रविवार, 21 मई 2017

दिखावे की रस्म - धर्मेंन्द्र कुमार


आज घर में बड़ी चहल पहल थी  और हो भी क्यों न ! घर में मेहमान जो आने वाले थे, वो भी घर की बड़ी बेटी “तनु” को शादी के लिए दिखावे की रस्म अदायगी के लिए। साधारण परिवार में जन्मी तीन बच्चांे में सबसे बड़ी बेटी, एक कमरे का मकान जिसमे एक छोटा सा आँगन, पिता एक सामान्य सी नौकरी कर के घर का खर्च चलाते थे।
घर का माहौल खुशनुमा बना हुआ था। सब के मुख पर ताजगी देखते ही बनती थी। मम्मी खुश मगर सकुचाई जी नजर आती थी। पिता के चेहरे पर खुशी के मध्य में चिंता के भाव साफ नजर आते थे। उन सब के बीच कम बोलने और अपने संस्कारांे के प्रति सजग “तनु” के मन में रह रहकर हजारो सवाल उठ रहे थे। कुछ सूझ नही रहा था, मन बड़ा ही विचलित था ! तभी किसी ने बाहर से आकर खबर दी ३ मेहमान आ गए है ! छोटे से मकान में चहल कदमी बढ़ गई। सब इधर-उधर दौड़ने और व्यवस्था के सवारने में व्यस्त हो गए। जैसे ही मेहमानों ने घर के अंदर प्रवेश किया उनका जोरदार स्वागत किया गया !! बातचीत की रस्म अदायगी होने लगी।
कमरे के अंदर बैठी वो साधारण कन्या अभी भी खुद के सवालो में उलझी थी, मम्मी उसको समझा रही थी की मेहमानो के सामने कैसे व्यवहार करना चाहिए। जो जन्म से ही सुनती आ रही थी, मगर आज उससे मम्मी ने क्या-क्या कहा उसे कुछ मालूम नही था, वो तो खुद में ही उलझी थी।  अचानक दरवाजे से आवाज सुनाई दी ३..बेटी तनु३३३.!३. हाँ ,,,,, पापा सकुचाते हुए अचानक जबाब दिया ! तुम तैयार तो हो ना बेटी ! जी पापा ३..धीरे से बोली  पापा पास आकर बोले देखो बेटी  वो लोग आ गए है ! तुम्हे देखने और पसंद करने के लिए !!
मैंने अपनी तरफ से अच्छा धनी परिवार चुना हैै। लड़का सुशिक्षित और समझदार है। तेरा जीवन सदा खुशियांे से भरा हो। इससे ज्यादा और हमें क्या चाहिए, बाकि आखिरी फैसला अब तुम पर है जिसमें मेरा पूर्णतया समर्थन होगा .. कहते हुए पिता ने बेटी के सर पर दुलार से भरा हाथ फेरा .!!
पिता जी क्या मै कुछ पूछ सकती हूँ ?  सहसा तनु बोल पड़ी !
हाँ ३. हाँ बेटा पूछो सरल भाव से पिता ने जबाब दिया !
क्या धनवान लोग ही सुखी रह सकते है ! हम जैसे साधारण लोग सुखी जीवन नही जी सकते ! क्या धन दौलत का नाम ही खुशी है.?
पिता चुपचाप थे ! आज पहली बार बेटी ने उनसे खुलकर बात की थी .. वो अपनी बात कहते हुए बोलती जा रही थी !
ये देख दिखावे की रस्म का क्या अर्थ है ! क्या क्षण भर किसी को देख लेने से हम किसी के व्यक्तित्व को जान सकते है ?  मेरे कहने का तात्पर्य यह नही की मुझे इन लोगांे से या पैसे वालांे से शिकायत हैं मै तो बस यह कहना चाहती हूँ की मेरी खुशी धन दौलत में नहीं उन संस्कारो में है जो आज तक आप मुझे सिखाते आये हो ! मैंने आप ही से जाना हैं की व्यक्ति से ज्यादा अहम उसका व्यक्तित्व होता हैं।  अगर दो व्यक्तियों के विचारो में समानता हो तो इंसान हर हाल में खुश रह सकता है वरना अच्छा भला जीवन भी नरक की भेँट चढ़ जाता है।
