बुधवार, 26 अप्रैल 2017

इंटरनेशनल डांसर बनना चाहती हूं - अलंकृता


अलंकृता को  बचपन से ही माडलिंग का शौक है।  इन्होंने 13 वर्ष की उम्र से ही माडलिंग की शुरूआत कर दी थी।  यह कत्थक, भरतनाट्यम और कंटम्परेरी डांस फार्म की ट्रेंड डांसर हैं। इन्होंने मिस नार्थईस्ट इंडिया ब्यूटी फेस आॅफ द ईयर का खिताब अपने नाम किया इसके साथ ही यह मिस दीवा यूनीवर्स कंटेस्ट की यह सबसे छोटी कंटेस्टेट बनीं और टाॅप 16 में अपनी जगह बनाई।  यह लखविंदर शाबला की फिल्म राजा एबरोडिया से बाॅलीवुड में कदम रख रही हैं।  आइए करते हैं उनसे बातचीत:-
प्रश्न: माडलिंग के अलावा और क्या शाैक हैं आपके ?
उत्तर -  डांसिंग,
प्रश्न:   आप जीवन में क्या बनना चाहती हैं?
उत्तर: मैं इंटरनेशनल डांसर बनना चाहती हूं।  मैने हाल ही में दुबई में शो किया है।  मुझे डयूट शो करना ज्यादा पसंद है।
प्रश्न: आपके डांस के गुरू कौन हैं?
उत्तर:  मैनें बिरजू महाराज और मोरमो मेथी से कत्थक सीखा है और भरतनाट्यम प्रीति बरूआ और महुआ चैधरी से सीखा है।
प्रश्न: आप फिटनेस के लिए क्या करती हैं?
उत्तर: जिम, योगा
प्रश्न:  जब आप गुवाहाटी से मुंबई आईं तोे आपको कैसा लगा?
उत्तर: मुंबई ड्रीम सिटी है।  मुझे यहां आकर बहुत अच्छा लगा।  मुझे यहां आकर खुद को साबित करने के लिए बहुत से मौके मिले ।  यहां आकर मुझे लैक्मे फैशन वीक में भाग लेने का मौका मिला और वहां जज ने मेरे काम को बहुत सराहा।
प्रश्न:  आपकी फेवरेट बाॅलीवुड मूवी?
उत्तर:  करीना कपूर की कम्बख्त इश्क और आलिया भट्ट की हाईवे।
प्रश्न:  आपके फेवरेट एक्टर
उत्तर: रितिक रोशन और वरूण धवन
प्रश्न:   फेवरेट एक्टर्स?
उत्तर: करीना कपूर और आलिया भट्ट मेरी फेवरेट हिरोईन और मैं इन्हें अपना ऐक्टिंग गुरू भी मानती हूं।  पुरानी हिरोईन में मुझे श्रीदेवी पसंद हैं।
प्रश्न:  आपके अनुसार हर महिला में कौन सी तीन बातें अवश्य हाेनी चाहिए?
उत्तर:  हर महिला को इंडीपेंडेंट, फोक्सड और पाॅवरफुल होना चाहिए।
प्रश्न:  जो लड़कियां माडलिंग में आना चाहती हैं आप उन्हें क्या कुछ एडवाईज देना चाहेंगी?
उत्तर:  मैं नई लड़कियों से यही कहना चाहूंगी कि आप अपना पैशन पहचानें कि आप क्या बनना चाहती हैं और फिर उसी के लिए खुद को पूरी तरह तैयार करें।  ऐसा बिल्कुल नहीं है कि जो लड़कियां माॅडलिंग करती हैं वह फिल्मों में सक्सेसफुल नहीं हो सकती।

सोमवार, 24 अप्रैल 2017

घर में भी चलाएं स्वच्छता अभियान


सफाई करते समय सबसे पहला सवाल होता है कि सफाई आखिर कहां से शुरू करें।  एक्सपर्ट का कहना है कि घर की सफाई की शुरूआत घर की सीलिंग  से की जानी चाहिए।  उसके बाद दीवारें, खिड़कियां, केबिनेट, फर्नीचर और अंत में फ्लोर साफ करें।


आम तौर पर घरों में नियमित साफ-सफाई पर ध्यान ही नहीं दिया जाता।  घरों की छतों, पंखों में जाले लगे होते हैं और धूल-मिट्टी की तह जमा हो जाती है। बाथरूम में भी गंदगी दिखाई देती हैं।  यहां पेश है सीलिंग से लेकर वाॅशरूम तक की साफ-सफाई के आसान तरीके -
मकड़ी के जाले साफ करने के लिए
कमरे की सीलिंग पर बने हुए मकड़ी के जालों को हटाने के लिए मकड़ी के जाले के लिए बने हुए ब्रश का इस्तेमाल करें।  ब्रश से कमरे के हर कोने को साफ करें।  कई बार कुछ जाले ऐसे भी बनते हैं जोकि आसानी से दिखाई भी नहीं देते।
सीलिंग पर जमी हुई गंदगी साफ करने के लिए
लंबे ब्रश से आप सीलिंग पर जमी हुई गंदगी को साफ कर सकती हैं।  इसके लिए मैग्नेटिक वाले डस्टर भी आते हैं आप उन्हें भी इस्तेमाल में ला सकते हैं।
जहां पर लाईट लगी होती हैं या दीवार में छेद हो गए हों उस जगह की भी सफाई करें।  अक्सर मिट्टी वहीं पर इक्ðी होती है।  इसके लिए वैक्यूम क्लीनर का इस्तेमाल करें।  वैक्यूम क्लीनर के साथ लंबी एक्सटेंन्शन लगाकर टिप पर ब्रश लगा दें इससे मिट्टी दूसरी जगहों पर नहीं फैलेगी।
तेल के दाग मिटाने के लिए
किचन की सीलिंग पर से तेल के दाग मिटाने के लिए पहलेे गीले कपड़े से उसे साफ करें।  फिर स्पांज को क्लीनर और पानी के साल्यूशन में डालकर जगह को साफ करें।  फिर पोंछे को साफ करके सीलिंग को पोंछ दे।  सीलिंग को सूखने दें ताकि पानी के स्पाॅट हट जाएं।
वाॅल पेपर सीलिंग के लिए
वाॅलपेपर सीलिंग को साफ करने के लिए डिशवाशिंग डिर्टजंेट और पानी का साॅल्यूशन बनाएं और उसमें स्पांज डिप करके उससे सफाई करें।  फिर पोंछे से उसे सुखा दें।  इसकी सफाई करते हुए न ही ज्यादा स्पांज में पानी रहे और न ही पोंछे में। अंत में जल्द ही उसे सूखे कपड़े से सुखा दें।
टेक्सचर सीलिंग के लिए
टेक्सचर वाली छतों के लिए वैक्यूम क्लीनर का इस्तेमाल करें।  वैक्यूम क्लीनर पर लंबी एक्सटेशन लगाकर टिप पर साफ्ट ब्रश लगाएं।  यदि आप इस तरह की सीलिंग के लिए वाइप डाउन वाली तकनीक का इस्तेमाल करेंगें तो इससे सीलिंग की टेक्सचर को बहुत नुकसान पहंुचेगा।
वाॅषरूम की साफ-सफाई
खिड़की और मिरर के लिए
खिड़की और मिरर को ग्लास क्लीनर और पेपर टाॅवल से साफ करें।  ब्लीच का इस्तेमाल न करें इससे ग्लास सही तरीके से साफ नहीं होगा
सीलिंग के लिए
ब्लीच वाॅटर साॅल्यूशन को स्प्रे बाॅटल में लेकर सीलिंग पर लगे दागों को साफ करें।
फ्लोर के लिए
हाॅट सोप ब्लीच वाॅटर का इस्तेमाल बाथरूम की फ्लोर को साफ करने के लिए करें ताकि बाथरूम की फ्लोर पर साबुन न चिपका रहे।
बाथरूम की दीवार और फ्लोर को साफ करने के लिए ब्रश का इस्तेमाल करें और फिर साफ पानी से धो लें।
सिंक को साफ करने के लिए नाॅन अब्रेसिव क्लीनर का इस्तेमाल करें। क्लीनर लगाने के बाद 30 मिनट का इंतजार करें फिर उसे ठंडे पानी से साफ कर दें।  सारे मुश्किल दाग चले जाएंगे।
बाथटब के लिए
बाथटब और सिंक को साफ करने के लिए गर्म पानी में कुछ बूंदे डिशवाशिंग डिर्टजेंट मिला लें इससे सफाई बिना रगड़े ही हो जाएगी।
डोर के लिए
मेटल शाॅवर डोर को साफ करने के लिए लेमन आॅयल का इस्तेमाल करें।  इससे पानी के दाग जल्दी से हट जाते हैं और नए भी नहीं बनते।
ग्लास शाॅवर डोर के लिए स्पाॅज में विनेगर में डिप करके सप्ताह में एक बार साफ करें।
शाॅवर डोर ट्रैक को साफ करने के लिए टूथब्रश या काॅटन स्वैब का इस्तेमाल करें।
घर पर ही बनाएं डिटर्जेंट
1/4 कप बेकिंग सोडा, 1/4 कप लिक्विड डिर्टजेंट और 1/4 कप गर्म पानी को मिलाकर टाॅयलेट सीट पर लगाएं और उसे टाॅयलेट ब्रश से साफ करें फिर पानी से साफ कर दें।  यदि आप टाॅयलेट सीट रोज साफ करते हैं तो आपको स्क्रब करने की जरूरत नहीं है।
हमेशा याद रखें गंदे कपड़े इधर-उधर न फैलाएं। उनके लिए बाॅसकेट का इस्तेमाल करें।

