मंगलवार, 14 अगस्त 2018

हँसिए और हँसाइए- डा. हरीश भल्ला

क्या आपको मालूम है कि बहुत सी बीमारियों का निदान स्वयं आपके पास है जिनका प्रयोग करने से जहां एक ओर आप गंभीर बीमारी से बच सकते हैं वहीं दूसरी ओर व्यर्थ की दौड़-भाग, मानसिक तनाव से भी मुक्ति पा सकते हैं। हँसना एक प्राकृतिक दवा है।

हँसना एक मनोभाव है, ठीक वैसे ही जैसे रोना। मनुष्य जन्म लेने के बाद इन भावों को अभिव्यक्ति प्रदान करता है। चिकित्सकीय दृष्टिकोण से हँसना क्या है?

मनोभाव के साथ-साथ हँसना एक यौगिक प्रक्रिया है जिसमंे मनुष्य के शरीर ओर मन दोनों का व्यायाम होता है। हँसी के दो चरण होते हैं। उतार ओर चढ़ाव। ठहाका मारकर हंसना चढ़ाव है और फिर धीरे-धीरे हंसना संतुलित हो जाना है इसे ही उतार कहा जाता है। यह प्रकिया रोज की जिंदगीं में आए तनाव को कम करती है। हंसने से केटेकोलेमेनाइज एड्रर्लिन और नान एड्रर्लिन का रिसाव होता है जिससे ठीक होने की प्रक्रिया तेज हो जाती है और आप स्वयं को स्वस्थ अनुभव करते हैं।

हँसने से क्या लाभ हो सकता है?

चिकित्सकीय विज्ञान में हुए अनुसंधानों से यह सिद्ध हो चुका है कि हँसने का प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है। हँसी एक तरह की दर्द निवारक दवा है। लेकिन यह योग क्रिया के माध्यम से प्रयोग की जाती है। हँसने की इस प्रक्रिया से ब्लडप्रेशर, दिल की बीमारी, डायबिटीज, जोड़ों का दर्द, कमर का दर्द, मासंपेशियों का दर्द ठीक हो जाता है। इसके अतिरिक्त तनाव, उदासी और उतेजना को कम करने में भी यह सहायक सिद्ध हुआ है।

आपने बताया कि हंसने से जोड़ों का दर्द आदि ठीक हो जाता है। लेकिन यह कैसे संभव हैं?हंसी एक दर्द निवारक दवा है। हँसते समय हमारे शरीर से दो न्यूरो पेप्टीडाइज उनडारफिन और उनकेलेफिन नामक पदार्थ निकलते हैं जिससे शरीर में स्वयं ही दर्द कम हो जाता हे। जब हम हँसते हैं तो खून का संचरण तेज हो जाता है जिससे दर्द भी कम महसूस होता है। यदि आप 10 मिनट तक खुल कर हँसे तो उसका असर दो घंटे तक आपके शरीर में रहता है और बीमारियों से लड़ने की प्रतिरोधी शक्ति पैदा हो जाती है। 100 बार ठहाका मार कर हंसी 10 मिनट की तेज दौड़ के बराबर होती है। हंसने से पुरानी बीमारियों जैसे खांसीं, जुकाम, गठिया, एलर्जी आदि भी ठीक होती देखी गई है।

हँसने के लिए कैसा वातावरण होना चाहिए?यह प्रश्न स्वयं में महत्वपूर्ण हैं। हँसना तभी संभव है जब वातावरण भी वैसा ही हो। हँसना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, हर बात में या हर समय हँसी नहीं आ सकती। हँसी भीतर से पैदा होती है पर यहां जिस हँसने की बात हम कर रहे हैं वह एक तरह का योग है। ठीक वैसे ही जैसे दौड़ना, टहलना आदि। अतः यहां हँसना एक यौगिक क्रिया की तरह है जिसमें हम अपने दोनों हाथ ऊपर ले जाते हैं और फिर हँसत हैंै धीरे-धीरे हंसी की आवृति को कम करते हुए हम अपने दोनों हाथ नीचे ले आते हैं। जब हम व्यायाम करें तो हवा शुद्व होनी चाहिए ताकि हमारे फेफड़ों में आक्सीजन की मात्रा बढें़ और शुद्व रक्त संचार हो।

बीमारियों के निदान के अतिरिक्त व्यक्ति को अन्य क्या लाभ हो सकते हैं?यदि हम प्रतिदिन हँसे तो एकाग्रता बढ़ सकती है। साथ ही कार्य करने की शक्ति में भी गुणात्मक परिवर्तन होता है जिससे वह कम समय में अधिक काम कर सकता है साथ ही उसका आत्मविश्वास बढ़ता है। दम्पति यदि मिलकर हँसें तो परिवार में जहां हँसी-खुशी का वातावरण होगा वहीं उसके संबंध भी मधुर होंगें। लेकिन यदि वे एक दूसरे की कमियों पर हँसेंगे तो माहौल तनावपूर्ण होगा और संबंध कटु बन जाएंगे।

आपकी दृष्टि में क्या ऐसी संस्थाएं हैं जो इस तरह के योगासन कराते हैं?जिस तरह महानगरों में ’हेल्थ क्लब’ या लाफटर क्लब होते हैं। विदेशों में तो इनकी संख्या काफी है पर भारत में यह अपेक्षाकृत कम हैं। लोगों का ध्यान अब इस ओर जा रहा हैं। धीरे-धीरे यहां भी इस तरह के केन्द्र विकसित हो जाएंगे। पश्चिमी देशों में तो प्रत्येक अस्पताल में एक लाफटर क्लब चलाया जाता है जहां चुटकले, कार्टून फिल्मों, पुस्तकों आदि के माध्यम से हँसाया जाता है।

क्या आप मानते हैं कि अब हँसनेे के लिए भी लाफ्टर क्लब जाया जाए।मैंने ऐसा कब कहा कि आप हँसने के लिए लाफ्टर क्लब का इंतजार कीजिए। भारत में इन सब की कोई जरुरत नहीं हैं। ऋषि मुनियों के समय से ही हँसने को एक दवा के रुप में मान्यता मिली है जो व्यक्ति को हँसाने का कार्य करता था उसे विदूषक कहा जाता था। उसके पहनावे, हरकतों से व्यक्ति बिना हँसे नहीं रह पाता था। यह भी एक तरह की कला थी। प्राचीन काल के कोई भी नाटक आप पढें़ उसमें विदूषक का पात्र अवश्य होता था। फिल्मों में यही किरदार जोकर कहलाता है। हँसी हमारे जीवन में शामिल है। कभी हम स्वयं की मूर्खता पर हँसते हैं। अतः हँसने के लिए लाफ्टर क्लब जाना भी एक हँसी का मुहावरा हो सकता है। यह याद रखें कि जब आप हँसे तो दिल खोलकर हँसे, आपकी हँसी गूंजनी चाहिए। सिर्फ मुस्कुरा कर काम नहीं चलेगा। अब वह जमाना गया जब खुल कर हँसना अभद्रता माना जाता था। आज की दुनिया में संस्कार भी वैज्ञानिक होने चाहिए।
दंपति की समस्याएं डा. हरीश भल्ला, संपादन- डा. अनुजा भट्ट
 प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक से

