बुधवार, 19 अप्रैल 2017

आंखों की न करें अनदेखी


हमारी आंखें विट्रीयस जेल से 80 प्रतिशत तक भरी होती है और इसी से आंख की शेप भी बनती है। जब यह जेल कम होकर  सिकुड़ने लगता  है तब रेटीना के अंदर शैडो आने लगती है। इसी स्थिति को फ्लोटर्स कहते हैं।  यदि इसकी  ओर ध्यान नहीं दिया जाए तो यह समस्या बढ़ सकती है जिसके कारण रैटीना तक डिटैच हो सकता है, अंधापन भी आ सकता हैं।  इसलिए आंखो की नियमित जांच जरूरी है।
फ्लोटर्स में आंखो में मकड़ी के जाले बनने लग जाते हैं या फिर धंुधले से स्पाॅट या धागे जैसे पतली लाइन तैरने लग जाती है।  यह धागे या स्पाॅट आंखों में तैरते रहते है। जिस तरफ आप देखते हैं यह भी उसी ओर हो जाते हैं।
 शुरूआत में लोग इसे इग्नोर करते हैं और तब तक इस पर ध्यान नहीं देते जब तक कि वह नजर में परेशानी पैदा करना शुरू नहीं कर देते।    इनका एहसास तब ज्यादा होता है जब आप कुछ चमकदार चीज की ओर देखते हैं जैेसे कि वाइट पेपर या ब्लू स्काई ।  इसके होने से और भी कुछ परेशानियां हो सकती हैं जैसेकि इन्फेक्शन, जलन, रेटिनल टियर्स या आंखों में चोट।
यह उम्र बढ़ने के साथ साथ भी होने लगता है और फिर धीरे धीरे आंख के निचले हिस्से में सेटल हो जाता है और कम तकलीफ देता है लेकिन पूरी तौर पर नहीं जाता है।  उन लोगों को भी यह समस्या हो सकती है जिनकी पास की नजर कमजोर हो, डायबिटीज हो या फिर मोतियाबिंद का आपरेशन हुआ हो। फ्लोटर्स यंग ऐज में भी हो सकते हैं यदि आपकी पास की नजर कमजोर है, सिर में चोट लगी हो या आंख का आपरेशन हुआ हो।
 जिन लोगों को फ्लोटर्स की समस्या हैं उन्हें किसी भी तरह के इलाज कराने की सलाह नहीं दी जाती।  बहुत ही कम केसिस में ऐसा होता है कि फ्लोटर्स इतने बढ़ जाते हैं कि दिखाई देने में परेशानी होने लगती है ऐसी स्थिति में सर्जिकल प्रोसेस विट्रोकोमी करके जेल के स्थान पर साल्ट साल्यूशन डाला जाता है। क्योंकि विट्रोयिस में ज्यादा पानी जैसा ही होता है इसलिए साल्ट साल्यूशन डालने से किसी भी तरह से अलग से पता नहीं चलता।  इसका आॅपरेशन करने की डाक्टर सलाह नहीं देते क्योंकि इसके साथ बहुत से रिस्क जुड़े हुए होते हैं।



मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

खुद पढ़लिखकर बदली समाज की किस्मत



एक किताब ने जिंदगी बदल दी
सावित्रीबाई फूले का नाम समाज में लड़कियों को शिक्षा का अधिकार दिलाने, बहिष्कृत और निराश्रित महिलाओं को समानाधिकार दिलाने के लिए लिया जाता है।  भारतीय समाज में उनकी जिंदगी और उनका काम सामाजिक कल्याण और महिला सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। वह देश की पहली महिला शिक्षिका बनीं।
सावित्रीबाई का जन्म महाराष्ट्र राज्य के एक छोटे से गांव नईगांव में हुआ।  बचपन से ही वह  महत्वाकांक्षी और जिज्ञासु प्रवृति की थी। सावित्रीबाई का विवाह सन् 1840 में 9 वर्ष की आयु में श्री ज्योतीराव फुले से हो गया और वह उनके साथ पुणे आ गईं।
 जब ज्योतिराव ने देखा कि सावित्रीबाई ने अपने पास एक किताब जो उन्हें क्रिशचन मिशिनरी ने दी थी वह बहुत संभालकर रखी हुई थी। यह सब देखकर ज्योतिराव को अहसास हुआ कि उनकी पत्नी को शिक्षा के प्रति असीम लगाव है। वह उनके सीखने की प्रबल इच्छा को देखकर बहुत खुश हुए और उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाना शुरू किया। सावित्रीबाई ने अपनी टीचर ट्रेनिंग अहमदनगर और पुणे में की।  सन् 1847 में वह परीक्षा पास करके पूर्णतः शिक्षित शिक्षिका बन गई।
समाज में महिलाओं की दशा सुधारने को प्रतिबद्ध श्री ज्योतिराव फूले के साथ मिलकर सन् 1848 में लड़कियांे के लिए स्कूल खोला।  उनकी यह यात्रा आसान नहीं थी। इस वजह से उन्हें सोसाईटी में रोष और गालियांे का शिकार भी बनना पड़ा। इतना ही नहीं उन पर रास्ते में गोबर भी फेंका जाता। सावित्रीबाई बिना कुछ कहे अपने साथ रास्ते में एक साड़ी साथ रखती जिससे कि वह स्कूल जाकर अपने कपड़़े बदल सकें।  पर उन्होंने अपनी राह नहीं छोड़ी। सन् 1853 में सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने आसपास के गावों में और स्कूल खोले।
देश में विधवा एंव निराश्रित महिलाओं की दुर्दशा देखकर उन्होंने सन् 1854 में उनके लिए एक शेल्टर होम खोला।  दस वर्ष तक लगातार संघर्ष करने के बाद उन्हांेने सन् 1864 में एक बड़ा शेल्टर होम खोला।  विधवा स्त्रियांे और बालिका वधुओं को उन्होंने अपने शेल्टर में आसरा दिया और साथ में उन्हें पढ़ाया।  उन्होंने एक विधवा स्त्री के पुत्र यशवंतराव  को गोद भी लिया।
निचली जाति के लोगों को ऊंची जाति के लोग गांव के कॉमन कुंए से पानी नहीं पीने देते थे।  इसके लिए ज्योतिराव और सावित्रीबाई ने अपने घर के पीछे उनके लिए कुंआ बनवाया जहां से वह लोग पानी ले सकते थे।  उनके इस कदम ने भी ऊंची जाति के समाज में बहुत रोष उत्पन्न हो गया। सत्यशोधक समाज नाम से श्री ज्योतिराव ने एक संस्था का निर्माण किया इसका मुख्य उद्देश्य समाज से भेदभाव को समाप्त करना था और सबके लिए समानाधिकार वाले समाज की स्थापना करना था। इस समानाधिकार की लड़ाई में सावित्रीबाई ने अपने पति का भरपूर सहयोग किया।
सन् 1873 में सावित्रीबाई ने सत्यशोधक विवाह की शुरूआत की जिसके तहत दंपत्ति समान अधिकार और समान शिक्षा की शपथ लेते थे।
उनके यह सभी प्रयास अनदेखे नहीं रहे।  सन् 1852 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें बेस्ट टीचर की उपाधि से सम्मानित किया।  सन् 1853 में शिक्षा के क्षेत्र में किए गए उनके प्रयासों के लिए उन्हें सम्मानित किया गया।
सन् 1890 में ज्योतिराव के निधन के बाद उन्हांेने सभी मान्यताओं को दरकिनार करते हुए उन्हें मुखग्नि थी। उन्होंने उनकी विरासत को आगे बढ़ाते हुए सत्यशोधक समाज की बागडोर संभाली।
सन् 1897 में महाराष्ट्र में एक बार बहुत भयानक प्लेग बीमारी फैली।  वह सिर्फ मूकदर्शक नहीं बनी बल्कि वह प्रभावित क्षेत्रों में लोगों की मदद करने के लिए चली गईं।  उन्होंने हदाप्सर, पुणे में एक क्लिनिक खोला।  जब वह एक 10 वर्षीय प्लेग से पीड़ित बच्चे को क्लीनिक ला रहीं थी तब वह भी इस बीमारी के किटाणु से संक्रमित हो गईं और 10 मार्च 1897 को उनका देहांत हो गया। उनकी पूरी जिंदगी महिलाओं के लिए प्रकाश का óोत थी।  उनका जीवन हमेशा उन महिलाओं को प्रेरणा देता रहेगा जोकि पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए कुछ करना चाहती हैं।


