रविवार, 23 सितंबर 2018

जीवन में लाएगा बदलाव यह दाे अक्षर का शब्द- दर्शना बांठिया

कहते है क्षमा मांगने वाले से बड़ा क्षमा करने वाला होता है।
क्षमा वाणी के दिन हम सब से क्षमा मांगते है ,पर वास्तव में क्षमा क्या है ......इससे ही व्यक्ति अनजान रहता है ।
क्षमा मेरे नजरिए से क्या है :-
क्या है क्षमा......?
किसी दूसरे की गलतियों की लगी धूल को अपने दिल की परत से साफ कर देना...।
या किसी पराये द्वारा भी की गयी भूल को हंस कर टाल देना और उसे भी अपना बना लेना
क्या है क्षमा .......?
अपने मन में किसी कारण वश भरे हुए गुबार को निकाल कर हल्के और आनंदित हो जाना।
या अपने अंदर पैदा हुयी अंहकार की आग को,विनम्रता रुपी जल से धो डालना।।
क्या है क्षमा........?
किसी बड़े द्वारा दिये हुये अपमान के घूंट को ये सोचकर जी जाना कि वो आपसे बडे़ है ,और किसी छोटे द्वारा की गयी उद्दण्डता को नजरअंदाज कर अपने बड़प्पन को साबित करना।।

कहने को तो सिर्फ दो अक्षर का ये शब्द है ,पर अगर इसे गहराई से समझ लिया जाये और जीवन में उतारने का प्रयास कर लिया जाये तो इंसान अपने मनोवैज्ञानिक स्तर को बहुत ऊपर उठा सकता है ,न जाने कितने अपराध होने से पहले ही रूक सकते है,न जाने कितने टूटे रिश्तें फिर से जुड़ सकते है।।
तो आइए इस बार हम सभी से हृदय से वास्तविक क्षमा याचना करते है।

शनिवार, 22 सितंबर 2018

स्मृति शेष- विष्णु खरे की दो कविताएं

हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि और हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष विष्णु खरे अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका निधन साहित्य जगत में एक अपूरणीय क्षति है। अपने विशद अध्ययन और विपुल साहित्य से हिंदी जगत को अनमोल संपदा देने वाले खरे की ये हैं 2 प्रमुुख कविताएं...

कहो तो डरो...
कहो तो डरो कि हाय यह क्यों कह दिया
न कहो तो डरो कि पूछेंगे चुप क्यों हो

सुनो तो डरो कि अपना कान क्यों दिया
न सुनो तो डरो कि सुनना लाजिमी तो नहीं था

देखो तो डरो कि एक दिन तुम पर भी यह न हो
न देखो तो डरो कि गवाही में बयान क्या दोगे

सोचो तो डरो कि वह चेहरे पर न झलक आया हो
न सोचो तो डरो कि सोचने को कुछ दे न दें

पढ़ो तो डरो कि पीछे से झाँकने वाला कौन है
न पढ़ो तो डरो कि तलाशेंगे क्या पढ़ते हो

लिखो तो डरो कि उसके कई मतलब लग सकते हैं
न लिखो तो डरो कि नई इबारत सिखाई जाएगी

डरो तो डरो कि कहेंगे डर किस बात का है
न डरो तो डरो कि हुक़्म होगा कि डर

अक्स.....

आईने में देखते हुए
इस तरह इतनी देर तक देखना
कि शीशा चकनाचूर हो जाये-
फिर भी इतना मुश्किल नहीं

वह शीशे में
यूँ और इतना देखना चाहता है
कि बिल्लौर में तिड़कन तक न आये
सिर्फ़ जो दिख रहा है वह पुर्जा-पुर्जा हो जाए
और जो देख रहा है वह भी
फिर भी एक अक्स बचा रहे
जिसका वह है उसे जाने कैसे देखता हुआ
अमर उजाला से साभार.

शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

सुंदरता के राज दादी मां के पास - अनामिका अनूप तिवारी

खूबसूरत स्वस्थ त्वचा की चाह किसे नहीं होती, चाहे स्त्री हो पुरुष खूबसूरत दिखने की चाह सबके अंदर होती है, महिलाएं हज़ारों रूपये ब्यूटी पार्लर और महंगे ब्यूटी प्रॉडक्ट्स में खर्च कर देती है लेकिन फिर भी संतुष्ट नहीं होती, लेकिन कुछ घरेलू उपायों से आप की त्वचा मुलायम, चमकदार और स्वस्थ हो सकती है।
"उबटन" सौंदर्य निखारने की सबसे प्राचीनतम विधि हैं, जिसे घरेलु स्त्रियों से लेकर रानी महारानियाँ भी अपनी सौंदर्य को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करती थी।
"उबटन" का नाम सुनते ही दादी नानी के बनाये उबटन की याद आ जाती है, पहले शादी ब्याह में एक दो महीने पहले ही होने वाली दुल्हन को उबटन लगाया जाता था जिससे की विवाह वाले दिन दुल्हन चाँद का प्रतिरूप लगे।
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पीली सरसों या तिल का उबटन-सरसो का उबटन बहुत प्राचीन समय से चली आ रही है।

पीली सरसों या तिल को हलके आंच पर भून कर दूध के साथ पीस कर बारीक पेस्ट बना ले।

इस पेस्ट को चेहरे, हाथ एवं पैरों में लगायें सूखने पर हलके हाथों से छुड़ाये।
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सरसो या तिल का उबटन- शुष्क त्वचा पर चमत्कारिक रूप से असर करता है, चेहरे की नमी बनाए रखता है और त्वचा को चमकदार और मुलायम बनाये रखता है।
फूलों का उबटन- फूलों का उबटन प्राचीन समय में रानी महारानियोँ के लिए विशेष रूप से तैयार किये जाते थे।

