रविवार, 25 मार्च 2018

नहीं जाएंगे हम आेल्ड एज हाेम- डा. अनुजा भट्ट


उम्र है तो चेहरे पर झुर्रिया आना, हाथ पैरों का उस तरह न चल पाना, कंपकंपी होना, घबराहट होना, समय का तकाजा है। पर चाहे आपकी उम्र तेजी से अपनी सीढ़ियां चढ़ने लगे अौर आपको लगे कि अब बस पता नहीं कितने दिन शेष हैं तो बस इस उदासी को घर के बाहर ही छोड़ आइए अौर जिंदगी के हर पल का आनंद लीजिए। आज मैं आपको मिलवाती हूं एक ऐसे समूहों से जिसने सबसे पहले अपनी सोसायटी में अपनी उम्र के साथियों को खोजा अौर उसके बाद अपना एक समूह बनाया। मेट्रोपालियन सिटी में आजकल इस तरह क¢ समूह बहुत तेजी से बन रहा है। इसकी कई वजहें हैं- अकेले पड़ जाते हैं बुजुर्ग घर में सब सुबह सुबह अपने काम पर निकल जाते हैं बच्चे अपने स्कूल। घर में रह जाते हैं बुजुर्ग। आखिर कितना टीवी देखें। आंखे भी तो उतना काम नहीं करती। रिश्तेदारों का आना जाना नहीं के बराबर है। नौकरी के बाद यह अकलेलापन सालने लगता है। क्या किया जाए? फिर भी कुछ हिम्मती महिलाएं छोटा मोटा बिजनेस करने लगती हैं। घरेलू मेड की सहायता से अचार पापड़ जैसे काम वह सहजता से कर लेती है पर बिना सहायक के यह संभव नहीं। कुछ होम बिजनेस से जुड़ जाती हैं जिनको प्रोडक्ट का आर्डर करना होता है। जो लोग आडर देते हैं वह खुद सामान ले जाते हैं। पर यह सब काम वह इसलिए करती हैं ताकि अकेलेलापन न लगे। कभी सामान लेने के लिए ही सही कोई आएगा। दो चार पल बात हो पाएगी। किससे बात करें घर में उनकी बातें सुनने वाला कोई नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि बच्चे पेरेंट्स को इग्नोर करना चाहते हैं या उनका उनसे कोई लगाव नहीं है। वह भी अपने समय को पकड़ना चाहते हैं। हम सब जानते हैं कि समय की गति पहले से बहुत तेज हैं। अौर हर पीढ़ी को अपने समय के हिसाब से चलना पड़ता है। बनाया अपना समूह यह सब देखकर उन्होंने अपना समूह बनाया। हर महीने कुछ मामूली पैसे इक्ट्ठे किए ताकि गेट डब गेदर किया जा सकेंगे। सोसायटी के क्लब हाउस में एक टेबल अपने लिए रिजर्व की अौर की मन भर बातें। याद किया अपना समय। खाया पिया, अंताक्षरी की,गेम खेले एक दूसरे का हाल चाल जाना। सबने एक दूसरे से नंबर लिए अौर अपना वाट्सएप ग्रुप बनाया। अपने मन की बातें शेयर की, चुतकुले भेजे या फि कोई संदेश। इस तरह जिंदगी ने रफ्तार पकड़ ली। फिर बना पिकनिक का कार्यक्रम सब मिले तो फिर घूमने, फिल्म देखने, अपने मन का पहनने ओड़ने के दिन आ गए। बेवजह जो चिड़चिड़ाहट अौर झुझलाहट थी वह गायब हो गई। ब्लडप्रेशर नार्मल हो गया। कोई साथी बीमार है तो उसकी सब तीमारदारी में लग गए। सजग हुए तो सोसायटी में आया बदलाव सोसायटी में होने वाले कार्यक्रमों की बागडोर संभाली। बच्चों के साथ नानी दादी अौर दादा-दादी ने किया फैशन शो। उनके बीच तो गैप आया था वह दूर हुआ। बुजुर्गों के लिए सोसायटी में नि.शुल्क कैम्प लगने लगे। ट्रेवल एजेंट बुजुर्गों को अच्छा डिस्काउंट देने लगे। रस्तरां में स्नेक्स के साथ काफी फ्री मिलने लगी। जिसके अंदर जो हुनर उसने वह बांटा किसी ने अपना बनाया अचार खिलाया किसी ने पेंटिंग दिखाई किसी ने शेरो शायरी की किसी ने कहानी सुनाई किसी ने स्वेटर दिखाए। सबने अपने अपने अनुभव से अपने समूह को मजबूत बनाया। देश से लेकर विदेश तक के विषयों पर चर्चा की। सतसंग किया। अलग अलग धर्मों से जुड़े आडियो वीडियो देखे अौर फिर अपने विचार किया। जाति के बंधन टूटे इन समूहों में सबसे अच्छी बात जो हुई वह यह कि जातियों के बंधन टूटे अौर मानवीयता के तार जुड़े। अलग अलग धर्म के लोग जुड़े तो जैसे साझी विरासत का सपना एक हुआ। कभी समानता को देखकर मंत्रमुग्ध हुए तो कभी विचित्र रस्मों को देखकर कौतुहल जागा। परिवार में भी आया बदलाव अब रोज रोज की नोक झोंक बंद हो गई। घर से काम पर निकलने वाले बच्चे भी बेफिक्र हुए कि अब अकेले नहीं हैं मम्मी पापा। आखिर यह बुजुर्ग हैं तो हमारे ही घर के। इनको भी अधिकार है आजाद परिंदे की तरह रहने का।

Special Post

विदा - कविता- डा. अनुजा भट्ट

विदा मैं , मैं नहीं एक शब्द है हुंकार है प्रतिकार है मैं का मैं में विलय है इस समय खेल पर कोई बात नहीं फिर भी... सच में मुझे क्रि...