सोमवार, 13 अगस्त 2018

डायबिटीज काे मैनेज करने के आसान उपाय-डा. दीपिका शर्मा



डायबिटीज के रोगी को एक दिन में कम से कम चार से पांच सर्विंग मौसमी फल और सब्जियों का सेवन करना चाहिये। डायबिटीज के रोगी को जूस का सेवन नहीं करना चाहिये, इसकी जगह वे सूप का सेवन नियमित तौर पर कर सकते हैं। ऐसा इसलिये क्योंकि जूस पीने से शुगर का स्तर बढ़ता है और ग्लाइसेमिक इंडेक्‍स भी बढ़ जाती है। तो हर डायबिटीज रोगी के लिये जरूरी है कि वो हर दिन मौसमी फल और सब्जियों की पांच सर्विंग ले। लेकिन डायबिटीज में कुछ फल जैसे आम, अंगूर, अनार व केला आदि का सेवन करने से ग्लाइसेमिक इंडेक्स बढ़ता है। डायबिटीज रोगी सेब, संतरा, पपीता व अमरूद आदि का सेवन कर सकते हैं। साथ ही सलाद (प्याज, ककड़ी, मूली व खीरा आदि) अधिक खाना चाहिये। डायबिटीज रोगी को अन्न थोड़ा कम ही खाना चाहिये। डायबिटीज में कुछ हरी सब्जियां जैसे, करेला (जूस भी), लोकी (जूस भी) व जामुन आदि का सेवन करना चाहिये। इनके सेवन से न सिर्फ शुगर का स्तर सामान्य होता है, बल्कि संपूर्ण स्वास्थ्य बेहतर बनता है। ज़मीन से निकने वाली सब्जियां, जैसे आलू, शकरकंद, अरबी, जिमीकंद व गाजर आदि के सेवन से ब्लड शुगर का स्तर अचानक बढ़ जाता है, इसलिये इनका कम से कम सेवन करना चाहिये।


वजन के हिसाब से डायट


डायबिटीज के मरीज के लिए अपना वजन काबू में रखना बेहद जरूरी होता है। अगर आपका वजन अधिक है, तो आपको उसी हिसाब से अपनी कैलोरी में कटौती कर देनी च‍ाहिए। इसके साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि आपके रोजाना के आहार का चालीस से साठ फीसदी पोषण कार्बोहाइड्रेट से हो। आपको गेहूं के साथ ज्वार, बाजरा और चने का आटा मिलाकर खाना चाहिए। इसके साथ ही चीनी का सेवन कम करें। सब्जियों का सेवन अधिक करें। स्टार्ची सब्जियों का सेवन न करें।


घरेलू उपाय


अगर आप डायबिटीज पर काबू पाना चाहते हैं तो अपनी दवा और डॉक्‍टर की सलाह के साथ-साथ आप कुछ घरेलू उपायों को भी अपना सकते हैं। यह घरेलू उपाय आपकी डायबिटीज को कंट्रोल करने में मदद करते हैं। लेकिन सबसे पहले अपने खान-पान पर ध्‍यान बहुत जरूरी है। इसलिए लेने पर दिन में 3 बार भरपेट खाने की बजाय हर 2-3 घंटे में कुछ न कुछ खाते रहें। अपने आहार में फाइबर युक्‍त चीजों को बढ़ा दें। हरी सब्जियां, फलों, सलाद और अंकुरित अनाज में फाइबर बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा करेले के जूस को अपने आहार में शामिल करें। मेथी के बीज का सेवन करें


डा. दीपिका शर्मा अपाेलाे  फेमिली क्लीनिक नौएडा, उत्तरप्रदेश, सेक्टर 110 में  फेमिली फिजिशियन हैं।
 सेहत से जुड़े सवाल आप हमारे मैं अपराजिता के फेसबुक पेज में कर सकते हैं। अपनी सेहत संबंधी समस्या के लिए आप हमें मेल भी कर सकते हैं-
mainaparajita@gmail.com



