मंगलवार, 6 मार्च 2018

टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी पार्ट 3 डा.अनुजा भट्ट



इस कहानी में कितने तरह के माेड़ आते हैं और हर माेड़ पर आकर कहानी ठहरी हुई सी लगती है पर एेसा हाेता नहीं। फिर कुछ एेसा घटनाक्रम बनता है कि कहानी की पूरी धारा ही एकदम बदल जाती है। अब मेरे लिए हर राेज मैसेंजर पर लिंक रहना जरूरी सा हाे गया। वह सचमुच एक नदी की धारा की तरह ही थी। पर एकदम शांत और खुद के भीतर सब कुछ समा लेने का अजीब सा जज्बा लिए। उसे अपनी जिंदगी की हर तारीख महीना याद था। मैंने एकदिन पूछा सब कुछ याद है तुम्हें। छाेटीछाेटी सी बातें... छाेड़िए ना.. आप ही हैं जाे मेरी तारीफ कर रही है.. क्या आज आप मेरे बारे में जानना नहीं चाहेंगी। या बाेर हाे गई। मैंने कहा नहीं बाेर नहीं हुई है यह साेचसाेचकर हैरान जरूर हूं कि तुम यह सब सह कैसे लेती हाे... उधर से जवाब आया कि काश मैं कविता लिख पाती अपना दर्द कह पाती.. पांच साल ही की ताे थी मैं जब मेरी मां मर गई और मेरी बहन ३ साल की। एक एक दिन कैसे कटता गया मुझे सब याद है। मां के रहने तक ही बचपन और बचपना था मेरा। ५ साल की उम्र में ही मां बहन और पापा की जिम्मेदारी देकर हमेशा के लिए चली गई। उस दिन के बाद मुझे हर दिन और तारीख याद हैं।

हां वहीं ताे इतने फटाफट टाइप करती हाे... बताने लगी है वह अब....

पता है मैंम जब हम घर से आए ताे मैं बहुत खुश थी । हम दाेनाे लूडाे खेलते थे । बस वही अच्छे दिन थे मेरी शादी के। उसके बाद डिलीवरी का टाइम आया जाे नवंबर में हाेनी थी । मैंने डिलीवरी के लिए भी पैसे जमा करके रखे थे कि कहीं आपरेशन की जरूरत न पड़ जाए अगर एेसा हुआ ताे क्या करेंगे क्याेंकि इनके घरवालाें से ताे काेई उम्मीद थी नहीं और मैं अपने घर से लेना नहीं चाहती थी क्याेंकि मम्मी जितनी हैल्प नहीं करती थी उतना लाेगाें में बाेल देती थी कि एेसा किया , वैसा किया और पापा काे बाेल देती थी सब कुछ मैंने किया । मैं ही सब कुछ देती हूं। मुझे अच्छा नहीं लगता था। फिर डिलीवरी ताे नार्मल हाे गई और मेरे सास ससुर आए भी, हास्पिटल में मुझे देखने।पर वहां भी मेरी सास ने तमाशा कर दिया। मुझे आकर बाेलने लगी कि दर्द हुआ ताे बता नहीं सकती थी। जबकि मैंने इनकाे बाेल दिया था कि तुम ना सबसे पहले अपनी मम्मी काे बता दाे। इन्हाेने बताया ही नहीं ताे मेरी क्या गलती। और मेरे दर्द हाे रहा हाे ताे उस समय मैं अपनी सास काे फाेन कैसे करती। और फिर पता है जब मेरी बेटी हुई ताे उसके एक पैर में प्राब्लम थी। मेरे साससुर चाहते थे कि हास्पिटल से हम सीधे घर जाएं। पर मेरे हस्बैंड ने बाेला किअगर हम घर गए ताे तुझे ही सारा काम करना पड़ेगा एेसा करते हैं पहले रूम में ही जाते हैं फिर तू थाेड़ा ठीक हाे जाएगी तब घर जाएंगे। ताे फिर हम लाेग 10 वें दिन गए और 11वें दिन में नामकरण था। मुझे लगा थाेड़ा सुधर गए हाेंगे घरवाले । पर नहीं वहां वहीं ड्रामा था। मेरे ससुर जी जब ड्रिंक करते थे ताे उनकाे काेई हाेश नहीं रहता था बिस्तर पर ही सब कुछ। फिर हाेती थी लड़ाई। बाप बेटे की मार पिटाई.. बस फिर आ गए वापस। फिर जब दुबारा आए ताे यह सुबह ही चले जाते थे। मेरे साथ एक बेटी . उसके पैर में प्राब्लम थी उसकाे प्लास्टर चढ़ा था फिर उसके शूज हाेते थे जाे दाेनाे पैराें काे ज्वाइंट करते थे। अरे मैम मैं ताे उसकाे पैजामा भी नहीं पहना पाती थी ठीक से। पाटी करने में भी दिक्कत थी। घर का काम ट्यूशन... मुझे इतनी टेंशन थी िक मुझे भूख ही नहीं लगती थी और बच्ची काे फीड कराना हाेता था। फिर मैं बहुत बीमार हाे गई। मेरा वजन 39 किलाे रह गया.. टीबी हाे गई थी मुझे.. इस बात काे सात साल हाे गए। तब मेरी बेटी कुछ महीने की थी। फिर जब मेरी बेटी 1 साल की हुई ताे मेरी सास फिर आई। मुझे उनपर दया आ गई फिर लगा मेरी बेटी के पास सब कुछ ताे है दादा दादी हैं बुआ है चाचा है मैं क्यूं दूर रखूं उसकाे। इन सबसे फिर लगा कि बच्ची काे देखकर सुधर जाएंगे। ताे मैंने इन्हें बाेला। इन्हाेंने मना कर दिया। मैंने बाेला मैं ताे जा रही। फिर मैं गई ताे अपनेआप ये भी आ गए।

