यदि दंपति जीवन में प्रेम की उदात्ता को महसूस करना चाहें तो उनके लिए उनको अपनी जरुरतों और बच्चों की जरुरतों के बीच संतुलन पैदा करना होगा।
संतान प्राप्ति के बाद अक्सर पति-पत्नी को यह शिकायत रहती है कि वह अपनी अंतरंग जिंदगी ठीक से नहीं बिता पाते। इसके क्या कारण है?
आप आसानी से अपनी सेक्सुअल लाइफ जी सकते हैं । यह ठीक है कि संतान के आने से जीवन में खुशियां और बदलाव आते हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आप अपनी आत्मीयता और अंतरंग व्यक्तिगत जीवन को नीरस बना दें। आपको अपने संबधों पर भी ध्यान देना चाहिए।
यह किस तरह संभव है?
ज्ीवन में प्रेम की उदातता और गहन अनुभूति शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से प्राप्त की जा सकती है। अधिक समस्याएं संतुलन न होने के कारण ही होती हैं। यह न भूलें कि वह प्रेमी-प्रेमिका भी हैं और पेरेंट्स भी। पति-पत्नी एक दूसरे के प्रेमी बने रहें, यह बहुत जरुरी है। प्रेम, रोमांस यह सब इंसान की जरुरतों में एक है। यह ठीक है कि यह खाने, रहने जितना महत्वपूर्ण नहीं, लेकिन उससे कम भी नहीं है। यह वह चीज है जिससे हम जिंदा रहते हैं।
पति-पत्नी को इसके लिए क्या करना चाहिए?
अक्सर पेरेंट्स बनने के बाद पति-पत्नी एक गंभीर आवरण ओढ़ लेते हैं। वह चुहुलबाजी, शरारतें या बेवकूफियां करना भूल जाते हैं। इस तरह धीरे-धीरे एक निष्क्रियता पैदा होने लगती है। सरप्राइज का गुण इस निष्क्रियता को समाप्त करने में सहायक होता है। यदि आपके पति/पत्नी काम से बाहर गए हैं और आपको मालूम हैं कि वह वहां किस होटल में ठहरे हैं तो आजकल यह सुविधा उपलब्ध है कि आप उन तक अपनी स्नेह भावना पहुंचा सकें, जैसे फोन के माध्यम सें, अथवा एजेंन्ट के माध्यम से फूल आदि भिजवा कर। इसका बहुत मादक अहसास होता है। शादी की सालगिरह, जन्मदिन आदि ऐसे मौके होते हैं जो आपको एक दूसरे का सामीप्य तो प्रदान करते ही हैं, साथ ही जीवन में आ रही नीरसता को भी दूर करते हैं। अमूनन पेरेंट्स पेरेंट्स मीटिंग में ही साथ जा पाते हैं।
क्या इसके लिए कुछ टिप्स दिए जा सकते हैं?
क्यों नहीं। सर्वप्रथम ऐसा मौहाल पैदा करें जहां बच्चों की देखभाल के साथ-साथ रोमांटिक व्यवहार भी हो। यह एक बहुत बडा सच है कि प्रत्येक दंपति को यह अहसास होता है कि अन्य दम्पतियों की तुलना मे उनका जीवन बड़ा नीरस है। वह आपस में एक दूसरे को दोषी ठहराते है जबकि वास्तव में कोई भी दम्पति ऐसे नही है जो इस तरह की समस्याओं से न गुजरें हां, एक दूसरे की कमियां निकालने से कहीं अच्छा है स्वयं की गलतियों को स्वीकार करने का साहस पैदा करें। एक दूसरे का इंतजार न करके स्वयं पहल करें जिससे नीरसता टूटे। पति-पत्नी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं अतः अपनी इच्छा जाहिर करने में संकोच न करें। आंखों में आंखे डालकर अपने मन की बात करें। निश्चित तौर पर पत्नी/पति खुश होंगे। प्रत्येक युगल के मन में प्रेम की एक फंतासी अवश्य होती है। वह अपने कल्पना लोक में कई सपने देखते हैं लेकिन कह पाने में उसे यह डर होता है कि कहीं वह उपहास का पात्र न बन जाए। ऐसी स्थिति में दिल की बात दिल में ही रह जाती है। हो सकता है कि आपकी कल्पना को साकार करने में आपके साथी को विशेष प्रसन्नता हो और आप दोनों आनंद का अनुभव करें। शादी के बाद पति-पत्नी अपनी देह और सौंदर्य आदि पर ध्यान नहीं देते। पत्नी को लगता है कि अब किसके लिए तैयार हों जो मिलना था वह तो मिल गया। पति का भाव भी ऐसा ही होता है। यह एक गलत एप्रोच है। और यहीं से प्रारम्भ होते हैं विवाहेतर संबंध। क्योंकि आकर्षण ही वह पहली श्रेणी है जो पुरुष को बांधती है। संबंधों में आकर्षण का बहुत महत्व होता है। इसी तरह हमेशा स्वयं को चुस्त बनाए रखें। आलसी पुरुष और स्त्री किसी को पसंद नही होते। इसके साथ प्रेम के संकेत भी पति-पत्नी एक दूसरे को देते रहें। चाहे वह शरारत भरे ही क्यों न हों। जो आपके प्रेम को दर्शाएं साथ ही जिसके पीछे आमंत्रण का भाव छुपा हो। याद रहे प्रेम की ऊष्मा से ही आपके संबंध प्रगाढ हो सकते हैं।
एकल परिवारों में इस समस्या से कैसे निपटा जा सकता है?
