सोमवार, 20 अगस्त 2018

समय से खाएं ,बीमारी भगाएं- डा. दीपिका शर्मा


फाेटाे क्रेडिट- श्यामली बरूआ तालुकदार
मैं जब भी आप जैसे दाेस्ताें से मिलती हूं ताे  सबसे पहला सवाल करती हूं आपने खाना खा लिया.. यह उस वक्त पर निर्भर करता है कि मैं किसके बारे में बात कर रही हूं। अक्सर मैं  पाती हूं कि खाने पीने में लाेग समय का ख्याल नहीं रखते। लंच के समय  ब्रेकफास्ट और ब्रेकफास्ट के समय वह नींद में हाेते हैं। अक्सर लाेगाे का टाइमटेबिलसही से मैनेज नहीं हाेता। देर रात में साेना, शिफ्ट ड्यूटी जैसे बहुत से कारण है जिसके कारण मेरे सवाल आपने खाना खा लिया का सही जवाब नहीं मिलता।
आज बात डिनर की करती हूं। डिनर के टाइम का ध्यान रखें। रात में हल्का खाना खाना हेल्थ के लिए बेहतर होता है। आपने कभी जानने की कोशिश की है कि डिनर इतना महत्वपूर्ण क्यों है ? कई शोध में यह बात सामने आयी है कि आप कब, क्या, कितना और कैसे खाते हैं इसका अपके हेल्थ पर असर पड़ता है। कुछ शोध तो इस बात को भी कहते हैं कि खान-पान का सीधा असर इंसान के मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।

ऐसा नहीं है कि आप खाने में पोषक तत्व खूब खाते हैं तो वह आपके स्वास्थ्य को बेहतर रखेगा। खाने के समय का अगर सही से ध्यान न रखा जाय तो पोषक तत्व भी नुकसान पहुंचाते हैं। सुबह का ब्रेकफास्ट जहां अपको पूरे दिन की ऊर्जा देता है तो रात का डिनर दिन भर की कमियों की खाना-पूर्ति करता है। मैं आपकाे रात के डिनर के बारे में कुछ खास बातें बताती हूं।
रात में खाना खाने में अक्सर लोग लेट कर देते हैं। हाल ही में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है कि जो लोग रात में देर से डिनर करते हैं वो एक उम्र के बाद कई तरह की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। इसलिए रात का खाना टाइम से खाना चाहिए।
ज्यादातर लोगों को देखा गया है कि रात में खाना खाते ही लोग बेड पर चले जाते हैं। एक सर्वे के मुताबिक जो लोग रात में खाना खाते ही सोने चले जाते हैं वो बहुत जल्द मोटापा के शिकार हो जाते हैं जो बाद में डायबिटीज जैसी बीमारियों के भी शिकार होते हैं।
अगर आप रात के समय ऑयली और मसालेदार खाना खाते हैं तो उससे आपका वजन बढ़ सकता है। रात के समय हल्का खाना नहीं खाने से पाचन क्रिया पर भी असर पड़ता है। रात को ऐसा खाना खाने से नींद भी सही से नहीं आती है और बेचैनी बनी रहती है।
रात के समय हल्का खाना खाने से ब्लड शुगर भी नियंत्रण में रहती है। कोशिश करनी चाहिए कि खाना खाने के एक-दो घंटे बाद ही सोने जाएं।
रात को हल्का खाना खाने से सुबह के समय शरीर हल्का रहता है और एनर्जी लेवल भी बना रहता है. इसके सा‍थ ही यह मूड को भी बेहतर रखने में मददगार होता है।
रात को बहुत मसालेदार और ऑयली खाना खाने वालों को अक्सर गैस और कब्ज की समस्या हो जाती है जो स्वास्थ्य संबंधी अन्य परेशानियों की वजह बनती हैं। अगर आप ऐसी किसी भी समस्या से बचना चाहते हैं तो रात को हल्का भोजन करना ही आपके लिए फायदेमंद होगा।

रविवार, 19 अगस्त 2018

गाेल्ड बनाने वाली महिला आखिर काैन है... डा. अनुजा भट्ट


भारतीय सिनेमा के इतिहास पर गौर करें तो पाएंगे कि पहले नाममात्र की कुछ महिला निर्देशक हुआ करती थीं। इनमें अपर्णा सेन और दीपा मेहता जैसी फिल्मकारों का नाम लिया जा सकता है। लेकिन आज इस लिस्ट में नई पीढ़ी की महिला फिल्मकारों की लिस्ट थोड़ी लंबी हो चुकी है। मेघना गुलजार, गाैरी शिंदे,जाेया अख्तर, काेंकणा सेन, अलंकृता श्रीवास्तव, गुरिंदर चढ्ढा केबाद ये गाेल्ड बनाने वाली महिला के बारे में आइए जानते हैं...


इन दिनाें हर जगह गाेल्ड फिल्म की चर्चा है।   एेसे में  हर काेई यह जानना चाहता है  कि आखिर गाेल्ड बनाने वाली यह महिला काैन है. इस महिला का नाम है रीमा कागती। इनका जन्म गुवाहटी, असम में हुआ था।उन्होंने मुंबई स्थित सोफिया कॉलेज से इंग्लिश लिट्रेचेर में स्नातक की डिग्री हासिल की है। साथ ही उन्होंने सोफिया कॉलेज से सोशल कम्युनिकेशन में परा-स्नातक की डिग्री ली है।
आज  रीमा कागती एक भारतीय फिल्म निर्देशक और स्क्रीनराइटर हैं। रीमा कागती ने अपने करियर की शुरुआत बतौर सहायक निर्देशक की। इस दौरान उन्होंने हिंदी सिनेमा के कई दिग्गज निर्देशकों के साथ काम किया, जिसमे फरहान अखतर(दिल चाहता है), आशुतोष गोविरकर (लगान)हनी इरानी (अरमान), मीरा नायर (वैनिटी फेयर) शामिल हैं।
  हिंदी सिनेमा में उन्हाेंने बताैर  निर्देशक फिल्म हनीमून ट्रेवल्स प्राइवेट लिमिटेड से डेब्यू किया था। इसके बाद रीमा ने फिल्म तलाश निर्देशित की, इस फिल्म में मुख्य भूमिका में आमिर खान, करीना कपूर और रानी मुखर्जी नजर आयीं थी, फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई थी। वर्ष 2016 में रीमा ने फिल्म गोल्ड पर काम करना शुरू किया। फिल्म में मुख्य भूमिका में अक्षय कुमार, फरहान अख्तर, कुनाल कपूर और मौनी रॉय मुख्य भूमिका में हैं।फिल्म में खिलाड़ियों को हॉकी की ट्रेनिंग भारतीय हॉकी कप्तान संदीप सिंह द्वारा दी गयी है।





शनिवार, 18 अगस्त 2018

कहां हाे उर्मिला- प्रीति मिश्रा

स्वाति गुप्ता की पेंटिंग.
 प्रकृति और स्त्री दाेनाें ही सुंदर हैं पर समाज इनकी कद्र नहीं करता.

