मंगलवार, 10 जनवरी 2012

त्यौहार के रंग में रंगा घर द्रार

     डा. अनुजा भट्ट
 दीपावली सिर्फ हमारे देश में ही नहीं मनाई जाती है। विदेशों में बसे लोग भी दीपावली का त्यौहार बड़ी निष्ठा के साथ मनाते हैं। त्रिनिनाद में तो एक शहर का नाम ही दीवाली नगर है। यहां हर साल दीपावली अपनी परंपरा के साथ मनाई जाती है। इस तरह से देखें तो दीपावली एक ग ्लोबल त्यौहार के रूप में जाना जाता है इसका मूल भाव अन्याय पर न्याय की विजय, असत्य पर सत्य की नजर है।  यह मूल भाव सभी संस्कृतियों में देखा जाता है। इसलिए इसको मनाने वाले सभी धर्मों के लोग है।
यह त्यौहार लोगों को प्रेरित करता है। आज पारंपरिक त्यौहार के साथ ही साथ यह त्यौहार व्यवसायिक जगत में  भी लोकप्रिय है।  लिहाजा भारतीय संस्कृति और त्यौहारों पर दूसरे देशों की भी नजर है।  उपहारों के आदानप्रदान का सिलसिला चल पड़ा है तो घर और आफिस सजाने के लिए भी लोग नया कांसेप्ट  ढूंढ रहे है।  बाजार सजाए जा रहे हैं होटल और रेस्तरां दुल्हन की तरह सजे हैं। हर ब्रांड कुछ नए आफर लेकर आ रही है जिसमें घर की सज्जा के भी बहुत से ब्रांड है। चादर, तौलिए, कुशनकवर, पर्दे से लेकर सजावटी सामान की कई कैटेगिरी मौजूद हैं।
  भारतीय त्यौहार चीनी साजोसामान
देशी विदेशी टच लिए भारतीय बाजार पर चीन का अच्छा-खासा प्रभाव देखा जा सकता है। इस समय दीपावली की रौनक बढ़ाने के लिए चीन में बने सजावट के इलेक्ट्रानिक सामान स्थानीय दुकानों की शोभा बढ़ा रही है। इसके साथ ही विभिन्न प्रकार के कृत्रिम फूल भी हैं जो बिलकुल प्राकृतिक लगते हैं। परंपरागत मिट्टी के बर्तन, दीपक व मोमबत्ती के साथ हिन्दूवादी आस्था के चिह्न स्वास्तिक व  ओम के चिन्ह भी चीनी हो गए हैं। ओम को आर्कषक बनाने के लिए  लाइटिंग का प्रयोग किया गया है। यह 400 से 600 रुपये के रेंज में मिल रहा है। ऐसे ही स्वास्तिक को भी साज-सज्जा के साथ बाजार में उतारा गया है। चीन में बने बंधनवार के कई नए व आकर्षक माडल से स्थानीय बाजार  में  भी दिखाई दे रहे हैं इसमें ड्रम लाइट, सिलेण्डर, लड़ी व अन्य स्वरूप प्रदर्शित किए गए हैं। इसके साथ ही बिजली के चाइनीज झालर भी हैं। यह 20 रुपये से लेकर 500 रुपये तक के रेंज में बाजार में उपलब्ध है। इसके अलावा फूल लाइट एवं एलईडी लाइट भी लोगों को आकर्षित कर रहे हैं। इन लाइटों में पांच सर्किट हैं। एक-दो सर्किट खराब होने के बाद भी झालर खराब नहीं होती है। मोमबत्ती व दीपक की शक्ल में लाइट पहले से बाजार में उपलब्ध है।
 कौडिय़ों वाली वंदनवार है खास
 घरों को सजाने के लिए रंगीन बल्बों वाली लडिय़ां, फूलों वाली लडिय़ां, बल्बों का जाल, क्रिस्टल गोल लाइट, फ्लावर पोट, इलेक्ट्रोनिक सीनरी, इक्वेरियम, विंड चैंपस, कपड़े के कंडील, चाइनीज कंडील, क्रिस्टल लड़ी, बंदनवार, रीबन हार, शुभ दीपावली के स्टीकर,  रंगोली के बने बनाए स्टीकर,पेपर डेकोरेशन, लटमन, रेशम हार, फ्लावर हार सहित बेशुमार वैरायटियां बाजार में मिल रही है।  नए स्टाइल में इस बार लटमन, कपड़े के कंडील व कौडिय़ों वाली बंदरवाल  पेश  किए गए हैं।  इलेक्ट्रोनिक सीनरी, इक्वेरियम व लक्की मैन के अलावा घर की साज-सज्जा के लिए फ्लावर पोट भी खूब बिक रहा है।
  चटख रंग खुशी का प्रतीक
 चटख रंग, खूबसूरत पैटर्न, बोल्ड प्रिंट्स, शानदार कशीदाकारी, मिरर वर्क  के जरिए कई तरह के साज सज्जा के सामान बाजार में हैं। गोल्डन और ऑरेंज टिश्यू के साथ डेकोरेटेड टेराकोटा मटकियां, कॉपर फिनिश के लैंप, फ्लोटर, हट आदि के साथ ग्रीन प्लांट्स की सजावट  त्यौहार के रंगों से घर को भर  रही है और उत्सव का माहौल बना रही है। रस्ट व गोल्डन सिल्क ड्रेप के साथ सिक्कों व शीशों से सजी गोल्डन मटकियां और फ्लोटर्स परंपरा का आभास कराते हैं। कलरफुल बंधेज की ड्रेपिंग व कुशन के साथ ट्रडिशनल हैंगिंग उत्सवी माहौल को रंगीन बना देते हैं। ब्राइट कलर्स के पर्दे और कुशन ऐसी सजावट पर बहुत फबते हैं। केन व नक्काशीदार रोजवुड जैसे ट्रडिशनल फर्नीचर से सजे घर में चिक के पर्दे सजावट में चार-चांद लगा देते हैं।
कढ़ाईदार बेड शीट्स, बेड कवर्स और कुशन्स भी ट्रडिशनल डेकोरेशन को दर्शाते हैं। इसीलिए जब घर सजाएं तो मिरर जड़े रंगीन पर्दे, कॉपर फिनिश वाली मटकियां, कलरफुल कुशन्स और पर्दों को घर की सजावट में महत्वपूर्ण जगह दें। घर के कॉर्नर और एंट्रेस को फर्न, घंटियों और दीयों से सजाएं।
 कम समय में ज्यादा सजावट
  अगर आपके पास रंगोली बनाने का समय नहीं है तो रंगोली के स्टीकर  हैं। जिन पर आप रंग और फूल दोनों से रंगोली सजा सकती हैं। दिए के भी कई पैटर्न है। बाजार से बने बनाए दिए के नए नए पैटर्न लाइए और बस पेंट कर दीजिए। घर के हर कमरे में अलग तरह की लाइटिंग या ड्रॉइंग रूम के किसी ऐसे कोने को, जिसे आप हाइलाइट करना चाहते हैं, लाइटिंग करके नएपन का अहसास दिला सकते हैं। घर की चीजें यहां तक पर्दे और कुशन भी एक ही तरह के कलर्स यानी मिक्स मैच का ध्यान रखें।   
   चाक से कोई  भी डिजाइन बनाइए और उस पर  दिए रख दीजिए  दूर से देखने पर दिए एक आकृति के रूप में नजर आएंगे। फूलों से गणेश बना सकते हैं या फिर कोई  भी आकृति बनाकर उसे फूलों से भर दीजिए। फूल अलग अलग रंग के हों तो अच्छा है। रंगों के जरिए भी रंगोली बना सकते हैं पर पैटर्न आप अपनी पसंद का चुनिए।
 याद रखिए इंटीरियर के मामले में देखादेखी आपकी क्रिएटिविटी को नहीं दर्शा सकती इसलिए यह सोचने के बजाए कैसा लगेगा अपनी सारी ऊर्जा नयापन लाने में खर्च  कर दीजिए। आपके पास विकल्प  मौजूद हैं।

थीम होम का आया जमाना



                     

