रविवार, 9 सितंबर 2018

कोरा कागज से कलाकार तक का सफर- शकीला शेख


शकीला शेख कोलकाता से 30 किलोमीटर दूरी पर 24 परगना जिले के सूरजपुर गांव में रहती हैं। वह अपना एक प्राइवेट स्टूडियो चलाती हैं जहां वे अपनी कलाकारी करती रहती हैं। अपने कॉलाज आर्ट के लिए दुनियाभर में प्रसिद्धि हासिल कर चुकीं शकीला एक गृहिणी भी हैं। उनकी कला को भारत के अलावा अमेरिका, यूरोप, नॉर्वे, फ्रांस में सराहा जा चुका है। एक सब्जी बेचने वाली मां की बेटी शकीला ने 1990 में अपना पहला एग्जिबिशन लगाया था जिसमें उन्हें 90,000 रुपये मिले थे।

शकीला का बचपन अभावों और मुश्किल हालात में बीता। अपने 6 भाई बहनों में वह सबसे छोटी थीं। जब वे महज एक साल की थीं तो उनके पिता उन्हें छोड़कर घर से चले गए। इसके बाद घर चलाने की जिम्मेदारी उनकी मां जेहरान बीबी पर आ गई। जेहरान हर रोज मोगराघाट से 40 किलोमीटर दूर तालताला मार्केट सब्जी बेचने जाती थीं। अपने बचपन को याद करते हुए शकीला ने #मैंअपराजिता को बताया कि वह काफी छोटी थीं इसलिए उनकी मां उन्हें काम नहीं करवाती थीं। हालांकि वह उन्हें घुमाने के लिए शहर जरूर ले जाती थीं।
वह बताती हैं, 'जब मेरी मां मुझे घुमाने ले जाती थीं तो सड़कों पर चल रहीं ट्रॉम और बस देखकर मुझे काफी खुशी होती थी। जब मेरी मां सब्जी बेच रही होतीं तो मैं उनके बगल में ही सो जाती।' कला के क्षेत्र में आने के बारे में वह कहती हैं कि यह शहर में ही रहने वाले बलदेव राज पनेसर की बदौलत संभव हो पाया जो कि एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी और एक कलाकार भी हैं। वे सब्जी लेने के लिए शकीला की मां की दुकान पर आया करते थे और खाली समय मिलने पर आसपास के बच्चों को खाने पीने की चीजें बांटा करते थे। सारे बच्चे उन्हें डिंबाबू कहकर बुलाते थे।

शकीला कहती हैं, 'बाबा मुझसे काफी प्रभावित हुए उन्होंने मेरा नाम स्कूल में लिखवाया। मैं तोलता में कक्षा 3 तक पढ़ी लेकिन इसके लिए मुझे काफी दूर का सफर करना पड़ता था। इतनी दूर का सफर करना उस वक्त किसी लड़की के लिए सुरक्षित नहीं था इसलिए बाबा ने मुझे गांव में ही पढ़ाने का फैसला किया।' हालांकि शकीला की मां हमेशा चिंता में रहती थीं क्योंकि उन्हें लगता था कि उनकी बेटी के साथ कहीं कुछ गलत न हो जाए।

12 वर्ष की उम्र में उनकी शादी करवा दी गई। उनके पति का नाम अकबर शेख है। शकीला की हालत खराब हो चली थी इसलिए उन्होंने फिर से बाबा से संपर्क किया। उन्होंने शकीला को कागज के थैले बनाने का आइडिया दिया। शकीला बलदेव राज की कलाकारी से काफी प्रभावित थीं और ऐसे ही उन्होंने अपना पहला कोलाज बनाया, जिसमें सब्जियां और फलों का प्रतिरूपण था। इसे काफी सराहना मिली और फिर 1991 में उन्होंने अपना पहला कोलाज एग्जिबिशन लगाया।

शकीला को इससे 70,000 रुपये मिले जो कि उस वक्त के हिसाब से काफी बड़ी रकम थी। इससे शकीला के घर की हालत तो सुधरी ही साथ ही उन्होंने आर्ट पर ही अपना ध्यान केंद्रित किया। उन्हें बीआर पनेसर से काफी मदद मिली। पनेसर ने शकीला को सेंटर ऑफ इंटरनेशनल मॉडर्न आर्ट से रूबरू करवाया। यह आर्ट गैलरी अब शकीला के काम को मैनेज करती है और उनकी कलाकृतियों को विदेशों में बेचने का काम भी करती है। शकीला को ललित कला अकादमी, पश्चिम बंगाल आर्ट अकादमी समेत कई सारे अवॉर्ड मिल चुके हैं।
mainaparajita@gmail.com

शनिवार, 8 सितंबर 2018

कहानी -लिहाफ- इस्मत जुगताई

जब मैं जाड़ों में लिहाफ ओढ़ती हूँ तो पास की दीवार पर उसकी परछाई हाथी की तरह झूमती हुई मालूम होती है। और एकदम से मेरा दिमाग बीती हुई दुनिया के पर्दों में दौडने-भागने लगता है। न जाने क्या कुछ याद आने लगता है।
माफ कीजियेगा, मैं आपको खुद अपने लिहाफ़ का रूमानअंगेज़ ज़िक्र बताने नहीं जा रही हूँ, न लिहाफ़ से किसी किस्म का रूमान जोड़ा ही जा सकता है। मेरे ख़याल में कम्बल कम आरामदेह सही, मगर उसकी परछाई इतनी भयानक नहीं होती जितनी, जब लिहाफ़ की परछाई दीवार पर डगमगा रही हो।
यह जब का जिक्र है, जब मैं छोटी-सी थी और दिन-भर भाइयों और उनके दोस्तों के साथ मार-कुटाई में गुज़ार दिया करती थी। कभी-कभी मुझे ख़याल आता कि मैं कमबख्त इतनी लड़ाका क्यों थी? उस उम्र में जबकि मेरी और बहनें आशिक जमा कर रही थीं, मैं अपने-पराये हर लड़के और लड़की से जूतम-पैजार में मशगूल थी।
यही वजह थी कि अम्माँ जब आगरा जाने लगीं तो हफ्ता-भर के लिए मुझे अपनी एक मुँहबोली बहन के पास छोड़ गईं। उनके यहाँ, अम्माँ खूब जानती थी कि चूहे का बच्चा भी नहीं और मैं किसी से भी लड़-भिड़ न सकूँगी। सज़ा तो खूब थी मेरी! हाँ, तो अम्माँ मुझे बेगम जान के पास छोड़ गईं।
वही बेगम जान जिनका लिहाफ़ अब तक मेरे ज़हन में गर्म लोहे के दाग की तरह महफूज है। ये वो बेगम जान थीं जिनके गरीब माँ-बाप ने नवाब साहब को इसलिए दामाद बना लिया कि वह पकी उम्र के थे मगर निहायत नेक। कभी कोई रण्डी या बाज़ारी औरत उनके यहाँ नज़र न आई। ख़ुद हाजी थे और बहुतों को हज करा चुके थे।
मगर उन्हें एक निहायत अजीबो-गरीब शौक था। लोगों को कबूतर पालने का जुनून होता है, बटेरें लड़ाते हैं, मुर्गबाज़ी करते हैं, इस किस्म के वाहियात खेलों से नवाब साहब को नफ़रत थी। उनके यहाँ तो बस तालिब इल्म रहते थे। नौजवान, गोरे-गोरे, पतली कमरों के लड़के, जिनका खर्च वे खुद बर्दाश्त करते थे।
मगर बेगम जान से शादी करके तो वे उन्हें कुल साज़ो-सामान के साथ ही घर में रखकर भूल गए। और वह बेचारी दुबली-पतली नाज़ुक-सी बेगम तन्हाई के गम में घुलने लगीं। न जाने उनकी ज़िन्दगी कहाँ से शुरू होती है? वहाँ से जब वह पैदा होने की गलती कर चुकी थीं, या वहाँ से जब एक नवाब की बेगम बनकर आयीं और छपरखट पर ज़िन्दगी गुजारने लगीं, या जब से नवाब साहब के यहाँ लड़कों का जोर बँधा। उनके लिए मुरग्गन हलवे और लज़ीज़ खाने जाने लगे और बेगम जान दीवानखाने की दरारों में से उनकी लचकती कमरोंवाले लड़कों की चुस्त पिण्डलियाँ और मोअत्तर बारीक शबनम के कुर्ते देख-देखकर अंगारों पर लोटने लगीं।
या जब से वह मन्नतों-मुरादों से हार गईं, चिल्ले बँधे और टोटके और रातों की वज़ीफाख्व़ानी भी चित हो गई। कहीं पत्थर में जोंक लगती है! नवाब साहब अपनी जगह से टस-से-मस न हुए। फिर बेगम जान का दिल टूट गया और वह इल्म की तरफ मोतवज्जो हुई। लेकिन यहाँ भी उन्हें कुछ न मिला। इश्किया नावेल और जज़्बाती अशआर पढ़कर और भी पस्ती छा गई। रात की नींद भी हाथ से गई और बेगम जान जी-जान छोड़कर बिल्कुल ही यासो-हसरत की पोट बन गईं।
चूल्हे में डाला था ऐसा कपड़ा-लत्ता। कपड़ा पहना जाता है किसी पर रोब गाँठने के लिए। अब न तो नवाब साहब को फुर्सत कि शबनमी कुर्तों को छोड़कर ज़रा इधर तवज्जो करें और न वे उन्हें कहीं आने-जाने देते। जब से बेगम जान ब्याहकर आई थीं, रिश्तेदार आकर महीनों रहते और चले जाते, मगर वह बेचारी कैद की कैद रहतीं।
उन रिश्तेदारों को देखकर और भी उनका खून जलता था कि सबके-सब मज़े से माल उड़ाने, उम्दा घी निगलने, जाड़े का साज़ो-सामान बनवाने आन मरते और वह बावजूद नई रूई के लिहाफ के, पड़ी सर्दी में अकड़ा करतीं। हर करवट पर लिहाफ़ नईं-नईं सूरतें बनाकर दीवार पर साया डालता। मगर कोई भी साया ऐसा न था जो उन्हें ज़िन्दा रखने लिए काफी हो। मगर क्यों जिये फिर कोई? ज़िन्दगी! बेगम जान की ज़िन्दगी जो थी! जीना बंदा था नसीबों में, वह फिर जीने लगीं और खूब जीं।
रब्बो ने उन्हें नीचे गिरते-गिरते सँभाल लिया। चटपट देखते-देखते उनका सूखा जिस्म भरना शुरू हुआ। गाल चमक उठे और हुस्न फूट निकला। एक अजीबो-गरीब तेल की मालिश से बेगम जान में ज़िन्दगी की झलक आई। माफ़ कीजिएगा, उस तेल का नुस्खा़ आपको बेहतरीन-से-बेहतरीन रिसाले में भी न मिलेगा।
जब मैंने बेगम जान को देखा तो वह चालीस-बयालीस की होंगी। ओफ्फोह! किस शान से वह मसनद पर नीमदराज़ थीं और रब्बो उनकी पीठ से लगी बैठी कमर दबा रही थी। एक ऊदे रंग का दुशाला उनके पैरों पर पड़ा था और वह महारानी की तरह शानदार मालूम हो रही थीं। मुझे उनकी शक्ल बेइन्तहा पसन्द थी। मेरा जी चाहता था, घण्टों बिल्कुल पास से उनकी सूरत देखा करूँ। उनकी रंगत बिल्कुल सफेद थी। नाम को सुर्खी का ज़िक्र नहीं। और बाल स्याह और तेल में डूबे रहते थे। मैंने आज तक उनकी माँग ही बिगड़ी न देखी। क्या मजाल जो एक बाल इधर-उधर हो जाए। उनकी आँखें काली थीं और अबरू पर के ज़ायद बाल अलहदा कर देने से कमानें-सीं खिंची होती थीं। आँखें ज़रा तनी हुई रहती थीं। भारी-भारी फूले हुए पपोटे, मोटी-मोटी पलकें। सबसे ज़ियाद जो उनके चेहरे पर हैरतअंगेज़ जाज़िबे-नज़र चीज़ थी, वह उनके होंठ थे। अमूमन वह सुर्खी से रंगे रहते थे। ऊपर के होंठ पर हल्की-हल्की मूँछें-सी थीं और कनपटियों पर लम्बे-लम्बे बाल। कभी-कभी उनका चेहरा देखते-देखते अजीब-सा लगने लगता था, कम उम्र लड़कों जैसा।

