रविवार, 23 सितंबर 2018

चाय के साथ फैशन की जुगलबंदी- डा. अनुजा भट्ट

लोककलाओं का विशेष महत्व हैं। इस दौर में फैशन और फिल्म से जुड़े हर व्यक्ति की निगाहें लोककला को लेकर बेहद संजीदा है। और जब बात अपने देश की हो तो यह तो वैसे भी अपनी विविध संस्कृतियों के लिए जाना जाता है। अलग अलग पहनावा, आभूषण, खान पान, संगीत, भाषा का अद्भुत समागम हमें सबसे जोड़कर रखता है। समय समय पर बनने वाली क्षेत्रीय फिल्में, रंगमंच, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सिनेमा इसे फैशन के साथ जोड़कर पूरी दुनिया के लिए सहज सुलभ बना देते हैं। सिने तारिक प्रियंका चोपड़ा जब असम घूमने गई तो उन्होंने वहीं का परंपरागत परिधान मेखला-चादर पहना और वहीं के पारंपरिक आभूषण भी पहने। उनकी यह तस्वीर सोशल मीडिया पर छाई रही। यह देखकर यह जानना मुझे दिलचस्प लगा कि आखिरकार असम का फैशन ट्रेंड क्या है। किस तरह के परिधानों की मांग है और आभूषणों की क्या- क्या खास विशेषताएं हैं। वैसे तो असम अपनी संस्कृति , पारंपरिक नृत्य बिहू और अनेक कलाओं के लिए प्रसिद्ध है, परंतु इसकी अनोखी वस्त्र कला लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। असम का रेशमी कपड़ा तो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है जिसे मूंगा सिल्क के नाम से जाना जाता है।

जब से साड़ी पहनने के तोर तरीके में बदलाव आया है तब से यह युवाओं के आकर्षण का केंद्र भी बन गया है। आज साड़ी कई तरह के पहनी जा रही है। भारत में तो वैसे भी साड़ी कई तरह से पहनी जाती रही हैं पर अब इसे पहनने का अंदाज परंपरा से एकदम जुदा है। कहीं यह लैगिंग के साथ ते कहीं सलवार और जींस के साथ पहली जा रही रही है। साड़ी का हर अंदाज बहुत खूबसूरत है। यह एक ऐसा भारतीय वस्त्र है, जिसे हर कद-काठी की महिला बड़ी ही सहजता से पहन सकती है और ख़ूबसूरत लग सकती है।

असम की साड़ी पहनने का भी अंदाज अपने आप में अलग है। इसमें पल्लू अलग से होता है जिसे चादर कहते हैं। मेखला को साया यानी पेटीकोट के साथ पहना जाता है और साड़ी की ही तरह प्लेट्स यानी चुन्नटें डाली जाती हैं। पर इसके पल्लू को इसके साथ जेड़ना पड़ता है। आइए जानते हैं इस २-पीस साड़ी के विषय में कुछ विशेष तथ्य।

इस पारंपरिक साड़ी को विशेषकर रेशमी धागों से बुना जाता है, हालांकि कभी कभी हमे यह साड़ी कपास के धागों से बुनी हुई भी मिल सकती है, तो कभी कभी इसे कृत्रिम रेशों से भी बुना जाता है। इस साड़ी पर बनी हुई विशेष आकृतियाँ (डिज़ाइन्स) को केवल पारंपरिक तरीक़ों से ही बुना जाता है, तो कभी कभी मेखला और चादर के छोर पर सिला जाता है। इस पूरी साड़ी के तीन अलग अलग हिस्से होते हैं, ऊपरी हिस्से के पहनावे को चादर और निचले हिस्से के पहनावे को मेखला कहते हैं। “मेखला” को कमर के चारों ओर लपेटा जाता है। “चादर” की लंबाई पारंपरिक रोज़मर्रा में पहने जाने वाली साड़ी की तुलना में कम ही होती है। चादर साड़ी के पल्लू की तरह ही होती है, जिसे मेखला के अगल-बगल में लपेटा जाता है। इस २-पीस साड़ी को एक ब्लाउज़ के साथ पहना जाता है। एक विशेष तथ्य यह भी है, कि मेखला को कमर पर लपेटते वक़्त उसे बहुत से चुन्नटों(प्लीट्स) में सहेजा जाता है और कमर में खोंस लिया जाता है। परंतु, पारंपरिक साड़ी पहनने के तरीक़े के विपरीत, जिसमें चुन्नटों को बाएँ ओर सहेजा जाता है, मेखला की चुन्नटों को दायीं ओर सहेजा जाता है।

