रविवार, 12 अगस्त 2018

फन्ने खां ने उठाया बॉडी शेमिंग पर सवाल- डा. अनुजा भट्ट

फन्ने खां  फिल्म अपनी लचर कथा और बिखरती पटकथा के कारण आज के प्रासंगिक सवालाें को सही ढ़ंग से नहीं उठा पाई। कहानी का आइडिया अच्छा था। बॉडी शेमिंग खासकर महिलाआें के लिए एक अहम सवाल है। यह आपकी प्रतिभा काे बाहर निकलने का माैका नहीं देता। समाज  न उनकाे सुंदर मानने काे तैयार है और न  प्रतिभावान। स्कूल हाे या कालेज,घर परिवार हाे या अॉफिस या बाजार। हर जगह स्वागत करती हैं ताे फब्बितयां। जाे उनके आत्मविश्वास काे चूर चूर कर  देती है। इस फिल्म में लता काे भी इसी तरह की सामाजिक विसंगतियाें का सामना करता पड़ता है और वह कभी बहुत इमाेशनल ताे कभी बहुत जिद्दी और बदतमीज हाे जाती है। अपने पिता के  प्रति उसका रूखा व्यवहार आज की नई पीढ़ी के बच्चाें का एेसा अक्स पेश करता है जिसे सही नहीं ठहराया जा सकता। जाे पिता हर समय उसके लिए सपने देखता है और चाहता है  कि उसे उसकी मंजिल मिले एेसे पिता के लिए उसका व्यवहार ठीक नहीं। वह सिर्फ अपने लिए जीती नजर आती है। मां के साथ ट्यूनिंग है पर वह भी एकदम सतही...
 फिल्में संदेश देती हैं एेसे में लता का संदेश एक रूकावट पैदा करता है। आज के दाैर में हाे सकता है यह किसी काे न खटका हाे पर मुझे जरूर खटका। मां पिता के साथ बच्चाें के रिश्ते दाेस्ताना हाेेने के पक्ष में मैं भी हूं पर माता पिता की अवहेलना और उनकी मेहनत काे नजर अंदाज करने के पक्ष में कतई नहीं।  अभिनय की दृष्टि से लता के रूप में पिहू का अभिनय जानदार है। फेक्ट्री में अपहरण की गई बेबी उर्फ एश्वर्या वाला  दृश्य बहुत लंबा है  इस वजह से कहानी के बहुत सारे डिटेल्स खतम हाे जाते हैं। मेहनत के बल पर सबकुछ मिल सकता है बेबी का यह मैसेज भी सार्थक नहीं हाेता। क्याेंकि लता जाे मुकाम हासिल करती है वह मेहनत से नहीं बल्कि जुगाड़ से करती है।  फिल्म में अगर लता काे मेहनत के बल पर अपना लक्ष्य हासिल करते हुए दिखाया जाता  ताे यह एक अच्छी कहानी हाेती।  आजकल हर बच्चा पढ़ाई के साथ साथ कुछ और भी सीख रहा है। उसके सपनाें में कई सेलीब्रिटी है। जैसा वह बनना चाहते हैं। एेसे बच्चाें के लिए यह एक निराशाजनक बात है।
 और अगर इसे कामेडी फिल्म की तरह देखा जाए ताे यह एक बच्ची का मजाक उड़ाती है उसके माेटेपर पर हँसती है। वह लड़की जिसमें प्रतिभा है और सपना भी है अपने पिता की हरकताें पर बेसाख्ता राेना चाहती है, माइक ताेड़कर फैंक देना चाहती है। पर वह चालाक भी है माैके का  फायदा उठाना आता है उसे ,क्याेंकि बाजार भी ताे यही कर रहा है।
 फिर भी फिल्म निराश नहीं करती। कम से कम सवाल ताे उठाती है। 

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