उनके जिस्म की जिल्द भी सफेद और चिकनी थी। मालूम होता था किसी ने कसकर टाँके लगा दिए हों। अमूमन वह अपनी पिण्डलियाँ खुजाने के लिए किसोलतीं तो मैं चुपके-चुपके उनकी चमक देखा करती। उनका कद बहुत लम्बा था और फिर गोश्त होने की वजह से वह बहुत ही लम्बी-चौड़ी मालूम होतीं थीं। लेकिन बहुत मुतनासिब और ढला हुआ जिस्म था। बड़े-बड़े चिकने और सफेद हाथ और सुडौल कमर तो रब्बो उनकी पीठ खुजाया करती थी। यानी घण्टों उनकी पीठ खुजाती, पीठ खुजाना भी ज़िन्दगी की ज़रूरियात में से था, बल्कि शायद ज़रूरियाते-ज़िन्दगी से भी ज्यादा।

रब्बो को घर का और कोई काम न था। बस वह सारे वक्त उनके छपरखट पर चढ़ी कभी पैर, कभी सिर और कभी जिस्म के और दूसरे हिस्से को दबाया करती थी। कभी तो मेरा दिल बोल उठता था, जब देखो रब्बो कुछ-न-कुछ दबा रही है या मालिश कर रही है।

कोई दूसरा होता तो न जाने क्या होता? मैं अपना कहती हूँ, कोई इतना करे तो मेरा जिस्म तो सड़-गल के खत्म हो जाय। और फिर यह रोज़-रोज़ की मालिश काफी नहीं थीं। जिस रोज़ बेगम जान नहातीं, या अल्लाह! बस दो घण्टा पहले से तेल और खुशबुदार उबटनों की मालिश शुरू हो जाती। और इतनी होती कि मेरा तो तख़य्युल से ही दिल लोट जाता। कमरे के दरवाज़े बन्द करके अँगीठियाँ सुलगती और चलता मालिश का दौर। अमूमन सिर्फ़ रब्बो ही रही। बाकी की नौकरानियाँ बड़बड़ातीं दरवाज़े पर से ही, जरूरियात की चीज़ें देती जातीं।

बात यह थी कि बेगम जान को खुजली का मर्ज़ था। बिचारी को ऐसी खुजली होती थी कि हज़ारों तेल और उबटने मले जाते थे, मगर खुजली थी कि कायम। डाक्टर,हकीम कहते, ''कुछ भी नहीं, जिस्म साफ़ चट पड़ा है। हाँ, कोई जिल्द के अन्दर बीमारी हो तो खैर।'' 'नहीं भी, ये डाक्टर तो मुये हैं पागल! कोई आपके दुश्मनों को मर्ज़ है? अल्लाह रखे, खून में गर्मी है! रब्बो मुस्कराकर कहती, महीन-महीन नज़रों से बेगम जान को घूरती! ओह यह रब्बो! जितनी यह बेगम जान गोरी थीं उतनी ही यह काली। जितनी बेगम जान सफेद थीं, उतनी ही यह सुर्ख। बस जैसे तपाया हुआ लोहा। हल्के-हल्के चेचक के दाग। गठा हुआ ठोस जिस्म। फुर्तीले छोटे-छोटे हाथ। कसी हुई छोटी-सी तोंद। बड़े-बड़े फूले हुए होंठ, जो हमेशा नमी में डूबे रहते और जिस्म में से अजीब घबरानेवाली बू के शरारे निकलते रहते थे। और ये नन्हें-नन्हें फूले हुए हाथ किस कदर फूर्तीले थे! अभी कमर पर, तो वह लीजिए फिसलकर गए कूल्हों पर! वहाँ से रपटे रानों पर और फिर दौड़े टखनों की तरफ! मैं तो जब कभी बेगम जान के पास बैठती, यही देखती कि अब उसके हाथ कहाँ हैं और क्या कर रहें हैं?

गर्मी-जाड़े बेगम जान हैदराबादी जाली कारगे के कुर्ते पहनतीं। गहरे रंग के पाजामे और सफेद झाग-से कुर्ते। और पंखा भी चलता हो, फिर भी वह हल्की दुलाई ज़रूर जिस्म पर ढके रहती थीं। उन्हें जाड़ा बहुत पसन्द था। जाड़े में मुझे उनके यहाँ अच्छा मालूम होता। वह हिलती-डुलती बहुत कम थीं। कालीन पर लेटी हैं, पीठ खुज रही हैं, खुश्क मेवे चबा रही हैं और बस! रब्बो से दूसरी सारी नौकरियाँ खार खाती थीं। चुड़ैल बेगम जान के साथ खाती, साथ उठती-बैठती और माशा अल्लाह! साथ ही सोती थी! रब्बो और बेगम जान आम जलसों और मजमूओं की दिलचस्प गुफ्तगू का मौजूँ थीं। जहाँ उन दोनों का ज़िक्र आया और कहकहे उठे। लोग न जाने क्या-क्या चुटकुले गरीब पर उड़ाते, मगर वह दुनिया में किसी से मिलती ही न थी। वहाँ तो बस वह थीं और उनकी खुजली!