 डा. अनुजा भट्ट

 घर की साज सज्जा को लेकर लोगो का नजरिया बदल रहा है। ग्लोबल दुनिया में हर कोई अपने घर को एक अलग अंदाज में दिखाने की कोशिश कर रहा है फिर चाहे वह सिलेब्रिटी होम हो या फिर सामान्य घर। समय की इसी मांग को ध्यान में रखते हुए हर साल कुछ नए रंग और डिजाइन पेश किए जाते है जिनको हर कोई फोलो करता है फिर चाहे वह फैशन डिजाइनर हों या फिर इंटीरियर डिजाइनर।
होम डेकोर ट्रेंड्स
पेंटालून ने  जो होम डेकोर ट्रेंड बताए हैं उसमें इको फ्रेंडली थीम पर जोर दिया गया है। दूसरा नंबर व्यक्तिपरक भौतिकतावादी दृष्टिकोण को अपनाने वालों का है । तीसरे नंबर पर है पीरियड फ्यूजन। इसके अलावा एंटीक लाइटिंग, डेकोरेटिव हेंडीक्राप्ट एक्सेसरीज, मेटल क्राफ्ट, सिल्क पर भी जोर  दिया जा रहा है।
  इसी के साथ  अलग अलग संस्कृतियों भी एक मंच पर नजर आ रही हैं जैसे कष्मीरी,, राजस्थानी, आदिवासी एक ही घर में साथ साथ हैं।  माड्यूलर फर्नीचर लोगों की पहली डिमांड है यह किचन से लेकर हर कमरे में ् अपनी जगह बना चुका है। फ्लोरल प्रिंट, एनीमल प्रिंट सबसे ज्यादा दिखाई दे रहे हैं। नेचर फ्रेंडली के तहत सोलर लाइटिंग, रेन वाटर हावेस्टिंग, रिसाक्लिंग क्राफ्ट भी हर घर में हो ऐसी कोशिश की जा रही है।
 घर देता है संदेश
कुछ भी कहें अब घर सिर्फ रहने का ठिकाना नहीं है। न ही यह सिर्फ एक छत का नाम है जिसके नीचे हमारा संसार है। घर भी अब अपना संदेश देने की कोशिश कर रहा है।  हमारी आंखें उस संदेश पढऩे में कामयाब हैं दरअसल यह संदेश घर की साजसजावट के जरिए हमारी आंखों के पास आ रहा है। कभी हम घर की कलात्मकता के कायल हो रहे हैं तो कभी घर में सहेज कर रखी गई चीजें हमें अपने अतीत को जानने का ्अवसर दे रही हैं।  हम बारिश के पानी को बचाने के बारे में सोच रहे हैं और सूरज की रोशनी से घर का खाना पकाना चाहते हैं।  मिट्टी के  घर लोगों को लुभा रहे हैं  वह उसमें आधुनिक साजोसामान  के साथ रहना चाहते हैं। अब मनुष्य प्रकृति के साथ रहकर आधुनिकता की परिभाषा लिखने की कोशिश कर रहा है।एक समय में वास्तु का जोर था और अब इको फ्रेंडली सबकी जुबान पर है। घर बारह और भीतर सब तरफ से बदल रहा है और यह बदलाव घर में रहने वालों का बदलती सोच को भी दर्शा रहा है।
कला का बाजार बढ़ा
  दूसरी तरफ रुख करें तो कला का बाजार बढ़ा है। देश- विदेश की कलाएं विभिन्न रूपों में हमारे घरों में सजी हैं।  फिर चाहे वह वाल हैगिंग हो या फिर झाड़ फानूस। लोक कला भी कई रंगों में अपनी छटा बिखेर रही है। फिल्म और सीरियल मे्ं दिखाए जा रहे घर अब सिर्फ सेट भर नहीं रह गए हैं। लोगो ने उस तरह से अपने घर को भी सहेजना शुरू कर दिया है।  बालिका वधू में दिखाया गया झूला अब आम घरों में भी दिखाई दे रहा है। इसी तरह गणेश, लाफिंग बुद्धा, दिए और मोमबत्ती घर के दरवाजे में प्रतीक्षा कर रहे हैं। मिट्टी की छोटी छोटी घँटियां बंदनवार के रूप में घर घर में सज रही हैं। फैंगशुई भी उसी तरह से हर घर की शोभा बन गया है। सिर्फ घर ही नहीं रेस्तरां, होटल और शोरूम भी  सजावट के लिए सजग हो गए हैं।
 घर की साजसज्जा को लेकर इंटीरियर में काफी बदलाव आया है जो हमेशा बदलता रहता है इसीलिए लोग कम बजट के साथ अपने घर को हमेशा नएपन से भरना चाहते हैं। इंटीरियर डिजाइनर श्रृद्धा कहती हैं कि हम पहले क्लाइंट का मन टटोलते हैं वह क्या चाहते हैं? फिर उसी के अनुसार काम करते हैं। मार्केट में इस समय जो ट्रेंड चल रहे हैं उसमें सबसे ज्यादा प्रचलन में मार्डन लुक ही है। खासकर फ्लैट में मार्डल लुक की मांग ज्यादा है।
 मार्डन लुक- डिजाइनर गीतिका माथुर के अनुसार, इसकेे अंतर्गत कमरे को ब्राइट कलर और बोल्ड पैटर्न में डिजाइन किया जाता है। खिड़कियों पर स्ट्राइप्ड परदे और कुशन भी उसी फ्रेब्रिक के होने चाहिए। पिंक और व्हाइट का काबिनेशन बडा़ सुकून देता है। फ्लोरल पैटर्न के कुशन पिंक और व्हाइट में रखें। सोफे की अपहोलस्ट्री न्यूट्रल कलर की रखें। यह किसी भी थीम में शामिल हो सकती है। अपने लैंपशेड्स को स्ट्राइप्ड और फ्लोरल में माउंट प्रिंट में बनवाएं। बच्चों के कमरों में बोल्ड ज्योमैट्रिक प्रिंट बहुत जंचते हैं।  स्टारषेप के कुशन कवर पर पोलका डाट होने से कमरे की रौनक बढ़ जाती है।  बच्चों के कमरे में पिन बोर्ड का होना जरूरी है।  पिन अप बोर्ड को उसी कपड़े से माउंट करें।
