बुधवार, 2 मई 2018

कहानी- पाचन तंत्र-दर्शना बांठिया

मनीषा नई- नई शादी करके आई ही थी कि सास ने किचन की कमान उसके हाथों सौंप दी,लेकिन उनका रोक-टोक करना कभी बंद नहीं हुआ।शनिवार के दिन मनीषा दोपहर में खाना बना रही थी ,तभी भिक्षुक की आवाज आई -रोटी दे दो माई।मनीषा ने आवाज सुनते ही 2 गर्म रोटी ली और भिक्षुक को देने के लिए जैसे ही दरवाजा खोला तो सास ने तेज स्वर में कहा -'अरे इनको ये गर्म रोटी हजम नहीं होती, वो रात की बासी रोटी पडी है ना ,वो दे दो ' मनीषा तेज आवाज में ऐसी बात सुनकर स्तब्ध रह गयी और उसे रात की पड़ी सूखी रोटी दे दी।मनीषा पढी -लिखी व समझदार थी उसके मन में कई तरह के विचार उमड़ने लगे।
इंसान की जैसे- जैसे उम्र बढ़ती है वैसे- वैसे ही वो हठी प्रकृति का होने लगता है।रविवार के दिन मनीषाा सुबह से ही किचन के कामों में व्यस्त थी,कारण कि आज मनोज(पति) की ऑफिस की छुट्टी है और उनकी पंसद के भोजन की तैयारी करनी थी। खीर,पूरी, सब्जी, कचौरी और मेवे का हल्वा।वो मन ही मन अपनी माँ की बात को याद कर रही थी कि कैसे उसकी माँ हमेंशा कहा करती थी कि "पति के दिल का रास्ता पेट से होकर गुजरता है,इसलिए तू भी अच्छा खाना बनाना सीख लें "मनीषा उनकी बात सुनकर हमेशा मुस्करा देती थी।मनीषा मेवे जरा देखकर डालना और पूरी तेल की ही अच्छी लगती है ,घी मत चढाना अपने सास की आवाज सुनकर मनीषा वर्तमान में लौट आई और कढाही में तेल डालने लगी। मनीषा को उनका रोक-टोक करना हमेशा खराब लगता था पर वो चुप रहती।मनोज किचन में आया और बोला आज बड़ी खुशबू आ रही क्या बनाया है? मनीषा कुछ बताती इतने में ही भिक्षुक की आवाज आई -रोटी दे दे माई। मनीषा ने देखा कि सास दिखाई नहीं दे रही तो उसने गर्म पूरी बनाई व खीर का प्याला भरा और जैसे ही देने लगी कि पीछे से सास ने हाथ पकड़कर कहा 'कल तो समझाया था कि इन लोगों को गर्म खाना पचता नहीं और वैसे भी रोज की आदत हो जाएगी इनकी मांगने की।एक काम कर कल की बची हुई सब्जी और नींबू का अचार दे दे।पर माँ जी वो सब्जी तो कल सुबह की है और अचार में तो फंगस आ चुकी है ,ऐसा देना सही नहीं है ।अरे इनको कुछ फर्क नहीं पड़ता,इनकी, तो आदत हो गई है ऐसा खाने की।मनीषा ऐसी बात सुनकर झल्ला उठी और बोली " क्यों मां जी इन के शरीर का पाचन तंत्र हमारे शरीर से अलग है क्या, जो इनको बासी व खराब खाना ही पचता है ,जो खाना हम नहीं खा सकते, हमारे लिए खराब है तो हम किसी और को क्यों दे?हम लोगों की 1-2 रोटी से ही इनका जीवन यापन चलता है" "माँ जी मनीषा की बातें सुनकर विस्मित हो गई ,पास में खड़ा मनोज भी बोल पड़ा- माँ ये सब क्या है?अगर हमारे पास पुण्याई से इतना है कि हम किसी को दो रोटी दे सकें तो आप क्यों मना कर रही है और जो चीज हमारे स्वयं के खाने योग्य नहीं है उसे दूसरे को नहीं देनी चाहिए।मां जी को आत्मग्लानि होने लगी। वास्तव में ऐसी नःस्थिती कई लोगों की होती है।


इंसान को समय के साथ अपनी प्रवृति बदलनी चाहिए।माना कि हम सम्पूर्ण विश्व को अपनी थाली से आहार नहीं दे सकते लेकिन प्यार व सम्मान तो सबको दे ही सकते है।