मैंने कहा कि उस वक्त मैं काफ़ी छोटी थी और बेगम जान पर फिदा। वह भी मुझे बहुत प्यार करती थीं। इत्तेफाक से अम्माँ आगरे गईं। उन्हें मालूम था कि अकेले घर में भाइयों से मार-कुटाई होगी, मारी-मारी फिरूँगी, इसलिए वह हफ्ता-भर के लिए बेगम जान के पास छोड़ गईं। मैं भी खुश और बेगम जान भी खुश। आखिर को अम्माँ की भाभी बनी हुई थीं।

सवाल यह उठा कि मैं सोऊँ कहाँ? कुदरती तौर पर बेगम जान के कमरे में। लिहाज़ा मेरे लिए भी उनके छपरखट से लगाकर छोटी-सी पलँगड़ी डाल दी गई। दस-ग्यारह बजे तक तो बातें करते रहे। मैं और बेगम जान चांस खेलते रहे और फिर मैं सोने के लिए अपने पलंग पर चली गई। और जब मैं सोयी तो रब्बो वैसी ही बैठी उनकी पीठ खुजा रही थी। 'भंगन कहीं की!' मैंने सोचा। रात को मेरी एकदम से आँख खुली तो मुझे अजीब तरह का डर लगने लगा। कमरे में घुप अँधेरा। और उस अँधेरे में बेगम जान का लिहाफ ऐसे हिल रहा था, जैसे उसमें हाथी बन्द हो!
''बेगम जान!'' मैंने डरी हुई आवाज़ निकाली। हाथी हिलना बन्द हो गया। लिहाफ नीचे दब गया।
''क्या है? सो जाओ।''
बेगम जान ने कहीं से आवाज़ दी।
''डर लग रहा है।''
मैंने चूहे की-सी आवाज़ से कहा।
''सो जाओ। डर की क्या बात है? आयतलकुर्सी पढ़ लो।''
''अच्छा।''
मैंने जल्दी-जल्दी आयतलकुर्सी पढ़ी। मगर 'यालमू मा बीन' पर हर दफा आकर अटक गई। हालाँकि मुझे वक्त पूरी आयत याद है।


'तुम्हारे पास आ जाऊँ बेगम जान?''
''नहीं बेटी, सो रहो।'' ज़रा सख्ती से कहा।
और फिर दो आदमियों के घुसुर-फुसुर करने की आवाज़ सुनायी देने लगी। हाय रे! यह दूसरा कौन? मैं और भी डरी।
''बेगम जान, चोर-वोर तो नहीं?''
''सो जाओ बेटा, कैसा चोर?''
रब्बो की आवाज़ आई। मैं जल्दी से लिहाफ में मुँह डालकर सो गई।

सुबह मेरे जहन में रात के खौफनाक नज़्ज़ारे का खयाल भी न रहा। मैं हमेशा की वहमी हूँ। रात को डरना, उठ-उठकर भागना और बड़बड़ाना तो बचपन में रोज़ ही होता था। सब तो कहते थे, मुझ पर भूतों का साया हो गया है। लिहाज़ा मुझे खयाल भी न रहा। सुबह को लिहाफ बिल्कुल मासूम नज़र आ रहा था।
मगर दूसरी रात मेरी आँख खुली तो रब्बो और बेगम जान में कुछ झगड़ा बड़ी खामोशी से छपरखट पर ही तय हो रहा था। और मेरी खाक समझ में न आया कि क्या फैसला हुआ? रब्बो हिचकियाँ लेकर रोयी, फिर बिल्ली की तरह सपड़-सपड़ रकाबी चाटने-जैसी आवाज़ें आने लगीं, ऊँह! मैं तो घबराकर सो गई।

आज रब्बो अपने बेटे से मिलने गई हुई थी। वह बड़ा झगड़ालू था। बहुत कुछ बेगम जान ने किया, उसे दुकान करायी, गाँव में लगाया, मगर वह किसी तरह मानता ही नहीं था। नवाब साहब के यहाँ कुछ दिन रहा, खूब जोड़े-बागे भी बने, पर न जाने क्यों ऐसा भागा कि रब्बो से मिलने भी न आता। लिहाज़ा रब्बो ही अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ उससे मिलने गई थीं। बेगम जान न जाने देतीं, मगर रब्बो भी मजबूर हो गई। सारा दिन बेगम जान परेशान रहीं। उनका जोड़-जोड़ टूटता रहा। किसी का छूना भी उन्हें न भाता था। उन्होंने खाना भी न खाया और सारा दिन उदास पड़ी रहीं।
''मैं खुजा दूँ बेगम जान?''
मैंने बड़े शौक से ताश के पत्ते बाँटते हुए कहा। बेगम जान मुझे गौर से देखने लगीं।
''मैं खुजा दूँ? सच कहती हूँ!''
मैंने ताश रख दिए।
मैं थोड़ी देर तक खुजाती रही और बेगम जान चुपकी लेटी रहीं। दूसरे दिन रब्बो को आना था, मगर वह आज भी गायब थी। बेगम जान का मिज़ाज चिड़चिड़ा होता गया। चाय पी-पीकर उन्होंने सिर में दर्द कर लिया। मैं फिर खुजाने लगी उनकी पीठ-चिकनी मेज़ की तख्ती-जैसी पीठ। मैं हौले-हौले खुजाती रही। उनका काम करके कैसी खुशी होती थी!
''जरा ज़ोर से खुजाओ। बन्द खोल दो।'' बेगम जान बोलीं, ''इधर ऐ है, ज़रा शाने से नीचे हाँ वाह भइ वाह! हा!हा!'' वह सुरूर में ठण्डी-ठण्डी साँसें लेकर इत्मीनान ज़ाहिर करने लगीं।

''और इधर...'' हालाँकि बेगम जान का हाथ खूब जा सकता था, मगर वह मुझसे ही खुजवा रही थीं और मुझे उल्टा फख्र हो रहा था। ''यहाँ ओई! तुम तो गुदगुदी करती हो वाह!'' वह हँसी। मैं बातें भी कर रही थी और खुजा भी रही थी।
''तुम्हें कल बाज़ार भेजूँगी। क्या लोगी? वही सोती-जागती गुड़िया?''
''नहीं बेगम जान, मैं तो गुड़िया नहीं लेती। क्या बच्चा हूँ अब मैं?''
''बच्चा नहीं तो क्या बूढ़ी हो गई?'' वह हँसी ''गुड़िया नहीं तो बनवा लेना कपड़े, पहनना खुद। मैं दूँगी तुम्हें बहुत-से कपड़े। सुना?'' उन्होंने करवट ली।
''अच्छा।'' मैंने जवाब दिया।
''इधर...'' उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर जहाँ खुजली हो रही थी, रख दिया। जहाँ उन्हें खुजली मालूम होती, वहाँ मेरा हाथ रख देतीं। और मैं बेखयाली में, बबुए के ध्यान में डूबी मशीन की तरह खुजाती रही और वह मुतवातिर बातें करती रहीं।
''सुनो तो तुम्हारी फ्राकें कम हो गई हैं। कल दर्जी को दे दूँगी, कि नई-सी लाए। तुम्हारी अम्माँ कपड़ा दे गई हैं।''
''वह लाल कपड़े की नहीं बनवाऊँगी। चमारों-जैसा है!'' मैं बकवास कर रही थी और हाथ न जाने कहाँ-से-कहाँ पहुँचा। बातों-बातों में मुझे मालूम भी न हुआ।
बेगम जान तो चुप लेटी थीं। ''अरे!'' मैंने जल्दी से हाथ खींच लिया।

''ओई लड़की! देखकर नहीं खुजाती! मेरी पसलियाँ नोचे डालती है!''
बेगम जान शरारत से मुस्करायीं और मैं झेंप गई।
''इधर आकर मेरे पास लेट जा।''
''उन्होंने मुझे बाजू पर सिर रखकर लिटा लिया।
''अब है, कितनी सूख रही है। पसलियाँ निकल रही हैं।'' उन्होंने मेरी पसलियाँ गिनना शुरू कीं।
''ऊँ!'' मैं भुनभुनायी।
''ओइ! तो क्या मैं खा जाऊँगी? कैसा तंग स्वेटर बना है! गरम बनियान भी नहीं पहना तुमने!''
मैं कुलबुलाने लगी।
''कितनी पसलियाँ होती हैं?'' उन्होंने बात बदली।
''एक तरफ नौ और दूसरी तरफ दस।''
मैंने स्कूल में याद की हुई हाइजिन की मदद ली। वह भी ऊटपटाँग।
''हटाओ तो हाथ हाँ, एक दो तीन...''
मेरा दिल चाहा किसी तरह भागूँ और उन्होंने जोर से भींचा।
''ऊँ!'' मैं मचल गई।
बेगम जान जोर-जोर से हँसने लगीं।

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

जैसा हाे आंखाें का रंग वैसा चुनें आईलाइनर- प्रत्यूषा नंदिनी

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 आप हमेशा काले रंग के आई लाइनर का ही इस्तेमाल करती हैं? अगर हां, तो यह सही नहीं है, आप अपने आंखों के रंग के हिसाब से अलग-अलग आई लाइनरों का भी इस्तेमाल कर सकती हैं।
1 हेजल कलर की आंखों के लिए
अगर आपकी आंखें हेजल हैं, तो ऐसे में आप आंखों को सुंदर बनाने के लिए इन पर ब्लैक कलर के आईलाइनर का इस्तेमाल कर सकती हैं। आप चाहें तो मैटेलिक गोल्ड आईलाइनर का इस्तेमाल भी कर सकती हैं। लेकिन अगर आपको किसी पार्टी में जाना है तो ऐसे में आप गोल्डन कलर के आईलाइनर का इस्तेमाल कर सकती हैं, यह आपके लुक को और बेहतर बनाने में मदद करेगा।
2 ब्राउन कलर की आंखों के लिए
ब्राउन आइज पर आप ब्लू कलर के आईलाइनर  का इस्तेमाल कर अपने लुक को आकर्षित बना सकती हैं। लेकिन अगर आप किसी ऑफिशल मीटिंग में जा रहीं हैं तो ऐसे में आप नैवी ब्लू कलर के आईलाइनर का इस्तेमाल कर सकती हैं।
3 ग्रीन कलर की आंखों के लिए
अगर आपकी आंखों का रंग हरा है तो ऐसे में आपकी आंखें दुनिया में सबसे अलग है क्योंकि दुनिया में कम ही लोग ऐसे हैं जिनकी आंखों का हरा रंग होता है। अपनी ग्रीन आंखों पर पर्पल कलर के आईलाइनर  का इस्तेमाल कर सकती हैं।
4 ग्रे कलर की आंखों के लिए
अगर आपकी आंखों का रंग ग्रे है तो ऐसे में आप इस बात को जान लें कि आपकी आंखों का रंग सबसे अलग और सबसे सुंदर है। ऐसे में आप चाहे तो रेडिश ब्राउन आईलाइनर का इस्तेमाल कर सकती हैं। यह आईलाइनर आपकी आंखों को एक अलग लुक देगा।