छोटे से कद की, उम्र यही कोई पचास से पचपन साल, चेहरे पर झुर्रियां प्रौढ़ावस्था की कहानी कह रही थीं, बालों पर सफेदी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही थी। पर सक्रिय इतनी कि किशोरवय भी शर्मा जाएं, कभी-कभी हम सबको ये लगता था कि क्या ये कभी थकती नहीं है, बहू के साथ घरेलू कामों में कदम से कदम मिला कर चलती थीं ।

हमने सुना था कि 7 साल की उम्र में ही वह ससुराल आ गई थी, शायद 2-3 साल की थी तभी उनकी माँ का देहावसान हो गया था, पिता ने किसी तरह से उनके हाथ पीले कर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्ति पा कर वैराग्य का जीवन धारण कर लिए। मात्र 7 साल की उम्र से ही उनका वो जीवन शुरू हुआ जो इस समय में 25 साल में भी जल्दी लगता है। संयुक्त परिवार छः भाइयों की सबसे बड़ी भाभी थी तो जिम्मेदारियां भी बड़ी थी, सब कुछ सिर झुका कर मानना और चुप रहना उनका जीवन बन चुका था, बोलती भी किसके दम पर माँ ने तो मर कर साथ छोड़ा था, पर पिता ने अपनी जिम्मेदारियों से भागना उचित समझा बिना ये सोचे कि बिटिया पर क्या गुजरेगी। उनका मायका और उनकी ससुराल सब वही थी। स्वभाव से बहुत सरल, खाना ऐसा बनाना कि होटल का शेफ भी फेल हो जाए, पर पता नहीं क्यों ससुराल में लोग उनसे कभी खुश नहीं होते, हमेशा उनकी ही बुराई सबसे पसंदीदा विषय रहता था, देवरों की शादी होती गई, देवरनिया आती गई, और उन पर काम का बोझ बढ़ता गया, अब वो उस घर में बहू ना हो कर एक नौकरानी बन कर रह गयी।

कभी तो हमें लगता था कि ये कुछ बोलती क्यों नहीं। पर उनका चुप तो बस चुप । फेस्टिवल पर अक्सर हमने देखा था कि सबको खिला कर तृप्त करने वाली जब खुद खाने बैठती तो झगड़े शुरू कर दिए जाते और वो भूखे पेट ही सो जाती या फिर बहते हुए अश्रुधारा के साथ कौर को निगल लिया जाता था, पर फिर भी चुप और सास ऐसी कि इस बात को लेकर सुनाने से बाज ना आए कि छोटी बहुओं को समय पर नाश्ता खाना दिया कि नहीं । कभी देवर तो कभी पति द्वारा हाथ उठा दिए जाने पर भी वो हमेशा की तरह चुप और हद तो तब हो गई जब देवर द्वारा डण्डे के प्रहार से रक्तरंजित हुई वो अपने ही परिवार द्वारा दोषी ठहराई गई औऱ महीनों तक किसी भी सदस्य ने उनसे बात नहीं की, एक अंधेरी कोठरी में पड़ी उनका करुण क्रदन ऐसा लग रहा था जैसे वो बड़ी कातरता से अपनी माँ को पुकार रही हों पर फिर भी चुप |

पति भी ऐसा जो कभी बीवी की तरफदारी नहीं करता क्योंकि वह पत्नी का गुलाम नहीं बनना चाहता था । ऐसा लगता था कि जैसे वो बोलना भूल चुकी हैं । दुनिया उनकी तारीफ करता सम्मान देता पर अपने परिवार में ही उपेक्षित । शायद ही उन्हें कभी बाहर जाते हुए देखा हो, क्योंकि सास को पसंद नहीं था कभी चली भी जाती तो घर में बवंडर मच जाता । बस कभी-कभी मन्दिर के सामने उन्हें रोता हुआ पाया, हो सकता है ईश्वर से माँ ना होने का दुःख बयां करती रहीं होंगी अपने आँसुओ के द्वारा ।

उनका संघर्ष उनके अपनों से था, उनके पास वो कोई नहीं था जिससे वो शिकायत करती, जिससे जी भर कर अपना दुःख बयां करती, जी भर कर रोती, ऐसा कोई हाथ नहीं था जो उनके सिर पर फेरा जाता। शायद वो चुप ही रहती जिंदगी भर अगर उनकी बच्ची के साथ इतना बुरा ना हुआ होता, एक दुर्घटना ने उनकी बेटी के पति को उससे छीन लिया शादी के साल भर के अंदर ही बेटी का विधवा हो जाना बहुत बुरा था । 1 साल के अंदर पति की मृत्यु के लिए सब उनकी बेटी को ही जिम्मेदार मानने लगे और उसे अभागिनी, पति को खा गई शब्द बाणों से बेधने लगे, जब उन्होंने देखा कि बेटी भी चुपचाप सारी बातों को सुन लेती है तो उन्होंने सोच लिया कि अब उनकी चुप्पी तोड़ने का समय आ गया है । समाज के द्वारा मारे गए हर ताने का वो बहुत मजबूती से जवाब देती। एक दिन जब परिवार के लोगों ने ही बेटी पर उंगली उठाई तो उनके अंदर जमा हुआ बरसों का लावा निकल पड़ा उन्होंने अपनी बेटी से रोष भरे शब्दों में कहा- "मैं चुप इसलिए थी कि, मेरी माँ नहीं थी, तुम्हारे पास माँ है, मैंने इतना संघर्ष इसलिए किया ताकि तुम मजबूत हो, मैं डरती थी कि अगर मैं बोलूँगी तो कोई मजबूती से मेरे पीछे ना होगा, पर तेरे पीछे मैं हूँ। मैं रिश्तों के चक्रव्यूह में हमेशा अर्थहीन और महत्वहीन रही पर तू अर्थहीन नहीं रहेगी, मैं माँ ना होने के दर्द से सदैव जूझती रही हूँ पर तेरी माँ है तेरे साथ और तेरे संघर्ष में भी । बस - अब दूसरी उर्मिला नहीं, तू सबके सवालों का मुंहतोड़ जबाव दे वो मत कर जो मैंने किया, तभी मेरा संघर्ष पूर्ण होगा |

इसके बाद सबको उनके चुप रहने का आशय समझ में आया । उनका संघर्ष अपने में बेमिसाल था, और उसी में तप कर वो मजबूत हो गयी थी। अब वो बिल्कुल चुप नहीं थी क्योंकि अब उनका संघर्ष उनके लिए नहीं उनकी बेटी के लिए था ।

ऐसी ही है हमारी उर्मिला!!!

शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

फूलाें सा चेहरा तेरा...-अनामिका अनूप तिवारी

प्राचीन काल में भारतीय नारी अपनी सौंदर्य को बढ़ाने और देखभाल के लिए प्रकृति पर निर्भर रहती थी, फूलों और प्रकृतिप्रदत्त चीज़ो से अपनी सौंदर्य की देखभाल करती थी प्रकृति के दिए ख़ज़ाने में ऐसे अनमोल फूल पत्तियां है जिससे आप आजमाए तो खुद को एक हसीन और स्वस्थ त्वचा की मालकिन बना सकत

गुलाब के फूल
गुलाब जल का नियमित रूप दिन में तीन से चार बार अपने चेहरे पर लगाये,पंद्रह मिनट तक रखे फिर ठंडे पानी से धो ले, अगर आप के पास किसी अच्छी कंपनी का गुलाबजल नहीं है तो गुलाब की पंखुड़ियों को साफ़ पानी में करीब तीस से चालीस मिनट तक उबाले फिर ठंडा कर के साफ़ बोतल में रखे।
गुलाब का फूल त्वचा के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, ईरानी और तुर्किश औरते अपनी सौंदर्य की देखरेख के लिए पूरी तरह से गुलाब जल पर निर्भर रहती है, आप भी आजमाए ये नायाब नुस्खा।
दही

दही चेहरे को बेदाग़ बनाने के लिए सर्वोत्तम उपाय है, दही में नींबू का रस मिला कर कुछ समय इसे फ़्रिज करे और उसके बाद धीरे धीरे अपनी उँगलियों की सहायता से चेहरे और गर्दन तक मालिश करते हुए लगायें करीब पंद्रह मिनट तक ऐसे करे फिर हल्के गर्म पानी से चेहरे को धो ले।
दही में जिंक मौजूद होता है जो मुहांसों को दूर करने में सहायक होता है, दही में पाए जाने लैक्टिक एसिड त्वचा को मुलायम और चमकदार बनाता है दही त्वचा को डिटॉक्सिफाई करने के अलावा बढ़ती उम्र के साथ त्वचा में बदलाव, कॉम्प्लेक्शन में सुधार और टैनिंग से बचाव करती है दही का प्रयोग करने से आप त्वचा संबंधी समस्याओं से हमेशा के लिए छुटकारा पा सकती है।
शहद
शहद प्रकृति का दिया एक नायाब उपहार है। शहद को नमक के साथ मिक्स कर आप एक बेहतरीन स्क्रब तैयार कर सकती है जो आपकी त्वचा में एक नयी जान डाल देगा, शहद को नींबू रस के साथ मिक्स कर के अपने चेहरे पर लगाएं और ये पैक चेहरे पर धुप से होने वाली टैनिंग, रूखापन को दूर कर चेहरे पर एक खूबसूरत निखार ले आता है।

शहद, नींबू रस, बेसन और हल्दी को एक साथ मिक्स कर फेसपैक तैयार करे, सूखने तक चेहरे पर लगाये फिर ठन्डे पानी से धो ले हफ़्ते में दो से तीन बार ये प्रयोग करे। यह पैक चेहरे पर निखार तो लाएगा ही चेहरे के दाग धब्बों को भी दूर करता है।

ऑर्गेन ऑइल

ऑर्गेन ऑइल को हर रोज़ सुबह नहाने से पहले पांच मिनट मसाज़ करते हुए चेहरे पर लगाये फिर गर्म तौलिये को चेहरे पर रखें तौलिया जब ठंडा होने लगे तो हलके हाथों से चेहरे पर दबाव बनाते हुए हटायें और कुछ समय पश्चात नहाये।
ऑइल लगाते समय ये जांच आवश्यक है कि आप की त्वचा बहुत ज्यादा ऑइली ना हो।
ऑर्गेन ऑइल मार्केट में उपलब्ध हैं अगर आप को नहीं मिल रहा तो आप इसे घर पर तैयार कर सकती है।
एक जार में ऑरिगेनो की पत्तियां को बारीक़ काट कर या कूट कर डाले उसमे अपनी त्वचा के अनुकूल ऑलिव या बादाम का तेल डालें फिर जार को गर्म पानी के अंदर डाले, जिससे से तेल गर्म हो जाए, गर्म पानी से जार को निकाल ले दो तीन हफ्ते इस मिक्सचर को धुप में रखे फिर तेल को एक साफ़ जार में छान कर ठन्डे जगह पर रखे।
ये ऑइल प्रमुख रूप से आप की त्वचा से मुहांसे, कालापन, दाग धब्बे, असमय पड़ी झुर्रियों को दूर करता है।
प्राचीन काल में ग्रीक औरते ये ऑइल नियमित रूप से अपने चेहरे लगाती थी।
ये ऑइल सिर्फ चेहरे को ही एक जान नहीं देता बल्कि आप के बालों की समस्याएं जैसे बाल टूटने और डैंड्रफ की परेशानी से भी बचाता है।

लैवेंडर
लैवेंडर के फूल त्वचा और बालों के लिए किसी वरदान से कम नहीं, लैवेंडर वाटर को चेहरे पर नियमित रूप से लगाने से मुहांसे तो दूर होते ही है साथ ही आप की त्वचा चमकदार, उजली और झुर्रियों को दूर करने का सबसे कारगर साबित होगी।आप को यहाँ लैवेंडर वाटर बनाने की आसान विधि बताते है।
मुट्ठी भर लैवेंडर के फूलों को सौ मिलीलीटर पानी में करीब दो से ढाई घंटे तक मध्यम आंच पर उबालें फिर उसे छान कर साफ़ जार में ठंडी जगह पर रखे।
लैवेंडर के सूखे फूल बाज़ार में आसानी से उपलब्ध है लेकिन अच्छा होगा की आप ये फूल अपने घर एक छोटे गमले में उगाये इससे आप को ताजे फूल घर में ही मिल जाएंगे।

गुरुवार, 16 अगस्त 2018

किवी खाकर ताे देखिए- डा. ईशी खाेसला


किवी फल का नाम न्यू ज़ीलैंड के किवी बर्ड के नाम पर रखा गया है, क्योंकि दोनों छोटे, भूरे और फ़र वाले हैं। यह फल सुनहरे रंग का भी होता है, जिसका छिलका चिकना और ब्रांज कलर का होता है। गोल्डेन किवी मीठा और ख़ुशबूदार होता है। न्यूजीलैंड की कंपनी जेस्प्री पूरे विश्व में किवी की आपूर्ति के लिए जानी जाती है. 1997 में स्थापित हुई जेस्प्री अब तक साठ देशों में न्यूजीलैंड का यह राष्ट्रीय फल उपलब्ध करा चुकी है। किवी में विटामिन सी, पोटेशियम, फॉलिक एसिड, विटामिन ई, डायट्री फाइबर, केरोटेनॉयड, लो ग्लाएसेमिक इंडेक्स, लो फैट और दूसरे फलों के अनुपात में एंटी ऑक्सीडेंट्‌स ज़्यादा होते हैं।
डॉ. ईशी खोसला के अनुसार भारतीय जीवनशैली में बदलाव आने की वज़ह से लोगों में डिसऑर्डर वाले रोगों जैसे मधुमेह एवं हाई ब्लडप्रेशर आदि का खतरा बढ़ गया है. इससे बचने के लिए लोग खानपान के प्रति सतर्क हो गए हैं। इसके लिए वे उन खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता देने लगे हैं, जिनमें कैलोरी कम होती है। किवी ऐसा ही फल है. इसमें संतुलित मात्रा में पौष्टिकता है।
1. एंजाइम्स द्वारा पाचन क्रिया में सुधार

