शनिवार, 22 सितंबर 2018

स्मृति शेष- विष्णु खरे की दो कविताएं

हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि और हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष विष्णु खरे अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका निधन साहित्य जगत में एक अपूरणीय क्षति है। अपने विशद अध्ययन और विपुल साहित्य से हिंदी जगत को अनमोल संपदा देने वाले खरे की ये हैं 2 प्रमुुख कविताएं...

कहो तो डरो...
कहो तो डरो कि हाय यह क्यों कह दिया
न कहो तो डरो कि पूछेंगे चुप क्यों हो

सुनो तो डरो कि अपना कान क्यों दिया
न सुनो तो डरो कि सुनना लाजिमी तो नहीं था

देखो तो डरो कि एक दिन तुम पर भी यह न हो
न देखो तो डरो कि गवाही में बयान क्या दोगे

सोचो तो डरो कि वह चेहरे पर न झलक आया हो
न सोचो तो डरो कि सोचने को कुछ दे न दें

पढ़ो तो डरो कि पीछे से झाँकने वाला कौन है
न पढ़ो तो डरो कि तलाशेंगे क्या पढ़ते हो

लिखो तो डरो कि उसके कई मतलब लग सकते हैं
न लिखो तो डरो कि नई इबारत सिखाई जाएगी

डरो तो डरो कि कहेंगे डर किस बात का है
न डरो तो डरो कि हुक़्म होगा कि डर

अक्स.....

आईने में देखते हुए
इस तरह इतनी देर तक देखना
कि शीशा चकनाचूर हो जाये-
फिर भी इतना मुश्किल नहीं

वह शीशे में
यूँ और इतना देखना चाहता है
कि बिल्लौर में तिड़कन तक न आये
सिर्फ़ जो दिख रहा है वह पुर्जा-पुर्जा हो जाए
और जो देख रहा है वह भी
फिर भी एक अक्स बचा रहे
जिसका वह है उसे जाने कैसे देखता हुआ
अमर उजाला से साभार.

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