गुरुवार, 6 सितंबर 2018

फास्ट नहीं स्लाे हाे रहे हैं आप जानिए क्याें

वडा पाव, समोसा, पिज्‍जा,बर्गर, रोल, चौमिन,चिली, फैंच फ्राइ और कोलड्रिंक आदि ने लोगों की खानपान पर कब्जा कर लिया है। आज लोग पौष्टिक आहार को कम फास्ट फूड या जंक फूड को ज्यादा तवज्जों देने लगे हैं। लेकिन जंक फूड हमारी जिंदगी को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं आपको अंदाजा नहीं है। एक शोध की माने तो जंक फूड खाने से दिमाग में गड़बड़ी पैदा होने लगती है।

1. निरंतर फास्ट फूड के सेवन से आप शिथिल होते जाओगे। आप खुद को थका हुआ महसूस करोगे। आवश्‍यक पोषक तत्‍व जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट की कमी की वजह से फास्ट फूड आपकी उर्जा के स्तर को कम कर देता है।

2. जंक फूड का लगातार सेवन टीनेजर्स में डिप्रेशन का कारण बन सकता है। बढती उम्र में बच्‍चों कई तर‍ह के बायोलॉजिकल बदलाव आने लगते हैं। जंक फूड जैसे चौमिन, पिज्जां,बर्गर, रोल खाना बढते बच्चों के लिए एक समस्या बन सकता है और वह डिप्रेशन में भी जा सकता है।

3.मैदे और तेल से बने ये जंक फूड आपकी पाचन क्रिया को भी प्रभावित करता है। इससे कब्ज की समस्‍या उत्‍पन्‍न हो सकती है। इन खानों में फाइबर्स की कमी होने की वजह से भी ये खाद्य पदार्थ पचने में दिक्‍कत करते हैं।
4. ज्यादा से ज्यादा फास्ट फूड का सेवन करने वाले लोगों में 80 फीसदी दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। इस तरह के आहार में ज्यादा फैट होता है जो कोलेस्ट्रॉल के उच्च स्तर में भी योगदान देता है।

5. वसा से भरपूर खाद्य पदार्थ हृदय, रक्त वाहिकाओं, जिगर जैसे कई बीमारियों का कारण हैं। इससे तनाव भी बढ़ता है। कैफीन युक्त खाद्य पदार्थ (कॉफी, चाय, कोला और चॉकलेट), सफेद आटा, नमक, संतृप्त वसा, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ ये कुछ ऐसी चीजें है जो तनाव को बढ़ाने में मदद करती है।

6. फास्ट फूड या जंक फूड के नुकसान के नुकसान में एक नुकसान यह है कि फास्ट फूड से मिलने वाली अतिरिक्त कैलोरी वजन बढ़ाने का कारण बन सकती है। यह आपको मोटापे की ओर ले जा सकती है।

7. जंक फूड और फास्ट फूड के अवयव आपके प्रजनन क्षमता पर असर डाल सकता है। एक अध्ययन में पाया गया कि प्रोसेस्ड फूड में फथालेट्स शामिल हैं। फथालेट्स रसायन हैं जो आपके शरीर में हार्मोन कैसे कार्य करता है बाधित कर सकता है। इन रसायनों के उच्च स्तर के एक्सपोजर से जन्म दोष सहित प्रजनन संबंधी मुद्दों का कारण बन सकता है।

8. फास्ट फूड या जंक फूड के नुकसान में एक हानि यह है कि फास्ट फूड अल्पावधि में भूख को संतुष्ट कर सकता है, लेकिन दीर्घकालिक परिणाम कम सकारात्मक हैं। जो लोग फास्ट फूड और प्रोसेस्ड फूड खाते हैं, वे उन लोगों की तुलना में अवसाद विकसित करने की 51 प्रतिशत अधिक संभावना रखते हैं जो उन खाद्य पदार्थों को नहीं खाते हैं या बहुत कम खाते हैं।

9. फास्ट फूड और प्रोसेस्ड फूड में कार्ब और शुगर आपके मुंह में एसिड बढ़ा सकती है। ये एसिड टूथ एनामेल नष्ट कर सकती है। चूंकि टूथ एनामेल न होने की वजह से बैक्टीरिया दांतों पर अटैक करी और कैविटी का निर्माण करती है।
- सेहत ज्ञान डाटकाम 

बुधवार, 5 सितंबर 2018

रवा इडली और पेठा पनीर- नीरा कुमार


आपने अक्सर चावल से ही इडली बनाई होगी, लेकिन आज हम आपको रवा इडली की रेसिपी बताने जा रहे हैं। रवा इडली की रेसिपी बहुत आसान है। रवा इडली चावल से नहीं बल्कि सूजी से बनती है।
रवा इडली खाने में बेहद ही स्वादिष्ट और सेहत के लिहाज से भी ठीक रहती है। रवा इडली बनाने के साथ आपको सांभर बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। रवा इडली को आप चटनी के साथ भी सर्व कर सकती हैं। जानें रेसिपी-

'स्वीट स्टीम्ड इडली' के लिए सामग्री
बारीक सूजी: 1/2 कप
मैदा: 2 टेबल स्पून
दही: 4 टेबल स्पून
चीनी पावडर: 4 टेबल स्पून
कोको पावडर: दो टेबल स्पून
बेकिंग सोडा: 1/4 टी स्पून
वनीला एसेंस: 1 टी स्पून
फ्रूट सॉल्ट: 1 सैशे
रिफाइंड ऑयल: 2 टेबल स्पून
बादाम, पिस्ता, काजू टुकड़े: थोड़े से
विधिबारीक सूजी में मैदा और बेकिंग सोडा डालकर मिक्स करें। दही फेंटें।
इसमें चीनी पावडर, कोको पावडर डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें।
धीरे-धीरे करके सूजी डालकर मिक्स करें। वनीला एसेंस डालें।
यदि मिश्रण गाढ़ा लगे, तो एक टेबल स्पून दूध डाल दें।
फ्रूट सॉल्ट को तेल में मिक्स करें और मिश्रण में डालें।
अच्छी तरह हल्के हाथों से चलाएं।
मिनी इडली स्टैंड के खांचों को तेल से चिकना करें और प्रत्येक खांचे में थोड़ा-थोड़ा मेवा बुरकें, फिर मिश्रण डालें। 5-7 मिनट पकाएं।
थोड़ा ठंडा करके खांचों से बाहर निकाल लें। स्वीट स्टीम्ड इडली तैयार है।

पेठा पनीर पुडिंग' के लिए सामग्रीपनीर: 100 ग्राम
गीला वाला पेठा: 50 ग्राम
दूध: 3 टेबल स्पून
बारीक कटा पिस्ता बादाम: थोड़ा सा
इलायची पावडर: 1/2 टी स्पून
विधि
पहले पेठे और पनीर को बारीक कद्दूकस कर उसमें दूध मिला लें या पनीर, दूध और पेठे को हैंड मिक्सर से मिक्स करें ताकि सभी चीजें एकसार हो जाएं।
इस मिश्रण में छोटी इलायची पावडर मिक्स करके फ्रिज में ठंडा होने के लिए रख दें।
एक घंटे बाद छोटे-छोटे दो सर्विंग बाउल में मिश्रण डालें और ऊपर से बादाम पिस्ता की कतरनों से सजा कर सर्व करें।
 नीरा कुमार एक जानी मानी कुकरी विशेषज्ञ हैं। कुकरी से जुड़े सवाल आप हमारे मैं अपराजिता के पेज पर पूछ सकते हैं। आपके सवालाें का स्वागत हैं।

