शनिवार, 31 मार्च 2018

आईना- भारत


बे - मौसम वो बारिश का सबब बनाते हैं l
हिज़ाब में चाँद छुपाके धूप में निकल जाते है ||

तबस्सुम होठों को छूके निकल जाती है |
वो बेवजह खुद को साजिंदा दिखाते है ||

तल्खियां -इ- इश्क की अब परवाह नहीं |
हवाओं के झोकें भी नश्तर चुभाते है ||

उन्हें आदत नहीं प्यार जताने की |
हम तग़ाफ़ुल के डर से छुपाते है ||

जो प्यार की चाह में दर दर चकते रहे  |
वो आज हमें नमक का स्वाद बताते है ||

मोहब्बत का असर उनके चेहरे पे दिखता है |
वो आईने के सामने खुद से छुपाते है ||






#http://bharatiyengar.blogspot.in


Special Post

विदा - कविता- डा. अनुजा भट्ट

विदा मैं , मैं नहीं एक शब्द है हुंकार है प्रतिकार है मैं का मैं में विलय है इस समय खेल पर कोई बात नहीं फिर भी... सच में मुझे क्रि...