संपादक अजय उपाध्याय |
जाने माने पत्रकार और तब हिंदुस्तान अखबार के
संपादक आलोक मेहता जी ने लिखने पढ़ने के बहुत अवसर दिए और उनकी पूरी टीम ने मेरा
उत्साह बढ़ाया। पर जब नियुक्ति का समय आया तब अचानक पता चला कि आलोक जी ने इस्तीफा
दे दिया है और नए संपादक आने वाले हैं। मेरे लिए यह स्थिति ऐसी ही थी जैसे एक ऐसे प्रिय अध्यापक का अचानक चले जाना जिसे आपकी
प्रतिभा और क्षमता पर भरोसा है और नए अध्यापक के सामने फिर से परीक्षा देना।
हालांकि पत्रकारिता में जब तक आपका लेख या रपट छप न जाए आप परीक्षा ही देते हैं।
मेरी नियुक्ति अजय उपाध्याय जी ने ही की और लिखना पढ़ना जारी रहा। कभी
कुछ लिखा पढ़ा उनको पसंद आता तो वह तारीफ भी करते। एक दिन पता चला उन्होंने भी त्यागपत्र दे दिया है औऱ अब मृणाल जी संपादक
बनेंगी। मेरे लिए यह सौभाग्य की बात है कि मैंने इन सभी के नेतृत्व में काम किया और बहुत स्नेह भी पाया।
हिंदुस्तान में काम करते हुए ही मेरा विवाह भी तय हुआ। मेरा साथी ही मेरा हम सफर
बना। नाम आप जानते ही हैं नहीं जानते तो नाम है दीपक मंडल। मेरे विवाह में मेरे
दोनो संपादक जो मेरे लिए निजी तौर पर अभिभावक जैसे थे, और सभी मित्र उपस्थित हुए पर अजय जी शामिल नहीं हो पाए।
विवाह के बाद हम अपनी गृहस्थी के डोर थाम रहे थे जो दोस्ती की डोर से
एकदम अलग थी। उस दिन रविवार था। सुबह के सात
बजे फोन बजा। वह नोकिया का युग था। अनजान नंबर समझकर मैंने फोन नहीं उठाया फिर दीपक का फोन बजा। और वह बात
करने के लिए बाहर की तरफ चले गए। में समझ गई आफिस से फोन होगा। तब दीपक
सहारा में काम कर रहे थे और मैं
हिंदुस्तान में ही थी। तभी
दीपक ने कहा अजय जी का फोन है। वह घर आ रहे हैं। तुमको फोन किया तुमने उठाया नहीं। मैंने उनको फोन किया माफी मांगी और
लोकेशन बतायी। उन्होंने कहा, मैं आज तुम्हारे
हाथ का बना खाना खाऊंगा।
मैंने
कहा, आइए सर।
तय समय
पर वह आ गए। लंबी बातचीत हुई और औपचारिकता और डर गायब हो गए। खाने पीने के कई
किस्से उन्होंने हमें सुनाएं। मैंने कहा सर मुझे बंगाली खाना बनाना नहीं आता। मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा ,कोई बात नहीं जाओ थोड़ा नमक लेकर आओ।
मैं नमक लेकर आई तो उन्होंने कहा एक चुटकी नमक मेरी प्लेट में रख दो।
लो हो गया बंगाली खाना.... उन्होंने बंगाली
खाने और मछली से जुड़े किस्से सुनाए। कहने लगे ,मछली खाने से ज्यादा हम उसका गुणगान करते हैं। उसके तेल और मसालों
की खुशबू जैसे घर और उसके आसपास फैल जाती है। हम सबका व्यक्तित्व भी वैसा ही हाेना चाहिए।
इस
मछली प्रसंग के साथ उन्होंने करियर पर भी
टिप्स दिया। उन्हाेने कहा, हम जानते बहुत कुछ है पर अपने बारे में कहने में सकुचाते हैं। सोचते
हैं सामने वाला कहीं इसे हमारी आत्मप्रशंसा न मान ले। हमें अपने बारे में सही और
सटीक जानकारी देने में झिझकना नहीं चाहिए। जो हुनर है उसे बताने में संकाेच
क्याें। यह कुछ कुछ मछली जैसा ही है। यह कहकर वह मुस्कुराए...
बातचीत
के बीच में ही मुकेश ([डिजाइनर) का फोन आ गया। मुकेश मेरे अच्छे दाेस्ताें में है। फिर उन्होंने मुकेश से भी लंबी बात की और साथ
कॉफी पीने का निमंत्रण भी दिया। अमर उजाला में फिर दीपक से उनकी मुलाकात हुई, होती
रही। दीपक के साथ उनका विशेष
स्नेह था।
वह दिन
मेरी डायरी में यादगार दिन बन गया। इस सहजता सरलता और सौम्यता के प्रति मेरा प्रणाम।