 मार्डन और ट्रेडीशनल लुक-  इसके लिए बच्चों के कमरे में दरी या चटाई पर रखे कुशन बहुत ही कैजुअल और कूल लुक देते हैं। फ्लोर अरेजमेंट घर के किसी कमरे में बहुत कूल लगता है। ड्राइंगरूम में फ्लोर अरेजमेंट आरेंज और रेड कुशन से करें।  इसके पास प्लांटर और फ्लोर लैंप रखें। बोल्ड कलर के कुशन रूम की शोभा के साथ एक फोकस पाइंट भी बन सकते हैं। सीलिंग से हैंगिग ग्लोब कमरे की शोभा को बढ़ाते हैं।  गर्मियों में कमरे को कूल लुक देने के लिए पीयर कर्टेन लगाएं। बैड के हैड बोर्ड के साथ कुशन को अ्लग-अलग रंगों में अरेंज करें। हमेशा ध्यान रखें कि कलर एक ही फेमिली के हों।  सिल्क और वैलवेट कुशन हमेशा रिच लुक देते हैं और कमरे को आकर्षक बनाते हैं। यह ट्रेडिशलन भी लगते हैं। मार्डन लुक के लिए स्ट्रैप्स वाले पर्दे और कुशन कवर लगाएं। बैडरूम की एक दीवार पर फेमिली फोटो लगाएं और बारी बारी से बदलते रहें।
 इंडियन थीम- डिजाइनर अंशु पाठक कहती हैं कि पीतल के दीपक, घंटियां और डेकोरेटिव प्लेट्स, इंडियन थीम के हाइलाइट्स हैं। ड्राइंग रूम की सेंटर टेबल पर दीपक रखकर गुलाब के फूलों का ्अरेजमेंट बहुत  सुकून देता है। पीतल के बर्तन में पानी और गुलाब की पंखुडिय़ा डाल कर उसमें एसेंस डालें। आजकल एरोमा आयल और अरोमा कैडल्स का चलन में हैं। इससे वातावरण अच्छा लगता है। टेबल  मैट्स लगाएं। मिरर वर्क टेबल पर  अ्च्छा लगता है। डाइनिंग रूम में क्रिस्टल बाल रखें और उसमें कलर फुल ग्लास बाल डालें। डाइनिंग टेबल घर के सेंटर में होनी चाहिए। राजस्थान इंडियन थीम का बेस है बांधनी प्रिंट। बंधेज के कुशन कवर किसी भी कमरे  की शोभा हैं। झूला तो बहुत ही आकर्षक लगता है।
कलर थीम- कलर थीम में रंगों के संयोजन पर जोर दिया जाता है। इंटीरियर डिजाइनर मानते हैं कि रंगों का मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है जानी मानी पत्रकार, चित्रकार और इंटीरियर डिजाइनर अलका रघुवंशी कहती हैं रंग संवाद करते हैं और आपकी भावनाओं को भी व्यक्त करते हैं। सुख-दुख, अवसाद उल्लास सब रंगों द्रारा ही व्यक्त होते हैं। इसीलिए प्रकति में इतने रंग है और रंगों के भी कई सारे शेेड्स। कभी गौर से देखिए और सोचिए कि प्रकृति और ऋतुओं का क्या मेल है। फूल हंसते क्यों हैं और पतझड़ आता क्यों है। हमारा घर, आसपास, आफिस सब खुशियों से भरा रहे और एक सकारात्मक ऊर्जा वहां हो इसीलिए रंगों और वास्तु-ज्ञान का तालमेल होना चाहिए। लाल रंग ऊर्जा बढ़ाता है तो पीला प्रसन्नता और खुशी को दर्शाता है। नीला रंग शांति का प्रतीक है और स्थिरता का भी। हरा रंग आंखों को शांति देता है, बैंगनी रंग एष्वर्य और आधुनिकता का प्रतीक है तो गुलाबी मौजमस्ती और उत्तेजना का।
 वास्तु थीम- वास्तु विशेषज्ञ संगीता कहती हैं कि दिशा का बड़ा महत्व है क्योंकि पृथ्वी पर मुख्य ऊर्जा केवल सूर्य है। सूर्य की गति के कारण घर की ऊर्जा बदलती रहती है। इसी सिद्धांत पर आग्नेय कोण की कल्पना की गई है  इसके लिए  घर का दक्षिण पूर्व का कोना उपयुक्त माना जाता है। आग्नेय कोण पर घर की रसोई बनाना ठीक रहता है। इशान कोण पर पूजा घर होना चाहिए। घर का केंद्रीय स्थान बहुत महत्वपूर्ण है इसको ब्रहम स्थान भी कहा जाता है यह उतना ही महत्वपूर्ण है जितना मनुष्य के षरीर मे हृदय का स्थान। नैतृत्व कोण में घर का टायलेट, बाथरूम होना चाहिए।
 आध्यात्मिक थीम-  इसमें कृषण, साईबाबा, गणेष, लक्ष्मी, दुर्गा, तिरुपति बालाजी की मांग ज्यादा है लोग इनको समृद्धि और विध्न विनाषक के रूप में देख रहे हैं। इसीलिए घर को सजाने  के लिए लोग  इनकी  पेंटिंग का प्रयोग कर रहे हैं। दूसरे लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए लगातार एसएमएस और ईमेल भी किए जा रहे है। इस तरह यह खुद ब खुद एक थीम बनता जा रहा है।
 फोक आर्ट थीम- इसमें हम अपने देष की आदिवासी कला को ही महत्व नहीं दे रहे हैं  अफ्रीका की आदिवासी कला भी हमारी पसंद में षामिल हो रही है। यह सब पेंटिंग,वाल हैंगिंग, चादर, और पर्दो में दिखाई दे रही हैं ।
  चाइनीज थीम-  इस थीम में बुद्ध की प्रतिमा, मोमबत्तियां, क्राफ्ट, क्रिस्टल, डेकोरेषन लैंप, तैल चित्र, फोटोफ्रेम, पेंटिंग का प्रयोग ज्यादा होता है।
कुल मिलाकर कहें तो घर को सजाने के लिए जहां सजावट पर जोर दिया जा रहा है वहीं अपनी संस्कृति और इतिहास को खगालने की भी कोषिष की जा रही है। इतिहास सिर्फ पढऩे का विषय नहीं रहा हम उसकी साज सज्जा के पहलुओं को भी गौर से देख रहे हैं। मुगल कालीन षिल्प और सज्जा इंटीरियर डिजाइनर की सबसे पहली पसंद बनता जा रहा है। बड़ी बड़ी सिलेब्रिटी अपने घर को सजाने के लिए इन  सजावट के साथ -साथ वैकल्पिक सिद्धियों का प्रयोग कर रही हैं।