पिता चुपचाप उसकी बातें सुन रहे थे। बातो में सच्चाई थी और हकीकत में जीवन का मूलमंत्र भी थी।
बेटी धारा प्रवाह बोलती जा रही थी  मानो उसके अंदर का सैलाब आज फूट पड़ा हो और वो उसमंे शब्दों के माध्यम से कतरा कतरा बह रही थी।
क्या दिखावे की रस्म का इतना बड़ा स्वांग रचकर ही हम एक दूजे के बारे में जान सकते है ! क्या इस तरह ही किसी के व्यक्तित्व, आचरण या जीवन शैली का आभास कर सकती हूँ ! मुझे स्वयं को लगता है, शायद नही !
आप यह न समझना की मेरे कहने का अर्थ इन सब का विरोध करना है, मै किसी भी सामाजिक क्रिया कलाप के विरोध में नही, और न ही मै प्रेम विवाह या, लिव-इन-रिलेशन में विश्वास रखती हूँ।
मेरे कहने का  आशय मात्र इतना है की किसी भी व्यवस्था को बदलने की नहीं उसमें समयानुसार परिवर्तन की आवश्यकता होती हैै।
जीवन कैसे जिया जाता है ये आपने मुझे अच्छे से सिखाया है। मै हर हाल में स्वंय को ढाल सकती हूँ। परिस्थिति सम हो या विषम दोनों से निपटना आपने अच्छे से सिखाया है।
इतना कहते हुए तनु रुंधे गले से अपने पिता से लिपट गयी। दोनों की आँखों में आंसुओ का सैलाब उमड़ पड़ा था। मम्मी मँुह पर हाथ रखे अपने स्वर को दबाये खड़ी थी, वो खुद को सँभालने में असहाय लग रही थी।
पिता ने रुआंसा होकर  बोले  बेटा आज मै कुछ नही कहूँगा !
मैं फैसला तुझ पर छोड़ता हूँ ! तेरी सहमति में हमारी सहमति है !
आँगन में बैठे मेहमान और परिवार गण शांत भाव से कान लगाकर उनकी बातंे सुन रहे थे। इतने में अचानक लड़का खड़ा होकर बोला ! माफ कीजियेगा  क्या मै कुछ बोल सकता हूँ ? इतना सुनकर सब सहम से गए  बेटी के पिता आवाज सुनकर बाहर आ गए और बोले  हाँ बेटा ! क्यों नहीं! कहिये आप क्या कहना चाहते है !
पिता जी! मुझे लड़की बिना देखे ही पसंद है ! अगर मै शादी करूँगा तो सिर्फ “तनु” से यदि वो अपनी सहमति प्रदान करेगी तब! वरना मैं आजीवन कुँवारा रहने की शपथ उठाता हूँ !! यह मेरा निजी फैसला हैं और मै समझता हूँ की इससे किसी को कोई आपत्ति नही होगी! यानि मेरे परिवार को भी मुझे इतनी आजादी देनी होगी!
लड़के का निर्भीक फैसला सुनकर सब अचंभित और अवाक थे। उसके माता पिता भी उसकी और ताकते रह गए ! किसी के भी तरकश में जैसे कोई शब्द बाण बचा ही नही था !
लड़के ने आगे बोला, मुझे जो देखना था वो देख लिया ..! मुझे धन दौलत या शारीरिक सुंदरता नही आत्मीय सुंदरता की आवश्यकता है। धन दौलत से तो मै बचपन से ही खेला हूँ, मगर जो सम्पत्ति आज मुझे तुन के विचारों से प्राप्त हुई है उस से मुझे आशा ही नही विश्वास हो उठा है की “एक तुम बदले दृ एक मै बदला” इसका मतलब “हम बदल गए” और जब हम बदले तो जग बदले या न बदले कम से कम अपनी आने वाली पीढ़ी को तो बदल ही सकते हैं! उसकी ये बाते सुनकर माहौल में हल्कापन आ गया !
अंदर ही अंदर कमरे में दीवार के सहारे खड़ी तनु ये सब सुनकर रोते-रोते मुस्कुरा रही थी ! और बाहर का शांत माहैेल फिर से खुशियांे की रफ्तार पकड़ चुका था !!


