बचपन
से पेंटर (चित्रकार ) बनने का सपना था. पर सबका मानना था कि,पेंटिंग हॉबी
तक ठीक है पर कैरियर के लिए नहीं.मन मार कर एम बीए कर लिया.फिर नौकरी की
उसके बाद शादी हो गयी.फिर वही घर-गृहस्थी की जिम्मेवारियाँ.अपने मन के करने
का कभी मौका ही नहीं मिला.धीरे धीरे मन से कुछ करने की इच्छा ही समाप्त हो
गयी.लगता ही नहीं,कि मैंने कभी पेंटिंग प्रतियोगिताओं में इतने पुरुस्कार
जीते थे.कैसे रंगों से कैनवास पर खेलती थी.जब चाहे जो भी रंग भर देती
थी..अपने ही द्वारा बनायी तस्वीर में. पेंटिंग कहीं सीखी नहीं थी बस अपनी
कल्पनाओं से ही उन्हें साकार किया.
अब
तो कुछ पेंटिग करने का सोचती तो लगता, कि ब्रश भी ठीक से पकड़ना आयेगा या
नही.?, रंगों का चयन व संयोजन सही तरीके से कर पाऊँगी या नहीं.?अपने ऊपर
विश्वास तो जैसे रहा ही नहीं था.
अंधेरे
में छोटे छोटे जुगनुओं को टिमटिमाते हुए देखा तो लगा,कि गहन अंधकार को दूर
करने के लिए ये कैसे सतत प्रयत्नशील हैं अर्थात चमक रहें हैं.फिर मैंने
क्यों हार मान ली.? मैं भी फिर से प्रयास करूँ तो अपने पेंटर बनने के सपने
को पूरा कर सकती हूँ.जिम्मेवारियों का क्या.! वो तो मरते दम तक भी पूरी
नहीं होती.
बस
इसी सोच के साथ फिर से पेंटिंगस बनाना शुरू कर दिया.समय समय पर प्रतीक की
मदद भी ली.रिया (विधायक) की मदद से शहर में होने वाली पेंटिग एक्सिबिशनस
में मेरी पेंटिग्स को भी स्थान मिलने लगा.पेंटिग्स को लोग पसंद करने लगे और
बड़े बड़े पुरुस्कार मिलने लगे.लोग मेरी बनायी हुई पेंटिंग्स को खरीदने
लगे.धीरे- धीरे मेरी पेंटिग्स की माँग बड़ने लगी और मैं भी लोगों के बीच
लोकप्रिय होने लगी.
आज
मीना,रिया,संज्ञान व प्रतीक सभी मित्र घर आये.बातों ही बातों में मीना
मुझसे कहने लगी- "अब तो तुम जानी मानी पेंटर बन गयी हो,मैं एक कहानी तुम
पर भी लिखना चाहती हूँ ".मैंने कहा- "हां क्यो नहीं..? जरूर लिखो और उसका
शीर्षक रखना-"जुगनुओं सी चमक".क्योंकि जुगनुओं की इसी चमक ने मुझे फिर से
अपने जीवन में रंग भरने की प्रेरणा दी.वरना मैंने तो अपनी ज़िंदगी बेरंग बना
रखी थी.इसी चमक को देखकर मेरा खोया हुआ आत्मविश्वास पुनः लौट आया और मैं
अपने पेंटर बनने के सपने को पूरा कर सकी.
इस मौके पर शायर संज्ञान कहाँ खामोश रहने वाले थे,एक शायरी उन्होंनें भी सुना ही दी...
टूटने लगे हौंसला,तो ये याद रखना,
बिना मेहनत के तख्तो-ताज नहीं मिलते.
ढूंढ लेते हैं अंधेरों में मंज़िल अपनी,
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