रविवार, 16 अप्रैल 2017

बुर्जुगों के हाथों में नन्हे मुन्हों की डोर- डा. अनुजा भट्ट



बच्चाें के पेरेंट्स काम पर जाते हैं तो बच्चों की देखभाल का जिम्मा ग्रैंड पेरेंट्स पर आ जाता है।  ग्रैंड पेरेंट बच्चों के दोस्त होते हैे, राजदार होते हैं और साथ ही उन्हें इमोषनल सपोर्ट भी देते हैं।  ग्रैंड पेरेंट्स को  घर-परिवार के इतिहास के बारे में, परंपराओं और संस्कारों के बारे में जानकारी होती है जोकि वह अपने ग्रैंड किड्स को विरासत में दे सकते हैं।  सही गाइडलाइन्स और सपोर्ट से वह बच्चों की जिंदगी में एक महत्वपूर्ण छाप छोड़ सकते हैं।
आज के दौर में जब हसबैंड-वाईफ दोनो वर्किंग है तब नन्हे-मुन्नों से लेकर किशोर बच्चों की जिम्मेदारी ग्रैंड पेरेंट्स पर आ जाती है इस जिम्मेदारी के तहत बच्चों के लिए खाना बनाना, उनको खिलाना, उनके कपड़े धोना से लेकर उनकी सेहत का भी ख्याल रखना होता है जबकि यही वह समय होता है जब उनको आराम की जरूरत होती है मिले। उनको अपनी दिनचर्या में, घर में बहुत से एडजेस्टमेंट करने पड़ते हैं।  ग्रैंड पेरेंट्स के अंदर एनर्जी भी नहीं रहती जो कि यंग ऐज में थी लेकिन उनको यह करना ही होता है। जो ग्रैंड पेरेंट्स यह जिम्मेदारी निभाने से मना कर देते हैं या रूचि नहीं दिखाते, सच तो यह है कि वह अपने भीतर इतनी शक्ति, सहनशक्ति और सांमजस्य बिठा पाने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाते और अन्य अपने हमउम्र के साथियों से आजकल के बच्चों के बारे में पता चलता है कि यह इतना भी आसान नहीं है।  इन सब विचारों का मतलब यह कतई नहीं है कि वह अपने ग्रैंड किड्स से प्यार नहीं करते।
उम्र के इस पड़ाव पर ग्रैंड पेरेंट्स होने के नाते आपके पास बच्चों को पालने की जिम्मेदारी है तो यह बहुत जरूरी है कि आप पहले अपनी सेहत का ख्याल रखें और अपने बच्चों से यह कहने में हिचक महसूस न करें कि कि वह सपोर्ट सिस्टम की व्यवस्था करें।  खुद का ख्याल रखना आपकी पहली जरूरत है।  यदि आप खुद ही ठीक नहीं तो बच्चे का ख्याल कैसे रख पाएंगें। अनुभवों से यह बात सामने आई है कि दूसरी जनेरेशन को पालने के बहुत से फायदे भी होते हैं और नुकसान भी।
  • बच्चों के ग्रैंड पेरेंट्स के पास रहने से बच्चों को एक सुरक्षित वातावरण मिलता है। वहीं ग्रैंड पेरेंट्स को बुढ़ापे में साथ और सुरक्षा मिलती है।
  • बच्चों के साथ उनका रिश्ता मजबूत बनता है।  
  • इससे बच्चों को परिवार के साथ मिलजुल के रहने का महत्व पता चलता है।  
  • अक्सर पेरेंट्स अपनेे बच्चों से छोटे-छोटे काम भी नहीं करवाते कि वह कर नहीं पाएंगें लेकिन अपने बुर्जुग माता-पिता से वह हर काम करवाते हैं। जबकि बच्चे बहुत स्मार्ट और एनर्जी से भरपूर होते हैं।  वह छोटे-छोटे काम दौड़दौड़ कर पूरा कर लेतेें हैं और उससे ग्रैंड पेरेंट्स की मदद भी हो जाएगी।
  • यदि आप अन्य छोटे बच्चों के पेरेंट्स से मिलेगें, बात करेंगें तो हो सकता है कुछ समय लगे लेकिन ऐसे पेरेंट्स से दोस्ती फायदेमंद ही रहेगी।  आप आज के बच्चों की समस्याओं के बारे में जान सकेंगें ।
  • ग्रैंड किड्स के साथ सांमजस्य बिठा पाने में जैसी दिक्कत आपको हो रही है वैसे ही ग्रैंड किड्स के लिए भी खुद को नए मौहाल में ढालना आसान नहीं है । जो बच्चे अपने ग्रैंड पेरेंट्स के साथ नहीं रहते हैं उनकी फीलिंग को समझ पाना आसान नहीं है।   बच्चे की फीलिंग बाहर आने के बहुत तरीके होते हैं। आक्रामक रवैया उनमें से एक हैै। आपके सपोर्ट की उनको जरूरत होती है।  आप भी उनके साथ यदि वैसा ही आक्रामक व्यवहार करने लगेंगें तो स्थिति बनने की बजाय बिगड़ने लगती है।
  • कई बार बच्चे जब ग्रैंड पेरेंट्स के घर में आते हैं और शुरू में बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं लेकिन कुछ समय के बाद उनका व्यवहार बुरा हो जाता है, वह तुनकमिजाज हो जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि वह सुधरे नहीं हैं जैसे पहले थे वैसे ही हैं।  आपको ऐसा लगेगा कि बच्चे आपसे प्यार नहीं करते लेकिन उनका ऐसा बिहेवियर यह दर्शाता है कि वह आपके साथ इतना सुरक्षित महसूस करते हैं कि वह अपनी अंदर की फीलिंग, डर, इमोशन को आपके सामने प्रकट कर सकते हैं।  वह सहज महसूस कर रहे हैं।
  • बच्चों के लिए रूटीन और शेडयूल बनाएं जिसका कि उसे पालन करना हो।  कुछ ऐसे काम रखें जोकि आप और आपके ग्रैंड किड्स वीकएंड या बेडटाइम पर करें।
  • बच्चों के साथ बात करें और उनकी बातों को, उनके सवालों को सुनें।  इससे आप दोनों के बीच भावनात्मक रिश्ता और गहरा होगा।  बच्चों को प्रोत्साहित करें कि वह अपने मन की बात आपसे करें।  उनको जज न करें और न ही उनकी बातों पर हंसें।
  • छोटे बच्चे खुद की भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते। कई बार आपको उनके बिहेवियर को देखकर भी अंदाजा लगाना पड़ता है।
  • आपके पास हर सवाल का जवाब नहीं हो सकता। यदि आपको नहीं पता तो आप सच बोलें न कि आप झूठ बोले या सवाल से बचने की कोशिश करें।  बच्चे इन छोटी छोटी बातों से ही रिश्तों में विश्वास और सच्चाई के महत्व को समझ पाएगंे।
  • बच्चे को किस सिचुऐशन के बारे में कितनी जानकारी दी जानी चाहिए यह उसकी उम्र और समझ को ध्यान मंे रखते हुए ही बताना चाहिए।
  • यदि आपकी अपने ग्रैंड किड्स के पेरेंट्स से नहीं बनती है तो भी कभी भी बच्चे के सामने उन बातों का जिक्र न करें।  
  • बच्चे के पेरेंट्स के साथ रिश्ता अच्छा बना कर रखें।  उन्हें बच्चे के स्कूल, हौबी और दोस्तों के बारे में जानकारी देते रहें।  पेरेंट्स के पास बच्चे का शेडयूल और कानटेक्ट की जानकारी होनी चाहिए।
  • ग्रैंड पेरेंट्स और पेरंेट्स के बीच का बांडिग स्ट्रांग होनी चाहिए। 

