रविवार, 6 मई 2018

सजा देकर नहीं समय देकर संवरेगा भविष्य

 समय परीक्षाओं या परिक्षाओं के परिणाम का है। कहीं विद्यार्थी और उनके माता -पिता संतुष्ट है तो कहीं माता-पिता अपने बच्चों से बेहद अंसतुष्ट।  अपने बच्चों को अच्छे से अच्छे स्कूल में  एडमिशन दिलवाने के लिए भी माता-पिता को कई तरह की प्रतियोगिताओं से गुजरना पड़ता है, पैसा जुटाना पड़ता है। वह सब कुछ करते हैं पर अपने बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पाते और इसी का परिणाम है कि बच्चे परीक्षाओं मेें सब कुछ करने के बाद भी अच्छा प्रदर्शन नहीं करते । इसीलिए यदि बच्चों से असंतुष्ट है तो इसके कारण खुद से भी पूछने चाहिए।
 निश्चित तौर पर बच्चों को इस बात का अहसास करना चाहिए कि यह सब जो उनके लिए किया जा रहा है वह आसान नहीं है। बच्चों को यह अहसास होना बहुत जरूरी है कि मातापिता उनके विकास के लिए और अच्छे भविष्य के लिए कितना चिंतित हैं।  हाल ही में एक खबर आई  थी  कि मैसूर में कक्षा 7 में पढऩे वाली एक बेटी जब अच्छे नंबर नहीं लाई तो नाराज पिता ने उसे मंदिर के सामने भीख मांगने की सजा दी। पिता ने पुलिस को बताया कि वह अपनी बेटी को जीवन की कठिनाइयों से रुबरु कराना चाहता था। लेकिन क्या ऐसी सजा कारगर है? निश्चित तौर पर नहीं।  हमें अपने बच्चों को  सजा की जगह समय देना उतना ही जरूरी है जितना  शिक्षा के लिए पैसे का प्रबंधन करना।

शनिवार, 5 मई 2018

रिश्ताें की रंगाेली- कमलेश आहूजा

दीपावली का पर्व नज़दीक था.मीना के घर तैयारियाँ चल रही थीं क्योंकि उसकी बहु नैना की पहली दीवाली थी.
आज दीपावली का दिन था मीना ने तो सुबह से ही सबको जल्दी जल्दी काम निपटाने की हिदायत दे दी थी, क्योंकि एक तो लक्ष्मी पूजन का समय शाम को 6 बजे का था.दूसरा पूजा के बाद बेटी के ससुराल भी जाना था.दो ननदें भी शहर में रहतीं थीं,वो भी आने वाली थीं. मीना ने पति से कहा -" आप बाजार से मिठाई व फल ले आना.पूजा और रेखा (ननद ) के लिए मैं और बहू गिफ़्ट ले आये थे.बेटी के लिए और दामाद जी के लिए भी कपड़े ले लिए थे ".
 दोपहर के खाने के पश्चात, मीना पूजा की तैयारी करने लगी.नैना को ड्रॉइंग पेंटिंग का बहुत शोंक था इसलिए वो मीना के पास जाकर बोली-"माँ मैं बाहर दरवाजे पर रंगोली बना दूँ ".मीना-" हाँ बेटा क्यों नहीं,बल्कि मैं तुमसे कहने ही वाली थी पर सोचा तुम पहले से इतना काम करके थक गई होगी ".नैना ने दरवाजे पर बहुत सुंदर रंगोली बना दी.
शाम को पूजा के समय मीना ने कुछ दिए जलाकर पूजा वाले स्थान पर रख दिये और कुछ दिए एक थाली में रखकर नैना को कहा कि वो बाहर दरवाजे पर दिए जला दे.नैना ने दीपक रखने की लिए दरवाजा खोला, तो देखा कि रंगोली एक तरफ से किसी के पाँव से बिगड़ से गयी थी.
रंगोली को बिगड़ा हुआ देखकर वो बहुत दुःखी हो गई और मीना को आवाज लगाई -" माँ बाहर आओ ".मीना ने सोचा नैना तो दिए जला रही है,फिर उसे क्यों बुला रही है..?.मीना बाहर आई और नैना से पूछा- "क्या हुआ बेटा,मुझे क्यों बुलाया..?".  नैना ने रोते हुए कहा-" माँ देखो किसी ने मेरी रंगोली बिगाड़ दी.इतनी मेहनत से बनायी थी".मीना ने उसे चुप कराया और उसकी बिगड़ी हुई रंगोली को फिर से ठीक कर दिया. मीना ने नैना से कहा-" देख बेटा मैंने भी अपने जीवन में रिश्तों की रंगोली बनाई है और इसे प्रेम,विश्वास और समर्पण रूपी रंगों से सजाया है.जैसे मैंने आज तेरी बिगड़ी हुई रंगोली को ठीक कर दिया है,ऐसे ही जीवन में कभी कोई मेरी रंगोली बिगाड़े या बिगाड़ने की कोशिश करे,तो तू भी उसे ऐसे ही ठीक कर देना ".मीना रंगोली के माध्यम से नैना को ये बात समझा रही थी कि, जिन कार्यों को करने में हम अपने सारे यत्न लगा देते हैं उन्हें कोई बिगाड़ता है तो कितना दुःख होता है.चाहे वो रंगोली बनाना हो या फिर रिश्ते बनाना.अर्थात जिन रिश्तों को बनाने में हमारे बड़ों ने जो यत्न किये हैं,छोटों का भी कर्तव्य बनता है कि वो उन रिश्तों को सदा संजोकर रखें.नैना को मीना की बात समझ आ गयी थी वह बोली-" जी माँ मैं कभी आपकी रंगोली को बिगड़ने नही दूंगी ".
व्यवहारिक ज्ञान सीखने और सीखाने के लिए बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ने की जरूरत नही होती है, हम दैनिक जीवन में होने वाली छोटी-छोटी घटनाओं से भी बहुत कुछ सीख सकते हैं और  अपने से छोटों को सिखा भी सकते हैं. यही इस कहानी का उद्देश्य है..

