क्यों बैठी है सर को झुकाये,कमरे की बत्ती बुझाये.......
आंखें क्यों चुराए ज़माने से, क्यों शरमाए, क्यों घबराए.......
दिल के खिड़की दरवाजों को तू खोल दे, हवा सरसरा ने दे
कुछ गीत खुशी के गुनगुना,खुद को मुस्कुराने दे|
आसमां को कदमों में झुक जाना होगा, जरा जोर तो लगा|
तारों को आंचल तक आना होगा,अपनी बाहें तो फैला|
क्यों रीतियां-कुरीतियां बनी है सिर्फ औरत के लिए.
तूने हर एक को खुशी ही दी, और गम चुने अपने लिए|
रूढ़िवादी विचारधाराए तू छोड़ दे,
लकीर का फकीर ज़माना जिन पर चले|
अपने बुलंद हौसलों से तू लिख खुद अपनी इबारते,
जो तू चले तो जग चले, जो तू रुके तो जहां भी थम जाये|
अफवाहें, ताने, रोक-टोक तू सबकुछ पीछे छोड़ दे
जो बुरी नजर से है ताड़े, उनआंखों को तू फोड़ दे|
पौरुष का दम भरने वाला, अंधा समाज है भूल गया
जननी भी तू, अग्नि भी तू| दुर्गा,लक्ष्मी,काली भी तू|
जग तुझसे है,तू जग से नही, सब को बतलाना होगा|
उड़ रंग-बिरंगी तितली सी,हर फूल सजाना होगा|
आसमां को कदमों में झुक जाना होगा, ज़रा ज़ोर तो लगा|
तारों को आंचल तक आना होगा, अपनी बांहे तो फैला|
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