साफ-सफाई करते समय ध्यान रखने योग्य बातें:-
कमरे के फर्नीचर, फिक्सचर और फ्लोर को पोलीथीन शीट या किसी और चीज से ढक दें।
सीलिंग की सफाई के लिए सीढ़ी या स्टूल का इस्तेमाल न करें। इसके बजाय लंबे हैंडिल वाली चीज का प्रयोग करें।
आंखों को कवर करने के लिए गौगल या कपड़े का इस्तेमाल करें।
यह ध्यान रखें कि पानी या क्लीनिंग डिटर्जेंट दीवारों पर न गिरे।
मकड़ी के जालों को सीलिंग या दीवार पर कपड़े से रगड़कर साफ न करें। नहीं तो उससे दीवार की फिनिश भी खराब हो जाएगी और वह उस जगह पर निशान भी छोड़ देगा।






रविवार, 23 अप्रैल 2017

अकेले अकेले कहां जा रहे हो


 बात सिर्फ घूमने की करें तो सभी उम्र के लोगों को घूमना-फिरना पसंद होता है। लेकिन अपने इस षौक में हम कई ऐसी चीजें भी जोड़ लेते हैं जिससे यह मंहगा हो जाता है। इसे अगर सिर्फ घुमक्कड़ी में ही सीमित रखें तो घूमना आज भी आसान है।
‘एन इवनिंग इन पेरिस‘ फिल्म का गाना दिमाग में कौंध रहा है। अकेले अकेले कहां जा रहे हों, जहां जा रहे हो हमें साथ ले लो। शम्मी कपूर के दिलचस्प अंदाज में गाया ये गाना अपने साथी से साथ ले जाने की गुहार करता हे। 70 के दशक का यह गीत आज भी बहुत लोकप्रिय है। 40 दशक बीत जाने के बाद एक बड़ा बदलाव नजर आ रहा है, वह यह कि आज युवा अकेले घूमने जाना चाहते हैं। युवाओं में सिर्फ लड़के ही नहीं लड़कियां भी अकेले घूमने का मजा लेना चाहती हैं। इसे तकनीक का असर कहें या ग्लोब्लाइजेशन की सौगात कुछ भी हो महिलाओं के लिए यह दिलचस्प है। कामकाज के लिए लड़कियों को अपनी देहरी के पार देखने का मौका मिला है। उनके भीतर के डर कम हुए हैं। पहले वह नौकरी की तलाश में बाहर निकलीं और अब घूमने फिरने के अपने शौक के लिए बाहर जा रही हैं।
यदि आप अकेले घूमने जा रही हैं तो नीचे लिखी कुछ बातों का अवश्य ध्यान रखें।
आप जहां घूमने जा रही हैं वहां के बारे में पहले ही अच्छे से जानकारी इक्ट्ठी कर लें।
इस बात का खास ख्याल रखें कि आप अपनी डेस्टिनेशन पर कितने बजे पहुंचेंगी। प्लानिंग ऐसे करंे कि आप सुबह या दिन के वक्त ही वहां पहुंचें।
कई होटल अपने गेस्ट्स को पिक एंड ड्राप की सुविधा भी देते हैं। इस सुविधा का लाभ उठाएं।  रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डा या बस स्टाॅप पर मिलने वाले आॅटो या टैक्सी का उपयोग न करें।
खूब सवाल पूछें। जिस होटल में ठहर रहे हैं। उसके मैनेजर से घूमने-फिरने की जगहों के बारे में जानकारी लें। टैक्सी के ड्राइवर से और वहां के लोकल लोगों से भी जानकारी लें।
अकेले ट्रैवल करने के लिए सबसे पहले तो आपको अपना मन शांत रखना होगा। अगर आप ब्रेकअप या किसी तरह की परेशानी से भागने के लिए घूमने जा रही हैं तो आप एंज्वाॅय नहीं कर पाएंगी।
खुद के साथ एंज्वाॅय करना सीखना होगा क्योंकि जब अकेले ट्रैवल कर रहे होते हैं तो कई बार वक्त काटना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में अगर आपको अपने साथ वक्त बिताने की आदत नहीं है तो आप परेशान हो जाएंगी।
यदि आपको लगता है कि कोई आपको घूर रहा है तो उसे साफ और कड़े शब्दों में डांट दें और  ऐसे बोलें कि आसपास के लोगों को भी पता लग जाए कि वह क्या कर रहा है।
नए लोगों से मिलें, बात करें लेकिन बहुत ज्यादा घुलने-मिलने से बचें।
नए लोगों के साथ खाना या ड्रिंक शेयर न करें।
अकेले घूमने फिरने के लिए आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों की मदद ले सकती हैं। जिस जगह आप जाने का प्लान कर रही हैं अगर वहां कोई परिचित मिल जाए तो वह आपको ऐसी डेस्टीनेशन के बारे में बता सकता है जो बहुत खूबसूरत हो और हो सकता है आपके ट्रेवल गाइड के पास उसकी जानकारी न हो।
आप दूसरे लोगों द्वारा पोस्ट किए हुए ट्रैवलौग पढ़ें।  इससे आप जगह के बारे में पहले से ही जान पाएंगी और उनके अनुभवों से आपको फायदा ही होगा।
एक डायरी में अपने अनुभव लिखिए और बाद में उसे ट्रैवलौग के जरिए दूसरे लोगों के साथ शेयर करें।



शनिवार, 22 अप्रैल 2017

आपके साथ समय बिताना चाहते हैं बच्चे


 आप किसी भी नाईट क्लब या बार में चले जाएं वहां आपको पार्टी करते स्कूली बच्चे मिल जाएंगें।  सवाल है कि उन्हें यह सब करने के लिए पैसे आखिर कहां से मिलते हैं? पैसे देने वाले उनके पेरेंट्स ही हैं। पेरेंट्स के पास बच्चों को देने के लिए वक्त नहीं हैं जिसकी कमी वह पैसे देकर पूरी करते हैं।