इस उबटन को बनाने के लिए, गुलाब, गेंदे, लैवेंडर और पारिजात के फूलों को सुखा कर पाउडर बना लेते है।

इस मिश्रण को गुलाब जल, कच्चा दूध या दही के साथ पेस्ट बना कर चेहरे पर लगाये सूखने पर चेहरें को ठंडे पानी से धो ले।

फूलों का उबटन विशेषतः मिश्रित त्वचा के लिए ज्यादा लाभकारी है। ये खुशबुदार उबटन चेहरे पर निखार के साथ कसाव भी लाती है, चेहरे के दाग धब्बों को भी दूर करने में सहायक है।
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दही बेसन का उबटन- दही बेसन का उबटन भी दादी नानी के ज़माने से चली आ रही है।

दही, बेसन और हल्दी का गाढ़ा लेप बनाये उसमे 2/3 बुँदे तिल का तेल मिलाये और इस लेप को चेहरे और हाथ, पैरों पर लगाये सूखने पर उँगलियों की सहायता से मसल कर छुड़ा ले जिस से की त्वचा पूरी तरह से साफ़ हो जायें इसके बाद गुनगुने पानी से अच्छे से धो ले।

ये उबटन चेहरे को साफ, मुलायम और चमकदार बनाती है, चेहरे के दाग धब्बो को पूरी तरह से साफ़ कर त्वचा पर निखार लाती है।
संतरे और नींबू के छिलके का उबटन-यह उबटन हर प्रकार की त्वचा के लिए लाभकारी है।

ये उबटन चेहरे की झाई की समस्या, दाग, झुर्रियां और चेहरे पर आयी कालिमा को दूर करता है।

इसको बनाने के लिए संतरे और नींबू के छिलकों को धूप में सुखा ले, अच्छे से सुख जाने पर महीन पाउडर बना ले।

हर रोज़ इस मिश्रण को कच्चे दूध या गुलाब जल में पेस्ट बना कर चेहरे पर लगाये सूखने पर हलके गुनगुने पानी से चेहरे को धो ले।

इस उबटन को आप नियमित रूप से लगा सकती है, अगर त्वचा पर मुहांसे की समस्या है तो इस में नीम की पत्तियों को सुखा कर पावडर बनाये और फिर संतरे ,नींबू के मिश्रण में मिला कर लगाये।

उबटन स्नान करने से 1 घंटा पहले लगाये या फिर रात में सोने से पहले भी लगा सकते है।

उबटन का इस्तेमाल नियमित रूप से करने से त्वचा में निखार तो आता है त्वचा संबंधी समस्याओं से भी मुक्ति मिलती है।

साबुन की जगह उबटन को दे और बनाये खुद को खूबसूरत और स्वस्थ त्वचा की मालकिन।
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गुरुवार, 20 सितंबर 2018

काैन से तेल में खाना पकाती हैं आप- प्रीति बिष्ट

हम भारतीय जिस तरह के भोजन का सेवन करते है उसे बिना तेल के बनाना संभव नहीं है। अक्सर बिना तेल के भोजन का सेवन हम तभी करते है जब हमारा स्वास्थ्य ठीक न हो या शुगर जैसी स्वास्थ्य समस्या में किया जाने वाला कोई परहेज़ न हो। सरल भाषा में तेल न सिर्फ हमारे भोजन को बल्कि हमारे स्वास्थ्य पर भी सीधा असर डालता है। इसलिए सही तेल का चुनाव करना बेहद जरूरी है। आइए जानते हैंः

