शनिवार, 25 अगस्त 2018

मेला - ममता कालिया

मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व पहुँच गईं चरनी मासी। पहले कभी उसके घर आई नहीं थीं। पर उन्होंने पता ठिकाना ढूँढ निकाला। अंकल चिप्स की छोटी-सी डायरी में उनके पोते के हाथ की टेढी-मेढी लिखावट में दर्ज था 'सत्य प्रकाश' २२७ मालवीय नगर इलाहाबाद। उनके साथ चमडे का एक बडा-सा थैला, बिस्तरबंद और कनस्तर उतरा। और उतरीं उन जैसी ही गोलमटोल उनकी सत्संगिन, प्रसन्नी।

स्टेशन से चौक के, रिक्शे वाले ने माँगे चार, मासी ने दे डाले पाँच रुपए। तीरथ पर आई हैं, किसी का दिल दुखी न हो। पुन्न कमा लें। इतनी ठंड में दो सवारी खींच कर लाया है रिक्शेवाला।

चाय पानी के बाद उनके लिए कमरे का एक कोना ठीक किया गया तो बोली 'रहने दे घन्टे भर बाद स्वामी जी के आश्रम में जाना है।'

सत्य ने कहा, ''थोडे दिन घर में रह लो मासी, वहाँ बड़ी ठंड है।''
''तीरथ करने निकली हैं, गृहस्थ विच नहीं रहना।''
''अच्छा मासी यह बताओ आप तीरथ पर क्यों निकली हो?"

''ले मैं क्या पहली बार निकली हूँ। सारे तीरथ कर डाले मैंने-हरद्वार, ऋषिकेश, बद्रीनाथ, केदारनाथ, पुष्करजी, गयाजी, नासिक, उज्जैन। बस प्रयाग का यह कुम्भ रह गया था, वह भी पूरन हो जाएगा।''

''मासी आप इतने तीरथ क्यों करतीं हो?''
''ले पाप जो धोने हुए।''
भानजे की आँखों में शरारत चमकी, ''कौन से पाप आपने ने किए हैं?' सत्ते (सत्य प्रकाश) मासी से सिर्फ़ छह साल छोटा था। नानके में उसका बचपन इसी मासी को छकाते, खिझाते बीता था।

चरनी मासी हँस पडीं, एकदम स्वच्छ दाँतों वाली भोली-भाली निष्पाप हँसी। जब वे निरुत्तर होने लगती हैं तो स्वामी जी की भाषा बोलने लगती हैं, ''पाप सिर्फ़ वही नहीं होता जो जानकर किया जाय। अनजाने भी पाप हो जाता है, उसी को धोने।''

अनजाने पाप में उनके स्वामी जी के अनुसार बुरा बोलना, बुरा देखना, बुरा सुनना जैसे गांधीवादी निषेध हैं।
सत्ते की पत्नी चारू साइंस की टीचर है। उसने कहा, ''मासी आप से भी तो लोग अनजाने में कभी बुरा बोले होंगे। जैसे जीरो से जीरो कट जाता है, पाप से पाप नहीं कट सकता क्या?''
''पाप से पाप और मैल ने मैल नहीं कटता। पाप की काट पुण्य है, जैसे मैल की काट साबुन।''
''मलमल धोऊँ दाग नहीं छूटे'' जैसे भजन के बारे में आप क्या सोचती हैं?''
''छोटे मोटे तीरथ पर यह मुश्किल आती होगी, प्रयाग का महाकुम्भ तो संसार में अनोखा है। तुम गरम पानी से नहाने वाले क्या जानो।'' मासी ने आर्यां दी हट्टी के लड्डुओं का पैकेट पीपे में से निकाला और चारू के हाथ में दिया और कहा,
''तीरथ अमित कोटि सम पावन।
नाम अखिल अध नसावन।''

चारु सोचने लगी 'दसियों बरस तो मैं इन्हें जानती हूँ, जगत मासी हैं ये। हर एक के दुख में कातर, सुख में शामिल! न किसी से बैर न द्वेष, पडोस में सबसे बोलचाल, रिश्तेदारों में मिलनसार, परिवार में आदरणीय, यहाँ तक कि बहुएँ भी कभी इनकी आलोचना नहीं करतीं। ऐसी प्यारी चरनी मासी कुम्भ पर कौन से पाप धोने आई हैं कि घर की सुविधा छोड वहाँ खुले में रहेंगी।''
पर मासी नहीं मानी। सूरज डूबने से पहले चली गईं।

पेशे से पत्रकार है सत्ते मगर दोस्तियाँ उसकी हर महकमें में है। इसलिए जब एस.पी. कुम्भ ने कहा, ''कवरेज'' आपके रिपोर्टर करते रहेंगे, एक दिन खुद आकर छटा तो देख जाएँ तो सबकी बाँछें खिल गईं। अभी मेला क्षेत्र में प्रवेश भी नहीं किया था सत्या और चारू ने कि मेले का समां नजर आने लगा। सोहबतिया बाग से संगम जाने वाले मार्ग पर भगवे रंग की एम्बैसडर गाडियाँ दौड रहीं थीं। पाँच सितारा आध्यात्म पेश करने वाले, विशाल जटाजूट धारण किए साधू संत, फकीर रंग बिरंगे यात्रियों के रेले में अलग नज़र आ रहे थे। दूर से संगम तट पर असंख्य बाँस बल्ली के चंदोवे तने हुए थे। कहीं रजाई में बैठे हुए भी ठिठुर रहे थे लोग, कहीं मेले में ठंडे कपडो में बूढे, जवान, अधेड स्त्री पुरुष और बच्चे एक धुन में चले जा रहे थे। सबसे अच्छा दृश्य था किसी टोले का सड़क पार करने का उपक्रम। सब एक दूसरे की धोती कुरते का छोर पकड़ कर रेलगाडी के डिब्बों की तरह चल रहे थे।

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