बुधवार, 12 सितंबर 2018

शुरू हाे गई गणेश उत्सव की तैयारी

 पेंटिंग- रिया राठाैड़
भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को शिवा कहते हैं. इस दिन किसी तीर्थ स्थान पर स्नान दान व्रत जप आदि सत्कर्म करना चाहिए, जो व्यक्ति ऐसा करता है उसको गणपति जी का सौ गुना अभीष्ट फल प्राप्त होता है ऐसा भविष्य पुराण में दिया गया है. इस दिन गणेश जी के साथ शिव जी और पार्वती जी का भी पूजन करना चाहिए. भारत में कुछ त्यौहार धार्मिक पहचान के साथ-साथ क्षेत्र विशेष की संस्कृति के परिचायक भी हैं. इन त्यौहारों में किसी न किसी रूप में प्रत्येक धर्म के लोग शामिल रहते हैं. जिस तरह पश्चिम बंगाल की दूर्गा पूजा आज पूरे देश में प्रचलित हो चुकी है उसी प्रकार महाराष्ट्र में धूमधाम से मनाई जाने वाली गणेश चतुर्थी का उत्सव भी पूरे देश में मनाया जाता है. गणेश चतुर्थी का यह उत्सव लगभग दस दिनों तक चलता है जिस कारण इसे गणेशोत्सव भी कहा जाता है.

भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेश का इसी दिन जन्म हुआ था. भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को सोमवार के दिन मध्याह्न काल में, स्वाति नक्षत्र और सिंह लग्न में हुआ था. इसलिए मध्याह्न काल में ही भगवान गणेश की पूजा की जाती है, इसे बेहद शुभ समय माना जाता है. भाद्रपद मास की गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी या सिद्धीविनायक चतुर्थी भी कहा जाता है. कुछ जगहों पर इसे पत्तर चौथ और कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन चंद्र दर्शन नहीं किया जाता. मान्यता है कि चंद्र दर्शन करने से इस दिन कलंक लगता है.

गणेश चतुर्थी मुहूर्त: गणेश जी का दिन बुधवार को माना गया है. इसलिए बुधवार के दिन घर में गणेश जी की प्रतिमा लाना अत्यंत शुभ माना गया है.





चतुर्थी तिथि प्रारम्भ: दिनांक 12 सितंबर दिन बुधवार को शाम 4:07 से चतुर्थी तिथि समाप्त: दिनांक 13 सितंबर दिन गुरूवार को दोपहर 2:51 बजे तक गणेश पूजन के लिए मुहूर्त: दिनांक 13 सितंबर दिन गुरूवार को सुबह 11:02 से 13:31तक गणेश जी की मूर्ति लाने का मुहूर्त: 1. दिनांक 12 सितम्बर दिन बुधवार को मध्याह्न 3:30 से सांयकाल 6:30 तक 2. दिनांक 13 सितम्बर दिन गुरुवार प्रातः 6:15- 8:05 तक तथा 10:50-11:30 तक

इस माह की चतुर्थी को गुड़, लवण (नमक) और घी का दान करना चाहिए. यह शुभ मान गया है और गुड़ के मालपुआ से ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए. इस दिन जो स्त्री अपने सास और ससुर को गुड़ के पूए खिलाती है वह गणेश जी के अनुग्रह से सौभाग्यवती होती है. पति की कामना करने वाली कन्या इस दिन विशेष रूप से व्रत करे और गणेश जी का पूजन करे. ऐसा शिवा चतुर्थी का विधान है.

शास्त्रों में भगवान श्रीगणेश का अभिषेक करने का विधान बताया गया है. जो व्यक्ति हर माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर भगवान श्रीगणेश का अभिषेक करता उसको विशेष लाभ और साथ ही धन लाभ भी होता है. जो हर चतुर्थी नहीं कर सकता वह इस दिन करे तो उसको उसी के बराबर फल की प्राप्ति होती. इस दिन आप शुद्ध जल में सुगन्धित द्रव्य या इत्र मिला करके श्रीगणेश का अभिषेक करें. साथ में गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ भी करें. बाद में लड्डुओं का भोग लगाएं.