ग्रैंड किड्स और ग्रैंड पेरेंट्स की जोड़ी के बारे में पहले से ही कहा जाता है कि बच्चा बूढ़ा एक समान। बूढ़े होते माता-पिता के लिए सहारे की लाठी का काम भी ग्रैंड किड्स ही करते हैं। अगर दोनों के बीच की कैमेस्ट्री स्ट्रांग हो जाए तो घर में रौनक भी रहती है और हम आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत भी बनते हैं।

शनिवार, 15 अप्रैल 2017

प्राकृतिक उपायों से कीजिए दर्द दूर- रेनु दत्त


जब कभी दर्द होता है या चोट लगती है तो सबसे पहले दिमाग में यह बात आती है कि इस दर्द को दूर करने के लिए गर्म पैक लगाएं या ठंडा पैक। आइस पैक और हीटींग पैड पाॅवरफुल दवा नहीं है लेकिन फिर भी यह सबसे सस्ता और आसानी से उपलब्ध उपाय है। यह एक नैचुरल तरीका है।
यदि आम भाषा में बात की जाए तो आइस पैक चोट के लिए होता है और हीट पैक मसल्स के लिए होता है। जब किसी चोट के कारण हमारे टिशू में जलन, रेडनेस, सूजन हो जाती हैं तो उस समय आइस पैक लगाया जाता है।  गर्म पैक मसल्स, तनाव और पुराने दर्द के लिए होता है।  जैसे कि बैक पेन, नेक पेन या नर्वस सिस्टम और दिमाग को शांत करता है।
यदि आपको पहले से ही गर्म लग रहा है तो उस समय गर्म पैक आपकी मदद नहीं करेगा और यदि आपको पहले से ही ठंड लग रही है तो उस समय कोल्ड पैक स्थिति को और बिगाड़ेगा।  गलत पैक लगा लेने के कारण उसके दुष्परिणाम भी झेलने पड़ते हैं।
यह जानने के लिए कि हमें कब कौन सा पैक लगाना है उसके लिए हमें दर्द के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। हम यहां पर कुछ जानकारी दे रहे हैं।
ऐसी समस्याएं जोकि लंबे समय से चल रही हों या क्रोनिक हों या जोकि छः सप्ताह से ज्यादा चल रही हों। उदाहरण के लिए आर्थराईट्स जिसकी वजह से कारटिलेज खराब होती हैं।  ऐसी समस्या के लिए गर्म पैक ट्रीटमंेट की जरूरत होती है जिससे कि ज्वाईंट स्टिफनेस कम होती है और मसल्स रिलेक्स होते हैं।
आईस पैक ऐसे दर्द के लिए ठीक रहता है जोकि जलन को कम करता है।  सिर दर्द में नर्व और दिमाग की ब्लड वेस्लस में दर्द बढ़ता है।  इसको आईस पैक लगा कर नंबनेस के द्वारा कम किया जा सकता है।
नेक स्पैज्म में अधिकतर लोग ठंडा पैक लगाने की गलती करते हैं जिससे कि दर्द कम होने की बजाय बढ़ जाता है।  इसलिए इस दर्द को कम करने के लिए गर्म पैक लगाएं।
यदि आपके मसल्स खिंच जाते हैं या नसों में चोट लग जाती है तो पहले ठंडा पैक लगा कर जलन और दर्द को नंब किया जा सकता है।  जब जलन कम हो जाती है तो आपके मसल्स अकड़ सकते हैं।  ऐसे में उन्हें हल्का करने के लिए हीट पैक का इस्तेमाल करें।
जब आपके ज्वाईंट्स खिंच जाते हैं या फट जाते हैं तो पहले उस पर कोल्ड पैक लगाएं जिससे कि जलन और दर्द में कमी आए।  जब जलन बिल्कुल भी न रहे तो हौट पैक लगाएं जिससे कि अकड़ाहट कम हो।
ठंड में पैर सूज जाएं तो एपस्म साल्ट को सेंधा नमक को गर्म पानी में मिलाकर पैर की सिकाई करं। यह साल्ट एंटी इन्फ्लैमटरी होता है। जो सूजन को कम करने और दर्द में राहत पहुंचाता हैं। इसमें मैग्नीशियम सल्फेट भी होता है जो मांसपेशियों के दर्द में राहत पहुंचाता है। इसमें मैग्नीशियम सल्फेट भी होता है जो मांसपेशयों के दर्द से दूर करता है। थके हुए पैरों को आराम पहुंचाने के लिए एक टब में दो लीटर पानी डालकर उसमें आधा कम नमक मिला दें। ध्यान दें पानी ज्यादा गर्म न हो। पैरों को टब में कम से कम 20 मिनट तक रखें।

  •  ठंडी सिकाई करते समय ध्यान दें
  •  आइस बैग को 20 से ज्यादा बार प्रभावित स्थान पर न लगाएं। 10 मिनट तक सिकाई के बाद 2 मिनट का ब्रेक लें। मसल्स में दर्द, खिंचाव, सूजन और त्वचा छिल जाने पर ठंडी सिकाई दें।
  • गर्म सिकाई 
  •  अगर डायबिटीज है या ब्लडसर्कुलेशन संबधी कोई बीमारी हे तो गर्म सिकाई न करें।
  •  अगर दर्द किसी पुरानी चोट का हो तो गर्म सिकाई मदद करती है।
  •  पुरानी चोट का ब्लड सर्कुलेशन से की जाए तो गर्म सिकाई से फिर से शुरू हो जाता ह। इससे मसल्स का दर्द दूर होता है।
  •  ध्यान दें - सूजन होने पर तुरंत पैक न लगाएं। पहले ठंडा पैक के बाद में गर्म पैक दें।
  •  5 मिनट से अधिक गर्म पैक न हो।
  •  एक बार इस्तेमाल करके पानी को फेंक दें, उसे दोबारा से इस्तेमाल न करें।
  •  बहुत गर्म पैक न लगाएं।

