बे - मौसम वो बारिश का सबब बनाते हैं l
हिज़ाब में चाँद छुपाके धूप में निकल जाते है ||
तबस्सुम होठों को छूके निकल जाती है |
वो बेवजह खुद को साजिंदा दिखाते है ||
तल्खियां -इ- इश्क की अब परवाह नहीं |
हवाओं के झोकें भी नश्तर चुभाते है ||
उन्हें आदत नहीं प्यार जताने की |
हम तग़ाफ़ुल के डर से छुपाते है ||
जो प्यार की चाह में दर दर चकते रहे |
वो आज हमें नमक का स्वाद बताते है ||
मोहब्बत का असर उनके चेहरे पे दिखता है |
वो आईने के सामने खुद से छुपाते है ||
#http://bharatiyengar.blogspot.in