रविवार, 12 अगस्त 2018

फन्ने खां ने उठाया बॉडी शेमिंग पर सवाल- डा. अनुजा भट्ट

फन्ने खां  फिल्म अपनी लचर कथा और बिखरती पटकथा के कारण आज के प्रासंगिक सवालाें को सही ढ़ंग से नहीं उठा पाई। कहानी का आइडिया अच्छा था। बॉडी शेमिंग खासकर महिलाआें के लिए एक अहम सवाल है। यह आपकी प्रतिभा काे बाहर निकलने का माैका नहीं देता। समाज  न उनकाे सुंदर मानने काे तैयार है और न  प्रतिभावान। स्कूल हाे या कालेज,घर परिवार हाे या अॉफिस या बाजार। हर जगह स्वागत करती हैं ताे फब्बितयां। जाे उनके आत्मविश्वास काे चूर चूर कर  देती है। इस फिल्म में लता काे भी इसी तरह की सामाजिक विसंगतियाें का सामना करता पड़ता है और वह कभी बहुत इमाेशनल ताे कभी बहुत जिद्दी और बदतमीज हाे जाती है। अपने पिता के  प्रति उसका रूखा व्यवहार आज की नई पीढ़ी के बच्चाें का एेसा अक्स पेश करता है जिसे सही नहीं ठहराया जा सकता। जाे पिता हर समय उसके लिए सपने देखता है और चाहता है  कि उसे उसकी मंजिल मिले एेसे पिता के लिए उसका व्यवहार ठीक नहीं। वह सिर्फ अपने लिए जीती नजर आती है। मां के साथ ट्यूनिंग है पर वह भी एकदम सतही...
 फिल्में संदेश देती हैं एेसे में लता का संदेश एक रूकावट पैदा करता है। आज के दाैर में हाे सकता है यह किसी काे न खटका हाे पर मुझे जरूर खटका। मां पिता के साथ बच्चाें के रिश्ते दाेस्ताना हाेेने के पक्ष में मैं भी हूं पर माता पिता की अवहेलना और उनकी मेहनत काे नजर अंदाज करने के पक्ष में कतई नहीं।  अभिनय की दृष्टि से लता के रूप में पिहू का अभिनय जानदार है। फेक्ट्री में अपहरण की गई बेबी उर्फ एश्वर्या वाला  दृश्य बहुत लंबा है  इस वजह से कहानी के बहुत सारे डिटेल्स खतम हाे जाते हैं। मेहनत के बल पर सबकुछ मिल सकता है बेबी का यह मैसेज भी सार्थक नहीं हाेता। क्याेंकि लता जाे मुकाम हासिल करती है वह मेहनत से नहीं बल्कि जुगाड़ से करती है।  फिल्म में अगर लता काे मेहनत के बल पर अपना लक्ष्य हासिल करते हुए दिखाया जाता  ताे यह एक अच्छी कहानी हाेती।  आजकल हर बच्चा पढ़ाई के साथ साथ कुछ और भी सीख रहा है। उसके सपनाें में कई सेलीब्रिटी है। जैसा वह बनना चाहते हैं। एेसे बच्चाें के लिए यह एक निराशाजनक बात है।
 और अगर इसे कामेडी फिल्म की तरह देखा जाए ताे यह एक बच्ची का मजाक उड़ाती है उसके माेटेपर पर हँसती है। वह लड़की जिसमें प्रतिभा है और सपना भी है अपने पिता की हरकताें पर बेसाख्ता राेना चाहती है, माइक ताेड़कर फैंक देना चाहती है। पर वह चालाक भी है माैके का  फायदा उठाना आता है उसे ,क्याेंकि बाजार भी ताे यही कर रहा है।
 फिर भी फिल्म निराश नहीं करती। कम से कम सवाल ताे उठाती है। 

शनिवार, 11 अगस्त 2018

संध्या का सूरज- उर्मिल सत्यभूषण

उर्मिल सत्यभूषण
 महामाया ने दो दिन पहले सूचित किया था।
‘‘वरिष्ठ नागरिक गृह में आपको सिटी मॉम्ज के साथ मातृदिवस मनाने जाना है। आप चलेंगी न आपको बहुत अच्छा लगेगा।
महामाया ने कहा था : ‘सिटी मॉम्ज घरेलू महिलाओं का एक एन जी ओ है। ये होममेकरज हैं पर घर में ही कुछ न कुछ उद्यम चला रखे हैं। घर भी उपेक्षित नहीं होता और महिलाओं की आर्थिक और बौद्विक जरूरतें भी पूरी होती रहती हैं। अपने पारिवारिक कार्यों के साथ साथ समाजोपयोगी प्रोजेक्ट भी हाथ में लेती रहती हैं।
श्रीदेवी के मन में वरिष्ठगृह को देखने की उत्सुकता भी जगी और सिटी मॉम्ज एन जी ओ के सदस्यों से मिलने की इच्छा भी। समय के साथ जरूरतें बदलती हैं तो सामाजिक ढांचे भी अपना रूप बदलने लगते हैं। आज के बुजुर्गों की समस्या बहुत गंभीर रूप लेती जा रही है। संताने अपने काम की भागदौड़ के कारण वृ़द्ध मां बाप को अकेले छोड़ते जा रहे हैं। वृद्ध लोग अपनी उम्र की आधियों, व्याधियों से ग्रसित अकेले रह गये हैं बहुत निरीह और असहाय सी जिंदगी हो गई है उनकी। श्रीदेवी कब से ऐसे सांध्यगृहों की खोज में लगी हैं : उनकी जरूरत शिद्दत से महसूस हो रही है।
ठीक समय पर महामाया लेने पहुंची। वह तैयार बैठी थी कुछ किताबें उठाई और चल दी।
‘‘आंटी, थोड़ी देर हो गई है हमें पर वो लोग बड़ी बेसब्री से इन्तजार कर रहे हैं। आपका इन्तजार हो रहा है।
वहां प्रोग्राम क्या है?
‘वहां मदरज डे मनाना हैं ताकि वहां के रहने वालों को भी अपने होने का एहसास हो। आपका काव्यपाठ होगा, उनको प्रेरणा मिलेगी आंटी अभी दो साल पहले ही दो युवा माताओं की पहल पर यह एन जी ओ शुरू किया गया हैैै।
मैं भी उस एन जी ओ का हिस्सा हूं।
‘आप क्या क्या करते हैं उसमें? श्रीदेवी ने पूछा।
तो महामाया बोली : यह घरेलू महिलाओं की सार्थक पहल है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि औरतें आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनें। उनके व्यक्त्तिव का विकास हो और सशक्त महिलायें अच्छे समाज का भी निर्माण कर सकें। अब समय के साथ परिवार की चूलें हिल चुकी हैं। काम दौड़भाग में परिवार टूटते जा रहे हैं। बच्चों का पालनपोषण सही नहीं हो पाता। पढ़ी लिखी महिलाओं ने इस बारे में अच्छी तरह सोचा है कि परिवार, व्यक्ति समाज किस तरह से संतुलित किया जाये तो मातृशक्ति ने एक सार्थक पहल की है।
‘श्रीदेवी, सुनकर खुश हुई। वाह महामाया बड़ा अच्छा सोचा है शहरी माताओं ने। मेरी जैसी ग्रैंड मॉम भी आपके मिशन में शामिल होना चाहती हैं।
‘ओ श्योर - आंटी - इसीलिए तो हमने आपको चुना है हमें गाइडकरने के लिए।
‘आधे घंटे में वे लोग वरिष्ट्ठ गृह पहुंच गये।
शहर की सम्पन्न कालोनी में था गृह - सारी सुख सुविधाओं और वाटिकाओं की हरीतिमा से घिरा हुआ। मंदिर का बहुत बड़ा हाल भी था। जिसमे सत्संग के अलावा कई प्रकार के कार्यक्रम होते रहते थे।
लिफ्ट से वे लोग ऊपर हाल में पहुंचे। वहां पर 20-25 लोग सीनियर सिटीजन थे और 15 या 20 सिटी मॉम्ज की सदस्यायें थी। श्रीदेवी जी का परिचय कराया गया। सबने खड़े होकर तालियां बजाकर उनका स्वागत किया। सब लोग बड़े उत्साह और उमंग में दिखाई दे रहे थे। श्रीदेवी जी ने काव्यपाठ आरम्भ किया तो सभी मंत्रमुग्ध हो उठे। सभी कवितायें उमंग और जीवन्तता से भरी थीं। बाद में वरिष्ट्ठ लोगों ने भी अपने अपने अनुभव शेयर किये। सबने कुछ न कुछ सुनाया और अपना अपना परिचय दिया। उन युवा उत्साही मातृशक्तियों ने नृत्य आरम्भ किया तो वे लोग भी झूम झूम कर नाचने लगी। बाद में जलपान कराया गया और हरेक व्यक्ति का तोहफों से अभिनंदन किया गया। श्रीदेवी इस कार्यक्रम से बड़ी प्रफुल्लित थीं। उसने बुजुर्गों के कमरों का निरिक्षण किया। सब के पास अपना अपना खरीदा हुआ एक कमरा था शौचालय सहित। कमरे अच्छे हवादार, रोशन और फर्नीचर से लैस थे। खाना आदि सब फ्री का। रैम्प भी बने हुए थे। काफी अच्छा प्रबंध था। श्रीदेवी बहुत समय से सोच रही थी अपने लिए भी कमरा लेने का ताकि वहां आकर यहां लिख पढ़ सके। जब मन हुआ घर वालों से मिल भी आए।
उसने अपने विचार सिटी मॉम्ज के आगे भी रखे कि ये सांध्य गृहों का विस्तार किया जाए और प्रचार भी। क्योंकि समय की जरूरत है ये पर सभी समाजजसेवा में लगी संस्थायें समय समय पर इनसे मिलने आये। इनके साथ मिलकर कार्यक्रम करें।
ऐसा चल रहा है आंटी -  बहुत से आयोजन यहां होते रहते हैं जिनमें ये लोग भी शामिल होते हैं। दो दिन बाद यहां पर सामूहिक विवाह का कार्यक्रम है जिसमें हमें शामिल होना है। एक महिला ने कहा। उसन कहा ‘दीदी‘ आप चाहो तो कभी आकर रह भी सकते हैं हमारे साथ। कमरे कई खाली रहते हैं जब कई लोग अपने घर चले जाते हैं मिलने।
एक बुजुर्ग ने कहा - मैडम, हमें अपनी पुस्तकें दे जाएं यहां की लाइब्रेरी अभी ठीक नहीं है।
मैं जरूर पुस्तकें लाऊंगी और लाइब्रेरी का प्रबंध भी किया जायेगा। श्रीदेवी ने सिटी मॉम्ज से इस बारे में कहा।
जाते जाते : वो लोग बोले :-
मैडम एक गीत और सुना जाओ। आपके गीत जीवन का संदेश लाये हैं। श्रीदेवी ने कहा - जरूर : यह मेरा गीत आप मेरे साथ गायें
सूखे पत्ते हैं हम तो बिखर जायेंगें
पेड़ को पर हरेपन से भर जायेंगें
जिंदगी की नदी में नहाये बहुत
हंसते गाते ही पार उतर जायेंगें
उसने जीने को दी थी सौगाते उम्र
इसके पल पल को जीवंत कर जायेंगें
हम तपे हैं उम्र भर मगर शाम को
ढलते सूरज की मानिंद बिखर जायेंगें।
छेद करती रही उर्मिला तिमिर में
रोशनी जब मिले अपने घर जायेंगें।
कवियित्री कथाकार।संस्थापक अध्यक्ष परिचय साहित्य परिषद्                                                                                                                               

शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

नन्हें काे चाहिए कंफर्ट, मत बनाइए उसे स्टाइलिश-डा. अनुजा भट्ट

फाेटाे क्रेडिट- एलविन गुप्ता
मां बनने के बाद महिलाओं की जिम्मेदारियां दुगनी हाे जाती है। कई महिलाओं को इन दोनों के बीच तालमेल बैठाने में दिक्कत होती है। बच्चे के जीवन में आने के बाद मां का खाना-पीना, सोना-जागना उसकी आदतों पर निर्भर हो जाता है। मातृत्व के इस सफर काे इन टिप्स के जरिए आप आसान बना सकती हैं।

  • शिशु को कम से कम तक पांच से छह महीने तक मां का दूध जरूर दें। इसके अलावा उसे कुछ भी नहीं दें। मां का दूध बच्चे के लिए संपूर्ण आहार होता है। जब आपका शिशु छ: माह का हो जाए तब आप उसे दूध के साथ ही दलिया, खिचड़ी, चावल, फल आदि भी देना शुरू कर दें। बच्चों के नाखून बहुत जल्दी बढ़ते हैं। जिससे वे खुद को चोट पहुंचा सकते हैं साथ ही लंबे नाखूनों में गंदगी जमा होने का भी डर होता है। इसलिए समय समय पर नाखून काटते रहें।
  • गीलेपन से शिशु को इंफेक्शन का खतरा सबसे ज्यादा होता है इसलिए समय समय पर देखते रहें कि शिशु गीले में तो नहीं सो रहा है। उसकी नैपी को बार-बार बदलें व उसकी त्वचा को सुखे मुलायम कपड़े से साफ करें।
  • शिशु को स्वच्छ रखने व बीमारियों से बचाने के लिए उसे रोज स्नान कराएं। इससे उसे नींद भी अच्छी आएगी और वो दिनभर तरोताजा महसूस करेगा। मालिश से शिशु की हड्डियां मजबूत बनती हैं साथ ही शरीर की गतिविधियां भी बढ़ती है। नहलाने से पहले शिशु की मालिश करना सबसे अच्छा है।
  • अगर आपका शिशु सरकने की कोशिश करने लगा है तो फर्श पर कोई भी नुकीली, धारदार, खुरदरी चीज नहीं रखें। बच्चा सहारा लेकर खड़ा होना सीख रहा है तो टेलीफोन या गुलदस्ते इत्यादि उसकी पहुंच से दूर रखें। बच्चे को हमेशा मुलायम व आरामदायक कपड़े पहनाएं। कई बार ऐसा होता है कि बच्चे को स्टाइलिश दिखाने के लिए माता-पिता उन्हें ऐसे कपड़े पहना देते हैं जिससे बच्चों को परेशानी होती है।
  • बच्चों को किचन से दूर रखें क्योंकि दुर्घटना होने की संभावना सबसे ज्यादा किचन में ही होती है। किचन का सारा सामान बच्चों की पहुंच से दूर रखें।
  • कई बार बच्चों को कोई तकलीफ होने पर वे लगातार रोते रहते हैं। अक्सर ऐसा तब होता है जब बच्चे के पेट में दर्द होता है।
  • शिशु के सारे टीके समय पर लगवाएं। ये टीके बच्चों को बीमारियों से बचाते हैं।
  • बच्चों की आदत होती है कि वे जमीन से उठाकर कुछ भी मुंह में डाल लेते हैं। इसलिए घर की ठीक से सफाई करनी चाहिए।