खाना बनाने की पद्धति चाहे जैसी हो हम उसमें कभी थोड़ा तो कभी ढेर सारा तेल इस्तेमाल अवश्य करते हैं। तेल भोजन के स्वाद को तो बढ़ाता है, साथ ही यह हमारे स्वास्थ्य में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आपको यकीन नहीं होगा मगर यह सच है कि डायटीशियन भी डायटिंग करने वालों को तेल का सेवन एकदम बंद करने की सलाह कभी नहीं देते है। हालांकि उन्हें तेल का सेवन बहुत कम मात्रा में करना होता है।
तेल न सिर्फ शरीर को एनर्जी प्रदान करता है बल्कि ये फैट में अवशोषित होने वाले विटमिन्स जैसे - के, ए, डी, ई के अवशोषण में सहायक होता है। ये प्रोटीन और कार्बोहाइडेट के मैटाबोलिज़्म को भी तेज़ कर इनके पाचन में मदद करता है।
अति है खराब: ़
चाहे कोई चीज आपके लिए कितनी ही अच्छी क्यों न हो मगर अति किसी भी चीज़ की अच्छी नहीं होती है। तेल का अधिक मात्रा में सेवन करने से एलडीएल यानी खराब कोलेस्टाॅल का स्तर  बढ़ाता है जोकि हृदय संबंधी समस्याओं को जन्म देता है। इसलिए तेल का संतुलित मात्रा में सेवन करे।
सही का चुनाव:
आप जिस तरह से खाना बनाना चाहते है तेल का चुनाव उसी के अनुसार करें।
तलने के लिए - जिस तेल को आप तेज आंच पर भी पका सकते है उसका प्रयोग हमेशा तलने के लिए करना चाहिए। रिफाइंड आॅयल जैसे सूरजमुखी आदि का प्रयोग करें।
हल्का फ्राई और खाना बनाने के लिए - आॅलिव आॅयल, मूंगफली या राई का तेल प्रयोग कर सकते है।
आवश्यक फैटी एसिड:
तेल में मोनोसैच्युरेटिड फैट्स या पाॅलीअनसैच्युरेटिड फैट्स होते है। मोनोसैच्युरेटिड फैट्स शरीर में एलडीएल यानी खराब कोलेस्टाॅल को कम करता है और एचडीएल यानी अच्छे कोलेस्टाॅल को बढ़ाता है। आॅलिव आॅयल, सरसों, मूंगफली का तेल आदि इसी श्रेणी में आते है। इसके अलावा पाॅलीअनसैच्युरेटिड फैट्स एलडीएल के स्तर को तो कम करता ही है मगर यदि इसका सेवन अधिक किया जाएं तो ये एचडीएल को भी कम करने लगता है। इसमें सोयाबीन, बिनौला, तिल का  तेल आदि आते है।
यदि आप चाहते है कि आप संतुलित तेल का चुनाव करें तो आपको दोनों प्रकार के तेलों का चुनाव करना होगा। हर सप्ताह बदल-बदल कर इनका प्रयोग करें। पर ध्यान रहें कि इन दोनों  तेलों को एक साथ न मिलाएं।
महत्वपूर्ण तथ्य:
तेज आंच पर तेल को न जलाएं। यदि आप इस तलने के लिए प्रयोग किए गए तेल का दुबारा प्रयोग करना चाहते हे तो इसे छान लें और इसे ठंडा करने बाद ही स्टोर करें। अगर आप तेल को छानकर साफ नहीं करते है तो इसमें बचे खाने के अवशेष से रैनसिडिटी हो सकती है। ऐसे तेल का प्रयोग करने से कैंसर जैसी समस्या के होने की आशंकाएं बढ़ सकती है।
तेल की उम्र बढ़ाने के लिए उसे एक विशेष प्रक्रिया से तैयार किया जाता है। जिसमें तेल में हाइड्रोजन को मिलाया जाता है। इसे हाइड्रोजैनेटिड या पार्शली हाइड्रोजैनेटिड आॅयल कहा जाता है। इसका प्रयोग करने से एलडीएल का स्तर बढ़ता है और हार्ट अटैक आने की आशंकाएं बहुत बढ़ जाती ह। इसलिए फूड लेबल देखकर ही इनका चुनाव करें।
रिफाइंड आॅयल का अर्थ है तेल को ऐसी प्रक्रिया से निकालना जिससे तेल का स्वाद, रंग साफ हो जाएं। और जब इसकी अशुद्धियां दूर की जाती है तब इसे फिल्टर किया जाता है। जब इसे दो बार फिल्टर किय जाता है तब इसे डबल फिटर्ड आॅयल कहा जाता है। मगर इस पूरी प्रक्रिया में तेल के मिनरल, बीटाकैरोटिन और विटमिन ई भी नष्ट हो जाते है। अनरिफाइंड आॅयल प्राकृतिक होते है और इनमें उन बीज का स्वाद भी रहता है जिनसे इन्हें बनाया गया है। मगर कई बार इनका प्रभाव इतना अधिक होता है कि सब्जी या भोजन में तेल के स्वाद आने लगता है।
आप कौन से तेल का चुनाव करेंगे ये अब आप पर है।

बुधवार, 19 सितंबर 2018

चाट के शाही अंदाज- नीरा कुमार

चाट के नाम पर मुँह में पानी आना जैसे मुहावराें का सही अर्थ पता चलता है ताे इसकी लाेकप्रियता का अंदाज इस बात से लग जाता है कि गली का नाम ही पड़ जाता है चाट वाली गली। साइनबाेर्ड पर अक्सर आपने देखा- पढा हाेगी चाट वाली गली के सामने। आज में आपकाे एेसी ही कुछ खास चाट की विधि बता रही हूं जाे आपका स्वाद और सेहत दाेनाें बदल देंगे।
मैक्सिकन कार्न चाट

सामग्री :
उबले कार्न 1 कप
बारीक कटी लाल पत्तागोभी 2 बड़े चम्मच
बारीक कटी हरी बंदगोभी 2 बड़े चम्मच
बारीक कटी प्याज 1 बड़ा चम्मच
बारीक कटी हरी शिमलामिर्च 1 बड़ा चम्मच
बारीक कटा टमाटर 1 बड़ा चम्मच
टोमैटो कैचप 1 बड़ा चम्मच, नमक
चाट मसाला और जीरा पाउडर स्वादानुसार
थोड़ी सी सेकी हुई पापड़ी या खाखरा

विधि :
उबले कार्न में उपरोक्त लिखी सभी सामग्री मिलाएं और ऊपर से सेकी हुई पापड़ी या खाखरा छोटे टुकड़ों में तोड़ कर डालें।
बढिय़ा मैक्सिकन चाट तैयार है।


मटर की चाट

सामग्री : सफेद मटरा 250 ग्राम
खाने वाला सोडा 1/4 छोटा चम्मच
हल्दी पाउडर 1/4 छोटा चम्मच
दालचीनी 1 इंच टुकड़ा
साबुत बड़ी इलायची 1 नग
लौंग 4 नग
बारीक कतरा प्याज ½ कप
बीजरहित क्यूब में कटा टमाटर ½ कप
बारीक कतरा अदरक
हरीमिर्च 1 बड़ा चम्मच
इमली का गाढ़ा पल्प 2 बड़े चम्मच
बारीक कतरा हरा धनिया 2 बड़े चम्मच
चाट मसाला
नमक
जीरा पाउडर
लालमिर्च पाउडर स्वादानुसार
हरी चटनी
मीठी चटनी आवश्यकतानुसार
विधि :
मटरा को साफ करके पानी से धोएं और चार कप पानी व खाने वाले सोडे के साथ रात भर भिगो दें।
सबेरे पानी से अच्छी तरह धोएं।
मटरा में दो कप पानी, लौंग, इलायची, दालचीनी, हल्दी पाउडर और थोड़ा सा नमक डालकर प्रेशरकुकर में गलने तक पकाएं।
इस मटर में से दालचीनी, लौंग और बड़ी इलायची निकाल लें।
बाकी सभी सामग्री मिलाएं और सर्विंग प्लेट में मटरा रखें, ऊपर से खट्टी मीठी चटनी डालकर सर्व करें।
नीरा कुमार एक जानी मानी कुकरी विशेषज्ञ हैं। कुकरी से जुड़े सवाल आप हमारे मैं अपराजिता के पेज पर पूछ सकते हैं। आपके सवालाें का स्वागत हैं।
mainaparajita@gmail.com