मंगलवार, 4 सितंबर 2018

मम्मी जी थाेड़ा गुस्सा कम करें- डॉ. अनुजा भट्ट

अधिकांश मम्मी, अपने बच्चाें की लापरवाही, ढीले ढाले रवैया और अनुशासनहीनता के कारण परेशान हैं। यह परेशानी बच्चे के स्कूल,जाने से पहले और स्कूल से आने के बाद शुरू हाे जाती है। एक एक बात बच्चे काे कहनी पड़ती है। स्कूल से आने के बाद हर राेज यह कहना पड़ता है, बेटा जूता सही जगह रखाे। बैग बैग की जगह रखाे। कपड़े निकालकर वाशिंग मशीन में डालाे। लेकिन हम देखते हैं बच्चा काेई बात नहीं सुनता। स्कूल में वह 10 मिनट में खा लेता है लेकिन घर में वह आराम से खाता है। मॉल जाने या फिल्म देखने की बात हाे वह फटाफट तैयार हाे जाता है अपने कपड़े खुद ढूंढ लेता है हालांकि वहां भी वह काेई काेशिश नहीं करता, जाे मिल जाए वह पहन लेता है वह ताे बाहर जाने के नाम से ही राेमांचित है। यह सब शिकायतें बहुत आम हैं। हर पेरेंट्स की हैं। अब इसके उलट बच्चाें से पूछे गलती हाेने पर मम्मी का रिएक्शन क्या हाेता है। मम्मी गुस्सा जाती हैं, डांटती हैं और मारती भी हैं। लेकिन अगर वही गलती पापा,  या बड़े करें ताे मम्मी कुछ नहीं कहती उल्टा सॉरी हीे बाेलती हैं। उदाहरण के लिए अगर मेरे कपड़े बिस्तर पर हैं ताे मां नाराज हाेती है गुस्से में कपड़े फैंक देती हैं पर पापा से कुछ नहीं कहतीं हैं, उनके कपड़े सहेजकर रख देती हैं। और अगर कभी पापा जल्दी आ जाएं और बैड पर कपड़े पड़े हाें ताे मम्मी की जगह पापा नाराज हाेते हैं और कहते हैं, कपड़े अभी तक बिस्तर में पड़े हैं तब मां साॉरी कहती हैं। जैसे पापा अ़ॉफिस जाते हैं थक कर आते हैं एेसे ही हम भी स्कूल जाते हैं और थक कर आते हैं। मम्मी का गुस्सा मुझपर ही क्याें है।
यह उदाहरण बताता है कि एक ही बात के लिए हमारे मानदंड  अलग हैं। बात एक ही है। हम हैंडिल अलग अलग तरह से कर रहे हैं ताे अनुशासन ताे बिगड़ेगा ही। अपने कपड़े सबकाे समेटकर रखने चाहिए बड़े और बच्चाें दाेनाें काे। दूसरी बात जैसा बड़े करते हैं बच्चे भी वैसा ही करते हैं। एेसे में गुस्सा करके आप खुद काे ही बीमार कर रही हैं। यह गुस्सा आपके भीतर तनाव काे पैदा कर रहा है और तनाव है कि बच्चा आपकी नहीं सुनता छाेटी छाेटी बात नहीं सुनता। हर वक्त रिलेक्स हाेकर रहता है।
अब बात खाने की करें। बच्चे बड़े हर काेई ऑफिस या स्कूल में ब्रेक में मिले समय पर खाना खाते हैं घर पर यह नियम लागू नहीं हाेता। हम घर में रिलेक्स हाेते हैं। घर का मतलब हमारे लिए आराम करने की जगह है। बच्चे भी एेसे ही साेचते हैं। एेसे में उनका कीमती समय नष्ट हाे जाता है। काेई काम समय पर पूरा नहीं हाेता वह अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाते। उनके पापा काे हर हाल में अपना टारगेट पूरा करना है तभी नाैकरी बची रह सकती है। उनकाे पैसे कमाकर लाने हैं तभी घर का खर्च और पढ़ाई लिखाई हाे सकती है। पापा काे टारगेट पूरा करना है और पापा टारगेट पूरा करते दिखाई नहीं देते क्याेंकि वह ताे घर पर रहते नहीं है। बच्चा इस दृश्य काे नहीं देख पाते इसलिए वह टारगेट काे समझ नहीं पाते। हमें उनको यही समझाना है। पापा अपना टारगेट खत्म करके ही घर आते हैं और रिलेक्स हाेना चाहते हैं और आपकाे अपना टारगेट पूरा करने के लिए स्कूल से आकर भी पढ़ाई करनी है ताकि आप जिंदगी में कुछ हासिल कर पाएं। इस तरह स्कूल से आकर अगर हर समय रिलेक्स हाेकर आप कुछ कर नहीं सकते और फिर जब समय हाथ से निकल जाएगा आपके पास काेई आप्शन नहीं बचेगा।
 आप गुस्सा करने के बजाए काेशिश करें कि किस तरह से वह आपकी बात समझ सकता है। अपने मित्रों की भी मदद लें। समस्या का हल निकालने के लिए प्रयास करें। मायूस न हाे। गुस्सा न करें।
टाइम टेबल सेट करें
रूटीन  बनाने से बच्चों को मदद  मिलती है।  टाइमटेबल स्कूल के साथ साथ घर के लिए भी जरूरी है। उसके खेल और मनोरंजन सहित प्रत्येक गतिविधि के लिए समय स्लॉट सेट करें। 1-1.15 घंटों के लिए अध्ययन करने के लिए समय अवधि निर्धारित करें। इस अवधि में 20 मिनट का अध्ययन, 5 मिनट ब्रेक स्लॉट आवंटित करें।  अपनी बात पर कायम रहें, गुस्सा न करें याद रखें कि उसे दिनचर्या का पालन करवाना है। जब वह पढ़ाई  पूरी करते हैं तो उसे स्टिकर दें। जब उसे 7 स्टिकर मिलते हैं तो उसे  अपनी तरफ से इनाम दें। दिनचर्या करने में धैर्य रखें। धीरे-धीरे यह सब दिनचर्या मदद करेगा।
 खेल खेल में स्पेलिंग और टेबल याद कराएं
 आजकल एेसे बहुत से विकल्प हैं जिनकी मदद ली जा सकती है। स्कूल की पढ़ाई से बच्चों का मन उब जाता है आप वहीं चीजें दूसरी तरह से पढ़ाने की काेशिश करें। अॉडियाे विजुअल का सहारा लें। यह एक कठिन समय है कि आप काे घर संभालने के साथ बच्चे की परवरिश और पढ़ाई पर भी ध्यान देना है। अगर आप कामकाजी हैं ताे आपके लिए थाेड़ा मुश्किल ताे है पर रास्ते बहुत सारे हैं। आप अपने राेजमर्रा के काम के साथ उसके गाेल तय कीजिए। मसलन मैंने इतने समय में यह काम किया आपने इतने समय में क्या किया।  इससे आपका काम भी हाेता जाएगा और वह भी अपना काम समय से करने लगेगा।

सोमवार, 3 सितंबर 2018

दूसराें का दिल जीतने से पहले खुद के दिल का ख्याल ऱखिए- डा. दीपिका शर्मा

रजोनिवृति के  बाद महिलाओं को  हृदय रोग का खतरा अधिक होता है।
तनाव, खानपान में अनियमितता, अपनी सेहत के प्रति अनदेखी जैसे तमाम कारण हैं, जिनके चलते महिलायें दिल की बीमारी की अधिक शिकार हो रही हैं। महिलाओं की स्थिति पुरुषों की अपेक्षा अधिक चिंताजनक हैं क्योंकि महिलाओं के मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसे रोगों की चपेट में आने के खतरे ज्यादा होते हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाओं की कोरोनरी धमनियां संकरी होती हैं। इसी वजह से उन्हें धमनियों में अवरोध आने की समस्या अधिक होती है।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं को एकमात्र लाभ एस्ट्रोजेन हार्मोन के रूप में मिलता है। जो महिलाओं के शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रॉल के स्तर को ऊपर उठाता है तथा खराब कोलेस्ट्राल के स्तर को कम करता है। लेकिन रजोनिवृति के बाद एस्ट्रोजन का स्तर घट जाता है और इसलिए इससे मिलने वाली सुरक्षा भी कम हो जाती है और रजोनिवृति के दस साल बाद महिलाओं को हृदय रोग का खतरा पुरुषों के बराबर और कई मामलों में अधिक होता है।
सामान्य जोखिम कारकों के अलावा, आज महिलाएं जीवनशैली से जुड़े अनेक अन्य कारकों के कारण भी हृदय रोगों की चपेट में आ रही हैं. इन में से कुछ में डब्बाबंद भोजन यानी प्रोसैस्ड फूड का अधिक उपभोग शामिल है जो कि संतृप्त वसा, चीनी और नमक में समृद्ध होता है. साथ ही, साबुत अनाज की कमी, उदासीन जीवनशैली और तनाव के स्तर में वृद्धि जब अन्य कौमोरबिड स्थितियों के साथ मिल जाते हैं तो महिलाओं में एस्ट्रोजेन स्तर कम होने लगता है. इसे महिलाओं के बीच हृदय रोगों में वृद्धि के लिए शीर्ष कारणों में से एक माना गया है.
जीवनशैली में बदलाव
रक्तचाप और मधुमेह पर काबू रखें : समय पर अपने रक्तचाप और शर्करा के स्तर को जांचना महत्त्वपूर्ण है. किन्हीं भी तरह की जटिलताओं से बचने के लिए इन पर नियंत्रण रखें.
व्यायाम करें- दिल को स्वस्थ रखने के लिए नियमित व्यायाम की जरूरत है। इसके लिए एरोबिक गतिविधियां, जैसे टहलना , जॉगिंग,तैराकी, साइक्लिंग आपके हृदय के लिए फायदेमंद हो सकता है। एक हफ्ते में 4 से 6 बार कार्डियो कसरत करना भी अच्छा रहता है।
मोटापा कम करें - मोटापा कई बीमारियों का कारण हो सकता है। वजन बढ़ने से रक्तचाप व कोलेस्ट्रोल की समस्या हो सकती है। इसके अलावा डायबिटीज भी हो सकता है जिससे शरीर में इंसुलिन भोजन को ऊर्जा में बदलने में मदद नहीं करता है। टाइप-2 डायबिटीज से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है।
धूम्रपान ना करें -धूम्रपान करने वाली महिला में हार्ट अटैक की संभावना धूम्रपान न करने वाली महिला से दोगुना अधिक होती है क्योंकि सिगरेट में मौजूद टौक्सीन धमनियों को सीधा प्रभावित करते हैं। जिससे धमनियों में रक्त संचार के लिए बाधाएं पैदा हो जाती हैं। धूम्रपान से खून की नलियां चिपचिपी हो जाती हैं, जिससे रक्त संचार में अधिक कठिनाई के कारण स्ट्रोक की संभावना बनी रहती है।
स्वस्थ भोजन खाएं : मोटापा दिल की बीमारी के लिए जोखिम वाले कारकों में से एक है, इसलिए स्वस्थ भोजन अपना कर वजन को काबू में रखना बेहतर है. अपने आहार में बहुत सारे ताजे फल, सब्जियां और साबुत अनाज शामिल करें.
तनाव प्रबंधन : तनाव हृदय की सेहत पर बुरा असर डालता है, इसलिए तनावमुक्त रहें.
हृदय रोग से बचाव के लिए महिलाओं को अपना खास खयाल रखना चाहिए साथ ही रजोनिवृत्ति के बाद कुछ जरूरी जांच अवश्य कराएं जिससे आप हृदय रोग के खतरों से बच सकती हैं।

रविवार, 2 सितंबर 2018

मथुरा के पेड़े-निशा मधुलिका

मथुरा के पेड़े से अच्छे और स्वादिष्ट पेड़े दुनियां भर में कहीं भी नहीं मिलते. आप यदि पारम्परिक मथुरा जी के पेड़े  का एक टुकड़ा भी चखते हैं तो कम से कम चार पेड़े से कम खाकर तो रह ही नहीं पायेंगे. आईये आज मथुरा जी के पे़ड़े बनाते हैं.

