सोमवार, 16 अप्रैल 2018

#मैंअपराजिताकहानीप्रतियाेगिता - मंजू सिंह

हाँ सभी फ़र्ज़ पूरे हो गए | बच्चों को उनके पैरों पर खड़ा करने के लिए जितना कर सकी किया| सब के लिए बहुत जी मर ली | सभी ने तो अपनी ज़िन्दगी में जो चाहा वो किया | मैं ही कभी मन की नहीं कर पायी जब भी चाहा अपने लिए कुछ तब परिवार की कोई न कोई ज़िम्मेदारी पाँव की बेड़ी बन गयी | उदय भी तो मंझधार में छोड़ गए मुझे | वो भी ऐसे समय जब मुझे उनकी सबसे ज़्यादा ज़रुरत थी | उन्होंने भी तो मन की करने में कोई कसर नहीं छोड़ी | तब गए तो आज तक मुड कर नहीं देखा | न कभी मेरी न बच्चों की सोची | क्या पैसे से ही सारी ज़िम्मेदारियाँ पूरी हो जाती हैं ? क्या बच्चों की ज़िन्दगी में पिता की कोई अहमियत नहीं होती ? हे भगवान ये सब कहाँ से घूमने लगा दिमाग में ! नहीं अब और नहीं निभा दिन अपनी ज़िम्मेदारियाँ मैंने अकेले ही | उदय भी तो अपनी दुनिया अलग बसाये मस्त हैं | तो फिर मैं ही क्यों ? कल रात ही तो मुझे चमकते जुगनुओं ने राह दिखाई थी नयी | और आज यह सब | नहीं अब नहीं अब मुझे भी जीना है अपने लिए अपनी ख़ुशी के लिए अपने सपनों के लिए | मैंने अपने सर को एक ज़ोरदार झटका दिया मानों ऐसा करने से हर फालतू की बात को दिमाग से झटक कर दूर फेंक दूँगी | कोशिश ज़रूर करूंगी | शादी से पहले फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया था कितने अरमान थे कितने सपने थे कि मैं अपना लेबल लॉन्च करूंगी | लेकिन गृहस्थी में एक बार जकड़ी तो सब सपने धरे के धरे रह गए | अब करूंगी , ज़रूर करुँगी | किसी भी नयी शुरुआत के लिए कभी देर नहीं होती | और फिर रुझान तो मेरा कभी टूटा ही नहीं | इसी चक्कर में कंप्यूटर भी तो सीख लिया था मैंने |
       आज मेरी ज़िन्दगी कि नयी सुबह है | आज से ही नयी ज़िन्दगी कि आगाज़ होगा | सब कुछ बहुत आसान लग रहा था लेकिन अब सोच रही हूँ तो समझ ही नही आ रहा कि कौन सा सिरा कहाँ से पकड़ूँ | अरे हाँ याद आया ऋतु है न | हम दोनों ने एक साथ ही तो ट्रेनिंग ली थी | सोशल मीडिया पर तो उसके डिजाइन देखती ही रहती हूँ फोन नम्बर भी मिल जायेगा कॉल करती हूँ उसे | "हेलो " "कौन पुन्नो ? " उसने हेलो कहते ही मुझे पहचान लिया चार साल पहले ही मिली थी पर ज़्यादा बात नहीं होती थी | "वाह पहचान लिया" "कैसे नहीं पहचानती ,और बता आज इस नाचीज़ को कैसे याद किया ? तुझे तो कभी फुर्सत ही नहीं मिली अपने घर से " "क्या यार ताना मत मार अब छोटी उम्र में शादी हो गयी थी मेरी और फिर न चाहते हुए भी चार बच्चे | क्या करती दो बेटियों के बाद सबको बेटा चाहिए था | मेरी तो चलती ही नहीं थी तुझे