रविवार, 15 अप्रैल 2018

सिलेब्रिटी से मिलिए-नृत्य के बिना जीवन निष्प्राण है- सुनंदा नायर



 माेहिनीअट्टम जैसे पारंपरिक और शास्त्रीय नृत्य की वजह से से पूरी दुनिया में लाेकप्रिय सुनंदा नायर से आप सभी परिचित हैं। पिछले सप्ताह मैंने उनका एक साक्षात्कार लिया। पेश है उसी के अंश--
 सुनंदा जी बताएं नृत्य में सबसे खास क्या है.
 नृत्य में सबसे खास है भावभंगिमा, ताल और संयाेजन। यह तब ज्यादा अच्छे से हाे पाता है जब आपगीत के बाेल काे समझते हैं।
 आपने बहुत साे नृत्य सीखे हैं। मैं यह जानना चाहती हूं कि आपने शुरूआत कैसे की.
मैं एक मलयाली परिवार में पैदा हुई और छह साल की उम्र में मैंने पंडित दीपक मजूमदार से भरतनाट्यम की शिक्षा लेनी शुरू की। फिर कुछ साल बाद केरल के पारंपरिक नृत्य थियेटर में कथकली सीखने लगी। पं. मजूमदार से मैं भरतनाट्यम सीखती थी। उन्हीं की प्रेरणा से मैं मोहिनीअट्टम से जुड़ी। पं. मजूमदार जुहू (मुंबई) स्थित नालंदा नृत्य कला महाविद्यालय में नृत्य गुरू विदुषी कनक रैले जी से मोहिनीअट्टम सीखते थे। एक दिन उन्होंने मुझसे कहा कि तुम केरल की होकर भी अपनी शुद्ध नृत्य-कला क्यों नहीं सीखती? मैं समझ गई कि उनका इशारा मोहिनीअट्टम की तरफ था। मैं मोहिनीअट्टम सीखना चाहती थी लेकिन मन में यह आशंका भी थी कि कनक रैले जी मुझे शिष्या के रूप में स्वीकार करेंगी या नहीं। मैंने गुरूजी से पूछा-क्या वे मुझे सिखाएंगी? वे मुझे कनक रैले जी से मिलाने ले गए और सच कहूं तो उस दिन से मेरा जीवन बदल गया। मैंने भरतनाट्यम और कथकली सीखा जरूर था लेकिन उस वक्त तक नृत्य मेरी रुचि मात्र ही थी। कनक रैले जी की शिष्या बनना मेरे लिए एक बड़ा गौरव था। लेकिन तब भी मैं दो-तीन महीने इसी दुविधा में घिरी रही कि नृत्य मेरी रुचि मात्र है या मैं इसमें अपना भविष्य तलाश सकती हूं। आखिर मैंने तय किया, अब मोहिनीअट्टम ही मेरी जिंदगी है।...फिर मैं इसकी गहन लयात्मकता, सुकोमलता में डूबती चली गई।
माेहनी अट्टम में क्या खास है.
 मोहिनीअट्टम एक मादक नृत्य है। इसमें सिर्फ नायक-नायिका के विरह व्यथा की ही नहीं बल्कि उनके बेहद अंतरंग क्षणों की भी अभिव्यक्ति होती है। प्रस्तुति के दौरान मोहिनीअट्टम का वैशिष्ट्य साफ झलकता है। इसकी नृत्य-प्रस्तुति एक वृत्त के भीतर होती है। यह वृत्त बड़ी खूबसूरती के साथ नृत्यांगना के हर मूवमेंट के बीच एक सुंदर समन्वय स्थापित करता है।
नृत्य के लिए केरल खास क्याें है.
केरल में एक प्राचीन मंदिर है उसकी विशेषता नृत्य है। सदियों तक केरल के मंदिरों में देवदासियां इसे प्रस्तुत करती थीं। बाद में कई दशकों तक यह नृत्य उपेक्षित रहा। अब नई पीढ़ी केरल की पारंपरिक विरासत पर फिर से अपना ध्यान केंद्रित कर रही है। वैसे केरल के सामाजिक जीवन में नृत्य का बड़ा स्थान है। मैं साेचती हूं कि कृष्ण की बाललीला, रामायण की कथा जैसे लोकप्रिय प्रसंगों पर मोहिनीअट्टम की नृत्य-संरचना तैयार की जाए तो यह आम लोगों के बीच ही नहीं, बच्चों के बीच भी लोकप्रिय हो सकता है। तभी यह जनमानस तक पहुंचेगा।


पर्दे में रहने दाे पर्दा न उठाआे- अंतिमा सिंह



दोस्तों आज मैं आपसे कुछ ऐसी बाते शेयर कर रही हूं जिसमें आपकी सहमति और असहमति कुछ भी हाे सकती है। हाे सकत है मेरी बातें पुराने जमाने की लगे ... आजकल समाज मे आधुनिकता के नाम पर सब कुछ खुला होता जा रहा है कहीं सोशल मीडिया पर फिल्मी सितारे और हमारे युवा सैनेटरी पैड हाथ मे लेकर सेल्फी पोस्ट कर कर बहुत गर्व महसूस कर रहे है ..
कहीं टीवी पर न्यूज़ चैनल के बीच मे कंडोम के ऐड में उनके तरह तरह के फ्लेवर बता कर मॉडल अपनी बोल्डनेस का परिचय दे रही है ..
.कहीं सीरियल में हनीमून के अंतरंग दृश्यों को बच्चों के सामने परोसा जा रहा है कहीं रियलिटी शो में गर्लफ्रैंड को वैलेंटाइन डे पर कैसे प्रपोज़ किया जाए इसका लाइव प्रसारण हो रहा है ...
कहीं क्रिकेट के बीच मे कोकाकोला पी कर लड़कियों को इम्प्रेस करना दिखाया जा रहा है कहीं परफ्यूम के एड में बैडरूम के सीन को दिखाया जा रहा है ..

