यह मैं कोई अनोखी बात नहीं कह रही
हूं कि भारत विविधता भरा देश है बोली भाषा खानपान सब कुछ अलग-अलग है। हम सब इस बात
के जानते हैं। लेकिन हम महसूस तब करते हैं जब हम आपस में अलग अलग लोगों से मिलते
हैं। चीजों के प्रति उनकी संवेदनशीलता को महसूस करते हैं। मसलन खानपान तो अलग है
ही, खाने और पकाने का तरीका भी अलग अलग है। पहनने का तरीका भी अलग है। हम किसी भी
चीज को किसी भी तरह पहन खा लेते हैं अगर हम उन सब तथ्य और सूचनाओं से अंजान हैं।
कभी कभी बड़ी बेवकूफी भी कर जाते हैं जैसे किसी आध्यात्मिक मोटिफ न पहचान कर हम
उसे अपनी डाइनिंग टेबल के कवर पर सजा देते हैं। जैसा कि आप जानते ही हैं कि मैं
पिछले 4 सालें से फैशन और कला पर काम कर रही हूं और आनलाइन प्रोडक्ट खरीदती बेचती
और बनवाती हूं। इस दौरान कला कलाकार क्राफ्ट से जुड़े लोगों से संपर्क हुआ और बहुत
सारी जानकारियां हासिल हुई। सच कहूं तो बहुत आनंद आ रहा है। मैं सोचा कि क्यों न
यह जानकारियां आपसे साझा करूं। आप इन सूचनाओं को और सटीक भी बना सकते हैं।
आज मैं बात कर रही हूं तांत साड़ी
की। भारत के बंगाल राज्य में मुख्य रूप से पहनी जाने वाली तांत साड़ियां आज पूरी दुनिया
में पहनी जा रही हैं। मेरे विदेश में रह रहे मित्र अक्सर इस तरह की साड़ियां मुझसे
मंगवाते रहते हैं। अगर अपने देश की बात करूं तो यह भारतीय उपमहाद्वीप में गर्म और
आर्द्र जलवायु के लिए सबसे आरामदायक साड़ी मानी जाती है।
तांत शब्द का अर्थ बंगाल में हथकरघा है जो सूती साड़ियों और धोती आदि जैसे अन्य वस्त्र बुनता है। बंगाल के बुनाई के इतिहास 15 वीं शताब्दी से माना जा सकता है। पहली बार शांतिपुर में हथकरघा लगा और वहाँ से यह अन्य स्थानों तक फैल गया। 16वीं-18वीं शताब्दी के दौरान मुगल शासन के दौरान भी बुनाई की कला फलती-फूलती रही। बुनाई की प्रक्रिया में कार्यरत लोगों ने इसके लिए प्रशिक्षण भी लिया। और मुगल दस्तकारों से जामदानी बुनाई सीखी।
बुनाई की यह प्रक्रिया ब्रिटिश शासन से लेकर बंगाल विभाजन तक जारी रही और बुनाई की प्रक्रिया में निरंतर सुधार होता रहा। बंगाल विभाजन के बाद, बांग्लादेश से हिंदू बुनकर भारत चले आए और बुनकरों को तांत साड़ी की पारंपरिक बुनाई शैली से परिचित कराया।
इस समय यह साड़ियां सबसे ज्यादा भारत के पश्चिम
बंगाल राज्य के नदिया ज़िले में शांतिपुर और फुलिया और हुगली
जिले में धानीखली बेगलपुर और अटपुर में बन रही हैं। साड़ियों के नाम भी इससे जुड़
गए हैं बुनाई की "फुलिया तंगेल" शैली शांतिपुर और फुलिया में आए प्रवासी
तंगेल बुनकरों की देन है। इन साड़ियों में भारी बॉर्डर, फूलों के डिज़ाइन और कई पैस्ले और कलात्मक रूपांकनों की झलक मिलती है।
इसका पल्लू और बार्डर ही इसकी विशेषता है। इसे फ्लोरल, पैस्ले और अन्य डिजाइन के साथ बुना जाता है।
