बुधवार, 4 अप्रैल 2018

बीवी हाे ताे एेसी - मंजू सिंह

किसी ने लडकियों से महफ़िल में एक सवाल पूछा , "आज आप सब एक बात  ईमानदारी से बताइए कि आप कैसी बीवी बनेंगी ?" अधिकतर ने अलग अलग शब्दों में लगभग एक ही जवाब दिया ' 'दुनिया की सबसे अच्छी बीवी ' आप सब ने कह ताे दिया कि आप अच्छी बीवी बनेंगी पर आपकाे मालूम है यह कैसे संभव हाेगा।
 हर लड़की तो यही चाहती है कि उसका भावी पति उसकी तारीफ में हमेशा यही कहे कि ' भई बीवी हो तो ऐसी ' । लेकिन ऐसी पत्नी बनना कोई हँसी खेल नहीं है।
दरअसल यूं तो यह रिश्ता  कभी मंगलसूत्र के काले मोतियों से बंधता ताे ताे कभी काेर्ट कचहरी में कभी माैलवी ताे कभी चर्च में।  कुछ ही क्षणाें में यह दुनिया का सबसे प्यारा रिश्ता बन जाता है। बहुत बार ऐसा भी होता है कि छोटी सी बात पर भी रिश्ते बिगड़ने की नौबत आ जाती है क्योंकि  यह रिश्ता एक तरफा कोशिश से नहीं चलता  । कोशिश दोनो ओर से बराबर होनी चाहिये तभी चलती है यह दो पहियों वाली गृहस्थी की गाड़ी। 
इस रिश्ते में  जरूरी है कुछ खास बातें-
 आपस में प्यार होना और एक दूसरे पर अटूट विश्वास 
देखने में आता है कि पुराने समय के किसी सम्बन्ध की बात पता लगने पर रिश्तों में खटास आ जाती है । कभी कभी वे टूट भी जाते हैं।लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिये क्योंकि अतीत किसी का भी हो सकता है तो इन बातों को अपने आपसी विश्वास पर कभी भारी नहीं पड़ने देना चाहिये। अगर आपका प्यार सच्चा है तो आप ऐसी बातों को कभी तूल नहीं देंगी ।
 परिवार काे जाेड़ने की काेशिश
 विश्वास पारिवारिक बातों को लेकर विश्वास होना चाहिये । पति अपने परिवार की ओर झुकते ही हैं ऐसे में समझदारी से काम लेना चाहिये । जहाँ तक हो सके छोटी छोटी बातें जो घर में दिन भर में होती रहती हैं उन्हें शाम को आते ही पति के कानों में न डालें। सोचिये वह बेचारा तो सैंडविच बन जायेगा । वह माँ और पत्नी में से किसी से भी कम प्यार नहीं करता । तो बातों को आपस में ही सुलझाने की आदत के बारे में पहले ही दिन से कोशिश करनी पड़ेगी ।
मानसम्मान
पति का मान सम्मान बना कर रखना चाहिये । आपस की बात में दूसरों के सामने शर्मिन्दा कभी न करें । लड़ाई झगड़ा किस घर में नहीं होता ! जहाँ दो लोग मिले , वहाँ विचारों का टकराव होना निश्चित ही है लेकिन जिद पर अड़े रहना ठीक नहीं है । बीच का रास्ता अपनाने से बात बन ही जाती है । आर्थिक मामलों में एक दूसरे से कभी कुछ नहीं छुपाना चाहिये ।हर समय पैसे को लेकर चिक चिक नहीं करनी चाहिये। एक दूसरे की इच्छा का और विचारों का मान करना बेहद ज़रूरी है। आज कल पति- पत्नी दोनों आर्थिक रूप से सक्षम होते हैं तो जाहिर है पहले की तरह जी हुजूरी करने वाली पत्नी होना तो असम्भव ही है अब ।
पति भी बदलाव काे स्वीकारें
इस रिश्ते में सारी जिम्मेदारी केवल पत्नी की नहीं ठहराई जा सकती । पति को भीअपने स्वभाव को बदलना पडता है। थकी हारी पत्नी से अगर कोई भी आते ही फरमाइशी कार्यक्रम की उम्मीद करे तो यह मूर्खता होगी ।
देखा जाये तो लड़कियाँ तो खुद को थोड़ा तैयार कर ही लेती हैं परिवार और पति के अनुसार खुद को ढालने के लिये । वे शादी से पहले ही इस बात से परिचित होती हैं कि उन्हें अपनेआप को थोडा तो बदलना होगा।और वे बदल भी जाती हैं ।दिक्कत तब होती है जब सब उस बेचारी से ही परिवार के अनुसार व्यव्हार की उम्मीद करते हैं कोई खुद को उसके अनुसार रत्ती भर भी बदलना नहीं चाहता। यह कोशिश परिवार वाले तभी करते हैं जब पति अपनी पत्नी का साथ देता है।
चिपकू  न बनें
स्पेस हर रिश्ते में ज़रूरी होता है एक दूसरे को स्पेस न देना रिश्ते को खतरे में डाल सकता है।तो चिपकू पत्नी बनने से बचना ही बेहतर उपाय है। कुछ लड़कियाँ अपने पति को दोस्तों से अलग से मिलने जुलने पर शादी होते ही पाबन्दी लगा देती हैं जो कि बहुत गलत है।दोस्त भी ज़िन्दगी में ज़रूरी होते हैं । तो क्यों न प्लान ऐसे बनाया जाये कि जब वो अपने दोस्तों से मिलने जाएं तब आप भी अपनी फ्रेंड्स के साथ प्रोग्राम बना लें ।
 पति पत्नी के रिश्ते से ज्यादा कारगर के दाेस्ती का रिश्ता
वैसे अब काफी बदलाव आ गया है अब पति पत्नी का रिश्ता दोस्ती का होता है और होना भी चाहिये कोई किसी का बॉस बनने की कोशिश करे तो रिश्ते में बराबरी का एहसास नहीं रहता। 

" देखिये पति देव , न तो आप देव हैं न मैं देवी हम दोनों ही इन्सान हैं गलतियां भी करेंगे झगड़ा भी , आखिर नोक झोंक के बिना भी कोई मज़ा नहीं है शादी का।और आप से शादी इसलिये नहीं की है कि मैं आपके पैसे चाहती हूं वो तो मैं कमा सकती हूं लेकिन हाँ इज़्ज़त के लिए किसी समझौते की उम्मीद मत करना।मेरी इज्जत कराेगे तभी प्यार मिलेगा वरना बाय बाय।"
पतिदेव समयके साथ बदलने में ही समझदारी है। अब दोनो बराबर हैं । न आप कम है न मैं ज्यादा।
तो  लड़कियाें शादी से पहले थोड़ा होमवर्क कर लेना चाहिये तभी तो होगा ---
*And they lived happily ever after *



मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

तारों को आंचल तक लाना होगा-निधि घर्ती भंडारी


क्यों बैठी है सर को झुकाये,कमरे की बत्ती बुझाये.......

आंखें क्यों चुराए ज़माने से, क्यों शरमाए, क्यों घबराए.......

दिल के खिड़की दरवाजों को तू खोल दे, हवा सरसरा ने दे

कुछ गीत खुशी के गुनगुना,खुद को मुस्कुराने दे|

आसमां को कदमों में झुक जाना होगा, जरा जोर तो लगा|

तारों को आंचल तक आना होगा,अपनी बाहें तो फैला|

क्यों रीतियां-कुरीतियां बनी है सिर्फ औरत के लिए.