..क्या ये सब हमारे समाज के लिए सही है क्या इतना खुलापन हमारे बच्चों पर बुरा असर नही डालता आजकल के बच्चों का दिमाग वैसे भी पुराने जमाने के मुकाबले तेज़ चलता है हर घर मे टीवी , मोबाइल , लैपटॉप है ज्यादातर घरो में अनलिमिटेड इंटरनेट कनेक्शन और केबल टीवी उपलब्ध है हम अपने छोटे बच्चों को इससे दूर नही रख सकते...

पहले ज़माने में तो सिर्फ कुछ समय के लिए दूरदर्शन उपलब्ध होता था उसमें भी केवल ज्ञानवर्द्धक प्रोग्राम और सीरियल आते थे जिसमें बच्चों और बड़ो को केवल पारिवारिक बाते और संस्कार दिखाए जाते थे इसी कारण उस सदी में क्राइम का रेट कम रहा ...
हमारे मातापिता हमसे कुछ बाते छिपा कर रखते थे ऐसा नही की वो हमें ज्ञान से वंचित रखना चाहते थे ,बल्कि हमारे बड़ो का मानना था कि कुछ बाते पर्दे में ही रहनी चाहिए वक़्त आने पर और एक उम्र के बाद ही अगर ये बाते धीरे धीरे सामने आए तो ही समाज के लिए सही है
कुछ लोगो को पढ़कर लग सकता है कि मेरे विचार बहुत पुराने ख्यालो के है लेकिन दोस्तो कुछ बातें एक उम्र के बाद ही सामने लायी जाए तो हमारे लिए और समाज के लिए दोनो के लिए बेहतर है ...
आप ही बताइए क्या एक 4 या 5 साल के बच्चे को कॉन्डोम के बारे में जानना आधुनिकता है? एक 4 साल का बच्चा व्हिस्पर की एड देखकर सवाल करे कि मम्मी ये क्या है ? तो उसको बताना और समझना  मुश्किल होगा ।
अगर वो सैनिटरी पैड के साथ सेल्फी लेने को जिद करे या वो उसे पकड़कर खेले तो क्या ये आपको अच्छा लगेगा ? ...उसका बालमन अभी इतना विकसित नही हुआ कि उसे महिलाओं के पीरियड के बारे में ज्ञान दिया जाए ....
आजकल छोटे छोटे बच्चे टीवी या फिल्मों में अश्लीलता भरे विज्ञापन या गाने देखकर उनकी तरफ आकर्षित होते है क्योंकि उनके मन मे जिज्ञासा होती है कि ये सब क्या होता है तभी तो आजकल स्कूलों में भी 5 या 7 साल के बच्चे अपने ही उम्र के बच्चे के साथ यौन शोषण करते पाए गए है....
इसलिए इतना खुलापन हमारे समाज के बच्चो और युवा पीढ़ी को गलत दिशा की ओर ले जा रहा है इसी खुलेपन और आधुनिकता के कारण आजकल टीनएज लड़के लडकिया सेक्स की तरफ आकर्षित होकर अपनी जिंदगी से खिलवाड कर रहे है छोटी उम्र की लड़कियां गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन बेझिझक कर रही है ...
इतने खुलेपन और आजादी के कारण ही समाज मे एक संस्कार विहीन पीढ़ी तैयार हो रही है ...
ये सब आधुनिकता नही बल्कि हमारी संस्कृति और संस्कारो के साथ खिलवाड़ है ...
आप ही बताइए जब सब कुछ एक पर्दे में था तब समाज के लोग ज्यादा संस्कारी और रिश्तों को समझने वाले थे
या अब जब लोग हाथ मे कंडोम और व्हिस्पर के पैकेट लेकर सड़को और कॉलेज कैंपस में घूम रहे है ,सोशल मीडिया पर अपनी सेल्फी पोस्ट कर के मॉडर्न होने का दिखावा कर रहे है ...
जरूरी नही की ये सब बातें चिल्ला चिल्ला कर समाज के सामने लायी जाए इन सब बातों की जानकारी सही उम्र आने पर भी बताई जा सकती है जैसे उनकी उम्र के मुताबिक उनके सिलेबस में ऐसे टॉपिक को शामिल किया जाए, जिस प्रकार सरकार प्लस पोलियो कार्यक्रम चलाती है उसी प्रकार घर घर जाकर महिलाओं और बच्चीयों को मुफ्त सैनेटरी पैड दिए जाएं ..
गली मोहल्लों में मोबाइल वैन द्वारा मासिक धर्म और गर्भ निरोधक उपायों के बारे में शिक्षाप्रद लघु नाटिका दिखाई जाए ...
जब प्लस पोलियो जैसा बड़ा अभियान भारत मे सफलता से चलाया जा सकता है तो फिर मुफ्त सैनेटरी पैड योजना गांव और शहरों में क्यों नही सफलता से चलाई जा सकती ...
केवल आधुनिकता का दिखावा कर समाज के कुछ लोग अपनी पब्लिसिटी के लिए समाज मे अश्लीलता परोस रहे है अब ये आपको सोचना है कि आप के बच्चो के लिए क्या सही है अंत मे मै तो यही कहना चाहूंगी कि
" पर्दे में रहने दो परदा ना उठाओ .....
आपके सकरात्मक और नकरात्मक दोनों कॉमेंट का दिल से स्वागत है .

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