शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

नन्हें काे चाहिए कंफर्ट, मत बनाइए उसे स्टाइलिश-डा. अनुजा भट्ट

फाेटाे क्रेडिट- एलविन गुप्ता
मां बनने के बाद महिलाओं की जिम्मेदारियां दुगनी हाे जाती है। कई महिलाओं को इन दोनों के बीच तालमेल बैठाने में दिक्कत होती है। बच्चे के जीवन में आने के बाद मां का खाना-पीना, सोना-जागना उसकी आदतों पर निर्भर हो जाता है। मातृत्व के इस सफर काे इन टिप्स के जरिए आप आसान बना सकती हैं।

  • शिशु को कम से कम तक पांच से छह महीने तक मां का दूध जरूर दें। इसके अलावा उसे कुछ भी नहीं दें। मां का दूध बच्चे के लिए संपूर्ण आहार होता है। जब आपका शिशु छ: माह का हो जाए तब आप उसे दूध के साथ ही दलिया, खिचड़ी, चावल, फल आदि भी देना शुरू कर दें। बच्चों के नाखून बहुत जल्दी बढ़ते हैं। जिससे वे खुद को चोट पहुंचा सकते हैं साथ ही लंबे नाखूनों में गंदगी जमा होने का भी डर होता है। इसलिए समय समय पर नाखून काटते रहें।
  • गीलेपन से शिशु को इंफेक्शन का खतरा सबसे ज्यादा होता है इसलिए समय समय पर देखते रहें कि शिशु गीले में तो नहीं सो रहा है। उसकी नैपी को बार-बार बदलें व उसकी त्वचा को सुखे मुलायम कपड़े से साफ करें।
  • शिशु को स्वच्छ रखने व बीमारियों से बचाने के लिए उसे रोज स्नान कराएं। इससे उसे नींद भी अच्छी आएगी और वो दिनभर तरोताजा महसूस करेगा। मालिश से शिशु की हड्डियां मजबूत बनती हैं साथ ही शरीर की गतिविधियां भी बढ़ती है। नहलाने से पहले शिशु की मालिश करना सबसे अच्छा है।
  • अगर आपका शिशु सरकने की कोशिश करने लगा है तो फर्श पर कोई भी नुकीली, धारदार, खुरदरी चीज नहीं रखें। बच्चा सहारा लेकर खड़ा होना सीख रहा है तो टेलीफोन या गुलदस्ते इत्यादि उसकी पहुंच से दूर रखें। बच्चे को हमेशा मुलायम व आरामदायक कपड़े पहनाएं। कई बार ऐसा होता है कि बच्चे को स्टाइलिश दिखाने के लिए माता-पिता उन्हें ऐसे कपड़े पहना देते हैं जिससे बच्चों को परेशानी होती है।
  • बच्चों को किचन से दूर रखें क्योंकि दुर्घटना होने की संभावना सबसे ज्यादा किचन में ही होती है। किचन का सारा सामान बच्चों की पहुंच से दूर रखें।
  • कई बार बच्चों को कोई तकलीफ होने पर वे लगातार रोते रहते हैं। अक्सर ऐसा तब होता है जब बच्चे के पेट में दर्द होता है।
  • शिशु के सारे टीके समय पर लगवाएं। ये टीके बच्चों को बीमारियों से बचाते हैं।
  • बच्चों की आदत होती है कि वे जमीन से उठाकर कुछ भी मुंह में डाल लेते हैं। इसलिए घर की ठीक से सफाई करनी चाहिए।




गुरुवार, 9 अगस्त 2018

उम्र हाे गई 35 साल ताे खान पान का करें ख्याल-डा. रश्मि व्यास

उम्र बढ़ने के साथ हमारी शारीरिक क्रियाआें में भी बदलाव आने लगता है, हर उम्र में यह बदलाव अलग अलग हाेता है। अगर आपकी उम्र 35 पार कर गई हो तो  आपकाे अपने खानपान के तरीके में बदलाव लाना हाेगा। आपके लिए क्या अच्छा है, क्या बुरा यह जानना बहुत जरूरी है।
30 से 35 वर्ष के बाद शरीर की रक्त धमनियों में ना सिर्फ कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है बल्कि हड्डियों में कैल्शियम और खनिज की मात्रा घटने लगती हैं। आयु बढ़ने के साथ ही शरीर के मेटाबॉलिज्‍म रेट के कम होने और पाचन तंत्र के कमजोर पड़ने के साथ ही शरीर में परिवर्तन होने लगता है जिसे विशेष देखभाल की जरूरत पड़ती है। इसलिए 35 वर्ष के बाद ना सिर्फ उम्र के हिसाब से खाना चाहिए बल्कि कुछ आहारों से परहेज करना जरूरी हो जाता है।
30 के बाद स्वस्थ रहने के लिए वसायुक्त आहाराें से  परहेज करन में ही भलाई है। वसायुक्त आहारों के अलावा तेल और मीठे के सेवन में भी कमी लानी चाहिए। आहारों के साथ साथ अपने खाने के तरीके में भी बदलाव लाना चाहिए। एक बार में अधिक खाने की जगह थोड़ा थोड़ा करके खायें। इस उम्र से बीपी बढ़ने की समस्या हो जाती है, इसलिए कम मात्रा में नमक खाएं। आपका दिल और गुर्दे सलामत रहेंगे। ज्यादा चीनी कभी भी फायदेमंद नहीं होती इसलिए आप 35 के बाद चीनी का सेवन कम कर दें। इससे डायबीटीज का खतरा बहुत कम हो जाता है। लेबल्ड डाइट फूडखाना स्वाद में बेहतर लग सकता है लेकिन इससे दूरी बनाएं। इससे आपको कमजोरी महसूस हो सकती है।