तूने हर एक को खुशी ही दी, और गम चुने अपने लिए|

रूढ़िवादी विचारधाराए तू छोड़ दे,

लकीर का फकीर ज़माना जिन पर चले|

अपने बुलंद हौसलों से तू लिख खुद अपनी इबारते,

जो तू चले तो जग चले, जो तू रुके तो जहां भी थम जाये|



अफवाहें, ताने, रोक-टोक तू सबकुछ पीछे छोड़ दे

जो बुरी नजर से है ताड़े, उनआंखों को तू फोड़ दे|

पौरुष का दम भरने वाला, अंधा समाज है भूल गया

जननी भी तू, अग्नि भी तू| दुर्गा,लक्ष्मी,काली भी तू|

जग तुझसे है,तू जग से नही, सब को बतलाना होगा|

उड़ रंग-बिरंगी तितली सी,हर फूल सजाना होगा|

आसमां को कदमों में झुक जाना होगा, ज़रा ज़ोर तो लगा|

तारों को आंचल तक आना होगा, अपनी बांहे तो फैला|





सफल इंसान की 5 खूबियाँ, जानिये इनमें से कौन सी खूबी है आप में- हितेश तिवारी



paanch aadat ek safal insan ki jo aap mein bhi ho sakti hai
हर व्यक्ति अपने जीवन में सफल होना चाहता है। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसे सफलता से प्रेम न हो। कई व्यक्ति सफल होने के लिए दिन रात एक कर देतें हैं और ताबड़तोड़ मेहनत करते हैं लेकिन फिर भी उनको सफलता प्राप्त नहीं होती। यह वाकई एक गंभीर विषय है, जिसके बारे में सोच कर कई लोग परेशान रहते हैं। क्या कभी आपने सोचा है की सफल व्यक्ति और असफल व्यक्ति में क्या फर्क है? प्रकृति ने हर व्यक्ति को 1 दिन में 24 घंटें दिए हैं, लेकिन कई लोग 24 घंटे में से 16 घंटे काम कर के भी सफल नहीं होते और वहीं कुछ लोग 24 घंटे में से सिर्फ 8 या 10 घंटे में काम खत्म कर के सफलता की सीढ़ी चढ़ जाते हैं। आखिर क्या कारण है जो इतनी मेहनत करने के बावजूद भी सफलता कुछ लोगों की झोली में नहीं आती और ऐसी क्या खूबी होती है उन व्यक्तियों में जो थोड़ी सी मेहनत करके सफलता को बड़ी आसानी से पा लेते हैं? चलिये आज हम आपको बतातें हैं की क्या होती है सफल इंसान की खूबी जिन्हें आप भी अपने जीवन में अपना कर हो सकते हैं सफल।

परिस्थिति को न कोसना 

हर सफल व्यक्ति की यह खासियत होती है की वह परिस्थिति के अनुरूप या खराब परिस्थिति को सुधारने के लिए काम करता है, न की परिस्थिति को कोस कर अपना समय बर्बाद करता है| हर व्यक्ति के जीवन में उतर चढ़ाव आतें हैं, ऐसे समय में आपको शांति से परिस्थिति का निरीक्षण कर के उसके अनुसार अपने काम पर ध्यान देना चाहिए|

अपने मन की सुनना

आपके जीवन में आपको यह कई बार प्रतीत हुआ होगा की जिस कार्य को आप मन लगा कर करतें हैं, वह कार्य बिना किसी व्यवधान के सफल होता है और उस कार्य के लिए आपको प्रोत्साहित भी किया जाता है। लेकिन अगर कोई कार्य आप बे-मन करतें हैं या जिस कार्य को करने में आपकी रूचि नहीं होती है तब उस कार्य में कई तरह के व्यवधान आते हैं या फिर वह कार्य सफल नहीं हो पाता है। आप अपने जीवन में तब ही सफलता प्राप्त कर सकते हैं जब आप वह कार्य करें जिसमें आपकी रूचि हो।

बदलाव से न डरना 

समय की एक खासियत है की समय कभी एक जैसा नहीं रहता। अगर आप समय के हिसाब से आपके द्वारा किए गए कार्यों में बदलाव नहीं करते हैं तो शायद आप सफल न हो पायें क्योंकि बदलाव ही प्रकृति का नियम है जिसके अनुसार दुनिया चल रही है। अगर आपको जीवन में सफलता प्राप्त करनी है तो आपको जरुरी बदलाव करते रहना चाहिए।

लोगों की फ़िक्र न करना

जिस कार्य में आपकी रूचि हो वह कार्य आप बेधड़क हो कर करें। अगर आप अपने कार्य से सबको खुश करने जायेंगे तो आपके हाथ सिर्फ निराशा ही लगेगी क्योंकि हर व्यक्ति आपके द्वारा किए गए कार्यों से खुश हो यह संभव नहीं है। आपके लिए महत्वपूर्ण यह होना चाहिए की क्या आप उस कार्य से खुश हैं जो आप कर रहें हैं। सफल इंसान की यही खूबी होती है की वह विनम्रता से सबके साथ व्यवहार करता है लेकिन कभी किसी को खुश करने में अपना समय बर्बाद नहीं करता।

जोखिम लेने से न डरना

हर व्यक्ति के जीवन में एक बार ऐसा समय जरुर आता है जब उसे अपने जीवन के बेहतर भविष्य के लिए कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़े और यही उनके जीवन का सबसे कठिन समय होता है, क्योंकि आपका पूरा भविष्य आपके द्वारा लिए गए इसी निर्णय पर निर्भर करता है। कई व्यक्ति हालात से मजबूर हो कर या कठिन परिस्थितियों के आगे घुटने टेक कर गलत निर्णय ले लेते हैं, जिस वजह से आगे चलकर उन्हें पछतावा होता है। वहीं कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो जोखिम उठा कर अपने मन मुताबिक कार्य में पूरी शिद्दत से आगे बढ़ते हैं और उन्हें आगे चल कर सफलता प्राप्त होती है।