डरे नहीं, जब मां बनें


 सोसाईटी का एक बड़ा हिस्सा नैचुरल बर्थ के लिए जोर देता है लेकिन बहुत कम महिलाएं ही होती है  जोकि इसके लिए मानसिक और षारीरिक रूप से तैयार होती हैं।  बच्चे के जन्म के बारे में जानकारी की कमी होने के कारण भी महिलाएं नैचुरल बर्थ प्रक्रिया से डर जाती हैं।
गर्भवती महिलाएं अधिकतर बीमार महिला की तरह प्रतिक्रिया देती हैं जबकि गर्भवती होने का मतलब बीमार हो जाना नहीं हैं।  कभी कभी कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं जिसमें प्रसवपीडा के दौरान गर्भवती महिला की मौत हो जाती है। इस तरह की घटनाओं का असर गर्भवती महिला पर होता है और वह डर जाती हैं। इसलिए वह नैचुरल बर्थ प्रकिया के बजाय सी सेक्शन की ओर चली जाती हैं।  सी सेक्शन प्रक्रिया में बच्चे को जन्म के समय कष्ट होता है और महिलाएं भी पूरी जिंदगी इसके होने साईड इफेक्ट्स को झेलती रहती हैं।
चाईल्डबर्थ अवेयरनेस क्लासिस अटेंड करना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।  ऐसी अवेयरनेस क्लासिस होने वाली मां के लिए जितनी जरूरी हैं उतनी ही होने वाले पिता के लिए भी जरूरी हैं।  आज के पुरूष भी इस प्रक्रिया में योगदान देना चाहते हैं।  वह अपनी पत्नी के  सपोर्ट सिस्टम बनने की पूरी कोशिश करते हैं।  उसको समय-समय पर डाक्टर के पास ले जाते हैं।  उनके दिमाग में भी ढेरों  सवाल हैंे और इनके जवाब आॅनलाईन ढ़ूंढ़ने की कोशिश भी करते हैंें। प्रीनेटल क्लासिस अटंेड करने के बाद आप अपनी पत्नी की जरूरतों को अच्छे से समझ पाएंगें और यह भी जान पाएंगें कि एक पिता होने पर आपको क्या जिम्मेदारी निभानी है।
यदि आप प्रीनेटेल क्लासिस लेने की सोच रहे हैं तो अंत समय का इंतजार मत कीजिए।  इसके लिए सही समय पांचवें महीने से ही शुरू हो जाता है।
इन क्लासिस में आपको चाइल्ड बर्थ के बारे में ए टू जेड जानकारी दी जाती है। मसलन बेसिक व्यायाम, पेन रीलिफ थैरिपी, ब्रेस्ट फीडिंग जैसी जानकारियां।
इससे आप जानंेगें कि आपकी पत्नी की शारीरिक और मानसिक स्थिति क्या है।
सही खानपान, व्यायाम और स्ट्रेचिंग उसकी दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए।
आप उसकी व्यायाम में और रिलेक्स करने में भी मदद कर पाएंगें।
इन क्लासिस को अटेंड करने से आप ज्यादा वक्त अपनी पत्नी के साथ गुजार पाऐंगें।
इससे आप दोनों की बांडिंग और गहरी होगी और वह अपने डर भी आपके साथ शेयर कर पाएगी।
आपको यह कैसे पता लगेगा कि आपकी पत्नी लेबर पेन में है। उसके दर्द को कम करने में कैसे मदद कर सकतेेेे हैं।  यहां आपको यह भी बताया जाएगा कि आप क्या न करें और न कहें जबकि आपकी पत्नी दर्द में हो।
जो स्त्री पहली बार मां बन रही होती है वह बहुत डरी हुई भी होती है कि वह दर्द को कैसे सह पाएगी।  उनके लिए यह सब बहुत डरावना अनुभव होता है। इस समय उसे अपने साथी की साथ की उसके हौंसले की बहुत जरूरत होती है।  लेबर पेन का समय लंबा और इंतजार कराने वाला होता है। ऐसे में अपनी पत्नी का दर्द से ध्यान हटाने के लिए उसको बिजी रखने की कोशिश करें।  उसे म्यूजिक और बातों में उसका ध्यान बटाएं।
यदि बच्चे के दूध फंस जाए तो क्या करना चाहिए। नैपी बदलने का सही तरीका, बच्चे को कैसे उठाना है,  बच्चों के बिहेवियर और उनसे जुड़ी बातों की जानकारी दी जाती है।
यह क्लासिस अटेंड करने से आपको यह भी फायदा होगा कि आप अपने जैसे अन्य होने वाले पिताओं से भी मिलेंगें।
सवाल पूछने से शरमाएं नहीं बल्कि इस बात पर गर्व महसूस करें कि आप अपनी पत्नी के सपोर्ट सिस्टम बन रहे हैं।
आप इसलिए भी इन क्लासिस को ज्वाॅइन कीजिए क्योंकि आपकी पत्नी यह चाहती हैं कि आप उसके साथ हर कदम पर रहें।





























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