शनिवार, 5 मई 2018

रिश्ताें की रंगाेली- कमलेश आहूजा

दीपावली का पर्व नज़दीक था.मीना के घर तैयारियाँ चल रही थीं क्योंकि उसकी बहु नैना की पहली दीवाली थी.
आज दीपावली का दिन था मीना ने तो सुबह से ही सबको जल्दी जल्दी काम निपटाने की हिदायत दे दी थी, क्योंकि एक तो लक्ष्मी पूजन का समय शाम को 6 बजे का था.दूसरा पूजा के बाद बेटी के ससुराल भी जाना था.दो ननदें भी शहर में रहतीं थीं,वो भी आने वाली थीं. मीना ने पति से कहा -" आप बाजार से मिठाई व फल ले आना.पूजा और रेखा (ननद ) के लिए मैं और बहू गिफ़्ट ले आये थे.बेटी के लिए और दामाद जी के लिए भी कपड़े ले लिए थे ".
 दोपहर के खाने के पश्चात, मीना पूजा की तैयारी करने लगी.नैना को ड्रॉइंग पेंटिंग का बहुत शोंक था इसलिए वो मीना के पास जाकर बोली-"माँ मैं बाहर दरवाजे पर रंगोली बना दूँ ".मीना-" हाँ बेटा क्यों नहीं,बल्कि मैं तुमसे कहने ही वाली थी पर सोचा तुम पहले से इतना काम करके थक गई होगी ".नैना ने दरवाजे पर बहुत सुंदर रंगोली बना दी.
शाम को पूजा के समय मीना ने कुछ दिए जलाकर पूजा वाले स्थान पर रख दिये और कुछ दिए एक थाली में रखकर नैना को कहा कि वो बाहर दरवाजे पर दिए जला दे.नैना ने दीपक रखने की लिए दरवाजा खोला, तो देखा कि रंगोली एक तरफ से किसी के पाँव से बिगड़ से गयी थी.
रंगोली को बिगड़ा हुआ देखकर वो बहुत दुःखी हो गई और मीना को आवाज लगाई -" माँ बाहर आओ ".मीना ने सोचा नैना तो दिए जला रही है,फिर उसे क्यों बुला रही है..?.मीना बाहर आई और नैना से पूछा- "क्या हुआ बेटा,मुझे क्यों बुलाया..?".  नैना ने रोते हुए कहा-" माँ देखो किसी ने मेरी रंगोली बिगाड़ दी.इतनी मेहनत से बनायी थी".मीना ने उसे चुप कराया और उसकी बिगड़ी हुई रंगोली को फिर से ठीक कर दिया. मीना ने नैना से कहा-" देख बेटा मैंने भी अपने जीवन में रिश्तों की रंगोली बनाई है और इसे प्रेम,विश्वास और समर्पण रूपी रंगों से सजाया है.जैसे मैंने आज तेरी बिगड़ी हुई रंगोली को ठीक कर दिया है,ऐसे ही जीवन में कभी कोई मेरी रंगोली बिगाड़े या बिगाड़ने की कोशिश करे,तो तू भी उसे ऐसे ही ठीक कर देना ".मीना रंगोली के माध्यम से नैना को ये बात समझा रही थी कि, जिन कार्यों को करने में हम अपने सारे यत्न लगा देते हैं उन्हें कोई बिगाड़ता है तो कितना दुःख होता है.चाहे वो रंगोली बनाना हो या फिर रिश्ते बनाना.अर्थात जिन रिश्तों को बनाने में हमारे बड़ों ने जो यत्न किये हैं,छोटों का भी कर्तव्य बनता है कि वो उन रिश्तों को सदा संजोकर रखें.नैना को मीना की बात समझ आ गयी थी वह बोली-" जी माँ मैं कभी आपकी रंगोली को बिगड़ने नही दूंगी ".
व्यवहारिक ज्ञान सीखने और सीखाने के लिए बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ने की जरूरत नही होती है, हम दैनिक जीवन में होने वाली छोटी-छोटी घटनाओं से भी बहुत कुछ सीख सकते हैं और  अपने से छोटों को सिखा भी सकते हैं. यही इस कहानी का उद्देश्य है..

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