उर्मिल सत्यभूषण |
‘‘वरिष्ठ नागरिक गृह में आपको सिटी मॉम्ज के साथ मातृदिवस मनाने जाना है। आप चलेंगी न आपको बहुत अच्छा लगेगा।
महामाया ने कहा था : ‘सिटी मॉम्ज घरेलू महिलाओं का एक एन जी ओ है। ये होममेकरज हैं पर घर में ही कुछ न कुछ उद्यम चला रखे हैं। घर भी उपेक्षित नहीं होता और महिलाओं की आर्थिक और बौद्विक जरूरतें भी पूरी होती रहती हैं। अपने पारिवारिक कार्यों के साथ साथ समाजोपयोगी प्रोजेक्ट भी हाथ में लेती रहती हैं।
श्रीदेवी के मन में वरिष्ठगृह को देखने की उत्सुकता भी जगी और सिटी मॉम्ज एन जी ओ के सदस्यों से मिलने की इच्छा भी। समय के साथ जरूरतें बदलती हैं तो सामाजिक ढांचे भी अपना रूप बदलने लगते हैं। आज के बुजुर्गों की समस्या बहुत गंभीर रूप लेती जा रही है। संताने अपने काम की भागदौड़ के कारण वृ़द्ध मां बाप को अकेले छोड़ते जा रहे हैं। वृद्ध लोग अपनी उम्र की आधियों, व्याधियों से ग्रसित अकेले रह गये हैं बहुत निरीह और असहाय सी जिंदगी हो गई है उनकी। श्रीदेवी कब से ऐसे सांध्यगृहों की खोज में लगी हैं : उनकी जरूरत शिद्दत से महसूस हो रही है।
ठीक समय पर महामाया लेने पहुंची। वह तैयार बैठी थी कुछ किताबें उठाई और चल दी।
‘‘आंटी, थोड़ी देर हो गई है हमें पर वो लोग बड़ी बेसब्री से इन्तजार कर रहे हैं। आपका इन्तजार हो रहा है।
वहां प्रोग्राम क्या है?
‘वहां मदरज डे मनाना हैं ताकि वहां के रहने वालों को भी अपने होने का एहसास हो। आपका काव्यपाठ होगा, उनको प्रेरणा मिलेगी आंटी अभी दो साल पहले ही दो युवा माताओं की पहल पर यह एन जी ओ शुरू किया गया हैैै।
मैं भी उस एन जी ओ का हिस्सा हूं।
‘आप क्या क्या करते हैं उसमें? श्रीदेवी ने पूछा।
तो महामाया बोली : यह घरेलू महिलाओं की सार्थक पहल है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि औरतें आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनें। उनके व्यक्त्तिव का विकास हो और सशक्त महिलायें अच्छे समाज का भी निर्माण कर सकें। अब समय के साथ परिवार की चूलें हिल चुकी हैं। काम दौड़भाग में परिवार टूटते जा रहे हैं। बच्चों का पालनपोषण सही नहीं हो पाता। पढ़ी लिखी महिलाओं ने इस बारे में अच्छी तरह सोचा है कि परिवार, व्यक्ति समाज किस तरह से संतुलित किया जाये तो मातृशक्ति ने एक सार्थक पहल की है।
‘श्रीदेवी, सुनकर खुश हुई। वाह महामाया बड़ा अच्छा सोचा है शहरी माताओं ने। मेरी जैसी ग्रैंड मॉम भी आपके मिशन में शामिल होना चाहती हैं।
‘ओ श्योर - आंटी - इसीलिए तो हमने आपको चुना है हमें गाइडकरने के लिए।
‘आधे घंटे में वे लोग वरिष्ट्ठ गृह पहुंच गये।
शहर की सम्पन्न कालोनी में था गृह - सारी सुख सुविधाओं और वाटिकाओं की हरीतिमा से घिरा हुआ। मंदिर का बहुत बड़ा हाल भी था। जिसमे सत्संग के अलावा कई प्रकार के कार्यक्रम होते रहते थे।