मंगलवार, 18 सितंबर 2018

मनाेविज्ञान से मनाेरंजन तक शबाना की चर्चा हर तरफ

जन्मदिन मुबारक हाे

शबाना आजमी हिंदी सिनेमा की ऐसी मंझी हुई अदाकारा हैं जो खुद को हर अभिनय के अनुरूप उसी साँचे ढल जातीं हैं। उन्होंने हिंदी फिल्मों में तरह तरह के रोल अदा किये हैं। वह आज भी फिल्मों में सक्रिय हैं। एक अभिनेत्री होने के साथ-साथ शबाना आजमी सामाजिक कार्यों में भी समान रूप से जुडी रहतीं हैं। शबाना आजमी हिंदी सिनेमा के मशहूर लेखक,संगीतकार जावेद अख्तर की पत्नी हैं।


उनके पिता मशहूर शायर, कविकार थे। उनकी माँ का नाम शौकत आजमी था, जोकि इंडियन थिएटर की आर्टिस्ट थीं। मां से विरासत में मिली अभिनय-प्रतिभा को सकारात्मक मोड़ देकर शबाना ने हिन्दी फिल्मों में अपने सफर की शुरूआत की।

पढ़ाई
शबाना ने अपनी शुरुआती पढ़ाई क़्वीन मैरी स्कूल मुंबई से की है। उन्होंने मनोविज्ञान (Psychology) में स्नातक किया है. उन्होंने स्नातक की डिग्री मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज से ली है. शबाना आजमी ने एक्टिंग का कोर्स फिल्म एंड टेलिविजन इंस्टिटीयूट ऑफ इंडिया (Film and Television Institute of India), पुणे से किया है।

शादी
शबाना आजमी की शादी हिंदी सिनेमा के मशहूर संगीतकार जावेद अख्तर से हुई है। जावेद अख्तर पहले से शादी-शुदा थे, लेकिन शबाना के प्यार में उन्होंने अपनी पहली पत्नी हनी ईरानी को तलाक देकर अभिनेत्री शबाना से निकाह कर लिया। और उनकी यह जोड़ी आज भी लोग के लिए मिसाल है।

करियर
शबाना आजमी ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत वर्ष 1973 में श्याम बेनेगल की फिल्म 'अंकुर' से की थी। इस फिल्म की सफलता ने शबाना आजमी को बॉलिवुड में जगह दिलाने में अहम भूमिका निभाई। अपनी पहली ही फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल हुआ।

फिल्म अकुंर के बाद 1983 से 1985 तक लगातार तीन सालों तक उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया. अर्थ, खंडहर और पार जैसी फिल्मों के लिए उनके अभिनय को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया।

उस दौर में शबाना ने खुद को ग्लैमरस अभिनेत्रियों की भीड़ से स्वयं को अलग साबित किया। अर्थ, निशांत, अंकुर, स्पर्श, मंडी, मासूम, पेस्टॅन जी में शबाना आजमी ने अपने अभिनय की अमिट छाप दर्शकों पर छोड़ी। अमर अकबर एंथोनी, परवरिश, मैं आजाद हूं जैसी व्यावसायिक फिल्मों में अपने अभिनय के रंग भरकर शबाना आजमी ने सुधी दर्शकों के साथ-साथ आम दर्शकों के बीच भी अपनी पहुंच बनाए रखी।

प्रयोगात्मक सिनेमा के भरण-पोषण में उनका योगदान उल्लेखनीय है। फायर जैसी विवादास्पद फिल्म में शबाना ने बेधड़क होकर अपनी अभिनय प्रतिभा का प्रमाण दिया वहीं, बाल फिल्म मकड़ी में वे चुड़ैल की भूमिका निभाती हुई नजर आई। यदि मासूम में मातृत्व की कोमल भावनाओं को जीवंत किया तो वहीं, गॉड मदर में प्रभावशाली महिला डॉन की भूमिका भी निभाकर लोगो को हैरत मे डाल दिया। भारतीय सिनेमा जगत की सक्षम अभिनेत्रियों की सूची में शबाना आजमी का नाम सबसे ऊपर आता है।

प्रसिद्ध फ़िल्में
अंकुर, अमर अकबर अन्थोनी , निशांत, शतरंज के खिलाडी, खेल खिलाडी का,हिरा और पत्थर , परवरिश, किसा कुर्सी का, कर्म, आधा दिन आधी रात, स्वामी ,देवता ,जालिम ,अतिथि ,स्वर्ग-नरक, थोड़ी बेवफाई स्पर्श अमरदीप ,बगुला-भगत, अर्थ, एक ही भूल हम पांच, अपने पराये ,मासूम,लोग क्या कहेंगे, दूसरी दुल्हन गंगवा,कल्पवृक्ष, पार, कामयाब ,द ब्यूटीफुल नाइट, मैं आजाद हूँ, इतिहास,मटरू की बिजली का मंडोला।
 फिल्मी बीट से साभार

आपके बच्चे क्या आपके दाेस्त नहीं बन सकते- डॉ. अनुजा भट्ट

फाेटाे क्रेडिट-रचना चतुर्वेदी 
हर माता पिता अपने बच्चों के लिए जरूरत से ज्यादा करते हैं। वह यह सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि उनके बच्चे को कोई असुविधा न हो। वह सिर्फ अपने बच्चों से यही चाहते हैं कि उनका बच्चा उन्हें आदर सम्मान दें। लेकिन यह भी तभी संभव है जबकि आपकी अपने बच्चे के साथ गहरी आत्मीयता हो और इस आत्मीयता के लिए जरूरी है आप दोनों के बीच बेहतर संवाद और एक दूसरे के प्रति अटूट विश्वास।

