सोमवार, 14 मई 2018

MONDAY HEALTH शुगर को रखें कंट्रोल में - डा. दीपिका शर्मा


मोटापे को बहुत बार हम आनुवांशिक मान बैठते हैं जबकि एक्सपर्ट मानते हैं कि मोटापा बढ़ने का कारण हम सबकी बदलती लाइफस्टाइल है।

डायबिटीज है क्या -  इंसुलिन एक हारमोन है जोकि हमारे ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करता है। डायबिटीज में हमारा शरीर न तो इंसुलिन बना पाता है और न ही उसका पूरा इस्तेमाल कर पाता है।  यदि यह बीमारी कंट्रोल नहीं हो पाती तो कई तरह की बीमारी लगने का खतरा रहता है जैसे कि दिल की बीमारी, स्ट्रोक, नर्वस की बीमारी या किडनी की बीमारी।
डायबिटीज किडनी को डैमेज कर सकती है।  किडनी हमारे शरीर मंे फिल्टर की तरह काम करती है। जब हमारी बाॅडी प्रोटीन डायजेस्ट करती है तो उस समय वह वेस्ट को निकाल देती है। यह वेस्ट प्रोडक्ट हमारा यूरीन बनाता है। प्रोटीन और रेड ब्लड सेल्स किडनी फिल्टर में से नहीं निकल पाते और ब्लड में ही रह जाते हैं।  डायबिटीज किडनी के इस सिस्टम को डैमेज कर सकता है।  जब यह बहुत ज्यादा काम करती है तो यह लीक करने लगती है और हमारे शरीर के लिए जरूरी प्रोटीन भी निकल जाते हैं।  किडनी हमारे खून को सही तरीके से साफ नहीं कर पाती।  हमारे शरीर में ज्यादा नमक और पानी रह जाता है जिससे कि हमारा वजन बढ़ने लगता है और टखनों में सूजन आने लगती है।  पेशाब में प्रोटीन आने लगता है और शरीर में वेस्ट मैटीरियल जमा होने लगता है।  ब्लैडर से प्रेशर किडनी की तरफ वापिस जाकर आपकी किडनी को भी नुकसान पहुंचा सकता है और यदि पेशाब ज्यादा देर तक ब्लैडर में रह गया तो उससे बैक्टीरिया हो सकता है जोकि इन्फेक्शन पैदा कर सकता है।
किडनी की बीमारी के लक्षण जल्दी से सामने नहीं आते जब तक कि उसके सारे फंक्शन समाप्त नहीं हो जाते।  किडनी अपनी तरफ से बहुत कठिन परिश्रम करके समस्या को दूर करने का प्रयास करती है।
किडनी की बीमारी के लक्षण

  • अनिंद्रा
  • भूख कम लगना, पेट खराब होना
  • ध्यान में कमी
  • वजन बढ़ना
  • रात में बार बार पेशाब के लिए उठना
  • यूरीन में प्रोटीन
  • उच्च रक्तचाप
  • एंकल और लेग में सूजन, टांगों में क्रैम्पस
  • क्रेटनीन लेवल का बढ़ना
  • इंसुलिन या एंटीबाॅयटिक की जरूरत कम लगना
  • मौरनिंग सिकनेस, उल्टी होना
  • कमजोरी, पीलापन या एनीमिया
  • खारिश होना
  1.  डायबिटीज के पेशेंट को किडनी की बीमारी हो यह जरूरी नहीं है।  यदि इस  बीमारी को शुरूआती दौर में ही पकड़ लिया जाए तो इसको आगे बढ़ने से रोका जा सकता है।
  2. किडनी डैमेज  होने की स्थिति में सबसे पहले तो डाक्टर जांच करके यह पता लगाने की कोशिश करेंगें कि आपकी किडनी डायबटीज की वजह से डैमेज हुई है या नहीं।  क्या आपकी किडनी सही तरीके से काम करेंगी यदि डायबिटीज पर कंट्रोल कर लें।
  3. हाई ब्लड प्रेशर को ठीक करने के लिए ली गई दवा भी किडनी को नुकसान पहुंचा सकती है इसलिए हाई बीपी कंट्रोल कर लें।
  4. यदि  यूरिन इन्फेक्शन है तो उसका इलाज करवा लें।
  5. यदि कोई अन्य समस्या नहीं मिलती है तो डाक्टर आपकी किडनी को ज्यादा से ज्यादा देर तक काम करने की कोशिश कर सकता है।
  6. डाक्टर आपके ट्रीटमेंट में ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने के लिए दवा देंगें और आपकी डाइट प्लान करके आपके शरीर में प्रोटीन को कम करेंगें।
  7. यदि आपकी किडनी आपके शरीर को सपोर्ट करना बंद कर दे तो डायलिसिस या ट्रांसप्लांट  की नौबत आ जाती है। ऐसी स्थिति में आपकी किडनी 10 या 15 प्रतिशत ही काम कर रही होती है।
  8. डायबिटीज के पेशेंट की किडनी फेलियर ट्रीटमेंट तीन तरीके से किया जाता है किडनी ट्रांसप्लांट, हीमोडायलिसिस और पेरिटोनियल डायलिसिस।
  9. डायबिटीज के पेशेंट को किडनी ट्रांसप्लांट के बाद इंसुलिन की हाईर डोज दी जाती है।  इससे भूख बढ़ती हैं क्योंकि नई किडनी इंसुलिन को सही तरीके से तोड़ पाती है बजाय खराब किडनी के।  पेशेंट को स्टीरायड पिल्स पर रखा जाता है ताकि शरीर कहीं नई किडनी को रिजेक्ट न कर दे।
  10. डायबिटीज कंट्रोल करने के लिए  उपाय:-
  11. अपने ब्लड ग्लूकोज लेवल की लगातार जांच करें।
  12. ब्लड प्रेशर कंट्रोल करें।
  13. जो भी आप खाएं सोच समंझ कर, हाई फाइबर युक्त भोजन लें जिसमें होलग्रेन हो, पूरा प्रोटीन मिले। तीन बार हेवी मील खाने के बजाय थोड़ा-थोड़ा पांच बार खा लंेे।
  14. एक्सरसाइज करके अपना वजन कम करें। कम से कम 30 मिनट प्रतिदिन वाॅक करें।
  15. ज्यादा देर एक जगह न बैठेंे।
  16. तनाव से भी ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है।  इसलिए इसको कम करने के लिए डीप ब्रीदिंग, मेडिटेशन जैसी विधियां अपनाएं।
  17. कम से कम 6 घंटे की पूरी नींद लें।  इससे कम नींद लेने पर आपके शरीर में ब्लड शुगर लेवल बढ़ने की संभावना 3 गुना बढ़ जाती है।
  18. स्मोकिंग न करंे ।
  19. यदि आप शराब पीते हैं तो उसकी मात्रा का भी ध्यान रखें क्योंकि इससे भी शुगर होने की संभावना होती है।
  20. वर्ष में एक बार अपना फुल बाॅडी चेकअप जरूर कराएं।