गुरुवार, 3 मई 2018

THURSDAY CELEBRITY- मिलिए आमला शंकर से

 उम्र 98 साल, हौंसला 16 साल जैसा। अपनी प्रतिभा का परिचय हर जगह दिया। उनके लिए प्रतिभा का उजागर करने का अर्थ कुछ और ही है। वह इसके जरिए ईश्वर के साथ संवाद करती हैं। मशहूर नृत्यांगना आमला शंकर ने खुद को एक पेंटर के रूप में स्थापित ही नहीं किया बल्कि इसे उन्होंने उस परमपिता परमात्मा से बात करने का जरिया भी बना लिया है।
आमला शंकर खूबसूरती और प्रकृति की बहुत बड़ी प्रशंसक हैं। 
अपनी आर्ट के प्रति रूचि के बारे में आमला जी बताती हैं कि बचपन में मैं अल्पना के डिजाइन बनाया करती थी जोकि गांवांे में आम बनाए जाते थे। लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं कभी पेंटिंग करूंगी या इस आर्ट को सीखूंगी।
सन् 1956 में महात्मा बुद्ध की 2500 जन्म पुण्यतिथि के अवसर पर मेरे पति उदय शंकर जी को काम सौंपा गया जिसमें कि उन्हें एक स्टेज प्ले शो के लिए शैडो स्लाइडस बनाने का।  उसके लिए बहुत से लैंडस्केप, आर्किटेक्चर के स्लाइडस बनाए गए लेकिन जब उन्हें लगाया गया तो उनके बीच में गैप नजर आ रहा था जिसकी वजह से वह भद्दे लग रहे थे।  बहुत नुकसान हो रहा था। तब मैंनें ऐसे ही काले और सफेद लिक्विड कलर उठाए और अपनी उंगलियों से पेड़ और रास्ते बनाने शुरू कर दिए।  जब उन्हें स्क्रीन पर देखा गया तो शैडो बहुत सुंदर लग रहे थे। बिल्कुल 3डी इफेक्ट आ रहा था।  सबको बहुत पसंद आया तब मैंने शुरू किया और 82 स्लाइडस बनाई और उन्हें स्पेशल कैमरे के साथ दिखाया गया।  उसके बाद से तो जब भी कोई पेपर हाथ में आता मैं उस पर ड्राइंग करने लगती।
डांसिग और पेंटिग के बारे में आमला जी कहती हैं कि मैं इस संसार में एक अनाज के दाने की तरह हूं।  मैं यह नहीं सोचती कि मैं एक डांसर या पेंटर की तरह जियूं या फिर एक मां की तरह।  यह सब ईश्वर की पूजा के लिए है। नृत्य फूल है और धार्मिकता उसकी खुशबू।  इमोशन भाव हैं पेंटिग में जोकि लोगों को अपनी ओर आकृषित करता है जोकि इस आर्ट के प्राण हैं
  98 वर्ष की उम्र में उन्होंने खुद को नए सिरे से खोजा है और एक नई जिंदगी की शुरूआत की है।  उन्होंने पेंटिग कहीं सीखी नहीं है बल्कि अपनी कल्पनाशक्ति से ही उन्हें साकार किया है।  उनकी ज्यादातर पेंटिंग में इमेजिन की हुई गुफाएं हैं, महात्मा बुद्ध का जीवनदर्शन, कई तरह के लैंडस्केपस और जीसस क्राइस्ट के बारे में हैं।  उनकी कलाकृतियों में आध्यात्मिकता झलकती है।  आमला शंकर को पद्मभूषण, टैगोर फैलो आॅफ संगीत नाटक अकादमी और बंगा विभूषण आॅफ द गर्वनमेंट आॅफ वेस्ट बंगाल।

बुधवार, 2 मई 2018

कहानी- पाचन तंत्र-दर्शना बांठिया

मनीषा नई- नई शादी करके आई ही थी कि सास ने किचन की कमान उसके हाथों सौंप दी,लेकिन उनका रोक-टोक करना कभी बंद नहीं हुआ।शनिवार के दिन मनीषा दोपहर में खाना बना रही थी ,तभी भिक्षुक की आवाज आई -रोटी दे दो माई।मनीषा ने आवाज सुनते ही 2 गर्म रोटी ली और भिक्षुक को देने के लिए जैसे ही दरवाजा खोला तो सास ने तेज स्वर में कहा -'अरे इनको ये गर्म रोटी हजम नहीं होती, वो रात की बासी रोटी पडी है ना ,वो दे दो ' मनीषा तेज आवाज में ऐसी बात सुनकर स्तब्ध रह गयी और उसे रात की पड़ी सूखी रोटी दे दी।मनीषा पढी -लिखी व समझदार थी उसके मन में कई तरह के विचार उमड़ने लगे।
इंसान की जैसे- जैसे उम्र बढ़ती है वैसे- वैसे ही वो हठी प्रकृति का होने लगता है।रविवार के दिन मनीषाा सुबह से ही किचन के कामों में व्यस्त थी,कारण कि आज मनोज(पति) की ऑफिस की छुट्टी है और उनकी पंसद के भोजन की तैयारी करनी थी। खीर,पूरी, सब्जी, कचौरी और मेवे का हल्वा।वो मन ही मन अपनी माँ की बात को याद कर रही थी कि कैसे उसकी माँ हमेंशा कहा करती थी कि "पति के दिल का रास्ता पेट से होकर गुजरता है,इसलिए तू भी अच्छा खाना बनाना सीख लें "मनीषा उनकी बात सुनकर हमेशा मुस्करा देती थी।मनीषा मेवे जरा देखकर डालना और पूरी तेल की ही अच्छी लगती है ,घी मत चढाना अपने सास की आवाज सुनकर मनीषा वर्तमान में लौट आई और कढाही में तेल डालने लगी। मनीषा को उनका रोक-टोक करना हमेशा खराब लगता था पर वो चुप रहती।मनोज किचन में आया और बोला आज बड़ी खुशबू आ रही क्या बनाया है? मनीषा कुछ बताती इतने में ही भिक्षुक की आवाज आई -रोटी दे दे माई। मनीषा ने देखा कि सास दिखाई नहीं दे रही तो उसने गर्म पूरी बनाई व खीर का प्याला भरा और जैसे ही देने लगी कि पीछे से सास ने हाथ पकड़कर कहा 'कल तो समझाया था कि इन लोगों को गर्म खाना पचता नहीं और वैसे भी रोज की आदत हो जाएगी इनकी मांगने की।एक काम कर कल की बची हुई सब्जी और नींबू का अचार दे दे।पर माँ जी वो सब्जी तो कल सुबह की है और अचार में तो फंगस आ चुकी है ,ऐसा देना सही नहीं है ।अरे इनको कुछ फर्क नहीं पड़ता,इनकी, तो आदत हो गई है ऐसा खाने की।मनीषा ऐसी बात सुनकर झल्ला उठी और बोली " क्यों मां जी इन के शरीर का पाचन तंत्र हमारे शरीर से अलग है क्या, जो इनको बासी व खराब खाना ही पचता है ,जो खाना हम नहीं खा सकते, हमारे लिए खराब है तो हम किसी और को क्यों दे?हम लोगों की 1-2 रोटी से ही इनका जीवन यापन चलता है" "माँ जी मनीषा की बातें सुनकर विस्मित हो गई ,पास में खड़ा मनोज भी बोल पड़ा- माँ ये सब क्या है?अगर हमारे पास पुण्याई से इतना है कि हम किसी को दो रोटी दे सकें तो आप क्यों मना कर रही है और जो चीज हमारे स्वयं के खाने योग्य नहीं है उसे दूसरे को नहीं देनी चाहिए।मां जी को आत्मग्लानि होने लगी। वास्तव में ऐसी नःस्थिती कई लोगों की होती है।