परफेक्ट पेरेंटिग जैसी कोई चीज नहीं होती है। इसलिए पेरेंटिग के कोई सेट रूल नहीं होते। पेरेंट होना एक फुल टाइम जॉब है और बहुत मुश्किल भी। इस सफर में पेरेंटस और बच्चों दोनों के लिए सीखने का ही दौर चलता है। इसलिए आप अपनी और अपने बच्चे की जरूरत के अनुसार ही रूल सेट कीजिए और उसका पालन करिए और बच्चे से करवाइए भी।

 अपने बच्चे को अपना दोस्त बनाएं। ऐसी एक चीज ढ़ूढ़ने की कोशिश करें जहां पर आपके और बच्चे की पसंद एक हो।

 यदि आपका बच्चा जिद्दी हो तो उसके साथ नरम व्यवहार रखें क्योंकि उसके ऊपर किसी भी तरह की जोर जबरदस्ती नहीं चल सकती। इसके अलावा यह देखें कि समस्या कहां है । उसी के अनुसार कोई युक्ति निकालें कि कैसे आप उसे अपनी बात समझा सकते हैं।

 अपने बच्चे की पसंद नापंसद को ध्यान में रखकर ही कोई भी योजना बनाएं न कि अपनी पसंद उसके ऊपर थोपें।
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 बच्चे को अपने ऊपर हावी न होने दें। कई पेरेंटस यह शिकायत करते हैं कि वह बच्चों को हैंडल नहीं कर पाते और दबाव में आकर झुक जाते हैं। जब बात योजना को क्रियान्वित करने की हो तो अपने इरादे मजबूत रखें। यदि आपको लगता है कि बच्चा किसी भी चीज को पाने की जिद कर रहा है और वह चीज जरूरी नहीं है तो तुरंत मना कर दें।

 बच्चे के अंदर सहनशक्ति लाने की कोशिश करें। यदि आपका बच्चा रोये तो रोने दें। यह उसकी ही भलाई के लिए है। हो सकता है ऐसे में बच्चा आपके बारे में नेगिटिव सोचे लेकिन परेशान न हों यह भी एक नेचुरल प्रोसेस है और बहुत जल्दी खत्म भी हो जाता है। आप इस दीवार को अपने प्यार और बात से आसानी से तोड़ सकते हैं।

 अपने बचपन के साथ अपने बच्चे के बचपन की तुलना मत कीजिए। न ही उसके भाई, बहन या उसके दोस्तों से उसकी तुलना कीजिए। आप यह कभी भी न सोचें कि जैसा आपने अपने बचपन में किया था वैसा ही आपका बच्चा भी करेगा।

 खुद खुशमिजाज बनिए। बच्चों के साथ हंसी मजाक कीजिए। घर का मौहाल खुशनुमा बनायें। इससे आपका बच्चा भी जिंदगी को अलग नजरिए से देखेगा और खुश रहेगा।
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आपके अंदर सहनशक्ति होनी चाहिए। हमेशा कोशिश कीजिए कि आप बच्चे की बात पूरी तरह एकाग्रचित होकर सुनें। बात करने की पहल खुद करें और बातचीत का मौहाल बनाएं। बच्चे को खुद से निर्णय लेने की आजादी देनी चाहिए। ऐसे बात करें कि जैसे कि आप किसी बड़े से बात कर रहे हैं। इस तरह से बच्चा अपनी बातें आपके साथ शेयर कर पाऐगा। उसकी बातों को जज करने की कोशिश न करें क्योंकि ऐसा करने से आप दोनों के संबधों में दूरी आ सकती है।

 अपने बच्चे को एक अलग शख्सियत की तरह देखें। अपनी भावनाएं व्यक्त करने का हर बच्चे का अपना अलग तरीका होता है । लेकिन साथ ही एक बैलेंस बना कर चलें।  यदि कहीं कोई समस्या है तो उसका समाधान तुरंत ढ़ूंढ़े। उसे टालें नहीं। नहीं तो समस्या तो गंभीर होगी ही साथ ही बच्चा भी सही बात नहीं समझ पायेगा।

 अपने बच्चे को यकीन दिलाएं कि उसका परिवार हर हाल में उसके साथ है। जहां जरूरत हो वहां बच्चे को समझाएं । हर बार यह मत सोचें कि बच्चा आपके हाव भाव से आपकी बात समझ जाऐगा। उससे मधुर भाषा में बात करें।

 अपनी गलतियों को स्वीकार करें और उनको सुधारने के लिए प्रयासरत रहें। इस तरह से आप अपने बच्चे के सामने एक उदाहरण बन सकते हैं

 अपने बच्चे को अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित करें। पेड़ तभी हरा भरा होगा यदि उसकी जड़ मजबूत होगी। आपका बच्चा तभी अच्छे से बढ़ेगा जब आप उसके अंदर सही संस्कार डालेंगें। वह शारीरिक, मानसिक रूप से स्वस्थ हो। वह आर्थिक रूप से भी मजबूत बने। खुद को सुरक्षित महसूस करें। आपको हर दिशा में उसका पथप्रदर्शन करना होगा।
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बच्चे के प्रति रक्षात्मक रूप से बिहेव न करें। अपने बच्चे के लिए कभी झूठ न बोलें। इससे बच्चे पर नकारात्मक असर पड़ता है। उसने जो भी गलत या सही काम किया हो उसे उस काम की जिम्मेदारी लेनी आनी चाहिए।

 आपके बच्चे का न कहना भी उतना ही जरूरी है जितना कि हां कहना। इससे बच्चा कभी भी किसी काम को प्रेशर के चलते नहीं लेगा।