बुधवार, 12 अप्रैल 2017

मैजिक मिरर से बने घर खूबसूरत



घर बड़ा हो या छोटा उसे सुंदर बनाने के लिए हमारे भीतर सृजनात्मक विचारों का होना बहुत मायने रखता है लेकिन हर व्यक्ति के भीतर सृजनात्मकता हो यह जरूरी नहीं है। इसलिए हम आपको बता रहे हैं साजसज्जा से जुड़ी खास बातें-
महानगरों में अधिकतर लोग फ्लैट में रहते हैं। यहां आपके पास सीमित जगह होती है और सामान असीमित, जिस कारण आपका घर अस्त-व्यस्त दिखता है। लेकिन अगर आप चाहें तो कम जगह का भी इस्तेमाल भी नियोजित तरीके से कर सकती हैं। इंटीरियर डिजाइनर लिपिका सूद से जानिए घर की सजावट के लिए खास टिप्स:-
दीवारों का रंग
छोटे कमरे में हमेशा हल्के रंग का पेंट करवाएं। हल्का रंग कम लाइट ऐब्जौर्ब करते हैं, जिस से कमरा खुलाखुला लगता है।
कमरे को ज्यादा ऊंचा दिखाने के लिए सीलिंग पर फ्लोरोसैंट कलर के स्टिकर या वालपेपर का इस्तेमाल करें।
छोटे कमरे का फर्श भी हल्के रंग का होना चाहिए। इसके लिए हल्के रंग के पत्थर या फिर टाइल्स लगवाएं।
वन वाल डार्क का फैशन छोटे कमरों में लागू न करें।  हां, यदि आप कुछ अलग ही करना चाहते हैं तो एक ही कलर के दूसरे शेड का इस्तेमाल करें लेकिन चुनें लाइट शेड ही।
स्टाइलिश फर्नीचर और उसकी सैटिंग
छोटे कमरे के लिए स्टेटमैंट फर्नीचर का चुनाव करें। कमरे में छोटे-छोटे फर्नीचर की जगह कोई ऐसा फर्नीचर चुनें जो कम जगह घेरे और जरूरत को भी पूरा करें।
कभी भी फर्नीचर को दीवार से सटा कर न रखें। ऐसा करने पर दीवारें खराब होने के साथ ही भरीभरी भी लगती हैं। हमेशा फर्नीचर को दीवार से कुछ इंच छोड़ कर ही रखें।
बाजार में सोफा कम बैड व बैड बाॅक्स तो पहले से ही आ रहे हैं।  अब डाइनिंग टेबल, सोफासैट और कुछ मौड्यूलर फर्नीचर ऐसे आने लगे हैं, जो जगह भी कम घेरते हैं और स्टोरेज का भी काम करते हैं।
सजावट करें कम
कमरे में कलर थीम से मैच करती हुई ड्रैमैटिक पेंटिंग को लगाया जा सकता है। कमरे की कलर थीम से मैच होतीे पेंटिंग होने से कमरा भराभरा नहीं लगेगा।
कमरे में टेबल पर फ्लाॅवरवास रखना पुराना ट्रैंड हो गया है। अब टेबल को फ्री रखें और कमरे की किसी साइड में एक सुंदर और आकार में बड़ा टैराकोटा, चीनी मिट्टी या किसी धातु से बना पौट, वास या आर्टिकल सजा दें।
मिरर डैकोरेशन का आइडिया छोटे घरों के लिए एकदम सही है। यदि मिरर डैकोरेशन को इनोवेटिव तरीके से किया जाए, तो यह घर की रौनक बढ़ाने के साथ-साथ घर को स्पेशियस दिखाने का भ्रम भी बना देता है।
कमरे की एक दीवार को मिरर पैनल से कवर करना ट्रैंड में है। खासतौर पर घर के ड्राइंगरूम में इस तरह का इनोवेशन किया जा सकता है।
छोटे घरों में स्ट्रिप कारपेट का इस्तेमाल करना चाहिए, इस से कमरा लंबा दिखता है।
स्टूडियो फ्लैट में एक कमरे में ही हर कमरे की जरूरत का सामान रखना होता है. ऐसे में कारपेट सैपरेटर का काम कर सकता है. इस के लिए आप छोटे  कारपेट का इस्तेमाल कर एक ही कमरे में अलग-अलग काम के लिए ऐरिया डिवाइड कर सकते हैं।
मार्केट में आ रहे डिवाइडर्स छोटे आशियाने के लिए अच्छा विकल्प हैं. इन्हें एक ही कमरे में अलग-अलग काम करने के लिए या प्राइवेसी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
खिड़की और दरवाजों पर करें गौर
कमरा छोटा है तो खिड़कियों को हर वक्त भारीभरकम परदों से कवर कर के न रखें. हो सके तो उन्हें अनकवर्ड रखें. इस से कमरे में रोशनी भी आएगी और कमरा भराभरा नहीं लगेगा।
छोटे कमरों में यदि लगाने ही हैं तो शिमरी करटेंस लगाएं ये पारदर्शी होते हैं साथ ही खूबसूरत लगते हैं। इनमें भी हल्के रंग के परदों का इस्तेमाल करें।
आजकल ग्लास डोर्स ट्रैंड हैं। वुडेन डोर्स की जगह सेमी ग्लास डोर्स घर में लगवाएं। इस से कमरा अलग भी हो जाएगा और बंदबंद भी नहीं लगेगा।
लाइट्स की सैटिंग
ओवरहैड लाइट्स का फैशन तो एवरग्रीन है, लेकिन कुछ नया ट्राय करना है तो आप अपने घर में बिलो हैडलाइट्स की सैटिंग कराएं। इस के लिए आप फ्लोर लाइट्स, डिजाइनर लैंप्स, हैंगिंग लाइट्स का चुनाव कर सकते हैं।
घर में नैचुरल लाइट्स का अच्छा सोर्स होना चाहिए. इस के लिए खिड़कियों पर वुडेन वर्क कराने की जगह उन पर ग्लास वर्क कराएं. इस से सूर्य की रोशनी घर के अंदर आ सकेगी.
कमरे में कितनी रोशनी की आवश्यकता है, उस हिसाब से लाइट अरैंजमेंट होने चाहिए. जैसे, बैडरूम में मीडियम लाइट्स के लिए वाॅल लैंप्स से भी काम चल सकता है. वहीं स्टडी रूम के लिए ज्यादा रोशनी की जरूरत होती है. इस लिए यहां ओवरहैड लाइट्स ही होनी चाहिए.
आप का डाइनिंग ऐरिया कितना ही छोटा क्यों न हो, आप डाइनिंग टेबल पर हैंगिंग लाइट लगा कर सिर्फ उतने पोर्शन को फोकस करेंगे तो कमरे का साइज छोटा है या बड़ा ज्यादा पता नहीं चलेगा.