शिव- पार्वती का मंगलगान है हरितालिका तीज

शिवपार्वती-पेंटिंग अंजलि लांबा
साल में चार बड़ी तीज आती हैं, जिनमें से हरियाली, कजली और हरतालिका तीज का काफी महत्व है। लेकिन इन तीनों में भी हरतालिका तीज को सबसे बड़ी माना जाता है। यह सभी तीज मुख्य रूप से सावन और भादो के महीने में आती हैं। इन दिन शादीशुदा महिलाएं अपने सुहाग के सौभाग्य और कुंवारी लड़कियां मनचाहे वर के लिए कठिन व्रत रखती हैं।
हरतालिका तीज का महत्वःपंडित हरदेव के मुताबिक हरतालिका तीज को सभी तीजों में सबसे महत्वपूर्ण और लाभदायक माना जाता है। यह तीज भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। हरतालिका तीज को बड़ी तीज व्रत भी कहा जाता है। इसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, राजस्थान और बिहार के क्षेत्रों में बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है। यह व्रत एक सूर्योदय से लेकर दूसरे सूर्योदय तक चलता है और रात में महिलाएं जागकर गौरी माता के गीत गाती हैं।

तीज पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा
तीज पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विशेष महत्व है। वास्तव में यह दिन माता पार्वती को समर्पित है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने तृतीया तिथि को ही भगवान शिव को पुनः प्राप्त किया था। मां पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लेकर माता सती ने घोर तपस्या के बाद भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था। इसलिए शादीशुदा महिलाएं इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करके पति की लंबी उम्र और सौभाग्य का वरदान मांगती हैं और कुंवारी लड़कियां मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए ये व्रत रखती हैं।

कुल्थी परांठा-गायित्री वर्धन

उत्तराखंड में एक पहाड़ी दाल काफी इस्तेमाल की जाती है जिसका नाम है गैथ या कुल्थी. इस दाल के भरवां पराठे भी बनाए जाते हैं जो खाने में बड़े ही स्वादिष्ट और पौष्टिक भी होते हैं. इस दाल को लेकर एक गढ़वाली कहावत है : "पुटगी पीठ म लग जैली" याने इस दाल को खाने वाले का पेट पीठ में लग जाएगा ( चर्बी नहीं चढ़ेगी ) कुल्थी की दाल के और भी नाम हैं जैसे - कुरथी, कुलथी, खरथी, गैथ या गराहट. अंग्रेजी में इसे हॉर्स ग्राम कहते हैं और इसका वानस्पतिक नाम है Macrotyloma Uniflorum. ज्यादातर पथरीली जमीन पर पैदा होने के कारण कुल्थी के पौधे का एक नाम पत्थरचट्टा भी है. संस्कृत में इस दाल का नाम कुलत्थिक है. दाल के दाने देखने में गोल और चपटे हैं और हलके भूरे चितकबरे रंग में हैं. हाथ लगाने से दाने चिकने से महसूस होते हैं

परांठा बनाने की विधि : चार परांठे बनाने के लिए 250 ग्राम गैथ साफ़ कर के रात को भिगो दें. सुबह उसी पानी में उबाल लें. दाल को ठंडा होने के बाद छाननी में निकाल लें. पानी निथरने के बाद दाल को मसल लें. इसमें बारीक कटा प्याज, हरी मिर्च, हरा धनिया और थोडा सा अदरक कद्दूकस कर के मिला लें. नमक स्वाद अनुसार डाल कर अच्छी तरह से मिला लें. तैयार पीठी से भरवां परांठा बना लें और देसी घी से सेक लें. गरम परांठे को चटनी और घी या मक्खन के साथ सर्व करेंभिगोई दाल के बचे हुए पानी में निम्बू निचोड़ कर सूप बना लें. सूप टेस्टी भी होता है और फायदेमंद भी. इस दाल के साथ राजमा भी मिला कर बनाई जा सकती है.

कुल्थी के गुण : इस दाल में खनिजों के अलावा प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट प्रचुर मात्रा में होता है. इस दाल को पथरी- तोड़ माना जाता है. दाल का पानी लगातार सेवन करने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी घुल कर निकलने लग जाती है. इस का एक सरल सा उपाय है की 15-20 ग्राम दाल को एक पाव पानी में रात को भिगो दिया जाए और सुबह खाली पेट पानी पी लिया जाए. उसी दाल में फिर पानी डाल दिया जाए और दोपहर को और फिर रात को पी लिया जाए. ये दाल इसी तरह दो दिन इस्तेमाल की जा सकती है. अन्यथा भी यह किसी और दाल की तरह पकाई जा सकती है. चूँकि ये गलने में समय लेती है इसलिए रात को भिगो कर रख देना अच्छा रहेगा. कुल्थी की दाल का पानी पीलिया के रोगी के लिए भी अच्छा माना गया है. ये दाल उत्तराखंड के अलावा दक्षिण भारत और आस पास के देशों में भी पाई जाती है
साभार-हर्षवर्धन जाेग

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