैंड पेरेंट्स के घर में आते हैं और शुरू में बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं लेकिन कुछ समय के बाद उनका व्यवहार बुरा हो जाता है, वह तुनकमिजाज हो जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि वह सुधरे नहीं हैं जैसे पहले थे वैसे ही हैं।  आपको ऐसा लगेगा कि बच्चे आपसे प्यार नहीं करते लेकिन उनका ऐसा बिहेवियर यह दर्शाता है कि वह आपके साथ इतना सुरक्षित महसूस करते हैं कि वह अपनी अंदर की फीलिंग, डर, इमोशन को आपके सामने प्रकट कर सकते हैं।  वह सहज महसूस कर रहे हैं।
  • बच्चों के लिए रूटीन और शेडयूल बनाएं जिसका कि उसे पालन करना हो।  कुछ ऐसे काम रखें जोकि आप और आपके ग्रैंड किड्स वीकएंड या बेडटाइम पर करें।
  • बच्चों के साथ बात करें और उनकी बातों को, उनके सवालों को सुनें।  इससे आप दोनों के बीच भावनात्मक रिश्ता और गहरा होगा।  बच्चों को प्रोत्साहित करें कि वह अपने मन की बात आपसे करें।  उनको जज न करें और न ही उनकी बातों पर हंसें।
  • छोटे बच्चे खुद की भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते। कई बार आपको उनके बिहेवियर को देखकर भी अंदाजा लगाना पड़ता है।
  • आपके पास हर सवाल का जवाब नहीं हो सकता। यदि आपको नहीं पता तो आप सच बोलें न कि आप झूठ बोले या सवाल से बचने की कोशिश करें।  बच्चे इन छोटी छोटी बातों से ही रिश्तों में विश्वास और सच्चाई के महत्व को समझ पाएगंे।
  • बच्चे को किस सिचुऐशन के बारे में कितनी जानकारी दी जानी चाहिए यह उसकी उम्र और समझ को ध्यान मंे रखते हुए ही बताना चाहिए।
  • यदि आपकी अपने ग्रैंड किड्स के पेरेंट्स से नहीं बनती है तो भी कभी भी बच्चे के सामने उन बातों का जिक्र न करें।  
  • बच्चे के पेरेंट्स के साथ रिश्ता अच्छा बना कर रखें।  उन्हें बच्चे के स्कूल, हौबी और दोस्तों के बारे में जानकारी देते रहें।  पेरेंट्स के पास बच्चे का शेडयूल और कानटेक्ट की जानकारी होनी चाहिए।
  • ग्रैंड पेरेंट्स और पेरंेट्स के बीच का बांडिग स्ट्रांग होनी चाहिए। 

ग्रैंड किड्स और ग्रैंड पेरेंट्स की जोड़ी के बारे में पहले से ही कहा जाता है कि बच्चा बूढ़ा एक समान। बूढ़े होते माता-पिता के लिए सहारे की लाठी का काम भी ग्रैंड किड्स ही करते हैं। अगर दोनों के बीच की कैमेस्ट्री स्ट्रांग हो जाए तो घर में रौनक भी रहती है और हम आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत भी बनते हैं।

Special Post

मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

  (अब पहले की तरह किस्से कहानियों की कल्पनाएं हमें किसी रहस्यमय संसार में नहीं ले जाती क्योंकि हमारी दुनिया में ज्ञान, विज्ञान और समाज विज्...