म सब कहते हैं समय बदल रहा है। समय के साथ सभी को बदलना पड़ता है। अगर हम इस बदलाव को स्वीकार नहीं करते तो समय के साथ चल नहीं पाएंगे।  वैसे भी महत्वाकांक्षी होना कोई खराब बात नहीं है क्योंकि बिना महत्वाकांक्षा के हम षिखर पर पहंुच भी नहीं सकते। लेकिन इस महत्वाकांक्षा के लिए हम अपनी जिम्मेदारी से भी मुंह नहीं मोड़ सकते। परिवार के प्रति भी हमारी जिम्मेदारी है। बच्चों के हाथ में एटीएम कार्ड पकड़ाकर या उनको आया के भरोसे छोड़कर  महत्वाकांक्षा की रफ्तार को नहीं पकड़ सकते। अगर आप नियमित अखबार पढ़ते हैं, टीवी देखते हैं तो ऐसी खबरों पर नजर जरूर जाती होगी जिसमें बताया जाता है कि बच्चे अपराध की दुनिया में कितनी तेजी से कदम रख रहे हैं।
नशे की तरफ बढ़ते कदम
बच्चों को पाॅकिट मनी के तौर पर जो पैसे दिए जाते हैं वह उसका इस्तेमाल कैसे कर रहे हैं इस बात पर कोई गौर नहीं करता। टीनएज उम्र का ऐसा पड़ाव होता है जब बच्चा गलत चीज की ओर जल्दी ही आकर्शित हो जाता है। पहले नषा करना बुरी बात मानी जाती थी लेकिन आजकल यह हर खुषी के मौके को सेलीबे्रट करने की षुरूआत माना जाता है।
आक्रामक हो गए हैं बच्चे
आजकल बच्चों के व्यक्तित्व में आक्रामकता भी साफ देखने को मिलती है। यदि पेरेंट्स कहते हैं कि उन्हें बच्चे के इस व्यवहार के बारे में पता नहीं है तो वह सिर्फ बहाना बना रहे हैं।  यह तभी होता है जब पेरेंट्स बच्चों को आजादी दे देते हैं कि वह अब बड़े हो गए है।
बड़े बच्चों पर भी रखिए नजर
यह सोच गलत है कि बच्चा बड़ा हो गया है और उसे अब निगरानी की जरूरत नहीं है बल्कि यही वह समय है जबकि उस कंट्रोल किया जाना जरूरी है।  पेरेंट्स समय की कमी को पैसे से पूरी करते हैं और पैसे से बच्चे नशा करने लगते हैं। जब उनको लत लग जाती है तब पेरेंट्स कंट्रोल करना चाहते हैं तो बच्चे आक्रामक हो जाते हैं। ऐसे में या तो वह दूसरे को नुकसान पहंुचाते हैं या स्वयं को हानि पहुंचाते हैं।
बच्चे चाहते हैं पेरेंट्स का साथ
आज बहुत से बच्चे अपनी इस अवस्था से दुखी भी हैं और इस नशे की लत और आक्रामकता से छुटकारा पाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति होने पर आपको ही उनको संभालना है। फिल्म अभिनेता सुनील दत्त और नर्गिस के बेटे संजय दत्त को आप एक उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं। वह तो एक सेलीब्रिटी का बेटा है पर हम सब तो मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। क्या हम इलाज का खर्च उठा सकेंगें।
ऐसी स्थिति न आए इसके लिए जरूरी है कि आप अपने बच्चे को वक्त दें और उन्हें सही गलत का ज्ञान दें। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए कई स्कूलों ने काउंसलिंग क्लासिस भी शुरू की हैं। हर सोसाइटी के भीतर भी काउंसलर होना चाहिए।  उसकी सलाह माननी चाहिए। बच्चा इंटरनेट पर क्या देख रहा है इस पर भी नजर रखी जानी चाहिए।  इसके साथ ही वह अपनी पाॅकिट मनी का इस्तेमाल कैसे कर रहा है उस बात की भी जानकारी होनी चाहिए।

गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

बनाइए बिजनेस चेन



समय और सुविधा के मुताबिक ट्रेंड्स में हमेशा बदलाव आता है। आज खरीदारी करने का अंदाज बदला है। ई-शापिंग की सफलता के साथ ही साथ घर से कारोबार करने का चलन भी बढ़ रहा है। अपराजिता द्वारा कराए गए सर्वे में यह बात सामने आई है कि आजकल कमोबेश हर घर में कोई न कोई कारोबारी आइडिया हर दिन दिमाग की बत्ती जला रहा है।
इंटरनेट ने आसान की जिंदगी
इंटरनेट के जरिए आर्डर लेने अाैर देने का काम आसान हो गया है। कुरियर सर्विस, स्पीड पोस्ट, पार्सल के माध्यम से सही समय पर सामान भिजवाना  भी आसान है। आप अपनी सुविधा और फंड को ध्यान में रखकर कहीं से भी कुछ भी मंगा सकते हैं। जो काम पहले बड़ी-बड़ी कंपनी करती थी, वह अब स्टार्टअप कंपनी भी करने लगी हैं। सोसायटी में या मोहल्ले में रहने वाले लोग आसपास से ही सामान खरीदना पसंद करते हैं क्योंकि यहां पर अगर सामान में कोई कमी है तो उसे वापस करना आसान है। जूलरी का बिजनेस करने वाली श्रीमती तरविंदर कौर कहती हैं कि मुझे इस व्यवसाय को करने के लिए फेस बुक, वाट्सएप ग्रुप, इंस्टाग्राम, आॅनलाइन शापिंग ग्रुप से बहुत फायदा हुआ। मेलेे में कभी उम्मीद से कई गुना फायदा हुआ तो कई बार हमारी उम्मीदों पर पानी फिर गया।
बड़ी कंपनियां भी दे रही है घर घर में दस्तक
ओरीफ्लेम, एमवे, मोदीकेयर, टपरवेयर कई अनगिनत कंपनियंा महिलाओं को केंद्र में रखकर अपना बिजनेस स्टाइल बना रही है। उनकी नजर ऐसी पढ़ी लिखी स्मार्ट वुमेन पर हैं जो महत्वाकांक्षी हैं और घर के साथ अपना कारोबार करना चाहती हैं। यह कारोबार चेन सिस्टम की तरह काम करता है। दवा, ब्यूटी प्रोडक्ट, डिटरजेंट, किचनवेयर सब घर घर में पहुंचाए जा रहे हैं। इसके लिए कंपनियाँ, वर्कशाॅप, सेमिनार, मीटिंग करती हैं। ओरी फ्लेम से जु़ड़ी रुचि कहती हैं हम लोग नेटवर्किंग पर काम करते हैं। जैसे जैसे काम बढ़ते जाता है आपकी कमीशन भी बढ़ते जाता है। शुरूआत में 3 पर्सेंट से लेकर यह 21 पर्सेंट तक जाता है। मात्र 4000 से आप इस काम को शुरू कर सकते हैं।
कौन महिलाएं हैं आगे
ऐसी पढ़ी लिखी महिलाएं जो घर परिवार की जिम्मेदारी के चलते नौकरी नहीं कर पा रही हैं लेकिन जिनके अंदर कुछ करने की तमन्ना है वह ऐसी कंपनियों से जुड़ रही है और अपनी प्रोफाइल से हटकर काम कर रही है।  प्रोफाइल से अलग हटकर काम करना जहां चुनौतीपूर्ण होता है वहीं यह आपक¢ आत्मविश्वास को भी बढ़ाता है। डाक्टर इंजीनियर या  सिविल सर्वेंट बनने की चाह रखने वाली महिलाएं ट्यूशन पढ़ाकर कई इंजीनियर, डाक्टर अ©र सिविल सर्वेंट समाज को दे चुकी है। आर्ट और म्यूजिक की दुनिया की तरफ भी जनता जागरूक हुई है अ©र पेरेंट्स बच्चों को प्रोत्साहित भी कर रहे हैं। छोटी छोटी चीजों की भी वैल्यू बढ़ी है। मसलन हैंडराइटिंग क¢ लिए भी पेरेंट्स ट्यूशन भेज रहे हैं ताकि वह कैलीग्राफी सीख सकें। खुशी है कि महिलाओं ने अपना कद बड़ा किया है वह उदासीन अ©र अवसाद की शिकार नहीं हुईं। किसी एक करियर क¢ भरोसे भी वह नहीं रही। उन्होंने सही मायने में चुनौतियों को स्वीकार किया।
खुद का बिजनेस भी खड़ा कर रही हैं
महिलाएं कारीगरों के साथ मिलकर अपना फैशन हाउस बना रही हैं जहां वह ग्राहक की रूचि और बजट के आधार पर चीजें तैयार करती हैं। इन चीजों में आपकी ड्रेस, ज्वेलरी, फुटवियर के अलावा आपके घर का इंटीरियर भी शामिल है।
इसके अलावा उनकी नजर स्वाद पर भी है क्योंकि हम सभी जानते हैं कि सबका स्वाद अलग-अलग होता है। कुछ स्वाद में एक्सपेरिमेंट करना पसंद करते हैं कुछ ट्रेडीशनल खाना पसंद करते हैं। फूड एक्सपर्ट के तौर पर महिलाएं खुद की नई जमीन तलाश रही हैं। आज फूड बिजनेस जोरों पर है।
फंड का प्रबंध भी खुद करती है महिलाएं
अपने बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए अपने लिए फंड का प्रबंध भी वह खुद करती हैं इसके लिए स्वयं सहायता समूह भी उनकी मदद करते हैं। वह किटी पार्टी और कमेटी के जरिए भी फंड इक्ट्ठा करती हैं। स्टार्ट ग्रुप का प्रपोजल पसंद आने पर सरकार भी उनकी मदद करती है। स्टार्टअप कंपनी को सरकार कर्ज प्रदान करती है।
मुनाफे का सौदा
महिलाएं अपने सामान को बेचने के लिए मेले में भी हिस्सा लेती हैं। मेले आयोजित करने का काम भी अधिकांश महिलाएं ही करती हैं।  जहां सभी लोग एक साथ एक़ित्रत होते हैं। यह मेले समय-समय पर लगाए जाते हैं। मेले का उद्देश्य सामाजिक जागरूकता के साथ एकजुटता का संदेश देना भी है।
इंवेट मैनेजमेंट में भी महिलाएं
घर पर ही रहकर इवेंट मैनेजमेंट जैसे काम महिलाएं आसानी से कर रही हैं। इसमें बर्थडे, शादी, वर्कशाॅप/सेमिनार, उत्सव मेले, कार्निवाल शामिल है।
निष्कर्ष- कुल मिलाकर कहें तो महिलाओं ने अपने आप को हर सांचे में ढालने की कोशिश की है। यह संस्कार देकर ही बच्चियों को बड़ा किया जाता है। महिलाएं अगर चाहें तो खुद को मोटीवेट कर सकती हैं। जैसे इंजीनियर नहीं बन पाए तो क्या हुआ इंजानियर बनाए तो सही। जिसकी कोई ट्रेनिंग नहीं ली। उसे खुुद से सीखने का साहस तो जुटाया अ©र फिर तेजी से काम किया।  यही है महिलाओं की सफल जिंदगी का राज जिसे उन्होेंने बांटा अपराजिता क¢ साथ। कड़ी दर कड़ी चलते रहो, गले मिलते रहो। आपक¢ कदम खुद बना देंगे रास्ता।

