मंगलवार, 14 अगस्त 2018

हँसिए और हँसाइए- डा. हरीश भल्ला

क्या आपको मालूम है कि बहुत सी बीमारियों का निदान स्वयं आपके पास है जिनका प्रयोग करने से जहां एक ओर आप गंभीर बीमारी से बच सकते हैं वहीं दूसरी ओर व्यर्थ की दौड़-भाग, मानसिक तनाव से भी मुक्ति पा सकते हैं। हँसना एक प्राकृतिक दवा है।

हँसना एक मनोभाव है, ठीक वैसे ही जैसे रोना। मनुष्य जन्म लेने के बाद इन भावों को अभिव्यक्ति प्रदान करता है। चिकित्सकीय दृष्टिकोण से हँसना क्या है?

मनोभाव के साथ-साथ हँसना एक यौगिक प्रक्रिया है जिसमंे मनुष्य के शरीर ओर मन दोनों का व्यायाम होता है। हँसी के दो चरण होते हैं। उतार ओर चढ़ाव। ठहाका मारकर हंसना चढ़ाव है और फिर धीरे-धीरे हंसना संतुलित हो जाना है इसे ही उतार कहा जाता है। यह प्रकिया रोज की जिंदगीं में आए तनाव को कम करती है। हंसने से केटेकोलेमेनाइज एड्रर्लिन और नान एड्रर्लिन का रिसाव होता है जिससे ठीक होने की प्रक्रिया तेज हो जाती है और आप स्वयं को स्वस्थ अनुभव करते हैं।

हँसने से क्या लाभ हो सकता है?

चिकित्सकीय विज्ञान में हुए अनुसंधानों से यह सिद्ध हो चुका है कि हँसने का प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है। हँसी एक तरह की दर्द निवारक दवा है। लेकिन यह योग क्रिया के माध्यम से प्रयोग की जाती है। हँसने की इस प्रक्रिया से ब्लडप्रेशर, दिल की बीमारी, डायबिटीज, जोड़ों का दर्द, कमर का दर्द, मासंपेशियों का दर्द ठीक हो जाता है। इसके अतिरिक्त तनाव, उदासी और उतेजना को कम करने में भी यह सहायक सिद्ध हुआ है।

आपने बताया कि हंसने से जोड़ों का दर्द आदि ठीक हो जाता है। लेकिन यह कैसे संभव हैं?हंसी एक दर्द निवारक दवा है। हँसते समय हमारे शरीर से दो न्यूरो पेप्टीडाइज उनडारफिन और उनकेलेफिन नामक पदार्थ निकलते हैं जिससे शरीर में स्वयं ही दर्द कम हो जाता हे। जब हम हँसते हैं तो खून का संचरण तेज हो जाता है जिससे दर्द भी कम महसूस होता है। यदि आप 10 मिनट तक खुल कर हँसे तो उसका असर दो घंटे तक आपके शरीर में रहता है और बीमारियों से लड़ने की प्रतिरोधी शक्ति पैदा हो जाती है। 100 बार ठहाका मार कर हंसी 10 मिनट की तेज दौड़ के बराबर होती है। हंसने से पुरानी बीमारियों जैसे खांसीं, जुकाम, गठिया, एलर्जी आदि भी ठीक होती देखी गई है।

हँसने के लिए कैसा वातावरण होना चाहिए?यह प्रश्न स्वयं में महत्वपूर्ण हैं। हँसना तभी संभव है जब वातावरण भी वैसा ही हो। हँसना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, हर बात में या हर समय हँसी नहीं आ सकती। हँसी भीतर से पैदा होती है पर यहां जिस हँसने की बात हम कर रहे हैं वह एक तरह का योग है। ठीक वैसे ही जैसे दौड़ना, टहलना आदि। अतः यहां हँसना एक यौगिक क्रिया की तरह है जिसमें हम अपने दोनों हाथ ऊपर ले जाते हैं और फिर हँसत हैंै धीरे-धीरे हंसी की आवृति को कम करते हुए हम अपने दोनों हाथ नीचे ले आते हैं। जब हम व्यायाम करें तो हवा शुद्व होनी चाहिए ताकि हमारे फेफड़ों में आक्सीजन की मात्रा बढें़ और शुद्व रक्त संचार हो।

बीमारियों के निदान के अतिरिक्त व्यक्ति को अन्य क्या लाभ हो सकते हैं?यदि हम प्रतिदिन हँसे तो एकाग्रता बढ़ सकती है। साथ ही कार्य करने की शक्ति में भी गुणात्मक परिवर्तन होता है जिससे वह कम समय में अधिक काम कर सकता है साथ ही उसका आत्मविश्वास बढ़ता है। दम्पति यदि मिलकर हँसें तो परिवार में जहां हँसी-खुशी का वातावरण होगा वहीं उसके संबंध भी मधुर होंगें। लेकिन यदि वे एक दूसरे की कमियों पर हँसेंगे तो माहौल तनावपूर्ण होगा और संबंध कटु बन जाएंगे।

आपकी दृष्टि में क्या ऐसी संस्थाएं हैं जो इस तरह के योगासन कराते हैं?जिस तरह महानगरों में ’हेल्थ क्लब’ या लाफटर क्लब होते हैं। विदेशों में तो इनकी संख्या काफी है पर भारत में यह अपेक्षाकृत कम हैं। लोगों का ध्यान अब इस ओर जा रहा हैं। धीरे-धीरे यहां भी इस तरह के केन्द्र विकसित हो जाएंगे। पश्चिमी देशों में तो प्रत्येक अस्पताल में एक लाफटर क्लब चलाया जाता है जहां चुटकले, कार्टून फिल्मों, पुस्तकों आदि के माध्यम से हँसाया जाता है।

क्या आप मानते हैं कि अब हँसनेे के लिए भी लाफ्टर क्लब जाया जाए।मैंने ऐसा कब कहा कि आप हँसने के लिए लाफ्टर क्लब का इंतजार कीजिए। भारत में इन सब की कोई जरुरत नहीं हैं। ऋषि मुनियों के समय से ही हँसने को एक दवा के रुप में मान्यता मिली है जो व्यक्ति को हँसाने का कार्य करता था उसे विदूषक कहा जाता था। उसके पहनावे, हरकतों से व्यक्ति बिना हँसे नहीं रह पाता था। यह भी एक तरह की कला थी। प्राचीन काल के कोई भी नाटक आप पढें़ उसमें विदूषक का पात्र अवश्य होता था। फिल्मों में यही किरदार जोकर कहलाता है। हँसी हमारे जीवन में शामिल है। कभी हम स्वयं की मूर्खता पर हँसते हैं। अतः हँसने के लिए लाफ्टर क्लब जाना भी एक हँसी का मुहावरा हो सकता है। यह याद रखें कि जब आप हँसे तो दिल खोलकर हँसे, आपकी हँसी गूंजनी चाहिए। सिर्फ मुस्कुरा कर काम नहीं चलेगा। अब वह जमाना गया जब खुल कर हँसना अभद्रता माना जाता था। आज की दुनिया में संस्कार भी वैज्ञानिक होने चाहिए।
दंपति की समस्याएं डा. हरीश भल्ला, संपादन- डा. अनुजा भट्ट
 प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक से

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