शनिवार, 14 अप्रैल 2018

#मैंअपराजिताकहानीप्रतियाेगिता-दर्शना बांठिया

#मैंअपराजिताकहानीप्रतियाेगिता
 


जूगुनू को टिमटिमाते हुए देखकर कई विचार उमड़ने लगे ।मन ही मन सोचा कि मैंने अपने जीवन को कितना सार्थक अर्थ दिया है।पहले रिया के पिताजी को कम उम्र में ही हृदय रोग हो गया,इस कारण,उनकी सेवा-सुश्रुषा में अपने लिए कभी समय ही नहीं निकाल पाई, फिर 4 बच्चों की परवरिश करना आसान थोड़ी है,कभी किसी की पढ़ाई का खर्चा आ जाता, किसी को नए कपड़ें चाहिए होते...तो किसी की नई-नई फरमाइशें ,सब को खुश रखना बहुत बडी़ जिम्मेदारी थी।सिलाई-कढाई में इतनी आमदनी भी नहीं होती कि सबकी फरमाइशे पूरी कर सकूँ,जरूरतें पूरी हो जाती,वहीं बहुत है।
खैर अब सब जिम्मेदारी पूरी हो चुकी है,सब अपनी राहें तय कर चुके है।
आज सुबह-सुबह ही वो अपने पति की तस्वीर के आगें खड़ी हो गई,और एकटक निहारते हुए सोचने लगी ,कि उनके पति हमेंशा कहा करते थे,"तुम बहुत अच्छी कविता, कहानी,और नजम लिखती हो,हम तो तुम्हारें लेखन के दीवाने है।"
उन बातों को सोचते हुए ही उनके होंठों पर मुस्कान आ गई।
आज कई दिनों बाद वो मुस्कुराई है.उन्हें लगा कि मेरे बच्चों ने अपनी रूचि,स्वभाव व आदतों को हमेशा सर्वोपरि रखा....और अपने सपने पूरे किए ,भले ही दुनिया ने उनकी प्रतिभा को शुरू-शुरू में नकारा,कभी उन पर हँसे,कभी पीठ पीछे उनकी बुराईयाँ की ....,पर उन्होंने अपनी राहें कभी नहीं बदली..।आज मुझे खुशी है कि सबने अपनी मंजिलें पा ली है।
पर मैंने अपने शौक को हमेशा दबायें रखा.इतना समय हो गया, कुछ भी नहीं लिख पाई । अब मुझे भी अपने शौक व रूचि को आगे बढा़ना है।अपने लेखन को आगे बढा़ने का प्रयास करना है,इससे ही मुझे सच्ची खुशी मिलेगी.
. जीवन में अपनी रूचि को सबके सामने लाना ही ,उनका लक्ष्य बन गया। उनके मन में उम्मीद की नई लहरें उठने लगी,और अपनी पुरानी डायरी खोलकर उसमें नये रंग भरना शुरू कर दिया:-
उम्मीद
" उम्मीद वक़्त का बहुत बड़ा सहारा है "
"है उम्मीद तो हर लहर किनारा है "।।