बुधवार, 19 अप्रैल 2017

आंखों की न करें अनदेखी


हमारी आंखें विट्रीयस जेल से 80 प्रतिशत तक भरी होती है और इसी से आंख की शेप भी बनती है। जब यह जेल कम होकर  सिकुड़ने लगता  है तब रेटीना के अंदर शैडो आने लगती है। इसी स्थिति को फ्लोटर्स कहते हैं।  यदि इसकी  ओर ध्यान नहीं दिया जाए तो यह समस्या बढ़ सकती है जिसके कारण रैटीना तक डिटैच हो सकता है, अंधापन भी आ सकता हैं।  इसलिए आंखो की नियमित जांच जरूरी है।
फ्लोटर्स में आंखो में मकड़ी के जाले बनने लग जाते हैं या फिर धंुधले से स्पाॅट या धागे जैसे पतली लाइन तैरने लग जाती है।  यह धागे या स्पाॅट आंखों में तैरते रहते है। जिस तरफ आप देखते हैं यह भी उसी ओर हो जाते हैं।
 शुरूआत में लोग इसे इग्नोर करते हैं और तब तक इस पर ध्यान नहीं देते जब तक कि वह नजर में परेशानी पैदा करना शुरू नहीं कर देते।    इनका एहसास तब ज्यादा होता है जब आप कुछ चमकदार चीज की ओर देखते हैं जैेसे कि वाइट पेपर या ब्लू स्काई ।  इसके होने से और भी कुछ परेशानियां हो सकती हैं जैसेकि इन्फेक्शन, जलन, रेटिनल टियर्स या आंखों में चोट।
यह उम्र बढ़ने के साथ साथ भी होने लगता है और फिर धीरे धीरे आंख के निचले हिस्से में सेटल हो जाता है और कम तकलीफ देता है लेकिन पूरी तौर पर नहीं जाता है।  उन लोगों को भी यह समस्या हो सकती है जिनकी पास की नजर कमजोर हो, डायबिटीज हो या फिर मोतियाबिंद का आपरेशन हुआ हो। फ्लोटर्स यंग ऐज में भी हो सकते हैं यदि आपकी पास की नजर कमजोर है, सिर में चोट लगी हो या आंख का आपरेशन हुआ हो।
 जिन लोगों को फ्लोटर्स की समस्या हैं उन्हें किसी भी तरह के इलाज कराने की सलाह नहीं दी जाती।  बहुत ही कम केसिस में ऐसा होता है कि फ्लोटर्स इतने बढ़ जाते हैं कि दिखाई देने में परेशानी होने लगती है ऐसी स्थिति में सर्जिकल प्रोसेस विट्रोकोमी करके जेल के स्थान पर साल्ट साल्यूशन डाला जाता है। क्योंकि विट्रोयिस में ज्यादा पानी जैसा ही होता है इसलिए साल्ट साल्यूशन डालने से किसी भी तरह से अलग से पता नहीं चलता।  इसका आॅपरेशन करने की डाक्टर सलाह नहीं देते क्योंकि इसके साथ बहुत से रिस्क जुड़े हुए होते हैं।



मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

खुद पढ़लिखकर बदली समाज की किस्मत



एक किताब ने जिंदगी बदल दी
सावित्रीबाई फूले का नाम समाज में लड़कियों को शिक्षा का अधिकार दिलाने, बहिष्कृत और निराश्रित महिलाओं को समानाधिकार दिलाने के लिए लिया जाता है।  भारतीय समाज में उनकी जिंदगी और उनका काम सामाजिक कल्याण और महिला सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। वह देश की पहली महिला शिक्षिका बनीं।
सावित्रीबाई का जन्म महाराष्ट्र राज्य के एक छोटे से गांव नईगांव में हुआ।  बचपन से ही वह  महत्वाकांक्षी और जिज्ञासु प्रवृति की थी। सावित्रीबाई का विवाह सन् 1840 में 9 वर्ष की आयु में श्री ज्योतीराव फुले से हो गया और वह उनके साथ पुणे आ गईं।
 जब ज्योतिराव ने देखा कि सावित्रीबाई ने अपने पास एक किताब जो उन्हें क्रिशचन मिशिनरी ने दी थी वह बहुत संभालकर रखी हुई थी। यह सब देखकर ज्योतिराव को अहसास हुआ कि उनकी पत्नी को शिक्षा के प्रति असीम लगाव है। वह उनके सीखने की प्रबल इच्छा को देखकर बहुत खुश हुए और उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाना शुरू किया। सावित्रीबाई ने अपनी टीचर ट्रेनिंग अहमदनगर और पुणे में की।  सन् 1847 में वह परीक्षा पास करके पूर्णतः शिक्षित शिक्षिका बन गई।
समाज में महिलाओं की दशा सुधारने को प्रतिबद्ध श्री ज्योतिराव फूले के साथ मिलकर सन् 1848 में लड़कियांे के लिए स्कूल खोला।  उनकी यह यात्रा आसान नहीं थी। इस वजह से उन्हें सोसाईटी में रोष और गालियांे का शिकार भी बनना पड़ा। इतना ही नहीं उन पर रास्ते में गोबर भी फेंका जाता। सावित्रीबाई बिना कुछ कहे अपने साथ रास्ते में एक साड़ी साथ रखती जिससे कि वह स्कूल जाकर अपने कपड़़े बदल सकें।  पर उन्होंने अपनी राह नहीं छोड़ी। सन् 1853 में सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने आसपास के गावों में और स्कूल खोले।
देश में विधवा एंव निराश्रित महिलाओं की दुर्दशा देखकर उन्होंने सन् 1854 में उनके लिए एक शेल्टर होम खोला।  दस वर्ष तक लगातार संघर्ष करने के बाद उन्हांेने सन् 1864 में एक बड़ा शेल्टर होम खोला।  विधवा स्त्रियांे और बालिका वधुओं को उन्होंने अपने शेल्टर में आसरा दिया और साथ में उन्हें पढ़ाया।  उन्होंने एक विधवा स्त्री के पुत्र यशवंतराव  को गोद भी लिया।
निचली जाति के लोगों को ऊंची जाति के लोग गांव के कॉमन कुंए से पानी नहीं पीने देते थे।  इसके लिए ज्योतिराव और सावित्रीबाई ने अपने घर के पीछे उनके लिए कुंआ बनवाया जहां से वह लोग पानी ले सकते थे।  उनके इस कदम ने भी ऊंची जाति के समाज में बहुत रोष उत्पन्न हो गया। सत्यशोधक समाज नाम से श्री ज्योतिराव ने एक संस्था का निर्माण किया इसका मुख्य उद्देश्य समाज से भेदभाव को समाप्त करना था और सबके लिए समानाधिकार वाले समाज की स्थापना करना था। इस समानाधिकार की लड़ाई में सावित्रीबाई ने अपने पति का भरपूर सहयोग किया।
सन् 1873 में सावित्रीबाई ने सत्यशोधक विवाह की शुरूआत की जिसके तहत दंपत्ति समान अधिकार और समान शिक्षा की शपथ लेते थे।
उनके यह सभी प्रयास अनदेखे नहीं रहे।  सन् 1852 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें बेस्ट टीचर की उपाधि से सम्मानित किया।  सन् 1853 में शिक्षा के क्षेत्र में किए गए उनके प्रयासों के लिए उन्हें सम्मानित किया गया।
सन् 1890 में ज्योतिराव के निधन के बाद उन्हांेने सभी मान्यताओं को दरकिनार करते हुए उन्हें मुखग्नि थी। उन्होंने उनकी विरासत को आगे बढ़ाते हुए सत्यशोधक समाज की बागडोर संभाली।
सन् 1897 में महाराष्ट्र में एक बार बहुत भयानक प्लेग बीमारी फैली।  वह सिर्फ मूकदर्शक नहीं बनी बल्कि वह प्रभावित क्षेत्रों में लोगों की मदद करने के लिए चली गईं।  उन्होंने हदाप्सर, पुणे में एक क्लिनिक खोला।  जब वह एक 10 वर्षीय प्लेग से पीड़ित बच्चे को क्लीनिक ला रहीं थी तब वह भी इस बीमारी के किटाणु से संक्रमित हो गईं और 10 मार्च 1897 को उनका देहांत हो गया। उनकी पूरी जिंदगी महिलाओं के लिए प्रकाश का óोत थी।  उनका जीवन हमेशा उन महिलाओं को प्रेरणा देता रहेगा जोकि पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए कुछ करना चाहती हैं।