पता है |" "हाँ पता है यार फिर तेरे ट्विन्स हो गए " "हम्म अब मैं फ्री हूँ सोच रही हूँ अपने शौक पूरे कर लूँ ।" "अरे वाह मेरी बिल्ली | चल फिर मिलते हैं किसी दिन ।" "किसी दिन क्या इसी संडे मिलते हैं ।" "चल ठीक है कनाट प्लेस मिलते हैं अपनी पुरानी जगह |" "डन,ओके बाय " ऋतु से बात करने के बाद जैसे मेरे सपनों को पंख लग गये । सोचा आज बुधवार है तब तक थोड़ा अपना हुलिया ठीक कर लूँ | ऋतु से मिलना है कहेगी क्या ओल्ड फैशन के कपडे पहने हैं फैशन डिज़ाइनर| हाहाहा | पार्लर भी जाना है | ऋतु से बात करके मैं नयी ऊर्जा से भर गयी थी झट से अपॉइंटमेंट ली और पार्लर गयी | अपना हेयर स्टाइल बदलवाया सबसे पहले नए स्टाइल के बाल अच्छे लगेंगे | फिर उन्हें कह दिया कि मेरा मेकओवर कर दो | मुझे खुद को नए रूप में देखना है | बस फिर क्या था उन्होंने मेरा रंग रूप ही बदल दिया | खुद को आईने में देखा तो देखती ही रह गयी | क्या मैं आज भी इतनी सुन्दर दिख सकती थी कभी सोचा क्यों नहीं मैंने !! अगला दिन मैंने शॉपिंग के लिए रखा | अपने लिए आज के फैशन के हिसाब से कपडे खरीदे | घर आकर सोचा यह सब तो हो गया अब थोड़ा लैपटॉप की सुध लेनी होगी खुद को आज के फैशन ट्रेंड से अपडेट तो कर लूँ न | बस संडे तक कैसे समय निकला पता भी नहीं चला | अपनी पुरानी जगह ठीक समय पर दोनों मिले | खाया पीया मस्ती की और पुराने दिन याद किये | दोस्तों की बातें भी कीं | फिर मुद्दे की बात शुरू की | "अच्छा बाकी छोड़ अब ये बता मैं अपना बिज़नेस कैसे शुरू करूँ ?" वह हंसने लगी और बोली, “ देख जल्दी मत कर इतनी | ऐसा कर पहले मेरे साथ ही आजा | काफी सालों से तू टच में नहीं है तो ठीक रहेगा | फिर कर लेना काम शुरू |” “ठीक है तो बता कब से आऊं ?” “कल से ही आजा |” अरे वाह कल से ही ? चल फिर कल ११ बजे मिलते हैं | घर आकर मैंने सपने बुनना शुरू कर दिया | सोचा नहीं था कि नयी ज़िन्दगी इतनी जल्दी शुरू हो जायेगी | अगले ही दिन से मेरी ठहरी हुई ज़िन्दगी में रवानी आ गयी | काम में मन लगा तो मैं सारे दुःख भूलने लगी | अब तो बस हंसी, ख़ुशी पार्टियों का दौर , मीटिंग्स यही सब रहने लगा | ऋतू के दोस्तों से भी मुलाकात होने लगी फ्रेंड सर्किल अच्छा हो गया | ऋतू के साथ मैंने भी ज़ुम्बा क्लास ज्वाइन कर ली |