 बच्चों को सिखाएं गलतियों को स्वीकार करना और आत्मशक्ति को बढाना ताकि कोई भी अपनी इच्छाएं या निर्णय उन पर थोप न सके।

आपके बच्चे का भविष्य आपकी पेरेंटिग के तरीकों पर बहुत हद तक निर्भर करता है। आपको इसके लिए बहुत मेहनत करनी होगी। आपके पास सहनशक्ति और तेजी दोनों ही होनी चाहिए। आप अपने बच्चे की नजर में परफेक्ट हों यह जरूरी नहीं है पर आप उसकी नजर में एक सही इंसान बनें यह ज्यादा जरूरी है।

सोमवार, 17 सितंबर 2018

आैजाराें से हाेती है विश्वकर्मा की पूजा

आज विश्‍वकर्मा पूजा (Vishwakarma Puja) है. विश्‍वकर्मा भगवान का जन्‍म भादो माह में हुआ था. हर साल 17 सितंबर को उनके जन्‍मदिवस को विश्‍वकर्मा जयंती (Vishwakarma Jayanti) के रूप में मनाया जाता है. विश्‍वकर्मा को देवताओं का शिल्‍पी कहा जाता है. मान्‍यता है कि उन्‍होंने देवताओं के लिए खूबसूरत शहरों, भव्‍य महलों और एक से बढ़कर एक हथियारों का निर्माण किया. अपनी शिल्‍प कला के लिए मशहूर भगवान विश्‍वकर्मा सभी देवताओं में आदरणीय हैं. पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार विश्‍वकर्मा को सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का सातवां धर्म पुत्र माना जाता है.
विश्‍वकर्मा जयंती के दिन भगवान विश्‍वकर्मा की पूजा और आरती का विधान है. इस दिन कारखानों, दफ्तरों, मशीनों, कलपुर्जों और औजारों की पूजा की जाती है. जो लोग इंजीनियरिंग, बढ़ई, वेल्डिंग जैसे कामों से जुड़े हुए हैं उनके लिए इस दिन का विशेष महत्‍व है. घर पर भी विश्‍वकर्मा की पूजा के साथ-साथ इस्‍तेमाल में आने वाले उपकरणों की पूजा की जाती है. मान्‍ययता है कि विश्‍वकर्मा की पूजा विधि-विधान से करने पर व्‍यापार में दिन-दूनी रात चौगुनी बढ़ोतरी होती है.
यहां पर हम आपको भगवान विश्‍वकर्मा की पूजा की संपूर्ण विधि बता रहे हैं:

- सबसे पहले स्‍नान करने के बाद अपनी गाड़ी, मोटर या दुकान की मशीनों को साफ कर लें.
- उसके बाद स्‍नान करें.
- घर के मंदिर में बैठकर विष्‍णु जी का ध्‍यान करें और पुष्‍प चढाएं.
- एक कमंडल में पानी लेकर उसमें पुष्‍प डालें.
- अब भगवान विश्‍वकर्मा का ध्‍यान करें.
- अब जमीन पर आठ पंखुड़‍ियों वाला कमल बनाएं.
- अब उस स्‍थान पर सात प्रकार के अनाज रखें.
- अनाज पर तांबे या मिट्टी के बर्तन में रखे पानी का छिड़काव करें.
- अब चावल पात्र को समर्पित करते हुए वरुण देव का ध्‍यान करें.
- अब सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी और दक्षिणा को कलश में डालकर उसे कपड़े से ढक दें.
- अब भगवान विश्‍वकर्मा को फूल चढ़ाकर आशीर्वाद लें.
- अंत में भगवान विश्‍वकर्मा की आरती उतारें.
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विश्‍वकर्मा की आरतीॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥

आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥

ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥

रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥

जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥

ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥

श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥
एनडीटीवी इंडिया से साभार..