गुरुवार, 5 जनवरी 2012

आवश्यक्ता है


शीघ्र प्रकाशित महिला पत्रिका को आवश्यक्ता है, विज्ञापन प्रतिनिधियों की। उपसंपादक की। दक्षता- अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद, संपादन, लेखनР वेब डिजाइनर और मैग्जीन डिजाइनर कीÐ
 संपर्क करें। डॉ. अनुजा भट्ट
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मंगलवार, 3 जनवरी 2012

रोशनी हो हर जगह


अनुजा भट्ट 

जीवन के लिए रोशनी चाहिए।  पेड़-पौधे भी बिना रोशनी के विकसित नहीं हो पाते। कम रोशनी में पढऩे वाले बच्चों की आंखें कमजोर हो जाती हैं। जिन छोटे बच्चों को रोशनी नहीं मिलती वह कमजोर हो जाते हैं, यह तथ्य है।  विटामिन डी हमारे लिए बहुत जरूरी है। लेकिन प्राकृतिक के साथ कृत्रिम रोशनी की भी जरूरत होती है। अंधेरे में तो पक्षी रह सकते हैं मनुष्य नहीं ।  फिर भला कौन सुनना चाहेगा, क्या तुम उल्लू हो? अब अपने क्या अपने घर के बारे में भी कोई ऐसी बात नहीं सुनना चाहेगा जिससे उसकी कम समझ का पता चलता हो।  वह अपने साथ-साथ अपने घर के मेकओवर के बारे में भी जानना चाहता है। मेकओवर की इसी श्रृंखला में प्रस्तुत है घर की रोशनी-
 एक घर तभी सुविधाजनक लगता है जब उसमें  संतुलन हो । यह संतुलन हर जगह नजर आना चाहिए फिर चाहे वह कमरों को लेकर हो या फिर फर्नीचर से जुड़ा हो।  इसके अलावा जो सबसे महत्वपूर्ण है, और जिस पर हम ध्यान नहीं देते वह है घर की रोशनी ।  अमूमन  घर की रसोई, बाथरूम, बालकनी, सीढिय़ों में हम कम रोशनी का इस्तेमाल करते हैं। इसके पीछे हमारी सोच है कि यहां रोशनी की ज्यादा जरूरत नहीं । हमारा यह सोचना गलत है। इन जगहों पर पर्याप्त रोशनी की जरूरत होती है क्योंकि इनका संबंध हमारे स्वास्थ्य और सुरक्षा दोनों से जुड़ा है।
 रोशन करें घर सारा
आजकल अलग-अलग अलग कमरों के लिए  विभिन्न डिजाइनों की लाइट्स  का चलन है। लाइट्स के लिए  डिजाइन का चुनाव करते समय घर की थीम, कलर और इंटीरियर को ध्यान में  रखा  जाता है। इसके अलावा कमरों के आकार प्रकार पर भी ध्यान दिया जाता है। रोशनी के प्रभाव से घर को छोटा या बड़ा दिखाया जा सकता है। रोशनी आपके मूड को दर्शाती है।  अलग अलग रंग अलग मूड को प्रकट करता है। इन दिनों एक ही कमरे में कई तरह की लाइट लगाने का फैशन है जिसे रिमोट कंट्रोल से ऑफ या ऑन कर सकते हैं।
  नए ट्रेंड्स में लंबी लाइट्स
 बिजली की कम खपत वाली लाइट्स जैसे एल इ डी, सी एफ एल, टी 5 ट्यूब्स सजावटी लैंप  के लिए प्रयोग में लाई जा रही हैं । इनको लगाने का खर्च ज्यादा  है पर बिजली का खर्च ज्यादा नहीं है।  60 वाट के बल्ब से जो रोशनी मिलती है वह 15 वाट के सीएफएल से  भी मिल जाती है। लाइट्स लकड़ी की फिनिंशिंग में ज्यादा पसंद की जा रही है।  नए ट्रेंडस के रूप में कांपेक्ट लाइट्स  पसंद करने वालों की संख्या ज्यादा है। कांपेक्ट के लिए स्टील और ग ्लास  का प्रयोग किया जा रहा है।  कार्नर लाइट्स में अब कॉर्नर स्टैंड की बजाय लंबी  लाइट्स का चलन बढ़ा है. लकड़ी या धातु के  फ्रेम  का ट्रेंड बरकरार है पर शेड्स के लिए कपड़े की जगह कागज और बांस ने ले ली है। ट्यूब लाइट और छोटी और बड़ी ऑटोमेटिक लाइट बालकनी और  दरवाजे पर अभी भी अपनी जगह बनाए हुए है।
 झूमर झूमे झूमकर
शेंडलियर भी अब ड्राइंगरूम अलावा अन्य कमरों  में दिखाई दे रहा है।  हां, पर  इसका वह परंपरागत रूप बदल गया है। अब भारी भरकम शेंडलियर की जगह छोटे छोटे झूमरों ने ले ली है जिसमें नग नगीनों की जगह पर अब छोटे छोटे रंगीन बल्ब और घंटियां है। यह  घुमावदार होने के अलावा अब सपाट डिजाइन में भी है, जिसमें नक्काशी की जगह या तो पेंटिंग ने ले ली है या फिर यह गहरे रंगों में पेंट हैं। सतरंगी ज्यादा चल रहे हैं।
वेरायटी ही वेरायटी
  लाइटिंग के बाद सबसे जरूरी हैं - लैंपशेड्स। लैंपशेड्स खरीदते समय इस बात का ध्यान रखें कि वह बहुत ज्यादा बड़े न हों ताकि दूसरे कमरे में इनको आसानी से लगाया जा सके। आजकल अंडाकार, आयताकार, पिरामिड, चौकोर, त्रिकोण सभी तरह के डिजाइन हैं। लिविंग रूम में टेबल लैंप कॉर्नर टेबल के साथ लगाएं।  जहां पर टेबल लैंप रखा  हो वहीं पर सोफा रखें ताकि बैठकर पढ़ा जा सके। फ्लोर लैंप का प्रयोग अतिरिक्त लाइट के लिए किया जाता है यहां भी चौकोर, गोलाकार या ज्यामितिक डिजाइन है । लाइट्स ऐसी हंै जिससे फर्श गर्म न हो  और पैर जले नहीं।  रंगबिरंगे पत्थरों के बीच जलती हुई ये लाइट्स बहुत सुंदर लगती हैं।
  रंग से भरें रोशनी को
अभी भी अधिकतर घरों में सफेद और पीली लाइट्स का ही प्रयोग किया जाता है, जबकि बहुत सारे रंगों की लाइट्स बाजार में है। हमें उनका प्रयोग करना चाहिए क्योंकि हर रंग का अपना एक प्रभाव होता है। जैसेे वर्कप्लेस में सफेद रंग ठीक  है पर बेडरूम में भी यह रंग नहीं जंचता।  सुंदर घर को रखें सुरक्षित
किस कमरे के लिए कितनी रोशनी की जरूरत है इसका आकलन करने के बाद लाइट्स लगाई जाती हैं, ताकि घर को भव्य बनाया जा सके।  लाइट्स का चुनाव करने से पहले सोचना चाहिए कि लाइट्स कहां लगाई जा रही हंै, क्या वह उपयुक्त जगह है पानी का रिसाव तो वहां पर नहीं होता, जो लाइट्स लगार्ई गई है  वह ठीक से काम कर रही है या नहीं, आपके कमरे को कितनी रोशनी चाहिए, क्योंकि हर कमरे की  जरूरत अलग होती है उससे ज्यादा या कम लगाने से नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वह कमरे के तापमान बढ़ा देती हैं इससे बिजली की खपत भी ज्यादा होती है।

मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

एक कमरे के कई नाम




पर्सनल स्पेस के लिए विकल्प की तलाश जारी है। बाजार में आज ऐसे कई विकल्प मौजूद हैं जो आपके घर की सुंदरता का ख्याल रखते हुए तैयार किए जा रहे हैं और इसमें इंटीरियर डिजाइनर की भूमिका महत्वपूर्ण है। रूम पार्टिशन के लिए रूम स्क्रीन या फिर रुम डिवाइडर जैसे शब्द भी लोकप्रिय हैं।
 डा. अनुजा भट्ट
एक बट्टा दो या दो बट्टे चार छोटी छोटी बातों से बंट गया संसार। गाने की यह लाइन नव दंपत्ति के लिए फिट बैठती हैं जहां छोटी छोटी बातों से काम बन और बिगड़ सकता है। यह छोटी छोटी बातें जहां घर गृहस्थी को जमाने के लिए जरूरी हैं वहीं घर की साजसज्जा के जरिए आपकी सूझबूझ का भी परिचय देती हैं। गाने की यह लाइन आज के होम इंटीरियर पर फिट बैठती है। खासकर तब पर्सनल स्पेस महत्व रखने लगा है। इस पर्सनल स्पेस की घर से लेकर आफिस तक में मांग उठने लगी हैं ताकि हर कोई अपना काम स्वतंत्रता के साथ कर सके। घर में  पति-पत्नी से लेकर बच्चों तक को पर्सनल स्पेस की जरूरत होती है और आफिस में कर्मचारियों को। इसके अलावा क्रिएटिव फील्ड से जुड़े लोगों को भी ऐसे ही स्पेस की दरकार होती है।
महानगरों में फ्लैट संस्कृति हैं जिसमें 1 कमरे से लेकर 3 कमरों तक के घर होते हैं। अब यह फ्लैट संस्कृति छोटे शहरों में भी बड़ी तेजी के साथ देखी जा रही हैं। ऐसी स्थिति में पर्सनल स्पेस के लिए विकल्प की तलाश हो रही है। बाजार में आज ऐसे कई विकल्प मौजूद हैं जो आपके घर की सुंदरता का ख्याल रखते हुए तैयार किए जा रहे हैं और इसमें इंटीरियर डिजाइनर की भूमिका महत्वपूर्ण है। रूम पार्टिशन के लिए अलग अलग नाम का प्रयोग होता है जैसे रूम पार्टिशन, रूम स्क्रीन या फिर रुम डिवाइडर।
 नए चलन में रूम डिवाइडर के रूप में ग्लास का प्रयोग बढ़ रहा है। आर्ट एंड ग्लास के लोकेश पाठक कहते हैं कि आज ग्लास कई तरह के हैं। ग्लास में प्रिंटिंग से लेकर पेंटिंग तक बाजार में कई तरह से दिखाई दे रही है। अब यह सिर्फ घर की दीवारों में ही नहीं सजी है बल्कि घर के दरवाजे और खिडक़ी से लेकर रूम डिवाइडर के रूप में भी खरीदी जा रही है। इस बात को कहने से गुरेज नहीं कि कला का विस्तार हुआ है और उसको पेष करने के तरीके भी बदल रहे हैं।
 आज ग्लास कई रूप और आकार में हैं । कहीं ग्लास में लाइटिंग इफेक्ट का प्रयोग किया गया है तो कहीं पर एक्वेरियम का प्रयोग भी रूम डिवाइडर के रूप में हो रहा है। ग्लास पेंटिंग का प्रयोग भी यहां देखा जा रहा है जिसमें एयर ब्रशिंग आर्ट, स्ट्रेक ग्लास आर्ट, क्लिन फार्म आर्ट, डीप इचिंग और सर्फेस इचिंग का प्रयोग देखने लायक है।  वाल हैंगिग के जरिए भी कमरे को डिवाइड किया जा सकता है यह प्रयोग ड्राइंग  रूम और डाइनिंग रूम में किया जा सकता है।  वाल हैंगिंग के लिए लकड़ी से लेकर ग्लास, प्लास्टिक, मैटल और क्रिस्टल का प्रयोग किया जा सकता है। डिजाइन में ज्यामैट्रिकल शेप की मांग ज्यादा है। जिसमें ट्राइएंगल, रेक्टेंगल, ओवल, स्ववायर  और सर्किल षेप ज्यादा दिखाई दे रहे हैं। लाइट के साथ इसका इफेक्ट जादुई  प्रभाव छोड़ता है। स्टेंज और पैनल का भी प्रयोग किया जा रहा है। यह लकड़ी और मार्बल से बनाए जा रहे हैं।  इनको फोल्ड करके भी रखा जा सकता है।  इसमें अधिक्तर मुगल आर्ट का प्रयोग किया जाता है जिसमें महीन नक्काशी देखते ही बनती है। हाथी, घोडे, राजा की सवारी, पषु पक्षी इस तरह की कला की खासियत हैं।
 फेब्रिक का प्रयोग भी कमरों की सज्जा के लिए लिए किया जाता है। पर्दे का प्रयोग यू ंतो बहुत पुराना है पर अब नए स्टाइल के साथ दिखाई दे रहा है। यहां पर्दे लकड़ी के फ्रेम में लगाए जा रहे हैं और इन पर्दों पर खूबसूरत पेंिटंग की गई हैं। यहां पेंटिंग के कई स्टाइल हैं जो देश विदेश की कला को सामने ला रहे हैं। एक तरह से आधुनिक और परंपरागत कला का इसे मेल कहा जा सकता है। यह पर्दे फेब्रिक के ही नहीं हैं। नए चलन में लैदर से बने पर्दों की डिमांड ज्यादा है। इस समय होम फर्निशिंग के लिए लैदर की डिमांड अंन्तरराष्ट्रीय बाजार में ज्यादा है। होम डिवाइडर के रूप में यह खासे लोकप्रिय हैं।लैदर एल.टी.एच.आर कंपनी की निवेदिता गुप्ता कहती हैं कि लैदर का प्रयोग गारमेंट से लेकर फर्नीचर हर जगह हो रहा है। ् आजकल लैदर में भी आपको कई तरह के रंग मिल जाएंगे। लैदर से बने पर्दे और कारपेट की मांग इस समय सबसे ज्यादा है। डेकोरेशन पीस के रूप में भी यह सराहे जा रहे हैं।
 फाउंटेन का प्रयोग भी डिवाइडर के रूप में हो रहा है लाइटिंग के साथ यह बहुत सुंदर लगता है।  मार्बल से बनी आकृतियां इसके लिए बेहतर विकल्प है। मार्बल के बने शिव लिंग का सा आभास देती आकृतियां कुछ क्षण ठहरने को विवश करती हैं।
 फर्नीचर का प्रयोग भी डिवाइडर के रूप में हो रहा है। पहिए लगी लंबी बुक सेल्फ से भी यह काम किया जा सकता है और जब फिर से बड़े कमरे की जरूरत हो तो इसे हटाया जा सकता है। लंबी सी दिखने वाली समान ऊंचाई की यह बुक सेल्फ कई भागों में डिवाइड हो सकती है और इसे कहीं भी रखा जा सकता है। डिवाइडर का प्रयोग कमरे में चेंज लुक के लिए भी किया जा रहा है। ताकि एक ही घर हमें बार बार नया लगे।  बांस से बने पर्दे का प्रयोग जहां खिड़कियों में किया जा रहा है वहीं इसका प्रयोग रूम डिवाइडर के रूप में भी हो रहा है। पर यहां बास से बनी जालियां है और डिजाइन में गोल गोल लच्छों का प्रयोग है। बहुत सारे मैटेरियर, कलर, स्टाइल और साइज में इसे बनाया जा सकता है। और इनको लगाने का तरीका भी अलग अलग हो सकता है। कहीं यह घर की छत से जुड़े होते हैं जब वाल हैंगिग के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है। कहीं यह आधी ऊँचाई तक होते हैं। लकड़ी, फेब्रिक, बांस, राट्स, लेदर, ग्लास, मेटल, विनायल क्रिस्टल, बीड््स और प्लास्टिक से बने यह रूम डिवाइडर समय की जरूरत को बहुत खूबसूरती के साथ पेश कर रहे हैं। आज घर हो या आफिस हर जगह कला के रंग सजे हैं। कला के कद्रदान बढ़ते जा रहे हैं और इसी के साथ उसको पेश करने का तरीका भी बदल रहा है। कला के कद्रदान अब एक खास वर्ग तक सीमित नहीं हैं। अब हर घर कलात्मक रंग में रंगा दिखना चाहता है। बाजार में आज ऐसी कई  कंपनियां आ गई हैं  जो हर वर्ग का ख्याल रखते हुए अपने उत्पाद बाजार में पेश कर रही हैं।


बुधवार, 21 दिसंबर 2011



 नया वर्ष है, नव उल्लास है, नव गति है, नव जीवन है।
 ऐसे सुखद क्षणों में अभिनंदन है, सतत नमन है।
 रंगों की फुहार है, रंग सतरंगी हैं ।
  ऐसे में एक खड़ी नवेली लडक़ी सी, कब तक रोकेगी खुद को?
 जल्दी ही बस आने को है।
 अपराजिता
 आने को है ।
 सपने है उसके अपने
 उम्मीदों के पंख लिए वह बस उडऩे वाली है।
 पास खड़ी है सुनने को  एक प्यारा बोल,
 झिडक़ी पर भी मुस्कान लिए, वह फिर बैठगी सपनों की उड़ान लिए।
 इस उम्मीद में फिर आएगी तो चुग्गा  ही वह खाएगी ।
और आपकी बन जाएगी अपराजिता।
 तो मित्रों,
 नई नवेली लडक़ी सी अपराजिता आने को है
 प्यारा से एक बोल बोलकर अपना थोड़ा प्यार उड़ेल दो।
डां अनुजा भट्ट, सीईओ

वागीशा कंटेंट प्रोवाइडर कंपनी 42 डी, एक्सप्रेस व्यू अपार्टमेंट
सुपर एमआईजी
 सेक्टर 93 नोएडा
0120-9910032353
0120-2426678

सभी मित्रों को यह बताते हुए मुझे खुशी हो रही है कि वागीशा कंटेंट प्रोवाइजर कंपनी बहुत जल्दी ही अपराजिता के रूप में एक नई  महिला पत्रिका को आपके लिए पेश करने जा रही है।  मुझे उम्मीद है कि यह महिलाओं  के संपूर्ण आयामों का प्रतिनिधित्व करेगी।
इस पत्रिका में महिला सरोकारों से लेकर महिला अधिकारों की तो बात होगी ही साथ ही महिला स्वास्थ्य पर भी चर्चा की जाएगी। महिलाओं के लिए करियर पर भी विशेष जानकारी होगी।   बच्चों के विकास, सेक्स शिक्षा, फैशन, मार्केट ट्रेंड, इंटीरियर, कहानी, कविता, यात्रा- वृतांत जैसी   जैसी कई  रोचक सामग्री आप पढ़ सकेंगे।
 पत्रिका के लिए लेख आमंत्रित हैं
डां अनुजा भट्ट, सीईओ

वागीशा कंटेंट प्रोवाइडर कंपनी 42 डी, एक्सप्रेस व्यू अपार्टमेंट
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मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