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

तुलसी में है दवा भी दुआ भी-डा. अनुजा भट्ट



तुलसी को हरिप्रिया भी कहते हैं अर्थात वह जगत के पालन पोषण करने वाले भगवान विष्णु की प्रिय हैं। भारतीय परंपरा में घर-आंगन में तुलसी का होना सुख एवं कल्याण के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। सिर्फ हिंदु धर्म ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों में भी इसके महत्व और गुणवत्ता को महत्व दिया गया है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखें तो तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बड़ी-बड़ी जटिल बीमारियों को दूर करने और उनकी रोकथाम करने में सहायक है। इसकी जड़, तना, पत्तियां तथा बीज सभी उपयोगी होते हैं। इसमें कीटाणुनाशक अपार शक्ति हैं। इसको छू कर आने वाली वायु स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक होती है। तुलसी दो रंगों में होती है यह दो रंग है हरा और कत्थई। दोनों का ही सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
तुलसी के  उपयोग
स्वास्थ्यवर्धक तुलसी
पानी में तुलसी के पत्ते डालकर रखने से यह पानी टॉनिक का काम करता है।
खाँसी अथवा गला बैठने पर तुलसी की जड़ सुपारी की तरह चूसें।
तुलसी की हरी पत्तियों को आग पर सेंक कर नमक के साथ खाने से खांसी तथा गला ठीक हो जाता है।
खांसी-जुकाम में तुलसी के पत्ते, अदरक और काली मिर्च से तैयार की हुई चाय पीने से तुरंत लाभ पहुंचता है।
फेफड़ों में खरखराहट की आवाज आने व खाँसी होने पर तुलसी की सूखी पत्तियाँ 4 ग्राम मिश्री के साथ लें।
तुलसी के पत्तों का रस, शहद, प्याज का रस और अदरक का रस चम्मच भर लेकर मिला लें। इसे आवश्यकतानुसार दिन में तीन-चार बार लें। इससे बलगम बाहर निकल जाता हैै।
श्वांस रोगों में तुलसी के पत्ते काले नमक के साथ सुपारी की तरह मुँह में रखने से आराम मिलता है।
शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है।
तुलसी के पत्ते का रस 1-2 ग्राम रोज पिएं, बुखार नहीं होगा।
यदि मासिक धर्म ठीक से नहीं आता तो एक ग्लास पानी में तुलसी बीज को उबाले, आधा रह जाए तो इस काढ़े को पी जाएं, मासिक धर्म खुलकर होगा। मासिक धर्म के दौरान यदि कमर में दर्द भी हो रहा हो तो एक चम्मच तुलसी का रस लें।
तुलसी का रस शरीर पर मलकर सोयें, मच्छरों से छुटकारा मिलेगा।
प्रातःकाल खाली पेट 2-3 चम्मच तुलसी के रस का सेवन करें तो शारीरिक बल एवं स्मरण शक्ति में वृद्धि के साथ-साथ आपका व्यक्तित्व भी प्रभावशाली होगा।
तुलसी भोजन को शुद्ध करती है, इसी कारण ग्रहण लगने के पहले भोजन में डाल देते हैं जिससे सूर्य या चंद्र की विकृत किरणों का प्रभाव भोजन पर नहीं पड़ता।
खाना बनाते समय सब्जी पुलाव आदि में तुलसी के रस का छींटा देने से खाने की पौष्टिकता व महक दस गुना बढ़ जाती है।
तुलसी के नियमित सेवन से हीमोग्लोबीन तेजी से बढ़ता है, स्फूर्ति बनी रहती है।
तुलसी की सेवा अपने हाथों से करें, कभी चर्म रोग नहीं होगा।
सौंदर्यवर्धक तुलसी
तुलसी की पत्तियों का रस निकाल कर बराबर मात्रा में नीबू का रस मिलायें और रात को चेहरे पर लगाये तो झाइयां नहीं रहती, फुंसियां ठीक होती है और चेहरे की रंगत में निखार आता है।
तुलसी पत्रों को पीसकर चेहरे पर उबटन करने से चेहरे की आभा बढ़ती है।
दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है।
चेहरे के मुँहांसे दूर करने के लिए तुलसी पत्र एवं संतरे का रस मिलाकर रात्रि को चेहरा धोकर अच्छी तरह से लेप लगाएं, आराम मिलेगा।
तुलसी की सूखी पत्तियों को सरसों के तेल में मिलाकर दांत साफ करने से सांसों की दुर्गध चली जाती है।
उपयोग में सावधानियाँ
तुलसी की प्रकृति गर्म है, इसलिए गर्मी निकालने के लिये इसे दही या छाछ के साथ लें।    तुलसी के सेवन के बाद दूध भूलकर भी ना पियें, चर्म रोग हो सकता है।
तुलसी रस को अगर गर्म करना हो तो शहद साथ में ना लें। कारण गर्म वस्तु के साथ शहद विष तुल्य हो जाता है।
तुलसी के साथ दूध, मूली, नमक, प्याज, लहसुन, मांसाहार, खट्टे फल ये सभी का सेवन करना हानिकारक है।
तुलसी के पत्ते दांतो से चबाकर ना खायें, अगर खायें हैं तो तुरंत कुल्ला कर लें। कारण इसका अम्ल दांतों के एनेमल को खराब कर देता है।
तुलसी का पौधा जहां लगा हो वहा आसपास सांप बिच्छू जैसे जहरीले जीव नहीं आते।
तुलसी के पत्तों को रात्रि में नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि अंधेरे में इसकी विद्युत लहरें प्रखर हो जाती है।
तुलसी का पौधा दिन रात आक्सीजन देता है, प्रदूषण दूर करता है।

तुलसी का सान्निध्य सात्विकता और पुण्यभाव के साथ आरोग्य की शक्ति को भी बढ़ाता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण तुलसी की माला कंठी आदि शरीर में धारण करने का विधान है। प्रत्येक घर में एक तुलसी का पौधा जरूर होना चाहिए। समाजसेवा का इससे अच्छा, सुलभ, सुगम और निशुल्क उपलब्ध होने वाला और क्या उपाय हो सकता है।



रविवार, 2 अप्रैल 2017

जिंदगी के रास्ते पर चलना जरा संभलकर- डा. अनुजा भट्ट


यदि हमें कोई समस्या होती है तो हमारा शरीर कुछ संकेत अवश्य देता हैै।  लेकिन हम छोटी-छोटी समस्याओं की ओर ध्यान नहीं देते और समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है।  आइए बात करते हैं ऐसे ही कुछ संकेतों और समस्याओं के बारे में।