#मैंअपराजिताकहानीप्रतियाेगिता 1

सुबह सुबह वह इसी साेच के साथ उठी कि आज से वह अपनी जिंदगी काे नया रंग देगी। पता नहीं ईश्वर ने कितना जीवन दिया है इसलिए वह अपने सपनाें काे हकीकत में बदलेंगी। रिया, मीना, प्रतीक और संज्ञान भी ताे है सब ने अपनी जिंदगी का एक टुकड़ा अपने लिए भी रखा है। अभी हाल ही में संज्ञान काे पुरस्कार मिलाऔर उसने कितने खूबसूरत तरीके से उसका जश्न मनाया। जबिक उसकी बीवी काे उसके इन सारे कामकाज में काेई दिलचस्पी नहीं। उसे ताे शायरी समझ ही नहीं आती। जाती थी ना पहले संज्ञान के साथ ध्यान हमेशा घड़ी में रहता था। पर संज्ञान ने शायरी का जुनीन न छाेड़ा और आज देखाे। और यह प्रतीक जब देखाे तब घर के कचरे में से कुछ न कुछ बनाता नजर आता। उसकी बीवी ने पानी की पुरानी बाेतल फैंक दी और वह उठा कर ले आया। उसकी बीवी काे कचरा पसंद नहीं और प्रतीक काे कचरा सहजने में मजा आता है। पुरानी बाेतल से उसने बहुत खूबसूरत पाट बनाए हैं । फेसबुक में कल उसकी पाेस्ट देखी हैरान हूं। बदला नहीं प्रतीक। रिया और मीना ने भी कहां बदला खुद का। रिया ताे वैसी ही बिंदास है नपहले डरती थी और न अब। हम कहते थे पुलिस में चले जा। पर वह पुलिस में ताे नहीं गई पर विधायक बन गई।हर समय लाेगाें से घिरी रहती है। शहर में उसका नाम है। बदनामी भी मिलती है। पर उसका अपना स्पेस ताे है ना। मीना के बारे में भी सुन ही लाे। उसकी एक अजीब सी आदत थी। दब भी सहेलियाें में झगड़ा हाेता ताे वह जिसने झगड़ा किया उसके साथ हाे लेती। उससे बार बार पूछती कि तूने एेसा किया क्याें। हम उससे नाराज हाेते। लेकिन वह चाेर की हमदर्द बन जाती। पिछले दिनाें एेेसे ही एक किताब पर नजर पड़ी अपराध के भीतर की तलछट लेखिका का नाम देखा मीना। तुरंत प्रकाशक काे फाेन करके मीना का नंबर मांगा।
इस एक महीने से मैं इसी पशाेपेश में हूं कि सबने अपना आकाश चुन लिया मैं ही अंधेरे में क्यूं रहूं। जुगनू ताे अंधेरे में ही टिंटिमाते है। कल रात कई जुगुनू मेरा आत्मविश्वास बढ़ा रहे थे.........


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अब कहानी का विस्तार आप दें। यही है प्रतियाेगिता

सुनहरा समय -मंजू सिंह


जीवन की भागदौड़ में कब ज़िन्दगी मुटठी की रेत की मानिंद हाथों से फिसल जाती है,पता ही नहीं चलता .घर बाहर की उलझनें ,बच्चो की ज़रूरतें,उनकी पढ़ाई,शादी और न जाने क्या-क्या ! यह सब करते बालों में कब सफेदी आ गयी,चेहरे की लकीरें कब गहरी हुईं और बूढी हड्डियों ने कब जवाब देना शुरू कर दिया, पता नहीं ! अपने मन की कब सुनी ,कब समझी ,कब की- याद नहीं .कभी घर और बच्चों के अलावा कुछ सूझा ही नहीं .
जी हाँ ! अधिकतर लोगों की यही कहानी होती है . हमारे देश में एक मध्यम वर्गीय परिवार में माता-पिता ऐसे ही ज़िन्दगी गुज़ार देते हैं और एक दिन आता है जब वे अपनी सभी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह करने के बाद रिटायर हो जाते हैं .दफ्तर के लोग साठ वर्ष का होने पर जब गले में माला पहनाकर घर छोड़ने आते हैं तब एक परंपरा के अनुसार नाते-रिश्तेदारो को इकट्ठा कर दावत दी जाती है खूब नाच-गाना होता है .अच्छा लगता है कि चलो सब कामो से मुक्ति मिली आखिर कितने लोग होते हैं जिन्हें यह दिन देखना नसीब होता है.
अगले ही दिन एक खालीपन इंसान को घेरने लगता है.भीतर कहीं अपने बेकार हो जाने का एहसास सर उठाने लगता है.ऐसा लगता है जैसे आस –पास की हर नज़र घूर रही है .घर के एक फालतू सामान बन जाते हैं हम .एक अवसाद सा मन में घर करने लगता है .यही वह समय होता है जब हमे सँभलने की आवश्यकता होती है |
रिटायरमेंट के बाद का समय कैसे बिताये इसकी योजना बनाने की सोचें आप कोई निरर्थक सामान नहीं हैं .आपने अपना पूरा जीवन दिया है घर को और घर के सदस्यों को, अब बारी है आपकी .बचा हुआ जीवन सुख-चैन से अपने मन मुताबिक जीने की. आखिर ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा .अपनी कुछ धनराशि को अपने घूमने-फिरने के लिए अवश्य रखें यदि पति-पत्नी दोनों ही काम-काजी हों तो रिटायरमेंट आगे-पीछे होता है जब तक दोनों रिटायर न हो जाएँ तब तक छुटियों का भरपूर आनंद लें
अपनी दिनचर्या में सुबह शाम सैर और व्यायाम के लिए समय अवश्य निकालें याद रहे स्वस्थ्य हज़ार नियमित.अपनी दवा आदि के समय का ध्यान रखिये
अपने शौक जो आप अपनी व्यस्तता के चलते कभी पूरे नहीं कर पाए उनके विषय में सोचिये और समय निकालकर कुछ न कुछ अवश्य करिये.आप अपना बाग़बानी का शौक पूरा कर सकते हैं यदि जगह है तो कहने ही क्या घर की उगी ताज़ा सब्ज़ी का आनंद और स्वाद तो अलग होगा ही साथ ही आप मिलावटी नकली रंगी हुई सब्ज़ी खाने से भी बच जायेंगे।

