हर जगह गंदगी के ढ़ेर बीमारी के न्याैता दे रहे हैं। बाढ़ के साथ प्लास्टिक कचरा और गंदगी स्वच्छ भारत की असली तस्वीर दिखा रहे हैं। मैदानाें में ही नहीं पहाड़ाें में भी यही हाल है। पर्यटन के भी अब कई रूप सामने दिखाई दे रहे हैं। अब सिर्फ घूमने के लिए ही लाेग नहीं जाते। इसके अलावा वह दुरूह जगहाें में भी जाना चाहते हैं। ट्रैकिंग के लिए युवाआें में सबसे ज्यादा जाेश है। वह अपने ग्रुप में घूमने जाते हैं । उनके लिए घूमने का मततब एडवैंचर से है। वह इससे कई नई बातें भी सीखते हैं। कई कारपाेरेट कंपनियां भी ट्रैंकिंग के लिए अपने इम्प्लाई काे ले जाती हैं।
एक खबर के मुताबिक बर्फ से ढकी रहने वाली कुल्लू और लाहाैर स्फीति की चाेटियाें पर ट्रैकर और सैलानी भरी मात्रा में कचरा और प्लास्टिक फेंक रहे हैं। पर्यावरण विशेषज्ञ इसे ग्लेशियराें के लिए खतरे की घंटी मान रहे हैं। इससे स्थानीय तापमान पर भी असर पड़ रहा है और ग्लेशियर जल्द पिघल रहे हैं। अभी हाल ही में आेनएनजीसी और इंडियन माउंटेनिंयरिंग फाउंडेशन की टीम ने राेगतांग से कुंजुम दर्रे और चंद्रभागा रेंज तक सफाई अभियान चलाा। टीम ने पूरे इलाके से 150 बाेरी प्लासिटक समेत कूड़ा कचरा निकाला। ट्रैकर चाेटियां पर खानेपीने की चीजाें का उपयाेग कर वहीं फेंक देते हैं। इतना कचरा मिलना खतरे क घंटी है। जिससे ग्लेशियर पिघलेंगे ताे तापान में असर पड़ेगा।
सरकार काे चाहिए की वह इसके लिए सख्त कदम उठाए और कड़ी सजा का प्रावधान बने। लेकिन एेसी नाैबत ही क्याें आए। क्या हम सबका अपने पर्यावरण काे लेकर सजग हाेना जरूरी नहीं। क्या हम प्रकृति के विकराल रूप काे देखना चाहेंगे। क्या हम चाहेंगे कि महामारी फैले. ज्वालामुखी या भूंकप अपना उसर दिखाएं। क्या हम चाहेंगे नदी अपना विकराल रूप ले, या बारिश कहर बरपाए.... अगर इसका उत्तर नहीं है ताे भाई जरा देख के चलाे आगे भी पीछे भी....
एक खबर के मुताबिक बर्फ से ढकी रहने वाली कुल्लू और लाहाैर स्फीति की चाेटियाें पर ट्रैकर और सैलानी भरी मात्रा में कचरा और प्लास्टिक फेंक रहे हैं। पर्यावरण विशेषज्ञ इसे ग्लेशियराें के लिए खतरे की घंटी मान रहे हैं। इससे स्थानीय तापमान पर भी असर पड़ रहा है और ग्लेशियर जल्द पिघल रहे हैं। अभी हाल ही में आेनएनजीसी और इंडियन माउंटेनिंयरिंग फाउंडेशन की टीम ने राेगतांग से कुंजुम दर्रे और चंद्रभागा रेंज तक सफाई अभियान चलाा। टीम ने पूरे इलाके से 150 बाेरी प्लासिटक समेत कूड़ा कचरा निकाला। ट्रैकर चाेटियां पर खानेपीने की चीजाें का उपयाेग कर वहीं फेंक देते हैं। इतना कचरा मिलना खतरे क घंटी है। जिससे ग्लेशियर पिघलेंगे ताे तापान में असर पड़ेगा।
सरकार काे चाहिए की वह इसके लिए सख्त कदम उठाए और कड़ी सजा का प्रावधान बने। लेकिन एेसी नाैबत ही क्याें आए। क्या हम सबका अपने पर्यावरण काे लेकर सजग हाेना जरूरी नहीं। क्या हम प्रकृति के विकराल रूप काे देखना चाहेंगे। क्या हम चाहेंगे कि महामारी फैले. ज्वालामुखी या भूंकप अपना उसर दिखाएं। क्या हम चाहेंगे नदी अपना विकराल रूप ले, या बारिश कहर बरपाए.... अगर इसका उत्तर नहीं है ताे भाई जरा देख के चलाे आगे भी पीछे भी....
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