मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

नए जमाने के नए कालीन






 डॉ. अनुजा भट्ट
भारत में कालीन बनने की परंपरा मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में शुरू हो गई थी।  ये कालीन कई तरह से बनाए जाते थे।  इसकी एक झलक मदीना में पैगंबर हजऱत मोहम्मद के मक़बरे को सजाने के लिए बुने गए कालीन से मिलती है। गुजरात के बड़ौदा में बने इस कालीन की ख़ासियत यह है कि इसे लगभग बीस लाख मोतियों, हीरा, नीलम , माणिक्य
पन्ना जैसे क़ीमती पत्थरों से सजाया गया है। बसरा मोती नाम से जाने जाने वाले छोटे प्राकृतिक मोतियों को ईरान की खाड़ी से निकाला गया था। इसीलिए इसे पर्ल कार्पेट का नाम दिया गया ।  इस कालीन को सजाने के लिए सोने का भी प्रयोग किया गया है। 1860 के दशक में तैयार किया गया यह कालीन लाल और नीले रंगों से तैयार किया गया है जिसमें घुमावदार बेलबूटे तैयार किए गए हैं। इसे वड़ोदरा के महाराजा ने मदीना में पैगम्बर मोहम्मद के मक़बरे को सजाने के लिए तैयार करवाया था लेकिन कहा जाता है कि महाराजा की मृत्यु हो जाने के कारण यह कभी मदीना पहुँच ही नहीं सका और भारत में ही रह गया।  यह कालीन हमारी सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक है।
भदोही के कालीन को मिला पेटेंट
उत्तर प्रदेश में भदोही के कालीन को पेटेंट मिल गया है। उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के विश्व प्रसिद्ध कालीन को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) के तहत पंजीकृत होने के बाद पेटेंट मिल गया है।  भदोही की कालीन का इतिहास 250 साल पुराना है। 18वीं सदी में भदोही जिले के माधोसिंह इलाके में आए ईरान के कालीन बुनकरों ने स्थानीय लोगों को कालीन बुनाई का फन सिखाया था।  मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में कालीन बुनाई की कला का भारत में आगमन हुआ था।
कहां कहां बनते हैं कालीन
भारत में जम्मू-कश्मीर का नाम कालीन निर्माण में सबसे ऊपर है। इसके साथ राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात में भी उम्दा किस्म व डिजाइन के कालीन तैयार हो रहे हैं।  कालीन की कई किस्में हैं। हाथ से बने ऊनी कालीन, सिल्क से बने कालीन, सिंथेटिक कालीन, हाथ से बनी ऊनी दरियां- इन सबकी बाजार में भारी मांग है।  इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ कारपेट टेक्नोलॉजी ने हाल में एक डिजाइन स्टूडियो का गठन किया है, जिसकी मदद से कारपेट के बुनने, उसके कलर कंबीनेशन के लिए सीएडी सिस्टम भी लगाए गए हैं, ताकि उच्च कोटि का कारपेट तैयार किया जा सके। प्रमुख संस्थान हैं इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ कारपेट टेक्नोलॉजी, चौरी रोड, भदोही, उत्तर प्रदेश,इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ कारपेट  टेक्नोलॉजी,जिमखाना क्लब, पानीपत, हरियाणा,इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ कारपेट टेक्नोलॉजी, जम्मू एंड कश्मीर,श्री जेजे इंस्टीटय़ूट ऑफ अप्लाइड आर्ट, मुंबई, मुंबई विश्वविद्यालय,कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स, उत्तर प्रदेश,जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जामिया नगर, नई दिल्ली।
 
