प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा यह है कि बहुत सारे पक्षी अब विलुप्त होते जा रहे हैं। सुबह उठते ही चिड़ियों की चहचहाहट हमें ऊर्जा से भर देती है। पर्यावरण संरक्षक चिड़ियों की वापसी के लिए नेस्ट बाॅक्स लेकर स्वागत में खड़े हैं।
चिड़िया की चहचहाहट ने फिर से वापसी की है पर्यावरण संरक्षक नेस्ट बाॅक्स को नए-नए तरीके से डिजाईन कर रहे हैं। चिड़ियों का इनकी तरफ आकर्षित होना और इनको अपना घर स्वीकार करना पर्यावरण संरक्षकों को अधिक उत्साह के साथ और भी नए डिजाईन के नेस्ट बाॅक्स बनाने के लिए प्ररित कर रहा है।
चिड़िया ज्यादातर अपना घोंसला इंसानों द्वारा बनाए हुए घरों में, दीवारों, मीटरों के पीछे में ही बनाया करती हैं। हम सभी इनकी चहचहाहट सुनकर ही बड़े हुए हैं। लेकिन पिछले कुछ दशकों में मकान बनाने के लिए शीशे की दीवारें, स्टील का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके साथ ही कम होते पानी के óोत भी कम हुए हैं जिसकी वजह से कीड़े मकौड़े भी कम हो गए हैं और यही कीड़े मकौड़े चिड़ियों का आहार है।
जवाहर नगर जयपुर के रहने वाले रविंद्र पाल सूद ने दो साल पहले नोटिस किया कि उनके आसपास चिड़ियों की चहचहाहट कम हो गई है। उन्हें लगा चिडियांें की संख्या में कमी आई है और वह गायब होती जा रही हैं। सूद भारतीय बर्ड फेयर में कुछ पर्यावरणविदों से मिले और उन्होंने उन्हें एक नेस्ट बाॅक्स और एक फीड बाॅक्स दिया जिसे कि उन्होंने दीवार पर टंगा दिया। जब उन्होंने देखा कि चिड़िया बाॅक्स को बहुत अच्छे से ले रही है। तो वह और नेस्ट बाॅक्स खरीद लाए। जिसमें बहुत सी चिडिया आकर रहने लगीं और उसे अपना घर बना लिया। इसके बाद तो उनका बागीचा चिड़ियों की चहचहाहट से गूंज उठा।
इसी तरह आगरा के रहने वाले राकेश खत्री पहले सड़क पर बिखरे हरे नारियलों को इकट्ठा कर, उनके चारों ओर कूलर की घास लपेटकर घोंसला बनाते थे लेकिन इस तरह के घोंसलें ज्यादा दिन नहीं चलते थें फिर उन्होंने नारियल जटा, जूट की रस्सी और बांस के टुकड़ों से घोंसला बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने इस अभियान में स्कूलों के बच्चों को भी जोड़ा। वह उन्हें घोंसला बनाना सिखाते हैं साथ ही विभिन्न पक्षियों के बारे में जानकारी भी देते हैं। राकेश जी ने गौरैया पर दो छोटी-छोटी किताबें भी लिखी हैं ताकि बच्चों को जानकारी दी जा सके और जल्द ही वह गौरया संरक्षण के बारे में वेबसाइट भी शुरू करने जा रहे हैं।
हमें भी नेस्ट बाॅक्स बनाने के आइडिया पर ध्यान देना चाहिए। एक छोटा सा वुडन बाॅक्स और फीडर एक प्रजाति को फिर से बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। बर्ड फेयर के कार्यकर्ताओं द्वारा अभी तक कुल 1200 बक्से जयपुर भेज दिए है और इस मुहिम के द्वारा तकरीबन 8000 चिड़िया हमारे पर्यावरण में नई आ गई हैं, जोकि वाकई खुशी और गर्व की बात भी है। हमें इस मुहिम को पूरे देश में ले जाना है।
कहने का अभिप्राय यह है कि इस जीवन को सुंदर बनाने के लिए हमें प्रकृति के साथ चलना होगा और उसके खूबसूरत तोहफों चाहे वह नदी, पर्वत, पहाड़ हों या पशु-पक्षी, फूल और वृक्ष सबको सहेजना होगा।