रविवार, 29 अप्रैल 2018

रविवार खास कहानी -खत हमारे प्यार का-अनामिका शर्मा

दोपहर 2 बजे । Ting-tong , ting-tong आ रही हूँ पापा ! पापा आ गये !पापा आ गये !( कृति ने दरवाजा खोलते ही पापा को गले लगा लिया ।)हाँ मेरी बेटी! मम्मी कहाँ है? "मम्मी तो अभी बाहर गई है।"अच्छा, कहा गई है? कब आएँगी? कुछ बताया था? "नही भइया । भाभी ने बस इतना कहा था कि वह आपको मैसेज कर देंगी । अच्छा भइया मेरे ट्यूशन का टाईम हो रहा है, इसलिए मैं जा रही हूँ । बाय । "( दीपा ने बाहर जाते हुए कहा)सुबोध ने मोबाइल देखा । अर्चना का मैसेज था, "मैं बाजार जा रही हूँ । आने में देर हो जाएगी ।खाना गर्म करके समय से खा लेना और कृति को भी खिला देना ।दीपा को तो ट्यूशन जाना है, तुम्हारे आते ही वह निकल जाएगी ।तुम घर पर हो तो सारे काम आराम से निपटा कर ही आउंगी ।बाय ।"सुबोध ने मोबाइल एक तरफ रख दिया ।कपड़े बदल कर खाना गर्म किया कृति को खिलाया और खुद खाने की कोशिश करने लगा । आज अपने आप खाना गर्म करके लेना उसे अजीब लग रहा था ।शादी के बाद इन चार सालों में सुबोध ने कभी खुद खाना लेकर नहीं खाया । खाना ही क्या न कभी एक कप चाय बनाई, न कभी अपने कपड़े तह करके रखे ,न कभी प्रेस करी । बाजार का भी बहुत सा काम अर्चना ही करती आई है । सुबह जब वह नहा कर निकलता है तब उसे अपने कपड़े, बेल्ट, लैपटॉप बैग, मोबाइल, चार्जर, गाड़ी की चाभी , लंच बाक्स सभी तैयार मिलता है ।हर काम अर्चना कर देती है ।उसके कहने से पहले ही उसकी हर जरूरत पूरी हो जाती है ।"पापा! यह होमवर्क करवा दो ना प्लीज, मम्मी तो लेट आएगी फिर मेरे खेलने का वक्त हो जाएगा ।"सुबोध ने कृति को होमवर्क करवाया ।फिर कृति खेलने लगी ।सुबोध ने घड़ी देखी ।ओह, अभी तक 3 ही बजा है ।वक्त तो जैसे थम सा गया है ।अर्चना नहीं है तो जैसे घर खाने को दौड़ रहा है ।सुना सुना सा । वर्ना अर्चना इतना बोलती है कि मुझे कहना पड़ता है, "अब तो चुप हो जा देवी । और वह झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहती है, हाँ, सही है । अब तो आपको मेरा बोलना भी पसंद नहीं है ।और शादी से पहले कितनी बार फोन करते थे, वह भी सिर्फ मेरी आवाज सुनने के लिए ।" सुबोध के होठों पर प्यार भरी मुस्कान फैल गई ।मुस्कुराते हुए अचानक उसकी मुस्कान फीकी पड़ गई, उसे सुबह हुई घटना याद आ गई । सुबोध को देर हो रही थी और उसकी जरुरी फाइल, जो उसने कार की चाबी के साथ रखी थी नही मिल रही थी ।अर्चना नहाने चली गई थी तो कौन मदद करता ।अर्चना जैसे ही नहा कर आई सुबोध उस पर बरस पड़ा , "पता नही क्या जल्दी रहती है नहा कर तैयार होने की? तुम्हे कौन सा ऑफिस जाना है? पहले मेरा सामान तो सही से रख देती ।अब मेरी फाइल और चाबी लाकर दोगी या ऐसे ही घूरती रहोगी? "अर्चना ने सुबोध के बैग में से फाईल जो कि सुबोध ने ही उसे बैग मे रखने को दी थी और टेबल पर रखी चाबी जो कि वहां रखे फूलदान की ओट से छिप रही थी निकाल कर सुबोध को दे दी और चुपचाप अपने कमरे में चली गई ।अब सुबोध को बुरा लग रहा था ।गलती उसकी थी, उसे अहसास तो था लेकिन उसके अंदर का पति नाम का शख्स उसे माफी न मांगने के लिए उकसा रहा था । ऐसा कभी नही हुआ था कि सुबोध हाफ डे पर घर आया हो और अर्चना बाहर चली जाये । वह उससे नाराज थी इसलिए बिना कुछ कहे चली गई थी । वर्ना अर्चना तो बहाने ढूंढती थी कि सुबोध जल्दी घर आये तो उसके साथ थोड़ा वक्त बिता पाये । सुबोध सोचने लगा कि शादी के पहले यह अहम कभी उनके बीच क्यों नही आया? क्या इसलिए क्योंकि नया नया प्यार था । या इसलिए क्योंकि कोई सामाजिक तमगा नही था । या इसलिए क्योंकि वक्त बहुत कम होता था और उस थोड़े से वक्त मे रूठे हुए को मनाना भी होता था और प्यार भी जताना होता था ।