बैड बॉय की गुड जीवनी- जानकीपुल- प्रभातरंजन

   संजय दत्त की जीवनी ‘द क्रेजी अनटोल्ड स्टोरी ऑफ़ बॉलीवुडस बैड बॉय संजय दत्त’ जब से बाजार में आई है तब से यह लगातार चर्चा और विवादों में बनी हुई है. इस किताब  पर  चर्चित लेखक प्रभात रंजन की टिप्पणी-
आजकल यासिर उस्मान की लिखी किताब की बड़ी चर्चा है. संजय दत्त की यह जीवनी एक साथ चर्चा और विवादों में है. पहले संजय दत्त ने कहा कि उन्होंने ‘द क्रेजी अनटोल्ड स्टोरी ऑफ़ बॉलीवुडस बैड बॉय संजय दत्त’ लिखने के लिए न तो प्रकाशक न ही लेखक यासिर उस्मान को इसके अधिकार दिए थे. उन्होंने एक ट्वीट में यह भी लिखा कि उनकी आधिकारिक जीवनी जल्दी ही आएगी. उन्होंने प्रकाशक जगरनॉट से यह भी कहा कि वे इसके अंशों को प्रकाशित होने से रोकें जिसे प्रकाशक ने मान लिया. उन्होंने किताब रोकने के लिए नहीं कहा. बस इसके अंशों के प्रकाशन को रोकने के लिए कहा. सब जानते हैं कि उनकी बायोपिक भी बन रही है जिसमें रणवीर कपूर ने संजय दत्त की भूमिका निभाई है.
यासिर बहुत संजीदा पत्रकार-लेखक हैं. इससे पहले वे दो जीवनियाँ लिख चुके हैं- राजेश खन्ना और रेखा की. उनकी लिखी रेखा की जीवनी पिछले साल अंग्रेजी में बेस्टसेलर सूचियों में छाई रही और निस्संदेह एक दिलचस्प जीवनी थी. किसी भी जीवनी के आधिकारिक होने का दावा नहीं था लेकिन उनको लेकर किसी तरह का विवाद नहीं हुआ.
यासिर ने हाल में ही खलीज टाइम्स को दिए गए अपने इंटरव्यू में यह कहा है कि अनाधिकारिक जीवनी लिखना अधिक मुश्किल होता है. इसके लिए आपको काफी शोध करना होता है और लिखते हुए कानूनी पहलू का भी पूरी तरह ध्यान रखना होता है. खैर, आधिकारिक अनाधिकारिक की इस बहस के बीच इस जीवनी को पढ़ते हुए संजय दत्त एक ऐसे किरदार के रूप में उभर कर आते हैं जिनको कहा भले ही बैड बॉय गया हो लेकिन वे आपके दिल में बस जाते हैं, अपनी सच्चाई, अपनी भावुकता और जीवन में एक के बाद एक घटित त्रासदियों के कारण. उन त्रासदियों से निकलकर एक सफल स्टार बनने के कारण. संजय दत्त का किरदार परदे पर हो सकता है उतना करिश्माई न लगा हो लेकिन परदे के बाहर वह एक चमत्कारिक व्यक्तित्व की तरह लगते हैं. जीवनी में लेखक केवल तथ्यों का संकलन करके उसे गुडी गुडी नहीं बनाता है बल्कि वह एक किसी व्यक्ति के किरदार को हर कों से दिखाने का काम भी करता है. इस रूप में यासिर उस्मान की लिखी यह जीवनी बहुत सफल है और रोचक भी.
लेकिन मुझे संजय दत्त की जीवनी को पढ़ते हुए सबसे अधिक जिस किरदार ने प्रभावित किया वह सुनील दत्त हैं. एक पति, एक पिता के रूप में सुनील दत्त का व्यक्तित्व बहुत प्रभावित करता है. पहले पत्नी नर्गिस को कैंसर और उसके बाद पुत्र संजय दत्त की नशामुक्ति के लिए अमेरिका में उनके इलाज करवाने के बाद जब सब कुछ पटरी पर आ रहा था कि अचानक संजय दत्त के ऊपर टाडा लगा दिया गया. यासिर ने इस जीवनी में यह बताया है कि जिस समय संजय दत्त टाडा में फंसे उस समय सुनील दत्त की मुम्बई में लोकप्रियता इतनी बढ़ गई थी कि तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार को खतरा महसूस होने लगा था. संजय के ऊपर अगर आर्म्स एक्ट लगाया गया होता तो शायद उनको इतना अधिक नहीं भुगतना पड़ा होता. लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने उनके ऊपर टाडा लगा दिया और उनके ऊपर आतंकवादी की तरह कार्रवाई हुई, ट्रायल हुआ. यह सब जिस समय शुरू हुआ उस समय संजय अपने कैरियर के शिखर पर थे.
यह जीवनी संजय दत्त के व्यक्तित्व को सहानुभूति से देखती है और हर पढने वाले को उस व्यक्तित्व को लेकर सहानुभूति होने लगती है जो जीवन भर प्यार के लिए तरसता रहा, भागता रहा. जिसके प्रति नफरत भड़काने की जितनी भी कोशिश हुई उसके लिए लोगों में उतना ही प्यार बढ़ा.
निस्संदेह ‘बैड बॉय’ यासिर उस्मान की सबसे सुगठित, सुसंयोजित और अच्छी तरह से शोध करके लिखी गई किताब है. एक ऐसी किताब जिसे पढ़कर आप निराश नहीं होंगे. और हिंदी सिनेमा के सबसे अभिशप्त नायक के जीवन को कुछ और करीब से देख-समझ पायेंगे.

रविवार, 1 अप्रैल 2018

मनभावन साड़ी की दीवानी दुनिया- रेनु दत्त

   
सेल्फी लेती मलिका। डांस के बाद यह ताे बनती है।
 देश दुनिया घूमने की ललक से जब विदेशी महिलाएं भारत आती हैं तो सबसे पहली नजर उनकी भारतीय पहनावे पर ही पड़ती है। इस भारतीय पहनावे में साड़ी खासतौर पर उनको आकर्षित करती है। इसकी वजह जहां साड़ी की अलग अलग तरह की डिजाइन हैं वहीं भारत में इसको पहनने का तरीका भी अलग अलग है। भारतीय अभिनेत्रियों में अगर हम बात विद्या बालन, सोनाली बेंद्रे, कल्कि कोएच्लिन की करें तो देखते हैं कि यह कई तरह से साड़ी पहनती हैं।
 आजकल राजस्थानी गोटा पट्टी साड़ियों का बहुत ट्रेंड चल रहा है, इसलिए आज हम आपको राजस्थानी गोटा पट्टी साड़ियों के कुछ डिजाइंस के बारे में बताने जा रहे हैं.
1- अगर आप काले रंग में लहरिया प्रिंट गोटा पट्टी बॉर्डर वाली डिजाइन पहनना पसंद करती हैं, तो इससे आप किसी भी शादी या पार्टी में खूबसूरत दिख सकती हैं।