रविवार, 16 अप्रैल 2017

बुर्जुगों के हाथों में नन्हे मुन्हों की डोर- डा. अनुजा भट्ट



बच्चाें के पेरेंट्स काम पर जाते हैं तो बच्चों की देखभाल का जिम्मा ग्रैंड पेरेंट्स पर आ जाता है।  ग्रैंड पेरेंट बच्चों के दोस्त होते हैे, राजदार होते हैं और साथ ही उन्हें इमोषनल सपोर्ट भी देते हैं।  ग्रैंड पेरेंट्स को  घर-परिवार के इतिहास के बारे में, परंपराओं और संस्कारों के बारे में जानकारी होती है जोकि वह अपने ग्रैंड किड्स को विरासत में दे सकते हैं।  सही गाइडलाइन्स और सपोर्ट से वह बच्चों की जिंदगी में एक महत्वपूर्ण छाप छोड़ सकते हैं।
आज के दौर में जब हसबैंड-वाईफ दोनो वर्किंग है तब नन्हे-मुन्नों से लेकर किशोर बच्चों की जिम्मेदारी ग्रैंड पेरेंट्स पर आ जाती है इस जिम्मेदारी के तहत बच्चों के लिए खाना बनाना, उनको खिलाना, उनके कपड़े धोना से लेकर उनकी सेहत का भी ख्याल रखना होता है जबकि यही वह समय होता है जब उनको आराम की जरूरत होती है मिले। उनको अपनी दिनचर्या में, घर में बहुत से एडजेस्टमेंट करने पड़ते हैं।  ग्रैंड पेरेंट्स के अंदर एनर्जी भी नहीं रहती जो कि यंग ऐज में थी लेकिन उनको यह करना ही होता है। जो ग्रैंड पेरेंट्स यह जिम्मेदारी निभाने से मना कर देते हैं या रूचि नहीं दिखाते, सच तो यह है कि वह अपने भीतर इतनी शक्ति, सहनशक्ति और सांमजस्य बिठा पाने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाते और अन्य अपने हमउम्र के साथियों से आजकल के बच्चों के बारे में पता चलता है कि यह इतना भी आसान नहीं है।  इन सब विचारों का मतलब यह कतई नहीं है कि वह अपने ग्रैंड किड्स से प्यार नहीं करते।
उम्र के इस पड़ाव पर ग्रैंड पेरेंट्स होने के नाते आपके पास बच्चों को पालने की जिम्मेदारी है तो यह बहुत जरूरी है कि आप पहले अपनी सेहत का ख्याल रखें और अपने बच्चों से यह कहने में हिचक महसूस न करें कि कि वह सपोर्ट सिस्टम की व्यवस्था करें।  खुद का ख्याल रखना आपकी पहली जरूरत है।  यदि आप खुद ही ठीक नहीं तो बच्चे का ख्याल कैसे रख पाएंगें। अनुभवों से यह बात सामने आई है कि दूसरी जनेरेशन को पालने के बहुत से फायदे भी होते हैं और नुकसान भी।
  • बच्चों के ग्रैंड पेरेंट्स के पास रहने से बच्चों को एक सुरक्षित वातावरण मिलता है। वहीं ग्रैंड पेरेंट्स को बुढ़ापे में साथ और सुरक्षा मिलती है।
  • बच्चों के साथ उनका रिश्ता मजबूत बनता है।  
  • इससे बच्चों को परिवार के साथ मिलजुल के रहने का महत्व पता चलता है।  
  • अक्सर पेरेंट्स अपनेे बच्चों से छोटे-छोटे काम भी नहीं करवाते कि वह कर नहीं पाएंगें लेकिन अपने बुर्जुग माता-पिता से वह हर काम करवाते हैं। जबकि बच्चे बहुत स्मार्ट और एनर्जी से भरपूर होते हैं।  वह छोटे-छोटे काम दौड़दौड़ कर पूरा कर लेतेें हैं और उससे ग्रैंड पेरेंट्स की मदद भी हो जाएगी।
  • यदि आप अन्य छोटे बच्चों के पेरेंट्स से मिलेगें, बात करेंगें तो हो सकता है कुछ समय लगे लेकिन ऐसे पेरेंट्स से दोस्ती फायदेमंद ही रहेगी।  आप आज के बच्चों की समस्याओं के बारे में जान सकेंगें ।
  • ग्रैंड किड्स के साथ सांमजस्य बिठा पाने में जैसी दिक्कत आपको हो रही है वैसे ही ग्रैंड किड्स के लिए भी खुद को नए मौहाल में ढालना आसान नहीं है । जो बच्चे अपने ग्रैंड पेरेंट्स के साथ नहीं रहते हैं उनकी फीलिंग को समझ पाना आसान नहीं है।   बच्चे की फीलिंग बाहर आने के बहुत तरीके होते हैं। आक्रामक रवैया उनमें से एक हैै। आपके सपोर्ट की उनको जरूरत होती है।  आप भी उनके साथ यदि वैसा ही आक्रामक व्यवहार करने लगेंगें तो स्थिति बनने की बजाय बिगड़ने लगती है।
  • कई बार बच्चे जब ग्रैंड पेरेंट्स के घर में आते हैं और शुरू में बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं लेकिन कुछ समय के बाद उनका व्यवहार बुरा हो जाता है, वह तुनकमिजाज हो जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि वह सुधरे नहीं हैं जैसे पहले थे वैसे ही हैं।  आपको ऐसा लगेगा कि बच्चे आपसे प्यार नहीं करते लेकिन उनका ऐसा बिहेवियर यह दर्शाता है कि वह आपके साथ इतना सुरक्षित महसूस करते हैं कि वह अपनी अंदर की फीलिंग, डर, इमोशन को आपके सामने प्रकट कर सकते हैं।  वह सहज महसूस कर रहे हैं।
  • बच्चों के लिए रूटीन और शेडयूल बनाएं जिसका कि उसे पालन करना हो।  कुछ ऐसे काम रखें जोकि आप और आपके ग्रैंड किड्स वीकएंड या बेडटाइम पर करें।
  • बच्चों के साथ बात करें और उनकी बातों को, उनके सवालों को सुनें।  इससे आप दोनों के बीच भावनात्मक रिश्ता और गहरा होगा।  बच्चों को प्रोत्साहित करें कि वह अपने मन की बात आपसे करें।  उनको जज न करें और न ही उनकी बातों पर हंसें।
  • छोटे बच्चे खुद की भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते। कई बार आपको उनके बिहेवियर को देखकर भी अंदाजा लगाना पड़ता है।
  • आपके पास हर सवाल का जवाब नहीं हो सकता। यदि आपको नहीं पता तो आप सच बोलें न कि आप झूठ बोले या सवाल से बचने की कोशिश करें।  बच्चे इन छोटी छोटी बातों से ही रिश्तों में विश्वास और सच्चाई के महत्व को समझ पाएगंे।
  • बच्चे को किस सिचुऐशन के बारे में कितनी जानकारी दी जानी चाहिए यह उसकी उम्र और समझ को ध्यान मंे रखते हुए ही बताना चाहिए।
  • यदि आपकी अपने ग्रैंड किड्स के पेरेंट्स से नहीं बनती है तो भी कभी भी बच्चे के सामने उन बातों का जिक्र न करें।  
  • बच्चे के पेरेंट्स के साथ रिश्ता अच्छा बना कर रखें।  उन्हें बच्चे के स्कूल, हौबी और दोस्तों के बारे में जानकारी देते रहें।  पेरेंट्स के पास बच्चे का शेडयूल और कानटेक्ट की जानकारी होनी चाहिए।
  • ग्रैंड पेरेंट्स और पेरंेट्स के बीच का बांडिग स्ट्रांग होनी चाहिए। 

ग्रैंड किड्स और ग्रैंड पेरेंट्स की जोड़ी के बारे में पहले से ही कहा जाता है कि बच्चा बूढ़ा एक समान। बूढ़े होते माता-पिता के लिए सहारे की लाठी का काम भी ग्रैंड किड्स ही करते हैं। अगर दोनों के बीच की कैमेस्ट्री स्ट्रांग हो जाए तो घर में रौनक भी रहती है और हम आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत भी बनते हैं।

शनिवार, 15 अप्रैल 2017

प्राकृतिक उपायों से कीजिए दर्द दूर- रेनु दत्त


जब कभी दर्द होता है या चोट लगती है तो सबसे पहले दिमाग में यह बात आती है कि इस दर्द को दूर करने के लिए गर्म पैक लगाएं या ठंडा पैक। आइस पैक और हीटींग पैड पाॅवरफुल दवा नहीं है लेकिन फिर भी यह सबसे सस्ता और आसानी से उपलब्ध उपाय है। यह एक नैचुरल तरीका है।
यदि आम भाषा में बात की जाए तो आइस पैक चोट के लिए होता है और हीट पैक मसल्स के लिए होता है। जब किसी चोट के कारण हमारे टिशू में जलन, रेडनेस, सूजन हो जाती हैं तो उस समय आइस पैक लगाया जाता है।  गर्म पैक मसल्स, तनाव और पुराने दर्द के लिए होता है।  जैसे कि बैक पेन, नेक पेन या नर्वस सिस्टम और दिमाग को शांत करता है।
यदि आपको पहले से ही गर्म लग रहा है तो उस समय गर्म पैक आपकी मदद नहीं करेगा और यदि आपको पहले से ही ठंड लग रही है तो उस समय कोल्ड पैक स्थिति को और बिगाड़ेगा।  गलत पैक लगा लेने के कारण उसके दुष्परिणाम भी झेलने पड़ते हैं।
यह जानने के लिए कि हमें कब कौन सा पैक लगाना है उसके लिए हमें दर्द के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। हम यहां पर कुछ जानकारी दे रहे हैं।
ऐसी समस्याएं जोकि लंबे समय से चल रही हों या क्रोनिक हों या जोकि छः सप्ताह से ज्यादा चल रही हों। उदाहरण के लिए आर्थराईट्स जिसकी वजह से कारटिलेज खराब होती हैं।  ऐसी समस्या के लिए गर्म पैक ट्रीटमंेट की जरूरत होती है जिससे कि ज्वाईंट स्टिफनेस कम होती है और मसल्स रिलेक्स होते हैं।
आईस पैक ऐसे दर्द के लिए ठीक रहता है जोकि जलन को कम करता है।  सिर दर्द में नर्व और दिमाग की ब्लड वेस्लस में दर्द बढ़ता है।  इसको आईस पैक लगा कर नंबनेस के द्वारा कम किया जा सकता है।
नेक स्पैज्म में अधिकतर लोग ठंडा पैक लगाने की गलती करते हैं जिससे कि दर्द कम होने की बजाय बढ़ जाता है।  इसलिए इस दर्द को कम करने के लिए गर्म पैक लगाएं।
यदि आपके मसल्स खिंच जाते हैं या नसों में चोट लग जाती है तो पहले ठंडा पैक लगा कर जलन और दर्द को नंब किया जा सकता है।  जब जलन कम हो जाती है तो आपके मसल्स अकड़ सकते हैं।  ऐसे में उन्हें हल्का करने के लिए हीट पैक का इस्तेमाल करें।
जब आपके ज्वाईंट्स खिंच जाते हैं या फट जाते हैं तो पहले उस पर कोल्ड पैक लगाएं जिससे कि जलन और दर्द में कमी आए।  जब जलन बिल्कुल भी न रहे तो हौट पैक लगाएं जिससे कि अकड़ाहट कम हो।
ठंड में पैर सूज जाएं तो एपस्म साल्ट को सेंधा नमक को गर्म पानी में मिलाकर पैर की सिकाई करं। यह साल्ट एंटी इन्फ्लैमटरी होता है। जो सूजन को कम करने और दर्द में राहत पहुंचाता हैं। इसमें मैग्नीशियम सल्फेट भी होता है जो मांसपेशियों के दर्द में राहत पहुंचाता है। इसमें मैग्नीशियम सल्फेट भी होता है जो मांसपेशयों के दर्द से दूर करता है। थके हुए पैरों को आराम पहुंचाने के लिए एक टब में दो लीटर पानी डालकर उसमें आधा कम नमक मिला दें। ध्यान दें पानी ज्यादा गर्म न हो। पैरों को टब में कम से कम 20 मिनट तक रखें।