नए जमाने के नए कालीन






 डॉ. अनुजा भट्ट
भारत में कालीन बनने की परंपरा मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में शुरू हो गई थी।  ये कालीन कई तरह से बनाए जाते थे।  इसकी एक झलक मदीना में पैगंबर हजऱत मोहम्मद के मक़बरे को सजाने के लिए बुने गए कालीन से मिलती है। गुजरात के बड़ौदा में बने इस कालीन की ख़ासियत यह है कि इसे लगभग बीस लाख मोतियों, हीरा, नीलम , माणिक्य
पन्ना जैसे क़ीमती पत्थरों से सजाया गया है। बसरा मोती नाम से जाने जाने वाले छोटे प्राकृतिक मोतियों को ईरान की खाड़ी से निकाला गया था। इसीलिए इसे पर्ल कार्पेट का नाम दिया गया ।  इस कालीन को सजाने के लिए सोने का भी प्रयोग किया गया है। 1860 के दशक में तैयार किया गया यह कालीन लाल और नीले रंगों से तैयार किया गया है जिसमें घुमावदार बेलबूटे तैयार किए गए हैं। इसे वड़ोदरा के महाराजा ने मदीना में पैगम्बर मोहम्मद के मक़बरे को सजाने के लिए तैयार करवाया था लेकिन कहा जाता है कि महाराजा की मृत्यु हो जाने के कारण यह कभी मदीना पहुँच ही नहीं सका और भारत में ही रह गया।  यह कालीन हमारी सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक है।
भदोही के कालीन को मिला पेटेंट
उत्तर प्रदेश में भदोही के कालीन को पेटेंट मिल गया है। उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के विश्व प्रसिद्ध कालीन को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) के तहत पंजीकृत होने के बाद पेटेंट मिल गया है।  भदोही की कालीन का इतिहास 250 साल पुराना है। 18वीं सदी में भदोही जिले के माधोसिंह इलाके में आए ईरान के कालीन बुनकरों ने स्थानीय लोगों को कालीन बुनाई का फन सिखाया था।  मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में कालीन बुनाई की कला का भारत में आगमन हुआ था।
कहां कहां बनते हैं कालीन
भारत में जम्मू-कश्मीर का नाम कालीन निर्माण में सबसे ऊपर है। इसके साथ राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात में भी उम्दा किस्म व डिजाइन के कालीन तैयार हो रहे हैं।  कालीन की कई किस्में हैं। हाथ से बने ऊनी कालीन, सिल्क से बने कालीन, सिंथेटिक कालीन, हाथ से बनी ऊनी दरियां- इन सबकी बाजार में भारी मांग है।  इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ कारपेट टेक्नोलॉजी ने हाल में एक डिजाइन स्टूडियो का गठन किया है, जिसकी मदद से कारपेट के बुनने, उसके कलर कंबीनेशन के लिए सीएडी सिस्टम भी लगाए गए हैं, ताकि उच्च कोटि का कारपेट तैयार किया जा सके। प्रमुख संस्थान हैं इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ कारपेट टेक्नोलॉजी, चौरी रोड, भदोही, उत्तर प्रदेश,इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ कारपेट  टेक्नोलॉजी,जिमखाना क्लब, पानीपत, हरियाणा,इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ कारपेट टेक्नोलॉजी, जम्मू एंड कश्मीर,श्री जेजे इंस्टीटय़ूट ऑफ अप्लाइड आर्ट, मुंबई, मुंबई विश्वविद्यालय,कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स, उत्तर प्रदेश,जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जामिया नगर, नई दिल्ली।
 
  कालीन आपके घर के लिए
बाजार में आजकल डिजाइनर कालीन की धूम है। परंपरागत वूलन  कालीन के बजाय नए-नए डिजाइनों के सिल्क, सिंथेटिक व मखमली कालीन बाजार में छाए हुए हैं।
सिल्क कालीन वजन में हल्के हैं, और इनके डिजाइन में खास वेराइटी भी है। इन दिनों इनमें जियोमेट्रिकल डिजाइन की सबसे ज्यादा डिमांड है।  इन्हें बेड की साइड में या सोफे के सेंटर में आमतौर पर इस्तेमाल किया जाता है।  इनकी कीमत 6 हजार  से लेकर 18 हजार रुपये  है। ईरान का मखमली कालीन और सिंथेटिक कालीन भी  पसंद किया जा रहा है
 इनकी कम से कम कीमत 12 हजार है। इसके अलावा, सिंथेटिक कालीन की भी लोगों के बीच अच्छी डिमांड है। ये कीमत में तो कम होते ही हैं, साथ ही घर में भी आसानी से धुल जाते हैं।ये 8 हजार से 18 हजार रुपये तक की कीमत के होते हैं, जो अन्य उम्दा कालीनों के मुकाबले काफी कम है। बच्चों के कमरों के लिए विभिन्न कार्टून कैरक्टर्र्स और खिलौनों के प्रिंट वाले कालीन इन दिनों खूब बिक रहे हैं। रूम के फर्नीचर और कर्टेन से मैच करते ये कालीन आपको कई तरह के शेप में मिल जाएंगे। ये साइज के मुताबिक लगभग चार हजार रुपये की प्राइस रेंज से मिलना शुरू होते हैं। इन डिजाइंस के कालीन ज्यादातर बेल्जियम और जर्मनी के होते हैं। ये ज्यादातर ब्राइट कलर्स में होते हैं। ऐसे में इसकी कीमत ज्यादा होना स्वाभाविक है।  बाजार में इन दिनों वूलन कालीन की मांग कम है। कुछ साल पहले तक वूलन कार्पेट ही ट्रेंड में थे। इसका मुख्य कारण गर्मी का लगातार बढ़ते जाना है।
   कालीन नई रंगत के
 लेदर से तैयार कालीन की भी एक खास वर्ग में अच्छी डिमांड है ये  मशीन से बनते हैं और इनमें सिंथेटिक मटीरियल का प्रयोग होता है। ये दिखने में भी बेहद अट्रैक्टिव होते हैं।
भारतीय मार्केट में छाए कालीनों में कोरिन्थिया बाथ रग, मिलेफ्लेयर मैट, मून गेज, फ्लम बॉर्डर, माउस रग और सेवीलेड प्लेड कालीनों का भी अच्छा-खासा मार्केट है। कोरिन्थिया बाथ रग का डिजाइन डायमंड पैटर्न पर आधारित होता है। मिलफ्लोर मैट का डिजाइन पूरी तरह बॉटेनिकल थीम पर आधारित होता है। यह कालीन पूरी तरह कॉटन से बना होता है। मूून गेज कालीन नायलॉन से बना होता है। इसमें हाथ से कढ़ाई की जाती  है।

कला में बदलाव में जरूरत- सुनील सेठी अध्यक्ष,  फैशन डिजाइन कांसिल आफ इंडियाकला के लिए जरूरी है कि कला का विकास हो। प्रस्तुतिकरण में भी बदलाव हो और वह हमेशा नएपन को लिए हुए लोगों को दिखाई दे। इसी सोच को आगे बढ़ाने का काम किया सुनील सेठी ने।  सुनील फैशन डिजाइन कांसिल आफ इंडिया के अध्यक्ष हैं। वह मेनका गांधी के एनजीओ पीएफए पीपुल फार एनिमल से भी जुड़े हुए हैं और उस संगठन को अनुदान देते हैं।  इस तरह देखें तो भारत भर के 31 पशु अस्पताल के लिए वह सेवा कर रहे हंै।  सरसरी नजर से देखें तो फैशन डिजाइनिंग और पशु प्रेम का मेल नहीं पर बहुआयामी सोच के सुनील के दिमाग में इस तरह के  कई विचार कौंधते है जिनको यकायक सुनकर आप चौंक जाएंगे। ऐसे ही उनके दिमाग में यह विचार आया कि क्यों न देश के नामी पेंटरों और डिजाइनरों की कृतियों को एक नए फार्म में पेश किया जाए।  उनको देखने परखने का नजरिया बदला जाए और लोगों के ज्यादा करीब लाया जाए। पेंटिंग का महत्व तो सिर्फ कला प्रेमी ही जानते हैं। यह सोचते समय फ्लोरिंग के लिए पेंटिंग और ड्रेस डिजाइन उनको जम गए।पहले यह सारी डिजाइन और पेंटिंग को ज्योमैट्रिकल ग्राफ में  उतारा गया और फिर बुनकरों को डिजाइन के साथ दे दिया गया।  जो पेंटिंग अभी तक घर की दीवारों का हिस्सा होती थी अब फ्लोर के कालीन में भी दिखाई देने लगी।  लगभग 40 मशहूर पेंटरों और फैशन डिजाइनरों ने इसमें हिस्सा लिया। रजा, रोहित बल , मनजीतबाबा ने अपनी कला और कल्पना को कालीन के रूप में देखा।  इन कालीनों की कीमत 35 हजार से लेकर 5 लाख थी। प्रतिकृति और प्रामाणिकता को देखा जाए तो आकार आकृतियां और संरचनाएं कालीनों की  मूलकृति से काफी हद तक मिलती हैं किंतु कुछ कृतियों के रंग बदल भी दिए गए। कालीनों का आकार बहत्तर गुणा बहत्तर इंच और अड़तालीस गुणा अड़तालीस  इंच था।कहां से खरीदेंसाउथ दिल्ली ,क्नॉट प्लेस ,जनपथ , करोलबाग , कमला नगर , लाजपत नगर।