किवी फ्रूट में एक्टिनिडेन, एक प्रोटीन घोलने वाला एंजाइम होता है जो भोजन पचाने में मदद करता है। जिस तरह पपीते में पैपेन और अन्नानास में ब्रोमीलेन होता है।

2. ब्लड प्रेशर नियंत्रण

किवी में मौजूद पोटैशियम का उच्च स्तर इलेक्ट्रोलाइट्स को संतुलित करता है। यह सोडियम के विपरीत काम करता है।

3. डीएनए को क्षति से बचाए

कोलिंस, होर्स्का और हॉटेन के अध्ययन द्वारा पता चला है, किवी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स का अनोखा तालमेल डीएनए कोशिका को ऑक्सीडेटिव डैमेज से बचाता है। कुछ एक्सपर्ट्स के अनुसार यह कैंसर से भी बचाता है।

4. इम्यूनिटी बढ़ाए

किवी में प्रचुर मात्रा में विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो इम्यून सिस्टम को बूस्ट करते हैं।

5. वज़न घटाने में मददगार

किवी में कम ग्लाइसीमिक इंडेक्स और हाइ फ़ाइबर कंटेंट होता है। इस वजह से इंसुलिन रश नहीं होता और शरीर में चर्बी नहीं जमा हो पाती है।

6. पाचन क्रिया सुधारे किवी फल में प्रचुर मात्रा में रेशे होते हैं। इसे खाने से कब्ज़ और दूसरी आंत संबंधी समस्याएं नहीं हो पाती हैं।

7. टॉक्सिंस ख़त्म करे किवी फल का फ़ज़्ज़ी फ़ाइबर आंत से टॉक्सिंस को बांधकर बाहर निकाल देते हैं।

8. दिल की बीमारियों से बचाव

हर दिन 2 से 3 किवी खाने से ब्लड क्लाटिंग 18% और ट्राइग्लिस्राइड्स 15% कम हो जाती है। बहुत से लोग ब्लड क्लाटिंग कम करने के लिए एस्पिरिन का प्रयोग करते हैं, जिसके कारण आंत में जलन और ब्लीडिंग हो सकती है। किवी फल में एंटी क्लाटिंग गुण होते हैं और कोई साइड इफ़ेक्ट भी नहीं होता है। साथ साथ बहुत से स्वास्थ्य लाभ मिलता है।

9. डायबेटिक मरीज़ के लिए उत्तम

किवी में ग्लाइसीमिक इंडेक्स कम होने से ब्लड शुगर जल्दी नहीं बढ़ता है। इसका ग्लासीमिक लोड 4 है, जिस कारण यह मधुमेह के रोगियों के लिए सुरक्षित है।

10. आंखों की रोशनी बढ़ाए बुढ़ापे की ओर अग्रसर व्यक्तियों में मैकुलर डीजेनेरेशन के कारण आंखों की रोशनी कम होने लगती है। एक लाख से अधिक लोगों पर किए गए अध्ययन के अनुसर 3 किवी रोज़ खाने से मैकुलर डीजेनेरेशन 30% कम हो जाता है। किवी में लूटीन और ज़ियाज़ैंथिन होता है, जो आंखों के रोग खत्म करता है।

11. एल्कलाइन बैलेंस बनाए

किवी में प्रचुर एल्कलाइन तत्व होते हैं, जो मिनिरल्स को बढ़ाकर अतिरिक्त एसिड को शरीर में कम करता है। एल्कलाइन और एसिड के संतुलन से जवां त्वचा, अच्छी नींद और शारीरिक ऊर्जा मिलती है। सर्दी से सुरक्षा, गठिया से बचाव और ऑस्टियोपोरोसिस में कमी होती है।

12. त्वचा की रक्षा किवी में विटामिन ई और त्वचा का विघटन कम करने वाला एंटीऑक्सीडेंट होता है।

13. लाजवाब स्वाद

किवी का स्वाद बेहद लाजवाब होता है। बच्चों को भी इसका स्वाद बहुत पसंद होता है।

14. पेस्टिसाइड्स से सुरक्षित

किवी फ्रूट पेस्टिसाइड रेज़िड्यूज़ से सुरक्षित होता है। इसलिए इसे सुरक्षित फल की श्रेणी में रखा गया है।

सावधानी
किवी फ्रूट में ओक्ज़लेट होता है। अगर शरीर के द्रव्य में यह ज़्यादा जमा हो जाए तो उसे क्रिस्टलाइज़ कर सकता है और हेल्थ प्रॉब्लम हो सकती है। जिनको किडनी और गाल्ब्लैडर की समस्या हो, उन्हें इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
किवी में लैटेक्स-फ्रूट एलर्जी सिंड्रोम वाला एंजाइम होता है। जिसे लैटेक्स एलर्जी हो, उसे किवी से भी एलर्जी होगी। एथलीन गैस से पका हुआ फल ऑर्गैनिक रूप से पके फल की तुलना में ज़्यादा एलर्जिक हो सकता है। इसे कुक करके खाने से एंजाइम का असर ख़त्म हो जाता है।