याेग करेगा आपकी हड्डियां मजबूत- याेग गुरू सुनील सिंह

हमारे शरीर काे हर उम्र में एक खास देखभाल की जरूरत हाेती है। आजकल बहुत सारे लाेग घुटनाें के दर्द के कारण परेशान हैं। अगर समय रहते हम  ध्यान दें ताे इस असाध्य दर्द से मुक्ति पा सकते हैं। याेग में इसका बहुत बेहतर उपाय बताया गया है। अमूमन 40 वर्ष पूरे होने के साथ साथ हमारे शरीर  की मांसपेशियां ढीली होने लगती हैं और साथ ही हड्डियां कमजोर। इस उम्र में ऑस्टियोपोरेसिस होने का खतरा बढ़ जाता है और हल्की सी चोट से भी हड्डी टूटने का डर बना रहता है।  मगर घबराने की जरूरत नहीं यदि आप इन योगासानों को अपनी दिनचर्या में अपना लेंगे तो यह आपकी हड्डियों को कमजोर नहीं होने देंगे।
चक्रासन
सबसे पहले पीठ के बल लेट जाएं और पैरों को घुटने से मोड़ें जिससे एड़ी हिप्स को छुए और पंजे जमीन पर हों। अब गहरी सांस लेते हुए कंधे, कमर और पैर को ऊपर की ओर उठाएं। इस प्रक्रिया के दौरान गहरी सांस लें और छोड़ें। फिर हिप्स से लेकर कंधे तक के भाग को जितना हो सके ऊपर उठाने का प्रयास करें। कुछ क्षण बाद नीचे आ जाएं और सांसे सामान्य कर लें।
वृक्षासन
पेड़ की तरह तनकर खड़े हो जाइए। शरीर का भार अपने पैरों पर डाल दीजिए और दाएं पैर को मोड़िये। दाएं पैर के तलवे को घुटनों के ऊपर ले जाकर बाएं पैर से लगाइये। दोनों हथेलियों को प्रार्थना मुद्रा में लाइये। अपने दाएं पैर के तलवे से बाएं पैर को दबाइये और बाएं पैर के तलवे को जमीन की ओर दबाइये। सांस लेते हुए अपने हाथों को सिर के ऊपर ले जाइये। सिर को सीधा रखिए और सामने की ओर देखिये। 20 मिनट तक इस स्थिति में रुके रहें।
पद्मासन
जमीन पर बैठ जाएं। दायां पैर मोड़ें और दाएं पैर को बाईं जांघ के ऊपर कूल्हों के पास रखें। ध्यान रहे दाईं एड़ी से पेट के निचले बाएं हिस्से पर दबाव पड़ना चाहिए। बायां पैर मोड़ें तथा बाएं पैर को दाईं जांघ के ऊपर रखें। यहां भी बाइंर् एड़ी से पेट के निचले दाएं हिस्से पर दबाव पड़ना चाहिए। हाथों को ज्ञानमुद्रा में घुटनों के ऊपर रखें। रीढ़ की हड्डी को बिलकुल सीधी रखें। धीरे-धीरे सांस लें और धीरे-धीरे सांस छोड़े। कम से कम 10 मिनट तक इस मुद्रा में रहें।
भुजंगासन
पहले पेट के बल सीधा लेट जाएं और दोनों हाथों को माथे के नीचे रखें। दोनों पैरों के पंजों को साथ रखें। अब माथे को सामने की ओर उठाएं और दोनों बाजुओं को कंधों के समानांतर रखें जिससे शरीर का भार बाजुओं पर पड़े। अब शरीर के ऊपरी हिस्से को बाजुओं के सहारे उठाएं। शरीर को स्ट्रेच करें और लंबी सांस लें। कुछ पल इसी अवस्था में रहने के बाद वापस पेट के बल लेट जाएं।
उत्कटासन
सबसे पहले पंजों के सहारे जमीन पर बैठ जाएं। हाथों को आगे की तरफ फैलाएं और उंगलियों को सीधा रखें। गला एकदम सीधा होना चाहिए। अब आप कुर्सी की पोजीशन में आ चुके हैं। 10 मिनट कतक इस मुद्रा में बने रहें।
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रविवार, 16 सितंबर 2018

मिलिए इल्मा अफराेज से-शाकिर चाैधरी

कुंदरकी (मुरादाबाद) : इल्मा अफ़रोज़ से हमारी बातचीत के दौरान तेज़ आंधी आती है और एक लकड़ी का बोर्ड उड़कर उनके भाई अराफ़ात (24) के दाहिने हाथ पर गिर जाता है. इससे उनके हाथ से खून निकलने लगता है और हड्डी में गहरी चोट लगती है.

अचानक से इल्मा बेहद तनाव में आ जाती हैं. वहां मौजूद लोग उन्हें समझाते हैं कि घबराइए मत, हड्डी नहीं टूटी है. मगर वो बदहवास हैं और तेज़ आंधी-तूफ़ान के बीच ही मुरादाबाद (कुंदरकी में हड्डी का डॉक्टर नहीं है) जाने की ज़िद करती हैं. कमरे में दौड़कर जाती हैं. अपना पर्स लाती हैं. पैसे कम देखकर चाचा से मांगती हैं. तभी अराफ़ात अपनी उंगलियां चलाकर दिखाता है, जिससे यह पता चलता है कि हड्डी सलामत है.

इल्मा को सामान्य होने में वक़्त लगता है. उनकी आंखें लाल हो जाती हैं और आंसू बाहर आ जाते हैं.

इल्मा कहती हैं, अब इसके सिवा मेरा कौन है. आज पहली बार इसको चोट लगी है.

मुरादाबाद के कुंदरकी की इल्मा अफ़रोज़ हाल ही में आए यूपीएससी के परिणाम में 217 रैंक पाकर भारत की सिविल सर्विस का हक़दार बन चुकी हैं और उनका आईपीएस बनना तय है.

32 बीघा ज़मीन (5 एकड़) पर खुद खेती करने वाले इल्मा अफ़रोज़ के पिता अफ़रोज़ 14 साल पहले उनके परिवार को बेसहारा छोड़कर चले गए तो घर बड़ी बेटी होने के नाते इल्मा ने परिवार संभाल लिया.

इल्मा के घर में किचन एक तख्त के ऊपर चलता है. उसके ड्राइंग रूम की छत पर फूस का छप्पर है. उसका ड्रेसिंग टेबल उनकी अम्मी को दहेज़ में मिला था, जो गल चुका है.

इल्मा के घर के दो कमरों में कोई बेड नहीं है. चारपाई टूटी हुई है. कुर्सियां पड़ोस से मांगकर लाई गई है. इल्मा के पास बेहद सस्ता स्मार्ट फोन है, जिसकी स्क्रीन टूट चुकी है.

अब से पहले भले ही कोई इन्हें पूछने वाला न हो, मगर जबसे उनके आईपीएस बनने की आहट हुई है, अचानक से रिश्तेदारों की आमद बढ़ गई है, इसलिए कुछ दिन से घर में खाना अच्छा बन रहा है.

इल्मा की कहानी में इतना दर्द है कि आपका कलेजा बाहर उछाल मारने की यक़ीनन कोशिश करेगा. इल्मा पेरिस, लंदन, न्यूयॉर्क और जकार्ता तक में पढ़ाई कर चुकी हैं. इनकी पढ़ाई ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी तक में हुई है. यूएन और क्लिंटन फॉउंडेशन के लिए भी काम किया है. बावजूद इसके इल्मा बिल्कुल साधारण कपड़े पहनती हैं और साधारण तरीक़े से ही रहती हैं.

अद्भुत प्रतिभा की मालकिन इल्मा हिम्मत न हारने की मिसाल हैं. अपने जीवन के संघर्षों को बताते हुए बिल्कुल हिचकती नहीं हैं.