लिफ्ट से वे लोग ऊपर हाल में पहुंचे। वहां पर 20-25 लोग सीनियर सिटीजन थे और 15 या 20 सिटी मॉम्ज की सदस्यायें थी। श्रीदेवी जी का परिचय कराया गया। सबने खड़े होकर तालियां बजाकर उनका स्वागत किया। सब लोग बड़े उत्साह और उमंग में दिखाई दे रहे थे। श्रीदेवी जी ने काव्यपाठ आरम्भ किया तो सभी मंत्रमुग्ध हो उठे। सभी कवितायें उमंग और जीवन्तता से भरी थीं। बाद में वरिष्ट्ठ लोगों ने भी अपने अपने अनुभव शेयर किये। सबने कुछ न कुछ सुनाया और अपना अपना परिचय दिया। उन युवा उत्साही मातृशक्तियों ने नृत्य आरम्भ किया तो वे लोग भी झूम झूम कर नाचने लगी। बाद में जलपान कराया गया और हरेक व्यक्ति का तोहफों से अभिनंदन किया गया। श्रीदेवी इस कार्यक्रम से बड़ी प्रफुल्लित थीं। उसने बुजुर्गों के कमरों का निरिक्षण किया। सब के पास अपना अपना खरीदा हुआ एक कमरा था शौचालय सहित। कमरे अच्छे हवादार, रोशन और फर्नीचर से लैस थे। खाना आदि सब फ्री का। रैम्प भी बने हुए थे। काफी अच्छा प्रबंध था। श्रीदेवी बहुत समय से सोच रही थी अपने लिए भी कमरा लेने का ताकि वहां आकर यहां लिख पढ़ सके। जब मन हुआ घर वालों से मिल भी आए।
उसने अपने विचार सिटी मॉम्ज के आगे भी रखे कि ये सांध्य गृहों का विस्तार किया जाए और प्रचार भी। क्योंकि समय की जरूरत है ये पर सभी समाजजसेवा में लगी संस्थायें समय समय पर इनसे मिलने आये। इनके साथ मिलकर कार्यक्रम करें।
ऐसा चल रहा है आंटी - बहुत से आयोजन यहां होते रहते हैं जिनमें ये लोग भी शामिल होते हैं। दो दिन बाद यहां पर सामूहिक विवाह का कार्यक्रम है जिसमें हमें शामिल होना है। एक महिला ने कहा। उसन कहा ‘दीदी‘ आप चाहो तो कभी आकर रह भी सकते हैं हमारे साथ। कमरे कई खाली रहते हैं जब कई लोग अपने घर चले जाते हैं मिलने।
एक बुजुर्ग ने कहा - मैडम, हमें अपनी पुस्तकें दे जाएं यहां की लाइब्रेरी अभी ठीक नहीं है।
मैं जरूर पुस्तकें लाऊंगी और लाइब्रेरी का प्रबंध भी किया जायेगा। श्रीदेवी ने सिटी मॉम्ज से इस बारे में कहा।
जाते जाते : वो लोग बोले :-
मैडम एक गीत और सुना जाओ। आपके गीत जीवन का संदेश लाये हैं। श्रीदेवी ने कहा - जरूर : यह मेरा गीत आप मेरे साथ गायें
सूखे पत्ते हैं हम तो बिखर जायेंगें
पेड़ को पर हरेपन से भर जायेंगें
जिंदगी की नदी में नहाये बहुत
हंसते गाते ही पार उतर जायेंगें
उसने जीने को दी थी सौगाते उम्र
इसके पल पल को जीवंत कर जायेंगें
हम तपे हैं उम्र भर मगर शाम को
ढलते सूरज की मानिंद बिखर जायेंगें।
छेद करती रही उर्मिला तिमिर में
रोशनी जब मिले अपने घर जायेंगें।
कवियित्री कथाकार।संस्थापक अध्यक्ष परिचय साहित्य परिषद्
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