35 की उम्र के बाद तनाव ज्यादा रहता है, ऐसे में कैफीन को चाय या कॉफी के रूप में पीना आपके लिए और घातक साबित हो सकता है।दूध वाली चाय से परहेज करना चाहिये क्योंकि इसमें कैलोरी अधिक होती हैं। ज्यादा वाइन सेहत के लिए हानिकारक हो सकती है। इससे दिल और लिवर पर बुरा असर पड़ सकता है।

30 की उम्र के बाद कोलेस्टेरोल कम करने का एक आसान तरीका यह है कि आप कोलेस्टेरोल युक्त आनाज न खाएं। अपने आहार में कार्ब की मात्रा कम करके आप खराब कोलेस्टेरोल को कम कर सकते हैं और अच्छे कोलेस्‍ट्रॉल को बढ़ा सकते हैं। आपको अपने आहार में ब्राउन ब्रेड और ब्राउन राइस को जरूर शामिल करना चाहिए।

बुधवार, 8 अगस्त 2018

बदल रही है साेच, बदल रही है जिंदगी




सुप्रभात दाेस्ताें। बारिश की रिमझिम फुहार से आपका मन भी उल्लसित और प्रफुल्लित हाेगा, एेसी आशा है। अभी तक हमने विविध विषयाें पर लेख प्रकाशित किए। जिन विषयाें काे पढ़ने में आपने रुचि दिखाई वह हैं - हेल्थ. पेरेंटिंग, रिलेशन शिप, फैशन,और समाज में सीधा हस्तक्षेप करती कहानियां।
आपका यह चयन दर्शाता है कि आप बदलते हुए समाज की हर नब्ज काे जानना चाहते हैं। समस्या का निदान चाहते हैं। अपनी सेहत काे लेकर जागरूक हैं। फैशन के बारे में पढ़ना चाहते हैं, रिश्ताें की उधेड़बुन से निकलकर उनकाे संवारना चाहते हैं। सबसे अच्छी और रेखांकित करने वाली बात यह है कि आपने अपनी साेच भी बदली है। यह बहुत आसान नहीं हाेता है। परंपरागत ढ़ांचे काे हिलाना आसान नहीं। मुझ अच्छालगा यह जानकर कि आपने एकमत से कहा लड़कियाें काेई वस्तु नहीं जिनकाे दान दिया जाय। मुझे यह भी अच्छा लगा कि लड़कियां नहीं चाहती कि शादी के लिए उनकाे एक प्राेडक्ट की तरह पेश किया जाए और लाेग उनकाे देखें परखें पसंद ना पसंद करें। शक्ल सूरत हेंडसम जैसे शब्दाें काे परे धकेलकर उन्हाेंने साथी के चयन के लिए साेच के मिलने का समर्थन किया। शब्द बदल रहे हैं पहले कहा जाता था
आेह कितना हैंडसम है तेरा हसबैंड.. आज कहते हैं वाउ.. कितना जीनियस है तेरा हसबैंड..
इस तरह के कई बदलाव मैं देख रही हूं। पहले जब हसबैंड खाना बनाने की या चाय बनाने की ही बात करता था ताे लगता है जैसे अगर वह रसाेई में चला गया उसने बर्तन धोए ताे कितना पाप चढ़ जाएगा मन दुःखी हाे जाएगा. आज वाइफ कहती है मेरा ताे दिन बन गया, जायका बदल गया..
सचमुच जायका बदल रहा पति परमेश्वर की जगह एक साथी ने ले ली है।
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मंगलवार, 7 अगस्त 2018