2- आजकल लड़कियां नारंगी रंग बहुत पसंद कर रही हैं, अगर आपको किसी शादी में जाना है तो आप नारंगी के साथ हरे बॉर्डर वाली गोटा पट्टी साड़ी पहनें, इससे आप शालीन और खूबसूरत लगेंगी।
3- अगर आप भारी साड़ी पहनना चाहती हैं तो रॉ सिल्क की साड़ियां आपके लिए एकदम उपयुक्त हैं। अगर आप चौड़े बॉर्डर वाली रॉ सिल्क की साड़ी पहनती हैं तो इससे आप खुद को पाएंगी। इस तरह की साड़ी को आप किसी भी पार्टी या खास अवसर पर पहन सकती हैं।
4- बहुत सी महिलाओं को पारंपरिक साड़ियां बहुत पसंद होती हैं, अगर आप पारंपरिक के साथ आधुनिक भी दिखना चाहती हैं तो प्लेन साड़ी को गोटा पट्टी बॉर्डर के साथ कैरी करें. इस साड़ी को आप किसी भी हल्के-फुल्के अवसर पर भी पहन सकती हैं।
गहरे और चमकदार फैशन इस मैसम के सर्वथा उपयुक्त है और आजकल इसकी मांग सबसे ज्यादा है। इसकी वजब यह है कि फिल्मी हस्तियां इस तरह के पहनावे में  रूचि ले रही हैं। खासकर रंगीन और चटख साड़ी जसिका बार्डर सुंदर हो इनकी पसंद है।
हाल ही में बेंगलुरु अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में करीना कपूर खान एक रॉ मैंगो साड़ी पहनकर आई। करीना की वेशभूषा में मेकअप नहीं के बराबर था। उन्होंने उत्कृष्ट किस्म के आभूषण पहने थे और  माथे पर एक बड़ी सी बंदी लगाई थी। उनका यह अंदाज बेहद पसंद कया गया और युवाओं ने इसे  अपनाया। विद्या बालन, सोनाली बेंद्रे, कल्कि कोएच्लिन ने भी अलग अलग अवसरें पर साड़ी को अलग अलग अंदाज में पहनकर शोहरत बटोरी।
 हम जानते ही हैं कि त्योहारों और शादियों के मौसम में महिलाए खूबसूरत सी डिजाइनर साड़ियों को पहनना पसंद करती है।  जिसे पहनकर वह सुंदर और भी राजसी दिखाई दें। साड़ियों की बात करें तो महिलाए अलग-अलग  रंग और उसकी विविधता के पसंद करती है एक ही रंग में कई तरह रंगें के मेल होते हैं कुछ हलके तो कुछ गहरे होते हैं। महिलाएं साड़ियों का चुनाव साड़ी के प्रिंट और साड़ी के बॉर्डर को ध्यान में रखकर करती है। इस साड़ी का बॉर्डर साडी पर खूबसूरत दिख रहा है या नही।यह रंग हमपर खिलेगा या नहीं जैसे सवाल भी महिलाआं के मन में होते हैं। कई साड़ियों के बॉर्डर हैवी होते है तो कई साड़ियों के बॉर्डर डिजाइन हल्के भी होते है। बॉर्डर वाली साड़ियां ही नही महिलाए बॉर्डर वाली चुनरियां अपने लहंगा चुन्नी के साथ पहनना पसंद करती है जो उनकी खूबसूरती में चार चांद लगा देता है।
 साड़ी का असर दुप्पटे में भी
इस फैशन के जमाने में अक्सर महिलाएं व लड़कियों  विशिष्ट चीज ज्याद पहनना पसंद करती है। इसके साथ ही फैशन में चल रहे ट्रेड को ज्यादा पसंद करती है।  इसी तरह दुपट्टा किसी भी ड्रेस का बहुत अहम हिस्सा होता है।
वैसे तो कई लड़कियों को कलरफूल डिजाइन के दुपट्टे ज्याद पसंद आते है। इसके लिए परफेक्ट रहेगा कि आप रंग-बिरंगे लहरिया दुपट्टे को  पहनें । ये दिखने में तो खूबसूरत होते है। साथ ही  आप पर जचेंगे भी। लहरिया दुपट्टे को अपने सिंपल सूट के साथ ऑफिस या कॉलेज जाने के लिए भी  पहना जा सकता हैं। इसे आप बहुत फैशनेबुल भी नहीं लगेंगी और न एकदम साधारण।
 माकेंट ट्रेड में  है शीयर दुपट्टा जो नेट फैब्रिक से बना होता है, जिसकी खास वजह ये बहुत हल्का होता है इसे  पहनने से आपको एक  आकर्षक अंदाज मिलता है। अगर आप थोड़ा पार्टी वाला स्टाइल चाहती हैं तो इसके लिए अपने शीयर दुपट्टे पर गोटा पट्टी लगा सकते हैं। जो आपकी ड्रैस पर खूब जंचेगी।
राजसी दिखने के लिए बनारसी दुपट्टे को पहना जा सकता है। इसे आप अपने लहंगे और अनारकली सूट के साथ भी पहन सकती हैं।
लड़कियां लेस वर्क वाले दुपट्टे बहुत पसंद कर रही हैं। लेस वर्क वाले दुपट्टे को पहनकर शादी और पार्टी में भी जा सकते हैं। अगर आप सफेद रंग में लेस वाले दुपट्टे को पहनती हैं तो  आप सादगी में भी सुंदर दिखाई देंगी।
ब्लाउज के भी नए रंग ढंग
 साड़ी के साथ ब्लाउज के भी डिजाइन में कई तरह के परिवर्तन आए हैं।  ब्लाउज की जगह छोटी कुर्ती ने ले ली है।  जिसमें हाई नैक गला या बंद गला पसंद किया जा रहा है। ब्लाउज के पिछले  हिस्में में कई तरह से डिजाइन बनाए जा रहे हैं। कहीं कढ़ाई ते कहीं पेंट या पेंचवर्क है। शीशे का काम  ते सदाबहार है। लंबी चुन्नटदार आस्तीन ब्लाउज को आकर्षक बनाती है। इसी के साथ प्रिंटेड ब्लाउज का भी फैशन जोरों पर है। भारतीय साड़ी के साथ पश्चिमी शर्ट का मेल इसे आकर्षक बना रहा है। दर असल जे ब्लाउज फैशन में है उनमें शर्ट का लुक आता है।
 कुस मिलाकर कहें तो फैशन में साड़ी का चलन जरूर बड़ा है पर परंपरागत साड़ी के साथ पश्चिमी तेवर भी असर डाल रहे हैं।  इसलिए तो फैशन  दूसरा नाम बदलाव भी है जिसे हम स्वीकर करते हैं। यह बदलाव हमारे भीतर ताजगी और नएपन का अहसास कराते हैं। यूं तो हम बदलते नहीं हैं पर हमारे रहनसहन और पहनावे से हमारी छवि में सकारात्मक असर पड़ता है। फिर चाहे अमरिकी राष्ट्रपति की पत्नी हें या कनाडा के प्रधानमंत्री की पत्नी साड़ी अपन पाश में बांध ही लेती है।