हम आपकी बात से सहमत है कि एकल परिवारों में दंपति के सामने एक चुनौती होती है। वह पेरेंट्स भी हैं, अतः वह दायित्व भी उन्हें निभाना है। घर में और कोई नहीं होता जिसके सहारे वह बच्चों को छोड़ सकें। बच्चों को अकेला छोड़कर स्वयं रोमानी जिंदगी जीना कोई तर्कपूर्ण बात नहीं है। लेकिन हम जिस बात पर जोर दे रहे हैं, वह यह है कि पति-पत्नी पेरेंट्स का रोल माडल अपनाते हुए एक तरह से स्वयं की इच्छाओं पर अंकुश लगा देते हैं। और यह दमित इच्छाएं बच्चों के लिए खतरनाक होती हैं और स्वयं उनके लिए भी। अतः कोई ऐसा रास्ता निकाला जाना चाहिए जिससे संबंधों में संतुलन रहे। संतुलन ही संबंधों में स्थायित्व लाता है।
दंपति की समस्याएं डा. हरीश भल्ला, संपादन- डा. अनुजा भट्ट
प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक से
संतान प्राप्ति के बाद अक्सर पति-पत्नी को यह शिकायत रहती है कि वह अपनी अंतरंग जिंदगी ठीक से नहीं बिता पाते। इसके क्या कारण है?
आप आसानी से अपनी सेक्सुअल लाइफ जी सकते हैं । यह ठीक है कि संतान के आने से जीवन में खुशियां और बदलाव आते हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आप अपनी आत्मीयता और अंतरंग व्यक्तिगत जीवन को नीरस बना दें। आपको अपने संबधों पर भी ध्यान देना चाहिए।
यह किस तरह संभव है?
ज्ीवन में प्रेम की उदातता और गहन अनुभूति शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से प्राप्त की जा सकती है। अधिक समस्याएं संतुलन न होने के कारण ही होती हैं। यह न भूलें कि वह प्रेमी-प्रेमिका भी हैं और पेरेंट्स भी। पति-पत्नी एक दूसरे के प्रेमी बने रहें, यह बहुत जरुरी है। प्रेम, रोमांस यह सब इंसान की जरुरतों में एक है। यह ठीक है कि यह खाने, रहने जितना महत्वपूर्ण नहीं, लेकिन उससे कम भी नहीं है। यह वह चीज है जिससे हम जिंदा रहते हैं।
पति-पत्नी को इसके लिए क्या करना चाहिए?
अक्सर पेरेंट्स बनने के बाद पति-पत्नी एक गंभीर आवरण ओढ़ लेते हैं। वह चुहुलबाजी, शरारतें या बेवकूफियां करना भूल जाते हैं। इस तरह धीरे-धीरे एक निष्क्रियता पैदा होने लगती है। सरप्राइज का गुण इस निष्क्रियता को समाप्त करने में सहायक होता है। यदि आपके पति/पत्नी काम से बाहर गए हैं और आपको मालूम हैं कि वह वहां किस होटल में ठहरे हैं तो आजकल यह सुविधा उपलब्ध है कि आप उन तक अपनी स्नेह भावना पहुंचा सकें, जैसे फोन के माध्यम सें, अथवा एजेंन्ट के माध्यम से फूल आदि भिजवा कर। इसका बहुत मादक अहसास होता है। शादी की सालगिरह, जन्मदिन आदि ऐसे मौके होते हैं जो आपको एक दूसरे का सामीप्य तो प्रदान करते ही हैं, साथ ही जीवन में आ रही नीरसता को भी दूर करते हैं। अमूनन पेरेंट्स पेरेंट्स मीटिंग में ही साथ जा पाते हैं।
क्या इसके लिए कुछ टिप्स दिए जा सकते हैं?
