जब हम जीवन के बारे में बात करते हैं तो सोचते हैं कि मनुष्य ही मनुष्य से बात करता है एक दूसरे को समझता है। जबकि यह पूरी सच्चाई नहीं है। इंसान की भाषा पशु पक्षी और पेड़ पाैधें भी बहुत आसानी से समझते हैं। सिर्फ भाषा की ही नहीं वह मनुष्य की तरह हमारी स्मृतियाें का भी हिस्सा हाेते हैं। जैसे हम मनुष्य काे उसके नाम से पुकारते हैं ऐसा ही हम फूलाें और पाैधाें काे लेकर भी करते हैं। हमारी यादाें में वह अक्सर दस्तक देते हैं। अगर हम किसी पुराने शहर घर गांव में जाएं ताे सबसे पहले हमारी निगाहें उन पाैधों काे देखती हैं और मन ही मन दुलराती हैं। यदि वह पाैधें पेड़ वहां पर नहीं हाेते ताे हमारे भीतर एक रिक्तिता का अहसास हाेता है और अनायास हमारे मुँह से निकलता है कभी यहां आम का पेड़ हाेता था। या यह देखाे अमरूद का पेड़ अभी भी कितना फल देता है। यह कहकर जैसे हम उसके गले लग जाते हैं जैसे बरसाें बाद काेई मित्र मिला हो। बड़ी बड़ी इमारताें के बीच दबे पेड़ पाैधाें काे याद करते है। हमारी उम्र और साेच के साथ पेड़ पाैधाें के साथ हमारा तादात्मय और गहरा जाता है। उनके न खिलने पर हम उदास हाे जाते हैं और खिल जाने पर लगता है घर का शाेक दुःख और दरिद्र चला गया। अगर किसी के घर से काेई फूल ताेड़ लेता है ताे उसके संरक्षक काे बहुत बुरा लगता है।
आइए पौधाें काे अपने परवार का हिस्सा बनाएं। घर काे स्वस्थ बनाएं।