पति-पत्नी अपने संबंधों में शुष्कता न आने दें-डा. हरीश भल्ला

 यदि दंपति जीवन में प्रेम की उदात्ता को महसूस करना चाहें तो उनके लिए उनको अपनी जरुरतों और बच्चों की जरुरतों के बीच संतुलन पैदा करना होगा।
संतान प्राप्ति के बाद अक्सर पति-पत्नी को यह शिकायत रहती है कि वह अपनी अंतरंग जिंदगी ठीक से नहीं बिता पाते। इसके क्या कारण है?
आप आसानी से अपनी सेक्सुअल लाइफ जी सकते हैं । यह ठीक है कि संतान के आने से जीवन में खुशियां और बदलाव आते हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आप अपनी आत्मीयता और अंतरंग व्यक्तिगत जीवन को नीरस बना दें। आपको अपने संबधों पर भी ध्यान देना चाहिए।
यह किस तरह संभव है?
ज्ीवन में प्रेम की उदातता और गहन अनुभूति शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से प्राप्त की जा सकती है। अधिक समस्याएं संतुलन न होने के कारण ही होती हैं। यह न भूलें कि वह प्रेमी-प्रेमिका भी हैं और पेरेंट्स भी। पति-पत्नी एक दूसरे के प्रेमी बने रहें, यह बहुत जरुरी है। प्रेम, रोमांस यह सब इंसान की जरुरतों में एक है। यह ठीक है कि यह खाने, रहने जितना महत्वपूर्ण नहीं, लेकिन उससे कम भी नहीं है। यह वह चीज है जिससे हम जिंदा रहते हैं।
पति-पत्नी को इसके लिए क्या करना चाहिए?
अक्सर पेरेंट्स बनने के बाद पति-पत्नी एक गंभीर आवरण ओढ़ लेते हैं। वह चुहुलबाजी, शरारतें या बेवकूफियां करना भूल जाते हैं। इस तरह धीरे-धीरे एक निष्क्रियता पैदा होने लगती है। सरप्राइज का गुण इस निष्क्रियता को समाप्त करने में सहायक होता है। यदि आपके पति/पत्नी काम से बाहर गए हैं और आपको मालूम हैं कि वह वहां किस होटल में ठहरे हैं तो आजकल यह सुविधा उपलब्ध है कि आप उन तक अपनी स्नेह भावना पहुंचा सकें, जैसे फोन के माध्यम सें, अथवा एजेंन्ट के माध्यम से फूल आदि भिजवा कर। इसका बहुत मादक अहसास होता है। शादी की सालगिरह, जन्मदिन आदि ऐसे मौके होते हैं जो आपको एक दूसरे का सामीप्य तो प्रदान करते ही हैं, साथ ही जीवन में आ रही नीरसता को भी दूर करते हैं। अमूनन पेरेंट्स पेरेंट्स मीटिंग में ही साथ जा पाते हैं।
क्या इसके लिए कुछ टिप्स दिए जा सकते हैं?
क्यों नहीं। सर्वप्रथम ऐसा मौहाल पैदा करें जहां बच्चों की देखभाल के साथ-साथ रोमांटिक व्यवहार भी हो। यह एक बहुत बडा सच है कि प्रत्येक दंपति को यह अहसास होता है कि अन्य दम्पतियों की तुलना मे उनका जीवन बड़ा नीरस है। वह आपस में एक दूसरे को दोषी ठहराते है जबकि वास्तव में कोई भी दम्पति ऐसे नही है जो इस तरह की समस्याओं से न गुजरें हां, एक दूसरे की कमियां निकालने से कहीं अच्छा है स्वयं की गलतियों को स्वीकार करने का साहस पैदा करें। एक दूसरे का इंतजार न करके स्वयं पहल करें जिससे नीरसता टूटे। पति-पत्नी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं अतः अपनी इच्छा जाहिर करने में संकोच न करें। आंखों में आंखे डालकर अपने मन की बात करें। निश्चित तौर पर पत्नी/पति खुश होंगे। प्रत्येक युगल के मन में प्रेम की एक फंतासी अवश्य होती है। वह अपने कल्पना लोक में कई सपने देखते हैं लेकिन कह पाने में उसे यह डर होता है कि कहीं वह उपहास का पात्र न बन जाए। ऐसी स्थिति में दिल की बात दिल में ही रह जाती है। हो सकता है कि आपकी कल्पना को साकार करने में आपके साथी को विशेष प्रसन्नता हो और आप दोनों आनंद का अनुभव करें। शादी के बाद पति-पत्नी अपनी देह और सौंदर्य आदि पर ध्यान नहीं देते। पत्नी को लगता है कि अब किसके लिए तैयार हों जो मिलना था वह तो मिल गया। पति का भाव भी ऐसा ही होता है। यह एक गलत एप्रोच है। और यहीं से प्रारम्भ होते हैं विवाहेतर संबंध। क्योंकि आकर्षण ही वह पहली श्रेणी है जो पुरुष को बांधती है। संबंधों में आकर्षण का बहुत महत्व होता है। इसी तरह हमेशा स्वयं को चुस्त बनाए रखें। आलसी पुरुष और स्त्री किसी को पसंद नही होते। इसके साथ प्रेम के संकेत भी पति-पत्नी एक दूसरे को देते रहें। चाहे वह शरारत भरे ही क्यों न हों। जो आपके प्रेम को दर्शाएं साथ ही जिसके पीछे आमंत्रण का भाव छुपा हो। याद रहे प्रेम की ऊष्मा से ही आपके संबंध प्रगाढ हो सकते हैं।
एकल परिवारों में इस समस्या से कैसे निपटा जा सकता है?
हम आपकी बात से सहमत है कि एकल परिवारों में दंपति के सामने एक चुनौती होती है। वह पेरेंट्स भी हैं, अतः वह दायित्व भी उन्हें निभाना है। घर में और कोई नहीं होता जिसके सहारे वह बच्चों को छोड़ सकें। बच्चों को अकेला छोड़कर स्वयं रोमानी जिंदगी जीना कोई तर्कपूर्ण बात नहीं है। लेकिन हम जिस बात पर जोर दे रहे हैं, वह यह है कि पति-पत्नी पेरेंट्स का रोल माडल अपनाते हुए एक तरह से स्वयं की इच्छाओं पर अंकुश लगा देते हैं। और यह दमित इच्छाएं बच्चों के लिए खतरनाक होती हैं और स्वयं उनके लिए भी। अतः कोई ऐसा रास्ता निकाला जाना चाहिए जिससे संबंधों में संतुलन रहे। संतुलन ही संबंधों में स्थायित्व लाता है।
दंपति की समस्याएं डा. हरीश भल्ला, संपादन- डा. अनुजा भट्ट
 प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक से