रविवार, 13 मई 2018

माँ - सविता शुक्ला



माँ ,तुम प्यार का सागर हो ,
ममता की अप्रतिम गागर हो ,
तुम त्याग की प्रतिमूर्ति हो ,
सद्भाव की जीवंत कृति हो ,
कभी कोमल हो तुम, कभी ज्वाला
बच्चों की हो तुम प्रथम पाठशाला
भावुक दिल और नाजुक हाथों से
बच्चों का भविष्य संवारती हो,
कठिन परिश्रम करवाकर
तुम शूरवीर उन्हें बनाती हो,
खुद संघर्ष करके भी
बच्चों का किस्मत चमकाती हो,
अपना वजूद भूला कर
सर्वस्व उनपर  लूटाती हो,
तुम जननी हो,तुम धात्रृ हो,
ईश्वर का प्रतिरुप माँ,तुम सबसे प्यारी हो.

sunday story time अनजानी पहचान गूंथ लो- उर्मिल सत्यभूषण


फेसबुक पर निनाद की टिप्पणी थी - लोग तस्वीरों में ढ़ल गये हैं। दीवारों पर टंग गये। घर है या मकान या मसाज!! ---
देवी ने पढ़ा तो विहृल हो गई। दिल हुआ निनाद से बात करे। संदल को फोन किया --- संदल कैसे हो बेटा? क्या मुझे निनाद का मोबाइल एस एम एस कर दोगे? ‘‘जरूर -  देवी जी - अभी करता हूं : आप ठीक हैं?‘‘ संदल बोला मैं तो ठीक हूं पर निनाद?
हां - देवी जी - आजकल उसके हालात ----
‘आप लोग शेयर करा करो। आओ आओ। बाहर निकालो उसेः
देवी दीदी, मैं तो बातचीत करता रहता हूं पर शायद उसे ही अच्छा न लगे, हमारा ज्यादा दखल देना।
‘‘क्या हुआ है?
‘‘आपको पता हैः निनाद पत्रिका के मामले में काफी व्यस्त रहता है। मां और पत्नी साथ रहती थीं ---- घर को, उसको संभालती थीं। अच्छा मैं फोन नम्बर एस एम एस कर रहा हूं।
ःदेवी निनाद का मोबाइल जानकर आश्वस्त हुई
लगाया :- काफी घंटी बजने के बाद उठायाः
‘‘कौन?
‘‘मैं देवी चौधरी, शायद आप मुझे नहीं जानते? मैं आपको जानती हूं निनाद जीः
‘‘नहीं, मैं भी आपको जानता हूं : आप को कौन नहीं जानता?
‘‘तो फिर मिले क्यों नहीं अब तक? मुझे आपकी पत्रिका को भी प्राप्त करना है। बहुत तारीफ हो रही है। क्या कमाल के होते हैं आपके संपादकीय।
‘जी‘ उधर से मंद स्वर बुझा बुझा सा
‘‘निनाद, आप रहते कहां हो, मैं मिलना चाहती हूं।
‘‘जी, -- मरा मरा सा स्वर --
‘‘बेटे, तुमने अभी तक खाना नहीं खाया, क्यां?
अच्छी बात है क्या? सुबह से भूखे हो?
‘‘आपको कैसे पता मैं भूखा हूं। बताइए कैसे पता‘ स्वर में विहृलता और थोड़ी चंचलता आ गई।
‘बेटे हम औरतें जानीजान हैं। स्वरों को पहचानती हैं।
फूट पड़ा निनाद - ‘‘ मेरी अम्मा चली गईं, छः महीने पहले बीवी चली गई! मैं भी भूतहा मकान में भूत हो गया हूं‘‘।
पर आपको कैसे पता चला मैं भूखा हूं। मुझे बताइए न प्लीज‘‘
देवी बोली :- मैं भी तुम्हारी अम्मा हूं। इसलिए जान गई कि बेटा भूखा है। अम्मा की बात मानों उठो मुंह हाथ धोवो आर पहले खाना खाओ। खाना बना हुआ है क्या ?
‘‘है खाना बना है। मेड आकर बना जाती है। पर खाया नहीं जाता।
मुझे पता है खाया नहीं जाता, पर अब देवी मां रोज आपसे इसरार करेगी - बेटा उठो खाना खा लो - तो खाओगे न ।
‘‘हां‘‘ और वह फूट फूट कर रो उठा।
देवी बोली - बेटा महसूस करो मेरा कंधा, रो लो रो लो खुलकर रो लो -- पांच मिनट उसने रोने दिया फिर फोन पर ही बोली - बेटा मैं दर्द की जुबां समझती हूं। उठो तुम्हें अभी बहुत से काम करने हैं। यह दर्द ही तुम्हारी दवा बन जायेगा। अभी भी कसम दिला रही हूं खाना खाने की। गर्म करो खाना और अपनी पत्नी का नाम लो, अम्मा का नाम लो - एक एक कौर उनका निकाल कर खुद ही खा लो। आंसु बहते हैं तो बहने दो पर शरीर की मट्टी में इंधन डालो जरूर --- मैं एक घंटे बाद फिर फोन करूंगी, ठीक है ठीक उत्तर मिला और फोन बंद हो गया।
ठीक एक घंटे बाद देवी ने फोन किया तो निनाद मुखर लगा ! उसने निनाद से अम्मा का उसकी पत्नी का नाम पूछा : फिर बोली देख निनादः तुम अपनी पत्नी और अम्मा को रोज एक पत्र लिखो जो महसूस करते हो बोलो। तुम्हारी कविता ही तुम्हारा त्राण है, दवाई है, रोशनी है। मेरा पता नोट करो। एस एम एस करूंगीः मुझसे मिलना पड़ेगा, मिलोगे न! जी अम्मा! आपका बहुत बहुत शुक्रियाः
अम्मा का शुक्रिया नहीं किया जाता। अच्छा बाय! उसने मोबाइल पर संदेश दियाः-   
माना जिदगी की राह बीहड़ पर केवल तुम ही हो क्या। अनजानी पहचाने गूंथ लो, पंच सरल बन जायेगा। चट्टानों से टकराये जो राह उसके अनुकूल रही।