इंसान को समय के साथ अपनी प्रवृति बदलनी चाहिए।माना कि हम सम्पूर्ण विश्व को अपनी थाली से आहार नहीं दे सकते लेकिन प्यार व सम्मान तो सबको दे ही सकते है।






WEDNESDAY RELATIONSHIP-रिश्ता मां बेटी का पार्ट 2 अनुजा भट्ट

  बेटी ने मां काे टेक्नाेसेवी बना दिया है। अब लाइन पर नहीं खड़ी रहती मां। मोबाइल के जरिए या फिर इंटरनेट से घर से ही बिल जमा करती है, गैस बुक करती है, ट्रेन और एयरलाइंस का टिकट बुक करती है। बैंक का सारा कामकाज घर से ही करती है। पहले उनको यह असुविधाजनक लगता था पर धीरे धीरे अब उनको मजा आने लगा है वह नए से नए गैजट्स के बारे में जानना चाहती हैं। शापिंग माल में घूमने से पहले वह वेबसाइट्स में जाकर नए प्रोडक्ट के बारे में जानकारी ले रही हैं। ताकि खरीददारी करने में समय की बचत हो। इधर उधर न भटकना पड़े। फ्री होम डिलीवरी पर भी वह यकीन करने लगी है। हर जानकारी के लिए मां बेटी को फोन करती है। फिर चाहे वह गाड़ी चलाना हो या फिर कंप्यूटर।
मां के लिए एस एम एस एक रिश्ते का नाम है
आज के दौर में रिश्ते की परिभाषा को कहने के लिए एक नया शब्द आ गया है जिससे हम सभी परिचित है और वह है एस एम एस। एस एम एस का फुल फार्म है शार्ट मैसेज सर्विस। आप अपना संदेष इसके जरिए पूरी दुनिया में कही भी भेज सकते हैं। औरमां को तो मिनट मिनट में मैसेज भेजना है, नहीं तो वह चिंता करती रहेगी। पर जब मां घर से बाहर होती है तो वह भी हमें मैसेज करती रहती है। इसलिए रिश्ते का नाम है एसएमएस।बेटियां जब एसएमएस कहती हैं तो उसका अर्थ होता है श्योर मां श्योर।

WEDNESDAY RELATIONSHIP-रिश्ता मां बेटी का पार्ट 1 अनुजा भट्ट


मां और बेटी की भूमिका अब बदल गई है। फिर चाहे वह समाज हो, टीवी में दिखलाए जा रहे सीरियल हों या फिर विज्ञापन। सभी जगह बेटियां अपनी मां के साथ दिखाई दे रही हैं। इस बदलाव की वजह जहां आज का परिवेश है वहीं पूरी दुनिया का तकनीकी के जरिए एक मंच पर आ जाना भी है। एक दौर में मां अपनी बेटी को शिक्षा दीक्षा के  अलावा पाककला, सिलाई-कढ़ाई, संगीत, आचार-व्यवहार और सुरक्षा के बारे में सीख देती थी और यह सीख पीढ़ी दर पीढ़ी चलती जाती थी। आज भी कई पत्रिकाओं में दादी मां की रसोई जैसे कालम छपते हैं जो बहुत लोकप्रिय है। पर आज की ग्लोबल दुनिया में बेटी मां को दुनिया दिखा रही है और उसे पहले से ज्यादा दुनियादार बना रही है। टीवी, इंटरनेट और मोबाइल के जरिए जहां मां बेटी लगातार संपर्क में हैं वहीं मां अपनी बेटी से टेक्नोलाजी के गुर सीख रही है। प्रेशरकुकर ने दी थी उम्मीद
 कभी एक छोटे से प्रेशरकुकर ने  कई उम्मीदों से भर दिया था और आज रसोई में कई ऐसी चीजें आ गई है जिससे उसकी गृहस्थी की गाड़ी सरपट दौड़ रही है और वह अपने लिए समय निकाल रही है। बेटी उसे हर नए गेजेट्स के बारे में बताती है और उसका उपयोग करना भी सिखा रही है। मिक्सी, जूसर, गैसस्टोव, रेफ्रिजरेटर, माइक्रोवेव, ओवन, गीजर, वाशिंग मशीन, बर्तन धोने की मशीन, कपड़े सिलने की मशीन, मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटाप, इनवर्टर यह सब ऐसी चीजें हैं जिसने मां की दुनिया को बदला है।
मां के और करीब हैं बेटियां
 गांव औरकस्बों में भी माएं अब स्कूटी से लेकर टैक्टर तक चला रही हैं। आज की बेटियों अपनी मां को नई से नई तकनीक से परिचित करा रही है ताकि वह अपनी मां के हमेशा करीब रह सकें। मां के भीतर भी उक्सुकता कम नहीं हैं। कंप्यूटर अब उनके लिए हौवा नहीं है वह मजे में अपने बच्चों से चैट करती है, मेल करती है। मां और बेटी की गपशप में भी टैक्नो का असर है। मां कम शब्दों में अपनी बात कहना सीख गई है। अब उसकी बेटी देश में रहे या विदेश में, उसे कोई चिंता नहीं क्योंकि वह हर रोज इंटरनेट के जरिए उससे मिलती है, गपशप करती है। पहले वह कहा इतनी बात कर पाती थी।अब तो बेटी कहीं भी हो वह उससे बात कर लेती है।पहले तो उसे तो घर के काम से ही फुर्सत नहीं थी।
खेल रही है ब्लाग का खेल
बेटी ने मां को ब्लाग चलाना सिखा दिया है । मां ने भी बचपन में शरो शायरी खूब लिखीं, कहानी कविताएं लिखीं।शादी के बाद मौका नहीं मिला। अब मां अपना ब्लाग लिख रही है, कहानी-कविता लिख रही है अपने बारे में लिख रही है। जो मन में है कह रही है। लोग पढ़ भी रहे हैं और सराहना भी कर रहे हैं। इससे मां बेटी दोनो का उत्साह बढ़ा है।
हुनर बन रहा है रोजगार
इस तरह के ब्लाग में अ्चार बनाने से लेकर कई ऐसे टिप्स हैं जो बड़े काम आते हैं अब माओं की कई ऐसी सहेलियां बन गई है जिनसे कभी मिले तो नहीं पर फिर भी वह दिल के करीब हैं।वह आपस में रेसिपी से लेकर बुनाई औरकढ़ाई भी शेयर करती हैं। घर का बना अचार मुरब्बा अब वह खुद बेच रही है। स्वयं सहायता समूह से जुड़कर उनको आर्थिक मदद मिली है। और वह अपने पांव पर खड़ी हो रही है। महिला शशक्तिकरण में टेक्नोलाजी के विकास ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