बुधवार, 15 अगस्त 2018

आजादी अभी अधूरी है -अटल बिहारी वाजपेयी



पन्द्रह अगस्त का दिन कहता - आज़ादी अभी अधूरी है।

सपने सच होने बाक़ी हैं, राखी की शपथ न पूरी है॥


जिनकी लाशों पर पग धर कर आजादी भारत में आई।

वे अब तक हैं खानाबदोश ग़म की काली बदली छाई॥


कलकत्ते के फुटपाथों पर जो आंधी-पानी सहते हैं।

उनसे पूछो, पन्द्रह अगस्त के बारे में क्या कहते हैं॥


हिन्दू के नाते उनका दुख सुनते यदि तुम्हें लाज आती।

तो सीमा के उस पार चलो सभ्यता जहाँ कुचली जाती॥


इंसान जहाँ बेचा जाता, ईमान ख़रीदा जाता है।

इस्लाम सिसकियाँ भरता है,डालर मन में मुस्काता है॥


भूखों को गोली नंगों को हथियार पिन्हाए जाते हैं।

सूखे कण्ठों से जेहादी नारे लगवाए जाते हैं॥


लाहौर, कराची, ढाका पर मातम की है काली छाया।

पख़्तूनों पर, गिलगित पर है ग़मगीन ग़ुलामी का साया॥


बस इसीलिए तो कहता हूँ आज़ादी अभी अधूरी है।

कैसे उल्लास मनाऊँ मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है॥


दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुनः अखंड बनाएँगे।

गिलगित से गारो पर्वत तक आजादी पर्व मनाएँगे॥


उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें।

जो पाया उसमें खो न जाएँ, जो खोया उसका ध्यान करें॥

मंगलवार, 14 अगस्त 2018

हँसिए और हँसाइए- डा. हरीश भल्ला

क्या आपको मालूम है कि बहुत सी बीमारियों का निदान स्वयं आपके पास है जिनका प्रयोग करने से जहां एक ओर आप गंभीर बीमारी से बच सकते हैं वहीं दूसरी ओर व्यर्थ की दौड़-भाग, मानसिक तनाव से भी मुक्ति पा सकते हैं। हँसना एक प्राकृतिक दवा है।

हँसना एक मनोभाव है, ठीक वैसे ही जैसे रोना। मनुष्य जन्म लेने के बाद इन भावों को अभिव्यक्ति प्रदान करता है। चिकित्सकीय दृष्टिकोण से हँसना क्या है?

मनोभाव के साथ-साथ हँसना एक यौगिक प्रक्रिया है जिसमंे मनुष्य के शरीर ओर मन दोनों का व्यायाम होता है। हँसी के दो चरण होते हैं। उतार ओर चढ़ाव। ठहाका मारकर हंसना चढ़ाव है और फिर धीरे-धीरे हंसना संतुलित हो जाना है इसे ही उतार कहा जाता है। यह प्रकिया रोज की जिंदगीं में आए तनाव को कम करती है। हंसने से केटेकोलेमेनाइज एड्रर्लिन और नान एड्रर्लिन का रिसाव होता है जिससे ठीक होने की प्रक्रिया तेज हो जाती है और आप स्वयं को स्वस्थ अनुभव करते हैं।

हँसने से क्या लाभ हो सकता है?

चिकित्सकीय विज्ञान में हुए अनुसंधानों से यह सिद्ध हो चुका है कि हँसने का प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है। हँसी एक तरह की दर्द निवारक दवा है। लेकिन यह योग क्रिया के माध्यम से प्रयोग की जाती है। हँसने की इस प्रक्रिया से ब्लडप्रेशर, दिल की बीमारी, डायबिटीज, जोड़ों का दर्द, कमर का दर्द, मासंपेशियों का दर्द ठीक हो जाता है। इसके अतिरिक्त तनाव, उदासी और उतेजना को कम करने में भी यह सहायक सिद्ध हुआ है।

आपने बताया कि हंसने से जोड़ों का दर्द आदि ठीक हो जाता है। लेकिन यह कैसे संभव हैं?हंसी एक दर्द निवारक दवा है। हँसते समय हमारे शरीर से दो न्यूरो पेप्टीडाइज उनडारफिन और उनकेलेफिन नामक पदार्थ निकलते हैं जिससे शरीर में स्वयं ही दर्द कम हो जाता हे। जब हम हँसते हैं तो खून का संचरण तेज हो जाता है जिससे दर्द भी कम महसूस होता है। यदि आप 10 मिनट तक खुल कर हँसे तो उसका असर दो घंटे तक आपके शरीर में रहता है और बीमारियों से लड़ने की प्रतिरोधी शक्ति पैदा हो जाती है। 100 बार ठहाका मार कर हंसी 10 मिनट की तेज दौड़ के बराबर होती है। हंसने से पुरानी बीमारियों जैसे खांसीं, जुकाम, गठिया, एलर्जी आदि भी ठीक होती देखी गई है।

हँसने के लिए कैसा वातावरण होना चाहिए?यह प्रश्न स्वयं में महत्वपूर्ण हैं। हँसना तभी संभव है जब वातावरण भी वैसा ही हो। हँसना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, हर बात में या हर समय हँसी नहीं आ सकती। हँसी भीतर से पैदा होती है पर यहां जिस हँसने की बात हम कर रहे हैं वह एक तरह का योग है। ठीक वैसे ही जैसे दौड़ना, टहलना आदि। अतः यहां हँसना एक यौगिक क्रिया की तरह है जिसमें हम अपने दोनों हाथ ऊपर ले जाते हैं और फिर हँसत हैंै धीरे-धीरे हंसी की आवृति को कम करते हुए हम अपने दोनों हाथ नीचे ले आते हैं। जब हम व्यायाम करें तो हवा शुद्व होनी चाहिए ताकि हमारे फेफड़ों में आक्सीजन की मात्रा बढें़ और शुद्व रक्त संचार हो।

बीमारियों के निदान के अतिरिक्त व्यक्ति को अन्य क्या लाभ हो सकते हैं?यदि हम प्रतिदिन हँसे तो एकाग्रता बढ़ सकती है। साथ ही कार्य करने की शक्ति में भी गुणात्मक परिवर्तन होता है जिससे वह कम समय में अधिक काम कर सकता है साथ ही उसका आत्मविश्वास बढ़ता है। दम्पति यदि मिलकर हँसें तो परिवार में जहां हँसी-खुशी का वातावरण होगा वहीं उसके संबंध भी मधुर होंगें। लेकिन यदि वे एक दूसरे की कमियों पर हँसेंगे तो माहौल तनावपूर्ण होगा और संबंध कटु बन जाएंगे।

आपकी दृष्टि में क्या ऐसी संस्थाएं हैं जो इस तरह के योगासन कराते हैं?जिस तरह महानगरों में ’हेल्थ क्लब’ या लाफटर क्लब होते हैं। विदेशों में तो इनकी संख्या काफी है पर भारत में यह अपेक्षाकृत कम हैं। लोगों का ध्यान अब इस ओर जा रहा हैं। धीरे-धीरे यहां भी इस तरह के केन्द्र विकसित हो जाएंगे। पश्चिमी देशों में तो प्रत्येक अस्पताल में एक लाफटर क्लब चलाया जाता है जहां चुटकले, कार्टून फिल्मों, पुस्तकों आदि के माध्यम से हँसाया जाता है।