शनिवार, 12 मई 2018

SATURDAY RELATIONSHIP पचास पार जब टूटे जीवनसाथी से तार-अनुजा भट्ट


आप सप्तसदी के साथ फेरे लें, निकाहनामा पढ़ें या फिर कोर्ट में हलफनामा पेश करें लेकिन इस बात की गारंटी नहीं है कि जीवनसाथी के साथ आपके रिश्ते की डोर पूरी उम्र मजबूत ही रहेगी।
  रिश्तों की मजबूती के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।  आज पचास साल की परिपक्व उम्र में तलाक के मामले सामने आ रहे हैं और बीते 20 वर्षों में यह आंकड़ें लगभग दोगुने से भी ज्यादा हो गए हैं। अग्रेंजी में इसके लिए ग्रे डायवोर्स शब्द का इस्तेमाल किया जाता है।
तलाक की स्थिति किसी के लिए भी खुशी देने वाली नहीं होती।  क्या आपकी शादी भी ऐसे किसी दोराहे पर खड़ी है? शायद आपके जीवन-साथी ने आपके भरोसे को तोड़ा हो या फिर बार-बार होने वाले झगड़ों की वजह से आपके रिश्ते में पहले जैसी मिठास नहीं रही।  आपके मन में यह भी खयाल आता होगा, ‘शायद हमें तलाक ले लेना चाहिए।’
तलाक का फैसला जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए। पहले इस बारे में अच्छी तरह सोच-विचार कर लीजिए। यह जरूरी नहीं कि तलाक लेने से आपकी जिंदगी में छाए परेशानी के काले बादल छँट जाएँगे। तलाक से एक समस्या तो हल हो जाती है, लेकिन उसकी जगह एक नयी समस्या खड़ी हो जाती है।
1 पैसे की समस्या
माया को अपनी शादी के 25 साल बाद पता चला की उसके पति का ऑफिस में साथ काम करनेवाली किसी महिला के साथ नाजायज संबंध है। वह कहती है, “जब मुझे यह बात पता चली तो कुछ समय अलग रहने के बाद, माया ने आखिरकार तलाक लेने का फैसला किया। जैसे ही हम एक-दूसरे से अलग हुए, मेरी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गयी। शादी टूटने पर अक्सर पत्नी को भयंकर आर्थिक समस्या से जूझना पड़ता है। कुछ महिलाओं के लिए यह वाकई मुश्किल होता है, क्योंकि उन्हें बच्चों की देखभाल करनी होती है, नौकरी ढूँढ़नी होती है, साथ ही तलाक की वजह से मानसिक तनाव से भी गुजरना होता है।
2 माता-पिता की जिम्मेदारी
नीलू कहती हंै, “जब मुझे पता चला कि मेरे पति का किसी के साथ संबध हैं तो उसने अपने पति को तलाक दे दिया। वह यह नहीं कहती कि उसने गलत फैसला लिया, मगर वह कबूल करती है, “अपने बच्चों के लिए माँ-बाप दोनों की भूमिका निभाना मेरे लिए सबसे बड़ी मुश्किल थी। “कोर्ट ने मुझे अपने 16 साल के बेटे को अपने साथ रखने की इजाजत दी। मगर जब एक बच्चा जवानी की दहलीज पर कदम रखता है तो वह बड़ा मुश्किल समय होता है और मेरे लिए अकेले अपने बेटे की परवरिश करना बहुत मुश्किल था। मुझे अकेले ही सारे फैसले लेने पड़ते थे।
