रविवार, 9 सितंबर 2018

कोरा कागज से कलाकार तक का सफर- शकीला शेख


शकीला शेख कोलकाता से 30 किलोमीटर दूरी पर 24 परगना जिले के सूरजपुर गांव में रहती हैं। वह अपना एक प्राइवेट स्टूडियो चलाती हैं जहां वे अपनी कलाकारी करती रहती हैं। अपने कॉलाज आर्ट के लिए दुनियाभर में प्रसिद्धि हासिल कर चुकीं शकीला एक गृहिणी भी हैं। उनकी कला को भारत के अलावा अमेरिका, यूरोप, नॉर्वे, फ्रांस में सराहा जा चुका है। एक सब्जी बेचने वाली मां की बेटी शकीला ने 1990 में अपना पहला एग्जिबिशन लगाया था जिसमें उन्हें 90,000 रुपये मिले थे।

शकीला का बचपन अभावों और मुश्किल हालात में बीता। अपने 6 भाई बहनों में वह सबसे छोटी थीं। जब वे महज एक साल की थीं तो उनके पिता उन्हें छोड़कर घर से चले गए। इसके बाद घर चलाने की जिम्मेदारी उनकी मां जेहरान बीबी पर आ गई। जेहरान हर रोज मोगराघाट से 40 किलोमीटर दूर तालताला मार्केट सब्जी बेचने जाती थीं। अपने बचपन को याद करते हुए शकीला ने #मैंअपराजिता को बताया कि वह काफी छोटी थीं इसलिए उनकी मां उन्हें काम नहीं करवाती थीं। हालांकि वह उन्हें घुमाने के लिए शहर जरूर ले जाती थीं।
वह बताती हैं, 'जब मेरी मां मुझे घुमाने ले जाती थीं तो सड़कों पर चल रहीं ट्रॉम और बस देखकर मुझे काफी खुशी होती थी। जब मेरी मां सब्जी बेच रही होतीं तो मैं उनके बगल में ही सो जाती।' कला के क्षेत्र में आने के बारे में वह कहती हैं कि यह शहर में ही रहने वाले बलदेव राज पनेसर की बदौलत संभव हो पाया जो कि एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी और एक कलाकार भी हैं। वे सब्जी लेने के लिए शकीला की मां की दुकान पर आया करते थे और खाली समय मिलने पर आसपास के बच्चों को खाने पीने की चीजें बांटा करते थे। सारे बच्चे उन्हें डिंबाबू कहकर बुलाते थे।

शकीला कहती हैं, 'बाबा मुझसे काफी प्रभावित हुए उन्होंने मेरा नाम स्कूल में लिखवाया। मैं तोलता में कक्षा 3 तक पढ़ी लेकिन इसके लिए मुझे काफी दूर का सफर करना पड़ता था। इतनी दूर का सफर करना उस वक्त किसी लड़की के लिए सुरक्षित नहीं था इसलिए बाबा ने मुझे गांव में ही पढ़ाने का फैसला किया।' हालांकि शकीला की मां हमेशा चिंता में रहती थीं क्योंकि उन्हें लगता था कि उनकी बेटी के साथ कहीं कुछ गलत न हो जाए।

12 वर्ष की उम्र में उनकी शादी करवा दी गई। उनके पति का नाम अकबर शेख है। शकीला की हालत खराब हो चली थी इसलिए उन्होंने फिर से बाबा से संपर्क किया। उन्होंने शकीला को कागज के थैले बनाने का आइडिया दिया। शकीला बलदेव राज की कलाकारी से काफी प्रभावित थीं और ऐसे ही उन्होंने अपना पहला कोलाज बनाया, जिसमें सब्जियां और फलों का प्रतिरूपण था। इसे काफी सराहना मिली और फिर 1991 में उन्होंने अपना पहला कोलाज एग्जिबिशन लगाया।

शकीला को इससे 70,000 रुपये मिले जो कि उस वक्त के हिसाब से काफी बड़ी रकम थी। इससे शकीला के घर की हालत तो सुधरी ही साथ ही उन्होंने आर्ट पर ही अपना ध्यान केंद्रित किया। उन्हें बीआर पनेसर से काफी मदद मिली। पनेसर ने शकीला को सेंटर ऑफ इंटरनेशनल मॉडर्न आर्ट से रूबरू करवाया। यह आर्ट गैलरी अब शकीला के काम को मैनेज करती है और उनकी कलाकृतियों को विदेशों में बेचने का काम भी करती है। शकीला को ललित कला अकादमी, पश्चिम बंगाल आर्ट अकादमी समेत कई सारे अवॉर्ड मिल चुके हैं।
mainaparajita@gmail.com

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