कई बार ऐसा देखने में आता है कि पेशेंट का टूथ इनेमिल एकाएक खत्म हो गया । जांच के बाद उन्हें बड़ी हैरानी होती है कि ऐसा  ऐसिड रिफल्क्स के कारण हुआ है जबकि उन्हें कभी भी हार्टबर्न और रिफल्क्स की समस्या नहीं होती।  रिफल्क्स का यदि ट्रीटमेंट न किया जाए तो आपके दांत खराब हो सकते हैं साथ ही आपको गले का कैंसर भी हो सकता है।  रिफल्क्स की अन्य निशानियों हैं गले में खराश, खांसी, जोर-जोर से सांस लेना।
 एग्जीमा की बीमारी के रूप में देखा जाता है लेकिन इसका एक और गंभीर कारण हो सकता है वह है कोलिक डीसिज। यह ऐसी बीमारी है जिसमें यदि थोड़ी सी ग्लूटन भी खाने की चीजों में ले लिया जाए (जैसे की गेहूं, राई, बारले) तो आपकी बाॅडी खुद ही अपनी आंतों को नुकसान पहुंचाने लगती हैै।  इसलिए यदि आपको  कोई भी समस्या हो तो उसे इग्नोर न करें।
 बीमारी का पहला लक्षण है कंपकंपी।  लेकिन इसका पहला लक्षण होता है कि हैंडराइटिंग छोटी हो जाती है और शब्द बहुत ज्यादा बतवूकमक दिखतेेे हैं।  तकनीकी तौर पर इस बीमारी को माइक्रोग्राफिया कहा जाता है।  पार्किन्सन बीमारी में दिमाग के अंदर के सेल खराब या मरने लगते हैं।  उनसे डोपामाइन कम बनता होता है और हमारी मूवमेंट प्रभावित होती है जिससे हाथों एंव उंगलियों में अकड़ाहट आ जाती है और हैंडराइटिंग बतंउचमक दिखती है।  इसके अलावा बोलने में दिक्कत और सही से नींद न आना अन्य लक्षण हैं।  चूंकि यह बीमारी बुर्जुगों को ज्यादा होती है इसलिए इसके लक्षण जल्दी नहीं पता लग पाते क्योंकि बुजुर्ग होने पर अधिकतर लोगों को यह समस्याएं हो जाती है।  इसके शुरूआती लक्षण होते हैं धीमे बोलना और या हल्का हकला कर बोलना।
डिप्रेशन के आधे से ज्यादा पेशेंट में चिड़चिड़ापन या गुस्सा जैसे लक्षण होते हैं।  महिलाओं में डिप्रेशन पुरूषों से ज्यादा होता है लेकिन चिड़चिड़ापन और गुस्से के लक्षण पुरूषों में ज्यादा दिखाई देते हैं।  यदि आप अपने साथी पर छोटी छोटी बात पर गुस्सा करने लगते हो तो इसका कारण डिप्रेशन हो सकता है।  इसके लिए थैरिपी करवाएं और यदि जरूरी हो तो डाक्टरी सलाह पर एंटी डिप्रेसेन्ट्स भी लें।
यदि आपको छोटी छोटी बातों को याद रखने में, अपने रोजमर्रा के फाइनेंस को मैनेज करने में दिक्कत हो रही हो तो इसे हल्के में न लें।  यह अलजाइमर की शुरूआत हो सकती है।
 खर्राटे आपकी कारोटिड आरटरी को खराब कर सकते हैं जिससे कि ब्लड की सप्लाई ब्रेन को होती है। ं जिसकी वजह से हार्ट फेल या स्ट्रोक होने की संभावना होती है।  इसलिए खर्राटे को हल्की परेशानी में न लें।
कई पुरूषों को  45 वर्ष की उम्र केे करीब पहुंच कर  मतमबजपसम कलेनिदबजपवद की समस्या हो जाती है लेकिन दिल की बीमारी की कोई चिन्ह नहीं होते ।  यह समस्या जिनको होती है उनमें से करीब 60 प्रतिशत पुरूषों को दिल की बीमारी हो सकती है।  इसलिए यदि यह समस्या लग रही हो वह डाक्टर से दिल का चेकअप जरूर कराएं।
जो बैक्टीरिया गम डीसीज करता है वही दिल की बीमारी का भी कारण बन सकता है।  इसलिए तीन या छः महीने के अंदर एक बार अपने दांतों की क्लीनिंग जरूर करा लें।
यदि आपको बार बार पेशाब के लिए जाना पड़ता हैै तो आपको टाइप 2 की डायबटीज हो सकती है।  उसके लिए डाक्टर की सलाह पर टेस्ट कराएं और अपना इलाज भी करवाएं।  यदि आपको पेशाब जाने में कमी या अधिकता हो गई है तो ब्लैडर या प्रोस्टेट कैंसर वजह हो सकती है।
यदि आप स्ट्रेस या थकान की वजह से लोगों के नाम जल्दी भूल जाते हैं तो ऐसा होना स्वाभाविक है।  इसके अलावा चीजों को भूल जाने का एक कारण हाइपोथायराइड या थायराइड हारमोन की कमी भी हो सकती है।  यदि आप पूरी रात की नींद के बाद भी थकान महसूस कर रहे हैं,  ठंड, रूखी त्वचा, टूटे नाखून महसूस कर रहे हैं तो इन लक्षणों को इग्नोर न करें और थायराइड के लिए अपना इलाज करवाएं।
यदि आप बिना किसी व्यायाम या डाइट प्लान के भी 4 सें 5 किलो वजन घटा लेते हो तो अपना चेकअप जरूर कराएं।  इसकी वजह पेनक्रियेटिक, स्टोमेक, भोजन की नली का या फिर लंग कैंसर भी हो सकती है।
यदि किसी भी कारण से आपको ब्लीडिंग होती है चाहे वह खांसी करने पर आए, वैजीना से, यूरीन में, स्टूल में या ब्रेस्ट से तो इसके लिए डाक्टरी सलाह अवश्य लें।
डाइट की वजह से अपच, डायरिया गैस या ब्लोटिंग हो सकती है लेकिन यदि यह समस्या एक सप्ताह से ज्यादा हो रही है तो अपने डाक्टर से सलाह लें।
यदि आपको जल्दी जल्दी बुखार आता है या इन्फेक्शन हो रहा है, दर्द होता है या फ्लू जैसे लक्षण है तो यह ल्यूकिमिया हो सकता है।







शनिवार, 1 अप्रैल 2017

सिर्फ गप मारती हैं महिलाएं- डा. अनुजा भट्ट


अक्सर लोग यह कहते हैं महिलाओं से सीक्रेट बात शेयर नहीं करनी चाहिए क्योंकि इनके पेट में वो टिकती नहीं या यूं कहें पचती नहीं हैैं। लेकिन क्या पुरुष ऐसा नहीं करते ? क्या पुरुष के पेट में सारी बातें पचती है। 

महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया बहुत तंज भरा है। उनकी तरक्की को लेकर शायद ही मुहावरा गड़ा गया होगा, लेकिन उनकी मजाक उड़ाते हुए बहुत सारी उक्तियां आज के दौर में भी प्रचलित हैं जबकि हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी तरक्की से अपने साहस और हुनर का परिचय दिया है। पेश है महिलाओं के प्रति समाज की सोच और उस सोच पर अपराजिता की प्रतिक्रिया ‐‐‐‐‐
इनके पेट में बात नहीं टिकती 
माॅम डे केयर की मनीषा कहती हैं कि मान्यता के अनुसार युधिष्ठर द्वारा द्रौपदी को दिए गए श्राप के अनुसार ही महिलाएं अपनी बात पचा नहीं पाती। यह सब जानते ही हैं कि द्रौपदी अपने पांचों पति के प्रति समभाव से रहती थी और किसी की कोई बात साझा नहीं करती थी जबकि वह साझा पत्नी थी। एक बार युधिष्ठर ने कुछ जानना चाहा तो द्रौपदी ने मना कर दिया तब क्रोध में युधिष्ठर ने श्राप दिया कि महिलाएं आज के बाद से कोई भी बात छुपा नहीं पाएंगी। हंसते हुए मनीषा कहती हैं कि इस युग में तो महिलाएं टेक्नोसेवी हैं इसलिए वह अपनी उम्र और बहुत सारे रहस्य छुपा लेती हैं।
इनकी तो बातें ही खत्म नहीं होती 
 जरा अपने दिल पर हाथ रख कर सोचिये कि क्या गॉसिप सिर्फ महिलाएं ही करती हैंे? आपने दोपहर के समय किसी पेड़ के नीचेे बैठे हुक्के पीते, चाय की ठेली या पान के खोखे के पास खडे हुए पुरूषों को इधर-उधर की बातें करते हुए नहीं देखा। फिर यह कहना कि केवल महिलाएं ही गॉसिप करती है कहां तक ठीक है।