गुरुवार, 9 अगस्त 2018

उम्र हाे गई 35 साल ताे खान पान का करें ख्याल-डा. रश्मि व्यास

उम्र बढ़ने के साथ हमारी शारीरिक क्रियाआें में भी बदलाव आने लगता है, हर उम्र में यह बदलाव अलग अलग हाेता है। अगर आपकी उम्र 35 पार कर गई हो तो  आपकाे अपने खानपान के तरीके में बदलाव लाना हाेगा। आपके लिए क्या अच्छा है, क्या बुरा यह जानना बहुत जरूरी है।
30 से 35 वर्ष के बाद शरीर की रक्त धमनियों में ना सिर्फ कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है बल्कि हड्डियों में कैल्शियम और खनिज की मात्रा घटने लगती हैं। आयु बढ़ने के साथ ही शरीर के मेटाबॉलिज्‍म रेट के कम होने और पाचन तंत्र के कमजोर पड़ने के साथ ही शरीर में परिवर्तन होने लगता है जिसे विशेष देखभाल की जरूरत पड़ती है। इसलिए 35 वर्ष के बाद ना सिर्फ उम्र के हिसाब से खाना चाहिए बल्कि कुछ आहारों से परहेज करना जरूरी हो जाता है।
30 के बाद स्वस्थ रहने के लिए वसायुक्त आहाराें से  परहेज करन में ही भलाई है। वसायुक्त आहारों के अलावा तेल और मीठे के सेवन में भी कमी लानी चाहिए। आहारों के साथ साथ अपने खाने के तरीके में भी बदलाव लाना चाहिए। एक बार में अधिक खाने की जगह थोड़ा थोड़ा करके खायें। इस उम्र से बीपी बढ़ने की समस्या हो जाती है, इसलिए कम मात्रा में नमक खाएं। आपका दिल और गुर्दे सलामत रहेंगे। ज्यादा चीनी कभी भी फायदेमंद नहीं होती इसलिए आप 35 के बाद चीनी का सेवन कम कर दें। इससे डायबीटीज का खतरा बहुत कम हो जाता है। लेबल्ड डाइट फूडखाना स्वाद में बेहतर लग सकता है लेकिन इससे दूरी बनाएं। इससे आपको कमजोरी महसूस हो सकती है।

35 की उम्र के बाद तनाव ज्यादा रहता है, ऐसे में कैफीन को चाय या कॉफी के रूप में पीना आपके लिए और घातक साबित हो सकता है।दूध वाली चाय से परहेज करना चाहिये क्योंकि इसमें कैलोरी अधिक होती हैं। ज्यादा वाइन सेहत के लिए हानिकारक हो सकती है। इससे दिल और लिवर पर बुरा असर पड़ सकता है।

30 की उम्र के बाद कोलेस्टेरोल कम करने का एक आसान तरीका यह है कि आप कोलेस्टेरोल युक्त आनाज न खाएं। अपने आहार में कार्ब की मात्रा कम करके आप खराब कोलेस्टेरोल को कम कर सकते हैं और अच्छे कोलेस्‍ट्रॉल को बढ़ा सकते हैं। आपको अपने आहार में ब्राउन ब्रेड और ब्राउन राइस को जरूर शामिल करना चाहिए।

बुधवार, 8 अगस्त 2018

बदल रही है साेच, बदल रही है जिंदगी




सुप्रभात दाेस्ताें। बारिश की रिमझिम फुहार से आपका मन भी उल्लसित और प्रफुल्लित हाेगा, एेसी आशा है। अभी तक हमने विविध विषयाें पर लेख प्रकाशित किए। जिन विषयाें काे पढ़ने में आपने रुचि दिखाई वह हैं - हेल्थ. पेरेंटिंग, रिलेशन शिप, फैशन,और समाज में सीधा हस्तक्षेप करती कहानियां।
आपका यह चयन दर्शाता है कि आप बदलते हुए समाज की हर नब्ज काे जानना चाहते हैं। समस्या का निदान चाहते हैं। अपनी सेहत काे लेकर जागरूक हैं। फैशन के बारे में पढ़ना चाहते हैं, रिश्ताें की उधेड़बुन से निकलकर उनकाे संवारना चाहते हैं। सबसे अच्छी और रेखांकित करने वाली बात यह है कि आपने अपनी साेच भी बदली है। यह बहुत आसान नहीं हाेता है। परंपरागत ढ़ांचे काे हिलाना आसान नहीं। मुझ अच्छालगा यह जानकर कि आपने एकमत से कहा लड़कियाें काेई वस्तु नहीं जिनकाे दान दिया जाय। मुझे यह भी अच्छा लगा कि लड़कियां नहीं चाहती कि शादी के लिए उनकाे एक प्राेडक्ट की तरह पेश किया जाए और लाेग उनकाे देखें परखें पसंद ना पसंद करें। शक्ल सूरत हेंडसम जैसे शब्दाें काे परे धकेलकर उन्हाेंने साथी के चयन के लिए साेच के मिलने का समर्थन किया। शब्द बदल रहे हैं पहले कहा जाता था
आेह कितना हैंडसम है तेरा हसबैंड.. आज कहते हैं वाउ.. कितना जीनियस है तेरा हसबैंड..
इस तरह के कई बदलाव मैं देख रही हूं। पहले जब हसबैंड खाना बनाने की या चाय बनाने की ही बात करता था ताे लगता है जैसे अगर वह रसाेई में चला गया उसने बर्तन धोए ताे कितना पाप चढ़ जाएगा मन दुःखी हाे जाएगा. आज वाइफ कहती है मेरा ताे दिन बन गया, जायका बदल गया..
सचमुच जायका बदल रहा पति परमेश्वर की जगह एक साथी ने ले ली है।
आप इसी तरह मैं अपराजिता पढ़ते रहिए। हमारे इस ब्लाग काे शेयर कीजिए. क्याेंकि आपकाे अपने मित्राें की रूचि के बारे में पता है