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

कर्टन कॉन्सेप्ट

यह सच है कि घर को आकर्षक बनाने में परदों का कोई सानी नहीं है। मगर घर की खूबसूरती में चार- चांद लगाने वाले इन परदों को यदि सही ढंग से इस्तेमाल न किया जाए, तो घर बोझिल भी दिखने लगता है। इसलिए जरूरी है कि परदे का चुनाव करते समय खास ध्यान रखा जाए-

-परदे रोज-रोज बदलने वाली चीज नहीं है, इसलिए परदों का चयन करते समय घर की दीवारों के रंग के साथ-साथ कपड़े की क्वॉलिटी पर भी ध्यान देना चाहिए।

-कपड़ों का चयन करते समय यह जरूर देख लें कि इन्हें कहां लगाना है। मसलन बच्चों के रूम में या मास्टर बेडरूम या लाउंज में।

-विंडो ड्रेसिंग करते समय सबसे पहले यह ध्यान रखें कि दीवारों, फर्नीचर, कारपेट और परदों के रंगों के बीच सही तालमेल हो। आप चाहें तो फर्नीचर या दीवारों के रंग से मैच करते हुए परदे लगा सकती हैं या फिर इनके रंग से मेल खाते कंट्रास्ट रंगों के परदे भी लगा सकती हैं।

जैसे-गुलाबी के साथ हल्का बैंगनी या नीला रंग बहुत जंचता है। अगर फैशन की बात करें, तो इन दिनों क्रीम और बादामी कलर ज्यादा ट्रेंड में हैं।

इनके साथ गहरे रंग का इस्तेमाल कर कमरे को सुंदर बना सकती हैं।
-आप चाहें तो दिन के वक्त खिड़कियों के परदों के किनारे को समेट कर उसे किसी आकर्षक डोरी या बैंड से बांध सकती हैं। इससे घर में अच्छी रोशनी भी आती है और परदे देखने में भी बहुत अच्छे लगते हैं।

-इसके अलावा अपने घर में गहरे रंग के शीयर कर्टन या रोमन ब्लाइंड का इस्तेमाल कर सकती हैं। इससे कमरे में हमेशा हल्की-हल्की रोशनी आती रहती है।

-बच्चों के कमरे में गहरे रंग के परदे का इस्तेमाल करें। बच्चों के कमरे के लिए पर्पल और मजैंटा रंग फैशन में हैं।

-कमरा बड़ा हो, तो ही फ्लोरल प्रिंट वाले परदे का इस्तेमाल करें, क्योंकि फ्लोरल प्रिंट वाले परदे एरिया को छोटा दिखाते हैं। कमरा यदि छोटा या मध्यम आकार का हो, तो हल्के रंग के प्लेन परदे ही अच्छे लगते हैं।

-फैब्रिक का चुनाव करते समय यह जानना भी जरूरी होता है कि आपके कमरे के हिसाब से कौन-सा कपड़ा सबसे सही रहेगा। अगर ज्यादा समय तक धूप आती है या अंधेरा ज्यादा रहता है, तो उसी के अनुसार कपड़े का चुनाव करें। परदों के लिए आजकल सिल्क, कॉटन, लिनेन आदि फैब्रिक चलन में हैं। नेट फैशन से आउट हो चुका है। किंरकल्ड फैब्रिक से बचें। इसके खिंच कर लंबा होने या सिकुड़ने की आशंका होती है।

-साल में कम से कम दो बार परदों की ड्राई क्लीनिंग जरूर करवाएं। धूप से परदों के रंग खराब हो जाते हैं, इसलिए उन्हें धूप से बचाने के लिए उनमें सफेद कपड़े की लाइनिंग जरूर लगवाएं।

-उमस भरी गरमी से राहत देने के लिए सफेद, गुलाबी, हल्का नीला, हल्का हरा, पीला आदि रंग के परदे अपने घर में लगवाएं। ठंडक का एहसास होगा।

-गरमियों में परदे के लिए नैचुरल फैब्रिक का इस्तेमाल बेहतर होता है। मसलन कॉटन, लिनेन, निटेड सिल्क टेक्सचर के परदे आप लगवा सकती हैं।

-घर को डिजाइनर परदों में हल्के और गहरे रंगों के तालमेल से भी सजाया जा सकता है।

बारि‍श में कर्टन कॉन्सेप्ट

मानसून में कर्टन की फैब्रिक्स की लेयर्स नहीं होनी चाहिए। इससे ह्यूमिडिटी बढ़ती है। गर्मी में आम तौर पर धूप से बचने के लिए डबल कर्टन कॉन्सेप्ट पर फोकस रहता है, पर अब सही समय है इन्हें कम करने का। मौसम का पूरा मजा लेने और घर में ह्यूमिडिटी को कम करने के लिए परदों में हलके फैब्रिक्स का इस्तेमाल बेहतर है। इसके लिए रेग्युलर बेसिस पर शिफॉन, नेट और स्पेशल ओकेजंस पर टस्सर सिल्क फैब्रिक में कर्टन चुन सकते हैं।