तैयार होने में देर लगाती है 
ऐसा कहते हैं कि महिलाएं तैयार होने में समय लेती है लेकिन आप यह तो मानेंगे कि महिलाओं के ऊपर घर-परिवार की भी जिम्मेदारी होती है जिन्हें निभाते निभाते उन्हें थोड़ा समय लग जाता है। आप कहते है मुझे तो तैयार होने में इतना समय नहीं लगता है क्योंकि आप को सिर्फ खुद को तैयार करना है लेकिन उन्हें घर भी देखना है, बच्चों को भी तैयार करना है और खुद भी तैयार होना है।  आप ये बताएं क्या आप उनकी जगह होकर उनकी तरह जिम्मेदारियां निभा सकते है । जब आप अपने जीवनसाथी का चुनाव करते के समय उनके सववो और पहनावे को बवदेपकमत करते हैं तो उनके तैयार होने के समय में भी धैर्य रखना सीखना होगा।
गाड़ी अच्छे से नहीं चला सकती 
रश्मि आनंद कहती हैं कि यह आरोप निराधार है। गाड़ी चलाने के लिए आपको नियमित अभ्यास और आत्मविश्वास की जरूरत होती है और यह दोनो गुण महिलाओं में जन्मजात होते हैं। इसलिए ऐसा कहना कि महिलाएं गाड़ी नहीं चला सकती उनके महत्व को कम करता है। होता यह है कि रोजाना के ंबबपकमदज के पीछे की वजह जानना हम लोग पसंद नहीं करते या उन पर चर्चा भी नहीं करते।  अगर  कोई महिला या कोई लड़की कितनी भी ठीक से गाड़ी चलाना जानती हो और ‘खुदा न खास्ता‘ किसी छोटी मोटी दुर्घटना का शिकार हो जाये तो आप उसे एक बहस का विषय बना लेते है कि महिलाओं को गाड़ी ड्राइव नहीं करनी चाहिए उन्हें तो ठीक से वअमतजंाम करना भी नहीं आता। ,जबकि सच्चाई ये है महिलाएं पुरुषों की तुलना में कंही अधिक संयम से गाड़ी को ड्राइव करती है और कम जल्दबाजी दिखाती है। अक्सर वो भीड़-भाड़ वाले इलाके की अपेक्षा जंहा से ड्राइव कर गाड़ी ले जाना आसान हो वंहा से जाना पसंद करती है चाहे वो रास्ता उनके लिए कुछ लम्बा ही क्यों न हो।
घर को समय नहीं देती 
 महिलाएं घर सँभालने के लिए बनी है ऐसे में जॉब के साथ-साथ वो घर को अच्छे से नहीं संभाल सकती है यह आम धारणा है। ऐसे सवाल करने वालों से डा तुलिका कहती हैं कि समाज का यह रवैया गुस्सा दिलाने वाला है।  हम अलग-अलग में ऊँचे पदों पर काम कर रही महिलाओं को पढके सुनके उनके बारे में अच्छी-अच्छी बातें बोलते है और महिला सशक्तिकरण मुद्दे के लिए उनके उदाहरण भी देते हैं लेकिन जब घर परिवार की बात आती है तो महिलाआें के प्रतिं इतने क्रूर क्यों हो जाते हैं । कोई भी महिला करियर या परिवार की जिम्मेदारी में पहले परिवार को चुनती है। परिवार की जिम्मेदारी निभाने के लिए लाखों के पैकेज वाला जॉब छोड़ने का फैसला ले सकती है भले ही कितनी जीनियस क्यों न हो। क्या कोई पुरूष ऐसा कर सकता है?
वो पुरुषों पर नियंत्रण रखती है 
उमा गुप्ता जी कहती हैं आखिर हम महिलाएं अपने पति को क्यों नियंत्रण में रखेंगी लेकिन यदि पति गलत रास्ते पर जा रहा है, परिवार की उपेक्षा कर रहा है तो उसे सही रास्ते पर लाने के लिए यदि कठोर निर्णय लिए जाएं तो फिर अप्रिय संवाद क्यों हो। अगर मां अपने बेटों को सही संस्कार देकर बड़ा करे उसे महिलाओं का सम्मान करना सिखाए तो क्या  किसी महिला के साथ यौन शोषण जैसी घटना हो, कोई महिला दहेज के लिए प्रताड़ित हो? क्या किसी भी महिला के साथ जोर जबरदस्ती होगी ? पुरूषों को चाहे वह बेटे हों, पति हों, दोस्त हों कंट्रोल में रखना जरूरी है पर उसे डोमिनेट करना एकदम गलत। महिलाएं अपने पति को दबाव में रखती हैं यह कहना तर्कहीन है।
वैसे तो महिला उत्थान की बातें की जाती हैं,  लम्बे चाैड़े भाषण दिए जाते हैं,  ज्ञान बांटा जाता है और उसके बाद भी किसी महिला के आचरण पहनावे रहन सहन जैसी बातों का हम मजाक बनाते हैं तो यह कितना सही है।  कृप्या  अपनी सोच बदलिए और एक आदर्श माहौल बनाऐं जिसमें कि उनके लिए भी वही सम्मान और समान स्तर हो जिसकी आप बातें करते हैं।

बुधवार, 29 मार्च 2017

चिड़ियों के डिजाइनर घर

प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा यह है कि बहुत सारे पक्षी अब विलुप्त होते जा रहे हैं। सुबह उठते ही चिड़ियों की चहचहाहट हमें ऊर्जा से भर देती है। पर्यावरण संरक्षक चिड़ियों की वापसी के लिए नेस्ट बाॅक्स लेकर स्वागत में खड़े हैं।