  कालीन आपके घर के लिए
बाजार में आजकल डिजाइनर कालीन की धूम है। परंपरागत वूलन  कालीन के बजाय नए-नए डिजाइनों के सिल्क, सिंथेटिक व मखमली कालीन बाजार में छाए हुए हैं।
सिल्क कालीन वजन में हल्के हैं, और इनके डिजाइन में खास वेराइटी भी है। इन दिनों इनमें जियोमेट्रिकल डिजाइन की सबसे ज्यादा डिमांड है।  इन्हें बेड की साइड में या सोफे के सेंटर में आमतौर पर इस्तेमाल किया जाता है।  इनकी कीमत 6 हजार  से लेकर 18 हजार रुपये  है। ईरान का मखमली कालीन और सिंथेटिक कालीन भी  पसंद किया जा रहा है
 इनकी कम से कम कीमत 12 हजार है। इसके अलावा, सिंथेटिक कालीन की भी लोगों के बीच अच्छी डिमांड है। ये कीमत में तो कम होते ही हैं, साथ ही घर में भी आसानी से धुल जाते हैं।ये 8 हजार से 18 हजार रुपये तक की कीमत के होते हैं, जो अन्य उम्दा कालीनों के मुकाबले काफी कम है। बच्चों के कमरों के लिए विभिन्न कार्टून कैरक्टर्र्स और खिलौनों के प्रिंट वाले कालीन इन दिनों खूब बिक रहे हैं। रूम के फर्नीचर और कर्टेन से मैच करते ये कालीन आपको कई तरह के शेप में मिल जाएंगे। ये साइज के मुताबिक लगभग चार हजार रुपये की प्राइस रेंज से मिलना शुरू होते हैं। इन डिजाइंस के कालीन ज्यादातर बेल्जियम और जर्मनी के होते हैं। ये ज्यादातर ब्राइट कलर्स में होते हैं। ऐसे में इसकी कीमत ज्यादा होना स्वाभाविक है।  बाजार में इन दिनों वूलन कालीन की मांग कम है। कुछ साल पहले तक वूलन कार्पेट ही ट्रेंड में थे। इसका मुख्य कारण गर्मी का लगातार बढ़ते जाना है।
   कालीन नई रंगत के
 लेदर से तैयार कालीन की भी एक खास वर्ग में अच्छी डिमांड है ये  मशीन से बनते हैं और इनमें सिंथेटिक मटीरियल का प्रयोग होता है। ये दिखने में भी बेहद अट्रैक्टिव होते हैं।
भारतीय मार्केट में छाए कालीनों में कोरिन्थिया बाथ रग, मिलेफ्लेयर मैट, मून गेज, फ्लम बॉर्डर, माउस रग और सेवीलेड प्लेड कालीनों का भी अच्छा-खासा मार्केट है। कोरिन्थिया बाथ रग का डिजाइन डायमंड पैटर्न पर आधारित होता है। मिलफ्लोर मैट का डिजाइन पूरी तरह बॉटेनिकल थीम पर आधारित होता है। यह कालीन पूरी तरह कॉटन से बना होता है। मूून गेज कालीन नायलॉन से बना होता है। इसमें हाथ से कढ़ाई की जाती  है।

कला में बदलाव में जरूरत- सुनील सेठी अध्यक्ष,  फैशन डिजाइन कांसिल आफ इंडियाकला के लिए जरूरी है कि कला का विकास हो। प्रस्तुतिकरण में भी बदलाव हो और वह हमेशा नएपन को लिए हुए लोगों को दिखाई दे। इसी सोच को आगे बढ़ाने का काम किया सुनील सेठी ने।  सुनील फैशन डिजाइन कांसिल आफ इंडिया के अध्यक्ष हैं। वह मेनका गांधी के एनजीओ पीएफए पीपुल फार एनिमल से भी जुड़े हुए हैं और उस संगठन को अनुदान देते हैं।  इस तरह देखें तो भारत भर के 31 पशु अस्पताल के लिए वह सेवा कर रहे हंै।  सरसरी नजर से देखें तो फैशन डिजाइनिंग और पशु प्रेम का मेल नहीं पर बहुआयामी सोच के सुनील के दिमाग में इस तरह के  कई विचार कौंधते है जिनको यकायक सुनकर आप चौंक जाएंगे। ऐसे ही उनके दिमाग में यह विचार आया कि क्यों न देश के नामी पेंटरों और डिजाइनरों की कृतियों को एक नए फार्म में पेश किया जाए।  उनको देखने परखने का नजरिया बदला जाए और लोगों के ज्यादा करीब लाया जाए। पेंटिंग का महत्व तो सिर्फ कला प्रेमी ही जानते हैं। यह सोचते समय फ्लोरिंग के लिए पेंटिंग और ड्रेस डिजाइन उनको जम गए।पहले यह सारी डिजाइन और पेंटिंग को ज्योमैट्रिकल ग्राफ में  उतारा गया और फिर बुनकरों को डिजाइन के साथ दे दिया गया।  जो पेंटिंग अभी तक घर की दीवारों का हिस्सा होती थी अब फ्लोर के कालीन में भी दिखाई देने लगी।  लगभग 40 मशहूर पेंटरों और फैशन डिजाइनरों ने इसमें हिस्सा लिया। रजा, रोहित बल , मनजीतबाबा ने अपनी कला और कल्पना को कालीन के रूप में देखा।  इन कालीनों की कीमत 35 हजार से लेकर 5 लाख थी। प्रतिकृति और प्रामाणिकता को देखा जाए तो आकार आकृतियां और संरचनाएं कालीनों की  मूलकृति से काफी हद तक मिलती हैं किंतु कुछ कृतियों के रंग बदल भी दिए गए। कालीनों का आकार बहत्तर गुणा बहत्तर इंच और अड़तालीस गुणा अड़तालीस  इंच था।कहां से खरीदेंसाउथ दिल्ली ,क्नॉट प्लेस ,जनपथ , करोलबाग , कमला नगर , लाजपत नगर।

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