जो तलाकशुदा माता-पिता अलग-अलग रहते हैं, लेकिन बारी-बारी से अपने बच्चों की परवरिश करते हैं, तो  उन्हें अपने पूर्व पति या पत्नी के साथ मिलकर कुछ नाजुक मामलों पर फैसला करना होता है। अपने पूर्व पति के साथ एक अच्छा रिश्ता बनाए रखना आसान नहीं होता।
3 तलाक का असर आप पर
जीवन को जब पता चला कि उसकी पत्नी उसे धोखा दे  रही है तो उसे ऐसा लगा कि दुनिया उजड़ गयी हो। वह कहता है, “पहले-पहल तो मुझे इस बात पर बिलकुल यकीन नहीं हुआ। मैं वाकई अपनी जिंदगी का हर दिन अपनी पत्नी और बच्चों के साथ बिताना चाहता था।”  मगर पत्नी की बेवफाई की वजह से मैं ऐसी उलझन में पड़ गया।  जीवन कहता है “जब लोग उसके बारे में उल्टी-सीधी बातें करते हैं तो उन्हें लगता है कि इससे मेरे दिल को सुकून मिलेगा। पर ऐसा बिलकुल नहीं होता। प्यार इतनी जल्दी नहीं मिटता।”
तलाक के बाद एक इंसान कई तरह की भावनाओं से गुजरता है। अगर आपका तलाक हो चुका है, तो आप भी जरूर इस दौर से गुजरे होंगे। जो हसीन पल आपने साथ बिताए थे वे आपको रह-रहकर याद आते हैं और आप सोचते हैं ‘वह मुझसे कहता था कि वह मेरे बगैर नहीं जी सकता। क्या वह मुझसे हमेशा झूठ बोलता था? आखिर यह सब क्यों हुआ?’”
4 तलाक का असर बच्चों पर
 रितेश एक तलाकशुदा पिता है। वह कहता हैै, “जिस घड़ी मुझे पता चला कि मेरी पत्नी का संबंध मेरी बहन के पति के साथ है, तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गयी। मैं बस मरना चाहता था।” मैंने देखा कि मेरे दोनों लड़कें जिनकी उम्र दो और चार साल की थी, उन पर भी उनकी माँ की इस हरकत का असर हो रहा था। वह कहता है, “वे कुछ समझ नहीं पा रहे थे और न ही वे इस हालात का सामना कर पा रहे थे।
लोग तलाक तो ले लेते हैं, पर अक्सर यह नहीं सोचते कि इसका बच्चों पर क्या असर होगा। यह बात सच है कि अक्सर बच्चों को पता होता है कि उनके मम्मी-पापा के बीच झगड़ा चल रहा है और इसका बच्चों के कोमल दिल और दिमाग पर बुरा असर हो सकता है। मगर यह सोचना कि तलाक लेना बच्चों के लिए अच्छा रहेगा बिल्कुल गलत है। अगर आप तलाक लेने की सोच रहे हैं, तो इस लेख में दिए चार मुद्दों पर जरूर गौर कीजिएगा। आखिर फैसला आप ही को करना है। चाहे आप कोई भी रास्ता अपनाएँ, आपको उसके अंजामों के बारे में पता होना चाहिए। आपको यह भी पता होना चाहिए कि कौन-सी परेशानियाँ खड़ी हो सकती हैं और उनका सामना करने के लिए तैयार रहिए।
इस मामले पर अच्छी तरह सोचने के बाद शायद आपको लगे कि इससे बेहतर होगा आप अपनी शादीशुदा जिंदगी को सुधारें। मगर क्या यह वाकई मुमकिन है?