शनिवार, 31 मार्च 2018

आज फिर जीने की तमन्ना है-झंखना प्रजापति

ये कहानी मेरे बहुत ही परिचित और निकटतम परिवार की सच्चाई है। 
प्रकाशभाई और स्मिताबेन एक आम भारतीय पतिपत्नी की तरह एक दूसरे के लिए जीते थे। स्मिताबेन एक कुशल गृहिणी थी और प्रकाशभाई का ऑटो पार्ट्स का बड़ा कारोबार था। दोनों ही जन्म से गुजराती थे पर प्रकाशभाई के बिज़नेस की वजह से दिल्ली में रहते थे। उनके दो बच्चे थे, निष्ठा और अक्षित। अक्षित बड़ा था, इंजीनियरिंग करके ऑस्ट्रेलिया में जॉब करता था। निष्ठा दिल्ली में ही इंजीनियरिंग के फाइनल ईयर में थी। 
आशुतोष जी प्रकाशभाई के अच्छे दोस्त थे। कम्युनिटी के फंक्शन में अकसर दोनों मिलते रहते थे। पेशे से आशुतोष जी डॉक्टर थे और उनकी पत्नी विनीता भी स्मिताबेन की अच्छी सहेली थी। उनका एक बेटा था, विशाल...जो कि बैंगलोर में डेन्सटिस्ट की पढ़ाई कर रहा था।
निष्ठा, अक्षित और विशाल तीनों साथ ही अपने पेरेंट्स की वजह से दोस्त थे। हालांकि पढ़ाई की वजह से उनका मिलना मिलाना बहोत ही कम होता था। उस में भी अक्षित के ऑस्ट्रेलिया जाने के बाद निष्ठा बहोत अकेली पड़ गई थी। ऐसे में सोशल नेटवर्किंग साइट पर उसे विशाल मिला। पहले से ही एक दूसरे को जानते तो थे ही। दोनों में बातें होने लगी। दोस्ती धीरे धीरे प्यार में तबदील हुई।
विशाल और निष्ठा दोनों ने ही अपने पेरेंट्स को बताया। उनके माता पिता को तो कोई दिक्कत थी ही नहीं इस रिश्ते से। प्रकाशभाई ने रिश्ता तो तय कर दिया पर अक्षित के भारत आने के बाद ही सगाई और शादी साथ ही करने के लिए कहा। आशुतोष जी को भी इस बात से कोई एतराज़ नहीं था। वैसे भी विशाल का पोस्ट ग्रेजुएशन का फाइनल यर चल रहा था।
विशाल बंगलोर में था पर निष्ठा विशाल के परिवार के साथ अच्छे से घुलमिल गई थी। विनीता जी को घर में मदद कर देती। हालांकि सिमताबेन को निष्ठा का शादी से पहले विशाल के घर पर आना जाना अच्छा नहीं लगता था। पर आजकल के बच्चे किसी की सुनते कहाँ है? उन्होंने प्रकाशभाई से भी इस बारे में बात की, पर प्रकाशभाई ने उन्हें समझाया कि आजकल शादी से पहले ससुराल में आनाजाना बहोत ही आम बात है। वैसे तो स्मिताबेन भी काफी आधुनिक और खुले विचारों की थी पर फिर भी उन्हें कुछ बातें अपने दायरे में ही अच्छी लगती थी।
निष्ठा की विशाल से लगातार बात होती रहती। विशाल निष्ठा को बताता की वो कभी कभार हॉस्पिटल भी जाया करे, पाप यानी कि आशुतोषजी की मदद के लिए। निष्ठा ग्रेजुएशन के बाद वैसे भी फ्री थी और शादी से पहले कोई जॉब जॉइन करना नहीं चाहती थी, तो उसने आशुतोषजी के हॉस्पिटल जाना शुरू किया। दिन का काफी वक़्त वो अपने होनेवाले ससुराल में ही रहती।
अक्षित को आने में अभी 6 महीने थे इसलिए प्रकाशभाई ने शादी की तैयारियां शुरू कर दी। सबसे पहले निष्ठा के कपड़ो से शुरुआत हुई। निष्ठा ने अपनी होनेवाली सास विनिताजी को ये बात ऐसे ही बताई की कल हम शादी की शॉपिंग के लिए जानेवाले हैं। विनिताजी ने निष्ठा से कहा कि "मैं भी साथ चलूंगी। हमें भी तो तुम्हारे लिए खरीदारी करनी होगी।"
निष्ठा ने घर आकर ये बात स्मिताबेन को बताई। उन्हें ये ठीक नहीं लगा कि बेटी की सास को लेकर शादी की खरीदारी पर जाना। पर उन्होंने ने सोचा पहेली बार में ही मना करेंगे तो बात बेकार में बिगड़ जाएगी। और कौनसा एक दिन में सब जो जाएगा!!! अगली बार थोड़े ना साथ जाएंगे। 
दूसरे दिन स्मिताबेन, निष्ठा और प्रकाशभाई विनिताजी को लेकर शॉपिंग के लिए गए। स्मिताबेन ने साड़ियां निकलवाई। जैसे ही कोई साड़ी स्मिताबेन को पसंद आती विनिताजी तुरंत ही कुछ ना कुछ कमी निकालकर रिजेक्ट कर देती। 4 दुकानें और 5 घंटे बिताने के बाद सिर्फ 2 साड़ियां लेकर सब वापस आये। उसमें विनिताजी ने अपनी तरफ से लेनेवाली साड़ियों का तो जिक्र भी नहीं किया। स्मिताबेन को ये बात बहोत ही खटक रही थी कि निष्ठा की शॉपिंग में विनिताजी की क्या ज़रूरत और उसमें भी आज उन्होंने जो किया उससे तो उन्हें और गुस्सा आया। पर अगली बार का सोचकर उन्होंने किसी से कुछ नहीं कहा।
नेक्स्ट टाइम जब शॉपिंग का प्लान बना तो निष्ठा ने वैसे ही अपनी सास को बताया। इस बार भी विनिताजी निष्ठा से कहलवाकर साथ आई। ना चाहते हुए भी निष्ठा की ज़िद की वज़ह से स्मिताबेन मना नहीं कर पाई। इस बार भी विनीत जी ने अपनी पसंद की महंगी महंगी साड़ियां स्मिताबेन से ख़रीदवाई। इस बार निष्ठा को भी थोड़ा अजीब लगा पर वो कुछ नहीं बोली।
शाम को ये बात उसने विशाल को बताई। विशाल ने भी अपनी माँ का पक्ष लेते हुए कहा " अब देखो निष्ठा शादी के बाद तुम्हें हमारे घर के हिसाब से कपड़े पहनने होंगे। तो इसीलिए शायद मम्मी तुम्हें साथ रहकर शॉपिंग करवा रही है।" निष्ठा कुछ बोल नहीं पाई। 
एक दिन आशुतोषजी और विनिताजी आकर शादी में देनेवाले गिफ्ट्स की लिस्ट दे गए। काफी लंबी लिस्ट थी। स्मिताबेन ने प्रकाशभाई से कहा " कितने सारे गिफ्ट्स लिखे हैं.. वैसे तो कहते थे हमें तो सिर्फ निष्ठा ही चाहिए। पर अब देखो कुछ भी छोड़ा नहीं है" प्रकाशभाई ने ये कहते हुए स्मिताबेन को समझाया कि "वैसे भी हमारी एक ही बेटी है। उसे नहीं देंगे तो किसे देंगे।" 
जैसे जैसे शादी का दिन नज़दीक आ रहा था विनीत जी की बारातियों की लिस्ट और गिफ्ट्स की लिस्ट लंबी ही होती जा रही थी। शादी का वेन्यू भी उन्होंने अपने हिसाब से रखवाया। निष्ठा के ससुरालवालों रिवाज़ के तौर पर दी जानेवाली साड़ियां भी विनिताजी ने मेंहगी मेंहगी और अपने हिसाब से सिमताबेन से ख़रीदवाई। 3 महीनों में एक भी बार प्रकाशभाई और स्मिताबेन को निष्ठा के ससुराल वालों ने नहीं बुलाया था पर वो हफ्ते में एक बार ज़रूर आ धमकते। और जब भी आते ये जताना नहीं चूकते की वो लड़केवाले हैं।
स्मिताबेन को ये सब देख अपनी बेटी का भविष्य लालची लोगों के हाथों में जाता दिखाई दे रहा था। उन्होंने निष्ठा को ये सब समझाने की कोशिश की पर वो विशाल के प्यार में इतनी पागल या कहो कि अंधी हो चुकी थी कि उसे ना अपना आनेवाला कल दिखाई दे रहा था ना ही अपनी माँ की आज की तकलीफ। स्मिताबेन अनजाने में ही डिप्रेशन का शिकार होती जा रही थी।
अक्षित निष्ठा के शादी के 2 महीनें पहले ही इंडिया आ गया था। प्रकाशभाई और स्मिताबेन का विचार था कि निष्ठा की शादी के साथ साथ लगे हाथ अक्षित की भी सगाई हो जाये। लड़की देखने के लिए प्रकाशभाई पूरे परिवार के साथ अहमदाबाद आये। 4-5 परिवारों से मिलने के बाद अक्षित को निशा पसंद आई। पर निशा के परिवारवालों की शर्त थी कि पहले वो दिल्ली जाकर प्रकाशभाई का घर परिवार देखेंगे, उन्हें ठीक लगा तो ही रिश्ते के लिए हाँ कहेंगे। क्योंकि उन्हें इतनी दूर अपनी बेटी ब्याहनी है तो उसके परिवार के बारे में जानना अति आवश्यक है। प्रकाशभाई ने खुशी खुशी ये बात मंजूर की।
एक हफ्ते बाद निशा अपने मम्मी पापा के साथ दिल्ली आयी और प्रकाशभाई क आग्रह की वजह से वो उनके घर ही एक हफ्ते के लिए रुके। निष्ठा ये सब देख रही थी की कैसे निशा के पेरेंट्स बेटी के होनेवाले ससुराल में रह रहे हैं। कैसे उसके प्रकाशभाई और स्मिताबेन निशा के पेरेंट्स को इज़्ज़त दे रहे थे। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि लड़की के माँ बाप को भी उतना ही सम्मान मिलना चाहिए जितना कि लड़के के माँ बाप को। उसे अपनी माँ की कही एक एक बात याद आ रही थी। उसे अब एहसास हुआ कि विनिताजी और विशाल की तानाशाही वो और उसका परिवार इतने महीनों से बर्दाश्त कर रहे थे, पर वो ही विशाल के प्यार में अंधी होकर कुंए में गिरने जा रही थी।
निशा के पेरेंट्स को अक्षित और प्रकाशभाई का परिवार दोनों ही अच्छे लगे। रिश्ते के लिए हाँ बोलकर, शादी में आने का वादा कर वो अहमदाबाद वापस लौट गए। 
निष्ठा ने उसी शाम अपने पापा से रिश्ते के लिए मना कर देने को कहा। शादी में सिर्फ महीना बचा था, कार्ड्स बंट चुके थे और बाकी सारी तैयारियां हो चुकी थी। फिर भी देर आये दुरस्त आये देखकर प्रकाशभाई ने विशाल के परिवार को शादी के लिए ना बोल दिया। स्मिताबेन को लगा दिल से सबसे बड़ा बोझ एक झटके में उतर गया। विशाल ने निष्ठा को मनाने के बहोत प्रयन्त किये पर अब उसकी आँखों से वो अंधकार के घने बादल हट चुके थे और आनेवाला कल नई रौशनी लिए खड़ा था।
अक्षित सगाई करके ऑस्ट्रेलिया वापस चला गया और निष्ठा ने पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए पढ़ाई शुरू की। पढ़ाई के दौरान ही उसे अभिषेक दोस्त के रूप में मिला। फाइनल प्लेसमेंट हो जाने के बाद निष्ठा ने प्रकाशभाई और स्मिताबेन को अभिषेक के बारे में बताया। इस बार प्रकाशभाई ने अभिषेक के पेरेंट्स को पहले से ही बता दिया कि वो शादी अपने हिसाब से करेंगे और सारे रीति रिवाज़ लेनदेन भी अपने हिसाब से ही करेंगे। अभिषेक के परिवार को भी उसमें कोई आपत्ति नहीं थी। 
विशाल स छुटकारा पाने के ढाई साल बाद निष्ठा की शादी बड़े ही धामधुम से अभिषेक के साथ हुई। प्रकाशभाई और सिमताबेन भी उसे दामाद के रूप में पयकर खुश है। आज निष्ठा और अभिषेक पुणे में अपने कैरियर के साथ सुखी दाम्पत्यजीवन बिता रहे हैं।
सारांश :- 
कोई भी रिश्ता जिंदगी में आखरी नहीं होता और प्यार सिर्फ एक बार नहीं होता। अपने आप को दूसरा मौका दीजिये। 