 इसे बनाने के लिये मावा और  का उपयोग होता है, मावा और  (दाने दार बूरा) आप बाजार से ला सकते हैं यदि बाजार में न मिले तो घर में भी मावा बना सकते हैं देखिये एवं  यदि आप बाजार से मावा ला रहे हैं तो दानेदार मावा लेकर आयें.

मथुरा जी के पेड़े  बनाते समय मावा को अधिक से अधिक भूना जाता है. मावा को जितना अधिक भूनेंगे बने हुये पेड़ों की शेल्फ लाइफ उतनी ही अधिक होगी. मावा भूनते समय बीच बीच में थोड़ा थोड़ा दूध या घी डालते रहते हैं जिससे इसे अधिक भूनना आसान हो जाता है. भूनते समय मावा जलता नहीं और मावा का कलर हल्का ब्राउन हो जाता है. तो आइये बनाना शुरू करते हैं मथुरा के पेड़े.
आवश्यक सामग्री
खोया या मावा - 250 ग्राम (1 कप से ज्यादा)
तगार बूरा - 200 ( 1 कप)
घी - 2-3 टेबल स्पून
छोटी इलायची - 4 - 5 (छील कर कूट लीजिये)
विधि -
मावा को क्रम्बल कर लीजिए.
पैन गरम करके उसमें क्रम्बल किया हुआ मावा डाल दीजिए. मावा को लगातार चलाते हुए मीडियम आंच पर डार्क ब्राउन होने तक भून लीजिए. मावा के हल्के ब्राउन होने पर इसमें 2 चम्मच घी डाल दीजिए और ऎसे ही बीच-बीच में मावा में घी डालते हुए मावा को डार्क ब्राउन होने तक भून लीजिए.
अगर मावा सूखा लगे तो इसमें 2 टेबल स्पून दूध डालकर मावा को लगातार चलाते हुए दूध के सूखने तक भून लीजिए. मावा के भुन जाने पर गैस बंद कर दीजिए लेकिन मावा को चलाते रहिए क्योंकि कढ़ाही गरम है.
माव के हल्के गरम रह जाने पर इसमें इलायची पाउडर और थोड़ा सा तगार पेड़ों पर लपेटने के लिए बचाकर बाकी तगार डाल दीजिए. मिश्रण को अच्छे से मिला दीजिए. पेड़े बनाने के लिये मिश्रण तैयार है.
मिश्रण से थोड़ा सा मिश्रण हाथ में लेकर गोल करके, हाथ से दबाकर पेड़े का आकार दीजिये, पेड़े को प्लेट में रखे हुये बूरे में लपेटकर प्लेट में रखते जाइए. एक एक करके सारे पेड़े इसी तरह तैयार करके प्लेट में लगाते जाइये.
स्वाद में लाज़वाब मथुरा के पेड़े (Mathura Peda) तैयार हैं. मावा को बहुत अच्छे से भूनने पर ये खुश्क हैं. इसलिए इन पेड़ों को फ्रिज में रखकर के एक महीने तक खाया जा सकता है.
सुझाव
बीच -बीच में मावा में थोड़ा-थोड़ा घी इसलिए डाला जाता है ताकि मावा जले ना.
मावा को बिल्कुल ठंडा ना होने दें, हल्के गरम रहते ही पेड़े बना लीजिए वरना मावा खिला खिला हो जाएगा और पेड़े नही बन पाएंगे.
मथुरा के पेड़े को गाय के दूध से बने मावा से बनाया जाए, तो वो नेचुरल रूप से ब्राउन बनता है. उसमें अलग से घी और दूध डालने की आवश्यकता नही होती.
मावा को कल्छी से लगातार चलाते हुए भूनिए, यह तले में लगना नही चाहिए.
साभार- निशा मधुलिका डॉट काम से

मैं पुरुष नहीं हूं, औरत हूं- उड़न परी दुती चंद

आज जिस दुती चंद काे हम उड़नपरी के नाम से जान रहे हैं क्या आपकाे मालूम है कि उनकाे यहां तक पहुंचने से पहले किन किन आराेपाें का सामना करना पड़ा। ईएएएफ ने दुती के शरीर में हाइपरैंड्रोजेनिज्म की अधिक मात्रा में पाए जाने के चलते उनपर प्रतिबंध लगा दिया था। यह हार्मोन पुरुषों वाले गुण विकसित करता है। जिसके कारण दुती पर पुरुष होने का आरोप लगाया गया था। प्रतिबंध के खिलाफ भारतीय धाविका दुती ने कैश में अपील दायर की थी। जिसके बाद कैस ने आईएएफ के नियमों के खिलाफ दुती की अपील को आंशिक तौर पर सही पाया। कैस ने हाइपरैंड्रोजेनिज्म नियम को निलंबित किए जाने के बाद दुती को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने की छूट दे दी।

मेडिकल भाषा हाइपरैंड्रोजेनिज्म में वह स्थिति है जब शरीर में एंड्रोजेनिज्म हार्मोस की मात्रा बढ़ जाती है। यह हार्मोन ही इंसान में पुरुषों वाले गुण विकसित करता है। सबसे कॉमन एंड्रोजेनिज्म हार्मोन टेस्टोस्टेरोन है। दुती के शरीर में इस हार्मोन की मात्रा ज्यादा पाई गई थी। ऐसा हार्मोन की वजह से होता है और महिला में सामान्य से अधिक टेस्टोस्टेरोन बनता है। इसके बाद दुती ने आईएएएफ के लिंग परीक्षण से जुड़े नियम के खिलाफ कैस में अपील की थी।

दुती ने आईएएएफ के फैसले को कैस में चुनौती दी और फैसला भी इस एथलीट के पक्ष में आया। कैस ने कहा कि हार्मोन की वजह से किसी महिला में सामान्य से अधिक मात्रा में टेस्टोस्टेरान बनता है तो ऐसे में उसे पुरुष करार देना गलत है।

कैस से राहत मिलने के बाद इस प्रतिभावान एथलीट ने अपना अगला लक्ष्य रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने का बनाया है। दुती कहती हैं कि, ”यह मेरे जीवन का सबसे खुशी का पल है। कोर्ट के निर्णय आने तक मैं नहीं जानती थी कि भविष्य में क्या होने वाला है। जैसे ही मुझे कैस के निर्णय के बारे में पता चला मैंने बहुत राहत महसूस की। मुझे लगा कि अब मैं फिर अपनी पुरानी जिंदगी में लौट सकती हूं। प्रतिबंध के बाद ट्रैक से दूर रहना मेरे लिए बेहद मुश्किल दौर था। मेरा भविष्य अनिश्चित सा हो गया था लेकिन अब मुझे राहत है।



दुनिया के सबसे तेज धावक जमैका के उसैन बोल्ट को अपना आदर्श मानने वाली दुती चंद का जन्म 3 फरवरी 1996 को ओडिशा के चक्र गोपालपुर गांव के एक गरीब जुलाहे के यहां हुआ। 19 वर्षीय दुती पहली बार तब सुर्खियों में आयी जब 2012 में इस धाविका ने राष्ट्रीय चैंपियनशिप के अंडर-18 वर्ग में महज 11.8 सेकेंड में 100 मीटर की दूरी तय कर ली। इसके बाद दुती ने पुणो में आयोजित एशियन चैंपियनशिप में 200 मीटर का फासला 23.811 सेकेंड में तय कर ब्रांज मेडल जीता। इसी साल दुती ग्लोबल एथलेटिक्स की फर्राटा रेस के फाइनल्स में स्थान बनाने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बनीं। 2013 में वह भारतीय एथलीट वल्र्ड यूथ चैंपियनशिप के 100 मीटर रेस के फाइनल्स में पहुंचने में सफल रही। इसी साल दुती ने रांची में आयोजित सीनियर राष्ट्रीय एथलेयिक्स चैंपियनशिप में 11.73 सेकेंड में 100 मीटर और 23.73 सेकेंड में 200 मीटर रेस जीतकर गोल्ड मेडल जीता था।

दुती चंद ने जकार्ता में चल रहे एशियाई खेलों में महिलाओं की 200 मीटर दौड़ और 100 मीटर में रजत पदक अपने नाम किया. वह इन दोनों स्पर्धाओं में बहरीन की एडिडियोंग ओडियोंग से पिछड़ गईं.दुती ने स्वदेश लौटने के बाद कहा, उनकी लंबाई थोड़ी कम जरूर है, लेकिन रफ्तार ज्यादा है. प्रशिक्षण में मैं इस चीज पर ध्यान दूंगी.'रजत पदक जीतने वाली फर्राटा धाविका दुती चंद ने का अगला लक्ष्य ओलंपिक खेलों में देश के लिए पदक जीतना है. एशियाई खेलों की व्यक्तिगत स्पर्धा में दो पदक जीतकर पीटी उषा, ज्योर्तिमय सिकदर जैसी एथलीटों की श्रेणी में शामिल होने वाली दुती ने कहा कि इस जीत के बाद अब वह और कड़ा अभ्यास करेंगी, ताकि ओलंपिक में पदक जीतने का सपना पूरा हो सके.