       आह ! कहाँ दुखों में डूबी थी मैं ! मेरी ज़िन्दगी इतनी पास थी लेकिन कभी सोचा ही नहीं | सबकी ख़ुशी में ही बिता दिया जीवन | अभी उम्र ही क्या है | १८ की ही तो थी जब शादी हो गई थी | ५२ की उम्र भी कोई उम्र है निराश होने की | पार्टियां अटेंड करते करते ऋतू के और मेरे म्यूच्यूअल फ्रेंड अभिजीत से काफी बातें होने लगीं | वे भी मेरी ही तरह अकेले थे | बच्चे तो कभी थे ही नहीं उनके और पत्नी की असमय मृत्यु हो चुकी थी | एक दिन वे बोले "देखो हम दोनों ही उम्र के उस पड़ाव पर हैं जहाँ शारीरिक से ज़्यादा मानसिक रूप से किसी साथी की ज़रुरत होती है | " मैं समझ रही थी उनका मतलब "आगे आगे उम्र बढ़ेगी और आपस में हम एक दूसरे का दुःख भी बाँट सकेंगे | मन की बात कहने सुनने को कोई चाहिए होगा |" "आपकी बात समझ रही हूँ लेकिन बच्चे ----" "देखो बच्चे अपनी दुनिया में खोये हुए हैं | तुम कब तक अकेली रहोगी । अब अपने लिये सोचो । वैसे बात करके देखो ,आजकल के बच्चे बहुत प्रोग्रेसिव सोच के हैं | मेरे हिसाब से उन्हें कोई ऐतराज़ नहीं होगा |" " मुझे थोड़ा समय चाहिए | बच्चों से ज़रूर बात करूंगी तभी कोई फैसला लूंगी |" |"मुझे कोई जल्दी नहीं है और  तुम इंकार भी कर दोगी तो मुझे बुरा नहीं लगेगा |" मुलाकात के बाद घर लौटने पर मन में अजीब सी हलचल थी | एक अपराध बोध था मन में कि क्या इस उम्र में यह सब---फिर सोचा सारी ज़िन्दगी अकेले ही तो काट दी । उदय ने कब परवाह की मेरी। और फिर दुनिया दो चार दिन बोल कर चुप हो ही जायेगी । जानती हूं यह कोई छोटा कदम नहीं है लेकिन मेरे जुगनू अब भी मुझसे कुछ कह रहे हैं । बहुत सोच समझ कर मन में आया कि अपनी बेटियों से तो मैं बात कर ही सकती थी | मैंने चारों बच्चों को घर बुलाया | और अपनी बात कह डाली | आश्चर्य की बात है कि बेटियां खुश हो गयीं | मुझे लगता नहीं था कि वे मेरे लिए इतनी भावुक हो जाएँगी | पर बच्चे तो बच्चे होते हैं वे व्यस्त ज़रूर हैं पर मुझे बहुत प्यार करते हैं | " मां वी आर वैरी हैप्पी फॉर यू | गो अहेड |" मीना ने कहा | बेटे थोड़े झिझक रहे थे पर बहुओं ने हामी भर दी | सब खुश थे | और अगले ही महीने कोर्ट मेरिज की बात भी तय हो गयी | अभिजीत भी तैयार थे मैंने उन्हें बच्चों से मिलाया | शादी का दिन भी आया सभी बच्चे ऋतु और उसका परिवार और अभिजीत के परिवार के कुछ लोगों कि मौजूदगी में शादी हो गयी | सभी बच्चों ने मिलकर पार्टी अरेंज की | शादी के बाद जब सब चले गए तो बच्चों ने अभिजीत से कहा , “थैंक्यू पापा | सारा जीवन पापा के लिए तरसे अब आप मिल गए हैं | वी आर सो लक्की ! “ अभिजीत भी अपने लिए पहली बार पापा सम्बोधन सुनकर भावुक हो गए | और बच्चों को गले से लगा लिया | माहौल थोड़ा भारी हो गया था तो अभिजीत ने कहा, ”चलो अब मेरे फैशन हाउस को भी मालकिन मिल जायेगी | सब ने ठहाका लगाया |” मुझे आज अपने भीतर किसी तरह का अपराध बोध नहीं होना चाहिए आखिर उदय ने तो मुझे दुखों की आग में इतने बरस पहले झोंक ही दिया था न !