आज बहुत थकी हूं मैम कल फिर बताऊंगी.. काेई बात नहीं अब तुम्हारी बेटी ठीक है ना और तुम भी स्वस्थ हाे ना। हां मैडम मेरी बेटी अब एकदम ठीक है और मैं भी ठीक हूं। तुम्हारी ननद का व्यवहार कैसा है तुम्हारे प्रति। वह बहुत अच्छी है मेरे लिए। और वह बहुत मेहनती भी है उसी से ताे मुझे हिम्मत मिलती है। यह सब कर सकती है ताे मैं क्याें नहीं । उसके बारे में कल बताऊंगी क्याें मिलती है मुझे उससे प्रेरणा... मेरी बेटी उसे खिलाैना क्यूं लगती थी....

वह अाफ लाइन हाे गई है । फिर से कई सवाल और कई दर्द काे पीछे छाेड़कर.... मुझे लगता है शायद उसकी ननद ही एक मात्र एेसी सदस्य हाेगी जाे उसका साथ देती हाेगी और उसकी बच्ची काे बहुत प्यार करती हाेगी। छाेटे बच्चे ताे वैसे भी बहुत प्यारे हाेते है। इसलिए वह उससे खेलती हाेगी। जैसे बच्चे खेलते हैं खिलाैनाें से। चलाे कहीं ताे सुःखांत है इसके जीवन में। तकलीफ भरे रास्ते में छायादार वृक्ष का हाेना उतना ही जरूरी है जितना तपिश में पानी की बूंद का टपक जाना। ताे दाेस्ताें कल फिर मिलते हैं इस कहानी के ४ िहस्से क साथ..


टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी पार्ट 2- डा. अनुजा भट्ट



यहां समय ठीक रात्रि के 10 बजे हैं। आपको कहानी पोस्ट करके अब अपने वायदे के मुताबिक पार्ट 2 लिख रही हूं। मौसम अच्छा और खुशगवार है। सोचा उसके हाल चाल तो ले लूं। इस समय उसके शहर में बारिश हो रही हैं। पहा़ड़ी इलाके में लोग जल्दी सो जाते हैं पर उसकी आंखों में नींद नहीं है। उसके सिर में दर्द है और भले ही वह कहे या न कहे बेचैनी तो होगी ही। बारिश सहसा तेज हो गई है और वह निडर लड़की बाहर निकलकर बारामदे में लगे कपड़े उठा रही है। उसमें उसके नहीं मकानमालकिन के कपड़े हैं जो इस समय गहरी नींद में है। पर इसे तो जागना है क्योंकि कल अगल अलग क्लास के बच्चों का टेस्ट लेना है तो प्रश्नपत्र बनाना है। दोस्तो मैंसेंजर में आ गई है वह अब अपनी कहानी लेकर चलिए मैं आप सब उसकी कहानी पढ़ें। गजब के इमोजी लगाती है लड़की. उदास चेहरे नहीं है आज. पर एक बच्चा एक हाथ से फूल दे रहा है तो तुरंत वापस ले रहा है... क्या कहना चाहती है यह लड़की। मुझे लगा कि शादी के बाद अच्छा घर मिलेगा। शांति और प्यार मिलेगा। पर शादी के बाद भी कुछ ठीक नहीं रहा क्याेंकि वहां का एडमासफियर तो और भी खराब था। वहां मेरे ससुर ड्रिंक करते थे और सास तो इतनी खतरनाक थी कि क्या बताऊं। उनकी मर्जी के बिना वहां पत्ता भी नहीं हिल सकता था। उनकी अपने बच्चों में ही मार पिटाई होती थी। इतने जवान बच्चे मां बाप को मारते थे, हाथ उठाते थे और वह भी बच्चों को मारते थे। आप सोचो घर कैसा होगा जहां मां बाप को बच्चे मारते हों। मैंने तो अपने घर में मां के रोज रोज के क्लेश से शादी के लिए हां कर दी थी पर मेरी किस्मत में तो क्लेश ही क्लेश लिखा था। मेरे हसबैंड थोड़ा ठाक थे। पर बचपन में जिसने मां बाप में इतना क्लेश देखा हो उनपर भी असर तो होगा ही। डन्होंने भी मुझे झूठ बोला कि मैं ग्रेजुएट हूं। बट शादी के बाद पता चला कि वह 10वीं किए हुए थे। पर मैंने अपने दुःख को ताकत बनाया। मेरे पापा बहुत प्राउड फील करते थे मेरे लिए। फिर पता है मैम मेरे हसबैंड का भी कोई ठीकठाक काम नहीं था। पर मैने उनको नोटिस किया कि वह बहुत इंटेलीजेंट और स्मार्ट थे। पर उनको ऐसा एडमासफियर ही नहीं मिला। और मेरी सास शादी के वन मंथ बाद ही घर से निकलने के लिए बोलने लगी। बोलती थी बाप की कमाई खा रहे हो निकलो यहां से। ये लोग दो भाई थे दोनों की शादी एक ही दिन हुई थी। वो आर्मी में था। वह भी पागल ही निकला। अपनी वाइफ को अपने साथ लेकर गया और ले जाकर मारा और उसकी ज्वैलरी भी बेच दी। फिर 4 महीने बाद घर आया उसको लेकर और फिर घर से पैसे चोरी कर लिए । बहुत क्लेश हुआ। बहुत मारपिटाई हुई सब की आपस में। मेरी सास ने अंतिम एलान किया निकलो घर से और हमारा सामान फैंक दिया। बस क्या था निकल गए.... और पता है वहां सुबह 5 बजे उठ जाना होता था और सीधे नहां कर पूजा करके अंधेरे में सब काम निपटाना होता था और अगर लेट हो गए तो सास बातचीत बंद कर देती। फिर तो और महाभारत होता क्योंकि वेजीटेबल में कितना ओनियन डालना है ये भी पूछना होता था। आप ये सोचो कि हम दोनों नई नवेली बहुएं पाजेब और चूड़ी नहीं पहन सकती थी क्योंकि उनसे आवाज होती थी और मेरी सास को आवाज पसंद नहीं थी। किचन में खाना बनाते हुए बर्तनों की आवाज नहीं होनी चाहिए। एकतरफ इतना सन्नाटा और दूसरी तरफ रोज का हाहाकार... उसदिन की लड़ाई के बाद जब घर से बाहर निकले तो बहुत खुश थी सच में। आज सोचती हूं अक्ल ही नहीं हुई और ऊपर से मैं प्रेग्नेंट थी। पिंजरे से बाहर निकल आए। यह 2008 की बात है। केवल 3000 में गृहस्थी की शुरूवात की। मेरे देवर और देवरानी ने भी उसी दिन घर छोड़ दिया। मेरी देवरानी अपने मायके चली गई और उसी के पास कमरा लेकर रहने लगी। वह भी उस वक्त प्रेगनेंट थी. उसके पेरेंट्स यह बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने देवर को सबक सिखाने के लिए उसकी लिखित शिकायत उसके आफिस में कर दी। आर्मी में अगर परिवार की तरफ से शिकायच जाती है तो तुरंत एक्शन होता है। उसका कोर्टमार्शल हुआ और नौकरी छूट गई। पर उसका सीईओ भला आदमी था। उसने कहा अगर तुम्हारी पत्नी लिखित में सुलहनाम दे सकती है तो तुम्हारी नौकरी फिर से बहाल हो जाएगी। पर उसकी बीबी नहीं मानी। उसने दो शर्त रखी पहली तो मेरे लिए घर का प्रबंध करो और मेरे लिए जमीन लो। यह उस समय संभव नहीं था। ऐसा न होने पर उसने सुलहनामा लिखने से मना कर दिया। मेरे देवर ने गोली मार ली...



