शिशु को सुलाने के लिए मांएं बहुत सारी तकनीक का प्रयाेग करती हैं। कभी कभी वह रात भर अपने नन्हें शिशु के जागने पर खुद भी नहीं साे पातीं। इससे उनके दूसरे दिन की दिनचर्या पर प्रभाव पड़ता है। जब यह राेज की आदत हाे जाएं ताे मांएं चिड़चिड़ी हाे जाती हैं। यह चिड़चिड़ाहट उनके कामकाज काे भी प्रभावित करती है और उनकी सेहत काे भी। एेसे मांआें के लिए यह लेख लाभदायक हाे सकता है।
अच्छी आदतें सिखाएं- शिशु को शुरुआत से ही सोने की अच्छी आदतें सिखाएं। यह आदत एक दिन की नहीं हाेनी चाहिए। आपकाे इसमें लंबे समय तक टिका रहना हाेगा।
टाइमटेबल बनाएं- अगर आप सारे दिन शिशु की दिनचर्या एक समान रखें तो रात को शिशु के सोने का समय तय करने और उसे सुलाने में ज्यादा मुश्किल नहीं होगी। वह आराम से सो जाएगा। अगर शिशु हर दिन समान समय पर सोए, खाए-पीए, खेले और रात में भी उसे समान समय पर सुलाया जाए, तो पूरी संभावना रहती है कि शिशु बिना किसी परेशानी के आसानी से सो जाएगा।
शिशु से बातें करें और उसके साथ खेलें- दूध पिलाते समय उसके साथ बातें करें। इस समय का आनंद हर मां काे लेना चाहिए। इससे मां और शिशु दाेनाें काे सकारात्मक उर्जा मिलती है। जब आप रात में अपने नन्हें शिशु काे दूध पिलाएं तब एकदम शांति होनी चाहिए। दाेपहर में आपने उससे बातें करनी है और रात काे एकदम शांति। इससे आपके शिशु को अपने शरीर को उसी तरह ढालने में मदद मिलेगी और वह दिन व रात का अंतर समझ सकेगा।
शिशु जब छह से आठ महिने का हो जाए, तो उसे अपने आप सोने का मौका दें। जब शिशु को नींद आने लगे, मगर वह सोया न हो, तब उसे बिस्तर पर पीठ के बल लिटाएं। अगर आप गोद में शिशु को हिलोरे देते हुए या फिर दूध पिलाते हुए सुलाएंगी, तो शिशु को इसकी आदत पड़ जाएगी। वह खुद सोने का प्रयास नहीं करेगा।
सोने से पहले यह जरूर करें- शिशु को नहलाना, नैपी बदलना और फिर उसे नाइट ड्रेस पहनाना इसमें शामिल हो सकता है। आप शिशु की मालिश भी कर सकती हैं। इसके बाद शिशु को गुनगुनाते हुए सुलाएं। शिशु के साेने की जगह हमेशा एक हाे। उसे सुलाने में अधिक्तम30 मिनट का समय रखें। शिशु को सुलाने का सही समय शाम को 7.30 बजे से रात्रि 9 बजे के बीच होता है।
शिशु को दें सुरक्षा कवच- सुलाने के बाद शिशु काे कंबल या चादर जरूर ढक दें। अपने साथ चिपकाकर लिटाएं ताकि आपकी खूशबू उस में रच बस जाए। शिशुओं की सूंघने की क्षमता बहुत तेज होती है। रात में जब वह चौंक कर उठते हैं ताे आपकी इसी खुशबू के कारण आपसे चिपक कर साे जाते हैं। अंधेरे में आपकाे ढूंढ लेते हैं।
शिशु को थोड़ी देर रोने दें- शिशु के चार से पांच माह का हो जाने पर यह तरीका अपनाना उचित है। उसे तब तक रोने दिया जाता है, जब तक वह थककर सो न जाए। मगर, शिशु को रोने देने कि किसी भी प्रक्रिया का मतलब यह है कि शिशु को निश्चित अवधि तक रोने दिया जाए, जो कि दो से लेकर 10 मिनट से लंबी न हों। उसके बाद उसे संभाला जाए। अगर, शिशु को लिटाने के बाद वह रोना शुरु करता है, तो उसके पास जाएं। उसे आराम से थपथपाएं और बताएं कि सब ठीक है, और अब आपके सोने का समय हो गया है। शिशु के साथ सौम्यता से पेश आएं, मगर अटल रहें। कमरे से बाहर आ जाएं। एक निश्चित अवधि तक इंतजार करें, करीब दो से पांच मिनट तक, और इसके बाद फिर से शिशु को देखें। ऐसा बार-बार तब तक करें, जब तक कि शिशु सो न जाए। बस शिशु को एक बार से दूसरी बार देखने का अंतराल बढ़ाती जाएं।
सीने से लगाना- अगर आप शिशु को अपने पलंग पर ही सुलाती हैं, तो उसे आराम और राहत दें, ताकि वह समझ सके कि अब सोने का समय है। शिशु के साथ लेट जाएं और उसे प्यार से सीने से लगाएं। खुद भी कुछ देर आंखें बंद करके लेट जाएं, ताकि शिशु को लगे कि आप भी सो गई हैं।
कभी आप और कभी आपके पति शिशु को सुलाएं, ताकि आप दोनों ही शिशु के सोने में मदद कर सकें। जब आपका शिशु थोड़ा बड़ा हो जाता है और रात के समय दूध पीना बंद कर देता है, तो वह आपके पति के द्वारा सुलाए जाने पर भी सो सकता है। जब शिशु यह समझ जाएगा कि रात के समय उसे दूध नहीं मिलेगा, तो शायद उसे सोने के लिए किसी ओर की जरुरत ही न हो!
इन नियमाें का पालन कीजिए और अपने नन्हें शिशु के साथ का आनंद लीजिए। यह समय लाैट कर नहीं आता।
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