समय परीक्षाओं
या परिक्षाओं के परिणाम का है। कहीं विद्यार्थी और उनके माता -पिता संतुष्ट
है तो कहीं
माता-पिता अपने बच्चों से बेहद अंसतुष्ट। अपने
बच्चों को अच्छे से अच्छे स्कूल में एडमिशन
दिलवाने के लिए भी माता-पिता को कई तरह की प्रतियोगिताओं से गुजरना पड़ता
है, पैसा
जुटाना पड़ता है। वह सब कुछ करते हैं पर अपने बच्चों के लिए समय नहीं निकाल
पाते और
इसी का परिणाम है कि बच्चे परीक्षाओं मेें सब कुछ करने के बाद भी अच्छा
प्रदर्शन नहीं
करते । इसीलिए यदि बच्चों से असंतुष्ट है तो इसके कारण खुद से भी पूछने
चाहिए।
निश्चित तौर पर बच्चों को इस बात का अहसास करना चाहिए कि यह सब जो उनके लिए किया जा रहा है वह आसान नहीं है। बच्चों को यह अहसास होना बहुत जरूरी है कि मातापिता उनके विकास के लिए और अच्छे भविष्य के लिए कितना चिंतित हैं। हाल ही में एक खबर आई थी कि मैसूर में कक्षा 7 में पढऩे वाली एक बेटी जब अच्छे नंबर नहीं लाई तो नाराज पिता ने उसे मंदिर के सामने भीख मांगने की सजा दी। पिता ने पुलिस को बताया कि वह अपनी बेटी को जीवन की कठिनाइयों से रुबरु कराना चाहता था। लेकिन क्या ऐसी सजा कारगर है? निश्चित तौर पर नहीं। हमें अपने बच्चों को सजा की जगह समय देना उतना ही जरूरी है जितना शिक्षा के लिए पैसे का प्रबंधन करना।
निश्चित तौर पर बच्चों को इस बात का अहसास करना चाहिए कि यह सब जो उनके लिए किया जा रहा है वह आसान नहीं है। बच्चों को यह अहसास होना बहुत जरूरी है कि मातापिता उनके विकास के लिए और अच्छे भविष्य के लिए कितना चिंतित हैं। हाल ही में एक खबर आई थी कि मैसूर में कक्षा 7 में पढऩे वाली एक बेटी जब अच्छे नंबर नहीं लाई तो नाराज पिता ने उसे मंदिर के सामने भीख मांगने की सजा दी। पिता ने पुलिस को बताया कि वह अपनी बेटी को जीवन की कठिनाइयों से रुबरु कराना चाहता था। लेकिन क्या ऐसी सजा कारगर है? निश्चित तौर पर नहीं। हमें अपने बच्चों को सजा की जगह समय देना उतना ही जरूरी है जितना शिक्षा के लिए पैसे का प्रबंधन करना।