हमने जहां घर लिया वहीं मकानमालकिन के बच्चों को मैं ट्यूशन पढ़ाने लगी। उनके दो बेटे थे और दोनों ने रिर्जट बहुत अच्छा किया। फिर तो मेरे पास बहुत सारे बच्चे आने लगे। इन्होंने भी 1985 माडल की एक गाड़ी खरीद ली और उसे स्कूल में लगा दिया। यह स्कूल के बच्चों को लाने ले जाने लगे। उस समय मेरे ससुर जी ने थोड़ी मदद कर दी। ट्यूशन के साथ मैंने सिलाई का काम करना भी शुरू किया। मेरी नई मां ने ही मुझे सिलाई सिखाई। ताकि घर में कुछ अतिरिक्त आमदनी हो सके। आखिर पहली मां से हम दो बहनें थी। हमारी परवरशि का भी खर्च था। जब मेरी सिए कपड़े लोग पसंद करते तो बड़े गर्व से कहती कि मैंने कहा था सिलाई सीख। इससे मुझे फायदा यह हुआ कि घर का खर्च चलाना आसान हो गया। घर से जब हम बाहर निकले तो वह समय मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत ख्वाब था। हमारे पास पैसे तो थे नहीं पर हमारे पास सपने बेशुमार थे.... मैंम आप बोर हो गई ना... क्या करेंगी जानकर सुनकर। पर मेरे लिए तो आप... क्या कहूं मैंम। हद करती हो तुम... इस तरह क्यों सोचती हो। मैंने कहा था ना दुःख को बादलों की तरह होना चाहिए। समय समय पर बरसेंगे नहीं .तो प्रलय । मुक्तिकामी भी बादल ही तो हैं और हमारी आंखें जिनसे हम देखते हैं सारी दुनिया और शाश्वत शिव की तरह पी लेते हैं जिंदगी के कई गरल कई सरल। किसी के कंधे पर लुड़क जाती है तो कभी बारिश में समा जाती है यह बूंदे ही ताे है। पर मंथन तो जरूरी है... अमृत जरूर निकलेगा.. मैसेंजर ने फिर से टमटमाया और एक ना ना करता चलता फिरता इमोजी कहने लगा नो नो नो फिर शब्द तैर आए जैसे तैर आते हैं बादल..अभी तो बहुत कुछ जानना है आपने। अमृत इतनी आसानी से नहीं मिलता मुझ जैसों को। यह तो आप भी मानती है ना। सो जाइए अब। अपना दुःख कहकर मैंने आपको बेवजह ही परेशान कर दिया। कल फिर मिलेंगे अगर आप परेशान न हाें ताे। देखिए बारिश कितनी तेज हो रही है। आपकाे कैसे पता चलेगा वहां....और अब एक छाता के साथ इमोजी मुस्कुरा कर कह रहा था. गुड नाइट कहानी बाकी है अभी जैसा मैसेंजर ने बताया...

टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी- डा. अनुजा भट्ट पहला भाग



मोबाइल के मैंसेंजर से लगातार रिंग टोन बज रही थी.... सवाल थे कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। हर रोज मैं 10 बजने का इंतजार करने लगी थी। मैंसेंजर पर हमारी दोस्ती एक सवाल के साथ ही शुरू हुई थी और आज लगता है जैसे कई नदियों पहाड़ों को पार कर कोई सुरीली तान न जाने कब से मुझे खोज रही थी। एक ऐसी नदी जो उफान पर थी पर फिर भी बहुत शांत। पहला सवाल शुरू हुआ कि मैडम आप कहां से हो क्या उत्तराखंड से.... सवाल पढ़कर मुझे पता नहीं क्यों लगा इस सवाल में कहीं न कहीं कोई बैचैनी है यह सवाल सिर्फ सवाल भर नहीं है इसमें जिझासा है कौतुहल है और साथ में हैं प्यार की खुश्बू। आप सोचेंगे खुश्बू तो फूल से आती है पर कभी कभी कोई शब्द भी फूल सा महकने लग जाता है और उसकी गंध आपको उसके पास ले जाने के लिए उसके सवाल के जवाब में लिखती है हां। मैंसेजर पर फिर से घंटी बजती हैं कैसी हैं आप?... जवाब पहले जैसा ही अपनी सुनाओ, मैं ठीक हूं। मैंसेजर में टाइप होने का संदेश उभर रहा है और मैं बेचैन सी हूं। तभी एक कुछ लिखा सा आता है..आप बहुत अच्छा लिखती हैं मैंने कल आपकी एफबी पर सारी पोस्ट पढ़ी थी... मैंने भी टाइप किया ओह और साथ में एक इमोजी भी लगा दी मुस्कुराते हुए। दूसरे दिन नियत समय पर फिर से मैंसेजर में लाइट चमकी इस बार एक हाथ हिलाता हुआ था। माने हेलो.... मैंने कहा कैसी हो तुम उधर से जवाब आया.. मजे में आप नौएडा में रहती है ना... मैंने फिर लिखा हां. कुछ काम हो तो बताओ... मैंसेजर ने एक उदास चेहरा भेज दिया... मैंने हड़बड़ाते हुए लिखा सब ठीक ना... मैसेंजर में संदेश था. अब कोई काम नहीं है बताने के लिए। काश आप पहले मिल जाती। तो जरूर मेरे पापा शायद...इसके बाद मैसेज आना बंद हो गया और मोबाइल का चार्ज भी... अब. कुछ हो नहीं सकता कल रात 10 बजे तक इंतजार करने के। हो सकता है वह मैंसेजर पर आए हो सकता है नहीं आए... वह मुझे जानती ही कितना है। न कभी मुलाकात हुई और न कभी बात हुई। मैंने बस लिखा उसने पढ़ा और सहज जिझासा से पूछ लिया। फिर मैं ही इतनी भावुक और परेशान क्यों हूं। आखिर वह मुझे क्यों अपने बारे में बताएं या मैं ही क्यां सुनूं। न जाने कितने है जो अपनी फेंक आईडी से फेसबुक पर सक्रिय है। मेरी दोस्तों के बच्चे जो अभी 12 साल के भी नहीं हैं फेसबुक पर हैं। शौकिया तौर पर अपनी फोटो अपलोड करते रहते हैं। तभी याद आया उसने कहा था कि मैंने फेसबुक से आपके बारे में जाना तो क्यों ना मैं भी उसे खोज लूं। इतने मंथन के बीच मोबाइल थोड़ा सा चार्ज हो गया। पर घड़ी की सुई बहुत आगे थी। उसने भी मोबाइल डाटा आफ कर दिया होगा... खुद को झटका मैंने ।. तभी नींद ने अपने आगोश में ले लिया। यह सोचते सोचते कि उसके पापा को आखिर क्या हुआ होगा और वह मुझसे कैसी मदद मांगती। दूसरे दिन जब मैंने फिर से फेसबुक खोला तो देखा वह मुझे फालोअप कर रही थी। मेरी बहुत सारी पोस्ट पर उसने अंग्रेजी में अपने कमेंट लिख थे। हिंदी भी रोमन में लिखी थी। एक जगह उसने लिखा था जब हारने को कुछ न हो तभी असली हिम्मत आती है। जब तक आपके पास कुछ भी रहता है आप जोखिम नहीं ले पाते। मैंने भी अब उसके कमेंट्स पर ध्यान देना शुरू कर दिया था..... मैंने दो बार पढ़ा फिर पढ़ा उसने लिखा था सिंगल पेरेंटिंग पर भी लिखा जाना चाहिए.. उनकी भी दिक्कते हैं। रात का 10 बज चुका था। मैं मैंसेंजर पर रिंग बजने का इंतजार कर रही थी आज मेरे पास भी उसके बारे में जानकारियां थी। सवाल थे। तभी चमकती हुई लाइट दिखी...हेलो मैम आप सोई नहीं अभी.. नहीं, तुम्हारे मैसेज का इंतजार कर रही थी। माफ करना कल मोबाइल डस्चिर्ज हो गया। तुम सोच रही होगी मैंने तुम्हारी बात बीच में रोक दी। आज तुम लिखती जाओ मैं पढ़ रही हूं। मैम मैंने नौएडा और दिल्ली के बहुत चक्कर काटे हैं। मैं अपने पापा को इलाज के लिए लाती थी। उनको कैंसर था औ्र उनका इलाज नौएडा के धर्मशिला कैंसर हास्पिटल में चल रहा था। 1 1/2 साल इलाज चला उनका। सितंबर में उनकी डैथ हो गई। वह आर्मी पर्सन थे। आपको पढकर अच्छा लगा। मुझे लगा कि औरत किसी से कमतर नहीं है वह सबकुछ कर सकती है। बीकाज आई एम ए सिंगल पेरेंट आँफ माई डाटर। माई हस्बैंड इज नो मोर... मैंसेजर में शब्द आकार ले रहे थे। दुःख और पीड़ा, स्मृति और छाया पेड़ और उनका आदमियों की आकृतियों में बदल जाने के अहसार पिरोए एक पेंटिंग जैसे कई वृत्त चित्र मेरे मन के घेरे में बनने शुरू हो गए थे। यकायक जैसे आंसू की धार बहने लग जाती है किसी का दुःख सुनकर आज कलेजा कांपा तो मैसेंजर ने टाइप किया कैसे हुआ यह सब और वह तो उधर प्रतीक्षा में थी मेरे लखिए को पढने के लिए। लाइट जगमगाई और शब्द में दर्द आया मैं उनका इक्सीडेंट हुआ था और आन द स्पाट डेथ हो गई थी तब ेरी बेटी 3 साल की थी और आज 9 साल की है। कहां रहती हो तुम ससुराल में या मायके में। मैम ससुराल में कौन रखता है वह भी बेटी की मां को.... बेटे से ही सरोकार होता है.... मैं मम्मी के घर के पास ही रहती हूं किराए का घर लेकर।