लेकिन अब शादी के बाद कभी भी बात कर सकते है, कभी भी गुस्सा दिखा सकते है और मना सकते है ।लेकिन यह कभी भी, कभी आता ही नही और दोनो मे से कोई एक समझौता कर लेता है अपने आप ।न रूठना, न मनाना । न हँसी, न ठिठोली । अब तो पास भी सिर्फ शरीर की जरूरत के लिए ही आते है और बात भी घर की जरूरतो तक ही सीमित रह जाती है ।अब याद नही कब उसका हाथ अपने हाथ मे लेकर उससे बाते की हो, उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा हो और वह मेरे कंधे पर सिर रख कर सोई हो । प्यार से गले लगाना तो भूल ही गया हूँ ।आज भी याद है मुझे शादी से पहले जब अर्चना किसी बात पर नाराज हो गई थी और मेरा फोन रिसीव नहीं कर रही थी तब उसे मनाने के लिए और उसकी एक झलक पाने के लिए शहर के इस कोने से दूसरे कोने मे बसे उसके घर तक गया था और घर के बाहर खड़े होकर मैसेज किया था, "बात मत कीजिए पर जरा खिड़की से बाहर तो झांकिये " और मुझे वहां देख कर उसका सारा गुस्सा काफूर हो गया था , बच्चों जैसे खुश हो गई थी और वह पूरी रात हमने फोन पर बात करके काटी थी । पर अब,अब मैं करू भी तो क्या? जब भी समय निकालकर उसके साथ बैठने की, उसके साथ समय बिताने की कोशिश करता हूँ उसे कभी कपड़े प्रेस करने होते है, कभी वह थकी हुई होती है,कभी बच्चो का होमवर्क बीच में आ जाता है और तो और कभी मैडम का फेवरिट सीरियल का टाईम होता है जिसे किसी भी वजह से मिस नही किया जा सकता । गोया सीरियल न हुआ बोर्ड एक्जाम हुआ जिसे मिस नहीं किया जा सकता ।तब तो बड़ा गुस्सा आता है मुझसे ज्यादा महत्वपूर्ण उसके लिए टीवी सीरियल हो गये है ।पर अगले ही पल लगता है मै भी तो यही करता आया हूँ उसके साथ ।जब वह वक्त चाहती है मुझे काम होता है । वह काम से छुट्टी लेने को कहती है और मैं अपनी कीमती छुट्टी बिना वजह बर्बाद नहीं करना चाहता । बिना वजह छुट्टी ले ली और कोई एमरजेंसी हो गई फिर छुट्टी न मिली तो? एक मिडिल क्लास आदमी को कितना डर डर के जीना पड़ता है । हर चीज बचा बचा कर रखनी होती है । चाहे वह पैसा हो या छुट्टी । और समय न दे पाने के कारण वह नाराज हो जाती है । कहती है "तुम्हे हर काम के लिए छुट्टी मिल जाती है, मम्मी जी या पापाजी की तबीयत खराब हो तब भी, या बच्चो का कोई भी काम हो तब भी लेकिन जब मैं चाहती हूँ तब नही और मेरी बिमारी पर भी नही मिलती " सही कहती है अर्चना, वह बिमार होती है और मैं उसे दवाई दे कर काम पर आ जाता हू सिर्फ यह कह के कि शाम तक ठीक नही हुआ तो डाक्टर को दिखा आएंगे । और शाम तक वह ठीक भी हो जाती है क्योंकि शायद बिमार उसका शरीर नही दिल होता है जिसे प्यार और अपनेपन की डोज चाहिए होती है, जिसे मिलने की उम्मीद को मैं हर बार रौंद देता हूँ ।और वह बिना कहे सब समझ जाती है ।यह उम्मीद तो पूरी होने से रही ।कितने अकेले हो गये है हम दोनो । साथ होकर भी साथ नही है । पास हो कर भी दिल से दूर हो गये है । सिर्फ चार साल में ही हमारा प्यार दम तोडने लगा है । पता नही उसके मन मे क्या चल रहा होगा अभी? क्या वह मुझसे नाराज है? क्या इतना परेशान हो गई है कि मुझसे दूर रहना चाहती है? क्या उसे अहसास नही कि मै इन्तजार कर रहा हूँ उसका ।