क्या आप मानते हैं कि अब हँसनेे के लिए भी लाफ्टर क्लब जाया जाए।मैंने ऐसा कब कहा कि आप हँसने के लिए लाफ्टर क्लब का इंतजार कीजिए। भारत में इन सब की कोई जरुरत नहीं हैं। ऋषि मुनियों के समय से ही हँसने को एक दवा के रुप में मान्यता मिली है जो व्यक्ति को हँसाने का कार्य करता था उसे विदूषक कहा जाता था। उसके पहनावे, हरकतों से व्यक्ति बिना हँसे नहीं रह पाता था। यह भी एक तरह की कला थी। प्राचीन काल के कोई भी नाटक आप पढें़ उसमें विदूषक का पात्र अवश्य होता था। फिल्मों में यही किरदार जोकर कहलाता है। हँसी हमारे जीवन में शामिल है। कभी हम स्वयं की मूर्खता पर हँसते हैं। अतः हँसने के लिए लाफ्टर क्लब जाना भी एक हँसी का मुहावरा हो सकता है। यह याद रखें कि जब आप हँसे तो दिल खोलकर हँसे, आपकी हँसी गूंजनी चाहिए। सिर्फ मुस्कुरा कर काम नहीं चलेगा। अब वह जमाना गया जब खुल कर हँसना अभद्रता माना जाता था। आज की दुनिया में संस्कार भी वैज्ञानिक होने चाहिए।
दंपति की समस्याएं डा. हरीश भल्ला, संपादन- डा. अनुजा भट्ट
 प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक से

सोमवार, 13 अगस्त 2018

डायबिटीज काे मैनेज करने के आसान उपाय-डा. दीपिका शर्मा



डायबिटीज के रोगी को एक दिन में कम से कम चार से पांच सर्विंग मौसमी फल और सब्जियों का सेवन करना चाहिये। डायबिटीज के रोगी को जूस का सेवन नहीं करना चाहिये, इसकी जगह वे सूप का सेवन नियमित तौर पर कर सकते हैं। ऐसा इसलिये क्योंकि जूस पीने से शुगर का स्तर बढ़ता है और ग्लाइसेमिक इंडेक्‍स भी बढ़ जाती है। तो हर डायबिटीज रोगी के लिये जरूरी है कि वो हर दिन मौसमी फल और सब्जियों की पांच सर्विंग ले। लेकिन डायबिटीज में कुछ फल जैसे आम, अंगूर, अनार व केला आदि का सेवन करने से ग्लाइसेमिक इंडेक्स बढ़ता है। डायबिटीज रोगी सेब, संतरा, पपीता व अमरूद आदि का सेवन कर सकते हैं। साथ ही सलाद (प्याज, ककड़ी, मूली व खीरा आदि) अधिक खाना चाहिये। डायबिटीज रोगी को अन्न थोड़ा कम ही खाना चाहिये। डायबिटीज में कुछ हरी सब्जियां जैसे, करेला (जूस भी), लोकी (जूस भी) व जामुन आदि का सेवन करना चाहिये। इनके सेवन से न सिर्फ शुगर का स्तर सामान्य होता है, बल्कि संपूर्ण स्वास्थ्य बेहतर बनता है। ज़मीन से निकने वाली सब्जियां, जैसे आलू, शकरकंद, अरबी, जिमीकंद व गाजर आदि के सेवन से ब्लड शुगर का स्तर अचानक बढ़ जाता है, इसलिये इनका कम से कम सेवन करना चाहिये।


वजन के हिसाब से डायट


डायबिटीज के मरीज के लिए अपना वजन काबू में रखना बेहद जरूरी होता है। अगर आपका वजन अधिक है, तो आपको उसी हिसाब से अपनी कैलोरी में कटौती कर देनी च‍ाहिए। इसके साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि आपके रोजाना के आहार का चालीस से साठ फीसदी पोषण कार्बोहाइड्रेट से हो। आपको गेहूं के साथ ज्वार, बाजरा और चने का आटा मिलाकर खाना चाहिए। इसके साथ ही चीनी का सेवन कम करें। सब्जियों का सेवन अधिक करें। स्टार्ची सब्जियों का सेवन न करें।


घरेलू उपाय


अगर आप डायबिटीज पर काबू पाना चाहते हैं तो अपनी दवा और डॉक्‍टर की सलाह के साथ-साथ आप कुछ घरेलू उपायों को भी अपना सकते हैं। यह घरेलू उपाय आपकी डायबिटीज को कंट्रोल करने में मदद करते हैं। लेकिन सबसे पहले अपने खान-पान पर ध्‍यान बहुत जरूरी है। इसलिए लेने पर दिन में 3 बार भरपेट खाने की बजाय हर 2-3 घंटे में कुछ न कुछ खाते रहें। अपने आहार में फाइबर युक्‍त चीजों को बढ़ा दें। हरी सब्जियां, फलों, सलाद और अंकुरित अनाज में फाइबर बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा करेले के जूस को अपने आहार में शामिल करें। मेथी के बीज का सेवन करें


डा. दीपिका शर्मा अपाेलाे  फेमिली क्लीनिक नौएडा, उत्तरप्रदेश, सेक्टर 110 में  फेमिली फिजिशियन हैं।
 सेहत से जुड़े सवाल आप हमारे मैं अपराजिता के फेसबुक पेज में कर सकते हैं। अपनी सेहत संबंधी समस्या के लिए आप हमें मेल भी कर सकते हैं-
mainaparajita@gmail.com