फैशन डिजाइनर नंदिनी बरूआ कहती हैं कि वैसे तो यह पारंपरिक २-पीस साड़ी आज भी आसाम के हर छोर में पहनी जाती है पर जब से यह फैशन वीक जैसे कार्यक्रमों का हिस्सा बनी इसकी मांग बढ़ गई है। अब इसमें विभन्न तरह के रंगों और रेशों का प्रयोग किया जा रहा है। सूती और सिल्क के कपड़े के अलावा अब और भी तरह के कपड़ों का प्रयोग हम कर रहे हैं। स्थानीय रेशमी धागों के अलावा बनारसी रेशम, कांजीवरम और शिफॉन के रेशों का भी प्रयोग भी आज कल होने लगा है। जोर्जेट,क्रेप, शिफॉन से बनी २- पीस साड़ियों के अत्यधिक चलन की वजह यह है कि यह पहनने में हल्के होते हैं साथ ही इनकी कीमत भी कम होती है।

सिर्फ साड़ी ही नहीं अब बुनकरों द्रारा तैयार किए गए परंपरागत कपड़ों से आधुनिक परिधान भी बनाए जा रहे हैं जिसमें स्कर्ट से लेकर गाउन, जैकेट, सलवार सूट, फ्राक शामिल है। अंतर इतना है कि इसके मोटिफ एकदम पारंपरिक है। यही इसकी अलग पहचान है।

परिधान हों और उसके साथ आभूषण न हों तो सारी सजधज का मजा किरकिरा हो जाता है इसलिए यदि आप असम के फैशन को अपना रहे हैं तो साथ में वहीं के परंपरागत लेकिन आधुनिक आभूषण पहनें।

असम में स्वर्ण आभूषणों की एक मनमोहक परंपरा रही है। असमी आभूषणों में वहां की प्रकृति, प्राणी और वन्य जीवन के अलावा सांगीतिक वाद्यों से भी प्रेरणा ग्रहण की जाती है। गमखारु एक प्रकार की चूडियां होती हैं जिनपर स्वर्ण का पॉलिश होता है और खूबसूरत फूलों के डिजाईन होते हैं। मोताबिरी एक ड्रम के आकार का नेकलेस होता है जिसे पहले पुरुषों द्वारा पहना जाता था लेकिन अब इसे स्त्रियां भी पहनती है। असम के उत्कृष्ट स्वर्ण आभूषणों की कारीगरी मुख्य रूप से जोरहाट जिले के करोंगा क्षेत्र में होती है, जहां प्राचीन खानदानों के कुशल कलाकार के वंशजों की दुकानें है. यह जानना रोचक है कि असम के आभूषण पूरी तरह हस्तनिर्मित होते हैं, भले ही वे स्वर्ण के हों या अन्य धातुओं के. यहाँ के पारंपरिक आभूषणों में डुगडुगी, बेना, जेठीपोटई, जापी, खिलिखा, धुल, और लोकापारो उल्लेखनीय हैं. ये आभूषण प्रायः 24 कैरट स्वर्ण से बनाए जाते है।
कंठहार – गले में पहनने वाले हार की विस्तृत श्रृंखला यहां मिलेगी जिसके अगल अलग नाम है। हर नाम की अपनी एक खास विशेषता है। हार को मोती की माला में पिरोया जाता है। यह महीन मोती काला, लाल, हरा, नीला,सफेद जैसे कई रंगां मे उपलब्ध है। बेना, बीरी मोणी, सत्सोरी, मुकुट मोणी, गजरा, सिलिखा मोणी, पोआलमोणी, और मगरदाना जैसे नाम कंठहार के लिए ही है।