वो कहती हैं, 9वीं में सबकुछ ठीक था. उसके बाद अब्बू नहीं रहे. मैं तब 14 साल की थी. भाई 12 का था. अब्बू मेरे बाल में कंघी करते थे. मैंने बाल ही कटवा दिए. उनकी जगह खेती संभाल ली. अब सवाल पढ़ाई का था. पहले 12वीं तक पढ़ाई स्कॉलरशिप के आधार पर हुई. फिर दिल्ली स्टीफ़न कॉलेज में दाख़िला मिल गया. वहां भी स्कॉलरशिप से पढ़ी. इसके बाद पेरिस, न्यूयॉर्क, ऑक्सफोर्ड सब जगह स्कॉलरशिप मिलती रही और मैं पढ़ती रही.

वो आगे कहती हैं कि, स्कॉलरशिप से मेरी पढ़ाई तो हो रही थी. लेकिन खुद का खर्च चलाना मुश्किल काम था. इसके लिए मैंने लोगों के घरों में काम किया. बर्तन साफ़ किए. झाड़ू-पोछा किया. बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया.

इल्मा कहती हैं कि, पिछले साल अपने भाई के कहने पर मैंने सिविल सर्विस का एक्ज़ाम दिया. पहले मैं आईएएस बनना चाहती थी, मगर मुझे लगा कि मेरे लिए आईपीएस होना ज़्यादा ज़रूरी है.

बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों में हौसलों की मिसाल लिखने वाली इल्मा खेत में पानी चलाने, गेंहू काटने, जानवरों का चारा बनाने जैसे काम भी करती रही हैं.

इल्मा कहती हैं, लोग कहते थे लौंडिया है, क्या कर लेगी. अब कर दिया लौंडिया ने. मगर मेरी ज़िन्दगी में मुस्क़ान नाम की चीज़ अब आई है.

इल्मा के आईपीएस बनने के बाद स्थानीय लड़कियों में ज़बरदस्त क्रेज पैदा हो गया है. वो इल्मा से मिलने आती हैं. पिछले 3 दिन से उन्हें लगातार स्कूल कॉलेज में बोलने के लिए बुलाया जा रहा है.

इल्मा बताती हैं, डिबेट तो मेरी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा रही है. दिल्ली में डिबेट में प्राईज मनी के तौर पर जो पैसा मिलता था, उसी से मेरा ख़र्च चलता था. उस पैसे के लिए मुझे हर हाल में जीतना होता था. लेकिन अब बोलने के पैसे नहीं मिल रहे हैं, तसल्ली मिल रही है.

कुंदरकी के नबील अहमद (45) इल्मा की कामयाबी को चमत्कार मानते हैं. वो हमसे कहते हैं, अब तक कुंदरकी को विश्वास ही नहीं हो रहा है, यह कैसे हो गया. जिस दिन इल्मा नीली बत्ती में वर्दी पहने गांव में आएगी, उस दिन कुंदरकी झूम उठेगी. इस लड़की ने वाक़ई कमाल कर दिया है.

मगर इल्मा की मां सुहेला अफ़रोज़ अभी से झूम रही हैं. वो कहती हैं, मेरी बेटी ने बहुत तकलीफ़ झेली है, उसका रब खुश हो गया है ।
साकिर चाैधरी की फेसबुक बॉल से साभार

शनिवार, 15 सितंबर 2018

कहानी -भूख- चित्रा मुद् गल



आहट सुन लक्ष्मा ने सूप से गरदन ऊपर उठाई। सावित्री अक्का झोंपड़ी के किवाड़ों से लगी भीतर झांकती दिखी। सूप फटकारना छोड़कर वह उठ खड़ी हुई, ‘‘आ, अंदर कू आ, अक्का।'' उसने साग्रह सावित्री को भीतर बुलाया। फिर झोंपड़ी के एक कोने से टिकी झिरझिरी चटाई कनस्तर के करीब बिछाते हुए उस पर बैठने का आग्रह करती स्वयं सूप के निकट पसर गई।सावित्री ने सूप में पड़ी ज्वार को अँजुरी में भरकर गौर से देखा, ‘‘राशन से लिया?''
‘‘कारड किदर मेरा!''
‘‘नईं?'' सावित्री को विश्वास नहीं हुआ।
‘‘नईं।''
‘‘अब्बी बना ले।''
‘‘मुश्किल न पन।''
‘‘कइसा? अरे, टरमपरेरी बनता न। अपना मुकादम है न परमेश्वरन्, उसका पास जाना। कागद पर नाम-वाम लिख के देने को होता। पिच्छू झोंपड़ी तेरा किसका? गनेसी का न! उसको बोलना कि वो पन तेरे को कागद पे लिख के देने का कि तू उसका भड़ोतरी...ताबड़तोड़ बनेगा तेरा कारड।''
उसने पास ही चीकट गुदड़ी पर पड़े कुनमुनाए छोटू को हाथ लंबा कर थपकी देते हुए गहरा निःश्वास भरा-‘‘जाएगी।''
‘‘जाएगी नईं, कलीच जाना!'' सावित्री ने सयानों-सी ताकीद की। फिर सूप में पड़ी गुलाबी ज्वार की ओर संकेत कर बोली, ‘‘ये दो बीस किल्लो खरीदा न! कारड पे एक साठ मिलता।''
छोटू फिर कुनमुनाया। पर अबकी थपकियाने के बावजूद चौंककर रोने लगा। उसने गोद में लेकर स्तन उसके मुंह में दे दिया। कुछ क्षण चुकरने के बाद बच्चा स्तन छोड़ बिरझाया-सा चीखने लगा-‘‘क्या होना, आताच नई।'' उसने असहाय दृष्टि सावित्री पर डाली।

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मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

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