  •  ठंडी सिकाई करते समय ध्यान दें
  •  आइस बैग को 20 से ज्यादा बार प्रभावित स्थान पर न लगाएं। 10 मिनट तक सिकाई के बाद 2 मिनट का ब्रेक लें। मसल्स में दर्द, खिंचाव, सूजन और त्वचा छिल जाने पर ठंडी सिकाई दें।
  • गर्म सिकाई 
  •  अगर डायबिटीज है या ब्लडसर्कुलेशन संबधी कोई बीमारी हे तो गर्म सिकाई न करें।
  •  अगर दर्द किसी पुरानी चोट का हो तो गर्म सिकाई मदद करती है।
  •  पुरानी चोट का ब्लड सर्कुलेशन से की जाए तो गर्म सिकाई से फिर से शुरू हो जाता ह। इससे मसल्स का दर्द दूर होता है।
  •  ध्यान दें - सूजन होने पर तुरंत पैक न लगाएं। पहले ठंडा पैक के बाद में गर्म पैक दें।
  •  5 मिनट से अधिक गर्म पैक न हो।
  •  एक बार इस्तेमाल करके पानी को फेंक दें, उसे दोबारा से इस्तेमाल न करें।
  •  बहुत गर्म पैक न लगाएं।

बुधवार, 12 अप्रैल 2017

मैजिक मिरर से बने घर खूबसूरत



घर बड़ा हो या छोटा उसे सुंदर बनाने के लिए हमारे भीतर सृजनात्मक विचारों का होना बहुत मायने रखता है लेकिन हर व्यक्ति के भीतर सृजनात्मकता हो यह जरूरी नहीं है। इसलिए हम आपको बता रहे हैं साजसज्जा से जुड़ी खास बातें-
महानगरों में अधिकतर लोग फ्लैट में रहते हैं। यहां आपके पास सीमित जगह होती है और सामान असीमित, जिस कारण आपका घर अस्त-व्यस्त दिखता है। लेकिन अगर आप चाहें तो कम जगह का भी इस्तेमाल भी नियोजित तरीके से कर सकती हैं। इंटीरियर डिजाइनर लिपिका सूद से जानिए घर की सजावट के लिए खास टिप्स:-
दीवारों का रंग
छोटे कमरे में हमेशा हल्के रंग का पेंट करवाएं। हल्का रंग कम लाइट ऐब्जौर्ब करते हैं, जिस से कमरा खुलाखुला लगता है।
कमरे को ज्यादा ऊंचा दिखाने के लिए सीलिंग पर फ्लोरोसैंट कलर के स्टिकर या वालपेपर का इस्तेमाल करें।
छोटे कमरे का फर्श भी हल्के रंग का होना चाहिए। इसके लिए हल्के रंग के पत्थर या फिर टाइल्स लगवाएं।
वन वाल डार्क का फैशन छोटे कमरों में लागू न करें।  हां, यदि आप कुछ अलग ही करना चाहते हैं तो एक ही कलर के दूसरे शेड का इस्तेमाल करें लेकिन चुनें लाइट शेड ही।
स्टाइलिश फर्नीचर और उसकी सैटिंग
छोटे कमरे के लिए स्टेटमैंट फर्नीचर का चुनाव करें। कमरे में छोटे-छोटे फर्नीचर की जगह कोई ऐसा फर्नीचर चुनें जो कम जगह घेरे और जरूरत को भी पूरा करें।
कभी भी फर्नीचर को दीवार से सटा कर न रखें। ऐसा करने पर दीवारें खराब होने के साथ ही भरीभरी भी लगती हैं। हमेशा फर्नीचर को दीवार से कुछ इंच छोड़ कर ही रखें।
बाजार में सोफा कम बैड व बैड बाॅक्स तो पहले से ही आ रहे हैं।  अब डाइनिंग टेबल, सोफासैट और कुछ मौड्यूलर फर्नीचर ऐसे आने लगे हैं, जो जगह भी कम घेरते हैं और स्टोरेज का भी काम करते हैं।
सजावट करें कम
कमरे में कलर थीम से मैच करती हुई ड्रैमैटिक पेंटिंग को लगाया जा सकता है। कमरे की कलर थीम से मैच होतीे पेंटिंग होने से कमरा भराभरा नहीं लगेगा।
कमरे में टेबल पर फ्लाॅवरवास रखना पुराना ट्रैंड हो गया है। अब टेबल को फ्री रखें और कमरे की किसी साइड में एक सुंदर और आकार में बड़ा टैराकोटा, चीनी मिट्टी या किसी धातु से बना पौट, वास या आर्टिकल सजा दें।
मिरर डैकोरेशन का आइडिया छोटे घरों के लिए एकदम सही है। यदि मिरर डैकोरेशन को इनोवेटिव तरीके से किया जाए, तो यह घर की रौनक बढ़ाने के साथ-साथ घर को स्पेशियस दिखाने का भ्रम भी बना देता है।
कमरे की एक दीवार को मिरर पैनल से कवर करना ट्रैंड में है। खासतौर पर घर के ड्राइंगरूम में इस तरह का इनोवेशन किया जा सकता है।
छोटे घरों में स्ट्रिप कारपेट का इस्तेमाल करना चाहिए, इस से कमरा लंबा दिखता है।
स्टूडियो फ्लैट में एक कमरे में ही हर कमरे की जरूरत का सामान रखना होता है. ऐसे में कारपेट सैपरेटर का काम कर सकता है. इस के लिए आप छोटे  कारपेट का इस्तेमाल कर एक ही कमरे में अलग-अलग काम के लिए ऐरिया डिवाइड कर सकते हैं।
मार्केट में आ रहे डिवाइडर्स छोटे आशियाने के लिए अच्छा विकल्प हैं. इन्हें एक ही कमरे में अलग-अलग काम करने के लिए या प्राइवेसी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
खिड़की और दरवाजों पर करें गौर
कमरा छोटा है तो खिड़कियों को हर वक्त भारीभरकम परदों से कवर कर के न रखें. हो सके तो उन्हें अनकवर्ड रखें. इस से कमरे में रोशनी भी आएगी और कमरा भराभरा नहीं लगेगा।
छोटे कमरों में यदि लगाने ही हैं तो शिमरी करटेंस लगाएं ये पारदर्शी होते हैं साथ ही खूबसूरत लगते हैं। इनमें भी हल्के रंग के परदों का इस्तेमाल करें।
आजकल ग्लास डोर्स ट्रैंड हैं। वुडेन डोर्स की जगह सेमी ग्लास डोर्स घर में लगवाएं। इस से कमरा अलग भी हो जाएगा और बंदबंद भी नहीं लगेगा।
लाइट्स की सैटिंग
ओवरहैड लाइट्स का फैशन तो एवरग्रीन है, लेकिन कुछ नया ट्राय करना है तो आप अपने घर में बिलो हैडलाइट्स की सैटिंग कराएं। इस के लिए आप फ्लोर लाइट्स, डिजाइनर लैंप्स, हैंगिंग लाइट्स का चुनाव कर सकते हैं।
घर में नैचुरल लाइट्स का अच्छा सोर्स होना चाहिए. इस के लिए खिड़कियों पर वुडेन वर्क कराने की जगह उन पर ग्लास वर्क कराएं. इस से सूर्य की रोशनी घर के अंदर आ सकेगी.
कमरे में कितनी रोशनी की आवश्यकता है, उस हिसाब से लाइट अरैंजमेंट होने चाहिए. जैसे, बैडरूम में मीडियम लाइट्स के लिए वाॅल लैंप्स से भी काम चल सकता है. वहीं स्टडी रूम के लिए ज्यादा रोशनी की जरूरत होती है. इस लिए यहां ओवरहैड लाइट्स ही होनी चाहिए.
आप का डाइनिंग ऐरिया कितना ही छोटा क्यों न हो, आप डाइनिंग टेबल पर हैंगिंग लाइट लगा कर सिर्फ उतने पोर्शन को फोकस करेंगे तो कमरे का साइज छोटा है या बड़ा ज्यादा पता नहीं चलेगा.