मंगलवार, 1 मई 2018

TUESDAY PARENTING सिर्फ प्लीज नहीं कुछ और भी- अनुजा भट्ट

आपको क्या लगता है कि सिर्फ प्लीज और थैंक यू कहना सीखना ही एटीकेट में आता है। सोसाइटी को चलाने के लिए कुछ रूल्स की जरूरत होती है और इन्हें ही गुड मैनर्स भी कहा जाता है। आपकी मुलाकात के शुरू के कुछ सेकंड ही आपके बारे में बहुत कुछ सामने वाले को बता देते हैं। गुड मैनर्स ऐसी लाइफ स्किल हैं जोकि हर एक व्यक्ति के अंदर आदतों में शुमार होनी चाहिए। बच्चों की रोजमर्रा की आदत में यदि अच्छे संस्कार डाल दिए जाएं तो उनकी आने वाली जिंदगी आसान हो जाती है। यदि आपने इसके लिए देर कर दी तो बड़े होने पर इसकी आदत डलवा पाना बहुत मुश्किल होता है। सबसे बढ़िया तरीका यह है कि हर कोई एडल्ट व्यक्ति चाहे वह पेरेंट्स हों या स्कूल के टीचर सभी बच्चे के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा कि वह चाहते हैं कि बच्चा उनके साथ करे। इससे बच्चे की आदतों में यह सब मैनर्स समाहित हो जाएंगे। यदि हम किसी के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं तो दूसरे को तो अच्छा लगता ही है स्वयं भी हमें खुशी और संतोष की प्राप्ति होती है। अपने बच्चों को प्रोत्साहित करें कि वह प्लीज और थैंक्स शब्दों का प्रयोग करें। 
खाने के समय टेबल पर पानी मांगने के लिए प्लीज शब्द का प्रयोग होना चाहिए न कि आॅडर के तौर पर कहा जाए। यदि किन्हीं लोगों के ग्रुप के बीच में से निकलना हो तो एक्सक्यूज मी कहकर रास्ता मांगें। 
बात करते हुए बीच में किसी को न टोकें। यदि टोकना भी पड़े तो पहले उसके लिए माफी मांग लें।
 यदि कोई आपसे पूछे कि आप कैसे हो तो आपको भी जवाब देकर उनके हालचाल के बारे में पूछना चाहिए।
 घर पर भी अपने बच्चों को सिखाएं कि दूसरों को पहले अंदर आने के लिए दरवाजे को होल्ड करके खड़़े हों।
 बच्चे को खाना खाने के सही तरीके सिखाएं।
 यदि कोई व्यक्ति कुछ लेकर जा रहा है और उसे मुश्किल हो रही है तो आप अपनी हेल्प उसे आॅफर करें। बच्चे को सिखाएं कि वह बोलने से पहले जरूर सोचे कि यह बात यहां बोलनी चाहिए या नहीं। 
बच्चे पाॅजिटिव बातचीत करें न कि इधर उधर की बातें करके झगड़ा करें। बच्चे को सिखाएं कि यदि कोई उन्हें काम्पलीमेंट करता है तो अपनी आंखें न झुकाएं बल्कि उसे सहर्ष स्वीकार करें।

सोमवार, 30 अप्रैल 2018

याेग चर्चा-40 के बाद हड्डियां को बनाएं मजबूत- डा. दीपिका शर्मा


उम्र के 40 वर्ष पूरे होने के साथ साथ हमारे शरीर के  मसल्स ढीले होने लगते हैं और साथ ही हड्डियां कमजोर। इस उम्र में ऑस्टियोपोरेसिस होने का खतरा बढ़ जाता है और हल्की सी चोट से भी हड्डी टूटने का डर बना रहता है।  मगर घबराने की जरूरत नहीं यदि आप इन योगासानों को अपनी दिनचर्या में अपना लेंगें तो यह आपकी हड्डियों को कमजोर नहीं होने देंगें।
चक्रासन
सबसे पहले पीठ के बल लेट जाएं और पैरों को घुटने से मोड़ें जिससे एड़ी हिप्स को छुए और पंजे जमीन पर हों। अब गहरी सांस लेते हुए कंधे, कमर और पैर को ऊपर की ओर उठाएं। इस प्रक्रिया के दौरान गहरी सांस लें और छोड़ें। फिर हिप्स से लेकर कंधे तक के भाग को जितना हो सके ऊपर उठाने का प्रयास करें। कुछ क्षण बाद नीचे आ जाएं और सांसे सामान्य कर लें।
वृक्षासन
पेड़ की तरह तनकर खड़े हो जाइए। शरीर का भार अपने पैरों पर डाल दीजिए और दाएं पैर को मोड़िये। दाएं पैर के तलवे को घुटनों के ऊपर ले जाकर बाएं पैर से लगाइये। दोनों हथेलियों को प्रार्थना मुद्रा में लाइये। अपने दाएं पैर के तलवे से बाएं पैर को दबाइये और बाएं पैर के तलवे को जमीन की ओर दबाइये। सांस लेते हुए अपने हाथों को सिर के ऊपर ले जाइये। सिर को सीधा रखिए और सामने की ओर देखिये। 20 मिनट तक इस स्थिति में रुके रहें।
पद्मासन
जमीन पर बैठ जाएं। दायां पैर मोड़ेंऔर दाएं पैर को बाईं जांघ के ऊपर कूल्हों के पास रखें। ध्यान रहे दाईं एड़ी से पेट के निचले बाएं हिस्से पर दबाव पड़ना चाहिए। बायां पैर मोड़ें तथा बाएं पैर को दाईं जांघ के ऊपर रखें। यहां भी र्बाइं एड़ी से पेट के निचले दाएं हिस्से पर दबाव पड़ना चाहिए। हाथों को ज्ञानमुद्रा में घुटनों के ऊपर रखें। रीढ़ की हड्डी को बिलकुल सीधी रखें। धीरे-धीरे सांस लें और धीरे-धीरे सांस छोड़े। कम से कम 10 मिनट तक इस मुद्रा में रहें।
भुजंगासन
पहले पेट के बल सीधा लेट जाएं और दोनों हाथों को माथे के नीचे रखें। दोनों पैरों के पंजों को साथ रखें। अब माथे को सामने की ओर उठाएं और दोनों बाजुओं को कंधों के समानांतर रखें जिससे शरीर का भार बाजुओं पर पड़े। अब शरीर के ऊपरी हिस्से को बाजुओं के सहारे उठाएं। शरीर को स्ट्रेच करें और लंबी सांस लें। कुछ पल इसी अवस्था में रहने के बाद वापस पेट के बल लेट जाएं।
उत्कटासन
सबसे पहले पंजों के सहारे जमीन पर बैठ जाएं। हाथों को आगे की तरफ फैलाएं और उंगलियों को सीधा रखें। गला एकदम सीधा होना चाहिए। अब आप कुर्सी की पोजीशन में आ चुके हैं। 10 मिनट कतक इस मुद्रा में बने रहें।