मुझे भी हक़ है , अपने हिस्से का एक मुट्ठी आस्मां मुझे भी तो चाहिए

बढ़ता जा रहा माइग्रेन का मर्ज- डा. दीपिका शर्मा


नव्या राजपूत 20 साल की हैं। दो साल पहले उन्हें हल्का सिर दर्द शुरू हुआ। लेकिन इन दो साल में यह दर्द अब असह्य हो चुका है। नव्या कहती हैं कि अब तो ऐसा लगता है जैसे कोई सिर में हथौड़े मार रहा हो। अक्सर यह दर्द कई घंटों रहता है और इस दौैरान उन्हें बुरी तरह चक्कर आते हैं। वह पसीने से तरबतर हो जाती हैं या फिर तेज ठंड लगने लगती है। इस दर्द से वह इतनी बेबस हो जाती हैं कि उन्हें लेटना पड़ता है। नव्या माइग्रेन की शिकार हैं।
पुरुषों की तुलना में महिलाएं माइग्रेन की ज्यादा शिकार हैं। माइग्रेन के अटैक के दौरान मरीज आवाज और रोशनी के प्रति अति संवेदनशील हो जाता है। मरीज की आंखों के सामने तेज रोशनी सी आती दिखती है तो कभी तारे चमकने लगते हैं। ऐसा लगता है जैसे चारों और तेज पटाखे फूट रहे हों। आंखों के सामने तरह-तरह की ज्यामितीय आकार बनने लगते हैं और वे अपनी तेज रोशनी और चकाचौंध से मरीज को हलकान कर देते हैं।
मरीज के इर्द-गिर्द चलने वाला यह तेज रोशनी और आवाज का खेल 20 मिनट से लेकर एक घंटे तक चल सकता है। इसमें मरीजों के लिए एक ब्लाइंड स्पॉट पैदा करता है और ऐसा लगता है कि उनकी आंखें हमेशा के लिए खराब हो जाएगी।
  माइग्रेन एक तरह का ब्रेन डिसऑर्डर हैजो सेरोटोनिन लेवल में उतार-चढ़ाव की वजह से पैदा होता है। माइग्रेन का अटैक कई कारणों से होता है। इनमें भोजन की कमीकिसी खास खाद्य पदार्थ के इस्तेमाल  मसलन चॉकलेटडेयरी प्रोडक्ट्सखट्टे फल या ऐसी चीजें जिनमें मोन्सोडियम ग्लूटामेट हो। मासिक धर्म से जुड़े हार्मोनल परिवर्तन की वजह सेमीनोपॉज के दौरान परिवर्तन से माइग्रेन हो सकता है। गर्भनिरोधक गोलियोंसोने में गड़बड़ीगर्दन या गले के दर्द या लगातार कंप्यूटर पर बैठ कर काम करने से माइग्रेन का दर्द पैदा हो सकता है। 
÷माइग्रेन का दर्द और इलाज
शुरुआती हल्के सिर दर्द में एस्पीरिन या पारासिटामोल इसे ज्यादा बढऩे से रोक सकती हैं। कुछ मामलों में एंटी माइग्रेन दवा सुमाट्रिप्टेन कारगर हो सकती है। चिकित्सकों का कहना है कि माइग्रेन के इलाज के लिए सिर्फ एक पद्धति पर निर्भर रहना जरूरी नहीं है। इसमें आयुर्वेदिकएलौपैथी और होम्योपैथीतीनों का इस्तेमाल किया जा सकता है।  योग और टहलने से भी फायदा होता है।

प्यारा रिश्ता सास बहू का- साेमा सुर

बेटी,बहू ,पत्नी और मॉ की जिम्मेदारियों को निभाने के बाद अब मेरी सास बनने की बारी है। बेटे ने अपने लिए जीवनसाथी ढूंढ ली है। सोचा था, उसके लिए लड़की मै ढूंढगी पर फिर मैने खुद को समझाया कि मै भी तो उसकी पसंद की ही लड़की ढूंढती। अच्छा है उसने ही चुन ली, वरना हमारे पड़ोसी शर्मा जी को अपने बेटे के लिए 2 साल तक लड़की ढूंढनी पड़ी थी। जब सुधा (हमारी होने वाली बहू) को पहली बार देखा तो बड़ी खुशी हुई कि मेरे बेटे ने इतनी अच्छी लड़की पसंद की। लेकिन ये खुशी थोड़ी देर मे ही काफूर हो गयी। मेरी बहन ने सुनते ही कहा," बस.... दीदी, सुंदर लड़कियाँ तो अपने रूप रंग के घमंड मे ही रहती है।" मैने कहा,"नही नहीं बहुत पढ़ी लिखी, MNC मे जॉब करने वाली है सुधा।" इतना सुनते ही वो बोली फिर तो दीदी आप को किचन से कभी छुट्टी नही मिलने