गुरुवार, 29 मार्च 2018

मेरे मन के भीतर भी- (यादाें में)- ब्रजेश वर्मा



मेरे मन के 
भीतर ,भी हाँ 
एक ,सितारा जलता है
दुनियां भर ,को 
छोड़ के ये बस ,एक 
किनारे चलता है

हँसता है 
रोता ,भी है 
कभी-कभी ,गाता भी है
मेरे मन के 
भीतर ,भी हाँ 
एक ,सितारा जलता है

है थोड़ा-सा ,आलसी 
जुगनू जैसे 
रोशन ,होता है

जितनी चाहिए ,रौशनी 
बस उतना ही 
जगमग होता है


मेरे मन के 
भीतर ,भी हाँ 
एक ,सितारा जलता है-२

कोयल की कु-कू 

भी सुनता ,शोर 
पपीहे वाले भी

रातों को है ,जागता 
तो दिन को 
सो ,भी लेता है 

मेरे मन के 
भीतर ,भी हाँ 
एक ,सितारा जलता है-२

क्रोध-ख़ुशी-दुःख भी है 
होता ,सब कुछ 
थोडा-थोडा सा 
कभी-कभी अभिव्यक्ति 
है देता ,सोच-समझ 
के थोडा-सा

मेरे मन के 
भीतर ,भी हाँ 
एक ,सितारा जलता है-२।

यहाँ ज़माने भर 
के गम भी 
थोड़े-थोड़े पलतें हैं
खुशियों के ,उन्मादों 
संग घुलमिल ,के 
वो रहते है


मेरे मन के 
भीतर ,भी हाँ 
एक .सितारा जलता है-२


कभी-कभी ,चंचल 
सा है ,कभी-कभी 
कुछ बूढा सा

मुझ जैसा ,ही है 
मुझसे अलग 
है ,स्वतंत्र मनमौजी-सा

मेरे मन के 
भीतर ,भी हाँ 
एक ,सितारा जलता है
दुनियां भर ,को 
छोड़ के ये बस ,एक 
किनारे चलता है

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