रविवार, 29 अप्रैल 2018

आप गलत रास्ते में हैं- डा. अनुजा भट्ट


क्या आपकाे लगता है कि साधु संन्यासी आपकी समस्या का हल निकाल सकते हैं। आत्मिक शांति का रास्ता क्या साधु संताें के जरिए ही पाया जा सकता है। आखिर क्या वजह है कि इनके भक्ताें की संख्या कराेड़ाें में है। महिला भक्ताें का आकड़ा सबसे ज्यादा है। क्या यह संत ईश्वर के पर्याय हैं।
यह जाे उपदेश हर राेज देते हैं क्या उसका अंश भर भी खुद पर अमल करते हैं। उपनिषद, महाभारत, रामायण, वेद, गुरुग्रंथ , संतवाणी का सार संदेश जाे यह अपने भक्ताें काे देते हैं क्या भक्त भी उसे स्वीकार करते हैं। अगर एेसा है ताे इतना भ्रष्टाचार, अन्याय और अनैतिकता का माहाैल क्याें सर्वव्याप्त है। हमारा खुद पर क्याें भराेसा उठ गया है।
महिलाएं जिस शांति की शरण के लिए इन के पास जाती है वह असली जगह नहीं हैं। अपने लिए शांति की तलाश वह खुद कर सकती हैं। अपनी समस्याआें का निदान खुद पा सकती हैं। आपकी समस्याएं हैं। बहुत तरह की समस्याएं हैं। पर सबसे पहले हमें समस्या क्याें हैं इसे जानना हाेगा और फिर उसके निदान के लिए सही रास्ता चुनना पड़ेगा।
ईश्वर हमारी आस्था का नाम है। और यह आस्था हमारे भीतर के विश्वास काे मजबूत करती है और आत्मविश्वास से भर देती है। हमें अपने भातर के ईश्वर से खुद साक्षात्कार करना हाेगा। काेई संत ईश्वर के साथ हमारा समागम नहीं करा सकता। दर असल यह सब एक मकड़जाल है। इस मकड़जाल में नेता से लेकर आमजन तक हर आदमी जकड़ा हुआ है जकड़ता जा रहा है। वह बिना मेहनत के सब कुछ हासिल करने का ख्वाब सजा रहा है। इसलिए कभी काला पर्स मशहूर हाे जाता है ताे कभी कुछ।
अगर आप निःसंतान है ताे डाक्टर की राय ही आपके लिए महत्वपूर्ण है। और अगर आप बेराेजगार है ताे आपकाे देखना हाेगा कि आप क्या कर सकते हैं और कैसे कर सकते हैं। अगर पारिवारिक समस्या है ताे उसे सुलझाना भी परिवार के साथ ही है। और अगर बच्चे नालायक हैं ताे उसे सुधारने की चाबी भी आपके पास ही है।
अपने मन में संकीर्तन कीजिए। अपने मन काे साफ कीजिए। अपने भीतर प्यार, उदारता और ईमानदारी पैदा कीजिए। आपके सारे डर छूमंतर हाे जाएंगे। मजबूत बनिए। आज सबसे ज्यादा तकलीफ में महिलाएं ही हैं। उनके साथ उनकी बच्चियाें के साथ बलात्कार हाे रहा है, हिंसा हाे रही है। हत्या हाे रही है। वह शाेषण का शिकार बनती जा रही है। अखबार का हर पन्ना इसी तरह की खबराें से भरा है। सनसनी खेज अपराध के वीडियाे वायरल हाे रहे हैं। अश्लील सीडी पकड़ी जा रही हैं। पर सच और भी कुछ है।
वह मजबूत भी हाे रही हैं। उनके सपनाें का आकाश साफ हाे रहा है। 4 साल की बच्ची के साथ भी पढ़ाई करके वह आईएएस की परीक्षा में दूसरे नंबर पर आती है। पहलवानी से लेकर तीरंदाजी और हाकी से लेकर क्रिकेट तक में उसने मैडल अपने नाम कर लिए हैं।
पर यह आकड़ा अभी बहुत है। हमें इस आकड़े के ग्राफ काे बढ़ाना है। अखबार के हर पन्ने में जब महिलाआें की सफलता की कहानियां हाेगी तभी सच्ची आजादी हाेगी। इसके लिए बस हमें अपनी समस्या और उसके निदान के सही रास्ते पर नजर रखनी हाेगी। साधु समाज का यह रास्ता आपकाे गलत रास्ते पर ले जा रहा है।