क्यों नहीं। सर्वप्रथम ऐसा मौहाल पैदा करें जहां बच्चों की देखभाल के साथ-साथ रोमांटिक व्यवहार भी हो। यह एक बहुत बडा सच है कि प्रत्येक दंपति को यह अहसास होता है कि अन्य दम्पतियों की तुलना मे उनका जीवन बड़ा नीरस है। वह आपस में एक दूसरे को दोषी ठहराते है जबकि वास्तव में कोई भी दम्पति ऐसे नही है जो इस तरह की समस्याओं से न गुजरें हां, एक दूसरे की कमियां निकालने से कहीं अच्छा है स्वयं की गलतियों को स्वीकार करने का साहस पैदा करें। एक दूसरे का इंतजार न करके स्वयं पहल करें जिससे नीरसता टूटे। पति-पत्नी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं अतः अपनी इच्छा जाहिर करने में संकोच न करें। आंखों में आंखे डालकर अपने मन की बात करें। निश्चित तौर पर पत्नी/पति खुश होंगे। प्रत्येक युगल के मन में प्रेम की एक फंतासी अवश्य होती है। वह अपने कल्पना लोक में कई सपने देखते हैं लेकिन कह पाने में उसे यह डर होता है कि कहीं वह उपहास का पात्र न बन जाए। ऐसी स्थिति में दिल की बात दिल में ही रह जाती है। हो सकता है कि आपकी कल्पना को साकार करने में आपके साथी को विशेष प्रसन्नता हो और आप दोनों आनंद का अनुभव करें। शादी के बाद पति-पत्नी अपनी देह और सौंदर्य आदि पर ध्यान नहीं देते। पत्नी को लगता है कि अब किसके लिए तैयार हों जो मिलना था वह तो मिल गया। पति का भाव भी ऐसा ही होता है। यह एक गलत एप्रोच है। और यहीं से प्रारम्भ होते हैं विवाहेतर संबंध। क्योंकि आकर्षण ही वह पहली श्रेणी है जो पुरुष को बांधती है। संबंधों में आकर्षण का बहुत महत्व होता है। इसी तरह हमेशा स्वयं को चुस्त बनाए रखें। आलसी पुरुष और स्त्री किसी को पसंद नही होते। इसके साथ प्रेम के संकेत भी पति-पत्नी एक दूसरे को देते रहें। चाहे वह शरारत भरे ही क्यों न हों। जो आपके प्रेम को दर्शाएं साथ ही जिसके पीछे आमंत्रण का भाव छुपा हो। याद रहे प्रेम की ऊष्मा से ही आपके संबंध प्रगाढ हो सकते हैं।
एकल परिवारों में इस समस्या से कैसे निपटा जा सकता है?
हम आपकी बात से सहमत है कि एकल परिवारों में दंपति के सामने एक चुनौती होती है। वह पेरेंट्स भी हैं, अतः वह दायित्व भी उन्हें निभाना है। घर में और कोई नहीं होता जिसके सहारे वह बच्चों को छोड़ सकें। बच्चों को अकेला छोड़कर स्वयं रोमानी जिंदगी जीना कोई तर्कपूर्ण बात नहीं है। लेकिन हम जिस बात पर जोर दे रहे हैं, वह यह है कि पति-पत्नी पेरेंट्स का रोल माडल अपनाते हुए एक तरह से स्वयं की इच्छाओं पर अंकुश लगा देते हैं। और यह दमित इच्छाएं बच्चों के लिए खतरनाक होती हैं और स्वयं उनके लिए भी। अतः कोई ऐसा रास्ता निकाला जाना चाहिए जिससे संबंधों में संतुलन रहे। संतुलन ही संबंधों में स्थायित्व लाता है।
दंपति की समस्याएं डा. हरीश भल्ला, संपादन- डा. अनुजा भट्ट
प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक से
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