गुरुवार, 3 मई 2018

THURSDAY CELEBRITY- मिलिए आमला शंकर से

 उम्र 98 साल, हौंसला 16 साल जैसा। अपनी प्रतिभा का परिचय हर जगह दिया। उनके लिए प्रतिभा का उजागर करने का अर्थ कुछ और ही है। वह इसके जरिए ईश्वर के साथ संवाद करती हैं। मशहूर नृत्यांगना आमला शंकर ने खुद को एक पेंटर के रूप में स्थापित ही नहीं किया बल्कि इसे उन्होंने उस परमपिता परमात्मा से बात करने का जरिया भी बना लिया है।
आमला शंकर खूबसूरती और प्रकृति की बहुत बड़ी प्रशंसक हैं। 
अपनी आर्ट के प्रति रूचि के बारे में आमला जी बताती हैं कि बचपन में मैं अल्पना के डिजाइन बनाया करती थी जोकि गांवांे में आम बनाए जाते थे। लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं कभी पेंटिंग करूंगी या इस आर्ट को सीखूंगी।
सन् 1956 में महात्मा बुद्ध की 2500 जन्म पुण्यतिथि के अवसर पर मेरे पति उदय शंकर जी को काम सौंपा गया जिसमें कि उन्हें एक स्टेज प्ले शो के लिए शैडो स्लाइडस बनाने का।  उसके लिए बहुत से लैंडस्केप, आर्किटेक्चर के स्लाइडस बनाए गए लेकिन जब उन्हें लगाया गया तो उनके बीच में गैप नजर आ रहा था जिसकी वजह से वह भद्दे लग रहे थे।  बहुत नुकसान हो रहा था। तब मैंनें ऐसे ही काले और सफेद लिक्विड कलर उठाए और अपनी उंगलियों से पेड़ और रास्ते बनाने शुरू कर दिए।  जब उन्हें स्क्रीन पर देखा गया तो शैडो बहुत सुंदर लग रहे थे। बिल्कुल 3डी इफेक्ट आ रहा था।  सबको बहुत पसंद आया तब मैंने शुरू किया और 82 स्लाइडस बनाई और उन्हें स्पेशल कैमरे के साथ दिखाया गया।  उसके बाद से तो जब भी कोई पेपर हाथ में आता मैं उस पर ड्राइंग करने लगती।
डांसिग और पेंटिग के बारे में आमला जी कहती हैं कि मैं इस संसार में एक अनाज के दाने की तरह हूं।  मैं यह नहीं सोचती कि मैं एक डांसर या पेंटर की तरह जियूं या फिर एक मां की तरह।  यह सब ईश्वर की पूजा के लिए है। नृत्य फूल है और धार्मिकता उसकी खुशबू।  इमोशन भाव हैं पेंटिग में जोकि लोगों को अपनी ओर आकृषित करता है जोकि इस आर्ट के प्राण हैं
  98 वर्ष की उम्र में उन्होंने खुद को नए सिरे से खोजा है और एक नई जिंदगी की शुरूआत की है।  उन्होंने पेंटिग कहीं सीखी नहीं है बल्कि अपनी कल्पनाशक्ति से ही उन्हें साकार किया है।  उनकी ज्यादातर पेंटिंग में इमेजिन की हुई गुफाएं हैं, महात्मा बुद्ध का जीवनदर्शन, कई तरह के लैंडस्केपस और जीसस क्राइस्ट के बारे में हैं।  उनकी कलाकृतियों में आध्यात्मिकता झलकती है।  आमला शंकर को पद्मभूषण, टैगोर फैलो आॅफ संगीत नाटक अकादमी और बंगा विभूषण आॅफ द गर्वनमेंट आॅफ वेस्ट बंगाल।

कोई टिप्पणी नहीं:

special post

कुमाऊंनी भाषा के कबीर रहीम की जोड़ी डा. अनुजा भट्ट

   हल्द्वानी जो मेरे बाबुल का घर है जिसकी खिड़की पर खड़े होकर मैंने जिंदगी को सामने से गुजरते देखा है, जिसकी दीवारों पर मैंने भी कभी एबीसी़डी ...