मंगलवार, 7 अगस्त 2018

पति-पत्नी अपने संबंधों में शुष्कता न आने दें-डा. हरीश भल्ला

 यदि दंपति जीवन में प्रेम की उदात्ता को महसूस करना चाहें तो उनके लिए उनको अपनी जरुरतों और बच्चों की जरुरतों के बीच संतुलन पैदा करना होगा।
संतान प्राप्ति के बाद अक्सर पति-पत्नी को यह शिकायत रहती है कि वह अपनी अंतरंग जिंदगी ठीक से नहीं बिता पाते। इसके क्या कारण है?
आप आसानी से अपनी सेक्सुअल लाइफ जी सकते हैं । यह ठीक है कि संतान के आने से जीवन में खुशियां और बदलाव आते हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आप अपनी आत्मीयता और अंतरंग व्यक्तिगत जीवन को नीरस बना दें। आपको अपने संबधों पर भी ध्यान देना चाहिए।
यह किस तरह संभव है?
ज्ीवन में प्रेम की उदातता और गहन अनुभूति शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से प्राप्त की जा सकती है। अधिक समस्याएं संतुलन न होने के कारण ही होती हैं। यह न भूलें कि वह प्रेमी-प्रेमिका भी हैं और पेरेंट्स भी। पति-पत्नी एक दूसरे के प्रेमी बने रहें, यह बहुत जरुरी है। प्रेम, रोमांस यह सब इंसान की जरुरतों में एक है। यह ठीक है कि यह खाने, रहने जितना महत्वपूर्ण नहीं, लेकिन उससे कम भी नहीं है। यह वह चीज है जिससे हम जिंदा रहते हैं।
पति-पत्नी को इसके लिए क्या करना चाहिए?
अक्सर पेरेंट्स बनने के बाद पति-पत्नी एक गंभीर आवरण ओढ़ लेते हैं। वह चुहुलबाजी, शरारतें या बेवकूफियां करना भूल जाते हैं। इस तरह धीरे-धीरे एक निष्क्रियता पैदा होने लगती है। सरप्राइज का गुण इस निष्क्रियता को समाप्त करने में सहायक होता है। यदि आपके पति/पत्नी काम से बाहर गए हैं और आपको मालूम हैं कि वह वहां किस होटल में ठहरे हैं तो आजकल यह सुविधा उपलब्ध है कि आप उन तक अपनी स्नेह भावना पहुंचा सकें, जैसे फोन के माध्यम सें, अथवा एजेंन्ट के माध्यम से फूल आदि भिजवा कर। इसका बहुत मादक अहसास होता है। शादी की सालगिरह, जन्मदिन आदि ऐसे मौके होते हैं जो आपको एक दूसरे का सामीप्य तो प्रदान करते ही हैं, साथ ही जीवन में आ रही नीरसता को भी दूर करते हैं। अमूनन पेरेंट्स पेरेंट्स मीटिंग में ही साथ जा पाते हैं।
क्या इसके लिए कुछ टिप्स दिए जा सकते हैं?
क्यों नहीं। सर्वप्रथम ऐसा मौहाल पैदा करें जहां बच्चों की देखभाल के साथ-साथ रोमांटिक व्यवहार भी हो। यह एक बहुत बडा सच है कि प्रत्येक दंपति को यह अहसास होता है कि अन्य दम्पतियों की तुलना मे उनका जीवन बड़ा नीरस है। वह आपस में एक दूसरे को दोषी ठहराते है जबकि वास्तव में कोई भी दम्पति ऐसे नही है जो इस तरह की समस्याओं से न गुजरें हां, एक दूसरे की कमियां निकालने से कहीं अच्छा है स्वयं की गलतियों को स्वीकार करने का साहस पैदा करें। एक दूसरे का इंतजार न करके स्वयं पहल करें जिससे नीरसता टूटे। पति-पत्नी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं अतः अपनी इच्छा जाहिर करने में संकोच न करें। आंखों में आंखे डालकर अपने मन की बात करें। निश्चित तौर पर पत्नी/पति खुश होंगे। प्रत्येक युगल के मन में प्रेम की एक फंतासी अवश्य होती है। वह अपने कल्पना लोक में कई सपने देखते हैं लेकिन कह पाने में उसे यह डर होता है कि कहीं वह उपहास का पात्र न बन जाए। ऐसी स्थिति में दिल की बात दिल में ही रह जाती है। हो सकता है कि आपकी कल्पना को साकार करने में आपके साथी को विशेष प्रसन्नता हो और आप दोनों आनंद का अनुभव करें। शादी के बाद पति-पत्नी अपनी देह और सौंदर्य आदि पर ध्यान नहीं देते। पत्नी को लगता है कि अब किसके लिए तैयार हों जो मिलना था वह तो मिल गया। पति का भाव भी ऐसा ही होता है। यह एक गलत एप्रोच है। और यहीं से प्रारम्भ होते हैं विवाहेतर संबंध। क्योंकि आकर्षण ही वह पहली श्रेणी है जो पुरुष को बांधती है। संबंधों में आकर्षण का बहुत महत्व होता है। इसी तरह हमेशा स्वयं को चुस्त बनाए रखें। आलसी पुरुष और स्त्री किसी को पसंद नही होते। इसके साथ प्रेम के संकेत भी पति-पत्नी एक दूसरे को देते रहें। चाहे वह शरारत भरे ही क्यों न हों। जो आपके प्रेम को दर्शाएं साथ ही जिसके पीछे आमंत्रण का भाव छुपा हो। याद रहे प्रेम की ऊष्मा से ही आपके संबंध प्रगाढ हो सकते हैं।
एकल परिवारों में इस समस्या से कैसे निपटा जा सकता है?
हम आपकी बात से सहमत है कि एकल परिवारों में दंपति के सामने एक चुनौती होती है। वह पेरेंट्स भी हैं, अतः वह दायित्व भी उन्हें निभाना है। घर में और कोई नहीं होता जिसके सहारे वह बच्चों को छोड़ सकें। बच्चों को अकेला छोड़कर स्वयं रोमानी जिंदगी जीना कोई तर्कपूर्ण बात नहीं है। लेकिन हम जिस बात पर जोर दे रहे हैं, वह यह है कि पति-पत्नी पेरेंट्स का रोल माडल अपनाते हुए एक तरह से स्वयं की इच्छाओं पर अंकुश लगा देते हैं। और यह दमित इच्छाएं बच्चों के लिए खतरनाक होती हैं और स्वयं उनके लिए भी। अतः कोई ऐसा रास्ता निकाला जाना चाहिए जिससे संबंधों में संतुलन रहे। संतुलन ही संबंधों में स्थायित्व लाता है।
दंपति की समस्याएं डा. हरीश भल्ला, संपादन- डा. अनुजा भट्ट
 प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक से