सोमवार, 6 अगस्त 2018

डिहाइड्रेशन से बचें – डा. दीपिका शर्मा


कई बार पानी की कमी से कई समस्याएं हो जाती हैं और उनमें से सबसे अधिक होने वाली समस्या है डिहाइड्रेशन, यानी पानी की कमी से अवशिष्‍ट पदार्थों का विष शरीर में फैल जाता है। कई लोग ऐसे हैं जो नहीं जानते कि एक दिन में कम से कम कितना पानी पीना चाहिए या फिर लगातार पानी पीते रहने से क्या नुकसान हो सकता है।  अगर आप भी या आपके परिवार का काेई सदस्य डिहाइड्रेशन की समस्या से जूझ रहा है ताे यह लेख  आपकी मदद कर सकता है।
शरीर में पानी की कमी से कई समस्याएं पैदा हाेती हैं,जैसे शरीर में चर्बी बढ़ना, पाचन क्रिया कमजोर होना, अंगों का ठीक प्रकार से काम न कर पाना, शरीर में विषाक्तता का बढ़ना, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द होना इत्यादि। इतना ही नहीं जो लोग प्रतिदिन व्यायाम करते हैं उनके लिए पानी की कमी और भी अधिक नुकसानदायक हो सकती है।कई बीमारियां जैसे बुखार, उल्टी, ब्लैडर इंफैक्शन, पथरी इत्यादि होने पर शरीर में पानी की मात्रा बहुत कम हो जाती है। ऐसे में पानी की जरूरत शरीर को हर समय रहती है फिर चाहे रोगी को प्यास लगे या न लगे। कई बार लोग सिर्फ प्यास लगने पर ही पानी पीते हैं जबकि प्यास लगे न लगे दिन में आठ गिलास पानी पीने से डिहाइड्रेशन की समस्या से आसानी से बचा जा सकता है।कुछ लोग पानी के बजाय सॉफ्ट ड्रिंक, बीयर, कॉफी, सोडा इत्यादि पीने लगते हैं लेकिन वे ये नहीं जानते बेशक ये चीजें तरल पदार्थें में शामिल होती हैं लेकिन यह न सिर्फ स्वास्थ्य की दृष्‍टि से नुकसानदायक हैं बल्कि इनके पीने के बावजूद डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है। डिहाइड्रेशन से व्यक्ति के सोचने-विचारने, चीजों को संतुलित करने, रक्त संचार इत्यादि में कमी आ जाती है। इतना ही नहीं शराब पीने वाले व्यक्ति जिनको अकसर हैंगओवर हो जाता है, को भी डिहाइड्रेशन की समस्या हो जाती है। गर्मी के मौसम में और अधिक व्यायाम करने वालों या फिर जिम जाने वाले लोगों, भागदौड़ करने वाले व्यक्तियों को अकसर डिहाइड्रेशन की समस्या से गुजरना पड़ता है। ऐसे में उन्हें अपने पानी पीने की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए।
कब एवं कैसा पानी पिएपानी हमेशा खाना खाने से आधा घंटा पहले या खाना खाने के एक घंटे बाद पीना चाहिए।गर्मी में बाहर से आकर तुरंत पानी न पीएं बल्कि थोड़ी देर रूककर नॉर्मल पानी पीना चाहिए।यदि आपको कब्ज की समस्या है, तो पानी में एक चम्मच नीबू का रस मिलाकर पिएं।खाने के बीच में पानी कभी न पीएं इससे आपको खाना पचाने में मुश्किल होगी। सुबह-सुबह उठकर पानी पीना बहुत फायदेमंद रहता है।
डिहाइड्रेशन होने पर क्या करें
जब आपको डिहाइड्रेशन होने लगता है तो आपको जी मिचलाना, उल्टियां होना, जबान का सूखना, सांस सही से ना ले पाना, चिड़चिड़ापन इत्यादि समस्‍याएं होने लगती है। अगर आपको डिहाइड्रेशन की प्रॉब्लम हो रही हो तो तुरंत पानी में थोडा सा नमक और शक्कर मिलाकर घोल बनाऐं और पी लें। कच्चे दूध की लस्सी बनाकर पीने से भी डिहाइड्रेशन में लाभ होता है। छाछ में नमक डालकर पीने से भी आपको इस समस्या से राहत मिलेगी। डिहाइडेशन होने पर नारियल का पानी पिऐं।

 डा. दीपिका शर्मा अपाेलाे  फेमिली क्लीनिक नौएडा, उत्तरप्रदेश, सेक्टर 110 में  फेमिली फिजिशियन हैं।
 सेहत से जुड़े सवाल आप हमारे मैं अपराजिता के फेसबुक पेज में कर सकते हैं। अपनी सेहत संबंधी समस्या के लिए आप हमें मेल भी कर सकते हैं-
mainaparajita@gmail.com