रविवार खास कहानी -खत हमारे प्यार का-अनामिका शर्मा

दोपहर 2 बजे । Ting-tong , ting-tong आ रही हूँ पापा ! पापा आ गये !पापा आ गये !( कृति ने दरवाजा खोलते ही पापा को गले लगा लिया ।)हाँ मेरी बेटी! मम्मी कहाँ है? "मम्मी तो अभी बाहर गई है।"अच्छा, कहा गई है? कब आएँगी? कुछ बताया था? "नही भइया । भाभी ने बस इतना कहा था कि वह आपको मैसेज कर देंगी । अच्छा भइया मेरे ट्यूशन का टाईम हो रहा है, इसलिए मैं जा रही हूँ । बाय । "( दीपा ने बाहर जाते हुए कहा)सुबोध ने मोबाइल देखा । अर्चना का मैसेज था, "मैं बाजार जा रही हूँ । आने में देर हो जाएगी ।खाना गर्म करके समय से खा लेना और कृति को भी खिला देना ।दीपा को तो ट्यूशन जाना है, तुम्हारे आते ही वह निकल जाएगी ।तुम घर पर हो तो सारे काम आराम से निपटा कर ही आउंगी ।बाय ।"सुबोध ने मोबाइल एक तरफ रख दिया ।कपड़े बदल कर खाना गर्म किया कृति को खिलाया और खुद खाने की कोशिश करने लगा । आज अपने आप खाना गर्म करके लेना उसे अजीब लग रहा था ।शादी के बाद इन चार सालों में सुबोध ने कभी खुद खाना लेकर नहीं खाया । खाना ही क्या न कभी एक कप चाय बनाई, न कभी अपने कपड़े तह करके रखे ,न कभी प्रेस करी । बाजार का भी बहुत सा काम अर्चना ही करती आई है । सुबह जब वह नहा कर निकलता है तब उसे अपने कपड़े, बेल्ट, लैपटॉप बैग, मोबाइल, चार्जर, गाड़ी की चाभी , लंच बाक्स सभी तैयार मिलता है ।हर काम अर्चना कर देती है ।उसके कहने से पहले ही उसकी हर जरूरत पूरी हो जाती है ।"पापा! यह होमवर्क करवा दो ना प्लीज, मम्मी तो लेट आएगी फिर मेरे खेलने का वक्त हो जाएगा ।"सुबोध ने कृति को होमवर्क करवाया ।फिर कृति खेलने लगी ।सुबोध ने घड़ी देखी ।ओह, अभी तक 3 ही बजा है ।वक्त तो जैसे थम सा गया है ।अर्चना नहीं है तो जैसे घर खाने को दौड़ रहा है ।सुना सुना सा । वर्ना अर्चना इतना बोलती है कि मुझे कहना पड़ता है, "अब तो चुप हो जा देवी । और वह झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहती है, हाँ, सही है । अब तो आपको मेरा बोलना भी पसंद नहीं है ।और शादी से पहले कितनी बार फोन करते थे, वह भी सिर्फ मेरी आवाज सुनने के लिए ।" सुबोध के होठों पर प्यार भरी मुस्कान फैल गई ।मुस्कुराते हुए अचानक उसकी मुस्कान फीकी पड़ गई, उसे सुबह हुई घटना याद आ गई । सुबोध को देर हो रही थी और उसकी जरुरी फाइल, जो उसने कार की चाबी के साथ रखी थी नही मिल रही थी ।अर्चना नहाने चली गई थी तो कौन मदद करता ।अर्चना जैसे ही नहा कर आई सुबोध उस पर बरस पड़ा , "पता नही क्या जल्दी रहती है नहा कर तैयार होने की? तुम्हे कौन सा ऑफिस जाना है? पहले मेरा सामान तो सही से रख देती ।अब मेरी फाइल और चाबी लाकर दोगी या ऐसे ही घूरती रहोगी? "अर्चना ने सुबोध के बैग में से फाईल जो कि सुबोध ने ही उसे बैग मे रखने को दी थी और टेबल पर रखी चाबी जो कि वहां रखे फूलदान की ओट से छिप रही थी निकाल कर सुबोध को दे दी और चुपचाप अपने कमरे में चली गई ।अब सुबोध को बुरा लग रहा था ।गलती उसकी थी, उसे अहसास तो था लेकिन उसके अंदर का पति नाम का शख्स उसे माफी न मांगने के लिए उकसा रहा था । ऐसा कभी नही हुआ था कि सुबोध हाफ डे पर घर आया हो और अर्चना बाहर चली जाये । वह उससे नाराज थी इसलिए बिना कुछ कहे चली गई थी । वर्ना अर्चना तो बहाने ढूंढती थी कि सुबोध जल्दी घर आये तो उसके साथ थोड़ा वक्त बिता पाये । सुबोध सोचने लगा कि शादी के पहले यह अहम कभी उनके बीच क्यों नही आया? क्या इसलिए क्योंकि नया नया प्यार था । या इसलिए क्योंकि कोई सामाजिक तमगा नही था । या इसलिए क्योंकि वक्त बहुत कम होता था और उस थोड़े से वक्त मे रूठे हुए को मनाना भी होता था और प्यार भी जताना होता था ।लेकिन अब शादी के बाद कभी भी बात कर सकते है, कभी भी गुस्सा दिखा सकते है और मना सकते है ।लेकिन यह कभी भी, कभी आता ही नही और दोनो मे से कोई एक समझौता कर लेता है अपने आप ।न रूठना, न मनाना । न हँसी, न ठिठोली । अब तो पास भी सिर्फ शरीर की जरूरत के लिए ही आते है और बात भी घर की जरूरतो तक ही सीमित रह जाती है ।अब याद नही कब उसका हाथ अपने हाथ मे लेकर उससे बाते की हो, उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा हो और वह मेरे कंधे पर सिर रख कर सोई हो । प्यार से गले लगाना तो भूल ही गया हूँ ।आज भी याद है मुझे शादी से पहले जब अर्चना किसी बात पर नाराज हो गई थी और मेरा फोन रिसीव नहीं कर रही थी तब उसे मनाने के लिए और उसकी एक झलक पाने के लिए शहर के इस कोने से दूसरे कोने मे बसे उसके घर तक गया था और घर के बाहर खड़े होकर मैसेज किया था, "बात मत कीजिए पर जरा खिड़की से बाहर तो झांकिये " और मुझे वहां देख कर उसका सारा गुस्सा काफूर हो गया था , बच्चों जैसे खुश हो गई थी और वह पूरी रात हमने फोन पर बात करके काटी थी । पर अब,अब मैं करू भी तो क्या? जब भी समय निकालकर उसके साथ बैठने की, उसके साथ समय बिताने की कोशिश करता हूँ उसे कभी कपड़े प्रेस करने होते है, कभी वह थकी हुई होती है,कभी बच्चो का होमवर्क बीच में आ जाता है और तो और कभी मैडम का फेवरिट सीरियल का टाईम होता है जिसे किसी भी वजह से मिस नही किया जा सकता । गोया सीरियल न हुआ बोर्ड एक्जाम हुआ जिसे मिस नहीं किया जा सकता ।