उन्होंने कहा, ‘इस साल अब कोई बड़ी प्रतियोगिता नहीं है और ओलंपिक के लिए मेरे पास दो साल का समय है. ओलंपिक से पहले अगले साल एशियाई चैंपियनशिप में भी भाग लेना है. इन दो वर्षों में मैं जी जान से अभ्यास करूंगी, ताकि देश का नाम ओलंपिक में भी ऊंचा कर सकूं.’ उन्होंने कहा, ‘मुझे कड़ा प्रशिक्षण करना है और उसके लिए जरूरी चीजें मुझे मुहैया कराई जा रही है, ऐसे में जाहिर है प्रदर्शन अच्छा होगा.’
दुती की इस सफलता पर राज्य सरकार ने उन्हें तीन करोड़ रुपये (एक पदक के लिए डेढ़ करोड़ रुपये) नकद पुरस्कार और अभ्यास तथा प्रशिक्षण का खर्च उठाने की घोषणा की है.उन्होंने कहा, ‘अब इस घोषणा के बाद मैं खुले दिमाग से अभ्यास कर सकूंगी.’

शनिवार, 1 सितंबर 2018

कहानी- निर्णय - उर्मिल सत्यभूषण

डा. रत्नाकर की कृति
काम्या ने तीनों ड्रामों में बेस्ट परफार्मेंस दी थी। एक ड्रामे में वह स्कूल गर्ल बनी थी। स्कर्ट में सातवीं आठवीं कक्षा के विद्याार्थी का रोल किया था। कपड़े या परिधान पूरा व्यक्तित्व ही बदल देते हैं। दूसरे में वह एक फ्लर्ट युवती का रोल कर रही थी और तीसरी में युवा विधवा का। तीनों अलग अलग तरह के किरदार थे पर बड़ी निपुणता से उसने निभाए थे।
उम्र उसकी होगी कोई तीसक साल पर लगती बहुत कम थी। शरीर बिल्कुल छरहरा था। चेहरा बेरौनक था बेशक उसे सुसज्जित करके रखती थी हालांकि चुलबुलेपन के आवरण में चेहरे के एक्सप्रेशन दबे छुपे रहते थे। नजदीक से बात करने पर आंखों का खालीपन महसूस होता था और शरीर पर भी नवविवाहिता जैसी लुनाई या स्निग्धता दिखाई नहीं देती थी। ऊपर से वह बेपरवाह खिलंदडी हिरणी सी दिखाई देती थी ‐‐‐‐ सारे ड्रामा ग्रुप की एक्टीविटीस में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती थी। घूमना, माॅल में जाना, पिक्चर देखना, लड़कों के साथ बेबाक बेलौस हो बतियाती, हंसती, मजाक करती, कभी कभी तो फ्लर्ट जैसा व्यवहार करती।
वे लोग खुलकर बातें करते। अपने रिलेशनशिप को भी। ड्रामें के कम्पलीकेटेड चरित्रों को लेकर भी चर्चायें होती कि ऐसे चरित्र भी होते हैं?  तब जाकर थोड़ा सा भेद खुला या बल्कि सभी अभिनेता अभिनेत्रियों के अन्तद्र्वन्द्व और मनोग्रन्थियांे, मनोविकार उजागर होने लगे थे।
पता चला काम्या को भी डिप्रेशन ने ही घेर रखा था कि उसने ड्रामा ग्रुप का विज्ञापन देखकर ही वह ग्रुप ज्वाइन किया था। वह अपनी शादी से संतुष्ट नहीं थी। उसकी शादी हुए दो साल हो गए पर शादीशुदा जीवन का शुभारंभ नहीं हुआ था। सब उससे सहानुभूति रखते थे पर किसी ने उसकी प्यास बुझाने की जाने या अनजाने कोशिश नहीं की थी। सभी खिलाड़ी (अभिनेता लोग) संस्कारी और विचारशील थे। नजदीकियां बढ़ने लगीं तो प्यासे तनमन की पुकारें भी सुनाई देने लगीं। यदाकदा रिहर्सल के दौरान उसकी कामातुर चेष्टायें मर्यादायें पार करने लगी तो उनकी निदेशक को बात करनी पड़ी।
काम्या उन्हंे अपनी स्थिति समझाते समझाते रो पड़ी।  उसका पति अच्छी पोस्ट पर था। सौम्य, सुदर्शन युवक पर पता नहीं क्यों शादी के निकष पर खरा नहीं उतर पा रहा था। उसने पत्नी से संबध नहीं बनाये। उदास सा बना रहता। काम की व्यस्तता भी बहुत थी। कभी खुलकर काम्या ने भी बात नहीं की। संकोच छोड़कर पहल करने की कोशिश काम्या ने की थी पर पति को तो स्त्रीतन से ही शायद एलर्जी थी। वह उसकी छटपटाती देह को छोड़कर चल देता। वह अपमान का घूंट पी कर रह जाती। कैसे बात करे? वह किससे बात करे?
यूं बाहर घूमने के लिए, खाने पर पति उसे ले जाता बल्कि हनीमून पर भी हो लोग गए थे पर ठंडा गोश्त बेजान ही रहा और वे बेजान ही लौट आए।
अब कानाफूसियां होने लगी थीं कि शायद उसका पति गे है। अब उसका पति उसे कहने लगा था कि वह डायर्वोस ले ले, उसकी तो शादी में या सेक्स में कोई रूचि ही नहीं है। अपनी डायरेक्टर के समझाने पर उसने मनोचिकित्सकों से भी संपर्क किया था पर पति उनके पास जाने को राजी ही नहीं हुआ था ‐‐‐
इसी ऊहापोह में दिन बीत रहे थे।
एक दिन वह रात को ड्रामें की पोशाक में ही लौट आई थी, रात बहुत हो चुकी थी, मेकअप नहीं उतरा था। वह दुल्हन के वेश में थी। दरवाजा कुशाग्र ने ही खोला था। काम्या की मांग में सिंदूर की जगरमग रेखा ने कुशाग्र की आंखो में कामना के डोरे खींच दिये। वह बेहद थकी थी। बोली:- मुझे नींद आ रही है:- मैं सोने जा रही हूं। डायवोर्स पेपर्स तैयार करवा दिये हैं। ये रहे पेपर्स - देख लेना - गुड नाइट और वह साड़ी उतारकर बेहोश सी पलंग पर गिर गई।
कुशाग्र बेडरूम में चला आया। उसकी अस्त व्यस्त देह देखकर घबरा सा गया। उसने उसके खुले बालों को धीरे से छुआ, एक पुलकित लहर उसके भीतर दौड़ गई। उसने उसे स्वतःचालित ही सीधा किया एक चित्ताकर्षक सुगंध उसके नासापुटों में भर गई। उसकी नजर उसकी मांग की रेख और नाक की जगमगाती लौ पर ठहर गई जो उसे बार बार विहृल करने लगी।
एक आंसू काम्या के गाल पर रूका हुआ था धीरे से झुककर कुशाग्र ‐ने उसे होंठों में समेट लिया। अधजगी अधसोई काम्या ने उसके गालों में बाहों का हार डाल दिया। वह उत्तेजित होकर उसे चूमने लगा। वह भी सचेत होकर उससे लिपट गई। जाने कैसे उसके ठंडे तन मन में स्पंदन उठ उठकर बिजलियों में परिवर्तित होते चले गए।  समुद्र ठाठें मारता रहा, मर्यादायें पार करता रहा:
वह कामना के ज्वारों में जानें कितनी उम्रों तक डूबती उतराती रही।
‘सुबह की चाय - आवाज देकर कुशाग्र ने उसे जगाया।
एक नशा सा तारी था। चाय पीकर थोड़ा नशा उतरा, होश आया ‐ ‐‐ पेपर्स पर नजर गई।
ये तुम्हारे डायवोर्स पेपरज काम्या - डायवोर्स चाहिए न तुम्हें।
हां हो डायवोर्स: चाहिए चाहिए मुझे डायवोर्स।
ठीक है:- पहले मैं अपना हक तो ले लूं। कुशाग्र ने फिर उसका मुंह हथेलियों में लेकर लौंग पर उंगली रखी। सिंदूर की रेखा पर आंख गडाई: फिर चूम लिया।
‘काम्या, तुम इतनी सुंदर हो। पहले तो कभी सिंदूर नहीं लगाया। कभी नाक में कील क्यों नहीं पहनी। इन्होंने कितना सुंदर बनाया तुम्हें।
‘‘सुहागरात के लिए क्या इन शर्तों की जरूरत थी कुशाग्र, मेरी देह, मेरा व्यक्तित्व अपने आप में पूर्ण नहीं हैं क्या?
काम्या नहीं: मैंने दो साल तक अपना अपमान सहा। आपको पाने का इंतजार करती रही।कुशाग्र: मेरी सुंदरता के पाने के लिए ये उपादान चाहिए? सिंदूर, लौंग, आभूषण। नहीं कुशाग्र मेरी चेतना जाग चुकी है। कामना का ज्वार मेरे जागरण को अब फिर सुला नहीं सकता। दाम्पत्य की जो अनिवार्य शर्त है वह हमारे बीच में नहीं है।
हम निरंतर सुलग सुलग कर नहीं जी सकते। पूर तरह अजनबी बनकर हम नई शुरूआत करेंगें।
काम्या के ठंडे ठीर शब्दों की फुरैरी उसके कामना ज्वारों को भाटों में बदल चुकी थी। वह फिर स्पंदनहीन सन्नाटों से घिर रहा था।  वह उसके पास सरक आई: ठंडा बेगान हाथ अपने हाथ में लेकर काम्या कहने लगी:- कुशाग्र, मुझे समझ आ गई है कि हम एक दूसरे के लिए नहीं बने। मेरी अतृप्त देह को तृप्ति का स्वाद तुमने चखाया मैं आभारी हूं पर ऐसी तृप्ति काम्य नहीं हैं। हम जल्दी ही इक दूजे को भूल जायेंगें। हम डायवोर्स पेपर्स पर साईन करेंगें और एक दूसरे को शुभकामनाएं देंगें।  जब तक यह सारी कार्यवाही पूरी नहीं होती हम वैसे ही मित्रवत रहते रहेंगें: शांत - सन्नाटों से घिरे - चुपचाप।
ठीक है
ठीक
धीरे से उसका हाथ चूमकर उठ गई काम्या।
AJC-6-300

शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

आइलाइनर से आँखाें की सुंदरता निखारें - प्रत्यूषा नंदिनी

आंखों के भीतरी किनारे से आईलाइनर की 
पतली लाइनें शुरू करते हुए बाहरी कोने तक
 उसकी मोटाई बढ़ानी चाहिए. 


चेहरे के परफेक्ट मेकअप से किसी भी महिला को खूबसूरत बनाया जा सकता है, जिसमें आंखों की सुंदरता को बढ़ाने के लिए एक अच्छे आईलाइनर का उपयोग बेहद ही जरूरी है, क्योंकि आंखे ही हमारे चेहरे का सबसे सुंदर और महत्वपूर्ण अंग है। अधिकांश महिलाएं यह समझती हैं कि आईलाइनर केवल एक ही तरीके से लगाया जा सकता हैं, जो आंखों की पलक पर आईलाइनर को सीधी रेखा में लगाने जैसा हैं। दरअसल,आंखों की खूबसूरती के लिए आंखों की आकृति के अनुसार आईलाइनर लगाने का तरीका अपनाना बेहद ही महत्वपूर्ण होता है। तो आइए जानते हैं आंखों की आकृति के अनुसार आईलाइनर लगाने के तरीकों के बारे में।

. हुडेड (Hooded)-
यदि आपकी आंखों की आकृति हुडेड हैं, तो बिल्ली की आंखों जैसा आईलाइनर लगाएं। कोने में पतली और आंखों के बीच में मोटी आईलाइनर लगाएं। इससे आपकी आंखें बड़ी दिखेंगी।

वाइड सेट (Wide set)-

आंखों की ऐसी आकृति वाली महिलाएं विभिन्न प्रकार के आईलाइनर का इस्तेमाल कर सकती हैं। इसमें ऊपरी और निचली पलक को एक साथ लाकर, आंखों के बाहरी कोनों पर हल्का-सा आईलाइनर लगाना चाहिए। निचले आईलैशेस को आईलाइनर से कलर करना चाहिए। इस तरह आपकी आंखें खूबसूरत दिखेंगी।

डाउनटर्नड (नीचे की ओर झुकाव वाली आकृति) (Downturned)-

ऐसी महिलाएं जिनकी आंखों के बाहरी किनारे थोड़े से नीचे की ओर झुके हों, उन्हें आईलाइनर लगाते समय बाहरी किनारे पर आईलाइनर ऊपर की तरफ उठाते हुए लगाना चाहिए। इससे आपकी आंखें बड़ी और चमकदार दिखेंगी। आंखों को बड़ा दिखाने के लिए निचले आईलैशेस में आईलाइनर लगाना चाहिए।

बादाम की तरह शेप (Almond shaped)-

ऐसे आकार की आंखों वाली महिलाआें को अपनी आंखों के अनुरूप आईलाइनर लगाना चाहिए। इसमें आंखों के भीतरी किनारे से आईलाइनर की पतली लाइनें शुरू करते हुए बाहरी कोने तक उसकी मोटाई बढ़ानी चाहिए।

डीप सेट (Deep set)-
इसमें आंखों के बाहरी किनारों से आईलाइनर लगाना शुरू करना चाहिए। इसके अलावा पलकों की सबसे ऊंची जगह से आईलाइनर लगाना शुरू करना भी अच्छा होता हैं। ऐसी आंखों में मोटा आईलाइनर नहीं लगाना चाहिए, अन्यथा आंखें छोटी दिखेंगी।

अपटर्नड आंखें (ऊपर की ओर उठी हुई आंखें) (Upturned eyes)-

ऐसी आंखों वाली महिलाओं को ऊपरी और निचली पलकों में अंतर होता हैं। ऐसे में आप आंखों के बाहरी किनारों पर ऊपर की ओर उठती हुई आईलाइनर से लाइन खींचे और लोअर लैश पर हल्के हाथों से आईलाइनर लगाएं।

आईलाइनर लगाते समय बरतें ये सावधानियां

चेहरे की मेकअप के दौरान आंखों की सुंदरता के लिए महिलाएं प्रायः आईलाइनर का प्रयोग करती हैं। ये आईलाइनर लिक्विड फॉर्म में आते हैं। ऐसे करते समय सावधानी बरतने की आवश्यकता होती हैं, अन्यथा इसके चेहरे पर फैल जाने का डर बना रहता हैं। जिससे चेहरे और आंखों का मेकअप खराब हो सकता हैं।

आईलाइनर लगाते समय की जानें वाली गलतियां –
कुछ महिलाएं मेकअप या आईलाइनर लगाने से पहले अपना चेहरा नहीं धोती हैं। जबकि कंसीलर और पाउडर लगाने से पहले आईलाइनर का प्रयोग करना भी गलत होता है। इससे आईलाइनर फैल सकता है।

आसान मेकअप के लिए आईलाइनर पेंसिल का प्रयोग करें –
बाज़ार में विभिन्न प्रकार के आईलाइनर मौजूद हैं। महिलाएं जैल आईलाइनर, ड्राई आईलाइनर, काजल स्टिक में से किसी एक का प्रयोग कर सकती हैं। इन सब से हट कर पेंसिल आईलाइनर से अपनी आंखों का मेकअप करना ज्यादा आसान होता हैं।

आईलाइनर को लीक आउट (फैलने) से रोकने के लिए अपनाएं ये तरीके –

1. आई शैडो का प्रयोग (Set Your Eyeliner With Eyeshadow) –
पेंसिल आईलाइनर का प्रयोग करते समय पहले आई शैडो लगाएं। यह आईलाइनर को फैलने से रोकता हैं।आईलाइनर लगाने के लिए पतले ब्रश का उपयोग करें। इससे आईलाइनर एक समान रूप में दिखता है और चेहरे पर अतिरिक्त दाग-धब्बे नहीं लगते हैं।

2. कंसीलर का प्रयोग (Use A Concealer First) –
आंखों का मेकअप करने या आईलाइनर लगाने से पहले कंसीलर लगाना चाहिए। आपको अपनी आंखों के ऊपरी पलकों और भीतरी भागों में पहले कंसीलर लगाना चाहिए। इस तरह आईलाइनर नहीं फैलता हैं।

3. आईलाइनर पेंसिल का उपयोग (Use Eyeliner Pencil) –
वॉटर प्रूफ और जैल युक्त आईलाइनर पेंसिल आंखों के मेकअप के लिए अच्छी होती हैं, परन्तु जब आपके पास समय की कमी हो तो आप आईलाइनर पेंसिल का उपयोग कर सकती हैं। बस, प्रयोग से पहले आईलाइनर पेंसिल को सुखा लेना चाहिए।

4. ऑयली स्किन की सफाई (Prepare Your Skin Properly) –
कुछ महिलाओं के चेहरे की त्वचा ऑयली होती हैं, इसलिए यह जरुरी हो जाता हैं कि मेकअप करने से पहले अपने चेहरे को साबुन, पानी से धोकर अच्छी तरह पोंछ लें। फिर मेकअप या आईलाइनर लगाएं।

5. अपनी पलकों पर मॉइस्चराइजर लगाने से बचें (Avoid Applying Moisturizer On Your Lids) –
चूंकि पलकें स्वभाविक रूप से ऑयली एवं चिकनी होती हैं। इसलिए चाहें चेहरे की त्वचा जैसी भी हो।आईलाइनर को फैलने से रोकने के लिए मॉइस्चराइजर का उपयोग करने से बचें।

6. फेस पाउडर का उपयोग करें (Use Face Powder) –

आंखों
सहित अपने चेहरे का मेकअप करने के बाद फेस पाउडर लगाएं। इससे आपकी आंखें और चेहरा खूबसूरत दिखने लगेगा।

7. सस्ते आईलाइनर का प्रयोग न करें (Don’t Go For Cheaper Ones) –
जब ब्यूटी प्रोडक्ट्स की बात आती हैं तो आपको इनकी क्वालिटी का खास ध्यान रखना चाहिए। सस्ते उत्पादों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। आपको अच्छे क्वालिटी वाले ब्रांडेड ब्यूटी प्रोडक्ट्स ही खरीदने चाहिए।

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