शुक्रवार, 11 मई 2018

HAPPY BIRTHDAY नृत्य नाटक और संगीत की देवी -मृणालिनी साराभाई

आज मृणालिनी साराभाई का 100 वां जन्मदिन  है। उनका जन्म 11 मई, 1918, केरल  में हुआ। 21 जनवरी, 2016, अहमदाबाद, गुजरात) में उन्हाेंने अंतिम सांस ली। वह भारत की प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना थीं। उन्हें 'अम्मा' के तौर पर जाना जाता था। शास्त्रीय नृत्य में उनके योगदान तथा उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया था।
  • अपने बचपन का अधिकांश समय मृणालिनी साराभाई ने स्विट्जरलैंड में बिताया। यहां 'डेलक्रूज स्‍कूल' से उन्‍होंने पश्चिमी तकनीक से नृत्‍य कलाएं सीखीं। उन्‍होंने शांति निकेतन से भी शिक्षा प्राप्‍त की थी।[1]
  • मृणालिनी साराभाई ने भारत लौटकर जानी-मानी नृत्‍यांगना मीनाक्षी सुंदरम पिल्लई से भरतनाट्यम का प्रशिक्षण लिया था और फिर दक्षिण भारतीय शास्त्रीय नृत्य और पौराणिक गुरु थाकाज़ी कुंचू कुरुप से कथकली के शास्त्रीय नृत्य-नाटक में प्रशिक्षण लिया।
  • उनके पति विक्रम साराभाई देश के सुप्रसिद्ध भौतिक वैज्ञानिक थे। उनकी बेटी मल्लिका साराभाई भी प्रसिद्ध नृत्यांगना और समाजसेवी हैं।
  • मृणालिनी की बड़ी बहन लक्ष्मी सहगल स्वतंत्रता सेनानी थीं। वे प्रसिद्ध क्रांतिकारी सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज की महिला सेना झांसी रेजीमेंट की कमांडर इन चीफ़ थीं।
  • भारत सरकार की ओर से मृणालिनी साराभाई को देश के प्रसिद्ध नागरिक सम्मान 'पद्मभूषण' और 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया था। 'यूनिवर्सिटी ऑफ़ ईस्ट एंगलिया', नॉविच यूके ने भी उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि दी थी। 'इंटरनेशनल डांस काउंसिल पेरिस' की ओर से उन्हें एग्जीक्यूटिव कमेटी के लिए भी नामित किया गया था।
  • प्रसिद्ध 'दर्पणा एकेडमी' की स्थापना मृणालिनी साराभाई ने की थी।

#मैंअपराजिताकहानीप्रतियाेगिता-कमलेश आहूजा

बचपन से पेंटर (चित्रकार ) बनने का सपना था. पर सबका मानना था कि,पेंटिंग हॉबी तक ठीक  है पर कैरियर के लिए नहीं.मन मार कर एम बीए कर लिया.फिर नौकरी की उसके बाद शादी हो गयी.फिर वही घर-गृहस्थी की जिम्मेवारियाँ.अपने मन के करने का कभी मौका ही नहीं मिला.धीरे धीरे मन से कुछ करने की इच्छा ही समाप्त हो गयी.लगता ही नहीं,कि मैंने कभी पेंटिंग प्रतियोगिताओं में इतने पुरुस्कार जीते थे.कैसे रंगों से कैनवास पर खेलती थी.जब चाहे जो भी रंग  भर देती थी..अपने ही द्वारा बनायी तस्वीर में. पेंटिंग कहीं सीखी नहीं थी बस अपनी कल्पनाओं से ही उन्हें साकार किया.
अब तो कुछ पेंटिग करने का सोचती तो लगता, कि ब्रश भी  ठीक से पकड़ना आयेगा या नही.?, रंगों का चयन व संयोजन सही तरीके से कर पाऊँगी या नहीं.?अपने ऊपर विश्वास तो जैसे रहा ही नहीं था.
अंधेरे में छोटे छोटे जुगनुओं को टिमटिमाते हुए देखा तो लगा,कि गहन अंधकार को दूर करने के लिए ये कैसे सतत प्रयत्नशील हैं अर्थात चमक रहें हैं.फिर मैंने क्यों हार मान ली.? मैं भी फिर से प्रयास करूँ तो अपने पेंटर बनने के सपने को पूरा कर सकती हूँ.जिम्मेवारियों का क्या.! वो तो मरते दम तक भी पूरी नहीं होती.
बस इसी सोच के साथ फिर से पेंटिंगस बनाना शुरू कर दिया.समय समय पर प्रतीक की मदद भी ली.रिया (विधायक) की मदद से शहर में होने वाली पेंटिग एक्सिबिशनस में मेरी पेंटिग्स को भी स्थान मिलने लगा.पेंटिग्स को लोग पसंद करने लगे और बड़े बड़े पुरुस्कार मिलने लगे.लोग मेरी बनायी हुई पेंटिंग्स को खरीदने लगे.धीरे- धीरे मेरी पेंटिग्स की माँग बड़ने लगी और मैं भी लोगों के बीच लोकप्रिय होने लगी.
आज मीना,रिया,संज्ञान व प्रतीक सभी मित्र घर आये.बातों ही बातों में मीना मुझसे कहने लगी- "अब तो तुम जानी मानी पेंटर बन गयी हो,मैं एक  कहानी तुम पर भी लिखना चाहती हूँ ".मैंने कहा- "हां क्यो नहीं..? जरूर लिखो और उसका शीर्षक रखना-"जुगनुओं सी चमक".क्योंकि जुगनुओं की इसी चमक ने मुझे फिर से अपने जीवन में रंग भरने की प्रेरणा दी.वरना मैंने तो अपनी ज़िंदगी बेरंग बना रखी थी.इसी चमक को देखकर मेरा खोया हुआ आत्मविश्वास पुनः लौट आया और मैं अपने पेंटर बनने के सपने को पूरा कर सकी.
इस मौके पर शायर संज्ञान कहाँ खामोश रहने वाले थे,एक शायरी उन्होंनें भी सुना ही दी...
       टूटने लगे हौंसला,तो ये याद रखना,
       बिना मेहनत के तख्तो-ताज नहीं मिलते.
       ढूंढ लेते हैं अंधेरों में मंज़िल अपनी,
       क्योंकि जुगनू कभी रोशनी के मोहताज                नही होते..!!