प्रतिप्रश्न था नौकरी करती हो। हां मैंम एमएससी बीएड हूं। मैथ्स पढ़ाती हूं। भाई बहन हैं हां ंमैम हम 3 भाई बहन हैं बहनों की शादी हो गई और भाई छोटा है। घर में मैं सबसे बड़ी हूं। बस बेटी से आशा है मैं चाहती हूं वह एक नेकदिल इंसान बने। पैसा तो हर कोई कमा लेता है पर हर इंसान अच्छा हो यह जरूरी नहीं है। दर्द पूरे सैलाब में था। मैं लिखा जैसे ओस लिखती है पत्ते के ऊपर तुमसे बात कर मन भीगा भीगा हो गया। अब कुछ लिख न पाऊंगी कल बात करेंगे। हां मैं मैंने आपको अपने बारे में सब बता दिया। मैं खुद ही सोच रही हूं कि आखिर मैंने आपसे अपना दुःख क्योंकर कहा। पर आपको पढ़कर लगा कि आप ही हो जिससे मैं अपना सबकुछ कह सकती हूं भले ही मैं आपसे मिली नहीं कभी। बस अब और कुछ न कहो कह दिया ना । दुःख को बादलों के टुकड़ोंकी तरह सहेज कर रखना चाहिए। सुःख और दुःख दोनो संपत्ति होते हैं आपकी एकदम निजी.... हां मैम सही बोला आपने अब कल ही बात करेंगे।


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