चिड़िया की चहचहाहट ने फिर से वापसी की है पर्यावरण संरक्षक नेस्ट बाॅक्स को नए-नए तरीके से डिजाईन कर रहे हैं। चिड़ियों का इनकी तरफ आकर्षित होना और इनको अपना घर स्वीकार करना पर्यावरण संरक्षकों को अधिक उत्साह के साथ और भी नए डिजाईन के नेस्ट बाॅक्स बनाने के लिए प्ररित कर रहा है।
चिड़िया ज्यादातर अपना घोंसला इंसानों द्वारा बनाए हुए घरों में, दीवारों, मीटरों के पीछे में ही बनाया करती हैं।  हम सभी इनकी चहचहाहट सुनकर ही बड़े हुए हैं।  लेकिन पिछले कुछ दशकों में मकान बनाने के लिए शीशे की दीवारें, स्टील का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके साथ ही कम होते पानी के óोत भी कम हुए हैं जिसकी वजह से कीड़े मकौड़े भी कम हो गए हैं और यही कीड़े मकौड़े चिड़ियों का आहार है। 
जवाहर नगर जयपुर के रहने वाले रविंद्र पाल सूद ने दो साल पहले नोटिस किया कि उनके आसपास चिड़ियों की चहचहाहट कम हो गई है।  उन्हें लगा चिडियांें की संख्या में कमी आई है और वह गायब होती जा रही हैं।  सूद भारतीय बर्ड फेयर में कुछ पर्यावरणविदों से मिले और उन्होंने उन्हें एक नेस्ट बाॅक्स और एक फीड बाॅक्स दिया जिसे कि उन्होंने दीवार पर टंगा दिया।  जब उन्होंने देखा कि चिड़िया बाॅक्स को बहुत अच्छे से ले रही है। तो वह और नेस्ट बाॅक्स खरीद लाए।  जिसमें बहुत सी चिडिया आकर रहने लगीं और उसे अपना घर बना लिया।  इसके बाद तो उनका बागीचा चिड़ियों की चहचहाहट से गूंज उठा।
इसी तरह आगरा के रहने वाले राकेश खत्री पहले सड़क पर बिखरे हरे नारियलों को इकट्ठा कर, उनके चारों ओर कूलर की घास लपेटकर घोंसला बनाते थे लेकिन इस तरह के घोंसलें ज्यादा दिन नहीं चलते थें फिर उन्होंने नारियल जटा, जूट की रस्सी और बांस के टुकड़ों से घोंसला बनाना शुरू कर दिया।  उन्होंने अपने इस अभियान में स्कूलों के बच्चों को भी जोड़ा।  वह उन्हें घोंसला बनाना सिखाते हैं साथ ही विभिन्न पक्षियों के बारे में जानकारी भी देते हैं।  राकेश जी ने गौरैया पर दो छोटी-छोटी किताबें भी लिखी हैं ताकि बच्चों को जानकारी दी जा सके और जल्द ही वह गौरया संरक्षण के बारे में वेबसाइट भी शुरू करने जा रहे हैं।
हमें भी नेस्ट बाॅक्स बनाने के आइडिया पर ध्यान देना चाहिए।  एक छोटा सा वुडन बाॅक्स और फीडर एक प्रजाति को फिर से बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।  बर्ड फेयर के कार्यकर्ताओं द्वारा अभी तक कुल 1200 बक्से जयपुर भेज दिए है और इस मुहिम के द्वारा तकरीबन 8000 चिड़िया हमारे पर्यावरण में नई आ गई हैं, जोकि वाकई खुशी और गर्व की बात भी है।  हमें इस मुहिम को पूरे देश में ले जाना है।
कहने का अभिप्राय यह है कि इस जीवन को सुंदर बनाने के लिए हमें प्रकृति के साथ चलना होगा और उसके खूबसूरत तोहफों चाहे वह नदी, पर्वत, पहाड़ हों या पशु-पक्षी, फूल और वृक्ष सबको  सहेजना होगा।

मंगलवार, 28 मार्च 2017

एथनिक स्टाइल में आपका घर-डा. अनुजा भट्ट

 
एथेनिक स्टाइलमें आपका घर विलक्षण और चमकदार आभा लिए दिखाई देगा। इस स्टाइल में घुमावदार फर्नीचर को शामिल करें। बाजार में इस तरह के फर्नीचर के कई डिजाइन मौजद हैं। एथेनिक स्टाइल में कई संस्कृतियों का समावेश है।

एथेनिक प्रिंट चूज करने के लिए आप ईस्ट से लेकर वेस्ट तक के पैटर्न्स ट्राय कर सकती हैं एथेनिक स्टाइलमें कमरे; एकांत का पर्याय लगते हैं। जहां अपने लिए दो पल गुजारे जा सकें। चमकीले रंगों का प्रयोग इसकी खासियत है। इस तरह के;स्टाइल में; रत्नों का भी प्रयोग किया जाता है। यहां पर कुछ ऐसीबातें बताई जा रही हैं जिनका; प्रयोग करके आप अपने घर को एथेनिकस्टाइल में बदल सकते हैं

एथेनिक स्टाइल फर्नीचर- 

कर्व स्टाइल इसकी विशेषता है। अपने ड्राइंगरूम के लिए जोसोफा लें वह बिना हत्थे वाला होना चाहिए।; रंगों में वाइन रेडकलर का प्रयोग करें  किचन में गहरे रंग की लकड़ी का प्रयोगकरे। खासकर केबिनेट बनवाने; के लिए।; गाढ़े रंगों को महत्वदें। फेब्रिक, वॉल हैंगिग, परदे सभी में यही पैटर्न चलेगा। कसीदाकारीइस थीम की विशेषचा होती है। कुशन कवर, बेड कवर और टेबल कवर के रुप मेंइसका प्रयोग करें। ये सभी चीजें कमरे को एथेनिक लुक देतीहैंबेड की ऊंचाई कम होनीचाहिए। मच्छरदानी लगाने वाले खूबसूरत; सेटेंड भी एथेनिक लुक देतेहैं। कमरे के दोनो तरफ टेबल लगी हो। बाथ रुम में रॉट आयरन या ब्रासवेयर का टॉवल रेल्स लगाएं। कपड़े टांगने के लिए जो हुक लगाएं वह हीएथेनिक स्टाइल के होने चाहिए।

एथेनिक स्टाइल का फर्श-

 टेरोकोटा स्टाइल और स्टोन का प्रयोग करें। यह आपके घर कोभव्यता प्रदान करेंगे और आपका घर एथेनिक लुक में नजर आने लगेगा।;हर कमरे में रग्स का प्रयोग करें। बेडरूम में मोसका फ्लोरिंग करें।फर्श पर बिछाने के लिए कारपेट की जगह ब्राइट कलर के रग्स का इस्तेमालकरें। यह आपके कमरे को एथेनिक लुक देगा।एथेनिक स्टाइल के ही फेब्रिक का प्रयोग करें। जो रंग सबसे ज्यादा चलते हैं वह हैं चमकदार गहरे और कसीदारी किए गए। यह अधिक्तर परदे, कुशन और बेडसीट में प्रयोग में लाए जाते हैं। मोरक्कन टच के लिए हैवी वैलवेट का प्रयोग करें। भारतीय शैली को दिखाने के लिए कसीदारी पर जोर दें। गोल्ड ,सिल्वर धागों से की गई कसीदाकारी भारतीय एथेनिक लुक को दर्शाती है।

कलर स्कीम- 

गोल्ड, टरमिनिक, रेड, ब्राउनकोबेल्ट; ब्लू, लाइम ग्रीन, हॉट पिंक, पिकॉक शेड्स। पिस्ता,वाइन, मरून, गोल्ड और आइवरी शेड्स।एक्सेसरीज में भी इन रंगों का प्रयोग करें।
 पर्दे- एथेनिक स्टाइल पर्दे में सीसे का प्रयोग अच्छालगता है। साडिय़ों का प्रयोग भी एथेनिक लुक. देता है। कुशन में बीड्सका प्रयोग करें। 

 वॉल पेंटिंग -

 एथेनिक स्टाइल की वाल पेटिंज का प्रयोग करें। यहां भी वहीं कलर का; प्रयोग करें इस तरह के कमरों में; रहने पर घनिष्ठता का अहसास होता है। नजदीकियां बढ़ती वॉल हैंगिग, कारपेट्स, लैंटर्स, वॉल स्कान्स का प्रयोग करें।

चमकदार रोशनी के प्रयोग से बचें।

Special Post

मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

  (अब पहले की तरह किस्से कहानियों की कल्पनाएं हमें किसी रहस्यमय संसार में नहीं ले जाती क्योंकि हमारी दुनिया में ज्ञान, विज्ञान और समाज विज्...