बांस मानव सभ्यता से जुड़ी प्राचीनतम सामग्रियों में से एक है। पूर्वोत्तर भारत में तो समूचा जीवन ही बांस पर आधारित होता है।
मध्य भारत के आदिवासी क्षेत्रों में भी बांस एक मत्वपूर्ण प्राकृतिक सामग्री है जिसका प्रयोग अनेक प्रकार से किया जाता है। वास्तव में बांस के बिना ग्रामीण जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। खेत-खलिहान से लेकर घर-आंगन तक प्रत्येक काम में बांस से बनी चीजें प्रयुक्त की जाती हैं। घरेलू सामान, कृषि उपकरण से लेकर मछली पकड़ने तथा पक्षियों के शिकार तक के फंदे बांस से बनाये जाते हैं।fashionwithanuja
बांस, आदिवासी एवं ग्रामीण जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। यह केवल रहने के लिए झोपड़ी बनाने के काम ही नहीं आता है बल्कि दैनिक जीवन की प्रत्येक गतिविधि में इसका उपयोग होता है। इसकी उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए यहाँ के गांवों में लोग अक्सर अपने घर के आस-पास बांस के झुरमुट उगाते हैं। छत्तीसगढ़ में देसी बांस के अनेक जंगल हैं। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में बांस की अपनी एक अहमियत है परन्तु बस्तर में इसकी हैसियत विशिष्ट है। यहाँ के मुरिया आदिवासियों ने बांस से बनाई गयी वस्तुओं को अतिरिक्त रूप से अलंकृत करने हेतु इसकी सतह को गर्म चाकू से जलाकर विभिन्न आकृतियां उकेरने की विशेष तकनीक का विकास किया है। वे अपने नृत्य-गानों में बांस से बनाई गई अनेक सज्जा सामग्री एवं वाद्यों का प्रयोग करते हैं, जिन्हें वे इसी तकनीक से अलंकृत करते हैं।fashionwithanuja
बांस से बनाइ जाने वाली अनेक वस्तुएं तो लोग स्वयं ही बना लेते हैं, परन्तु बांस से टोकरिया, सूपा, झांपी, कुमनी, चोरिया आदि बनाने वाले व्यवसायिक बांस शिल्पी समुदाय भी यहाँ कार्यरत हैं। तूरी, बसोर, कोड़ाकू एवं पारधी छत्तीसगढ़ के ऐसे व्यावसायिक समुदाय हैं जो बांस से उपयोगी वस्तुएँ बनाकर अपनी आजीविका चलते हैं। बस्तर क्षेत्र में यह कार्य पारधी लोग करते हैं। कोंडागांव कुछ दूरी पर स्थित गांव जोबा के नयापारा के रहने वाले बृजलाल पारधी और उनकी पत्नी सूरजबती पारधी इस इलाके के प्रसिद्ध बांस शिल्पी हैं।
बृजलाल पारधी कहते हैं पारधी समुदाय के लोग मुख्यतः बांस अथवा छींद (देसी खजूर) के पत्तों से चटाई बुनने और झाड़ू बनाने का काम करते हैं। छींद की पत्तिओं से चटाई बुनने का काम छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों में अधिक होता है। बांस के काम के लिए अधिक औज़ारों की आवश्यकता नहीं पड़ती। लोहे से बनाई जाने वाली छुरी और कढरी वे लोहारों से बनवा लेते हैं। लकड़ी एवं बांस से बना अड्डा जिसे घोड़ी कहते हैं, ये खुद बना लेते हैं। यह अड्डा बांस की तीलियाँ एवं खिपचियाँ छीलने में काम आता है।fashionwithanuja
विभिन्न वस्तुएं बनाने के लिए बांस की विभिन्न मोटाई और चौड़ाई की तीलियाँ छीली जातीं हैं। बांस की पतली तीली सरई कहलाती है जबकि चौड़ी पट्टी को बिरला कहा जाता है। टोकरी अथवा सूपा के किनारे पर लगाई जाने वाली मोटी और मजबूत पट्टी फाता कहलाती है।
बस्तर की आम बोलचाल की हल्बी बोली में सामान्य टोकरी को टुकनी कहते हैं। माप और उपयोग के अनुरूप इन्हे टाकरा और दावड़ा भी कहा जाता है। मुर्गा-मुर्गी रखने वाली टोकरी यहाँ गोड़ा कहलाती है। इसके अतिरिक्त सूपा एवं विवाह के मौसम में पर्रा-बीजना भी बड़ी मात्रा में बनाये जाते हैं।
सामन्यतः शिल्पी स्वयं ही हाट बाज़ारों में जाकर अपना बनाया सामान बेचते हैं, परन्तु बस्तर के बांस शिल्पियों के साथ ऐसा नहीं है। यहाँ अधिकांश हाट बाज़ारों में बांस के बने सामान बिचोलोयों द्वारा बेचे जाते हैं। यह बिचौलिए बांस शिल्पियों से इकठ्ठा सामान थोक भाव में खरीदकर उसे ऊंचे दामों पर हाट बाज़ारों में बेचते हैं।fashionwithanuja