रविवार, 12 अगस्त 2018

फन्ने खां ने उठाया बॉडी शेमिंग पर सवाल- डा. अनुजा भट्ट

फन्ने खां  फिल्म अपनी लचर कथा और बिखरती पटकथा के कारण आज के प्रासंगिक सवालाें को सही ढ़ंग से नहीं उठा पाई। कहानी का आइडिया अच्छा था। बॉडी शेमिंग खासकर महिलाआें के लिए एक अहम सवाल है। यह आपकी प्रतिभा काे बाहर निकलने का माैका नहीं देता। समाज  न उनकाे सुंदर मानने काे तैयार है और न  प्रतिभावान। स्कूल हाे या कालेज,घर परिवार हाे या अॉफिस या बाजार। हर जगह स्वागत करती हैं ताे फब्बितयां। जाे उनके आत्मविश्वास काे चूर चूर कर  देती है। इस फिल्म में लता काे भी इसी तरह की सामाजिक विसंगतियाें का सामना करता पड़ता है और वह कभी बहुत इमाेशनल ताे कभी बहुत जिद्दी और बदतमीज हाे जाती है। अपने पिता के  प्रति उसका रूखा व्यवहार आज की नई पीढ़ी के बच्चाें का एेसा अक्स पेश करता है जिसे सही नहीं ठहराया जा सकता। जाे पिता हर समय उसके लिए सपने देखता है और चाहता है  कि उसे उसकी मंजिल मिले एेसे पिता के लिए उसका व्यवहार ठीक नहीं। वह सिर्फ अपने लिए जीती नजर आती है। मां के साथ ट्यूनिंग है पर वह भी एकदम सतही...
 फिल्में संदेश देती हैं एेसे में लता का संदेश एक रूकावट पैदा करता है। आज के दाैर में हाे सकता है यह किसी काे न खटका हाे पर मुझे जरूर खटका। मां पिता के साथ बच्चाें के रिश्ते दाेस्ताना हाेेने के पक्ष में मैं भी हूं पर माता पिता की अवहेलना और उनकी मेहनत काे नजर अंदाज करने के पक्ष में कतई नहीं।  अभिनय की दृष्टि से लता के रूप में पिहू का अभिनय जानदार है। फेक्ट्री में अपहरण की गई बेबी उर्फ एश्वर्या वाला  दृश्य बहुत लंबा है  इस वजह से कहानी के बहुत सारे डिटेल्स खतम हाे जाते हैं। मेहनत के बल पर सबकुछ मिल सकता है बेबी का यह मैसेज भी सार्थक नहीं हाेता। क्याेंकि लता जाे मुकाम हासिल करती है वह मेहनत से नहीं बल्कि जुगाड़ से करती है।  फिल्म में अगर लता काे मेहनत के बल पर अपना लक्ष्य हासिल करते हुए दिखाया जाता  ताे यह एक अच्छी कहानी हाेती।  आजकल हर बच्चा पढ़ाई के साथ साथ कुछ और भी सीख रहा है। उसके सपनाें में कई सेलीब्रिटी है। जैसा वह बनना चाहते हैं। एेसे बच्चाें के लिए यह एक निराशाजनक बात है।
 और अगर इसे कामेडी फिल्म की तरह देखा जाए ताे यह एक बच्ची का मजाक उड़ाती है उसके माेटेपर पर हँसती है। वह लड़की जिसमें प्रतिभा है और सपना भी है अपने पिता की हरकताें पर बेसाख्ता राेना चाहती है, माइक ताेड़कर फैंक देना चाहती है। पर वह चालाक भी है माैके का  फायदा उठाना आता है उसे ,क्याेंकि बाजार भी ताे यही कर रहा है।
 फिर भी फिल्म निराश नहीं करती। कम से कम सवाल ताे उठाती है। 

शनिवार, 11 अगस्त 2018

संध्या का सूरज- उर्मिल सत्यभूषण

उर्मिल सत्यभूषण
 महामाया ने दो दिन पहले सूचित किया था।
‘‘वरिष्ठ नागरिक गृह में आपको सिटी मॉम्ज के साथ मातृदिवस मनाने जाना है। आप चलेंगी न आपको बहुत अच्छा लगेगा।
महामाया ने कहा था : ‘सिटी मॉम्ज घरेलू महिलाओं का एक एन जी ओ है। ये होममेकरज हैं पर घर में ही कुछ न कुछ उद्यम चला रखे हैं। घर भी उपेक्षित नहीं होता और महिलाओं की आर्थिक और बौद्विक जरूरतें भी पूरी होती रहती हैं। अपने पारिवारिक कार्यों के साथ साथ समाजोपयोगी प्रोजेक्ट भी हाथ में लेती रहती हैं।
श्रीदेवी के मन में वरिष्ठगृह को देखने की उत्सुकता भी जगी और सिटी मॉम्ज एन जी ओ के सदस्यों से मिलने की इच्छा भी। समय के साथ जरूरतें बदलती हैं तो सामाजिक ढांचे भी अपना रूप बदलने लगते हैं। आज के बुजुर्गों की समस्या बहुत गंभीर रूप लेती जा रही है। संताने अपने काम की भागदौड़ के कारण वृ़द्ध मां बाप को अकेले छोड़ते जा रहे हैं। वृद्ध लोग अपनी उम्र की आधियों, व्याधियों से ग्रसित अकेले रह गये हैं बहुत निरीह और असहाय सी जिंदगी हो गई है उनकी। श्रीदेवी कब से ऐसे सांध्यगृहों की खोज में लगी हैं : उनकी जरूरत शिद्दत से महसूस हो रही है।
ठीक समय पर महामाया लेने पहुंची। वह तैयार बैठी थी कुछ किताबें उठाई और चल दी।
‘‘आंटी, थोड़ी देर हो गई है हमें पर वो लोग बड़ी बेसब्री से इन्तजार कर रहे हैं। आपका इन्तजार हो रहा है।
वहां प्रोग्राम क्या है?
‘वहां मदरज डे मनाना हैं ताकि वहां के रहने वालों को भी अपने होने का एहसास हो। आपका काव्यपाठ होगा, उनको प्रेरणा मिलेगी आंटी अभी दो साल पहले ही दो युवा माताओं की पहल पर यह एन जी ओ शुरू किया गया हैैै।
मैं भी उस एन जी ओ का हिस्सा हूं।
‘आप क्या क्या करते हैं उसमें? श्रीदेवी ने पूछा।
तो महामाया बोली : यह घरेलू महिलाओं की सार्थक पहल है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि औरतें आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनें। उनके व्यक्त्तिव का विकास हो और सशक्त महिलायें अच्छे समाज का भी निर्माण कर सकें। अब समय के साथ परिवार की चूलें हिल चुकी हैं। काम दौड़भाग में परिवार टूटते जा रहे हैं। बच्चों का पालनपोषण सही नहीं हो पाता। पढ़ी लिखी महिलाओं ने इस बारे में अच्छी तरह सोचा है कि परिवार, व्यक्ति समाज किस तरह से संतुलित किया जाये तो मातृशक्ति ने एक सार्थक पहल की है।
‘श्रीदेवी, सुनकर खुश हुई। वाह महामाया बड़ा अच्छा सोचा है शहरी माताओं ने। मेरी जैसी ग्रैंड मॉम भी आपके मिशन में शामिल होना चाहती हैं।
‘ओ श्योर - आंटी - इसीलिए तो हमने आपको चुना है हमें गाइडकरने के लिए।
‘आधे घंटे में वे लोग वरिष्ट्ठ गृह पहुंच गये।
शहर की सम्पन्न कालोनी में था गृह - सारी सुख सुविधाओं और वाटिकाओं की हरीतिमा से घिरा हुआ। मंदिर का बहुत बड़ा हाल भी था। जिसमे सत्संग के अलावा कई प्रकार के कार्यक्रम होते रहते थे।
लिफ्ट से वे लोग ऊपर हाल में पहुंचे। वहां पर 20-25 लोग सीनियर सिटीजन थे और 15 या 20 सिटी मॉम्ज की सदस्यायें थी। श्रीदेवी जी का परिचय कराया गया। सबने खड़े होकर तालियां बजाकर उनका स्वागत किया। सब लोग बड़े उत्साह और उमंग में दिखाई दे रहे थे। श्रीदेवी जी ने काव्यपाठ आरम्भ किया तो सभी मंत्रमुग्ध हो उठे। सभी कवितायें उमंग और जीवन्तता से भरी थीं। बाद में वरिष्ट्ठ लोगों ने भी अपने अपने अनुभव शेयर किये। सबने कुछ न कुछ सुनाया और अपना अपना परिचय दिया। उन युवा उत्साही मातृशक्तियों ने नृत्य आरम्भ किया तो वे लोग भी झूम झूम कर नाचने लगी। बाद में जलपान कराया गया और हरेक व्यक्ति का तोहफों से अभिनंदन किया गया। श्रीदेवी इस कार्यक्रम से बड़ी प्रफुल्लित थीं। उसने बुजुर्गों के कमरों का निरिक्षण किया। सब के पास अपना अपना खरीदा हुआ एक कमरा था शौचालय सहित। कमरे अच्छे हवादार, रोशन और फर्नीचर से लैस थे। खाना आदि सब फ्री का। रैम्प भी बने हुए थे। काफी अच्छा प्रबंध था। श्रीदेवी बहुत समय से सोच रही थी अपने लिए भी कमरा लेने का ताकि वहां आकर यहां लिख पढ़ सके। जब मन हुआ घर वालों से मिल भी आए।
उसने अपने विचार सिटी मॉम्ज के आगे भी रखे कि ये सांध्य गृहों का विस्तार किया जाए और प्रचार भी। क्योंकि समय की जरूरत है ये पर सभी समाजजसेवा में लगी संस्थायें समय समय पर इनसे मिलने आये। इनके साथ मिलकर कार्यक्रम करें।
ऐसा चल रहा है आंटी -  बहुत से आयोजन यहां होते रहते हैं जिनमें ये लोग भी शामिल होते हैं। दो दिन बाद यहां पर सामूहिक विवाह का कार्यक्रम है जिसमें हमें शामिल होना है। एक महिला ने कहा। उसन कहा ‘दीदी‘ आप चाहो तो कभी आकर रह भी सकते हैं हमारे साथ। कमरे कई खाली रहते हैं जब कई लोग अपने घर चले जाते हैं मिलने।
एक बुजुर्ग ने कहा - मैडम, हमें अपनी पुस्तकें दे जाएं यहां की लाइब्रेरी अभी ठीक नहीं है।
मैं जरूर पुस्तकें लाऊंगी और लाइब्रेरी का प्रबंध भी किया जायेगा। श्रीदेवी ने सिटी मॉम्ज से इस बारे में कहा।
जाते जाते : वो लोग बोले :-
मैडम एक गीत और सुना जाओ। आपके गीत जीवन का संदेश लाये हैं। श्रीदेवी ने कहा - जरूर : यह मेरा गीत आप मेरे साथ गायें
सूखे पत्ते हैं हम तो बिखर जायेंगें
पेड़ को पर हरेपन से भर जायेंगें
जिंदगी की नदी में नहाये बहुत
हंसते गाते ही पार उतर जायेंगें
उसने जीने को दी थी सौगाते उम्र
इसके पल पल को जीवंत कर जायेंगें
हम तपे हैं उम्र भर मगर शाम को
ढलते सूरज की मानिंद बिखर जायेंगें।
छेद करती रही उर्मिला तिमिर में
रोशनी जब मिले अपने घर जायेंगें।
कवियित्री कथाकार।संस्थापक अध्यक्ष परिचय साहित्य परिषद्                                                                                                                               

शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

नन्हें काे चाहिए कंफर्ट, मत बनाइए उसे स्टाइलिश-डा. अनुजा भट्ट

फाेटाे क्रेडिट- एलविन गुप्ता
मां बनने के बाद महिलाओं की जिम्मेदारियां दुगनी हाे जाती है। कई महिलाओं को इन दोनों के बीच तालमेल बैठाने में दिक्कत होती है। बच्चे के जीवन में आने के बाद मां का खाना-पीना, सोना-जागना उसकी आदतों पर निर्भर हो जाता है। मातृत्व के इस सफर काे इन टिप्स के जरिए आप आसान बना सकती हैं।

  • शिशु को कम से कम तक पांच से छह महीने तक मां का दूध जरूर दें। इसके अलावा उसे कुछ भी नहीं दें। मां का दूध बच्चे के लिए संपूर्ण आहार होता है। जब आपका शिशु छ: माह का हो जाए तब आप उसे दूध के साथ ही दलिया, खिचड़ी, चावल, फल आदि भी देना शुरू कर दें। बच्चों के नाखून बहुत जल्दी बढ़ते हैं। जिससे वे खुद को चोट पहुंचा सकते हैं साथ ही लंबे नाखूनों में गंदगी जमा होने का भी डर होता है। इसलिए समय समय पर नाखून काटते रहें।
  • गीलेपन से शिशु को इंफेक्शन का खतरा सबसे ज्यादा होता है इसलिए समय समय पर देखते रहें कि शिशु गीले में तो नहीं सो रहा है। उसकी नैपी को बार-बार बदलें व उसकी त्वचा को सुखे मुलायम कपड़े से साफ करें।
  • शिशु को स्वच्छ रखने व बीमारियों से बचाने के लिए उसे रोज स्नान कराएं। इससे उसे नींद भी अच्छी आएगी और वो दिनभर तरोताजा महसूस करेगा। मालिश से शिशु की हड्डियां मजबूत बनती हैं साथ ही शरीर की गतिविधियां भी बढ़ती है। नहलाने से पहले शिशु की मालिश करना सबसे अच्छा है।
  • अगर आपका शिशु सरकने की कोशिश करने लगा है तो फर्श पर कोई भी नुकीली, धारदार, खुरदरी चीज नहीं रखें। बच्चा सहारा लेकर खड़ा होना सीख रहा है तो टेलीफोन या गुलदस्ते इत्यादि उसकी पहुंच से दूर रखें। बच्चे को हमेशा मुलायम व आरामदायक कपड़े पहनाएं। कई बार ऐसा होता है कि बच्चे को स्टाइलिश दिखाने के लिए माता-पिता उन्हें ऐसे कपड़े पहना देते हैं जिससे बच्चों को परेशानी होती है।
  • बच्चों को किचन से दूर रखें क्योंकि दुर्घटना होने की संभावना सबसे ज्यादा किचन में ही होती है। किचन का सारा सामान बच्चों की पहुंच से दूर रखें।
  • कई बार बच्चों को कोई तकलीफ होने पर वे लगातार रोते रहते हैं। अक्सर ऐसा तब होता है जब बच्चे के पेट में दर्द होता है।
  • शिशु के सारे टीके समय पर लगवाएं। ये टीके बच्चों को बीमारियों से बचाते हैं।
  • बच्चों की आदत होती है कि वे जमीन से उठाकर कुछ भी मुंह में डाल लेते हैं। इसलिए घर की ठीक से सफाई करनी चाहिए।




Special Post

मिथक यथार्थ और फेंटेसी का दस्तावेज-डॉ. अनुजा भट्ट

  (अब पहले की तरह किस्से कहानियों की कल्पनाएं हमें किसी रहस्यमय संसार में नहीं ले जाती क्योंकि हमारी दुनिया में ज्ञान, विज्ञान और समाज विज्...