बुधवार, 19 अप्रैल 2017

आंखों की न करें अनदेखी


हमारी आंखें विट्रीयस जेल से 80 प्रतिशत तक भरी होती है और इसी से आंख की शेप भी बनती है। जब यह जेल कम होकर  सिकुड़ने लगता  है तब रेटीना के अंदर शैडो आने लगती है। इसी स्थिति को फ्लोटर्स कहते हैं।  यदि इसकी  ओर ध्यान नहीं दिया जाए तो यह समस्या बढ़ सकती है जिसके कारण रैटीना तक डिटैच हो सकता है, अंधापन भी आ सकता हैं।  इसलिए आंखो की नियमित जांच जरूरी है।
फ्लोटर्स में आंखो में मकड़ी के जाले बनने लग जाते हैं या फिर धंुधले से स्पाॅट या धागे जैसे पतली लाइन तैरने लग जाती है।  यह धागे या स्पाॅट आंखों में तैरते रहते है। जिस तरफ आप देखते हैं यह भी उसी ओर हो जाते हैं।
 शुरूआत में लोग इसे इग्नोर करते हैं और तब तक इस पर ध्यान नहीं देते जब तक कि वह नजर में परेशानी पैदा करना शुरू नहीं कर देते।    इनका एहसास तब ज्यादा होता है जब आप कुछ चमकदार चीज की ओर देखते हैं जैेसे कि वाइट पेपर या ब्लू स्काई ।  इसके होने से और भी कुछ परेशानियां हो सकती हैं जैसेकि इन्फेक्शन, जलन, रेटिनल टियर्स या आंखों में चोट।
यह उम्र बढ़ने के साथ साथ भी होने लगता है और फिर धीरे धीरे आंख के निचले हिस्से में सेटल हो जाता है और कम तकलीफ देता है लेकिन पूरी तौर पर नहीं जाता है।  उन लोगों को भी यह समस्या हो सकती है जिनकी पास की नजर कमजोर हो, डायबिटीज हो या फिर मोतियाबिंद का आपरेशन हुआ हो। फ्लोटर्स यंग ऐज में भी हो सकते हैं यदि आपकी पास की नजर कमजोर है, सिर में चोट लगी हो या आंख का आपरेशन हुआ हो।
 जिन लोगों को फ्लोटर्स की समस्या हैं उन्हें किसी भी तरह के इलाज कराने की सलाह नहीं दी जाती।  बहुत ही कम केसिस में ऐसा होता है कि फ्लोटर्स इतने बढ़ जाते हैं कि दिखाई देने में परेशानी होने लगती है ऐसी स्थिति में सर्जिकल प्रोसेस विट्रोकोमी करके जेल के स्थान पर साल्ट साल्यूशन डाला जाता है। क्योंकि विट्रोयिस में ज्यादा पानी जैसा ही होता है इसलिए साल्ट साल्यूशन डालने से किसी भी तरह से अलग से पता नहीं चलता।  इसका आॅपरेशन करने की डाक्टर सलाह नहीं देते क्योंकि इसके साथ बहुत से रिस्क जुड़े हुए होते हैं।



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