यदि आप अपना पुस्तक-प्रेम निभाना चाहते हैं तो पढ़िए-कहते हैं की पुस्तक से अच्छा और सच्चा साथी और कोई नहीं होता पुस्तकें आपको दुनिया के कई नए स्थानों. की सैर कराएंगी और नए लोगों से भी मिलवाएंगी आप चाहें तो ह लिखने का शौक भी पूरा कर सकते हैं अपने मन की बात जो आप कभी न कह पाए हों अपनी कलम को कहने दीजिये न ! वैसे यदि आप टेक्नोलॉजी से परिचित हैं तो आपके लिए अन्य कई विकल्प खुल जाते हैं आप एंड्राइड के माध्यम से बहुत कुछ सीख या कर सकते हैं अपने पुराने मित्रों एवं सम्बन्धियों से एक बार फिर संपर्क साध सकते हैं यह काफी रोमांचक और प्रसन्नता देने वाला होगा . अपने बच्चों व्नातीपोतों से सीख सकते हैं .एक नयी दुनिया के द्वार खुल जायेंगे आपके लिए .
ज़िन्दगी की उलझनों और आपा-धापी में हमारे रिश्तों के धागे कुछ कमज़ोर पड़ जाते हैं लोगों की हमेशा यह शिकायत ही रहती है कि अब हम स्वार्थी हो गए हैं अपने में मगन रहनेवाले हो गए हैं किसी से कोई मतलब ही नहीं रखते....तो इन मीठे उलाहनों पर भी ध्यान देने और सब की शिकायत मिटने का अच्छा समय है अब आपके पास सबसे मिलिए जूलिये और पुराने समय कि यादें ताज़ा करिये सब के साथ मिलकर तीज-त्योहारों का आनंद लीजिये नाचते- गाते, हँसते- खेलते जीवन व्यतीत कीजिये उम्र बस एक नंबर है आप दिल से युवा महसूस करेंगे .स्वस्थ्य भी अच्छा रहेगा .
नयी पीढ़ी के लोगों के साथ विचारों कि कश- म- कश में उलझकर अपना और बच्चों का जीवन मुश्किल कर लेते हैं हम कभी-कभी .यदि आप उनकी सहूलियतों का ध्यान रखेंगे,उनकी भावनाओं को समझेंगे तो वे कभी आपसे विमुख न होंगे और जीवन आसान हो जायेगा .
एक अंतिम किन्तु आवश्यक बात,अपनी जमा-पूंजी में से कुछ बच्चों को अवश्य दें इससे आपसी प्यार और विश्वास बढ़ेगा,परंतु अपने लिए एक ऐसी राशि अवश्य रखें जिसके सहारे आपका शेष जीवन सरलता से बीत जाये और बच्चों को भी यह आशा रहे कि सेवा करेंगे तो मेवा मिलेगा ...अन्यथा न लें,ऐसी सोच प्रायः देखने को मिलती है वैसे इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि हम अपने बच्चों पर भरोसा न करें .उनपर पूरा भरोसा रखें.आपसी सहयोग से चलें और यह तो कदापि न समझें कि अब तो जीवन थोड़ा ही बचा है काट लेंगे जैसे-तैसे यह सोचकर बैठे रहेंगे कि अब तो बस कुछ ही दिन जीना है यूँही काटलें,बुढ़ापे में कैसा घूमना और कैसा आनंद .तो जीवन सिमटकर और छोटा तथा कठिन हो जायेगा .
जीवन जीने के लिए है जियो जीभर के .

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