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

तुलसी में है दवा भी दुआ भी-डा. अनुजा भट्ट



तुलसी को हरिप्रिया भी कहते हैं अर्थात वह जगत के पालन पोषण करने वाले भगवान विष्णु की प्रिय हैं। भारतीय परंपरा में घर-आंगन में तुलसी का होना सुख एवं कल्याण के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। सिर्फ हिंदु धर्म ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों में भी इसके महत्व और गुणवत्ता को महत्व दिया गया है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखें तो तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बड़ी-बड़ी जटिल बीमारियों को दूर करने और उनकी रोकथाम करने में सहायक है। इसकी जड़, तना, पत्तियां तथा बीज सभी उपयोगी होते हैं। इसमें कीटाणुनाशक अपार शक्ति हैं। इसको छू कर आने वाली वायु स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक होती है। तुलसी दो रंगों में होती है यह दो रंग है हरा और कत्थई। दोनों का ही सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
तुलसी के  उपयोग
स्वास्थ्यवर्धक तुलसी
पानी में तुलसी के पत्ते डालकर रखने से यह पानी टॉनिक का काम करता है।
खाँसी अथवा गला बैठने पर तुलसी की जड़ सुपारी की तरह चूसें।
तुलसी की हरी पत्तियों को आग पर सेंक कर नमक के साथ खाने से खांसी तथा गला ठीक हो जाता है।
खांसी-जुकाम में तुलसी के पत्ते, अदरक और काली मिर्च से तैयार की हुई चाय पीने से तुरंत लाभ पहुंचता है।
फेफड़ों में खरखराहट की आवाज आने व खाँसी होने पर तुलसी की सूखी पत्तियाँ 4 ग्राम मिश्री के साथ लें।
तुलसी के पत्तों का रस, शहद, प्याज का रस और अदरक का रस चम्मच भर लेकर मिला लें। इसे आवश्यकतानुसार दिन में तीन-चार बार लें। इससे बलगम बाहर निकल जाता हैै।
श्वांस रोगों में तुलसी के पत्ते काले नमक के साथ सुपारी की तरह मुँह में रखने से आराम मिलता है।
शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है।
तुलसी के पत्ते का रस 1-2 ग्राम रोज पिएं, बुखार नहीं होगा।
यदि मासिक धर्म ठीक से नहीं आता तो एक ग्लास पानी में तुलसी बीज को उबाले, आधा रह जाए तो इस काढ़े को पी जाएं, मासिक धर्म खुलकर होगा। मासिक धर्म के दौरान यदि कमर में दर्द भी हो रहा हो तो एक चम्मच तुलसी का रस लें।
तुलसी का रस शरीर पर मलकर सोयें, मच्छरों से छुटकारा मिलेगा।
प्रातःकाल खाली पेट 2-3 चम्मच तुलसी के रस का सेवन करें तो शारीरिक बल एवं स्मरण शक्ति में वृद्धि के साथ-साथ आपका व्यक्तित्व भी प्रभावशाली होगा।
तुलसी भोजन को शुद्ध करती है, इसी कारण ग्रहण लगने के पहले भोजन में डाल देते हैं जिससे सूर्य या चंद्र की विकृत किरणों का प्रभाव भोजन पर नहीं पड़ता।
खाना बनाते समय सब्जी पुलाव आदि में तुलसी के रस का छींटा देने से खाने की पौष्टिकता व महक दस गुना बढ़ जाती है।
तुलसी के नियमित सेवन से हीमोग्लोबीन तेजी से बढ़ता है, स्फूर्ति बनी रहती है।
तुलसी की सेवा अपने हाथों से करें, कभी चर्म रोग नहीं होगा।
सौंदर्यवर्धक तुलसी
तुलसी की पत्तियों का रस निकाल कर बराबर मात्रा में नीबू का रस मिलायें और रात को चेहरे पर लगाये तो झाइयां नहीं रहती, फुंसियां ठीक होती है और चेहरे की रंगत में निखार आता है।
तुलसी पत्रों को पीसकर चेहरे पर उबटन करने से चेहरे की आभा बढ़ती है।
दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है।
चेहरे के मुँहांसे दूर करने के लिए तुलसी पत्र एवं संतरे का रस मिलाकर रात्रि को चेहरा धोकर अच्छी तरह से लेप लगाएं, आराम मिलेगा।
तुलसी की सूखी पत्तियों को सरसों के तेल में मिलाकर दांत साफ करने से सांसों की दुर्गध चली जाती है।
उपयोग में सावधानियाँ
तुलसी की प्रकृति गर्म है, इसलिए गर्मी निकालने के लिये इसे दही या छाछ के साथ लें।    तुलसी के सेवन के बाद दूध भूलकर भी ना पियें, चर्म रोग हो सकता है।
तुलसी रस को अगर गर्म करना हो तो शहद साथ में ना लें। कारण गर्म वस्तु के साथ शहद विष तुल्य हो जाता है।
तुलसी के साथ दूध, मूली, नमक, प्याज, लहसुन, मांसाहार, खट्टे फल ये सभी का सेवन करना हानिकारक है।
तुलसी के पत्ते दांतो से चबाकर ना खायें, अगर खायें हैं तो तुरंत कुल्ला कर लें। कारण इसका अम्ल दांतों के एनेमल को खराब कर देता है।
तुलसी का पौधा जहां लगा हो वहा आसपास सांप बिच्छू जैसे जहरीले जीव नहीं आते।
तुलसी के पत्तों को रात्रि में नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि अंधेरे में इसकी विद्युत लहरें प्रखर हो जाती है।
तुलसी का पौधा दिन रात आक्सीजन देता है, प्रदूषण दूर करता है।

तुलसी का सान्निध्य सात्विकता और पुण्यभाव के साथ आरोग्य की शक्ति को भी बढ़ाता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण तुलसी की माला कंठी आदि शरीर में धारण करने का विधान है। प्रत्येक घर में एक तुलसी का पौधा जरूर होना चाहिए। समाजसेवा का इससे अच्छा, सुलभ, सुगम और निशुल्क उपलब्ध होने वाला और क्या उपाय हो सकता है।



Special Post

मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

  (अब पहले की तरह किस्से कहानियों की कल्पनाएं हमें किसी रहस्यमय संसार में नहीं ले जाती क्योंकि हमारी दुनिया में ज्ञान, विज्ञान और समाज विज्...