अंगूठी-इसी तरह अंगूठी के भी कई नाम हैं। जैसे- होरिन्सकुआ, सेनपाता, जेठीनेजिया, बखारपाता, आदि।

कंगन- गमखारुस, मगरमुरिआ खारु, संचारुआ खारु, बाला, और गोटा खारु. शादी ब्याह में पहने जाने वाले खास वैवाहिक आभूषणों के नाम हैं

ठुरिया, मुठी-खारु, डूग-डोगी, लोका-पारो, करूमोणी, जोनबीरी, ढोलबीरी, गाम-खारु, करू, बाना, और गल-पाता।

असम का एक सबसे प्रचलित और उल्लेखनीय आभूषण है, कोपो फूल (कर्णफूल). इसकी बनावट ऑर्किड से मिलती-जुलती है, जबकि इसका बाहरी भाग दो संयुक्त छोटी जूतियों के आकार का होता है, जिसकी बनावट फूलों जैसी होती है। गामखारु, गोलपोटा और थुरिया सबसे मंहगे आभूषण माने जाते हैं।

संक्षेप में कहें तो असम के फैशन में अभी भी वहां की लोककला के गूंज सुनाई देती है। ढोलक और वीणा के स्वर के साथ तालमेल बिठाती आभूषण की खनक भी सुनाई देती है। कृषि के औजारों को आभूषण के डिजाइन में ढालना और संगीत से सुर में बांध देना यही है असम का फैशन...
मेरा यह लेख आज के जनसत्ता में प्रकाशित है
लिंक
http://epaper.jansatta.com/1827968/लखनऊ/23-September-2018#page/16/1


जीवन में लाएगा बदलाव यह दाे अक्षर का शब्द- दर्शना बांठिया

कहते है क्षमा मांगने वाले से बड़ा क्षमा करने वाला होता है।
क्षमा वाणी के दिन हम सब से क्षमा मांगते है ,पर वास्तव में क्षमा क्या है ......इससे ही व्यक्ति अनजान रहता है ।
क्षमा मेरे नजरिए से क्या है :-
क्या है क्षमा......?
किसी दूसरे की गलतियों की लगी धूल को अपने दिल की परत से साफ कर देना...।
या किसी पराये द्वारा भी की गयी भूल को हंस कर टाल देना और उसे भी अपना बना लेना
क्या है क्षमा .......?
अपने मन में किसी कारण वश भरे हुए गुबार को निकाल कर हल्के और आनंदित हो जाना।
या अपने अंदर पैदा हुयी अंहकार की आग को,विनम्रता रुपी जल से धो डालना।।
क्या है क्षमा........?
किसी बड़े द्वारा दिये हुये अपमान के घूंट को ये सोचकर जी जाना कि वो आपसे बडे़ है ,और किसी छोटे द्वारा की गयी उद्दण्डता को नजरअंदाज कर अपने बड़प्पन को साबित करना।।

कहने को तो सिर्फ दो अक्षर का ये शब्द है ,पर अगर इसे गहराई से समझ लिया जाये और जीवन में उतारने का प्रयास कर लिया जाये तो इंसान अपने मनोवैज्ञानिक स्तर को बहुत ऊपर उठा सकता है ,न जाने कितने अपराध होने से पहले ही रूक सकते है,न जाने कितने टूटे रिश्तें फिर से जुड़ सकते है।।
तो आइए इस बार हम सभी से हृदय से वास्तविक क्षमा याचना करते है।

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