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

http://www.magzter.com/preview/6595/144460


आखिर क्यों हर बच्चे के भीतर एक क्रांतिकारी है
डा. अनुजा भट्ट  
   हर बच्चा जब घर की देहरी पारकर खेल के मैदान में कदम रखता है उसके अंदर क्रांतिकारी भाव खुद ब खुद पैदा हो जाते हैं। परिवार द्रारा सिखाए गए संस्कार जैसे न्याय के साथ रहना,अन्याय न सहना, झूठ बोलना पाप है, दयालु बनो, मददगार बनो जैसी कई सारी बातें मैदान में जाते ही उसे विरोधाभासी लगने लगती हैं। क्योंकि बाहर की दुनिया में अधिसंख्यक लोग आचार- व्यवहार,नीति- अनीति, न्याय- अन्याय, झूठ-सच इन बातों को लेकर संवेदनहीन हो गए हैं। परिणाम स्वरूप उसके भीतर विद्रोह का भाव पैदा होता है और वह परिवार से सीखे गए संस्कार से  प्रभावित होकर अपने हक और अधिकार के प्रति संवेदनशील हो उठता है।  संवेदनशीलता और संवेदनहीनता के बीच धक्का-मुक्की शुरू हो जाती है। उसके भीतर तब कई बार महात्मा गांधी तो कभी सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह जैसे महापुरूष आकार लेने लगते हैं। वह उनकी तरह बनना चाहता है। वह अन्याय के खिलाफ होता है फिर चाहे अन्याय करने वाले उसके परिवार के ही सगे संबंधी क्यों न हो। फिल्म में जब हीरो  विलेन को मारता है तो वह ताली बजाता है। वह सच बोलता है, बोलना चाहता है पर उसे नासमझ कहकर घर के अंदर कर दिया जाता है। कभी उसके पिता यह कहकर लोगों को शांत करते हैं कि गर्म खून है समय के साथ तालमेल बिठाना सीख जाएगा। यह सब देखते हुए  धीरे-धीरे  वह जान जाता है कि पढ़ी गई और सीखी गई बातों को प्रयोग में लाना आसान नहीं है।  वह देखता है कि मंच पर जो नेता बड़ी बड़ी बातें करते हैं वह भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। करोड़ों का भ्रष्टाचार करते हैं। इसीलिए नेताओं की बातें सुनने वह जाता है पर बातें सुनने के बाद उसका असर उसके भीतर नहीं होता। वहां जाना उसके लिए मात्र मौजमस्ती करना है। पर अभी भी ऐसे नेता है जिनका लोग सम्मान करते हैं जिनके दिखाए रास्ते पर उनको उम्मीद की रोशनी जलती नजर आती है।
  मजबूत इरादे वाले बच्चे सीखी गई बातों को यथार्थ में भी अपनाते हैं।  वह अपने प्रेरणा स्रोत पर विश्वास रखते हैं।  परिवार का सहयोग उनको मिलता है। आगे चलकर ऐसे बच्चे समाज का सही दिशा में नेतृत्व करते हैं। उनकी अपनी एक विचारधारा होती है और वह अपनी उसी विचारधारा का लगातार पोषण करते रहते है। यह विचारधारा धर्म को लेकर भी हो सकती है, राजनीति को लेकर भी हो सकती है, दर्शन को  लेकर भी हो सकती है, जाति को लेकर भी हो सकती है, समाज को लेकर भी हो सकती है। कहने का अभिप्राय यह है कि हर बच्चे के भीतर सीखे गए संस्कार के बाद कुछ न कुछ परिवर्तन होता है। कुछ उस परिवर्तन को महसूस करते हैं और उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं।  यह परिवर्तन सकारात्मक और नकारात्मक दोनो तरह से होता है। मान लीजिए अगर कोई बच्चा किसी दूसरे बच्चे के पैसेे चोरी कर ले और न  दे तो वह इसके लिए विरोध करेगा। विरोध करने पर वह बच्चा उसे मारे-पीटे । वह घर में जाकर कहे कि उसने मेरा पैसा चुरा लिया। मैंने उससे कहा तो उसने मुझे मारा। पास में खड़े किसी भी व्यक्ति ने उसे ऐसा करने से रोका नहीं। मां कहती है, कल से पैसे लेकर मत जाना। यह अनुभव बच्चे के लिए आश्चर्यजनक था। वह बच्चा उसी दिन से अपने हक की बात करना भूल गया बल्कि वह खुद भी चोरी करने लगा क्योंकि उसने देखा कि चोरी करने पर दंड नहीं मिलता। परिवार में सिखाई गई बात चोरी करने पर दंड मिलता है, गलत साबित हुई।
 दूसरे उदाहरण में चोरी करने वाले बच्चे को सभी ने पकड़ा और उस दिन उसे सजा के तौर पर पार्क की सफाई करने के लिए कहा गया। फिर तो यह परंपरा ही शुरू हो गई कि जो भी गलत काम करेगा उसको दंड मिलेगा। ऐसे बच्चों ने आगे चलकर अपने- अपने समूह का नेतृत्व किया।
   सवाल यह है कि जो जीवनमूल्य  हम बच्चों को सिखाते हैं क्या उन संस्कारों का पालन उसे सिखानेवाले स्वयं करते हैं?  क्या हम संघर्ष से बचकर सरल और सपाट रास्ते की तलाश में नहीं रहते। जिन परिवारों में माता-पिता, अभिभावक, शिक्षक  जिस शिक्षा या सिद्धांत पर चलने की सलाह बच्चों को देते हैं,खुद भी उन नियमों का पालन करते हैं वहां बच्चे का विकास सही तरह से होता है। भ्रष्ट लोगों के बच्चे कभी  ईमानदार नहीं हो सकते। बात- बात पर झूठ बोलने वाले माता-पिता अपने बच्चे से कैसे उम्मीद रख सकते हैं कि उनका बच्चा उनसे सच बोलेगा। जो माता-पिता अपने माता-पिता का सम्मान नहीं करते, उनके दु:ख दर्द को नहीं समझते आगे चलकर जब वह अपने बच्चों से श्रवणकुमार बनने की उम्मीद करें तो यह झूठा दिलासा है। यह अलग बात है कि बच्चा खुद समझदार हो, उसकी तार्किक क्षमता मजबूत हो ,वह लकीर का फकीर न बने और कहे कि मैं गलत नहीं हूं और न गलत व्यवहार करुंगा। मेरी करनी मेरे साथ जाएगी। क्या ऐसी समझदारी सामान्य बच्चों के लिए संभव है? जिनका दायरा बेहद संकुचित है? यह समझदारी ऐसे बच्चों में ही दिखाई देती है जो सही- गलत का फैसला कर सकते हैं। जो बाहर की दुनिया से सरोकार रखते हैं जो पढ़ते-लिखते हैं।  जो ऐसे लोगों के संपर्क में आते हैं जिनसे समाज प्रभावित होता है। वह धर्मगुरू भी हो सकते हैं जिनकी वजह से उसकी विचारधारा प्रभावित हुई। वह सेवाभावी और उदार बना, उसने रिश्तों को संजोकर रखने का महत्व जाना, परिवार का महत्व जाना। बाहरी परिवेश का उस पर गहरा प्रभाव पड़ा।  सही और गलत के बारे में उसकी अपनी स्पष्ट राय  बनी।
 संक्षेप में कहें तो माता-पिता, अभिभावक और शिक्षक चाहें तो तो इस क्रांति की लांै को जलने दे सकते हैं। अगर वह खुद से सवाल करें कि आखिर बच्चों के विकास के लिए उनका माडल क्या है। वह देश को कैसा नागरिक दे रहे हैं। क्या वह खुद अनुशासित हंै? जो नियम बच्चों के लिए हैं क्या वह उनका पालन करते हैं? क्या वह बच्चों के सवाल का सही जवाब देते हैं। क्या वह खुद अपनी गलती स्वीकार करते हैं? क्या वह इस मुहावरे का अर्थ जानते हैं जैसा बोओगे, वैसा काटोगे? अगर समाज का हर प्रतिनिधि खुद इन सवालों का जवाब जानकर आचरण करें तो हर बच्चा क्रांति कर सकता है। यह क्रांति हर क्षेत्र में संभव है।

गुरुवार, 17 नवंबर 2011

बाल उत्सव में थिरके बच्चे



14 नवंबर बाल दिवस के अवसर पर वागीशा कंटेंट प्रोवाइडर कंपनी ने बाल उत्सव का आयोजन किया। यह कार्यक्रम 13 नवंबर रविवार के दिन आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में कई प्रतियोगिताएं आयोजित की गई। कार्यक्रम की शुरूआत बाल मेराथन से हुई। इसके अलावा, निबंध, सुलेख,  ड्राइंग, क्राफ्ट, फैशन शो ,  बेबी शो / फैंसी ड्रेस , सामूहिक नृत्य, सामूहिक गायन,  एकल नृत्य, एकल गायन जैसी कई प्रतियोगिताएं इस आयोजन में शामिल थीं। इससे पहले भी वागीशा कंटेंट प्रोवाइडर कंपनी, कई तरह के कार्यक्रम पेश कर चुकी है जिसमें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर  कला प्रतियेगिता, अपनी पहली वर्षगांठ और अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के 100 साल पूरे होने के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन शामिल है।  कंपनी की सीइओ. डा. अनुजा भट्ट ने बताया कि इस तरह के कार्यक्रम को करने का उद्देश्य यह है कि समाज को जागरुक किया जाए और हर व्यक्ति को अपनी एक खास पहचान बनाने में मदद की जाएं।  मुझे खुशी है कि हमारा यह प्रयास  लोगों को पसंद आ रहा है और लोग हमसे जुड़ रहे हैं।
बेबी शो में अरुणिमा प्रथम, आकर्ष द्विीतीय, सौवर्नी तृतीय, दौड़ में ललित प्रथम, वृषभ द्विीतीय, संस्कार तृतीय रहे। कला के रंग कार्यक्रम में जूनियर स्तर पर अरुणिमा प्रथम, वागीशा द्विीतीय, श्रेय तृतीय रहे। सीनियर स्तर पर  स्वर्णिमा प्रथम, हर्शिता द्विीतीय, वृषभ  तृतीय रहे। सामूहिक नृत्य में स्वर्णिमा, शुभांगी ( सीनियर), वसुधा ,सिया, ओमा(जूनियर) ने  उत्कृष्ट प्रदर्शन किया । सुगम संगीत में अरुणिमा को प्रथम पुरस्कार मिला। फैशन  शो  में नन्हे मुन्नों ने सबका मन मोह लिया।  बड़े बच्चों ने भी फैशन शो में हिस्सा लिया और सबसे वाहवाही लूटी। श्रीपर्णा  सांस्कृतिक कार्यक्रम की जज रही। श्रीपर्णा शाीय गायिका के रूप में जाना पहचाना नाम हैं। डॉ. मनीषा पाल बेबी शो की जज रही यह नोएडा की जानीमानी बाल  रोग विशेषज्ञ हैं।  कला उपवन के जज रहे मुकेश कुमार। मुकेश नई दुनिया समाचार पत्र के डिजइनर हैड हैं।








Special Post

मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

  (अब पहले की तरह किस्से कहानियों की कल्पनाएं हमें किसी रहस्यमय संसार में नहीं ले जाती क्योंकि हमारी दुनिया में ज्ञान, विज्ञान और समाज विज्...