गुरुवार, 20 सितंबर 2018

काैन से तेल में खाना पकाती हैं आप- प्रीति बिष्ट

हम भारतीय जिस तरह के भोजन का सेवन करते है उसे बिना तेल के बनाना संभव नहीं है। अक्सर बिना तेल के भोजन का सेवन हम तभी करते है जब हमारा स्वास्थ्य ठीक न हो या शुगर जैसी स्वास्थ्य समस्या में किया जाने वाला कोई परहेज़ न हो। सरल भाषा में तेल न सिर्फ हमारे भोजन को बल्कि हमारे स्वास्थ्य पर भी सीधा असर डालता है। इसलिए सही तेल का चुनाव करना बेहद जरूरी है। आइए जानते हैंः

खाना बनाने की पद्धति चाहे जैसी हो हम उसमें कभी थोड़ा तो कभी ढेर सारा तेल इस्तेमाल अवश्य करते हैं। तेल भोजन के स्वाद को तो बढ़ाता है, साथ ही यह हमारे स्वास्थ्य में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आपको यकीन नहीं होगा मगर यह सच है कि डायटीशियन भी डायटिंग करने वालों को तेल का सेवन एकदम बंद करने की सलाह कभी नहीं देते है। हालांकि उन्हें तेल का सेवन बहुत कम मात्रा में करना होता है।
तेल न सिर्फ शरीर को एनर्जी प्रदान करता है बल्कि ये फैट में अवशोषित होने वाले विटमिन्स जैसे - के, ए, डी, ई के अवशोषण में सहायक होता है। ये प्रोटीन और कार्बोहाइडेट के मैटाबोलिज़्म को भी तेज़ कर इनके पाचन में मदद करता है।
अति है खराब: ़
चाहे कोई चीज आपके लिए कितनी ही अच्छी क्यों न हो मगर अति किसी भी चीज़ की अच्छी नहीं होती है। तेल का अधिक मात्रा में सेवन करने से एलडीएल यानी खराब कोलेस्टाॅल का स्तर  बढ़ाता है जोकि हृदय संबंधी समस्याओं को जन्म देता है। इसलिए तेल का संतुलित मात्रा में सेवन करे।
सही का चुनाव:
आप जिस तरह से खाना बनाना चाहते है तेल का चुनाव उसी के अनुसार करें।
तलने के लिए - जिस तेल को आप तेज आंच पर भी पका सकते है उसका प्रयोग हमेशा तलने के लिए करना चाहिए। रिफाइंड आॅयल जैसे सूरजमुखी आदि का प्रयोग करें।
हल्का फ्राई और खाना बनाने के लिए - आॅलिव आॅयल, मूंगफली या राई का तेल प्रयोग कर सकते है।
आवश्यक फैटी एसिड:
तेल में मोनोसैच्युरेटिड फैट्स या पाॅलीअनसैच्युरेटिड फैट्स होते है। मोनोसैच्युरेटिड फैट्स शरीर में एलडीएल यानी खराब कोलेस्टाॅल को कम करता है और एचडीएल यानी अच्छे कोलेस्टाॅल को बढ़ाता है। आॅलिव आॅयल, सरसों, मूंगफली का तेल आदि इसी श्रेणी में आते है। इसके अलावा पाॅलीअनसैच्युरेटिड फैट्स एलडीएल के स्तर को तो कम करता ही है मगर यदि इसका सेवन अधिक किया जाएं तो ये एचडीएल को भी कम करने लगता है। इसमें सोयाबीन, बिनौला, तिल का  तेल आदि आते है।
यदि आप चाहते है कि आप संतुलित तेल का चुनाव करें तो आपको दोनों प्रकार के तेलों का चुनाव करना होगा। हर सप्ताह बदल-बदल कर इनका प्रयोग करें। पर ध्यान रहें कि इन दोनों  तेलों को एक साथ न मिलाएं।
महत्वपूर्ण तथ्य:
तेज आंच पर तेल को न जलाएं। यदि आप इस तलने के लिए प्रयोग किए गए तेल का दुबारा प्रयोग करना चाहते हे तो इसे छान लें और इसे ठंडा करने बाद ही स्टोर करें। अगर आप तेल को छानकर साफ नहीं करते है तो इसमें बचे खाने के अवशेष से रैनसिडिटी हो सकती है। ऐसे तेल का प्रयोग करने से कैंसर जैसी समस्या के होने की आशंकाएं बढ़ सकती है।
तेल की उम्र बढ़ाने के लिए उसे एक विशेष प्रक्रिया से तैयार किया जाता है। जिसमें तेल में हाइड्रोजन को मिलाया जाता है। इसे हाइड्रोजैनेटिड या पार्शली हाइड्रोजैनेटिड आॅयल कहा जाता है। इसका प्रयोग करने से एलडीएल का स्तर बढ़ता है और हार्ट अटैक आने की आशंकाएं बहुत बढ़ जाती ह। इसलिए फूड लेबल देखकर ही इनका चुनाव करें।
रिफाइंड आॅयल का अर्थ है तेल को ऐसी प्रक्रिया से निकालना जिससे तेल का स्वाद, रंग साफ हो जाएं। और जब इसकी अशुद्धियां दूर की जाती है तब इसे फिल्टर किया जाता है। जब इसे दो बार फिल्टर किय जाता है तब इसे डबल फिटर्ड आॅयल कहा जाता है। मगर इस पूरी प्रक्रिया में तेल के मिनरल, बीटाकैरोटिन और विटमिन ई भी नष्ट हो जाते है। अनरिफाइंड आॅयल प्राकृतिक होते है और इनमें उन बीज का स्वाद भी रहता है जिनसे इन्हें बनाया गया है। मगर कई बार इनका प्रभाव इतना अधिक होता है कि सब्जी या भोजन में तेल के स्वाद आने लगता है।
आप कौन से तेल का चुनाव करेंगे ये अब आप पर है।

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