सोमवार, 6 अगस्त 2018

डिहाइड्रेशन से बचें – डा. दीपिका शर्मा


कई बार पानी की कमी से कई समस्याएं हो जाती हैं और उनमें से सबसे अधिक होने वाली समस्या है डिहाइड्रेशन, यानी पानी की कमी से अवशिष्‍ट पदार्थों का विष शरीर में फैल जाता है। कई लोग ऐसे हैं जो नहीं जानते कि एक दिन में कम से कम कितना पानी पीना चाहिए या फिर लगातार पानी पीते रहने से क्या नुकसान हो सकता है।  अगर आप भी या आपके परिवार का काेई सदस्य डिहाइड्रेशन की समस्या से जूझ रहा है ताे यह लेख  आपकी मदद कर सकता है।
शरीर में पानी की कमी से कई समस्याएं पैदा हाेती हैं,जैसे शरीर में चर्बी बढ़ना, पाचन क्रिया कमजोर होना, अंगों का ठीक प्रकार से काम न कर पाना, शरीर में विषाक्तता का बढ़ना, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द होना इत्यादि। इतना ही नहीं जो लोग प्रतिदिन व्यायाम करते हैं उनके लिए पानी की कमी और भी अधिक नुकसानदायक हो सकती है।कई बीमारियां जैसे बुखार, उल्टी, ब्लैडर इंफैक्शन, पथरी इत्यादि होने पर शरीर में पानी की मात्रा बहुत कम हो जाती है। ऐसे में पानी की जरूरत शरीर को हर समय रहती है फिर चाहे रोगी को प्यास लगे या न लगे। कई बार लोग सिर्फ प्यास लगने पर ही पानी पीते हैं जबकि प्यास लगे न लगे दिन में आठ गिलास पानी पीने से डिहाइड्रेशन की समस्या से आसानी से बचा जा सकता है।कुछ लोग पानी के बजाय सॉफ्ट ड्रिंक, बीयर, कॉफी, सोडा इत्यादि पीने लगते हैं लेकिन वे ये नहीं जानते बेशक ये चीजें तरल पदार्थें में शामिल होती हैं लेकिन यह न सिर्फ स्वास्थ्य की दृष्‍टि से नुकसानदायक हैं बल्कि इनके पीने के बावजूद डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है। डिहाइड्रेशन से व्यक्ति के सोचने-विचारने, चीजों को संतुलित करने, रक्त संचार इत्यादि में कमी आ जाती है। इतना ही नहीं शराब पीने वाले व्यक्ति जिनको अकसर हैंगओवर हो जाता है, को भी डिहाइड्रेशन की समस्या हो जाती है। गर्मी के मौसम में और अधिक व्यायाम करने वालों या फिर जिम जाने वाले लोगों, भागदौड़ करने वाले व्यक्तियों को अकसर डिहाइड्रेशन की समस्या से गुजरना पड़ता है। ऐसे में उन्हें अपने पानी पीने की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए।
कब एवं कैसा पानी पिएपानी हमेशा खाना खाने से आधा घंटा पहले या खाना खाने के एक घंटे बाद पीना चाहिए।गर्मी में बाहर से आकर तुरंत पानी न पीएं बल्कि थोड़ी देर रूककर नॉर्मल पानी पीना चाहिए।यदि आपको कब्ज की समस्या है, तो पानी में एक चम्मच नीबू का रस मिलाकर पिएं।खाने के बीच में पानी कभी न पीएं इससे आपको खाना पचाने में मुश्किल होगी। सुबह-सुबह उठकर पानी पीना बहुत फायदेमंद रहता है।
डिहाइड्रेशन होने पर क्या करें
जब आपको डिहाइड्रेशन होने लगता है तो आपको जी मिचलाना, उल्टियां होना, जबान का सूखना, सांस सही से ना ले पाना, चिड़चिड़ापन इत्यादि समस्‍याएं होने लगती है। अगर आपको डिहाइड्रेशन की प्रॉब्लम हो रही हो तो तुरंत पानी में थोडा सा नमक और शक्कर मिलाकर घोल बनाऐं और पी लें। कच्चे दूध की लस्सी बनाकर पीने से भी डिहाइड्रेशन में लाभ होता है। छाछ में नमक डालकर पीने से भी आपको इस समस्या से राहत मिलेगी। डिहाइडेशन होने पर नारियल का पानी पिऐं।

 डा. दीपिका शर्मा अपाेलाे  फेमिली क्लीनिक नौएडा, उत्तरप्रदेश, सेक्टर 110 में  फेमिली फिजिशियन हैं।
 सेहत से जुड़े सवाल आप हमारे मैं अपराजिता के फेसबुक पेज में कर सकते हैं। अपनी सेहत संबंधी समस्या के लिए आप हमें मेल भी कर सकते हैं-
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रविवार, 5 अगस्त 2018