बनती कैसे हैं साड़ियां-तांत साड़ी कपास से बनी होती है,
जो अन्य साड़ियों की तुलना में बेहतरीन ड्रेप
होती है। इस छह गज की साड़ी को बनने में 6-7 दिन लगते हैं। तांत साड़ी की कीमत अलग-अलग प्रकार की तांत साड़ियों और बुनाई प्रक्रिया में इस्तेमाल किए
गए कपड़े और रूपांकनों के साथ भिन्न हो सकती है।
तांत साड़ी की बुनाई की प्रक्रिया
मिलों से कपास के धागों के बंडलों को साफ करने से शुरू होती है। फिर उन्हें धूप
में सुखाया जाता है, ब्लीच किया जाता है, फिर से सुखाया जाता है और अंत में उन्हें उबलते
रंगीन पानी में डुबोकर रंगा जाता है। एक बार डुबाने के बाद, उन्हें और मजबूत और महीन कपड़े में बदलने के लिए स्टार्च किया जाता
है। कपड़े के धागों को बुनाई करघे में डालने के लिए बांस के ड्रम का भी इस्तेमाल
किया जाता है।
प्रत्येक तांत साड़ी के शरीर,
पल्लू और बॉर्डर पर एक अनूठा पैटर्न होता है। ये
पैटर्न एक कलाकार द्वारा बनाए जाते हैं, जो फिर
नरम कार्डबोर्ड को छेदता है और उन पर डिज़ाइन को स्थानांतरित करता है। फिर
कार्डबोर्ड को करघे से लटका दिया जाता है। एक बार यह सेट-अप हो जाने के बाद,
बुनाई की प्रक्रिया शुरू होने के लिए तैयार हो
जाती है। सबसे छोटी तांत साड़ियों को 10-12 घंटों में बुना जा सकता है। अधिक जटिल रूपांकनों वाली साड़ी को पूरा
होने में संभवतः पाँच या छह दिन लग सकते हैं।
कैसे पहनें- बंगाली तांत साड़ी को स्टाइल करना आसान
और अधिक सुविधाजनक है। कॉटन तांत साड़ी के साथ एक क्लासी ब्लाउज हमेशा सहजता से
जंचता है। आप अपने लुक के ग्लैमर को बढ़ाने के लिए क्रॉप टॉप, बोट नेक ब्लाउज, हॉल्टर नेक या ट्यूब ब्लाउज भी ट्राई कर सकती हैं।
एक आकर्षक एक्सेसरी तांत साड़ी के
लिए जरूरी है। ऑक्सीडाइज्ड ज्वेलरी हमेशा सबसे
अच्छी लगती है, चाहे वह कैजुअल इवेंट हो या कोई बड़ा
इवेंट। याद रखें, कम ही ज़्यादा है, इसलिए हमेशा किसी भी लुक को ग्रेस और ग्लोरी के
साथ उभारने के लिए सिंपल ज्वेलरी ही चुनें। अपने एथनिक लुक को पूरा करने के लिए
क्लच बैग जोड़ें।
साड़ी का रखरखाव
- तांत साड़ियां वजन में हल्की और कुछ हद तक पारदर्शी होती हैं, यही कारण है कि उन्हें धोने में उचित देखभाल की आवश्यकता होती है।
- इन साड़ियों को धोने से पहले इन्हें ठंडे पानी में सेंधा नमक मिलाकर भिगो दें। यह तकनीक रंग को फीका होने से बचाती है।
- तांत साड़ियों को धोने के लिए हल्के डिटर्जेंट का उपयोग करने का प्रयास करें ताकि कोई भी रसायन इन साड़ियों की बनावट को नुकसान न पहुंचा सके।
- अपनी सूती तांत साड़ी की कुरकुरापन और कठोरता बनाए रखने के लिए धोते समय स्टार्च का उपयोग करने पर विचार करें।
- एक बार धुल जाने के बाद साड़ी को छायादार जगह पर लटका दें और पूरी तरह सूखने दें।
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कापीराइट अनुजा भट्ट