रविवार, 6 मई 2018

सजा देकर नहीं समय देकर संवरेगा भविष्य

 समय परीक्षाओं या परिक्षाओं के परिणाम का है। कहीं विद्यार्थी और उनके माता -पिता संतुष्ट है तो कहीं माता-पिता अपने बच्चों से बेहद अंसतुष्ट।  अपने बच्चों को अच्छे से अच्छे स्कूल में  एडमिशन दिलवाने के लिए भी माता-पिता को कई तरह की प्रतियोगिताओं से गुजरना पड़ता है, पैसा जुटाना पड़ता है। वह सब कुछ करते हैं पर अपने बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पाते और इसी का परिणाम है कि बच्चे परीक्षाओं मेें सब कुछ करने के बाद भी अच्छा प्रदर्शन नहीं करते । इसीलिए यदि बच्चों से असंतुष्ट है तो इसके कारण खुद से भी पूछने चाहिए।
 निश्चित तौर पर बच्चों को इस बात का अहसास करना चाहिए कि यह सब जो उनके लिए किया जा रहा है वह आसान नहीं है। बच्चों को यह अहसास होना बहुत जरूरी है कि मातापिता उनके विकास के लिए और अच्छे भविष्य के लिए कितना चिंतित हैं।  हाल ही में एक खबर आई  थी  कि मैसूर में कक्षा 7 में पढऩे वाली एक बेटी जब अच्छे नंबर नहीं लाई तो नाराज पिता ने उसे मंदिर के सामने भीख मांगने की सजा दी। पिता ने पुलिस को बताया कि वह अपनी बेटी को जीवन की कठिनाइयों से रुबरु कराना चाहता था। लेकिन क्या ऐसी सजा कारगर है? निश्चित तौर पर नहीं।  हमें अपने बच्चों को  सजा की जगह समय देना उतना ही जरूरी है जितना  शिक्षा के लिए पैसे का प्रबंधन करना।

शनिवार, 5 मई 2018

रिश्ताें की रंगाेली- कमलेश आहूजा

दीपावली का पर्व नज़दीक था.मीना के घर तैयारियाँ चल रही थीं क्योंकि उसकी बहु नैना की पहली दीवाली थी.
आज दीपावली का दिन था मीना ने तो सुबह से ही सबको जल्दी जल्दी काम निपटाने की हिदायत दे दी थी, क्योंकि एक तो लक्ष्मी पूजन का समय शाम को 6 बजे का था.दूसरा पूजा के बाद बेटी के ससुराल भी जाना था.दो ननदें भी शहर में रहतीं थीं,वो भी आने वाली थीं. मीना ने पति से कहा -" आप बाजार से मिठाई व फल ले आना.पूजा और रेखा (ननद ) के लिए मैं और बहू गिफ़्ट ले आये थे.बेटी के लिए और दामाद जी के लिए भी कपड़े ले लिए थे ".
 दोपहर के खाने के पश्चात, मीना पूजा की तैयारी करने लगी.नैना को ड्रॉइंग पेंटिंग का बहुत शोंक था इसलिए वो मीना के पास जाकर बोली-"माँ मैं बाहर दरवाजे पर रंगोली बना दूँ ".मीना-" हाँ बेटा क्यों नहीं,बल्कि मैं तुमसे कहने ही वाली थी पर सोचा तुम पहले से इतना काम करके थक गई होगी ".नैना ने दरवाजे पर बहुत सुंदर रंगोली बना दी.
शाम को पूजा के समय मीना ने कुछ दिए जलाकर पूजा वाले स्थान पर रख दिये और कुछ दिए एक थाली में रखकर नैना को कहा कि वो बाहर दरवाजे पर दिए जला दे.नैना ने दीपक रखने की लिए दरवाजा खोला, तो देखा कि रंगोली एक तरफ से किसी के पाँव से बिगड़ से गयी थी.
रंगोली को बिगड़ा हुआ देखकर वो बहुत दुःखी हो गई और मीना को आवाज लगाई -" माँ बाहर आओ ".मीना ने सोचा नैना तो दिए जला रही है,फिर उसे क्यों बुला रही है..?.मीना बाहर आई और नैना से पूछा- "क्या हुआ बेटा,मुझे क्यों बुलाया..?".  नैना ने रोते हुए कहा-" माँ देखो किसी ने मेरी रंगोली बिगाड़ दी.इतनी मेहनत से बनायी थी".मीना ने उसे चुप कराया और उसकी बिगड़ी हुई रंगोली को फिर से ठीक कर दिया. मीना ने नैना से कहा-" देख बेटा मैंने भी अपने जीवन में रिश्तों की रंगोली बनाई है और इसे प्रेम,विश्वास और समर्पण रूपी रंगों से सजाया है.जैसे मैंने आज तेरी बिगड़ी हुई रंगोली को ठीक कर दिया है,ऐसे ही जीवन में कभी कोई मेरी रंगोली बिगाड़े या बिगाड़ने की कोशिश करे,तो तू भी उसे ऐसे ही ठीक कर देना ".मीना रंगोली के माध्यम से नैना को ये बात समझा रही थी कि, जिन कार्यों को करने में हम अपने सारे यत्न लगा देते हैं उन्हें कोई बिगाड़ता है तो कितना दुःख होता है.चाहे वो रंगोली बनाना हो या फिर रिश्ते बनाना.अर्थात जिन रिश्तों को बनाने में हमारे बड़ों ने जो यत्न किये हैं,छोटों का भी कर्तव्य बनता है कि वो उन रिश्तों को सदा संजोकर रखें.नैना को मीना की बात समझ आ गयी थी वह बोली-" जी माँ मैं कभी आपकी रंगोली को बिगड़ने नही दूंगी ".
व्यवहारिक ज्ञान सीखने और सीखाने के लिए बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ने की जरूरत नही होती है, हम दैनिक जीवन में होने वाली छोटी-छोटी घटनाओं से भी बहुत कुछ सीख सकते हैं और  अपने से छोटों को सिखा भी सकते हैं. यही इस कहानी का उद्देश्य है..