सार्थक अस्तित्व मेरा- उर्मिल सत्यभूषण


राजेश्वरी अकेली रह गई हैं। श्रीवास्तव जी छोड़कर जा चुके हैं। बच्चों के साथ रहना गवारा नहीं। स्वतंत्रता हर हाल में प्यारी है। बच्चे आते जाते हैं। हिदायतों का पुलिंदा साथ में थमा जाते हैं। राजेश्वरी दूर दराज जा नहीं पाती। घर पर एक लैंडलाइन फोन है। उसकी के द्वारा बातचीत करती है। कामचलाऊ। तन्हाइयां काटने को आती हैं। वह समझदार है, तन्हाइयों को इजाजत नहीं देंगी कि वे उन्हें काट दें। वे तन्हाइयों को काटने का ही कुछ इन्तजाम करेंगी बेमौत नहीं मरेंगी। ज्यादा कार्यक्रमां में जाना संभव नहीं। सुबह एक सत्संग में जरूर जाती हैं।
‘‘लाओ, इनके कागज पत्र समेटते हैं। पुस्तकें लिखते थे श्रीवास्तक साहब लिख लिखकर रखते जाते थे कि रिटायर होने के बाद छपवायेंगें। छपवाने की मोहलत नहीं मिली। अब हम ही देखते हैं कुछ छपवाने का प्रबंध करें।
धीरे धीरे उन कागजों को छांटना, संवारना, पढ़ना शुरू किया तो छोटे छोटे जुगनू रोशनी की पकड़ में आने लगे। विषाद अवसाद घुलने लगा। धीरे धीरे महसूस हुआ - ये तो रोशनी के द्वार पर द्वार खुलते जा रहे हैं। कहानियों को अलग किया, कविताओं को अलग। अपनी भी कई पुरानी डायरियाँ, कापियाँ अंधेरे कोनों से नमूदार हुई जिन्हें कब का छुपाकर रख दिया गया था कि अतीत कभी आंखे ही न खोले। जो मिला उसी में सुख प्राप्त कर लें। पति का प्रेम मिल गया तो अपना अस्तित्व अपना व्यक्तित्व उन्हीं में विलीन कर सुख का अनुभव करने लगी थीं वे। औरत को और क्या चाहिए भला?
लेकिन आज आधुनिक युग की खुली आंखों और सिर उठाती महत्वाकांक्षाओं को देखकर महसूस होता है कि औरत को भी अपने अस्तित्व की, अपने व्यक्तित्व की जरूरत है।
किसी की मदद से उसने पति के कार्यों को प्रकाशित करवाने की ठानी। अपनी भी कवितायें चीख पुकार मचाने लगी तो उनके लिए भी प्रयत्न शुरू हुआ। पैसे की कमी न थी।  पैसा लगाकर पुस्तकें सामने आई। राजेश्वरी का हौंसलां बढ़ा तो और भी पुस्तकें लिखने लगी। बातचीत करने लगी। आत्मविश्वास बढ़ा तो कई सम्पर्क सूत्र काम आने लगे।
किताब को नाम मिला :- रोशनी की तलाश में।
भूमिका में सुंदर कविता अवतरित हुईः- रोशनी जुगनू की हो या सूरज की।
रोशनी तो रोशनी है जो विषाद के, अवसाद के अंधेरे दूर करती है। मैं भी निकल पड़ी हूं रोशनी की तलाश में। तुम्हारी हथेली का जुगनू मेरी कलम पर आन बैठा लफ्जों के लिबास में कागज की देह पर उतरता चला गया। कविता के आधार में। गीत के संसार में उजास ही उजास था। रोशनाई से लिखा प्रकाश ही प्रकाश था। इलाही नूर से भरपूर हुआ अस्तित्व मेरा। राह मुझको मिल गई चलने लगी, चलती गई, चलती गई। लीलने को तत्पर थी तन्हाइयां किधर गई, किधर गई? निकल पड़ी अनगिनत रचनायें जुगनू पकड़ने रोशनी की आस में। चल पड़ी मैं चल पड़ी - जुगनुओं की तलाश में
सार्थक प्रयास मेरा दे रहा खुशियां मुझे
चलने लगी अब छोड़कर बैसाखियां। हो रहा है सार्थक
और समर्थ अब अस्तित्व मेरा। तिनका तिनका सुख
मुझको दे रहा संतोष कितना यह मेरा व्यक्तित्व




शनिवार, 4 अगस्त 2018

किकी चैलेंज- खतराें के खिलाड़ी मत बनिए आप- डा. अनुजा भट्ट


  पिछले  दिनाें साेशल मीडिया पर किकी चैलेंज ने जबरदस्त धूम मचायी और इसका असर सड़काें पर नजर आया। युवाआें से लेकर उम्रदराज लाेगाें ने इसमें हिस्सा लिया। आनंद के अतिरेक में उनकाे पीछे आ रही गा़ड़ी का हार्न भी नहीं सुनाई दिया। ड़्राइवर से माफी मांगने के बजाय वह उसपर नाराज हाेते नजर आए क्याेंकि उन्हाेंने उनके आनंद में खलल डाला।  डांस  करना आनंदित ताे  करता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप सड़क जाम कर दें। वैसे भी जब हम किसी भी चीज के साथ चैलेंज शब्द का प्रयाेग कर  देते हैं ताे फिर हर आदमी औरत चाहें वह  किसी भी उम्र का क्याें न हाे जाेरआजमाइश करने लगता है।  फिर इस जोरआजमाइश में उसका पूरा कुनबा टूट पड़ता है। फेसबुक लाइव आते ही उसके रिश्तेदार से लेकर सारे दाेस्त इस मुहिम में शामिल हाे जाते हैं। और हर शहर हर गांव हर कस्बे से एेसी खबरे आने लगती है।  हर क्षेत्र  के लाेग फिल्मी लोग. नाैकरी पेशा लाेग, व्यापारी. बेराेजगार सब  शामिल हाे जाते हैं।
 लेकिन जब यह नशा स्कूली बच्चाें टीनएजर पर पड़ता है ताे फिर वैसा ही नजारा आते देर नहीं लगेगी जैसा  ब्लू व्हैल गेम खेलते समय हुई थी। तब यह फनचैलेंज बनाम एडवैंचर, एक्सीडेंट में बदलने लगेगा और हम हाथ मलते रह जाएंगे। किशाेर मन काे जब एक बार  उकसा दें ताे फिर वह बार बार उस काम काे करता है। फन और उन्माद में फर्क काे महसूस करना सीखना चाहिए। हम सब लाेग एक अंधी दाैड़ में भागते जा रहे हैं।  और मीडिया भी इस तरह की खबराें काे महत्व दे रहा है। आखिर इस तरह के फन का क्या मतलब है जहां सड़के जाम हाे जाए। लाेग समय पर आफिस न पहुंच पाएं। बीमार सड़क पर कसमसाते रहे। सुरक्षा व्यवस्था की धज्जियां  उड़ जाएं और हम हँसते रहे, गुदगुदाते रहे, फाेटाे शेयर करते हैं चाहे हमारे पीछे काेई तड़प तड़प कर मर जाए।
 देस भक्ति की भावना ताे हमारे भीतर से गायब हाेती जा रही है। बच्चाें काे इससे काेई सराेकार नहीं क्याेंकि हम एेसे संस्कार देने में अब काेई रूचि नहीं दिखा रहे। हम फन की तलाश में है चाहे  वह फन कितना भ हिंसक और बेहूदा क्याें न हाे। हम नाचना चाहते हैं, हम मदमस्त हाेना चाहते हैं  दुनिया जाए भाड़ में.. यही हमारी साेच बनती जा रही है। आपके बच्चे भी आपके साथ इस हिंसक खेल में साझेदारी कर रहे हैं। इस खेल में हार या जीत  नहीं है यहां है खुला चैलेंज... मैं कर सकता हूं.. आपमें है दम ताे  काीजिए.. खाेलिए गाड़ी का दरवाजा और बाहर  निकलकर कीजिए किकी डांस.....

Special Post

मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

  (अब पहले की तरह किस्से कहानियों की कल्पनाएं हमें किसी रहस्यमय संसार में नहीं ले जाती क्योंकि हमारी दुनिया में ज्ञान, विज्ञान और समाज विज्...