तब तो बड़ा गुस्सा आता है मुझसे ज्यादा महत्वपूर्ण उसके लिए टीवी सीरियल हो गये है ।पर अगले ही पल लगता है मै भी तो यही करता आया हूँ उसके साथ ।जब वह वक्त चाहती है मुझे काम होता है । वह काम से छुट्टी लेने को कहती है और मैं अपनी कीमती छुट्टी बिना वजह बर्बाद नहीं करना चाहता । बिना वजह छुट्टी ले ली और कोई एमरजेंसी हो गई फिर छुट्टी न मिली तो? एक मिडिल क्लास आदमी को कितना डर डर के जीना पड़ता है । हर चीज बचा बचा कर रखनी होती है । चाहे वह पैसा हो या छुट्टी । और समय न दे पाने के कारण वह नाराज हो जाती है । कहती है "तुम्हे हर काम के लिए छुट्टी मिल जाती है, मम्मी जी या पापाजी की तबीयत खराब हो तब भी, या बच्चो का कोई भी काम हो तब भी लेकिन जब मैं चाहती हूँ तब नही और मेरी बिमारी पर भी नही मिलती " सही कहती है अर्चना, वह बिमार होती है और मैं उसे दवाई दे कर काम पर आ जाता हू सिर्फ यह कह के कि शाम तक ठीक नही हुआ तो डाक्टर को दिखा आएंगे । और शाम तक वह ठीक भी हो जाती है क्योंकि शायद बिमार उसका शरीर नही दिल होता है जिसे प्यार और अपनेपन की डोज चाहिए होती है, जिसे मिलने की उम्मीद को मैं हर बार रौंद देता हूँ ।और वह बिना कहे सब समझ जाती है ।यह उम्मीद तो पूरी होने से रही ।कितने अकेले हो गये है हम दोनो । साथ होकर भी साथ नही है । पास हो कर भी दिल से दूर हो गये है । सिर्फ चार साल में ही हमारा प्यार दम तोडने लगा है । पता नही उसके मन मे क्या चल रहा होगा अभी? क्या वह मुझसे नाराज है? क्या इतना परेशान हो गई है कि मुझसे दूर रहना चाहती है? क्या उसे अहसास नही कि मै इन्तजार कर रहा हूँ उसका ।अभी तो सिर्फ दो घंटे ही हुए है उसका इंतजार करते हुए, उससे बात किये हुए और मन बेचैन सा होने लगा है , पर उसने तो कितनी राते काटी है मेरे इंतजार में, कितनी बार भूखी सोई है मेरे साथ खाना खाने के इंतजार में । बेइंतहा प्यार करता हूँ अर्चना से ।कही अपने अहम में मैं उसे खो न दूं । मुझे मेरे अहम को एक तरफ रख कर पहल करनी होगी । आज जब वह आएगी मै उसकी नाराज़गी दूर करने की कोशिश करूंगा । और कुछ समय हमारे प्यार के लिए जरूर दूंगा । पर ऐसा क्या करू जिससे वह खुश हो जाए और सारी नाराज़गी भूल जाए ।सुबोध ने अपना लेपटॉप उठाया और ऑनलाइन एक अच्छा सा बुके ऑर्डर कर दिया ।तभी उसे एक आईडिया आया ।वह अपनी टेबल पर रखा रजिस्टर लेने गया तो उसकी नजर पेपर वेट के नीचे रखे पन्ने पर पड़ी जो हवा के झोंके से हिलते हुए अपनी उपस्थिति का अहसास करवा रहा था ।सुबोध ने उसे देखा उसके उपर लिखा था "ख़त हमारे प्यार का " सुबोध हँस पड़ा क्योंकि वह भी अर्चना को ख़त लिखने की सोच रहा था ।सुबोध ने बड़ी उत्सुकता से उस ख़त को खोला और पढ़ने लगा ।प्यारे सुबु चौक गये न यह नाम देखकर । पर यह नाम देखकर अगर तुम्हारे होठों पर मुस्कान आ गई है तो हमारी आधी परेशानी तो खत्म हुई समझो । (सुबोध मुस्कुराने लगा)याद है ना कि यही कह के बुलाया करती थी मैं तुम्हे शादी से पहले । पर शादी के बाद बड़ो के सामने इस नाम से बुला ही नही पाई । और तुम कब सुबु से कृति के पापा बन गये पता ही नही चला।वैसे भी शादी के बाद प्यार के कितने पल बिता पाये है हम साथ? पर अभी शिकायत नही करनी है कुछ कहना है ।पिछले दो महीने से देख रही हू तुम बहुत परेशान से रहते हो । हो सकता है काम का प्रेशर हो या कोई परेशानी? मै बहुत समय से बात करना चाह रही थी पर कभी मेरा तो कभी तुम्हारा ईगो बीच मे आ जाता है ।कभी तुम अजीब बर्ताव करते हो, मुझ पर गुस्सा होते । यहा तक तो ठीक था लेकिन जो आज सुबह हुआ ।तुम कितना भी परेशान हो पर कभी इस तरह से बात नही करते ।इस तरह के शब्दो का इस्तेमाल तो बिल्कुल भी नही करते ।क्या हम ऐसे थे सुबोध? शादी से पहले सभी हमारे प्यार की मिसाल देते थे ।मुझे आज भी याद है जब तुम MBA करने के लिए दूसरे शहर गये थे तब भी कभी दूरी का अहसास नही होने दिया था तुमने ।कभी-कभी गलतफहमिया हो जाती थी लेकिन हम उसे सुलझा कर फिर से एक दूजे के प्यार मे डूब जाते थे ।साथ ही तुम्हे कोई भी कैसी भी परेशानी होती थी तुम मुझे जरूर बताते थे ।पर अब ऐसा क्या हो गया कि हम पास हो कर दूर हो गये । आज बात करने के लिए ख़त का सहारा लेना पड़ रहा है ।तुम्हे कोई परेशानी है, कोई शिकायत है तो कहो मुझसे । चुप रहने से समस्या बढती ही है ।और एक बात और यह जो वक्त है न सुबु लौट कर नही आएगा ।मै नही चाहती की उम्र की सांझ मे हम यह सोचकर पछतावा करे कि एक-दूसरे को वक्त नही दिया । पता है मुझे तुम बहुत बिजी रहते हो । वक्त तो चुराना पड़ता है जैसे शादी से पहले छुप छुपकर मिलने के लिए चुराते थे ।तो तैयार हो जाओ शादी के बाद की इस पहली डेट के लिए ।आज का डिनर हम बाहर ही करेंगे ।बाकी सब मैनेज हो जायेगा तुम्हे एड्रेस मैसेज कर दिया है ।आ जाना टाईम से ।अब वही मुलाकात होगी हमारी । सुबोध ने भीगी आँखो से लेटर को एक तरफ रखा और सोचने लगा एक अहम हम दोनो के बीच कितनी दूरी ले आया ।अगर आज अर्चना पहल नही करती तो कितनी बाते अनकही रह जाती ।सुबोध ने अपने आँसू पोंछे और तैयार होने लगा ।आज उसे बिल्कुल ऐसा महसूस हो रहा था जैसे शादी से पहले डेट पर जाने पर होता था