रविवार, 5 अगस्त 2018

सार्थक अस्तित्व मेरा- उर्मिल सत्यभूषण


राजेश्वरी अकेली रह गई हैं। श्रीवास्तव जी छोड़कर जा चुके हैं। बच्चों के साथ रहना गवारा नहीं। स्वतंत्रता हर हाल में प्यारी है। बच्चे आते जाते हैं। हिदायतों का पुलिंदा साथ में थमा जाते हैं। राजेश्वरी दूर दराज जा नहीं पाती। घर पर एक लैंडलाइन फोन है। उसकी के द्वारा बातचीत करती है। कामचलाऊ। तन्हाइयां काटने को आती हैं। वह समझदार है, तन्हाइयों को इजाजत नहीं देंगी कि वे उन्हें काट दें। वे तन्हाइयों को काटने का ही कुछ इन्तजाम करेंगी बेमौत नहीं मरेंगी। ज्यादा कार्यक्रमां में जाना संभव नहीं। सुबह एक सत्संग में जरूर जाती हैं।
‘‘लाओ, इनके कागज पत्र समेटते हैं। पुस्तकें लिखते थे श्रीवास्तक साहब लिख लिखकर रखते जाते थे कि रिटायर होने के बाद छपवायेंगें। छपवाने की मोहलत नहीं मिली। अब हम ही देखते हैं कुछ छपवाने का प्रबंध करें।
धीरे धीरे उन कागजों को छांटना, संवारना, पढ़ना शुरू किया तो छोटे छोटे जुगनू रोशनी की पकड़ में आने लगे। विषाद अवसाद घुलने लगा। धीरे धीरे महसूस हुआ - ये तो रोशनी के द्वार पर द्वार खुलते जा रहे हैं। कहानियों को अलग किया, कविताओं को अलग। अपनी भी कई पुरानी डायरियाँ, कापियाँ अंधेरे कोनों से नमूदार हुई जिन्हें कब का छुपाकर रख दिया गया था कि अतीत कभी आंखे ही न खोले। जो मिला उसी में सुख प्राप्त कर लें। पति का प्रेम मिल गया तो अपना अस्तित्व अपना व्यक्तित्व उन्हीं में विलीन कर सुख का अनुभव करने लगी थीं वे। औरत को और क्या चाहिए भला?
लेकिन आज आधुनिक युग की खुली आंखों और सिर उठाती महत्वाकांक्षाओं को देखकर महसूस होता है कि औरत को भी अपने अस्तित्व की, अपने व्यक्तित्व की जरूरत है।
किसी की मदद से उसने पति के कार्यों को प्रकाशित करवाने की ठानी। अपनी भी कवितायें चीख पुकार मचाने लगी तो उनके लिए भी प्रयत्न शुरू हुआ। पैसे की कमी न थी।  पैसा लगाकर पुस्तकें सामने आई। राजेश्वरी का हौंसलां बढ़ा तो और भी पुस्तकें लिखने लगी। बातचीत करने लगी। आत्मविश्वास बढ़ा तो कई सम्पर्क सूत्र काम आने लगे।
किताब को नाम मिला :- रोशनी की तलाश में।
भूमिका में सुंदर कविता अवतरित हुईः- रोशनी जुगनू की हो या सूरज की।
रोशनी तो रोशनी है जो विषाद के, अवसाद के अंधेरे दूर करती है। मैं भी निकल पड़ी हूं रोशनी की तलाश में। तुम्हारी हथेली का जुगनू मेरी कलम पर आन बैठा लफ्जों के लिबास में कागज की देह पर उतरता चला गया। कविता के आधार में। गीत के संसार में उजास ही उजास था। रोशनाई से लिखा प्रकाश ही प्रकाश था। इलाही नूर से भरपूर हुआ अस्तित्व मेरा। राह मुझको मिल गई चलने लगी, चलती गई, चलती गई। लीलने को तत्पर थी तन्हाइयां किधर गई, किधर गई? निकल पड़ी अनगिनत रचनायें जुगनू पकड़ने रोशनी की आस में। चल पड़ी मैं चल पड़ी - जुगनुओं की तलाश में
सार्थक प्रयास मेरा दे रहा खुशियां मुझे
चलने लगी अब छोड़कर बैसाखियां। हो रहा है सार्थक
और समर्थ अब अस्तित्व मेरा। तिनका तिनका सुख
मुझको दे रहा संतोष कितना यह मेरा व्यक्तित्व




शनिवार, 4 अगस्त 2018

किकी चैलेंज- खतराें के खिलाड़ी मत बनिए आप- डा. अनुजा भट्ट


  पिछले  दिनाें साेशल मीडिया पर किकी चैलेंज ने जबरदस्त धूम मचायी और इसका असर सड़काें पर नजर आया। युवाआें से लेकर उम्रदराज लाेगाें ने इसमें हिस्सा लिया। आनंद के अतिरेक में उनकाे पीछे आ रही गा़ड़ी का हार्न भी नहीं सुनाई दिया। ड़्राइवर से माफी मांगने के बजाय वह उसपर नाराज हाेते नजर आए क्याेंकि उन्हाेंने उनके आनंद में खलल डाला।  डांस  करना आनंदित ताे  करता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप सड़क जाम कर दें। वैसे भी जब हम किसी भी चीज के साथ चैलेंज शब्द का प्रयाेग कर  देते हैं ताे फिर हर आदमी औरत चाहें वह  किसी भी उम्र का क्याें न हाे जाेरआजमाइश करने लगता है।  फिर इस जोरआजमाइश में उसका पूरा कुनबा टूट पड़ता है। फेसबुक लाइव आते ही उसके रिश्तेदार से लेकर सारे दाेस्त इस मुहिम में शामिल हाे जाते हैं। और हर शहर हर गांव हर कस्बे से एेसी खबरे आने लगती है।  हर क्षेत्र  के लाेग फिल्मी लोग. नाैकरी पेशा लाेग, व्यापारी. बेराेजगार सब  शामिल हाे जाते हैं।
 लेकिन जब यह नशा स्कूली बच्चाें टीनएजर पर पड़ता है ताे फिर वैसा ही नजारा आते देर नहीं लगेगी जैसा  ब्लू व्हैल गेम खेलते समय हुई थी। तब यह फनचैलेंज बनाम एडवैंचर, एक्सीडेंट में बदलने लगेगा और हम हाथ मलते रह जाएंगे। किशाेर मन काे जब एक बार  उकसा दें ताे फिर वह बार बार उस काम काे करता है। फन और उन्माद में फर्क काे महसूस करना सीखना चाहिए। हम सब लाेग एक अंधी दाैड़ में भागते जा रहे हैं।  और मीडिया भी इस तरह की खबराें काे महत्व दे रहा है। आखिर इस तरह के फन का क्या मतलब है जहां सड़के जाम हाे जाए। लाेग समय पर आफिस न पहुंच पाएं। बीमार सड़क पर कसमसाते रहे। सुरक्षा व्यवस्था की धज्जियां  उड़ जाएं और हम हँसते रहे, गुदगुदाते रहे, फाेटाे शेयर करते हैं चाहे हमारे पीछे काेई तड़प तड़प कर मर जाए।
 देस भक्ति की भावना ताे हमारे भीतर से गायब हाेती जा रही है। बच्चाें काे इससे काेई सराेकार नहीं क्याेंकि हम एेसे संस्कार देने में अब काेई रूचि नहीं दिखा रहे। हम फन की तलाश में है चाहे  वह फन कितना भ हिंसक और बेहूदा क्याें न हाे। हम नाचना चाहते हैं, हम मदमस्त हाेना चाहते हैं  दुनिया जाए भाड़ में.. यही हमारी साेच बनती जा रही है। आपके बच्चे भी आपके साथ इस हिंसक खेल में साझेदारी कर रहे हैं। इस खेल में हार या जीत  नहीं है यहां है खुला चैलेंज... मैं कर सकता हूं.. आपमें है दम ताे  काीजिए.. खाेलिए गाड़ी का दरवाजा और बाहर  निकलकर कीजिए किकी डांस.....

शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

फैशन सिर्फ सिल्मट्रिम लाेगाें के लिए ही नहीं है- डा. अनुजा भट्ट

फैशन के गलियाराें मे इन दिनाें प्लस साइज के दीवानाें की चर्चा है। समाज में यह एक बहुत बड़ा बदलाव है कि
अब वह अपनी साेच बदल रहा है या बदलने के लिए मजबूर है। माेटे लाेग बेवजह ही  निराशा के भंवर में फंसे हैं जबकि माेटा हाेना  उनकी दिलचस्पी में शामिल नहीं है। वह न  ताे मन का खा पाते हैं और न ही पहन आेढ़ पाते हैं। स्वाद और साैंदर्य से बेरुखी क्याें हाे। फैशन डिजाइनर अब प्लस साइज के लिए बहुत ही खूबसूरत परिधान लेकर आ रहे हैं।  फिर चाहे वह प्लस साइज टीनएजर हाे या फिर प्लस साइज  दुल्हन।
 यह सच है  कि माेटापा पूरी दुनिया में बहुत तेजी से फैल रहा है। इसके लिए हमारा लाइफ स्टाइल और जैनेटिक पैटर्न दाेनाें की उत्तरदायी है।  इसलिए माेटे व्यक्ति काे भी उतनी ही तव्जाे मिलनी चाहिए जितनी पतले लाेगाें काे। यह सिर्फ फैशन के मामले में ही नहीं  सब जगह हाेना चाहिए।  फैशन में आए इस बदलाव का असर फिल्माें और टीवी पर भी पड़ेगा वहां भी माेटे लाेगाें काे अभिनय के अवसर मिलेंगे। लाेग उनके अभिनय काे देखेंगे ताे उनके माेटापे पर नजर नहीं जाएगी। इस तरह उनके भीतर की प्रतिभा काे देखने सुनने का अवसर पैदा हाेगा और वह समाज में सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए अग्रिम पंक्ति पर खड़े हाेंगे। अभी हाल में जब प्लस साइज मॉडल का आडिशन हुआ ताे उसमें 5000 से ज्यादा प्लस साइज मॉडल ने हिस्सा लिया। यह नाेटिस करने वाली बात है।
  अक्सर हम अपने लिए  ड्रेस का चयन ताे कर लेते हैं पर उसके साथ एक्सेसरीज पर फाेकस नहीं करते।हमारी हेयर स्टाइल और मेकअप दाेनाें हमारी पर्सनेलिटी  काे बैलेंस करते हैं। प्लस साइज के मेकअप टेंड्रस और हेयर स्टाइल भी आकर्षक हाेने चाहिए।  बहुत बार देखा जाता है कि वह अपने माेटापे के कारण  भीतर ही भीतर हीन भावना के शिकार हाेने लगते हैं एेसे में ड्रेस डिजानर काे यह भी पहल करनी चाहिए कि वह उनके  कांफिडेंस काे माेटिवेट करे।

गुरुवार, 2 अगस्त 2018

अनुष्ठान में अब पंडिताइन ने दी दस्तक- मिलिए नंदनी भाैमिक से

हमारे पितृसत्तात्मक समाज में सारे अनुष्ठान के कार्य पुरुष पुजारी ही पूरा करवाते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि कोई महिला पुजारी शादी क्यों नहीं करवा सकती, महिला पंडित संस्कार संपन्न क्यों नहीं करवा सकती? अगर नहीं सोचा है तो सोच लीजिए कि समाज में ऐसी महिलाएं हैं जो पुरुष वर्चस्व को चुनौती देते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही हैं। कोलकाता की नंदिनी भौमिक उन्हीं महिलाओं में से एक हैं। वह कन्यादान और पिरी घोरानो जैसी रस्मों के बगैर ही शादी संपन्न करवाती हैं। नंदिनी पेशे से संस्कृत प्रोफेसर और ड्रामा आर्टिस्ट भी हैं। वह अपने काम से समाज की पितृसत्तात्मक सोच को चुनौती दे रही हैं।

ऐसा करने वाली वह पश्चिम बंगाल की पहली महिला पुजारी हैं। वह कहती हैं, 'मैं उस सोच से इत्तेफाक नहीं रखती जहां बेटी को धन समझा जाता है और शादी के वक्त उसे दान कर दिया जाता है। स्त्रियां भी पुरुषों की तरह ही इंसान हैं, इसलिए उन्हें वस्तु की तरह नहीं समझा जाना चाहिए।' नंदिनी जिस तरह से शादी संपन्न करवाती हैं वह बाकी बंगाली शादियों से बिलकुल अलग होता है। उन्होंने संस्कृत के कठिन श्लोकों को बंगाली और अंग्रेजी में पढ़ती हैं, ताकि दुल्हन और दूल्हा उसके मतलब समझ सकें। उनके द्वारा कराई जाने वाली शादी में बैकग्राउंड में रबींद्र संगीत बजता रहता