अभी तो सिर्फ दो घंटे ही हुए है उसका इंतजार करते हुए, उससे बात किये हुए और मन बेचैन सा होने लगा है , पर उसने तो कितनी राते काटी है मेरे इंतजार में, कितनी बार भूखी सोई है मेरे साथ खाना खाने के इंतजार में । बेइंतहा प्यार करता हूँ अर्चना से ।कही अपने अहम में मैं उसे खो न दूं । मुझे मेरे अहम को एक तरफ रख कर पहल करनी होगी । आज जब वह आएगी मै उसकी नाराज़गी दूर करने की कोशिश करूंगा । और कुछ समय हमारे प्यार के लिए जरूर दूंगा । पर ऐसा क्या करू जिससे वह खुश हो जाए और सारी नाराज़गी भूल जाए ।सुबोध ने अपना लेपटॉप उठाया और ऑनलाइन एक अच्छा सा बुके ऑर्डर कर दिया ।तभी उसे एक आईडिया आया ।वह अपनी टेबल पर रखा रजिस्टर लेने गया तो उसकी नजर पेपर वेट के नीचे रखे पन्ने पर पड़ी जो हवा के झोंके से हिलते हुए अपनी उपस्थिति का अहसास करवा रहा था ।सुबोध ने उसे देखा उसके उपर लिखा था "ख़त हमारे प्यार का " सुबोध हँस पड़ा क्योंकि वह भी अर्चना को ख़त लिखने की सोच रहा था ।सुबोध ने बड़ी उत्सुकता से उस ख़त को खोला और पढ़ने लगा ।प्यारे सुबु चौक गये न यह नाम देखकर । पर यह नाम देखकर अगर तुम्हारे होठों पर मुस्कान आ गई है तो हमारी आधी परेशानी तो खत्म हुई समझो । (सुबोध मुस्कुराने लगा)याद है ना कि यही कह के बुलाया करती थी मैं तुम्हे शादी से पहले । पर शादी के बाद बड़ो के सामने इस नाम से बुला ही नही पाई । और तुम कब सुबु से कृति के पापा बन गये पता ही नही चला।वैसे भी शादी के बाद प्यार के कितने पल बिता पाये है हम साथ? पर अभी शिकायत नही करनी है कुछ कहना है ।पिछले दो महीने से देख रही हू तुम बहुत परेशान से रहते हो । हो सकता है काम का प्रेशर हो या कोई परेशानी? मै बहुत समय से बात करना चाह रही थी पर कभी मेरा तो कभी तुम्हारा ईगो बीच मे आ जाता है ।कभी तुम अजीब बर्ताव करते हो, मुझ पर गुस्सा होते । यहा तक तो ठीक था लेकिन जो आज सुबह हुआ ।तुम कितना भी परेशान हो पर कभी इस तरह से बात नही करते ।इस तरह के शब्दो का इस्तेमाल तो बिल्कुल भी नही करते ।क्या हम ऐसे थे सुबोध? शादी से पहले सभी हमारे प्यार की मिसाल देते थे ।मुझे आज भी याद है जब तुम MBA करने के लिए दूसरे शहर गये थे तब भी कभी दूरी का अहसास नही होने दिया था तुमने ।कभी-कभी गलतफहमिया हो जाती थी लेकिन हम उसे सुलझा कर फिर से एक दूजे के प्यार मे डूब जाते थे ।साथ ही तुम्हे कोई भी कैसी भी परेशानी होती थी तुम मुझे जरूर बताते थे ।पर अब ऐसा क्या हो गया कि हम पास हो कर दूर हो गये । आज बात करने के लिए ख़त का सहारा लेना पड़ रहा है ।तुम्हे कोई परेशानी है, कोई शिकायत है तो कहो मुझसे । चुप रहने से समस्या बढती ही है ।और एक बात और यह जो वक्त है न सुबु लौट कर नही आएगा ।मै नही चाहती की उम्र की सांझ मे हम यह सोचकर पछतावा करे कि एक-दूसरे को वक्त नही दिया । पता है मुझे तुम बहुत बिजी रहते हो । वक्त तो चुराना पड़ता है जैसे शादी से पहले छुप छुपकर मिलने के लिए चुराते थे ।तो तैयार हो जाओ शादी के बाद की इस पहली डेट के लिए ।आज का डिनर हम बाहर ही करेंगे ।बाकी सब मैनेज हो जायेगा तुम्हे एड्रेस मैसेज कर दिया है ।आ जाना टाईम से ।अब वही मुलाकात होगी हमारी । सुबोध ने भीगी आँखो से लेटर को एक तरफ रखा और सोचने लगा एक अहम हम दोनो के बीच कितनी दूरी ले आया ।अगर आज अर्चना पहल नही करती तो कितनी बाते अनकही रह जाती ।सुबोध ने अपने आँसू पोंछे और तैयार होने लगा ।आज उसे बिल्कुल ऐसा महसूस हो रहा था जैसे शादी से पहले डेट पर जाने पर होता था

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