अक्सर लोग यह कहते हैं महिलाओं से सीक्रेट बात शेयर नहीं करनी चाहिए क्योंकि इनके पेट में वो टिकती नहीं या यूं कहें पचती नहीं हैैं। लेकिन क्या पुरुष ऐसा नहीं करते ? क्या पुरुष के पेट में सारी बातें पचती है।
महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया बहुत तंज भरा है। उनकी तरक्की को लेकर शायद ही मुहावरा गड़ा गया होगा, लेकिन उनकी मजाक उड़ाते हुए बहुत सारी उक्तियां आज के दौर में भी प्रचलित हैं जबकि हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी तरक्की से अपने साहस और हुनर का परिचय दिया है। पेश है महिलाओं के प्रति समाज की सोच और उस सोच पर अपराजिता की प्रतिक्रिया ‐‐‐‐‐इनके पेट में बात नहीं टिकती
माॅम डे केयर की मनीषा कहती हैं कि मान्यता के अनुसार युधिष्ठर द्वारा द्रौपदी को दिए गए श्राप के अनुसार ही महिलाएं अपनी बात पचा नहीं पाती। यह सब जानते ही हैं कि द्रौपदी अपने पांचों पति के प्रति समभाव से रहती थी और किसी की कोई बात साझा नहीं करती थी जबकि वह साझा पत्नी थी। एक बार युधिष्ठर ने कुछ जानना चाहा तो द्रौपदी ने मना कर दिया तब क्रोध में युधिष्ठर ने श्राप दिया कि महिलाएं आज के बाद से कोई भी बात छुपा नहीं पाएंगी। हंसते हुए मनीषा कहती हैं कि इस युग में तो महिलाएं टेक्नोसेवी हैं इसलिए वह अपनी उम्र और बहुत सारे रहस्य छुपा लेती हैं।
इनकी तो बातें ही खत्म नहीं होती
जरा अपने दिल पर हाथ रख कर सोचिये कि क्या गॉसिप सिर्फ महिलाएं ही करती हैंे? आपने दोपहर के समय किसी पेड़ के नीचेे बैठे हुक्के पीते, चाय की ठेली या पान के खोखे के पास खडे हुए पुरूषों को इधर-उधर की बातें करते हुए नहीं देखा। फिर यह कहना कि केवल महिलाएं ही गॉसिप करती है कहां तक ठीक है।
तैयार होने में देर लगाती है
ऐसा कहते हैं कि महिलाएं तैयार होने में समय लेती है लेकिन आप यह तो मानेंगे कि महिलाओं के ऊपर घर-परिवार की भी जिम्मेदारी होती है जिन्हें निभाते निभाते उन्हें थोड़ा समय लग जाता है। आप कहते है मुझे तो तैयार होने में इतना समय नहीं लगता है क्योंकि आप को सिर्फ खुद को तैयार करना है लेकिन उन्हें घर भी देखना है, बच्चों को भी तैयार करना है और खुद भी तैयार होना है। आप ये बताएं क्या आप उनकी जगह होकर उनकी तरह जिम्मेदारियां निभा सकते है । जब आप अपने जीवनसाथी का चुनाव करते के समय उनके सववो और पहनावे को बवदेपकमत करते हैं तो उनके तैयार होने के समय में भी धैर्य रखना सीखना होगा।
गाड़ी अच्छे से नहीं चला सकती
रश्मि आनंद कहती हैं कि यह आरोप निराधार है। गाड़ी चलाने के लिए आपको नियमित अभ्यास और आत्मविश्वास की जरूरत होती है और यह दोनो गुण महिलाओं में जन्मजात होते हैं। इसलिए ऐसा कहना कि महिलाएं गाड़ी नहीं चला सकती उनके महत्व को कम करता है। होता यह है कि रोजाना के ंबबपकमदज के पीछे की वजह जानना हम लोग पसंद नहीं करते या उन पर चर्चा भी नहीं करते। अगर कोई महिला या कोई लड़की कितनी भी ठीक से गाड़ी चलाना जानती हो और ‘खुदा न खास्ता‘ किसी छोटी मोटी दुर्घटना का शिकार हो जाये तो आप उसे एक बहस का विषय बना लेते है कि महिलाओं को गाड़ी ड्राइव नहीं करनी चाहिए उन्हें तो ठीक से वअमतजंाम करना भी नहीं आता। ,जबकि सच्चाई ये है महिलाएं पुरुषों की तुलना में कंही अधिक संयम से गाड़ी को ड्राइव करती है और कम जल्दबाजी दिखाती है। अक्सर वो भीड़-भाड़ वाले इलाके की अपेक्षा जंहा से ड्राइव कर गाड़ी ले जाना आसान हो वंहा से जाना पसंद करती है चाहे वो रास्ता उनके लिए कुछ लम्बा ही क्यों न हो।
घर को समय नहीं देती
महिलाएं घर सँभालने के लिए बनी है ऐसे में जॉब के साथ-साथ वो घर को अच्छे से नहीं संभाल सकती है यह आम धारणा है। ऐसे सवाल करने वालों से डा तुलिका कहती हैं कि समाज का यह रवैया गुस्सा दिलाने वाला है। हम अलग-अलग में ऊँचे पदों पर काम कर रही महिलाओं को पढके सुनके उनके बारे में अच्छी-अच्छी बातें बोलते है और महिला सशक्तिकरण मुद्दे के लिए उनके उदाहरण भी देते हैं लेकिन जब घर परिवार की बात आती है तो महिलाआें के प्रतिं इतने क्रूर क्यों हो जाते हैं । कोई भी महिला करियर या परिवार की जिम्मेदारी में पहले परिवार को चुनती है। परिवार की जिम्मेदारी निभाने के लिए लाखों के पैकेज वाला जॉब छोड़ने का फैसला ले सकती है भले ही कितनी जीनियस क्यों न हो। क्या कोई पुरूष ऐसा कर सकता है?
वो पुरुषों पर नियंत्रण रखती है
उमा गुप्ता जी कहती हैं आखिर हम महिलाएं अपने पति को क्यों नियंत्रण में रखेंगी लेकिन यदि पति गलत रास्ते पर जा रहा है, परिवार की उपेक्षा कर रहा है तो उसे सही रास्ते पर लाने के लिए यदि कठोर निर्णय लिए जाएं तो फिर अप्रिय संवाद क्यों हो। अगर मां अपने बेटों को सही संस्कार देकर बड़ा करे उसे महिलाओं का सम्मान करना सिखाए तो क्या किसी महिला के साथ यौन शोषण जैसी घटना हो, कोई महिला दहेज के लिए प्रताड़ित हो? क्या किसी भी महिला के साथ जोर जबरदस्ती होगी ? पुरूषों को चाहे वह बेटे हों, पति हों, दोस्त हों कंट्रोल में रखना जरूरी है पर उसे डोमिनेट करना एकदम गलत। महिलाएं अपने पति को दबाव में रखती हैं यह कहना तर्कहीन है।
वैसे तो महिला उत्थान की बातें की जाती हैं, लम्बे चाैड़े भाषण दिए जाते हैं, ज्ञान बांटा जाता है और उसके बाद भी किसी महिला के आचरण पहनावे रहन सहन जैसी बातों का हम मजाक बनाते हैं तो यह कितना सही है। कृप्या अपनी सोच बदलिए और एक आदर्श माहौल बनाऐं जिसमें कि उनके लिए भी वही सम्मान और समान स्तर हो जिसकी आप बातें करते हैं।