सोमवार, 19 मार्च 2018

आे मेरी उदास पृथ्वी- केदार नाथ सिंह


घोड़े को चाहिए जई

फुलसुँघनी को फूल
टिटिहिरी को चमकता हुआ पानी
बिच्छू को विष
और मुझे ?

गाय को चाहिए बछड़ा
                                 बछड़े को दूध
                               दूध को कटोरा
                               कटोरे को चाँद
                                और मुझे ?

मुखौटे को चेहरा
चेहरे को छिपने की जगह
आँखों को आँखें
हाथों को हाथ
और मुझे ?

ओ मेरी घूमती हुई 
उदास पृथ्वी
मुझे सिर्फ़ तुम...
तुम...तुम...


डांस के दीवाने दिल की मानें- डा. अनुजा भट्ट


नृत्य एक आध्यात्मिक कला है जोकि हमारे अंर्तमन को जाग्रत करती है और साथ ही हमें पूर्णता देती है जिससे हमें यह एहसास होता है कि हम ईश्वर
की आराधना कर रहे हैं।
इसीलिए नृत्य को भगवान नटराज (शिवा) के साथ जोड़ा जाता है और पुरूषों द्वारा इसे पहले सिर्फ भगवान की आराधना की कला के रूप में अपनाया जाता था।  मुख्य रूप से नृत्यांगनाएं महिलाएं ही हुआ करती थी और अघोषित रूप से यह उनके लिए व्यवसाय का जरिया भी बन गया था।  हालांकि कुछ पुरूष नर्तक भी होते थे जोकि किसी बड़े घराने से ताल्लुक रखते थे और यक्षागणा/भागवता मेला कत्थकली और मयूरभंज जैसी नृत्य फार्म ही किया करते थे।
जब से ग्लोबिलाईजेशन हुआ है देश-विदेश के डांस फार्म भी पाॅपुलर हो रहे हैं तो इस क्षेत्र में भी कैरियर के आॅप्शन दिखाई दे रहे हैं।  ज्यादा से ज्यादा लड़के अब डांस सीख रहे हैं।  वह आत्मविश्वास के साथ नृत्य  को एक व्यवसाय के रूप में अपना रहे हैं।  इस नए ट्रेंड के साथ ही क्लासिकल और रीजनल डांस भी सेंटर स्टेज पर आ गए हैं। यह यंग आर्टिस्ट सिर्फ अपने रीजन में ही मशहूर नहीं हैं, यह विदेशों में जाकर भी परफाॅरमेंस देते हैं। इस ब्रिगेड में प्रमुख सत्यनारायण राजू कहते हैं, मेरे परिवार का आर्टस से कोई लेना देना नहीं हैं हम किसान परिवार से संबध रखते हैं। हमारे परिवार में कोई भी इस निर्णय से सहमत नहीं था कि मैं नृत्य को अपना व्यवसाय बनाऊं।  सिर्फ मेरी मां ने ही मेरे इस निर्णय में मेरा साथ दिया।  मैंने पढ़ाई छोड़ दी और फुल टाइम डांसर बनने का निर्णय लिया और इतने वर्षों की मेहनत के बाद आज मैं डांस टीचर भी बन गया हूं।  मेरे लिए सबसे बड़ी दुखःद बात यह है कि मेरी मां जोकि मेरी सबसे बड़ी सपोर्ट थी वही मुझे इस मुकाम पर पहुंचा हुआ देखने के लिए जिंदा नहीं रही।  दूसरी तरफ डा‐ एस‐ वासुदेवन अइनगर हैं जोकि बहुत सीनियर डांसर हैं। अपने परिवार की सर्पोट के साथ उन्होंने अपने पैशन नृत्य और गायन के सपने को पंख दिए।  उनकी गुरू वैजंयतीमाला की शिक्षा से उनकी प्रस्तुति में क्लासिकल प्योरिटी और पूर्णतः रिदम का समावेश हुआ।
अनिल अईर और मिथुन श्याम ने अपने पैशन को बहुत ही सहजता और सजगता के साथ निभाया।  मिथुन श्याम डांस में अपनी क्रियेटिविटी और इम्प्रोवाईजेशन के लिए जाने जाते हैं किस्सा सुनाते हुए वह कहते हैं कि वह अपनी बहन को डांस क्लास छोड़ने जाते थे उसी से उनके अंदर भी इसे सीखने की इच्छा जगी।  मेरे पेरेंट्स ने भी इसका विरोध नहीं किया।  मैं एक अमेरिकन कपंनी में नाईट शिफ्ट में नौकरी करता था ताकि दिन में मैं डांस कर सकूं।  लेकिन अब मैं अपना पूरा समय डांस को ही देता हूं।  मैंने अपनी सेविंग को और अपने डांस प्रोफेशन को ऐसा मैनेज किया है कि किसी भी समय पर मुझे पैसों की दिक्कत न हो।  मैं डांस क्लासिस चलाता हूं और प्रोग्राम भी करता हूं।  मैं एक एक्टिव परर्फामर हूं। मेरे डांस स्कूल में 25 लड़के डांस सीखते हैं।
अनिल अय्यर पेशे से एक साईकोलोजिस्ट है और पैशन से डांसर, अब उनकी सुनिए, उनके पिता ने उन्हें हर कदम पर प्रोत्साहित किया।  वह खुद आर्टिस्ट नहीं है लेकिन वह म्यूजिक और डांस परर्फामेंस देखने के शौकीन थे और मैं उनके साथ बचपन से ही जाता था।  इससे मेरे अंदर डांस सीखने की ललक जागना स्वाभाविक ही था।  यह आजकल अपना डांस स्कूल चला रहे हैं साथ में अपनी प्राइवेट प्रेक्टिस भी कर रहे हैं।  पाश्र्वनाथ उपाध्याय की मां ने उन्हें डांस सीखने इसलिए डाला क्योंकि उनको बेटी नहीं थी और वह उस कमी को पूरा करना चाहती थीं। उन्होंने यह कभी नहीं सोचा था कि वह डांस को अपना प्रोफेशन बनाएंगें।  वह बताते हैं कि उन्होंने अपने वैल्यूज से कभी भी काम्प्रोमाईज नहीं किया। आज उनकी खुद की एक डांस कंपनी हैं जिसमें उनके साथ पांच मेल डांसर हैं जोकि मिलकर काम करते हैं।
तो इस तरह से हम कह सकते हैं कि दुनिया बदल रही है, लड़के हों या लड़कियंा उनकी रूचियां उनका पैशन और फिर टेलेंट बनकर स्टेज में दर्शकों की तालियां बटोर रहा है और एवज में उनकी अच्छी खासी कमाई भी हो रही है।






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