गुरुवार, 3 मई 2018

THURSDAY CELEBRITY- मिलिए आमला शंकर से

 उम्र 98 साल, हौंसला 16 साल जैसा। अपनी प्रतिभा का परिचय हर जगह दिया। उनके लिए प्रतिभा का उजागर करने का अर्थ कुछ और ही है। वह इसके जरिए ईश्वर के साथ संवाद करती हैं। मशहूर नृत्यांगना आमला शंकर ने खुद को एक पेंटर के रूप में स्थापित ही नहीं किया बल्कि इसे उन्होंने उस परमपिता परमात्मा से बात करने का जरिया भी बना लिया है।
आमला शंकर खूबसूरती और प्रकृति की बहुत बड़ी प्रशंसक हैं। 
अपनी आर्ट के प्रति रूचि के बारे में आमला जी बताती हैं कि बचपन में मैं अल्पना के डिजाइन बनाया करती थी जोकि गांवांे में आम बनाए जाते थे। लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं कभी पेंटिंग करूंगी या इस आर्ट को सीखूंगी।
सन् 1956 में महात्मा बुद्ध की 2500 जन्म पुण्यतिथि के अवसर पर मेरे पति उदय शंकर जी को काम सौंपा गया जिसमें कि उन्हें एक स्टेज प्ले शो के लिए शैडो स्लाइडस बनाने का।  उसके लिए बहुत से लैंडस्केप, आर्किटेक्चर के स्लाइडस बनाए गए लेकिन जब उन्हें लगाया गया तो उनके बीच में गैप नजर आ रहा था जिसकी वजह से वह भद्दे लग रहे थे।  बहुत नुकसान हो रहा था। तब मैंनें ऐसे ही काले और सफेद लिक्विड कलर उठाए और अपनी उंगलियों से पेड़ और रास्ते बनाने शुरू कर दिए।  जब उन्हें स्क्रीन पर देखा गया तो शैडो बहुत सुंदर लग रहे थे। बिल्कुल 3डी इफेक्ट आ रहा था।  सबको बहुत पसंद आया तब मैंने शुरू किया और 82 स्लाइडस बनाई और उन्हें स्पेशल कैमरे के साथ दिखाया गया।  उसके बाद से तो जब भी कोई पेपर हाथ में आता मैं उस पर ड्राइंग करने लगती।
डांसिग और पेंटिग के बारे में आमला जी कहती हैं कि मैं इस संसार में एक अनाज के दाने की तरह हूं।  मैं यह नहीं सोचती कि मैं एक डांसर या पेंटर की तरह जियूं या फिर एक मां की तरह।  यह सब ईश्वर की पूजा के लिए है। नृत्य फूल है और धार्मिकता उसकी खुशबू।  इमोशन भाव हैं पेंटिग में जोकि लोगों को अपनी ओर आकृषित करता है जोकि इस आर्ट के प्राण हैं
  98 वर्ष की उम्र में उन्होंने खुद को नए सिरे से खोजा है और एक नई जिंदगी की शुरूआत की है।  उन्होंने पेंटिग कहीं सीखी नहीं है बल्कि अपनी कल्पनाशक्ति से ही उन्हें साकार किया है।  उनकी ज्यादातर पेंटिंग में इमेजिन की हुई गुफाएं हैं, महात्मा बुद्ध का जीवनदर्शन, कई तरह के लैंडस्केपस और जीसस क्राइस्ट के बारे में हैं।  उनकी कलाकृतियों में आध्यात्मिकता झलकती है।  आमला शंकर को पद्मभूषण, टैगोर फैलो आॅफ संगीत नाटक अकादमी और बंगा विभूषण आॅफ द गर्वनमेंट आॅफ वेस्ट बंगाल।

