ऊपर से एकदम सपाट सी दिखाई देने वाली सड़क
या फिर
पगडंडी या यूं ही कोई बेनाम सा मैदान
न हरियाली ना पेड़ एकदम सुनसान
नीरव शब्द ठीक नहीं होगा उसके लिए
ठीक उस जगह यकायक धंस गया मेरा पांव
देखा नीचे एकदम भुरभुरी थी जमीन
जैसे दीवार हो कोई जिसकी सीलन नहीं दिखाई देती
कोई कील भुरभुरा कर भीतर की रेत फर्श पर उड़ा
देती है।
धरती और दीवार पर टंगी कील जैसे एक
स्त्री में बदल जाती है वह स्त्री कोई और
नहीं मैं हूं
वेदना से मेरी चीख दुःख के बादल इक्ट्ठे करती है
बुदबुदाती हूं अभी ही यह सब होना था
अभी अभी ही तो मैंने एक सपना बुना था और बादलें में टांग देने की सोच रही थी
बादल जहां जहां उड़े मेरे सपने को भी लेते जाएं
जब और जहां बारिश होगी मेरा सपना भी
उस उस जगह पर अपनी हकीकत की दास्तान लिख आएगा
पर मेरा यह पांव
यह चरम वेदना ..दुःख.. नसों में खिंच
आया है
समय के साथ यह वेदना कम होगी.. दर्द भी कम होगा
दवा मरहम.. सब ठीक कर देंगे
कमोबेश ठीक कर ही देते हैं
पर यह उदासी जम गई है मिट्टी दरक गई है
दरक गई मिट्टी की परतों के साथ यह उदासी जम गई
है
जितना इसकी परतों को हटाती हूं यह और
ज्यादा जम जाती है
दीवार ...... दीवार
पर ठोकी गई कोई कील और मजबूत हथौड़ा
कुछ तो छूटा हुआ है...