WEDNESDAY RELATIONSHIP-रिश्ता मां बेटी का पार्ट 2 अनुजा भट्ट

  बेटी ने मां काे टेक्नाेसेवी बना दिया है। अब लाइन पर नहीं खड़ी रहती मां। मोबाइल के जरिए या फिर इंटरनेट से घर से ही बिल जमा करती है, गैस बुक करती है, ट्रेन और एयरलाइंस का टिकट बुक करती है। बैंक का सारा कामकाज घर से ही करती है। पहले उनको यह असुविधाजनक लगता था पर धीरे धीरे अब उनको मजा आने लगा है वह नए से नए गैजट्स के बारे में जानना चाहती हैं। शापिंग माल में घूमने से पहले वह वेबसाइट्स में जाकर नए प्रोडक्ट के बारे में जानकारी ले रही हैं। ताकि खरीददारी करने में समय की बचत हो। इधर उधर न भटकना पड़े। फ्री होम डिलीवरी पर भी वह यकीन करने लगी है। हर जानकारी के लिए मां बेटी को फोन करती है। फिर चाहे वह गाड़ी चलाना हो या फिर कंप्यूटर।
मां के लिए एस एम एस एक रिश्ते का नाम है
आज के दौर में रिश्ते की परिभाषा को कहने के लिए एक नया शब्द आ गया है जिससे हम सभी परिचित है और वह है एस एम एस। एस एम एस का फुल फार्म है शार्ट मैसेज सर्विस। आप अपना संदेष इसके जरिए पूरी दुनिया में कही भी भेज सकते हैं। औरमां को तो मिनट मिनट में मैसेज भेजना है, नहीं तो वह चिंता करती रहेगी। पर जब मां घर से बाहर होती है तो वह भी हमें मैसेज करती रहती है। इसलिए रिश्ते का नाम है एसएमएस।बेटियां जब एसएमएस कहती हैं तो उसका अर्थ होता है श्योर मां श्योर।

WEDNESDAY RELATIONSHIP-रिश्ता मां बेटी का पार्ट 1 अनुजा भट्ट


मां और बेटी की भूमिका अब बदल गई है। फिर चाहे वह समाज हो, टीवी में दिखलाए जा रहे सीरियल हों या फिर विज्ञापन। सभी जगह बेटियां अपनी मां के साथ दिखाई दे रही हैं। इस बदलाव की वजह जहां आज का परिवेश है वहीं पूरी दुनिया का तकनीकी के जरिए एक मंच पर आ जाना भी है। एक दौर में मां अपनी बेटी को शिक्षा दीक्षा के  अलावा पाककला, सिलाई-कढ़ाई, संगीत, आचार-व्यवहार और सुरक्षा के बारे में सीख देती थी और यह सीख पीढ़ी दर पीढ़ी चलती जाती थी। आज भी कई पत्रिकाओं में दादी मां की रसोई जैसे कालम छपते हैं जो बहुत लोकप्रिय है। पर आज की ग्लोबल दुनिया में बेटी मां को दुनिया दिखा रही है और उसे पहले से ज्यादा दुनियादार बना रही है। टीवी, इंटरनेट और मोबाइल के जरिए जहां मां बेटी लगातार संपर्क में हैं वहीं मां अपनी बेटी से टेक्नोलाजी के गुर सीख रही है। प्रेशरकुकर ने दी थी उम्मीद
 कभी एक छोटे से प्रेशरकुकर ने  कई उम्मीदों से भर दिया था और आज रसोई में कई ऐसी चीजें आ गई है जिससे उसकी गृहस्थी की गाड़ी सरपट दौड़ रही है और वह अपने लिए समय निकाल रही है। बेटी उसे हर नए गेजेट्स के बारे में बताती है और उसका उपयोग करना भी सिखा रही है। मिक्सी, जूसर, गैसस्टोव, रेफ्रिजरेटर, माइक्रोवेव, ओवन, गीजर, वाशिंग मशीन, बर्तन धोने की मशीन, कपड़े सिलने की मशीन, मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटाप, इनवर्टर यह सब ऐसी चीजें हैं जिसने मां की दुनिया को बदला है।
मां के और करीब हैं बेटियां
 गांव औरकस्बों में भी माएं अब स्कूटी से लेकर टैक्टर तक चला रही हैं। आज की बेटियों अपनी मां को नई से नई तकनीक से परिचित करा रही है ताकि वह अपनी मां के हमेशा करीब रह सकें। मां के भीतर भी उक्सुकता कम नहीं हैं। कंप्यूटर अब उनके लिए हौवा नहीं है वह मजे में अपने बच्चों से चैट करती है, मेल करती है। मां और बेटी की गपशप में भी टैक्नो का असर है। मां कम शब्दों में अपनी बात कहना सीख गई है। अब उसकी बेटी देश में रहे या विदेश में, उसे कोई चिंता नहीं क्योंकि वह हर रोज इंटरनेट के जरिए उससे मिलती है, गपशप करती है। पहले वह कहा इतनी बात कर पाती थी।अब तो बेटी कहीं भी हो वह उससे बात कर लेती है।पहले तो उसे तो घर के काम से ही फुर्सत नहीं थी।
खेल रही है ब्लाग का खेल
बेटी ने मां को ब्लाग चलाना सिखा दिया है । मां ने भी बचपन में शरो शायरी खूब लिखीं, कहानी कविताएं लिखीं।शादी के बाद मौका नहीं मिला। अब मां अपना ब्लाग लिख रही है, कहानी-कविता लिख रही है अपने बारे में लिख रही है। जो मन में है कह रही है। लोग पढ़ भी रहे हैं और सराहना भी कर रहे हैं। इससे मां बेटी दोनो का उत्साह बढ़ा है।
हुनर बन रहा है रोजगार
इस तरह के ब्लाग में अ्चार बनाने से लेकर कई ऐसे टिप्स हैं जो बड़े काम आते हैं अब माओं की कई ऐसी सहेलियां बन गई है जिनसे कभी मिले तो नहीं पर फिर भी वह दिल के करीब हैं।वह आपस में रेसिपी से लेकर बुनाई औरकढ़ाई भी शेयर करती हैं। घर का बना अचार मुरब्बा अब वह खुद बेच रही है। स्वयं सहायता समूह से जुड़कर उनको आर्थिक मदद मिली है। और वह अपने पांव पर खड़ी हो रही है। महिला शशक्तिकरण में टेक्नोलाजी के विकास ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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