शनिवार, 28 अप्रैल 2018

पेरेंटिंग स्पेशल-पिकनिक पर जाएं नालेजबुक संग लाएं- डा. अनुजा भट्ट

नम्रता थापा
अक्सर लोग यह सोचते हैं कि घूमना फिरना समय की बर्बादी है बल्कि घूमना बच्चों को सिखाने का सबसे बढ़िया तरीका है। बच्चे को स्कूल की चारदिवारी से निकालें, उन्हें दुनिया को समझने दें और खेल-खेल में नई बातें सीखने दें। उन्हें मौका दें नए लोगों से मिलने का, नई जगह के तौर तरीके और कल्चर को समझने का। इसलिए साल में एक बार उन्हें ऐसी जगह ले कर जरूर जाएं जहां आप पहले कभी न गए ह बच्चों को हाईकिंग, कैम्पिग के लिए ले जाएं उन्हें यह सिखाने के लिए कि हमें प्रकृति और वातावरण से कितना कुछ मिलता है और हमें उनकी देखभाल करनी चाहिए।  इसके अलावा आप बच्चों को पेड़ पौधों के बारे में भी जानकारी दे सकते हैं कि कैसे उनसे हमें दवाएं मिलती हैं, सांस लेने के लिए साफ हवा मिलती है। इसके अलावा और भी कई बातें हैं जिनके बारे में आप उन्हें बता सकते हैं।
 बर्फबारी दिखाना -  ऐसा कौन सा बच्चा होगा जोकि बर्फ के गोले बनाकर उसके साथ खेलना नहीं चाहेगा। यह उसके लिए जिंदगी भर याद रखने वाला अनुभव होगा इसलिए बच्चों को एक बार बर्फबारी दिखाने जरूर ले जाएं।
   आजकल विमान से ट्रैवल करना कोई बड़ी बात नहीं हैं लेकिन हाॅट ऐयर बैलून की राइड बच्चों को बहुत आकर्षित करती है।  आप बच्चों को राजस्थान मंे जैसलमेर, जोधपुर या फिर हांपी ले जा सकते हैं जहां पर ऐयर बैलून राइड पूरे वर्ष ही कराई जाती है।
विमान से यात्रा करने से समय की बचत तो होती है लेकिन यदि आप ट्रेन से यात्रा करते हैं तो समय तो तिगुना लगता है लेकिन जो आपको अनुभव मिलता है वह अमूल्य होता है।  आपको देखने मिलती हैं विभिन्न शहरों और गांवों की झलकियां, पहाड़, नदियां अलग अलग स्टेशनों पर गाड़ी का रूकना आदि आदि। जोकि आपके साथ जीवन भर रहते हैं।  यदि हो सके तो भारत की धरोहर टाॅय ट्रेन जोकि दार्जिलिंग और शिमला में चलती है तो उस अनुभव का कोई मुकाबला नहीं है।
  यह बहुत जरूरी है कि बच्चे अपने देश के अंदर मौजूद विभिन्न संस्कृतियों को जानें।  इसके लिए साल में किसी ऐसे राज्य में जहां पर कि उनका वार्षिक या धार्मिक उत्सव या मेला चल रहा हो बच्चों को लेकर जरूर जाएं।  इससे बच्चा अपने कल्चर के अलावा दूसरे लोगों की परंपराओं की पहचान भी करेगा साथ ही आप सब खूब मजा भी करेंगें।
  यदि इतिहास और ऐतिहासिक चीजों की बातें अगर क्लासरूम में बैठकर करें तो यह बच्चों के लिए बोरिंग हो जाता है लेकिन यदि यही बातें हम उन्हें उन ऐतिहासिक जगहों पर ले जाकर करें तो उन्हें वह बहुत ध्यान से सुनते हैं और याद भी रखते हैं। जब आप वहां जाएं तो वहां पर मौजूद गाइड को भी जरूर अपने साथ ले लें ताकि वह उस जगह के ऐतिहासिक महत्व की पूरी जानकारी दे सके।
   बच्चों के अंदर एंडवेंचर करने का शौक पैदा करना हो तो उन्हें ऐसे रोड ट्रिप पर ले जाएं जहां पर आमतौर पर लोग न जाते हों। इससे बच्चों को अपने दोस्तों को नई नई कहानियां सुनाने को मिलेंगी साथ ही कुछ नया करने की खुशी मिलेगी।  इससे आप बच्चे को यह भी सिखा सकते हो कि यदि हम कोई हटकर काम कर रहे हैं तो हमें क्या-क्या सावधानियां रखनी चाहिए।
   आपके बच्चे को किस खेल में ज्यादा रूचि है।  यदि आपके शहर या आसपास में उस खेल का कोई राष्ट्रीय या अंतराष्ट्रीय मैच आयोजित हो रहा हो तो बच्चे को वह दिखाने के लिए ले जाएं। यदि उसकी रूचि डांस या म्यूजिक में हो तो उन्हें किसी काॅन्सर्ट में ले कर जा सकते हैं। इससे आपका और आपके बच्चे के बीच संबध भी गहरा होगा।
   किसी दिन ऐसा कीजिए कि अपने बिजी शेडयूल में से यूं ही सब छुट्टी ले लें। बच्चों को भी स्कूल से छुट्टी करा दें और कहीं पिकनिक पर जाएं। म्यूजियम जाएं या फिर एमयूसमेंट पार्क। जहां मन करे वहां जाएं और बच्चों के साथ समय बिताएं और एंज्वाय करें।



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मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

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