छत्तीसगढ़ में बांस शिल्प के विकास के लिए बस्तर के परचनपाल में छत्तीसगढ़ हैंडीक्राफ्ट डेवलपमेंट बोर्ड द्वारा 1988 में शिल्पग्राम की स्थापना की गई थी। आदिवासी ग्रामीण शिल्पकारों की कला को प्रोत्साहित करने के लिए छत्तीसगढ़ में शिल्पग्राम स्थापित किए गए ताकि शिल्पकारों को प्रोत्साहन के साथ-साथ वो सारी सुविधाएं मिल सकें जिनसे वे अपनी आजीविका चला सकें और इस कला को जीवित भी रख सकें। बांस के नए सजावटी एवं उपयोगी उत्पाद बनाना सिखाने के लिए असम राज्य से मास्टर ट्रेनर भी बुलाए गए थे। अभी इस शिल्पग्राम में शिल्पकार बांस, लोहे, पत्थर, मिट्टी और सीशल क्राफ्ट से जुड़े काम करते हैं। यहाँ विकसित किये गए बांस के नए उत्पाद अधिकांशतः सरकारी मेलों एवं प्रदर्शनियों में बिकते हैं।
बांस उद्योग को बढ़ावा देने तथा किसानों की आय को बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ शासन ने बांस की खेती की योजना आरम्भ की है। बांस की खेती में लागत अन्य फसलों की अपेक्षा कम और आय ज्यादा है। बांस की खेती की कटाई तीसरे वर्ष में होगी। उसके बाद प्रति वर्ष कटाई होगी। किसानों को प्रति एकड़ अनुमानित 40 टन बांस प्रति वर्ष प्राप्त होगा जिससे किसानों की डेढ़ लाख की आमदनी होगी।
छत्तीसगढ़ और विशेष रूप से बस्तर में बांस को एक भोज्य पदार्थ की भांति खाया भी जाता है। बांस की नई कोमल शाखाएं खाने के काम आती हैं इन्हे यहाँ बास्ता कहा जाता है। बांस की खेती से उपजे बांस की बड़ी मात्रा में यहाँ खपत संभव है।
बस्तर में जो बांस की वस्तुएं प्रमुखता से प्रयोग में ले जाती हैं वह निम्न हैं -
टुकना -टुकनी
यह सबसे सामान्य एवं सबसे अधिक प्रयोग में ले जाने वाली टोकरी है। यह छोटे-बड़े अनेक आकारों में बनाई जाती है। इसे बांस की सीकों से बुना जाता है। जब यह छोटे अकार की होती है तब इसे टुकनी कहते हैं, जब इसका अकार बड़ा होता है तब इसे टुकना कहते हैं।
झावाँ
यह एक मजबूत टोकरी होती है जो खेतों में मिट्टी ढोने के काम आती है।
गप्पा
यह एक बहुत छोटी टोकरी होती है जो गोंडिन देवी को चढ़ावे के तौर पर चढ़ाई जाती है। इसमें महुआ के फल भी इकट्ठे किये जाते हैं।
सूपा
यह धान और अन्य अनाज फटकने के काम आता है। इसे छोटा - बड़ा कई अकार का बनाया जाता है।
चाप
महुआ के फल सूखने हेतु काम में लाते हैं।
बिज बौनी
यह एक काफी छोटी टोकरी होती है जिसमें धान की पौध अथवा बौने के लिए बीज रखे जाते हैं। इसे किसान बीज बोते समय काम में लाते हैं।
डाली
यह बड़ी टोकरियां होती हैं जिसमे धान अथवा अन्य अनाज भर कर रखा जाता है।
ढालांगी
यह धान का भण्डारण करके रखने के लिये बनाई जाने वाली यह बहुत बड़ी टोकरी है।
ढूठी
शिकार के बाद छोटी मछलिया रखने के लिए अथवा कोई पक्षी पकड़ने के बाद इसमें रखकर घर ले जाते हैं।
पर्रा-बिजना
यह बहुत छोटे अक्कर का हाथ पंखा और थाली जैस होता है। विवाह संस्कारों में इसका प्रयोग किया जाता है।
हाथ खांडा
यह भी छोटे आकर के पंखे जैसा होता है। विवाह संस्कारों में दूल्हा-दुल्हन को जब तेल लगाया जाता है तब वे इसे पकड़ते हैं ।
पाय मांडा
यह छोटी टोकरी होती है जिसमें दौनों पैर रखकर दूल्हा-दुल्हन विवाह मंडप में खड़े होते हैं।
चुरकी
विवाह के समय दुल्हन इसमें धान भर कर खड़ी रहती है।
छतौड़ी
यह बरसात और धूप से बचने के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला छाता है।
मूड़ा / खोमरी
इसे ओढ़कर किसान बरसात के समय खेतों में काम करते हैं।
झाल / छारनी
यह उबले चावलों को पसाने के लिए काम में लाया जाता है।
झांपी
विवाह में दुल्हन के कपड़े इसमें रख कर दहेज़ स्वरुप दिए जाते हैं।
थापा
उथले पानी में मछली पकड़ने का उपकरण।
बिसड़
खेतों में भरे पानी में मछली पकड़ने का उपकरण।
खेतों में भरे पानी में मछली पकड़ने का उपकरण।
चोरिया
बहते नाले में मछली पकड़ने के काम आता है।
बांस के उपरोक्त पारम्परिक उत्पादों में से अनेक प्रचलन में हैं परन्तु कुछ अब प्रचलन में नहीं हैं।