यह रबींद्र संगीत नंदिनी की टीम के लोग ही बजाते हैं। आमतौर पर शादी में पूरी रात बीत जाती है, लेकिन नंदिनी सिर्फ एक घंटे में ही शादी संपन्न करवा देती हैं। वह कहती हैं, 'मैं कन्यादान नहीं करवाती जिससे काफी समय बच जाता है। इसके अलावा मुझे यह परंपरा काफी पिछड़े सोच की भी लगती है।' अपने आप को समाज सुधारक मानने वाली नंदिनी की राह में थोड़ी मुश्किलें भी हैं। बंगाल में बढ़ते राजनीतिक हिंदुत्व के प्रभुत्व के बीच नंदिनी को कई तरह का डर भी सताता रहता है। वह कहती हैं, 'मैं बाकी पुजारियों का सम्मान करती हूं और मेरी उनसे कोई लड़ाई नहीं है। यद्यपि मेरे पति को कई बार खतरे का अहसास हुआ लेकिन मुझे अभी तक किसी भी तरह का डर नहीं लगा है।'

नंदिनी पिछले 10 सालों से इस काम को अंजाम दे रही हैं। वह अब तक 40 से भी ज्यादा शादियां करवा चुकी हैं। यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर होने की वजह से वह काफी व्यस्त रहती हैं। इसके अलावा वह कोलकाता के 10 थियेटर ग्रुप से भी जुड़ी हुई हैं। लेकिन इसके बावजूद वह शादी करवाने के लिए वक्त निकाल लेती हैं। उन्होंने कोलकाता और आसपास के इलाकों में कई अंतरजातीय, अंतरधार्मिक विवाह करवाए हैं।



नंदिनी का शादी कराने का यह तरीका युवाओं को काफी भा रहा है। बीते शनिवार को नंदिनी अपनी साथी पुजारी रूमा राय और रबींद्र संगीत गाने वाली सीमांती बनर्जी और पॉलमी चक्रबर्ती के साथ ऐसी ही एक शादी संपन्न करवाई। सोशल मीडिया पर भी नंदिनी की खूब चर्चा है। नंदिनी बताती हैं, 'मैंने कई सारे पंडितों को शादी के वक्त गलत मंत्र पढ़ते देखा है। इसलिए इन मंत्रों को मैंने बंगाली और अंग्रेजी में लिखा।' नंदिनी की दो बेटियां हैं। उन्होंने अपनी बेटी की शादी भी ऐसे ही संपन्न कराई। वह अपनी गुरु गौरी धर्मपाल को अपना प्रेरणास्रोच मानती हैं। जादवपुर यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाली भौमिक अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा अनाथालयों में दान कर देती हैं।

बुधवार, 1 अगस्त 2018

जरा देख के चलाे आगे भी ,पीछे भी- डा. अनुजा भट्ट

 हर  जगह गंदगी के ढ़ेर बीमारी के न्याैता दे रहे हैं। बाढ़ के साथ प्लास्टिक कचरा और गंदगी  स्वच्छ  भारत की असली तस्वीर दिखा रहे हैं। मैदानाें में ही नहीं पहाड़ाें में भी यही हाल है। पर्यटन के  भी अब कई रूप सामने दिखाई दे रहे हैं। अब सिर्फ घूमने के लिए ही लाेग नहीं जाते। इसके अलावा वह दुरूह जगहाें में भी जाना चाहते हैं।  ट्रैकिंग के लिए युवाआें में सबसे ज्यादा जाेश है। वह अपने ग्रुप में घूमने जाते हैं । उनके लिए घूमने का मततब एडवैंचर से है। वह इससे कई नई बातें भी सीखते हैं। कई कारपाेरेट कंपनियां भी ट्रैंकिंग के लिए अपने इम्प्लाई काे ले जाती हैं।
  एक खबर के मुताबिक बर्फ से ढकी रहने वाली कुल्लू और लाहाैर स्फीति की चाेटियाें पर ट्रैकर और सैलानी भरी मात्रा में कचरा और प्लास्टिक फेंक रहे हैं। पर्यावरण विशेषज्ञ इसे ग्लेशियराें के लिए खतरे की घंटी मान रहे हैं। इससे स्थानीय तापमान पर भी असर पड़ रहा है और ग्लेशियर जल्द पिघल रहे हैं। अभी हाल ही में आेनएनजीसी और इंडियन माउंटेनिंयरिंग फाउंडेशन की टीम ने राेगतांग से कुंजुम दर्रे और चंद्रभागा रेंज तक सफाई अभियान चलाा। टीम ने पूरे इलाके से 150 बाेरी प्लासिटक समेत कूड़ा कचरा निकाला। ट्रैकर चाेटियां पर खानेपीने की चीजाें का उपयाेग  कर वहीं फेंक देते हैं। इतना कचरा मिलना खतरे क घंटी है। जिससे ग्लेशियर पिघलेंगे ताे तापान में असर पड़ेगा।
 सरकार काे चाहिए की वह इसके लिए सख्त कदम उठाए और कड़ी सजा का प्रावधान बने। लेकिन एेसी नाैबत ही क्याें आए। क्या हम सबका अपने पर्यावरण काे लेकर सजग हाेना जरूरी नहीं। क्या हम प्रकृति के विकराल रूप काे देखना चाहेंगे। क्या हम चाहेंगे  कि महामारी फैले. ज्वालामुखी या भूंकप अपना उसर दिखाएं। क्या हम चाहेंगे नदी अपना विकराल रूप ले, या बारिश कहर बरपाए....  अगर इसका उत्तर नहीं है ताे भाई जरा देख के चलाे आगे भी पीछे भी....