वाली । सुधा को देखकर जितनी खुशी हुई थी बहन की बातो से ठंडी हो गई । फिर शुरू हुई शादी की  shopping। मेरा बेटा जिसने कभी अपनी शर्ट नही खरीदी थी, बड़े शौक से सुधा के कपड़े खरीदने लगा। मुझे बहुत अच्छा लगा, चलो जिम्मेदार हो रहा है मेरा बेटा । पर साथ मे गई मेरी बेटी ने हँसकर कहा," देखा मॉ, भाई को तो कभी हमारे लिए कपड़े लेने नही आये अब तो सुधा के complexion से match करके dresses ले रहा है।" अचानक ही मन उदास हो गया सच ही तो कह रही है बेटी ,जब भी shopping के लिए कहती तो वो हमेशा बहाने बना देता था । मै क्या करूँगा जा कर ? मेरे समझ नही आता। कितना time लगाते हो आप लोग । ये सारी बातें सुनने से अच्छा था कि मै अकेले ही चली जाया करती थी। और देखो तो अब कैसे कर रहा shopping, office से leave लेकर। बस अब तो रोज की बाते हो गयी जो भी सुनता बेटे की शादी होगी मेरे लिए उनकी आँखो मे तरस साफ दिख जाता । और सबकी बाते सुन सुन कर मेरे मन मे सुधा के लिए  प्यार से ज्यादा नफरत घर करने लगी । मुझे भी अब लगने लगा बहु मेरे बेटे को मुझसे दूर कर देगी । ये बाते मै किसी से कह नही पी रही थी क्योकि मन तो ये जानता था कि मै गलत हूँ । अब शादी को सिर्फ 2दिन बचे थे । करने को इतना काम था पर मन ही नही कर रहा था कुछ करने को।  शाम को बेटे ने आकर बताया मॉ सुधा बहुत upset है , मुझे कुछ बता नही रही आपसे बात करना चाहती  है। मैने कहा ठीक है । मै उससे मिलने चली गयी। उसने मेरे पैर छु़ये फिर गले से लिपट गई एक छोटे से बच्चे की तरह। काफ़ी देर तक इधर उधर की बाते करने के बाद वो बोली ,"मम्मी  जी मै बहुत परेशान हूँ । जो भी मिलता है वो डरा जाता है, सास ये कहेंगी, सास वो कहेंगी । सास को ये बात पसंद होगी सास को वो बात नापसंद होंगी । मुझे बहुत डर लग रहा है । मै तो आपकी बेटी बनकर आपके घर आना चाहती हूँ। जब मै गलती करूँ आप मुझे डाँटे । जब मै कुछ अच्छा करूँ आप खुश हो जाएं। जैसे मैं अपनी मॉ को हर बात बताती हूँ वैसे ही आपको भी बताऊँ  । मैने उसे आगे कुछ भी कहने नही दिया । उसका हाथ थामकर  कहा," बेटा ऐसा ही होगा। न तो तू मेरी बहु होगी ,न तो मै तेरी सास । तू एक मॉ के घर से दुसरे मॉ के पास आ रही है ।" वो फिर से मुझसे लिपट गई।  
घर वापस आते हुए मै सोच रही थी कि जैसा मेरे साथ हो रहा था वही सब सुधा के साथ भी हो रहा है। मेरे बेटे के पैदा होने  के बाद से ही मैंने सोच रखा था जो भी गलत मेरे साथ हुआ था वो मै अपनी बहू के साथ नही करूँगी पर  मै उसी रास्ते पर चलने लगी थी । हमारे हितैषी अनजाने ही पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो कर अपनी सोच हम पर थोप देते है। 
 कोई भी बहु घर तोड़ने का सोच कर शादी नही करती और न तो कोई सास, बहु को सताने को ही जीवन का ध्येय समझती है । हम पहले से ही अपनी सोच बना लेते है बहु है तो ऐसा ही करेगी , सास है तो ऐसा ही करेगी । फिर गलतफहमियों की वजह से वही सारी बातें सच  हो जाती है। पर मैने अपने आप से और सुधा से वादा किया है, मै गलतफहमियो की वजह से हमारे इस प्यारे से रिश्ते को खराब नही होने दूँगा । 
ये कहानी हर बहु और सास की है , क्या ये आपकी भी कहानी है ??? अगर है तो comments जरूर करे ।

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