लड़कियों के लिए खास ऐसे लालची लोगों को पहचानिए और बेकार में ही शादी के नाम पर पेरेंट्स से बेशुमार खर्चे ना करवाएं। समय रहते उससे बाहर निकल जाये।

पेरेंट्स के लिए भी लोग क्या कहेंगे उसकी परवाह किये बिना अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचे। आज दुनिया के डर से रिश्ते में बंध भी गए तो कल को कोई मुसीबत आयी तो दुनियावाले बचाने नहीं आएंगे। इसलिए अपने बच्चों का साथ दीजिये। जिंदगी के आखरी वक़्त तक वही आपके साथ रहेंगे फिर चाहे वो बेटा हो या बेटी।

कैसी लगी मेरी ये रचना उस विषय में अपने प्रतिभाव हमसे ज़रूर बांटिए।





आईना- भारत


बे - मौसम वो बारिश का सबब बनाते हैं l
हिज़ाब में चाँद छुपाके धूप में निकल जाते है ||

तबस्सुम होठों को छूके निकल जाती है |
वो बेवजह खुद को साजिंदा दिखाते है ||

तल्खियां -इ- इश्क की अब परवाह नहीं |
हवाओं के झोकें भी नश्तर चुभाते है ||

उन्हें आदत नहीं प्यार जताने की |
हम तग़ाफ़ुल के डर से छुपाते है ||

जो प्यार की चाह में दर दर चकते रहे  |
वो आज हमें नमक का स्वाद बताते है ||

मोहब्बत का असर उनके चेहरे पे दिखता है |
वो आईने के सामने खुद से छुपाते है ||






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'me too' (मैं भी)-खयालात- सदन झा


आजकल वैश्विक स्तर पर 'me too' (मैं भी) अभियान चल रहा है। लड़कियां, महिलाएं, यौन अल्पसंख्यक तथा यौनउत्पीड़ित पुरुष हर कोई अपने साथ हुई यौन हिंसा को बेबाकी से, सार्वजनिक रुप में दर्ज कर रहे हैं। अपने ऊपर हुए हिंसा की स्वीकृति दरअसल एक सार्वभौमिक समुदाय का रुप अख्तियार कर रहा है।
अन्य प्रगतिशील कदमों की ही तरह यह पहल भी स्त्रियों की तरफ से ही आया है। परन्तु जैसा कि इस मुहिम में शामिल लिख भी रहे हैं कि यौन हिंसा के शिकार स्त्री पुरुष दोनो ही हुआ करते हैं। ऐसे में एक बेहतर और सुरक्षित समाज के निर्माण के लिये यह आवश्यक है कि हमारा लिंग चाहे जो भी हो, हमारी इच्छाओं का रंग जो भी, हम चाहे जिस सामाजिक पायदान पर हो और जिस किसी भौगोलिक धरातल पर खड़े हों वहीं से इस मुहिम में शामिल हों।
इस मुहिम का हिस्सा बनने से अपने ऊपर हुई हिंसा की आत्म स्वीकृति से इतना तो तय है कि हममें उस हिंसा से उपजे डर का सामना करने की हिम्मत जगती है। चुपचाप सहते जाने से जो अंधकार का माहौल बनता है वह टूटता है।हम दुनिया के साथ अपने आत्म को यह संदेश देते हैं कि हमारे साथ जो हुआ वह गलत तो था ही पर, साथ ही वहीं उस लम्हे जिंदगी खत्म नहीं हो जाती। कि हम वहीं अटक कर, थमकर नहीं रह गये। कि हमारे यौन हत्यारे हमारी हत्या करने की तमाम घिनौनी करतुतों के बाद भी हमारे वजूद को नेस्तनाबूत करने में नाकामयाब रहे। कि उनके तमाम मंशाओं को मटियामेट करता मेरा देह और मेरा मन मेरा ही है। इस आत्म अभियक्ति और मुहिम का हिस्सा बनने से इतनी उम्मीद तो की ही जा सकती है कि हमारा चेतन भविष्य में दूसरे के प्रति यौन हिंसा का पाप करने से हमें रोके।
जैसा कि मैंने ऊपर भी लिखा 'मी टू' हमें अपनी जिंदगी के अंधकार का सामना करने में मदद करता है। हम उन शक्तियों के खिलाफ एकजूट होते हैं जो इस अंधेरे का निर्माण करते हैं। जो अंधकार को संजोये रखना चाहते। ये अंधेरे के पुजारी हमारे चारो तरफ पसरे होते हैं। इनकी शक्तियां कुछ कदर संक्रामक हुआ करती है कि हमें पता भी नहीं चलता और कि कब यह हिंसा हमारे भीतर उग आता है। हम शोषित से शोषक हो जाते हैं। इस कायांतरण से बचने के लिये भी 'मी टू' मददगार हो सकता है।
आजकल हम भारत में दीपों का उत्सब मना रहे हैं। तमसो मा ज्योर्तिगमय कहते हमारी जिह्वा कभी थकती नहीं। पर, क्या हमें अहसास है कि ऐसे त्योहारों और खुशियों के मौके पर कितने ही हिंसक पशु अपने शिकार की तलाश में जुगत लगाये रहते हैं? हमें देह, नेह और गेह को इनसे सुरक्षित रखने की जरुरत है। इस दीपाबली और उसके परे भी हमें अपने अंदर उग आये अंधकार का प्रतिकार करने की जरुरत है।
यह दुखद है कि जहां वैश्विक स्तर पर इतना कुछ हो रहा है हिंदी जगत और मीडिया की दुनिया इसको तबज्जो नहीं दे रहा। पर, हम औरों की परबाह करे क्यों? वहां जो अंधकार के पुजारियों का कब्जा है उनसे उम्मीद भी कितनी रखें? हम खुद ही तो सक्षम हैं यह कहने को कि 'मी टू'।