बुधवार, 2 मई 2018

कहानी- पाचन तंत्र-दर्शना बांठिया

मनीषा नई- नई शादी करके आई ही थी कि सास ने किचन की कमान उसके हाथों सौंप दी,लेकिन उनका रोक-टोक करना कभी बंद नहीं हुआ।शनिवार के दिन मनीषा दोपहर में खाना बना रही थी ,तभी भिक्षुक की आवाज आई -रोटी दे दो माई।मनीषा ने आवाज सुनते ही 2 गर्म रोटी ली और भिक्षुक को देने के लिए जैसे ही दरवाजा खोला तो सास ने तेज स्वर में कहा -'अरे इनको ये गर्म रोटी हजम नहीं होती, वो रात की बासी रोटी पडी है ना ,वो दे दो ' मनीषा तेज आवाज में ऐसी बात सुनकर स्तब्ध रह गयी और उसे रात की पड़ी सूखी रोटी दे दी।मनीषा पढी -लिखी व समझदार थी उसके मन में कई तरह के विचार उमड़ने लगे।
इंसान की जैसे- जैसे उम्र बढ़ती है वैसे- वैसे ही वो हठी प्रकृति का होने लगता है।रविवार के दिन मनीषाा सुबह से ही किचन के कामों में व्यस्त थी,कारण कि आज मनोज(पति) की ऑफिस की छुट्टी है और उनकी पंसद के भोजन की तैयारी करनी थी। खीर,पूरी, सब्जी, कचौरी और मेवे का हल्वा।वो मन ही मन अपनी माँ की बात को याद कर रही थी कि कैसे उसकी माँ हमेंशा कहा करती थी कि "पति के दिल का रास्ता पेट से होकर गुजरता है,इसलिए तू भी अच्छा खाना बनाना सीख लें "मनीषा उनकी बात सुनकर हमेशा मुस्करा देती थी।मनीषा मेवे जरा देखकर डालना और पूरी तेल की ही अच्छी लगती है ,घी मत चढाना अपने सास की आवाज सुनकर मनीषा वर्तमान में लौट आई और कढाही में तेल डालने लगी। मनीषा को उनका रोक-टोक करना हमेशा खराब लगता था पर वो चुप रहती।मनोज किचन में आया और बोला आज बड़ी खुशबू आ रही क्या बनाया है? मनीषा कुछ बताती इतने में ही भिक्षुक की आवाज आई -रोटी दे दे माई। मनीषा ने देखा कि सास दिखाई नहीं दे रही तो उसने गर्म पूरी बनाई व खीर का प्याला भरा और जैसे ही देने लगी कि पीछे से सास ने हाथ पकड़कर कहा 'कल तो समझाया था कि इन लोगों को गर्म खाना पचता नहीं और वैसे भी रोज की आदत हो जाएगी इनकी मांगने की।एक काम कर कल की बची हुई सब्जी और नींबू का अचार दे दे।पर माँ जी वो सब्जी तो कल सुबह की है और अचार में तो फंगस आ चुकी है ,ऐसा देना सही नहीं है ।अरे इनको कुछ फर्क नहीं पड़ता,इनकी, तो आदत हो गई है ऐसा खाने की।मनीषा ऐसी बात सुनकर झल्ला उठी और बोली " क्यों मां जी इन के शरीर का पाचन तंत्र हमारे शरीर से अलग है क्या, जो इनको बासी व खराब खाना ही पचता है ,जो खाना हम नहीं खा सकते, हमारे लिए खराब है तो हम किसी और को क्यों दे?हम लोगों की 1-2 रोटी से ही इनका जीवन यापन चलता है" "माँ जी मनीषा की बातें सुनकर विस्मित हो गई ,पास में खड़ा मनोज भी बोल पड़ा- माँ ये सब क्या है?अगर हमारे पास पुण्याई से इतना है कि हम किसी को दो रोटी दे सकें तो आप क्यों मना कर रही है और जो चीज हमारे स्वयं के खाने योग्य नहीं है उसे दूसरे को नहीं देनी चाहिए।मां जी को आत्मग्लानि होने लगी। वास्तव में ऐसी नःस्थिती कई लोगों की होती है।


इंसान को समय के साथ अपनी प्रवृति बदलनी चाहिए।माना कि हम सम्पूर्ण विश्व को अपनी थाली से आहार नहीं दे सकते लेकिन प्यार व सम्मान तो सबको दे ही सकते है।






WEDNESDAY RELATIONSHIP-रिश्ता मां बेटी का पार्ट 2 अनुजा भट्ट

  बेटी ने मां काे टेक्नाेसेवी बना दिया है। अब लाइन पर नहीं खड़ी रहती मां। मोबाइल के जरिए या फिर इंटरनेट से घर से ही बिल जमा करती है, गैस बुक करती है, ट्रेन और एयरलाइंस का टिकट बुक करती है। बैंक का सारा कामकाज घर से ही करती है। पहले उनको यह असुविधाजनक लगता था पर धीरे धीरे अब उनको मजा आने लगा है वह नए से नए गैजट्स के बारे में जानना चाहती हैं। शापिंग माल में घूमने से पहले वह वेबसाइट्स में जाकर नए प्रोडक्ट के बारे में जानकारी ले रही हैं। ताकि खरीददारी करने में समय की बचत हो। इधर उधर न भटकना पड़े। फ्री होम डिलीवरी पर भी वह यकीन करने लगी है। हर जानकारी के लिए मां बेटी को फोन करती है। फिर चाहे वह गाड़ी चलाना हो या फिर कंप्यूटर।
मां के लिए एस एम एस एक रिश्ते का नाम है
आज के दौर में रिश्ते की परिभाषा को कहने के लिए एक नया शब्द आ गया है जिससे हम सभी परिचित है और वह है एस एम एस। एस एम एस का फुल फार्म है शार्ट मैसेज सर्विस। आप अपना संदेष इसके जरिए पूरी दुनिया में कही भी भेज सकते हैं। औरमां को तो मिनट मिनट में मैसेज भेजना है, नहीं तो वह चिंता करती रहेगी। पर जब मां घर से बाहर होती है तो वह भी हमें मैसेज करती रहती है। इसलिए रिश्ते का नाम है एसएमएस।बेटियां जब एसएमएस कहती हैं तो उसका अर्थ होता है श्योर मां श्योर।

Special Post

मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

  (अब पहले की तरह किस्से कहानियों की कल्पनाएं हमें किसी रहस्यमय संसार में नहीं ले जाती क्योंकि हमारी दुनिया में ज्ञान, विज्ञान और समाज विज्...