शुक्रवार, 11 मई 2018

HAPPY BIRTHDAY नृत्य नाटक और संगीत की देवी -मृणालिनी साराभाई

आज मृणालिनी साराभाई का 100 वां जन्मदिन  है। उनका जन्म 11 मई, 1918, केरल  में हुआ। 21 जनवरी, 2016, अहमदाबाद, गुजरात) में उन्हाेंने अंतिम सांस ली। वह भारत की प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना थीं। उन्हें 'अम्मा' के तौर पर जाना जाता था। शास्त्रीय नृत्य में उनके योगदान तथा उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया था।
  • अपने बचपन का अधिकांश समय मृणालिनी साराभाई ने स्विट्जरलैंड में बिताया। यहां 'डेलक्रूज स्‍कूल' से उन्‍होंने पश्चिमी तकनीक से नृत्‍य कलाएं सीखीं। उन्‍होंने शांति निकेतन से भी शिक्षा प्राप्‍त की थी।[1]
  • मृणालिनी साराभाई ने भारत लौटकर जानी-मानी नृत्‍यांगना मीनाक्षी सुंदरम पिल्लई से भरतनाट्यम का प्रशिक्षण लिया था और फिर दक्षिण भारतीय शास्त्रीय नृत्य और पौराणिक गुरु थाकाज़ी कुंचू कुरुप से कथकली के शास्त्रीय नृत्य-नाटक में प्रशिक्षण लिया।
  • उनके पति विक्रम साराभाई देश के सुप्रसिद्ध भौतिक वैज्ञानिक थे। उनकी बेटी मल्लिका साराभाई भी प्रसिद्ध नृत्यांगना और समाजसेवी हैं।
  • मृणालिनी की बड़ी बहन लक्ष्मी सहगल स्वतंत्रता सेनानी थीं। वे प्रसिद्ध क्रांतिकारी सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज की महिला सेना झांसी रेजीमेंट की कमांडर इन चीफ़ थीं।
  • भारत सरकार की ओर से मृणालिनी साराभाई को देश के प्रसिद्ध नागरिक सम्मान 'पद्मभूषण' और 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया था। 'यूनिवर्सिटी ऑफ़ ईस्ट एंगलिया', नॉविच यूके ने भी उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि दी थी। 'इंटरनेशनल डांस काउंसिल पेरिस' की ओर से उन्हें एग्जीक्यूटिव कमेटी के लिए भी नामित किया गया था।
  • प्रसिद्ध 'दर्पणा एकेडमी' की स्थापना मृणालिनी साराभाई ने की थी।

#मैंअपराजिताकहानीप्रतियाेगिता-कमलेश आहूजा

बचपन से पेंटर (चित्रकार ) बनने का सपना था. पर सबका मानना था कि,पेंटिंग हॉबी तक ठीक  है पर कैरियर के लिए नहीं.मन मार कर एम बीए कर लिया.फिर नौकरी की उसके बाद शादी हो गयी.फिर वही घर-गृहस्थी की जिम्मेवारियाँ.अपने मन के करने का कभी मौका ही नहीं मिला.धीरे धीरे मन से कुछ करने की इच्छा ही समाप्त हो गयी.लगता ही नहीं,कि मैंने कभी पेंटिंग प्रतियोगिताओं में इतने पुरुस्कार जीते थे.कैसे रंगों से कैनवास पर खेलती थी.जब चाहे जो भी रंग  भर देती थी..अपने ही द्वारा बनायी तस्वीर में. पेंटिंग कहीं सीखी नहीं थी बस अपनी कल्पनाओं से ही उन्हें साकार किया.
अब तो कुछ पेंटिग करने का सोचती तो लगता, कि ब्रश भी  ठीक से पकड़ना आयेगा या नही.?, रंगों का चयन व संयोजन सही तरीके से कर पाऊँगी या नहीं.?अपने ऊपर विश्वास तो जैसे रहा ही नहीं था.
अंधेरे में छोटे छोटे जुगनुओं को टिमटिमाते हुए देखा तो लगा,कि गहन अंधकार को दूर करने के लिए ये कैसे सतत प्रयत्नशील हैं अर्थात चमक रहें हैं.फिर मैंने क्यों हार मान ली.? मैं भी फिर से प्रयास करूँ तो अपने पेंटर बनने के सपने को पूरा कर सकती हूँ.जिम्मेवारियों का क्या.! वो तो मरते दम तक भी पूरी नहीं होती.
बस इसी सोच के साथ फिर से पेंटिंगस बनाना शुरू कर दिया.समय समय पर प्रतीक की मदद भी ली.रिया (विधायक) की मदद से शहर में होने वाली पेंटिग एक्सिबिशनस में मेरी पेंटिग्स को भी स्थान मिलने लगा.पेंटिग्स को लोग पसंद करने लगे और बड़े बड़े पुरुस्कार मिलने लगे.लोग मेरी बनायी हुई पेंटिंग्स को खरीदने लगे.धीरे- धीरे मेरी पेंटिग्स की माँग बड़ने लगी और मैं भी लोगों के बीच लोकप्रिय होने लगी.
आज मीना,रिया,संज्ञान व प्रतीक सभी मित्र घर आये.बातों ही बातों में मीना मुझसे कहने लगी- "अब तो तुम जानी मानी पेंटर बन गयी हो,मैं एक  कहानी तुम पर भी लिखना चाहती हूँ ".मैंने कहा- "हां क्यो नहीं..? जरूर लिखो और उसका शीर्षक रखना-"जुगनुओं सी चमक".क्योंकि जुगनुओं की इसी चमक ने मुझे फिर से अपने जीवन में रंग भरने की प्रेरणा दी.वरना मैंने तो अपनी ज़िंदगी बेरंग बना रखी थी.इसी चमक को देखकर मेरा खोया हुआ आत्मविश्वास पुनः लौट आया और मैं अपने पेंटर बनने के सपने को पूरा कर सकी.
इस मौके पर शायर संज्ञान कहाँ खामोश रहने वाले थे,एक शायरी उन्होंनें भी सुना ही दी...
       टूटने लगे हौंसला,तो ये याद रखना,
       बिना मेहनत के तख्तो-ताज नहीं मिलते.
       ढूंढ लेते हैं अंधेरों में मंज़िल अपनी,
       क्योंकि जुगनू कभी रोशनी के मोहताज                नही होते..!!

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