शुक्रवार, 30 मार्च 2018

हमारे सिम्बाजी- फलसफे- पूनम मिश्रा



इस महीने हमने एक विशिष्ट जन्मदिन मनाया। हमारा  सिम्बा दस  साल का हो गया । वो फर का गोला अब बूढा हो चला। कुत्तों के लिहाज़ से दस  साल वृद्धावस्था है। खास कर उस जैसे बड़ी कद काठी वाली नस्ल के लिए जिनकी उम्र कम ही होती है।अब उसकी हरकतों में भी बुढ़ापा झलकता है। रात में कराहता है। कई कई बार उठता है। वो हमारे ही कमरे में सोता है और मैं महसूस करती हूँ कि वह बहुत चहलकदमी कर रहा है। कई बार मेरे सिरहाने अपना मुंह रख देता है। मनुष्यों की तरह ही हर कुत्ते की अपनी अलग आदतें और व्यक्तित्व होता है। सिम्बा कभी बिस्तर पर सोना नहीं चाहता। उसका अपना एक गद्दा है और अगर रात में वह नहीं बिछा है तो वह दरवाज़े पर खड़ा होकर या तो इंतज़ार करेगा या फिर शिकायत भरी दृष्टि से हमें देखेगा। उसको लोगों के साथ रहना अच्छा तो लगता है पर अपना एकांत भी प्यारा है। लिहाज़ा वह कुछ देर पास बैठने के बाद या फिर प्यार दिखाने के बाद  दूर चला जाता है। यही हाल होता है जब घर में मेहमान आये हों। हम अगर उसे घर आने वाले हर आगंतुक से न मिलवाएं तो वह नाराज़ हो जाता है। इसमें परेशानी यह होती कि है हर मेहमान सिम्बा की नज़दीकी से सहज नहीं होता। जबकि वह है कि  सिर्फ सूंघ कर सबसे जान पहचान कर एक किनारे बैठ जाता है। वह सेंट बर्नार्ड है जो देखने में भारी भरकम होते हैं पर दिल के बहुत कोमल। उसे देखकर लोग डर जाते हैं। पर उस सफ़ेद और काले बाल वाले भीमकाय शरीर में धड़कता दिल बहुत प्यारा है। उस प्यार का इज़हार भी पल पल  में करता रहता है। आप कहीं भी बैठे  हों अचानक  आपकी गोद में एक गुदगुदी सी होगी। धीरे से एक नाक ,फिर एक सिर आपकी गोद में आएगा और फिर पूरा शरीर उसमें बैठने की कोशिश कर रहा होगा। सोचिये एक ५५-६० किलो का वजन किसी भी तरह उसमें समाने की कोशिश कर रहा हो।  अगर आप उसे सहलाते नहीं तो वह पंजा मारकर आपको अपने होने का एहसास दिलाएगा । यह स्नेह खाना खाने के बाद और भी मुखर हो जाता है। अभी तो वह सिर्फ गोद में सिर रख देता है या पास आ कर सटता जाता है। पर एक साल पहले तक वह अपनी गीली दाढी लिए ऊपर ही चढ़ जाता था। और दो पैरों पर खड़ा सिम्बा हम से लम्बा ही है। वह उछल कर हमारे कन्धों पर अपने आगे के दोनों पैर टिका देता और चाहता कि हम उस सहलाएं या गले लगाएं । हम सब सावधान रहते हैं उसे प्यार वाले मूड देखते थे तो जाते  या तो ज़मीन पर पैर जमा देते। नहीं तो गिरना पक्का था।
     मुझे याद आ रहा है। वह तीन महीने का था जब  हमारे पास आया था। उस समय परिस्थितयां ऐसी विषम हीं कि मैं उसे घर में लाने के निर्णय से बिलकुल  सहमत  नहीं थी और नाराज़ भी। पर कुछ ही महीनों में  वह  झबरीले  पिल्ला  दिल में आकर बैठ गया। वह  इस बात से ज़रा भी निरूत्साहित  नहीं था कि मैं उससे रूखा व्यवहार कर रही हूँ।  वह पूंछ हिलाते प्यार के लिए पहुँच ही जाता। तब से  वह परिवार का सदस्य है और अपने को हमसे अलग नहीं मानता। वह  हमारी हर गतिविधि में शामिल होता है। अगर बाहर जा रहे हों तो पहले कार के पास खड़ा हो जाता है। यह मुमकिन नहीं कि उसे हर जगह ले जाया जाए पर उसे घर छोड़ते हुए जितनी निराशा उसे होती उससे कहीँ अधिक दुःख हम सबको। खासकर जब हमें कहीं शहर से बाहर जाना होता है । उस तक यह बात पहुँचाना असंभव है की हम अमुक दिन वापस आएंगे। वह भी  मुँह लटकाकर बैठ जाता है और  उसकी पूँछ  पैरों के बीच छुप जाती है। अगर उसने कहीं सूटकेस देख लिया तो उसकी बैचैनी का कोई अंत नहीं।  वह उसी के पास बैठा या लेटा रहेगा। वैसे अगर घर में किसी की तबीयत खराब होती है तो भी वह उस सदस्य के पास से  नहीं हटता है। 
   सेंत बर्नार्ड नस्ल के कुत्ते स्विट्ज़रलैंड में पाये जाते हैं और उनके बारे में मशहूर है कि वह पहाड़ों में बर्फ में दबे लोगों को खोजने में बहुत मदद करते थे।इनकी सूंघने की शक्ति बहुत विक्सित है और यह बर्फ में बहुत नीचे दबे लोगों का भी सूंघ कर पता लगा सकते हैं। एक से डेढ़ फुट ऊंचा,लंबे बालों वाला ,शक्तिशाली और वजनदार  यह कुत्ता बहुत ही नरम,वफ़ादार और दोस्ताना मिजाज़ का होता है। इसके बाल काले और सफ़ेद होते हैं या फिर भूरे और सफ़ेद होते हैं। हमारा सिम्बा काला और सफ़ेद है। उसे देख कर लगता कि वह अपना कम्बल साथ ले कर चल रहा हो। उसकी दुम काफी घनी और दमदार है और अगर सिम्बा ने खुशी से पूंछ घुमाई तो समझ लीजिये कि आसपास रखी चीज़ें तो ज़रूर टूटेंगी। 
    एक बड़ी दिलचस्प बात यह भी है कि उसे भुट्टे खाने का बड़ा शौक है। वह बड़े चाव से खाता है और अगर हम भुट्टा खा रहे हैं तो वह घर में वह कहीं भी है ,दौड़ा चला आएगा। इसलिए जब भी भुट्टा आता है उसके लिए अलग से एक आता है। वैसे वह दूध रोटी  ,दही,पनीर का पानी और मटन पसंद करता है। उसकी एक अच्छी आदत है  कि वह बड़े ही अनुशासित तरीके से अपने नियत समय , खाने वाली जगह पर ही खाना खाता है। सवेरे छह बजते ही वह अपनी नाक मेरे मुंह के पास सटा देता है। हमारा मॉर्निंग अलार्म वह ही है। चलो मुझे बाहर निकालो , घुमाओ और मेरा खाना दो। 
   हमें लगता है कि हमारी दिनचर्या उसी के इर्द गिर्द घूमती है। थोड़ी देर के लिए  दिखाई न पड़े तो उसकी खोज शुरू हो जाती है। सब लोग ऑफिस से लौटने पर सबसे पहले उसको सहलाते हैं नहीं तो वह अपने भौंकने के अंदाज़ से नाराज़गी जता देता है। कोई कितना भी  परेशान हो ,परिवार के इस सदस्य का दुलार हर पीड़ा को हल्का कर देता है। प्यार भी बिलकुल अथाह और बेशर्त। वह बूढा होने पर भी बच्चा है ,हमारी भाषा न बोल पाने के बावजूद सर्वाधिक अभिव्यंजक है और सच तो यह है कि उसके बिना सब कुछ अधूरा लगता है।
     

दरख्ताें के भीतर भी छिपा है प्रेम- मीडिया डाक्टर- डा. प्रवीण चाेपड़ा



किसी भी जगह जाऊं तो वहां का पुराना शहर, पुराने घर और उन की घिस चुकीं ईंटें, वहां रहने वाले बुज़ुर्ग बाशिंदे जिन की चेहरों की सिलवटों में पता नहीं क्या क्या दबा पड़ा होता है और इस सब से साथ साथ उस शहर के बड़े-बड़े पुराने दरख्त मुझे बहुत रोमांचित करते हैं।
आज दरख्तों की बात करते हैं...पंजाब हरियाणा में जहां मैंने बहुत अरसा गुज़ारा...वहां मैंने दरख्तों के साथ इतना लगाव देखा नहीं या यूं कह लें कि पेड़ों को सुरक्षित रखने वाला ढांचा ही ढुलमुल रहा होगा ..शायद मैंने वहां की शहरी ज़िंदगी ही देखी है..गांवों में शायद दरख्तों से मुहब्बत करते हों ज़्यादा... पता नहीं मेरी याद में तो बस यही है कि जैसे ही सर्दियां शुरू होती हैं वहां, बस वहां पर लोग पेड़ों को छंटवाने के नाम पर कटवाने का बहाना ढूंढते हैं..