मंगलवार, 31 जुलाई 2018

क्या आपका नन्हा शिशु भी रात भर नहीं साेता- डा. अनुजा भट्ट



शिशु को सुलाने के लिए मांएं बहुत सारी तकनीक का प्रयाेग करती हैं। कभी कभी वह रात भर अपने नन्हें शिशु के जागने पर खुद भी नहीं साे पातीं। इससे उनके दूसरे दिन की दिनचर्या पर प्रभाव पड़ता है। जब यह राेज की आदत हाे जाएं ताे मांएं चिड़चिड़ी हाे जाती हैं। यह चिड़चिड़ाहट उनके कामकाज काे भी प्रभावित करती है और उनकी सेहत काे भी। एेसे मांआें के लिए यह लेख लाभदायक हाे सकता है।
अच्छी आदतें सिखाएं- शिशु को शुरुआत से ही सोने की अच्छी आदतें सिखाएं। यह आदत एक दिन की नहीं हाेनी चाहिए। आपकाे इसमें लंबे समय तक टिका रहना हाेगा।
टाइमटेबल बनाएं- अगर आप सारे दिन शिशु की दिनचर्या एक समान रखें तो रात को शिशु के सोने का समय तय करने और उसे सुलाने में ज्यादा मुश्किल नहीं होगी। वह आराम से सो जाएगा। अगर शिशु हर दिन समान समय पर सोए, खाए-पीए, खेले और रात में भी उसे समान समय पर सुलाया जाए, तो पूरी संभावना रहती है कि शिशु बिना किसी परेशानी के आसानी से सो जाएगा।
शिशु से बातें करें और उसके साथ खेलें- दूध पिलाते समय उसके साथ बातें करें। इस समय का आनंद हर मां काे लेना चाहिए। इससे मां और शिशु दाेनाें काे सकारात्मक उर्जा मिलती है। जब आप रात में अपने नन्हें शिशु काे दूध पिलाएं तब एकदम शांति होनी चाहिए। दाेपहर में आपने उससे बातें करनी है और रात काे एकदम शांति। इससे आपके शिशु को अपने शरीर को उसी तरह ढालने में मदद मिलेगी और वह दिन व रात का अंतर समझ सकेगा।
शिशु जब छह से आठ महिने का हो जाए, तो उसे अपने आप सोने का मौका दें। जब शिशु को नींद आने लगे, मगर वह सोया न हो, तब उसे बिस्तर पर पीठ के बल लिटाएं। अगर आप गोद में शिशु को हिलोरे देते हुए या फिर दूध पिलाते हुए सुलाएंगी, तो शिशु को इसकी आदत पड़ जाएगी। वह खुद सोने का प्रयास नहीं करेगा।
सोने से पहले यह जरूर करें- शिशु को नहलाना, नैपी बदलना और फिर उसे नाइट ड्रेस पहनाना इसमें शामिल हो सकता है। आप शिशु की मालिश भी कर सकती हैं। इसके बाद शिशु को गुनगुनाते हुए सुलाएं। शिशु के साेने की जगह हमेशा एक हाे। उसे सुलाने में अधिक्तम30 मिनट का समय रखें। शिशु को सुलाने का सही समय शाम को 7.30 बजे से रात्रि 9 बजे के बीच होता है।
शिशु को दें सुरक्षा कवच- सुलाने के बाद शिशु काे कंबल या चादर जरूर ढक दें। अपने साथ चिपकाकर लिटाएं ताकि आपकी खूशबू उस में रच बस जाए। शिशुओं की सूंघने की क्षमता बहुत तेज होती है। रात में जब वह चौंक कर उठते हैं ताे आपकी इसी खुशबू के कारण आपसे चिपक कर साे जाते हैं। अंधेरे में आपकाे ढूंढ लेते हैं।
शिशु को थोड़ी देर रोने दें- शिशु के चार से पांच माह का हो जाने पर यह तरीका अपनाना उचित है। उसे तब तक रोने दिया जाता है, जब तक वह थककर सो न जाए। मगर, शिशु को रोने देने कि किसी भी प्रक्रिया का मतलब यह है कि शिशु को निश्चित अवधि तक रोने दिया जाए, जो कि दो से लेकर 10 मिनट से लंबी न हों। उसके बाद उसे संभाला जाए। अगर, शिशु को लिटाने के बाद वह रोना शुरु करता है, तो उसके पास जाएं। उसे आराम से थपथपाएं और बताएं कि सब ठीक है, और अब आपके सोने का समय हो गया है। शिशु के साथ सौम्यता से पेश आएं, मगर अटल रहें। कमरे से बाहर आ जाएं। एक निश्चित अवधि तक इंतजार करें, करीब दो से पांच मिनट तक, और इसके बाद फिर से शिशु को देखें। ऐसा बार-बार तब तक करें, जब तक कि शिशु सो न जाए। बस शिशु को एक बार से दूसरी बार देखने का अंतराल बढ़ाती जाएं।
सीने से लगाना- अगर आप शिशु को अपने पलंग पर ही सुलाती हैं, तो उसे आराम और राहत दें, ताकि वह समझ सके कि अब सोने का समय है। शिशु के साथ लेट जाएं और उसे प्यार से सीने से लगाएं। खुद भी कुछ देर आंखें बंद करके लेट जाएं, ताकि शिशु को लगे कि आप भी सो गई हैं।
कभी आप और कभी आपके पति शिशु को सुलाएं, ताकि आप दोनों ही शिशु के सोने में मदद कर सकें। जब आपका शिशु थोड़ा बड़ा हो जाता है और रात के समय दूध पीना बंद कर देता है, तो वह आपके पति के द्वारा सुलाए जाने पर भी सो सकता है। जब शिशु यह समझ जाएगा कि रात के समय उसे दूध नहीं मिलेगा, तो शायद उसे सोने के लिए किसी ओर की जरुरत ही न हो!
इन नियमाें का पालन कीजिए और अपने नन्हें शिशु के साथ का आनंद लीजिए। यह समय लाैट कर नहीं आता।

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मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

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