मुझे बचपन की यह भी बात याद है कि दिसंबर जनवरी के महीनों में अमृतसर में हातो आ जाते थे (कश्मीरी मजदूरों को हातो कहते थे वहां ...जो कश्मीर में बर्फबारी के कारण मैदानों में आ जाते थे दो चार महीनों के लिए काम की तलाश में)...वे पेड़ों पर चढ़ते, कुल्हाड़ी से पेड़ों को काटते-छांटते और और फिर उस लकड़ी के छोटे छोटे टुकडे कर के चले जाते ...इन्हें जलाओ और सर्दी भगाओ....इस काम के लिए वे पंद्रह-बीस-तीस रूपये लेते थे .. यह आज से ४०-४५ साल पहले की बात है।

हां, तो बात हो रही थी दरख्तों की ....मैं तो जब भी किसी रास्ते से गुज़रता हूं तो बड़े बडे़ दरख्तों को अपने मोबाइल में कैद करते निकलता हूं और अगर वे पेड़ रास्तों में हैं तो उस जगह की सरकारों की पीढ़ियों को मन ही मन दाद देता हूं कि पचास-सौ साल से यह पेड़ यहां टिका रहा, अद्भुत बात है, प्रशंसनीय है ...वह बात और है कि इस में पेड़ प्रेमियों के समूहों का भी बड़ा योगदान होता है...वे सब भी तारीफ़ के काबिल हैं...
हम लोग कहां से कहां पहुंच चुके हैं ...कल मैंने एक स्क्रैप की दुकान के बाहर एक बढ़िया सा फ्रेम पडा़ देखा...बिकाऊ लिखा हुआ था ... खास बात यह थी कि इस फ्रेम में एक बुज़ुर्ग मोहतरमा की तस्वीर भी लगी हुई थी .. पुराने फ्रेम को बेचने के चक्कर में उन्होंने उस बुज़ुर्ग की तस्वीर निकाल लेना भी ज़रूरी नहीं समझा...होगी किसी की दादी, परदादी , नानी तो होगी..लेकिन गई तो गई ...अब कौन उन बेकार की यादों को सहेजने के बेकार के चक्कर में पड़े..
ऐसे माहौल में जब मैं घरों के अंदर घने, छायादार दरख्त लगे देखता हूं तो मैं यही सोचता हूं कि इसे तो भई कईं पीढ़ियों ने पलोसा होगा... चलिए, बाप ने लगाया तो बेटे तक ने उस को संभाल लिया..लेकिन कईं पेड़ ऐसे होते हैं जिन्हें देखते ही लगता है कि इन्हें तो तीसरी, चौथी और इस से आगे की पीढ़ी भी पलोस रही है ....मन गदगद हो जाता है ऐसे दरख्तों को देख कर ...ऐसे लगता है जैसे उन के बुज़ुर्ग ही खड़े हों उस दरख्त के रूप में ...

मैं जब छोटा सा था तो मुझे अच्छे से याद है मेरे पापा मुझे वह किस्सा सुनाया करते थे ...कि एक बुज़ुर्ग अपने बाग में आम का पेड़ लगा रहा था, किसी आते जाते राहगीर ने ऐसे ही मसखरी की ...अमां, यह इतने सालों बाद तो फल देगा... तुम इस के फल खाने तक जिंदा भी रहोगे, ऐसा यकीं है तुम्हें?

उस बुज़ुर्ग ने जवाब दिया....बेटा, मैं नहीं रहूंगा तो क्या हुआ, मेरे बच्चे, बच्चों के बच्चे तो चखेंगे ये मीठे आम!

मुमकिन है यह बात आप ने भी कईं बार सुनी होगी..लेकिन जब हम लोग अपने मां-बाप से इस तरह की बातें बचपन में सुनते हैं तो वे हमारे ऊपर अमिट छाप छोड़ जाती हैं...

यही विचार आ रहा है कि हम लोग अाज के बच्चों को पेड़ों से मोहब्बत करना सिखाएं....दिखावा नहीं, असली मोहब्बत ...दिखावा तो आपने बहुत बार देखा होगा ..


एक दिखावे की तस्वीर दिखाएं ... इसे अन्यथा न लें (ले भी लें तो ले लें, क्या फ़र्क पड़ता है!😀) शायद ऐसा होता ही न हो, एक लेखक की कल्पना की उड़ान ही हो...जैसा भी आप समझें, एक बार सुनिए ...जी हां, फलां फलां दिन पेड़ लगाए जायेंगे। जब पेड़ लगाने कुछ हस्तियां आती हैं.. उन के साथ उन का पूरा स्टॉफ, पूरे ताम-झाम के साथ, किसी ने पानी की मशक थामी होती है, किसी ने उन के नाम की तख्ती, किसी ने डेटोल लिक्विड सोप, किसी ने तौलिया ...और ऊपर से फोटो पे फोटो ...अगले दिन अखबार के पेज तीन पर छापने के लिए....अब मेरा प्रश्न यह है कि वे पेड जो ये लोग लगा कर जाते हैं वे कितने दिन तक वहां टिके रहते हैं...कभी इस बात को नोटिस करिएगा....

यह तो हो गई औपचारिकता....और दूसरी तरफ़ एक बच्चा घर से ही सीख रहा है ...कि कैसे पौधे को रोपा जाता है, कैसे उसे पानी दिया जाता है, कितना पानी चाहिए, खाद की क्या अहमियत है .. और ऐसी बहुत सी बातें ...

बात लंबी हो रही है, बस यही बंद कर रहा हूं इस मशविरे के साथ कि ....We all need to celebrate trees!! दरख्त हमारे पक्के जिगरी दोस्त हैं, इन के साथ मिल कर जश्न मनाते रहिए, मुस्कुराते रहिेए...

गुरुवार, 29 मार्च 2018

मेरे मन के भीतर भी- (यादाें में)- ब्रजेश वर्मा



मेरे मन के 
भीतर ,भी हाँ 
एक ,सितारा जलता है
दुनियां भर ,को 
छोड़ के ये बस ,एक 
किनारे चलता है

हँसता है 
रोता ,भी है 
कभी-कभी ,गाता भी है
मेरे मन के 
भीतर ,भी हाँ 
एक ,सितारा जलता है

है थोड़ा-सा ,आलसी 
जुगनू जैसे 
रोशन ,होता है

जितनी चाहिए ,रौशनी 
बस उतना ही 
जगमग होता है


मेरे मन के 
भीतर ,भी हाँ 
एक ,सितारा जलता है-२

कोयल की कु-कू 

भी सुनता ,शोर 
पपीहे वाले भी

रातों को है ,जागता 
तो दिन को 
सो ,भी लेता है 

मेरे मन के 
भीतर ,भी हाँ 
एक ,सितारा जलता है-२

क्रोध-ख़ुशी-दुःख भी है 
होता ,सब कुछ 
थोडा-थोडा सा 
कभी-कभी अभिव्यक्ति 
है देता ,सोच-समझ 
के थोडा-सा

मेरे मन के 
भीतर ,भी हाँ 
एक ,सितारा जलता है-२।

यहाँ ज़माने भर 
के गम भी 
थोड़े-थोड़े पलतें हैं
खुशियों के ,उन्मादों 
संग घुलमिल ,के 
वो रहते है


मेरे मन के 
भीतर ,भी हाँ 
एक .सितारा जलता है-२


कभी-कभी ,चंचल 
सा है ,कभी-कभी 
कुछ बूढा सा

मुझ जैसा ,ही है 
मुझसे अलग 
है ,स्वतंत्र मनमौजी-सा

मेरे मन के 
भीतर ,भी हाँ 
एक ,सितारा जलता है
दुनियां भर ,को 
छोड़ के ये बस ,एक 
किनारे चलता है

www.yaadonme.blogspot.in




Special Post

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